आज से हम कक्षाओं को विधिवत प्रारंभ करते हैं । आज उज्जैन के अहमद कमाल परवाज़ी साहब की ग़जल़ को ऊपर लगाया हे । समर का अर्थ होता है फल और शज़र का अर्थ पेड़ । हमने जहां पर पिछली बार कक्षएं बंद कीं थीं वो जगह थी रुक्नों की कक्षा और हम पंचकल तक आ चुके थे अब हम को उसके बाद से ही शुरू करना है । पंचकल का अर्थ तो अब आप जानते ही होंगें कि पांच मात्राओं का एक समूह जिसमें गुरू और लघु को मिला कर कुल मिलाकर पांच मात्राएं होतीं हों । पंचकल के कुछ उदाहरण हमने पिछले अध्याय में देखे थे ।
शुरू करने से पहले एक बात बता दुं कि मुझे जाने क्यों लग रहा है कि अब छात्र छात्राओं में पहले सा उत्साह नहीं है, अगर आप बोर हो गए हों तो बता दें हम कभी भी अपने कोर्स को समाप्त कर सकते हैं ।
षटकल:-
छ: हर्फी रुक्न को हिंदी में षटकल कहा जाता है और उर्दू में इसकी आठ सूरतें हो सकती हैं ।
अच्छा पहले तों मैं एक बात बताना चाहता हूं और वो ये कि अभी भी कुछ पुराने छात्र तथा छात्राएं रुक्न् निकालना नहीं सीख पाएं हैं और वे ग़लत तरीके से रुक्न्ा निकाल रहे हैं । मात्राओं को कैसे गिनना है और किस मात्रा को गिराना है ये बात ही हमें पहले जानना चाहिये तभी बात बन सकती है ।
षटकल की जो सूरतें होती हैं वो कुछ इस प्रकार हो सकती हैं हां एक बात फिश्र जान लें कि षटकल का मतलब छ: अक्षर नहीं होता बल्कि छ: मात्राएं होता है ।
जैसे आप कहेंगें कि तुम न कहो ये तो पांच अक्षर हैं सो ये पंचकल है ( अभिनव ध्यान दें ) मगर हो का मतलब एक दीर्घ मतलब 2 और इस प्रकार विन्यास होगा तु 1, म 1, न 1, क 1, हो 2, अर्थात 11112 कुल मिलाकर 6 ।
( एक और बात बताना चाहूंगा अभी मेरे कम्प्यूटर के स्पीकर में लता जी का गाना ओ पवन वेग से उड़ने वाले घोड़े बज रहा है आपने सुना है कि नहीं ये गीत नहीं सुना हो तो ज़रूर सुनना )
षटकल
1 तीन गुरू मात्राएं या फिर छ: लघु मात्राएं 222 । मफऊलुन
तुम हम दिल इसमें छ: मात्राएं हैं पर दो दो के जोड़े में हैं अर्थात दो दो लघु मिलकर तीन गुरू बना रही हैं ।
चाहा था में तीन गुरू सीधे सीधे हैं पर ये भी वहीं है मफऊलुन
2 प्रारंभ में दो स्वतंत्र लघु फिर दो गुरू फएलातुन 1122 अब इसमें और ऊपर वाले में क्या फर्क है वो ये कि ऊपर वाले में प्रारंभ की दो लघु मिलकर संयुक्त हो रहीं थीं पर यहां पर वे स्वतंत्र हैं । जैसे न दिलासा में न और दि दोनों ही स्वतंत्र हैं और एक दूसरे में मिल नहीं रहे हैं । जबकि ऊपर तुम में तु और म हालंकि दो लघु हैं पर दोनो मिलकर एक दीर्घ में बदल रहे हैं ।
इसका एक और प्रकार ये भी हो सकता है कि छ: लघु ही हों पर शुरू के दो लघु तो स्वतंत्र हों पर बाद के चार लघु आपस में मिलकर दो दो दीर्घ बना रहे हों । जैसे न दिवस मन में न स्वतंत्र है, दि पुन: स्वतंत्र है, पर वस में दोनों लघु मिलकर एक दीर्घ बना रहे हैं फिर मन में भी यही हो रहा है कि दोनों लघु मिलकर एक दीर्घ बना रहे हैं । ऊपर 1 नंबर में और यहां पर ये अंतर है कि वहां पर तीन जोड़े थे यहां पर दो हें ।
3 प्रारंभ में एक गुरू और फिर दो लघु और पुन: एक गुरू, या फिर छ: लघु जिनमें से प्रारंभ के दो लघु मिलकर दीर्घ हो रहें हों बीच के दोनों स्वतंत्र हों और बाद के दोनों मिलकर दीर्घ हो रहें हों । जैसे मुफतएलुन या फाएलतुन 2112
काम न हो में का तो एक दीर्घ है फिर म और न दोनों ही लघु भी हैं और स्वतंत्र भी हैं । और फिर हो पुन: एक दीर्घ है । 2112
अब तुम न दिवस को देखें इसमें भी वही बात है पर प्रारंभ में तु और म दोनों मिल कर एक दीर्घ बना रहे हैं फिर न और दि दोनों ही स्वतंत्र और फिर वस में दो लघु मिलकर एक दीर्घ बना रहे हैं । 11,11,11
ठीक है आज इतना ही क्योंकि षटकल काफी लम्बा भी है औरसबसे ज्यदा उपयोग में ये ही आता है ।
हाजिरी लगा लीजिये सर जी
जवाब देंहटाएं-अजय
उपस्थित आचार्य जी!
