बुधवार, 5 सितंबर 2007

वक्‍त की गोद से हर लम्‍हा चुराया जाए, इक नई तर्ज़ से दुनिया को बसाया जाए

विद्यार्थियों की सक्रियता धीरे धीरे बढ़ती ही जा रही है अच्‍छी बात है जि़दा छात्र मिल जाना किसी भी शिक्षक के लिये सबसे बड़ी बात होती है । और मुझे इन दिनों की क्‍लासों के दौरान लगा कि भले ही मेरे छात्रों की संख्‍या कम है किंतु जितने हैं वे पूरी ऊर्जा से भरे हैं और यही बात मेरे लिये बहुत है ।
अनूप जी ने आज बहुत अच्‍छा प्रश्‍न क्‍लास में उठाया है जिसके लिये उनको शिक्षक दिवस के अवसर पर मास्‍साब की और से मिलते हैं पूरे 20 नंबर । उन्‍होंने कल के क़ाफिया आ की मात्रा को लेकर जो प्रश्‍न उठाया है वो वास्‍तव में मेरे दिमाग़ में भी कल था पर मैंने उसको जान बूछकर इसलिये छोड़ा था कि मैं चाहता था कि उस बाबत प्रश्‍न छात्रों की ओर से आए सो आ गया ।
अनूप भार्गव जी के ही दूसरे प्रश्‍न के जवाब में जो वज्‍़न से संबं‍धित है अभी इतना ही कहना चाहूंगा '' सितारों के आगे जहां और भी हैं, अभी इश्‍क़ के इम्तिहां और भी हैं '' अभी से वज्‍़न की बात न करें जब हम वज़न निकालना शुरू करेंगे तब तो सिलसिला शायद महीनों तक चलेगा क्‍योंकि वही तो ख़ास बात है । अभी ता केवल बुनियाद ही डाली जा रही है अत: आगे भागने का प्रयास न करें मैं कम्‍प्‍यूटर पढ़ाने में भी बहुत बेरहम हूं यदि कोई मेरा छात्र विषय से आगे की जानकारी लेने का प्रयास करता है तो मैं नहीं देता हूं क्‍योंकि वो तो सब आगे आना ही है अभी तो आज की ही बात की जाए । तो आज बात करते हैं उसी कल के की मात्रा वाले क़ाफिये की कल बात आधी ही रह गई थी आज हम उसी से आगे शुरू करते हैं ।
अनूप ने प्रश्‍न उठाया है कि क्‍या आ की मात्रा वाला कोई भी क़ाफिया उठाया जा सकता है तो पहले तो हम ये जान लें कि कोई भी नहीं बल्कि सही वज़न का और सही तरीके का क़ाफिया ही उठाया जाए । और उसमें में मतले में आपने क्‍या क़ाफियाबंदी की है वो भी देखा जाएगा । अभी मैं बज्‍़न की बात इसलिये न‍हीं करूंगा क्‍योंकि उसमें अभी आप उलझ जाऐंगें, अभी बहुत से छात्रों को यही समझने में परेशानी हो रही है । एक अच्‍छा शिक्षक वो होता है जो अपनी कक्षा के सबसे कमज़ोर छात्र को ध्‍यान में रखकर पढ़ाता है न कि सबसे तेज़ छात्र को ध्‍यान में रख्कर।
पहले बात मतले की की जाए पहले ही बता चुका हुं कि मतला ग़ज़ल का पहला शे'र होता है और ये ही तय करता हैं कि ग़ज़ल का क़ाफिया क्‍या होगा । इसलिये मतले को लिखते समय बहुत ध्‍यान रखा जाए कहीं कोई ऐसा क़ाफिया फंस गया जिसकी तुकें ज्‍़यादा नहीं हैं तो बाद में परेशानी होगी और फि़ज़ूल में भर्ती के क़ाफि़ये भरने पडेंगें । साहित्‍य में भर्ती के का मतलब होता है असहज शब्‍दों या विचारों का आ जाना । मेरे गुरू डॉ विजय बहादुर सिंह कहते हैं कि कविता तो ताश के पत्‍तों के महल की तरह होना चाहिये जिसमें हर शब्‍द का महत्‍व हो अगर कोई भी शब्‍द हटाया जाए तो पूरा महल ही गिर पड़े, अगर कोई शब्‍द ऐसा है जो प्रभाव नहीं छोड़ रहा ते इसका मतलब वो भर्ती का शब्‍द है ।
खैर तो बात क़ाफिये की चल रही थी । भर्ती के क़ाफिये की मेरे एक मित्र ने अपनी ग़ज़ल में क़ाफिया मेले और रद्दीफ में का प्रयोग कर लिया हालत ये हो गई की उनको करेले में, केले में जैसी तुकें मिलानी पड़ीं और पूरी ग़ज़ल का कचरा हो गया ।
तो बात मतले की अगर आपने मतले में शे'र कुछ यूं कहा कि
इतना क्‍यूं तू मिमियाता है
तू तो आदम का बच्‍चा है

