हमने कई कई आयोजन किये हैं। विशेषकर नये साल को लेकर तो कई सारे आयोजन किये हैं। और उनमें सभी ने बहुत दिल खोलकर भाग भी लिया है। इस बार भी ऐसा ही हुआ है। पहले तो ग़ज़लें आईं नहीं और जब आईं तो छप्पर फाड़ के आईं हैं। पूरा फोल्डर भर चुका है ग़जल़ों से । लेकिन जैसा कि तय था कि हम ठीक पहले ही दिन इस तरही को प्रारंभ करेंगे । तो आज इस 2015 के ठीक पहले दिन तरही को शुरू करते हैं। पिछले सप्ताह शाहिद मिर्जा जी का कॉल आया तथा उन्होंने मुझे कुछ बताया। तो मुझे लगा कि इससे बेहतर और शुरुआत हो क्या सकती है तरही की । उन्होंने मां पर एक पूरी ग़ज़ल कही और बेहतरीन ग़ज़ल कही । हैरत की बात ये है कि मैं स्वयं एक शेर को उस दौरान गढ़ रहा था और उस शेर में मेरा मिसरा सानी लगभग उसी ध्वनि पर था जैसा शाहिद भाई ने मतले के मिसरे सानी में रखा है। शाहिद भाई की पूरी ग़ज़ल पढ़कर आनंद आ गया । और सबसे बड़ी बात कि जो भावना इस ग़ज़ल के पीछे है वो कितनी पवित्र है। जब तक यह भावना है तब तक हम सब इसी प्रकार आपस में अमन और शांति के दीपक जलाते हुए रह सकते हैं ऐसा मेरा मानना है। तो आइये चलते हैं तरही की ओर।
मोगरे के फूल पर थी चांदनी सोई हुई
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
हालांकि इस मिसरे का मां लफ़्ज़ से कोई ताअल्लुक भी नहीं था...फिर भी कुछ शेर मां के लिए हो गए....देवी के रूप में कवि सम्मेलनों की रिवायत मां शारदे की वंदना से होती है....इस मुशायरे में जन्म देने वाली मां को याद करते हुए अपने चंद अशआर भेज रहा हूं...शुक्रिया
पास हो या दूर हो, या जागती, सोई हुई
मामता देखी नहीं मैंने कभी सोई हुई
हैं यशोदा की निगाहें सिर्फ़ माखनचोर पर
ख्वाब कान्हा के ही देखे देवकी सोई हुई
रात भर उसको फ़रिश्ते भी दुआ देते रहे
देखकर ममता के आंचल में परी सोई हुई
लौटकर आता नहीं जब तक मैं घर पर, मेरी मां
जागती रहती है, लगती है थकी सोई हुई
मां को जब से छोड़कर आया हूं तन्हा गांव में
है उसी दिन से मेरी तक़दीर भी सोई हुई
दूर हो कर भी ऐ ’शाहिद’ हर घड़ी नज़दीक है
कब्र से भी मां दुआएं दे रही सोई हुई
कुछ कहा जाए क्या ? ममता और मां के लिए कुछ कहा जाए और उस रचना पर कुछ कहा जाए तो शब्द कहां से आएं। रात भर उसको फ़रिश्ते भी दुआ देते रहे में मिसरा सानी अहा अहा अहा, बस एक पूरा का पूरा चित्र मानो आंखों के सामने आ गया हो । मिसरा सानी चांदनी की छुअन लिये है। लौटकर आता नहीं जब तक मैं घरपर में मानो दुनिया भर की मांओं की कहानी कह दी गई है । सच शत प्रतिशत सच। और यशोदा तथा देवकी का शेर कमाल है एक ही शेर में दोनों मांओं को एक साथ साकार कर दिया है। मतला के बारे में तो पहले ही कह चुका हूं कि वो तो मानो मेरी ही भावनाओं को शाहिद भाई न शब्द दे दिये हैं । और कमाल दिये हैं। शाहिद भाई सलाम आपको । बहुत खूबसूरत गज़ल़। और हम सब शुक्रगुज़ार हैं शाहिद भाई के कि उन्होंने नये साल के ठीक पहले दिन ही हम सबको मां के आगे शीश नवा कर आशिर्वाद लेने का अवसर दिया ।
इससे बेहतर शुरुआत कुछ हो नहीं सकती थी । शाहिद जी को धन्यवाद और आप सब भी अपने अपने तरीके से धन्यवाद दीजिये अपनी दाद और वाह वाह से । नये साल की सबको शुभकामनाएं।
टिप्पणी को लेकर कुछ परेशानी है ।
जवाब देंहटाएंअब दूर हो गई है ।
जवाब देंहटाएंतरही की इससे बेहतर शुरुआता वाकई नहीं हो सकती थी। माँ पर अच्छी ग़ज़ल कही है शाहिद साहब ने। उन्हें बहुत बहुत बधाई इस शानदार ग़ज़ल के लिए और सभी मित्रों एवं आदरणीय सुबीर जी को नववर्ष की ढेरों शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंआपकी मुहब्बत और इनायत का शुक्रिया धर्मेन्द्र जी...नया साल बहुत बहुत मुबारक हो.
