काफी बातें हो गईं हैं पिछले दिनों में और चूंकि आज सप्ताह का अंतिम कार्य दिवस है अत: आज हम कुछ पढ़ाई वगैरह कर लें क्योंकि फिर आने वाले दो दिनों में तो छुट्टी रहनी है सप्ताहांत की । आज मैंने अपने होनहार छात्र अभिनव की ग़ज़ल को अपने मुखड़ें में लगाया है । और बाद में पूरी ग़जल़ भी दूंगा जो कि कुछ दोष युक्त है । मेर हिसाब से अब तो अभिनव को ऐसी ग़लतियां नहीं करनी चाहिये और एक बात और धयान में रख्नी चाहिये कि जो चीज़ आप प्रकाशित करने जा रहे हैं उस पर तो विशेष ध्यान इसलिये भी रखना चाहिये कि एक बार प्रकाशित होने के बाद तो वो लोगों के सामने आ जाएगी और उसके बाद तो फिश्र आप उसमें कुछ भी नहीं कर सकते हैं । ख़ैर हमने अनूप जी की ग़ज़ल को सुधार लिया है और अब अभिनव की बारी है उसमें अनूप जी की ग़ज़ल के मुकाबले में काफी जियादा दोष हैं । पहले ग़ज़ल को देख लें और फिर उस पर दो दिनों तक काम करें । और अभिनव एक काम करों कोने में खड़े हो जाओ और सौ बार जोर जोर से बोलो '' माड़साब अब ग़लती नहीं करूंगा '' ।
उलझा हुआ हूँ वक्त के बोझिल सवाल में,
पत्थर निकल रहे हैं बहुत आज दाल में,
गिद्धों को उसने टीम का सरदार कर दिया,
लो फंस गई भोली सी चिरइया भी जाल में,
बाबर को नहीं देखा है मैंने कभी मगर,
मस्जिद ज़रूर देखी है इक ख़स्ता हाल में,
मुद्दत से कह रहे हैं जो मंदिर बनाएँगे,
उनसे सड़क न एक बनी पाँच साल में।
चलिये आज का सबक शुरू करते हैं आज हमको सप्तक की बात करनी है और फिर कुछ सवालों की भी बात करनी है जो कि छात्रों ने उठाए हैं ।
सप्तकल : सप्तकल का मतलब ही स्पष्ट है कि वे रुक्न जिनमें कि सात मात्राएं हो। वैसे तो इसमें काफी ज्यादा तरतीब हो सकती हैं पर उर्दू शायरी में उनमें से केवल नौ को ही प्रयोग किया जाता है ।
1:- फ़ाएलातुन 2122 लाललाला एक गुरू फिर एक लघु फिर दो दीर्घ
इसके भी दो प्रकार हो सकते हैं
अ: एक तो ये कि जैसा कि कहा गया है वैसा ही हो अर्थात पहले एक दीर्घ आ रहा हो फिर एक लघु आए और फिर दो दीर्घ आऐं । जैसे नाम आया को अगर देखें तो इसमें ना एक दीर्घ है फिर आ रहा है म जो कि एक लघु है और उसके बाद आ एक दीर्घ और फिर या एक और दीर्घ ।
ब: या फिर ऐसा भी हो सकता है कि सातों ही लघु हों और उनमें से पहली और दूसरी संयुक्त होकर दीर्घ बन जाए फिर तीसरी स्वतेत्र लघु हो और फिर चौथी और पांचवी तथा छठी और सातवी मिलकर दीर्घ बना रही हो। या फिर इतने प्रकार हो सकते हैं
तुम न हमसे 11,1,11,2
तुम न हमदम 11,1,11,11
तुम न जाकर 11,1,2,11
पास आकर 2,1,2,11
पास हमको 2,1,11,2
तुम न तोड़ो 11,1,2,2
जा न हमदम 2,1,11,11
अब इन सबमें वज़्न तो वही है फ़ाएलातुन या फिर लाललाला या फिर 2122 मगर विन्यास में परिवर्तन लेकिन ध्यान रखना है कि विन्यास से कुछ भी नहीं होता है जो होता है वो तो वज़्न से होता है और यहां पर वो वज़्न ही है जो इन सात और एक ऊपर के आठवें को एक ही रुकन में रख रहा हे ।
