बुधवार, 12 सितंबर 2007

जिंदगी में लय का ही तो खेल है जिंदगी और गज़ल़ में अगर लय नहीं तो कुछ भी नहीं है

राज गोपाल जी की अच्‍छी ग़ज़ल आपने दी है अभिनवजी हिंदी के शब्‍दों का इस्‍तेमाल करके भी उतनी ही अच्‍छी ग़ज़ल कही जा सकती है ये हमको इस ग़ज़ल से पता चलता है । यही बात मैं अपने उन दोस्‍तों को भी बताता हूं जो फिजूल में ही फारसी के टोले टोले शब्‍द अपनी शायरी में केवल इसलिये डालते हैं ताकि उनको आलिम फाजिल समझा जाए । अरे जिसके लिये लिख रहे हो उसको तो समझ में आए और चलो उसको नहीं अपने आपको तो समझ में आए । राज गोपाल जी की ग़ज़ल का वज्‍़न है
फाएलातुन फाएलातुन फाएलातुन फाएलुन
इसे सुरों में अगर पकड़ना हो तो कुछ यूं इसके सुर ताल होंगें
लाललाला-लाललाला-लाललाला-लालला
हम जब गातें हैं तो आलाप लगाते है ना बस उसी का ही खेल है । ग़ज़ल केवल ध्‍वनियों पर ही चलती हैं । ध्‍वनियां जो कानों में पड़ें और लय उत्‍पन्‍न करें । जिंदगी में लय का ही तो खेल है जिंदगी और गज़ल़ में अगर लय नहीं तो कुछ भी नहीं है ।
ला(दीर्घ)ल(लघु)ला(दीर्घ)ला(दीर्घ)
फा(दीर्घ)ए(लघु)ला(दीर्घ)तुन(दीर्घ
)
अब इसका उदाहरण देखें
ला(तुम), ल (न), ला (हीं), ला (जब),

तुम नहीं जब-लाललाला-फाएलातुन
आपकी दी हुई ग़ज़ल में है
कुछ न कुछ तो-फाएलातुन-लाललाला
उसके मेरे-फाएलातुन-लाललाला,
दरमियां बा-फाएलातुन-लाललाला
की रहा-फाएलुन-लालला

रियाज़ कीजिये ध्‍वनियों का गाइये
कुछ न कुछ तो-
फाएलातुन-
लाललाला

तीनों को एक के बाद एक । आपको एक साम्‍यता मिलेगी और ये ही है रिदम लय जो है ग़ज़ल की जान ।

6 टिप्‍पणियां:

  1. यस सर,
    ये मुन्ना भाई टाईप कुछ शब्द जोड़ने का प्रयास है। अगर मुन्ना भाई आपकी क्लास में हाजरी लगाएँ तो दो दिन बाद ऐसी गज़ल अवश्य लिखेंगे।

    फाएलातुन फाएलातुन फाएलातुन फाएलुन,
    मैंने तेरे को सुना है अब तू मेरे को भी सुन,

    नौकरी करती हुई महिला नें खुश होकर कहा,
    चार स्वेटर बुनती हूँ मैं तीन स्वेटर तू भी बुन,

    बोले तो अब अपुन भी लिक्खेगा बुमाबुम ग़जल,
    तू समझ के बोल वा वा क्या रे मामू सिर न धुन।

    एक प्रश्न है, जैसे यदि दूसरे शेर को देखें तो इसमें, "होकर कहा," और "तू भी बुन," में भी क्या कुछ मात्राओं को मिलाने की कोशिश होनी चाहिए। और क्या मात्रा जोड़ने का जो तरीका नीचे दिया है २ - दीर्घ और १ - लघु, क्या ये सही है। उस हिसाब से तो ये शेर बहर के बिलकुल बाहर हो गया। आपका क्या विचार है।

    नौकरी करती हुई महिला नें खुश होकर कहा,
    २१२ ११२ १२ ११२ २ ११ २११ १२
    चार स्वेटर बुनती हूँ मैं तीन स्वेटर तू भी बुन,
    २१ १२११ ११२ २ २ २१ १२११ २ २ ११

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  2. मास्साब,

    नमस्कार!

