बुधवार, 19 दिसंबर 2007

कभी विकल हो जाता हूं जब रातों को तन्‍हाई से, अपना मन बहलाता हूं तब यादों की श‍हनाई से, जब भी मुझे अकेला पाया तेरी सुधियां गमक उठीं, शयन कक्ष हो गया सुगंधित यादों की पुरवाई से

कभी कभ जब कक्षा में विद्यार्थी नहीं आते हैं तो फिर माड़साब भी नाराज़ हो जाते हैं और नाराज़ होकर फिर वे अगले दिन कक्षा नहीं लेते हैं कुछ ऐसा ही हुआ था कल कि माड़साब ने देखा कि सोमवार की कक्षा किसी ने अटेंड नहीं की एक अभिनव को छोड़कर तो माड़साब ने मंगलवार की कक्षा खुद ही गोल कर दी । अभिनव की एक ग़ज़ल कक्षा में आ चुकी है और उस पर काम करना बाकी है उधर अनूप जी की ग़ज़ल तो हो चुकी है पर उस पर कुछ और शे'र मिले हैं जो कि अनूप जी ने ही भेजे हैं उन पर भी एक दिन चर्चा होनी है । आप लोगों को फिर से याद दिलाया ज रहा है कि नववर्ष के उपलक्ष में एक मुशायरा आयोजित किया गया है जो कि सकारात्‍मक सोच से भरी हुई ग़ज़लों का होगा आप सब उसके लिये अभी से ग़ज़लें दे दें क्‍योंकि देर से आई हुई ग़ज़लों पर इसलिये काम नहीं हो पाएगा क्‍योंकि माड़साब की ऐसी इच्‍छा है कि इस बार ग़ज़लों पर काम करके उनको ध्‍वनि के रूप में ब्‍लाग पर डाला जाएग और कुछ चित्र भी उन पर बनवाएग जाऐं । आज जबलपुर के शायर आचार्य भगवत दुबे की एक सुंदर सी हिंदी ग़ज़ल का मतला और एक शे'र लगाया है । इसका एक और भी शे'र है जो कि मुझे बहुत पंसद है वो कुछ यूं हैं तुम आओ या न आओ पर यादों को आने देना, कितना सुख मिलता है मुझको यादों की पहुनाई से ।

चलिये बातें तो बहुत हो चुकी हैं आज कुछ काम की भी बात भी हो जाए क्‍योंकि वो ही खास है । इन दिनों में अपने गुरू श्रद्धेय नारायण कासट के काव्‍य संग्रह पर काम कर रहा हूं शिवना प्रकाशन से वो संग्रह मैं प्रकाशित करने  जा रहा हूं । श्री कासट ने कम लिखा है पर हम जैसों को लिखने के लिये खूब प्रेरित किया है । भवानी दादा परसाई जी नीरज जी बालकवि बैरागी जी कैफ भोपाली जैसे लोगों के साथ काम किया है उन्‍होंने । आजकल वे रीढ़ की हड्डी की समस्‍या के कारण बिस्‍तर पर हैं और चल फिर नहीं सकते हैं । अपने प्रकाशन से उनकी पुस्‍तक निकाल कर मैं कृतार्थ महसूस कर रहा हूं अपने को । ये शिवना की अगली पुस्‍तक है जिसका नाम रखा गया है टुकुर-टुकुर चांदनी

सप्‍तकल

हमने इसमें चार प्रकार देख लिये थे  और अब हम पांचवे की ओर चलते हैं ।

5:- मफ़ाएलतुन 12112 एक लघु फिर एक दीर्घ फिर दो स्‍वतंत्र लघु और अंत में एक दीर्घ ( उच्‍चारण में मफाईलतुन जैसी ध्‍वनि होगी पर भिन्‍नता ये है कि उसमें 1222 है मतलब तीसरी दीर्घ है और यहां पर 12112 है जो तीसरी और चौथी लघु हैं वे संयुक्‍त न होकर अलग अलग हैं )

उदाहरण देखें

1 न जान मगर 1,2,1,1,11

2 न जान कहीं 1,2,1,1,2

3 न तुम न हमें 1,11,1,1,2

4 न तुम न डगर 1,11,1,1,11

अब सबसे पहले तो ये देखें कि हालंकि पहली दीर्घ के बाद दो लघु मात्राएं आ रहीं हैं और फिर उसके बाद में फिर से दो लघु और फिर से दो लघु मगर बीच की दो लघु को यहां पर कामा लगाकर अलग कर दिया गया है क्‍योंकि ये एक दूसरे को समर्थन देकर गठजोड़ की सरकार नहीं बना रहे हैं । न तुम न डगर  को देखें इसमें  न  लघु है फिर आया  तुम  ये दोनों लघु मिलकर बना रहे हैं एक दीर्घ और फिर आया एक और लघु   जो कि स्‍वतंत्र है हालंकि उसके बाद एक लघु और है   मगर वो वाम दलों की तरह बाहर से भी समर्थन नहीं दे रहा है । और इसीलिये  न  और   ये दोनों मिलकर एक दीर्घ नहीं बन पा रहे हैं । फिर आ रहा है डगर  का गर  जो कि दो लघु तो हैं पर वे एक दूसरे को समर्थन देकर गठजोड़ की सरकार बना रहे हैं और इसलिये उनको एक दीर्घ कहा जा रहा है ।