2 :- मुसतफ़एलुन 2212 लालालला दो गुरू फिर एक लघु और फिर एक दीर्घ
अब इसमें भी इतने विन्यास हो सकते हैं
जाना नहीं 2,2,1,2
जाना न तुम 2,2,1,11
अपना नहीं 11,2,1,2
बाहर नहीं 2,11,1,2
अब हम न तुम 11,11,1,11
ना हम न तुम 2,11,1,11
हम तुम कहीं 11,11,1,2
हमने सनम 11,2,1,11
अब ये भी वैसे तो आठ विन्यास हैं पर इन आठों में वज़न वहीं है मुसतफएलुन या लालालला या 2212 , केवल विन्यास को पकड़ने का ही तो खेल है और उसके बाद तो कुछ भी नहीं है ।
अब चलिये कुछ प्रश्नों पर बात करलें
Devi Nangraniनिराला अंदाज़ हैऔर सुगम भी. क्या ऐसा हो सकता है कि इस्किएक फाइल हो और हम जब चाहें वहां जाकर फिर फिर इसका लाभ उठा सकें. अभिनव कि बात से मैं बिल्कुल शामिल रे हूँ. क्या अपनी लिखी ग़ज़ल को दुरुस्त करने के लिए इस मंच कि मदद ली जा सकती है.
माड़साब :- क्यों नहीं अगर मन में दुविधा हो तो सेकेंड ओपिनियन तो हर जगह काम करती है ।
अजय कानोडिया सर जी
यहाँ पर मैं अपना एक सवाल फिर दोहरा रहा हूँ |
जैसा आपने पिछले अंक में दिया गया शेर का वजन निकला है
ति र हा थ स कुछ म र हक म ज रा न भ ला ह हु आ न बु रा ह हु आ
112 112 112 112 112 112 112 112
फएलुन फएलुन फएलुन फएलुन फएलुन फएलुन फएलुन फएलुन
यहाँ पर आपने यह कैसे तय किया कि इस वजन में आप ३ मात्राओ को मिला कर रुकान निकालेंगे ?
४ मात्राए क्यों नहीं ? इस तरह
११२१ १२११ २११२ ११२१ १२११ २११२
ऐसा करने से वजन एकदम बदल जाएगा |
माड़साब :- ग़ज़ल में तय बहरें हैं और उन पर ही काम होता है कुल मिलाकर सारा परिदृष्य उनके ही अासपास घूमता है सो हमें वज़्न को बहर के हिसाब से ही निकालना होात है वो जो किसी बहर पर आता हो । अभी आने वाली कक्षाओं में जब बहर आएगी तो आप समझ जाऐं गें ।
रिपुदमन पचौरी
सुबीर जी,
यह बतलाएं कि ...
खवाब को साकार देखो = यह वज़न के हिसाब से सही क्यों है? ( क्या इस में, ’खव’ के लिए,जल्दी पढ़ने वाला फ़ामूला लगाया गया है ?)
आइना = के स्थान पर आरसी शब्द का प्रयोग किया जा सकता है ?
पोस्ट अभी पढ़ी है, सो .. कुछ समय दें आज की गज़ल का बहर जल्दी ही लिख कर जमा कर दूंगा।
मंगल कामनाएं
माड़साब :- पुरानी कक्षाओं के नोट्स लें समझ आ जाएगा ।
नीरज गोस्वामी गुरूजी
आप की पुरानी पोस्ट देख रहा था लेकिन उनमें से कौनसी सीखने के लिहाज़ से पढी जायें ये बता दीजिये. बहुत उपकार होगा. यूँ तो खोजने में ही बहुत वक्त जाएगा. आप मुझे तारीख या पोस्ट का शीर्षक बता दीजिये.
नीरज
माड़साब :- आप वे सभी देखें जिसमें वज़्न की बात कही गई है ।
अभिनव आदरणीय गुरुदेव पूरे दो घंटे लगे इस क्लास को पूरा करने में.
आपका बहुत धन्यवाद, मुझे नही लगता है की बड़े शायरों के उस्ताद भी उनको कभी इतने विस्तार से ग़ज़ल की बारीकियों को समझाते होंगे. अब इसके बाद भी यदि हम ग़लत ग़ज़ल लिखें तो फिर सारा दोष हमारी अल्पज्ञता का ही होगा.
