सोमवार, 24 सितंबर 2007

लोग करते ही रहे मिसयूज़ हम तुम क्‍या करें, जिन्‍दगी ने कर दिया रिफ्यूज हम तुम क्‍या करें, आज फिर जज्‍़बात में बहते गए दरिया बने, जिस्‍म भी कहते रहे

चीखने पर थीं कहां पाबंदियां पर चुप रहे
यूं हुकूमत ने किया है यूज़ हम तुम क्‍या करें
एक बादल की तरह फैली खुशी थी सामने
आते आते हो गई रिड्यूज हम तुम क्‍या करें
कितनी आसानी से पढ़ लेता है वो अख़बार को
वो नहीं रखता ज़हन में न्‍यूज़ हम तुम्‍ा क्‍या करें

दोस्‍तों कई बार बात चलती है टिप्‍पणियों की और वही बात आती है कि हम टिप्‍पणियां देने में इतने कंजूस क्‍यों हें । दरअस्‍ल में ये हमारी आदत है । मैं भी पहले सोचता था कि जब कोई मेरी बात सुन ही नहीं रहा है तो मैं क्‍यों चिल्‍लाऊं दरअस्‍ल में मैं सोचता था कि मेरा लिखा व्‍यर्थ ही जा रहा है पर जब मैंने साइट मीटर लगाया तो देखा कि लोग आ रहे हैं मेरे ब्‍लाग पर और अच्‍छी संख्‍या में आ रहे हैं ठीक है टिप्‍पणियां नहीं छोड्रकर जा रहे पर आ तो रहे हैं ना हो सकता है कि मेरा लिखना अभी उतना प्रभावी नहीं हो रहा हो कि उस पर कोई टिप्‍पणी की जाए ।
खैर चलिये काफिया समापन आज करना है ताकि फिर हम आगे की दिशा में बढ़ सकें
कुछ और मात्राएं जो रह गईं हैं वो ये हैं ऊ, ऊं, ए, एं, ओ, ओं,
1: अहमद फ़राज़ साहब का शे'र है
क्‍या ऐसे कम सुख़न से कोई गुफ़्तगू करे
जो मुस्‍तकिल सूकूत से दिल को लहू करे
अब तो ये आरज़ू है कि वो ज़ख्‍़म खाइये
ता जि़न्‍दगी ये दिल न कोई आरज़ू करे
अब यहां पर ऊ को ही काफिया बनाया गया है और उसके अनुसार ही शे'र निकाले जा रहे हें ।
2 : लेकिन ये भी हो सकता है कि ऊ को अं की मात्रा के साथ संयुक्‍त कर दिया गया हो उस हालत में आपको काफिये वैसे ही ढूंढने होंगें ।
हालंकि इस तरह के उदाहरण कम हैं और अगर हैं भी तो उनमें ऊं खुद ही मौजूद है
कितने पिये हैं दर्द के आंसू बताऊं क्‍या
ये दास्‍ताने ग़म भी किसी को सुनाऊं क्‍या
न्‍यू जर्सी अमेरिका में रहने वालीं बी नागरानी देवी की ये ग़ज़ल है
दीवानगी में कट गए मौसम बहार के
अब पतझरों के खौफ से दामन बचाऊं क्‍या
अब यहां पर ऊ तो है पर अं के साथ है इसलिये आपको उसको निभाना पडे़गा ही ।
3 : जब ऊ किसी एक ही अक्षर के साथ मतले में आ रहा हो
जैसे
ऊपर का मतला ही अगर ऐसा होता
ख़ुद को गवां के कौन तेरी जुस्‍तजू करे
ता-जि़न्‍दगी ये दिल न कोई आरज़ू करे
अब इसमें आप फंस गए हैं क्‍योंकि आपने ऊ को ज़ के साथ संयुक्‍त कर दिया है अब आपको काफिये ऐसे ही लेने होंगें जिनमें ज़ू हो या जू हो । मसलन आरज़ू, जुस्‍तज़ू, वुज़ू आदि
4 : दोहराव का मामला
नागरानी जी की गज़ल़ में जो बात है वो ये भी है कि वहां पर काफिया दरअस्‍ल में 'आउं' है य दोहराव का मामला है । आपने मतले में ऊं के पहले एक ख़ास अक्षर का दोहराव कर लिया है जो आ की मात्रा अब आप को उसको निभाना ही है ।
और जो कहीं आपने और ज्‍यादा कुछ कठिन कर लिया तो वो य होगा कि आपने एक अक्षर की भी बंदिश बांध ली
जैस्‍ो
कितने पिए हैं दर्द के आंसू बताऊं क्‍या
ये दास्‍ताने ग़म से किसीको सताऊं क्‍या
अब आप बुरी तरह से फंस गए हें क्‍योंकि आपने 'ताऊं' की बहुत मुश्किल बंदशि ले ली है जिसको निभाना बहुत मुश्किल हो जाएगा ।
आज बस इतना ही क्‍योंकि मुझे कहीं जाना है
अभिनव के मतले
दिल में हौले से समाने का मज़ा क्या जाने,प्यार का फर्ज़ निभाने का मज़ा क्या जाने,
को अनूप जी ने कुछ बेहतर तो कर दिया है
दिल में हौले से समाने का मज़ा क्या जाने,आंख चुपके से चुराने का मज़ा क्या जाने,
पर अभी भी भर्ती वाली बात गई नहीं । कुछ और किया जाए क्‍योंकि मिसरा उला बहुत अच्‍छा है
दिल में हौले से समाने का मज़ा क्‍या जाने

5 टिप्‍पणियां:

  1. व्यक्तिगत कारणों से दो दिन बाद पहुँचा. मुआफी चाहता हूँ. पुराना और आज का होमवर्क एक साथ कर पुनः हाजिर होता हूँ.

    टिप्पणी की चिन्ता न करें. आपका साधुवादी यज्ञ है जनहित में. अलख जलाये रखें. बहुत पुण्य का कार्य कर रहे हैं आप.

    शुभकामनायें.

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  2. मास्साब

    यह पुराने वाले होमवर्क को देखियेगा. कुछ बात जंचती दिखती है क्या:

    दिल में हौले से समाने का मज़ा क्‍या जाने
    जाग के रातों को गंवाने का मज़ा क्या जाने.

    या

    दिल में हौले से समाने का मज़ा क्‍या जाने
    ख्वाब से रातों को सजाने का मज़ा क्या जाने.


    कोशिश मात्र है. :)

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  3. सुबीर जी:

    आप ने ठीक कहा ,
    दिल में हौले से समाने का मज़ा क्या जाने,
    आंख चुपके से चुराने का मज़ा क्या जाने,
    दूसरी पंक्ति अभी भी भरती की लग रही है ।
    एक और प्रयास देखिये :
    दिल में हौले से समाने का मज़ा क्या जाने,
    आंख में खवाब सजाने का मज़ा क्या जाने ।
    या
    खवाब आँखो में सजाने का मज़ा क्या जाने ।

    बात जम नहीं रही , फ़िर भी .....

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  4. आप एक संजीदा...उर्दूदां...सुखनवर...गजलगो जान पड़ते हैं....फुरसत से पढूंगा......

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