शनिवार, 31 जनवरी 2015

आइये आज जनवरी 2015 के अंतिम दिन श्री राकेश खंडेलवाल की गुदगुदाती हुर्द रचना के साथ हंसते खिलखिलाते करते हैं तरही मुशायरे का विधिवत समापन।

समय की भी क्‍या रफ्तार होती है। देखिए अभी तो हमने 2015 का स्‍वागत किया था और अभी बात की बात में उसका एक महा बीत भी गया । अब बचे हैं कुल 11 महीने । ये भी बीत जाएंगे। खैर आइये कुछ महत्‍तवपूर्ण सूचनाएं आपके साथ साझा की जाएं। सबसे पहले तो यह कि शिवना प्रकाशन को विश्‍व पुस्‍तक मेले में स्‍टॉल का आवंटन हो गया है। हॉल क्रमांक 12 A जो कि हॉल क्रमांक 12 का हिस्‍सा है उसमें स्‍टॉल क्रमांक 288 शिवना प्रकाशन-ढींगरा फ़ाउण्‍डेशन के स्‍टॉल को आवंटित हुआ है। और अधिक सुविधा के लिए नीचे के चित्र में हॉल क्रमांक 12ए में स्‍टॉल की स्थिति दिखाई जा रही है। हॉल में एण्‍ट्री लेने के बाद जब आप बांए हाथ की ओर मुड़ेंगे तो तीसरे खंड में कॉर्नर पर ही 288 नंबर का स्‍टॉल है। आवंटन सूची के अनुसार शिवना प्रकाशन के ठीक बगल में 289-290 में साहित्‍य अकादमी का स्‍टॉल है। शिवना प्रकाशन के ठीक पीछे 257-272 में वाणी प्रकाशन का स्‍टॉल है। आप आइये आपका स्‍वागत है। और हां 16 फरवरी को शिवना प्रकाशन का पुस्‍तक जारी करने का कार्यक्रम हॉल क्रमांक 6 के ऑडिटोरियम क्रमांक 2 (Mezzanine floor) में शाम 6 से 7:30 तक है। यह समय फिक्‍स है क्‍योंकि हमें डेढ़ घंटे का ही टाइम स्‍लॉट मिला है । उसके बाद दूसरे कार्यक्रम होंगे। तो समय से आएं और शिवना प्रकाशन की नई पुस्‍तकों और कुछ पुस्‍तकों के द्वितीय संस्‍करण के जारी होने के साक्षी बनें। इसके अलावा भी कुछ टाइम स्‍लॉट और मिलने हैं लेकिन उनका आवंटन अभी नहीं हुआ है। यदि सब कुछ योजना के अनुसार रहा तो आठ पुस्‍तकों के जारी होने का कार्यक्रम वहां होगा। जिनमें कविता संग्रह, उपन्‍यास, ग़ज़ल संग्रह और कहानी संग्रह शामिल हैं। 

Hall-12-12A-2015

तो ये थीं कुछ सूचनाएं। और आइये अब हम आज विधिवत रूप से तरही का समापन करते हैं। राकेश खंडेलवाल जी ने एक गुदगुदाती हुई ग़ज़ल भेजी है जो शिष्‍ट और शालीन हास्‍य को समेटे हुए है। तो आइये इसी रचना के साथ हम तरही को समाप्‍त करते हैं। और हां भभ्‍भड़ कवि यदि आए तो आ ही जाएंगे। साथ में यह भी कि एक दो दिन में ही होली के हंगामे का तरही मिसरा प्रदान कर दिया जाएगा।

SHIVNA PRAKASHAN 12X32

मोगरे के फूल पर थी चांदनी सोई हुई

Rakesh2

श्री राकेश खंडेलवाल जी

है बिछी अब भी नज़र कुछ जागती सोई हुई
देख तो लें आपकी है क्या घड़ी खोई हुई

पाग कर नव्वे इमरती और कालेजाम सौ
फिर कढ़ाई में पसर थी चाशनी सोई हुई

थाल भर हलवा सपोड़ा, बिन डकारे एक संग
नीम के नीच लुढ़क, थी भामिनी सोई हुई

सावनी इक मेघ से अभिसार करते थक गई
पौष में दुबकी हुई थी दामिनी सोई हुई

खूब पीटे  ढोल, तबला, बांसुरी, सारंगियाँ
शोर ही केवल मचा, थी रागिनी सोई हुई 

पंकजों के पत्र पर ठहरा प्रतीक्षा में तुहिन
बेखबर हो दूर थी मंदाकिनी सोई हुई

नीरजी पग हैं गगन पर, क्या तरही मिसरा लिया
" मोगरे के फूल पर थी चांदनी सोई हुई "

