आजकल माड़साब को पढ़ाने में मज़ा आ रहा है और वो इसलिये क्योंकि आजकल विद्यार्थी गण काफी रुची ले रहे हैं और कुछ नए एउमीशन भी मिल गए हैं । अब ये तो सब ही चाहते हैं कि क्लास भरी रहे हैं । उड़नतश्तरी इन दिनों भारत में है और परसों रात में माड़साब के पास फोन आया था उड़नतश्तरी इस सप्ताह में सीहोर में उतरने वाली है और माड़साब उस दिन सीहोर में एक कार्यक्रम का आयोजन करने के विचार में हैं जिसकी जानकारी आप सभी को मिल जाएगी और माड़साब की इच्छा है कि उस दिन कुछ आन लाइन भी किया जाए और उस दिन के आयोजन मं एक दो कवि आनलाइन पाठ भी करें अब देखें क्या हो पाता है उस दिन ।
वैसे तो काफी दूसरा काम है करने को अभिनव की ग़जल को पोस्ट मार्टम करना है और अनूप जी की जो ग़ज़ल अब मिली है उस पर भी कुछ कहना है पर आज नहीं क्योंकि आज तो हम दो दिन की छुट्टी से निपट कर बैठै हैं तो आज तो सबसे पहले हम आज का पाठ शुरू करते हैं । सब बच्चे अपनी किताबें खोलें और सप्तकल के रुक्नों वाला पृष्ठ खोल लें हमने आखिरी क्लास में जहां पर छोड़ा था हम वहीं से आगे बढ़ने वाले हैं ।
3:- मफ़ाईलुन 1222 एक लघु और फिर तीन दीर्घ लगातार ललालाला
अब इसको भी देख में कि ये कितने प्रकार से हो सकता है ।
न जा भाई 1222
न हम भाई 1,11,2,2
न भाई तुम 1,2,2,11
हमें तुमने 1,2,11,2
हमें तुम सब 1,2,11,11
न हम सब ने 1,11,11,2
न हमने सब 1,11,2,11
न तुम हम कल 1,11,11,11
तो ये कुल मिलाकर आठ प्राकर से हो सकता है कि बज़्न वही हो मफ़ाईलुन और विन्यास अलग अलग हो । अब इस विन्यास को अगर देखें तो सबमें अलग अलग है पर अगर हम उच्चारण करके देखेंगें तो हम पाऐंगे कि उच्चारण में वज़्न की समानता साफ आ रही है । अर्थात पहली मात्रा तो लघु है और बाद में तीन दीर्घ आ रही हैं और इन के कारण कुल जोड़ हो रहा है सात और इसीलिये ये भी सप्तकल का एक उदाहरण है ।
4:- मुतफाएलुन 2212 लालालला
इसके विन्यास भी देखें जाएं कि कितने हो सकते हैं ।
जाना नहीं 2,2,1,2
तुमने नहीं 11,2,1,2
जो हम नहीं 2,11,1,2
जाना न तुम 2,2,1,11
हम तुम नहीं 11,11,1,2
हमको न तुम 11,2,1,11
जो हम न तुम 2,11,1,11
अब हम न तुम 11,11,1,11
वहीं आठ प्राकर के विन्यास यहां पर भी निकल के आ रहे हैं और वज़्न यहां पर भी समान हैं लेकिन मात्राओं का वितरण अलग अलग तरह से हो रहा है । हम ये ध्यान रखें कि चाहे कुछ भी लेकिन अगर ध्वनि में हमें सात मात्राऐं मिल रही हैं आैर विन्यास लालालला हो रहा है तो फिर वो मुतफाएलुन रुक्न ही है ।
रुक्नों की कुछ क्लासें और बची हैं फिर हम सीधें आऐंगें बहरों पर जो कि सबसे दुर्लभ बात हैं और हम ये जान लें कि वो ही सबसे गंभीर विषय होगा । एक बात जो मैं बार बार कहता आ रहा हूं कि बहरों का ज्ञान खोलना वैसा ही होगा जैसे कि कोई तिलस्म खुलने जो रहा हो क्योंकि ये एक छुपा हुआ रहस्य है 1