माड़साब :- धन्यवाद आप सभीका ।
भाग-१: मुखड़े वाली ग़ज़ल की बहर.
जवाब देंहटाएंबहर: २२१२ - १२११ - २२१२ - १२
मुसतफ़एलुन - मफाएलु - मुसतफ़एलुन - फऊ
उलझा हुआ - हूँ वक्त के - बोझिल सवा - ल में,
पत्थर निकल - रहे हैं ब - हुत आज दा - ल में,
गिद्धों को उस - ने टीम का - सरदार कर - दिया,
लो फंस गई - भोली सी चि - रइया भी जा - ल में,
बाबर को न - हीं देखा है - मैंने कभी - मगर,
मस्जिद ज़रू - र देखी है - इक ख़स्ता हा - ल में,
मुद्दत से कह - रहे हैं जो - मंदिर बना - एंगे,
उनसे सड़क - न एक ब - नी पाँच सा - ल में।
भाग-२: मुखड़े की ग़ज़ल के दोष:
दोष: मुझे विश्वास है की अभी और भी कुछ दोष होंगे जो की मैं देख नही पा रहा हूँ, पर मैंने प्रयास किया है की जिन घल्तियों को पकड़ सकूं उनको आज के गृहकार्य के रूप में जमा करूं.
१. दूसरा शेर - मिसरा-ऐ-सानी:
लो फंस गई - भोली सी चि - रइया भी जा - ल में,
इस मिसरे में 'भो' को लघु माना जा रहा है, जो की शायद ग़लत है. मैंने इसकी जगह अन्य किसी शब्द को रखने पर विचार किया तथा मन में कुछ शब्द भी आए जैसे, नादान, मासूम,अंजान पर सभी का पहला शब्द दीर्घ ही है.
२. तीसरा शेर - मिसरा-ऐ-ऊला:
बाबर को न - हीं देखा है - मैंने कभी - मगर,
२.१ इस मिसरे में 'न' को दीर्घा माना जा रहा है जो की ग़लत है.
२.२ 'हीं' दीर्घ है पर इसको लघु की जगह प्रयोग किया जा रहा है.
२.३ इस पंक्ति को यदि ऐसे लिखें तो शायद इस दोष से मुक्ति मिल जाए,
बाबर को मैं - ने तो कभी - देखा नहीं - मगर,
३. तीसरा शेर - मिसरा-ऐ-सानी:
मस्जिद ज़रू - र देखी है - इक ख़स्ता हा - ल में,
'खस्ता' में 'ता' को लघु मना जा रहा है, यह भी शायद ग़लत है.
गुरू जी कल तबीयत खराब हो गई थी तो कक्षा में आ नही पाए थे, आज आये तो पता चला कि तालियाँ बजीं थी कल हमारे लिये...! आहा..क्या आनंद आ रहा है..! और रही बात शेर कि तो गुरू जी तो पहले ही नियम बता चुके थे कि जो भी शेर निकलेंगे अनूप जी के नाम कर दिये जाएंगे, सो इजाज़त की तो ज़रूरत ही नही है। फिर भी नाचीज़ को सम्मान देने का शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंएक बार फ़िर से गज़ल को सुधारने का शुक्रिया । इस गज़ल पर चर्चा खत्म हो जानी चाहिये लेकिन आज मुझे वो शेर मिले हैं जो मैं कई दिन से ढूँढ रहा था । ये अशआर मेरे मित्र और बड़े भाई घनश्याम गुप्ता जी के हैं ,जो उन्होनें मेरी गज़ल पढने के बाद कुछ महिने पहले लिखे थे । कुछ शेर मुझे बहुत पसन्द हैं और सच कहूँ तो मुझे मेरे अपने अशआरों से ज़्यादा पसन्द हैं ।
जवाब देंहटाएंसुबीर जी ! अगर आप को समय मिले और इन पर टिप्पणी कर सके तो मैं घनश्याम जी तक पहुँचा दूंगा ।
घुन लगा है चौखटों में
रेत सी दीवार देखो
हम फकीरों से न कहना
और कोई द्वार देखो
नेत्र पहले मूंद लो, फिर