नाम तो इसको ग़ज़ल का भूल कर मत दीजिये
पास वो आती नहीं अभिमानिनी सोई

कौन है बतलाओ जिसने मिसरा-ए-तरही चुना
इस उमर में फिर जगाता आशिकी सोई हुई

इश्क में शाहेजहां तो ताज ही बनवा सका
हमने रच दी शायरी में नाजनी  सोई हुई

आज फिर परदा नशीँ  इक ख्वाब में आया मिरे
आ गई रफ़्तार में, थी धुकधुकी सोई हुई

हाय ! सी सी कर रहीं वो चाट  की चटखारियां
देख  कर सहसा मुहब्बत जागती, सोई हुई

ये असर भकभॉ  मियाँ का, है खता अपनी नहीं
हम न लिख पाये ग़ज़ल को, वो रही सोई हुई

आपकी इस व्यस्तता को कोई आखिर क्या कहे
भागती रफ़्तार दुगनी कर घड़ी सोई हुई

फोन पर भी आजकल तो आप मिल पाते नहीं
जैसे हो रिंगटोन तक भी आपकी सोई हुई

एक तो जलसा-ए-शिवना, उस पे पुस्‍तक मेला भी 
उस पे तरही की फ़िकर भी जागती सोई हुई

हर गज़ल को पढ़ रहीं, दांतों तले ये उंगलियाँ
छू ना पातीं संगणक की कोई 'की' सोई हुई

यों तो पारा शून्य से दस अंश नीचे आजकल
धूप के हल्के परस से कँपकँपी सोई हुई

जनवरी के अंत  तक शायद तरही चलता रहे
मोगरे के फूल पर थी  चांदनी सोई हुई 

थाल भर हलवा सपोड़ा बिन डकारे एक संग में नीम के नीचे लुढ़क कर सोई हुई भामिनी का सीन तो बहुत ही खूब है। इस एक शेर पर दाद खाज खुजली सब कुछ बाल्‍टी भर भर के दिये जा सकते हैं। और उस पर नव्‍वे इमरती और सौ काले जाम पागने वाली चाशनी की तो बात ही क्‍या है। और तरही मिसरे के कारण इस उमर ?  में आशिकी के जागने की शिकायत बिल्‍कुल वाजिब है। शिकायत पर गौर किया जाएगा। परदा नशीं के आने पर धुकधुकी के रफ्तार पकड़ने का सीन और वो भी ख्‍वाब में ही आने से । कमाल है भाई । तो साहब आपको क्‍या कहें  । बस ये कि कमाल कमाल । और वाह वाह वाह।

तो आप भी आनंद लीजिए इस लम्‍म्‍म्‍म्‍म्‍म्‍म्‍म्‍म्‍म्‍म्‍म्‍म्‍बी सी ग़ज़ल का और दाद देते रहिये। मिलते हैं अगले अंक में होली के तरही मिसरे के साथ।

24 टिप्‍पणियां:

  1. हम तो पहले भी कहते रहे आज फिर कह रहे हैं कि राकेश भाई आप बेजोड़ हैं। सच कहूँ तो आप ही वो कवि हैं जिस के लिए कहा गया है कि वो वहाँ जा पहुँचता है जहाँ रवि भी नहीं पहुँच पाता बाकि हम जैसे तो उस सपाट मैदान जैसे हैं जहाँ रवि क्या कोई भी आ धमके। अब बात ग़ज़ल की : क्या कमाल के दृश्य रचे हैं आपने अहा हा "किस किस की बात कीजिये किस किस को छोड़िये--- " हलवा खा के भामिनी के सोने का दृश्य अनुपम है , शोर ही केवल बचा था में आजकल के संगीत पर क्या करारा व्यंग किया है , तरही मिसरे में नीरजी शब्द चार चाँद लगा रहा है , कौन है बतलाओ जिसने--- वाले शेर में मैं आपके साथ नहीं हूँ क्यूंकि क्या पता पंकज जी ने हम जैसों में अब भी आशिकी जगने की सम्भावना देख ली हो (दिल के खुश रखने को ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है ---) , सी सी करते हुए चटकारियों वाला शेर मुंह में पानी ले आया ,अमेरिका में आप इस सी सी को मिस कर रहे होंगे , तरही समस्त ग़ज़लों पर टिप्पणी करता आप का शेर "हर ग़ज़ल को पढ़ रहीं ---अद्भुत है इसमें की का काफ़िया अये हए मार डाला टाइप है , आपकी लेखनी को प्रणाम करते हुए आपकी चरण रज ढूंढ रहे हैं कहीं से मिल जाय तो माथे पे लगा कर हम भी ऐसी ही उफ़ यू माँ टाइप की ग़ज़ल कहना का सलीका पा सकें।

    गुरुदेव एक तो हम पैदाइशी कन्फ्यूज हैं दूसरे आप हमें कन्फ्युजाने में कमर कसे हुए है अब ये बताएं कि ऊपर तो आपने स्टाल न 288 का पता दिया है जिसके आगे फलां है पीछे फलां है इधर फलां है उधर फलां का जिक्र किया है लेकिन नीचे दिए बैनर के चित्र स्टाल न 188 लिखा है। आप चाहते लोग आये या न आये या फिर बुक फेयर में कन्फ्युजाते घुमते रहें ?? हैं ???