    कल की डाँट के बाद बहुत रात तक मेहनत करके ’आ’ के काफिये वाला होमवर्क करके यह कॉपी जमा कर रहा हूँ. जाँच दिजिये और बताईये. अब से अक्सर मेहनत करुँगा ताकि मास्साब नाराज न हों:


    शब्द मोती से पिरोकर, गीत गढ़ता रह गया.
    पी मिलन की आस में, लेकिन बिछुड़ता रह गया.

    शेर उसने जो लिखे, दिल को थामें हाथ में
    काम सारे छोड़ कर, मैं उनको पढ़ता रह गया.

    धर्म का ले नाम चलती है यहाँ पर जो हवा
    पेड़ उसमें एक मैं, जड़ से उखड़ता रह गया.

    फैल करके सो सकूँ मैं, वो जगह हासिल नहीं
    ठंड का बस नाम लेकर, मैं सिकुड़ता रह गया.

    घूमता फिरता फिरा पर कुछ हुआ हासिल नहीं
    प्यार पाने को समीरा, बस तड़पता रह गया.

    --समीर लाल ’समीर’

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  3. सुबीर जी:
    बहुत आनन्द आ रहा है सीखने में । मेरे शेरो को सुधारने के लिये धन्यवाद ।
    अब किसी से सुना है कि 'मूर्खतापूर्ण प्रश्न नही होते , हाँ मूर्खतापूर्ण उत्तर ज़रूर हो सकते हैं । अपनें कुछ प्रश्न रख रहा हूँ, अज्ञानता हो सकती है लेकिन जिञासा है समझने की ।
    १. जब लघु और दीर्घ का ही अन्तर करना है तो दीर्घ के लिये इतने सारे 'फ़ा', 'ला', 'तुन','लुन' आदि का और लघु के लिये 'ए' या 'इ' का प्रयोग क्यों ? आप का ला ल ला ला वाला ही अच्छा और सरल है ।
    २. क्या सभी दीर्घ और सभी लघु एक समान होते हैं या उन में भी अन्तर होता है ?
    ३. जब दो लघु एक साथ हों तो क्या वह हमेशा 'दीर्घ' बन जाते हैं ?
    ४. आधे अक्षर का वज़्न कैसे गिना जायेगा जैसे बस्ती , सस्ता, आदि में ?
    ५. राजगोपाल जी की गज़ल में मुझे मात्रा गिनते समय कुछ गलतियां लग रही हैं , ज़रूर मेरी ही अज्ञानता है गिनने में लेकिन आप पुष्टी करें । जैसे
    गाँव भर की धूप को हंस कर उठा लेता था वो,
    इस में २१२२-२१२२-२१२२-२१२ कैसे हुए ?
    गाँव भर की- धूप को हंस- कर उठा ले-ता था वो,
    २१२२-२१२२-२१२२-२२२ हुए ना ?

    अभी बस इतने ही सवाल
    सादर

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  4. मै बहुत दिन से परेशान थी गज़ल कैसे सीखी जाये...आज आपके चिट्ठे को पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ...एक प्रयास मैने भी किया था मगर गज़ल के ज्ञाता*****ने उसे गज़ल न बताकर मुझसे कहा कि तुम भजन लिखा करो तभी से मन में यह निश्चय है कि जब तक लिखना आ नही जाता ब्लोग पर प्रकाशित नही करूंगी....

    शानू

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  5. bahut late dakhila hua he aapki kaksha me,jaise jaise waqt mil raha he padte jaa raha hu jald hi barabar me aa jauga me sabhi vidhayrtiyo ke, abhi to 2007 September tak hi pahucha hu. kaafiya aur radif ko to me bahut kuch samjh chuka hu aapke is article se but bah,rukan,laghu and dhirgh kuch samjh nahi aaya abhi to, aage padta hu kuch doubt hoga to aapse puchuga.

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