तो बात साफ हो गई कि आप की मात्रा को क़ाफिया और है रद्दीफ बना कर ग़ज़ल कह रहे हैं और अब आप को आ की ही मात्रा को क़ाफिया देने की स्‍वतंत्रता हैं ।
मगर यदि आपने ऐसा कुछ मतला कहा जो मप्र उर्दू अकादमी के संयुक्‍त सचिव जनाब इक़बाल मसूद साहब अपने मतले में कह रहे हैं
अंगड़ाइयां लेता है, आंखें कभी मलता है
आता है मेरी जानिब, या नींद में चलता है
अब यहां भी मात्रा तो आ की ही क़ाफिया है पर जो अंतर यहां पर आ गया है वो ये है कि आपने क़ाफिये में एक दोहराव लिया है और वो है लता अर्थात अब मतले के हिसाब से आपका क़ाफिया लता है और रद्दीफ़ है । अब आप आगे जो शे'र कहेंगें वो लता क़ाफिया लेकर ही चलेंगें आ की मात्रा नहीं चलने की अब । इसे मतले का कानून कहा जाता है ।
जैसे मसूद साहब ने बहुत सुंदर शे'र निकाला है जिसका मैं दीवाना हूं
कच्‍ची है गली उसकी, बारिश में न जा ए दिल
इस उम्र में जो फिसले, मुश्किल से संभलता है

मतलब बात वही है अब आप फंस गए हैं क्‍योंकि आपने ही मतले में मलता है और चलता है कह कर स्‍वीकार कर लिया था कि क़ाफिया लता है अब आपको ये ही लेकर चलना चाहिये ।

मसूद साहब का एक और ख़ूबसूरत शे'र देखें

हर शाम धनक टूटे, अंगों से महक फूटे

हर ख्‍़वाब से पहले वो, पोशाक बदलता है

तो बात ये है कि आपका मतला तय करता है कि ग़ज़ल में आगे क्‍या होना है ।

एक और उदाहरण कुछ अलग तरह का देखें उर्दू अदब की आला शख्‍़सीयत जनाब मुज़फ्फर हनफ़ी साहब का मतला है

छत ने आईना चमकाना छोड़ दिया है

खिड़की ने भी हाथ हिलाना छोड़ दिया है

अब यहां पर क़ाफिया हो गया है आना जो कि संधि विच्‍छेद करने पर चमक:आना-चमकाना और हिल:आना-हिलाना है यहां पर भी की मात्रा तो हैं पर क़ाफिया तो मतले के हिसाब से आना है और अब आपको उसका ही निर्वाहन करना है । जैसा हनफी साहब ने किया है

चांद सितारे ऊपर से झांका करते थे

पागल ने इक और विराना छोड़ दिया है

अब आपको ये ही करना है । आज इतना ही गल हम की मात्रा को लेकर और भी बातें करेंगें । आज शिक्षक दिवस है और इस शिक्षक की और से अपने छात्रों को नुसरत मेहदी जी का ये शे'र समर्पित है

वक्‍़त की गोद से हर लम्‍हा चुराया जाए
इक नई तर्ज से दुनिया को बसाया जाए
मेरी भी ये ही ख्‍़वाहिश है कि आप सब दुनिया को नई तर्ज से बसाने का प्रयास करें ।
आपका शिक्षक पंकज सुबीर

4 टिप्‍पणियां:

  1. तेरी हर बात में वजन है
    क्योंकि काफिये में दम है.



    -बस काफिया मिलाने की कोशिश की है. :) अच्छी रही यह क्लास भी. हाजिरी लगा लिजिये.

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  2. सुबीर जी:
    इतनी अच्छी तरह से समझानें के लिये शुक्रिया ।
    आनन्द आ रहा है कक्षा मे ।
    एक बात और बताइये :
    क्या वह गज़ल जिस में लगभग पूरा शब्द काफ़िये की तरह प्रयोग हो जैसे "करना, मरना, धरना, हरना" बेहतर मानी जाती है बजाय इस के कि वह गज़ल जिस में सिर्फ़ मात्रा ही काफ़िया हो जैसे
    "करना, करता , चलता" । ये मेरा भ्रम हो सकता है लेकिन जितनी अच्छे शायरों की अच्छी गज़लें पढी हैं वह पहली श्रेणी में आती है ।
    हाँ पहली श्रेणी की गज़लों में ’काफ़िये’ का निर्वाह तो मुश्किल होगा ही ...।

    धन्यवाद





    काफ़िये अगर आ की मात्रा मान कर चलें तो करना, करता , चलता सभी ठीक है , या
    करना , मरना , धरना , हरना ज़रूरी है ?

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  3. आज मैं थोड़ा लेट हो गया,
    देर से किंतु आ तो गया,

    आपको, हे गुरुवर, प्रणाम,
    काफिया जाग कर सो गया। (ये आखिरी पंक्ति केवल तुक मिलाने हेतु लिखी गई है।)

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  4. आपकी कक्षा में गुरुवर
    हम सबसे ज्यादा लेट हैं
    अबतक जो भी पढ़े हैं हम
    बस शिक्षक आप ग्रेट हैं
    आज ही पहिला दिन है मेरा
    हम शिष्या आपकी सेट हैं
    शाष्टांग दंडवत करते हैं
    औ धरती पर लमलेट हैं
    मान्यवर,
    प्रणाम,
    श्री गौतम राजरिशी जी ने आपके ब्लॉग का मार्गदर्शन किया है...
    आज ही से पढना शुरू किया है मैंने ..
    मेरा प्रणाम स्वीकारें....
    गज़ल की विधा को देखने कि चेष्टा कर रहे हैं इनदिनों....
    भाग्यशाली हैं कि आपका ब्लॉग मिला है..
    ह्रदय से धन्यवाद कि आपने हम जैसे अनाडियों के लिए इतनी जानकारी दे रखी है..
    एक बार फिर प्रणाम...

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