    तरही की कामयाबी पर आपको बधाई देने से मुझे कोई नहीं रोक सकता - बधाई।

    नीरज

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    1. समय पर ध्‍यान दिलाने के लिए धन्‍यवाद भूल सुधार कर दी गई है। कार्य की अधिकता के चलते सब गड़बड़ हो गई थी। आपने समय से याद दिला दिया नहीं तो प्रिंट मटेरियल में भी यही चला जाता। स्‍टॉल 288 ही है। और हां पुस्‍तक मेले में शिवना को तीन और कार्यक्रम अलाट हो गए हैं जिनमें एक गजल का है।

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    2. क्योंकि खरबूजा बदलता रन्ग से खरबूज के
      ये गज़ल है आपकी, थी आपकी सोई हुई

      पत्र लिखवाते रहे पंकज समूचे मास भर
      बाटियां हलवा, उडद की दाल थी धोई हुई

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  2. हंसी रुकने का नाम नहीं लेती ... उंगलियाँ दांतों तले कट रहीहै (इस नायाब ग़ज़ल रचना शिल्प और शब्द-चयन पर) ... कुछ भी लिखने का साहस तो कर ही नहीं सकते ... बस आनंद आनद महा आनंद ... नमन है राकेश जी की लेखनी को ...

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  3. और अब एक प्रोटेस्ट ... भभ्भड़ कवी मंच पर आयें ... भभ्भड़ कवी मंच पर आयें .. भभ्भड़ कवी मंच पर आयें ...भभ्भड़ कवी मंच पर आयें ...भभ्भड़ कवी मंच पर आयें .. इन्कलाब जिंदाबाद ... भभ्भड़ कवी मंच पर आयें ...

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  4. इस बार तो १५-१६ को मैं भी फरीदाबाद में ही हूँ ... इसी बहाने १६ को आपसे और दुसरे ब्लोग्चियों से (जो भी १६ को होगा) मिलने का मौका मिल जाएगा ...

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  5. 'खाण्ड' * की सामग्रियों पर लार तो टपकी मगर
    हमने तो चुन ली फ़क़त 'मंदाकिनी' सोई हुई !

    * खाण्ड = शकर/ मीठा
    सभी शेर मज़ेदार है, चुनाव बड़ा मुश्किल था!

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    1. आपका आशीष पाकर, फ़ख्र अपने आप पर
      वरना सोचे थे कलम है हाशमी सोई हुई

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  6. आयोजन में एक से बढ़कर एक आकर्षक रचनाएँ पढ़कर मैं धन्य हुआ। उस्ताद शायरों का हार्दिक आभार।

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  7. पुस्तक मेले के लिए शुभकामनायें । बहुत सम्भावना है मुलाकात की । वैसे अग्रिम बधाई शिवना प्रकाशन के लिए अभी से दे रहा हूँ ।

    राकेश जी की रचना तो वाकई गज़ब है । आपका शब्द चयन बड़ा ही शानदार होता है ,ऊपर से गुदगुदाते हुए सुन्दर भाव । मजा आ गया । एक श्रेष्ठ रचना के लिए राकेश जी को बधाई ।

    एक और शानदार मुशायरा संपन्न हुआ । बहुत बहुत धन्यवाद पंकज जी , साथ ही साथ सफलता के लिए हार्दिक बधाई ।

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    1. इस गज़ल के हैं प्रणेता सिर्फ़ पंकज, जान लें
      एक तो है मोगरा फ़िर चान्दनी सोई हुई ?

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  8. बहुत सुन्दर आयोजन रहा। राकेश खंडेलवाल जी की रचना गुदगुदाने में कामयाब रही। सफलतापूर्वक संचालन और समापन के लिए पंकज जी बहुत बहुत बधाई।

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  9. राकेश जी बर्फ गिरने का पूरा उपयोग किये हैं। गीत भी और ग़ज़ल भी और वह भी रंगारंग। वाह वाह और वाह।

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  10. राकेश जी बर्फ गिरने का पूरा उपयोग किये हैं। गीत भी और ग़ज़ल भी और वह भी रंगारंग। वाह वाह और वाह।

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    1. शेर लिख गुस्ताखियां कर दिल को गर्माया हुज़ूर
      वरना फिर से जाग जाती थरथरी सोई हुई

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  11. पहले पहल शिवना प्रकाशन को बधाई और शुभकामनायें।

    राकेश जी ने सभी चीज़ों को समाहित कर के खूब ग़ज़ल बनाई है। हर शेर सच्चा और दिल से कहा गया है और इसका प्रमाण आखिरी शेर में की भविष्यवाणी का शत प्रतिशत सच होना भी देखा जा सकता है।

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    1. याद के पन्ने अचानक फ़ड़फ़ड़ाये थे मेरे
      याद में इक शाम थी सीहोर की सोई हुई

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  12. सावनी एक मेघ ..., कौन है बतलाओ ...., आज फिर पर्दा....,किस किस शेर की बात की जाये सभी लुभावने हैं | ये गज़ल सुबीर संवाद सेवा परिवार की गज़ल है |बहुत बधाई राकेश जी |
    पुस्तक मेले की जानकारी का शुक्रिया |

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    1. आपने सच ही कहा "संवाद" जिम्मेदार है
      वरना अपनी बोलती और सोच भी सोई हुई

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