6:- मफ़ऊलातु 2221 प्रारंभ की तीन मात्राएं दीर्घ और फिर एक लघु मात्रा

उदाहरण देखें

1 हम तुम आज 11,11,2,1

2 तोड़ो आज 2,2,2,1

3 हम तुम कब न 11,11,11,1

4 तोड़ो दिल न 2,2,11,1

5 हम हैं आज 11,2,2,1

6 हैं हम आज 2,11,2,1

7 जो हम तुम न 2,11,11,1

8 हम हैं तुम न 11,2,11,1

मतलब कुलमिलाकर बात वही है कि कैसे भी करके प्रारंभ की जो तीन मात्राएं हैं उनको दीर्घ होना है और आखिर की एक लघु हो ।  हम तुम कब कसम  को अगर देखें तो हम 11, तुम 11, कब 11,  और फिर जो कसम शब्‍द आ रहा है उसका भी   जो है वो इस वाले रुक्‍न में गिना जाएगा और सम  जो है वो अगले रुक्‍न में चला जाएगा । मतलब ये कि रुक्‍न बनाते समय शब्‍दों को तोड़ा भी जा सकता है आधा शब्‍द एक रुक्‍न में और आधा दूसरे में होगा । जैसे  हम तुम कब क़सम खाकर चले थे ये बताओ  में

2221, हम तुम कब क

2221 सम खाकर च

2221 ले थे ये ब

22 ताओ 

चलिये आज के लिये इतना ही बहुत हैं ।

एक बात जो मैं गंभीरता से सोच रहा हूं वो ये कि अब बहरों को लेकर जो काम होना है वो मैं ब्‍लाग पर न करके उन छात्रों और छात्राओं के साथ ई मेल के द्वारा करूं जो अभी तक की क्‍लासों में गंभीर रहे हैं तथा जिनमें सीखने की ललक है । मैं नहीं चाहता कि जिन लोगों ने अभी तक मेहनत की हे उनको अलग से न देखा जाए । तो मेरा विचार ये है कि बहरों को ब्‍लाग पर प्राकशित न करके उनको विद्यार्थियों के ईमेल में सीधे भेजा जाऐ उन विघार्थियों के जो कि अभी तक गंभीरता से पढ़ाई कर रहे हैं । मैा इस विषय में गंभीर हूं और अभी तक की कक्षाओं का विवरण तलाश रहा हूं कि  कितने विद्यार्थियों ने गंभीरता से क्‍लासें अटेंड की हैं । आप भी बताएं कि क्‍या करना चाहिये ।

8 टिप्‍पणियां:

  1. अरकान:
    आप जो भी ज़रिया सोचें पर यह बात आप को बताना चाहता हूँ कि मैं बहुत गंभीर हूँ।
    मैंने आपकी क्लास देर से जाइन की थी सो अभी मुख्य धारा में धीरे धीरे आ रहा हूँ। आप का ब्लौग निरंतर पढ़ रहा हूँ। पिछली दो क्लासों से आगे का होम-वर्क नहीं किया क्योंकि उस पर ध्यान देते देते जो चल रहा है उस से पिछड़ रहा था। मैं जानता हूँ कि यह कोई एक्स-क्यूज़ तो नहीं है पिछला तो करना ही पड़ेगा ( पर मैने आपके पिछले सारे अध्याय पढ़े हैं )।

    आगे के व्याख्यान भी सुनना चाहता हूँ। गंभीर हूँ।

    सादर
    रिपुदमन पचौरी

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  2. सर जी ,

    हाजिरी लगा लीजिये
    पिछले कुछ दिनों से काम में व्यस्त होने के कारण हाजिरी नहीं लगा पाया
    इसके लिए क्षमा चाहता हूँ

    दरअसल कुछ दिनों के लिए छुट्टी ली है और शहर से बाहर जा रहें है,
    तो शायद आगे की कुछ क्लास्सेस भी मिस हो, लेकिन जाने से पहले नए वर्ष का होमवर्क
    दर्ज कर जाऊंगा

    आभार
    अजय

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  3. मुखडे़ की गज़ल के संभावित बहर :-
    _________________________________

    १ २ २ १-- २ २ २ २ ---- २ २२ २----२ २ २ २
    कभी विकल-- हो जाता हूं----जब रातों को----तन्‍हा ई से,
    १ १ २ २-- २ २ २ २----२ २२ २----२ २ २ २
    अप ना मन-- बहलाता हूं----तब यादों की----श‍ह ना ई से,
    १ १ २ १---२ १२ २----२ २ २२---- २ २ २ २ २
    जब भी मु--झे अकेला----पाया तेरी----सुधि यां गम कउ ठीं,
    १ १ २ १--२ १२ २---- २ २२ २ ---- २ २ २ २
    शय नक क्ष--हो गया सुगं----धित यादों की----पुर वा ई से

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  4. क्या ग़ज़ल का व्याकरण होता है? बिना व्याकरण के ग़ज़ल नही लिखी जाती। मै आपके ब्लॉग का न मेम्बर हूँ। बताएं।

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