अच्छा एक बात तो हम भारतीयों का कभी नहीं छूटती भले ही हम कहीं पर भी बस जाऐं और वो ये कि अगर बिजली का बिल भरने की आखिरी तारीख 16 दिसम्बर है और अगर हम दस दिसम्बर को बिजली कार्यालय में खड़े हैं जेब में पैसे भी हैं बिल भी रखा है तो भी नहीं भरते ''' अभी तो छ: दिन है अभी क्यों भरें '' । जबकि आज कार्यालय पर बिल्कुल भीड़ नहीं है आराम से भर सकतें हैं पर नहीं साहब आखिरी तारीख को धक्का मुक्की में ही भरेंगें । पिंटू के स्कूल की फीस भी आखिरी दिन ही जमा होती है और टेलीफोन का बिल वो तो हम जब तक वहां से फोन नहीं आत तब तक नहीं भरते । ये बातें मैं इसलिये कर रहा हूं कि मैंने संसद पर हमले को लेकर सबसे कहा था कि कुछ पंक्तियां दीजियेगा और ये बात काफी पहले कह दी थी मगर कुछ पंक्तियां जो आईं वो उसी दिन आंईं जब उनको लगाना मुश्किल था ।
अब तेरह दिन पहले कह रहा हूं कि नए साल पर सब एक पूरी ग़ज़ल लिख कर प्रस्तुत करें । ग़ज़ल पूरी तरह से सकारात्मक सोच से भरी हो हम नए साल की शुरूआत नकारात्मक सोच से नहीं कर सकते । गज़ल में मतला और पांच या सात शे'र निकालें । जो नहीं करेंगें उनको कक्षा में सवालों के जवाब नहीं दिये जाऐंगें और उनकी समस्याओं पर विचार नहीं किया जाएगा । ग़ज़ल बिजली के बिल की तरह से आखिर तारीख को जमा न करें । जैसे ही हो वैसे जमा करवा दें ।
यस सर,
जवाब देंहटाएंआज का होम वर्क,
भाग-१ -- मुखड़े की ग़ज़ल की संभावित बाहर:
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
मफ़ाईलुन - मफ़ाईलुन - मफ़ाईलुन - मफ़ाईलुन
भाग-२ -- एक नई ग़ज़ल नुमा रचना के कुछ शेर:
इधर एक ग़ज़ल के कुछ शेर बनाने की कोशिश कर रहा हूँ, वैसे इसमें कुछ गड़बड़ है, फर भी होम वर्क में जमा करने की हिमाकत कर रहा हूँ.
पंडित जी सुबह की अजान सुन कर उठे हैं,
मौलाना भी चादर पर राम बुन कर उठे हैं,
तुम चाहे लगाओ यहाँ नफरत की दुकानें,
हम लोग मोहब्बत का माल चुन के उठे हैं,
जिस ढीठ रजाई को बालम ओढ़ रहे थे,
उस ढीठ रजाई की रुई धुन के उठे हैं,
उन शाखों की क्या ताल बिगाडेंगी आंधियां,
हर रंग के गुल जिसकी हवा गुन के उठे हैं.
--------------------------------
आदरणीय गुरुदेव, आपने बिजली के बिल वाली बात बड़ी सटीक कही है. यह शायद हम भारतीयों की राग राग में है, "अंत काल रघुवर पुर जाई.". हमारे दफ्तर में सबको हर साल कुछ इम्तहान पास करने होते हैं. साल भर सोने के बाद हम अब जागे हैं. समय कम है और कोर्स बहुत ज़्यादा. भगवान् जाने कैसे पास होंगे. अब लग रहा है की यदि पहले पढ़ लिया होता तो कितना अच्छा रहता. रही बात नव वर्ष की ग़ज़ल की तो प्रयास रहेगा की समय से पहले उसको जमा कर सकें. सप्त्कल के नए रूपों के बारे में पढ़ कर अच्छा लगा तथा बहर की कक्षाओं में आने से पहले रुक्नों को एक बार रिवाइज़ कर ले रहे हैं.
जाज़िर हैं !
जवाब देंहटाएंदेरी से होम-वर्क जमा करने के लिए क्षमा करें।
मुखड़े की ग़ज़ल की संभावित बाहर और कुछ शेर।
१२२२ - १२२२ - १२२२ - १२२२
मफ़ाईलुन - मफ़ाईलुन - मफ़ाईलुन - मफ़ाईलुन
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
त्रिपाठी को, तिवारी को, त्रिवेदी औ पचौरी को
कहाँ कब देर लगती है ज़माने को सताने में,
मिला होता हमें सीधा य’ कोइ सयाना सा;
नहीं फिर देर यूं लगती हमें सबको मनाने में
चले आये क्यों रूठ कर जहाँ भर की खुशीयों से
ज़रा सी देर लगती है जमाने को बताने में
उफ़क तक आ चुके, शहर में सूरज चाँद तारों के
ज़रा सी देर बाकी है हमें बस झिलमिलाने में
~ रिपुदमन पचौरी