जवाब देंहटाएंयस सर,
जवाब देंहटाएंषटकल के विषय में जान कर हर्ष हुआ।
उपरोक्त पंक्तियों की बहर निकालने का प्रयास किया है, बड़ी गोलमाल पंक्तियाँ हैं, समझ ही नहीं पड़ रहा कि दीर्घ कहाँ लघु के पाले में बैठ चाय पी रहा है और लघु कहाँ मात्राओं से मिल कर लुका छिपी का खेल कर रहा है। मुझे मुर्गा बनने की समस्त संभावनाएँ भी नज़र आ रही हैं, पर फिर भी बहर जो और जैसी भी निकली है प्रस्तुत कर रहा हूँ।
मेरी मेहनत का नतीज़ा है मगर उसका है,
छांव उसकी है, समर उसके, शज़र उसका है,
इसकी बुनियाद में मेरा भी लहू है लेकिन,
जब वो चाहेगा ये कह देगा कि घर उसका है,
संभावित बहरः
२१२२ - २१२२ - २१२२ - २२
लाललाला - लाललाला - लाललाला - लाला
फाएलातुन - फाएलातुन - फाएलातुन - फालुन
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1. मेरी मेहनत - का नतीज़ा - है मगर उस - का है,
2. छांव उसकी - है, समर उस - के, शज़र उस - का है,
3. इसकी बुनिया - द में मेरा - भी लहू है - लेकिन, (इस पंक्ति के दूसरे रुक्न का पहला भाग 'द' दीर्घ नहीं है, फिर भी बहर निकालने में इसे दीर्घ मान लिया है। मुझे दो विकल्प समझ में आ रहे थे। पहला ये कि यहाँ पर 'द' को लघु मान लूँ तथा इसी के अनुसार बाकी पंक्तियों में 'का', 'है' तथा 'गा' को लघु समझूँ। दूसरा ये कि द को ही दीर्घ के रूप में रखूँ, बुनियाद में 'द' शब्द पर विशेष ज़ोर भी दिया जाता है, अतः इसको दीर्घ मान कर बहर निकाल दी है।)
4. जब वो चाहे - गा ये कह दे - गा कि घर उस - का है,
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आदरणीय गुरुदेव, निम्न पंक्तियों में निहित भाव को मन से तिरोहित कीजिए,
"शुरू करने से पहले एक बात बता दूं कि मुझे जाने क्यों लग रहा है कि अब छात्र छात्राओं में पहले सा उत्साह नहीं है, अगर आप बोर हो गए हों तो बता दें हम कभी भी अपने कोर्स को समाप्त कर सकते हैं।"
आपके विद्यार्थियों में उत्साह की कमी नहीं है, अभी तो लोगों नें सीखना शुरू किया है यदि आप कोर्स समाप्त कर देंगे तो हम सभी अधूरे ज्ञान से भरी अपनी अधजल गगरी जगह जगह छलकाते हुए घूमेंगे।
जब तक नहीं बनें नई ग़ज़लों के सिकंदर,
तब तक रहेंगे आपकी क्लासों में बराबर,
फिर आपके स्कूल में टीचर की नौकरी,
करते हुए सिखाएँगे दुनिया को यही स्वर।
मैन आप से एक बात पूछी थी..
जवाब देंहटाएंबहरों की संख्या कितनी है..क्या बहर की लिस्ट है आपके पास?
और नई बहर अगर बनानी हो तो?
पंकज जी
जवाब देंहटाएंआप के ब्लॉग पर आज ही आना हुआ और आप के ज्ञान के समक्ष नत मस्तक हो गया. मैंने जो ग़ज़लें या आप जो भी कहें लिखी वो अपनी एक बेसिक इन्स्तिक्त पर लिखीं. याने जो मुझे गाने में सुर लय में शब्द बैठे उनको जोडा और लिख डाला. लिखना अचानक ही शुरू किया और बिना गुरु ज्ञान के जो जैसा लिखा उसे आप मेरे ब्लॉग http://ngoswami.blogspot.com पर पढ़ सकते हैं. मुझे सीखने की इच्छा है लेकिन क्या करूँ कोई सीखाने वाला मिलता नहीं. कोशिश करूँगा की आप के ब्लॉग से कुछ ग्रहण करूँ.
इस से पहले के लेख कहाँ से पढूं ये बताईये.
नीरज