भीतरी संसार देखो
श्वास के आवागमन में
मृत्यु के आसार देखो
नाव है मंझधार अब
इस पार,या उस पार,देखो (य़हां गड़बड़ लगती है)
सभ्यता के पालने में
क्रूर नर-संहार देखो
इन्द्रधनुषों से हुई है
रक्त की बौछार देखो
क्या ठिकाना है तुम्हारा
छोड़ कर घर-बार देखो
वीर गति को प्राप्त भी हैं
प्रेम के बीमार देखो
रूठ मत जाना प्रिये, मैं
कर रहा मनुहार, देखो
तल्खियों को रख किनारे
शुद्ध कोमल प्यार देखो
कंगनों से क्यों हुई है
यह मधुर झंकार देखो
क्यों जताता ही नहीं वह
पूर्व सा अधिकार, देखो
रेशमी डोरी गले का
बन न जाये हार देखो
यह ग़ज़ल छोटी बहर की
बन गई है यार देखो
बारह मन की धोबन कैसे
करती है श्रंगार, देखो (य़हां गड़बड़ लगती है)
गुरु जी चूँकि हम सप्ताहांत में हम कक्षा में आने में असमर्थ होते हैँ अतः गृहकार्य करने की कोशिश कर रहे हैं...अब गृहकार्य तो आपने अबकी भी बहुत कठिन दिया है...कठिन इसलिये कि पहली बात तो अभिनव जी जैसे वरिष्ठ एवं साजीदा विद्यार्थी के शेरों की तकीतई करना अपने आप में दुःस्साहस का काम दूसरे पहली नज़र में देखौ तो गज़ल का हर शेर बड़ी सटीक बात कह रहा है..लेकिन अब गुरू जी का आदेश है तो पोस्टमार्टम करना ही है.....
जवाब देंहटाएंतो मुझे जो लगा कि पहली बात तो गुरू जी द्वारा आज ही पढ़ाए गए सप्तकल के बड़े अच्छे उदाहरण इस गज़ल में है, लेकिन अगर हम इसे २२१२ १२११ के मीटर पर देखें तो उलझा हुआ तक तो ठीक है लेकिन हूँ किसी भी तरह १ मात्रा मे नही आता है क्योंकि अगर हम इसे गिरा के भी पढ़ें तो भी शायद मुमकिन नही है, वज़ह कि इसमें बड़े ऊ की मात्रा के साथ साथ चंद्रबिंदु भी है।
अब मैं अगर अपने हिसाब से देखती हूँ तो अधिकतर मिसरा उला
लालालला लालालला लाला लला लला यानि २२१२ २२१२ २२ १२ १२
तथा मिसरा सानी
लालालला ललाल लला लाल लाल ला यानी २२१२ १२१ १२ २१ २१
के मीटर पर है, देखिये
ला ला ल ला, ला ला ल ला, ला ला ल ला ल ला
उल झा हु आ हूँ वक् त के, बो झिल स वा ल में,
ला ला ल ला ल ला ल ल ला ला ल ला ल ला
पत् थ र निक, ल रहे है ब हुत आ ज दा ल में
ला ला ल ला, ला ला ल ला, ला ला ल ला ल ला
गिद् धों को उस, ने टी म का, सर दा र, कर दि या
यहाँ मिसरा सानी थोड़ा ग़लत लग रहा है,
और अंतिम मिसरा
ला ला ल ला ल ला ल ल, ला ला ल ला ल ला
उन से स ड़क, न ए क ब, नी पाँ च, सा ल में
इसका मिसरा उला थोड़ा ग़लत लग रहा है।
अब एख शेर को मैने पूरा सुधारने की कोशिश की है, (उस मीटर पर जिस पर मुझे गज़ल समझ में आ रही है) वो इस तरह है
ला ला ल ला, ला ला ल ला, ला ला ल ला ल ला
मै ने न ही, दे खा क भी, बा बर को, तो म गर,
ला ला ल ला ल ला ल ल, ला ला ल ला ल ला
मस् जिद ज़ रू, र दे खि है, ढाँ चे के, हा ल में
अब सोमवार कौ डंडे खाने को तैयार आपकी दो चोटी वाली शिष्या
कंचन