मंगलवार, 4 सितंबर 2007

नज़र फेर कर चल रही हैं हवाएं सुना है के ख़ुश्बू से रिश्ता हुआ है

हिंदी और उर्दू ये केवल सोचने वालों की बात है वरना तो जो भी साहित्य की रचना करता है वो रचना करते समय कतई नहीं सोचता कि वो उर्दू में लिख रहा है या कि हिंदी में उसके लिये तो रचना ही महत्वपूर्ण होती है । देश के वरिष्ठ शायर श्री इशरत क़ादरी ने उक्त उद्गार ब्ल्यू बर्ड स्कूल तथा उर्दू अकादमी द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित मुशायरे के अध्यक्ष के रूप में बोलते हूए व्यक्त किये । कार्यक्रम में उर्दू अकादमी की सचिव नुसरत मेहदी मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थीं ।
सर्वप्रथम अतिथियों ने मां सरस्वती का पूजन कर शुभारंभ्ा किया उसके बाद नन्ही गायिका शिरोनी पालीवाल ने सरस्वती वंदना तथा ऐ मेरे वतन के लोगों प्रस्तुत कर लोगों को भाव विभोर कर दिया । ब्ल्यू बर्ड स्कूल की ओर से चेयरमेन वसंत दासवानी, वंदना दासवानी तथा कार्यक्रम के सूत्रधार डॉ कैलाश गुरू स्वामी ने अतिथियों को बैज लगाकर तथा पुष्माला से स्वागत किया । उसके पश्चात सीहोर की साहित्यिक संस्था अंजुमन सूफियाए उर्दू अदब की ओर से नुसरत मेहदी को उनकी साहित्यिक उपलब्धियों के लिये सम्मानित किया गया । संस्था के अध्यक्ष श्री अफ़ज़ाल पठान, हनीफ़ भाई तथा सदस्यों ने शाल, श्रीफ़ल, स्मृति चिन्ह तथा सम्मान पत्र भेंट कर सुश्री मेहदी को सम्मानित किया । संस्था ने सभी पधारे हुए अतिथि शायरों का पुष्पहार पहना कर स्वागत किया । मुशायरे का संचालन सीहोर के ही युवा शायर तथा कवि पंकज सुबीर ने किया तथा मुशायरे में सर्व श्री इशरत क़ादरी, नुसरत मेहदी, डॉ कैलाश गुरू स्वामी, उर्दू अकादमी के संयुक्त सचिव इक़बाल मसूद, नसीर परवाज़, रहबर जौनपुरी, अली अब्बास उम्मीद, फ़ारुख़ अंजुम, राना ज़ैबा, फ़रमान जियाई, ताज उद्दीन ताज, बद्र वास्ती, जलाल मैकश, अरमान अकबराबादी, आरिफ़ अली आरिफ़, पंकज सुबीर तथा रशीद सेदा ने ग़ज़लों की प्रस्तुतियों से श्रोताओं का मंत्रमुग्ध कर दिया । उर्दू अकादमी की सचिव नुसरत मेहदी द्वारा हिंदी के सम्मान में पढ़े गए छंद '' निज गरिमा अभिमान है हिंदी, देश की आन बान है हिंदी, पश्चिमी सभ्यता की आंधी में इक सुरक्षित मकान है हिंदी, और तारीफ़ क्या करूं इसकी मेरी उर्दू की शान है हिंदी'' को श्रोताओं ने ख़ूब सराहा । ग्वालियर से पधारीं कवियित्री ज़ेबा राना ने '' ये बात उसके मिलने के पहले की बात है , जब घर के काम काज में लगता था मन मेरा'' को सुमधुर तरन्नुम में प्रस्तुत कर समां बांध दिया । फ़ारुख़ अंजुम ने विशेष शैली में '' नज़र फ़ेर कर चल रही हैं हवाएं, सुना है कि ख़ुश्बू से रिश्ता हुआ है '' ग़ज़ल पढ़ी । रहबर जौनपुरी ने अपनी सुप्रसिद्ध नज़्म ''गंगा'' को अपनी बुलंद आवाज़ में पढ़कर ख़ूब दाद बटोरी । अंत में देश के वरिष्ठ उर्दू साहित्यकार श्री इशरत क़ादरी ने अपने अध्यक्षीय भाषण्ा में सीहोर के साथ अपने रिश्तों का जि़क्र किया और सीहोर की साहित्ियक चेतना की जम कर तारीफ़ की उन्होंने कहा कि सीहोर में साहित्य को लेकर जो माहौल है वो कम जगहों पर ही देखने को मिलता है । श्री क़ादरी ने कहा कि साहित्यकार को उर्दू और हिंदी की सीमाओं में नहीं बांधना चाहिये वो तो केवल साहित्यकार होता है । उन्होंने अपनी कुछ ग़ज़लों का पाठ भी किया । अंत में आभार श्री बसंत दासवानी ने व्यक्त किया । देर रात तक चले इस मुशायरे में बड़ी संख्या में शहर के काव्य प्रेमी श्रोता उपस्थित थ्ो ।

पंकज सुबीर

4 टिप्‍पणियां:

  1. ऐसे आयोजन होते रहने चाहिये । मुझे तो लगता है भारत की सभी भाषाओं को बहनों या सहेलियों की तरह एक दूसरे से आवश्यकता पड़ने पर शब्द लेते रहने चाहिये ।
    घुघूती बासूती

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  2. कवियित्री ज़ेबा राना को सुनना हमेशा ही मधुर होता है.

    आयोजन की ऑडियो और तस्वीरों का भी इन्तजाम किया जाये यहाँ तो चार चाँद लग जायें.

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  3. Nice post. Ishrat Qadri is really the grand old man of Urdu poetry in Bhopal.

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