शुक्रवार, 28 सितंबर 2007

लता मंगेशकर महोत्‍सव : सन्‍नाटों की गायिका लता मंगेशकर के वे गीत आपने सुने हैं क्‍या जो उन्‍होंने प्रेतात्‍माओं के लिये गाए हैं

अठहत्तर वर्ष की उम्र में भी उतने ही सधे हुए सुर और वही दिव्य आवाज यह चमत्कार नहीं तो और क्या है? सादगी की ग़ज़ल मुझे ख़बर है वो मेरा नहीं पराया था सुनकर देखिए क्या आपको कही से भी लगता है, कि यह स्वर एक अठहत्तर वर्ष की महिला का है। फिल्म लगान का अपूर्व भजन, ओ पालनहारे क्या आपको वर्षों पूर्व के कालजयी गीत अल्ला तेरो नाम की याद नही दिलाता। लता जी को मिला भारत रत्न वास्तव में हम सब संगीत रसिकों का सम्मान है, हम जो लता जी की आवाज की उंगली पकड़ कर खड़े हुए, बड़े हुए, चलना सीखा, और आज भी चल रहे है, उसी नूर की बूंद के साए में जों बकौल गुलजार साहब सदियों से बहा करती है । लता मंगेशकर और गुलजर ने मिलकर कुछ ऐसी रचनायें दी हैं, जो सुनने में किसी दूसरे संसार की लगती हैं। दरअसल गुलजार की शायरी इतनी दूरूह होती है, कि अगर उसे कोई सरल आवाज न मिले, तो वह और जटिल हो जाती है, लता मंगेशकर और किशोर कुमार ने इसलिये जब गुलजार को गुनगुनाया, तो जटिल पहेलियों सी शायरी को बिलकुल आसान बना डाला। अब तेरे बिना जिंदगी से कोई शिक़वा के अर्थ की भूलभुलैया में फसेंगे, तो गाने का मजा नहीं ले पायेंगे। फिल्म लेकिन जिसका निर्माण लता जी ने स्वयं किया था, के गीत काफी लोकप्रिय हुये थे। यारा सीली सीली बिरहा की रात का जलना एक कठिन शब्दों और गूढार्थ से भरी हुई रचना थी, परन्तु लता जी की आवाज, और हृदयनाथ मंगेशकर के २१ वीं सदी के संगीत ने, उसे अमर बना दिया।
मेरे विचार में लता जी सन्नाटों की गायिका हैं, इसलिये भटकती आत्माओं पर फिल्माये गये उनके गीत, सर्वाधिक लोकप्रिय हुये हैं। एच. एम. व्ही. ने लताजी के रूहानी गीतों के, अलग से दो कैसेट निकाले थे, जिसमें सारे गीत एक से बढ़ कर एक थे। रात के सन्नाटे की बात हो, या किसी अतृप्त आत्मा की पुकार हो, अगर लताजी की स्वर लहरी उसमें हो, तो ऐसा लगता है, सब कुछ सच है।वो भले ही कहीं दीप जले कहीं दिल हो , झूम झूम ढलती रात हो , नैना बरसे रिमझिम रिमझिम हो या बहारों की मंजिल का अदभुत गीत निगाहें क्‍यों भटकती हैं हो । फिल्म सिलसिला का वह गीत नीला आसमां सो गया सुनने में ऐसा लगता है, मानो सचमुच रात के अंधेरे में नीला आसमां, कहीं क्षितिज के उस पार सोया पड़ा है, इसी गाने के अंतरे याद की वादी में गूंजे बीते अफसाने में लता जी की आवाज ने जो गूंज, या प्रतिध्वनि पैदा की है, उसने इस गीत को, और इसकी पंक्तियों को निनाद से भर दिया था। सन्नाटो में गूंजने की क्षमता, उतनी बेहतरीन हेमन्त कुमार के अलावा, और किसी गायक या गायिका में दिखाई नहीं देती।

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