हटाएंनव वर्ष की आशीषो भरी शुरूआत इससे बेहतर क्या हो सकता था।
जवाब देंहटाएंशाहिद जी की गज़ल का हर शेर मेरी माँ
के लिए लगता है। बहुत कामयाब गज़ल।मामता देखी नही मैने कभी सोई हुई। सच माँ कब सोती है।
नए साल और तेजी की शुरूआत की सबको बधाई ।
कृपया तेजी नही इसे तरही पढे।
हटाएंनवाज़िश के लिए तहे-दिल से शुक्रिया पारुल जी...नया साल मुबारक हो.
हटाएंशाहिद साहब
जवाब देंहटाएंइस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए शुक्रिया। इस से बेहतर शुरुआत हो ही नहीं सकती थी।
मुक्कमिल ग़ज़ल के लिए दिली दाद क़ुबूल करें।
सभी को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
सादर
पूजा भाटिया
बहुत-बहुत शुक्रिया पूजा जी, हौसला अफ़ज़ाई से हमेशा प्रेरणा मिलती है...नया साल मुबारक हो.
हटाएंहैं यशोदा की निगाहें सिर्फ माखन चोर पर
जवाब देंहटाएंख़्वाब कान्हा के ही देखे देवकी सोई हुई
शाहिद भाई मेरे पास तारीफ़ के लिए अल्फ़ाज़ नहीं है क्या कमाल की ग़ज़ल कही है अहा हा । न तरही की इस से बेहतर शुरुआत हो सकती है और न ही नए साल की। ऐसी खूबसूरत भावनाएं जब तक हमारे दिलों में ज़िंदा हैं तब तक इस मुल्क में अमनो अमाँ कायम रहेगा। एक अनुपम प्रयोग किया है आपने शहीद भाई , आपके लिए लगातार तालियां बजा रहा हूँ और दुआ कर रहा हूँ कि आपकी इस कलम पर साल दर साल यूँ ही प्यार मोहब्बत के नग्में उतरते रहें। आमीन।
आपकी इनायत है नीरज जी....नया साल बहुत बहुत मुबारक हो
हटाएंआदरणीय पंकज जी, आपने नाचीज़ के लिए जो कहा, उसके जावाब में क्या कहा जाए....बस इतना ही कह पा रहा हूं...आपकी मुहब्बत का कर्ज़दार हूं...हौसला और इज़्ज़त अफ़ज़ाई के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया...नए साल की अनन्त शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंबेहतरीन गजल, शाहिद भाई को सलाम।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया जनाब नया साल मुबारक हो
हटाएंला जवाब ग़ज़ल , शाहिद मिर्ज़ा साहब, मुबारक , नव वर्ष की हार्दिक बधाई आपको, पंकज साहब को, तमाम शरीके महफिले शेरो सुख़न को.
जवाब देंहटाएंमतले से मक़्ते तलक बस माँ ही माँ है दम ब दम
हर कदम पर माँ मिली, जन्नत मिली सोई हुई.
हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया हाशमी साहब.
हटाएंसार्थक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (02-01-2015) को "ईस्वीय सन् 2015 की हार्दिक शुभकामनाएँ" (चर्चा-1846) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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नव वर्ष-2015 आपके जीवन में
ढेर सारी खुशियों के लेकर आये
इसी कामना के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया शास्त्री जी
हटाएंशाहिद साहब की ख़ूबसूरत ग़ज़ल ने मानों नए साल की रंगत बढ़ा दी हो.....दिल से मुबारक
जवाब देंहटाएंगुरू परिवार और गुरूकुल को नए साल की शुभकामनाएँ
शुक्रिया तिवारी जी नया साल मुबारक हो
हटाएंशाहिद जी का कमाल पहले भी पढ़ चुका हूँ । मन प्रसन्न कर देने वाले एक से एक बढ़कर शेर । माँ और माँ की ममता का बहुत ही सुन्दर ढंग से यहाँ प्रयोग किया है आपने । माँ ,उसकी ममता वाकई किसी जन्नत से कम नही होती । शाहिद जी , आपको नव वर्ष की बधाई ।
जवाब देंहटाएंपंकज जी , बहुत सुन्दर मुशायरा ,आज शुरुआत है मगर मालूम है अभी और भी अच्छे अच्छे शेर पढने को मिलेंगे । आप का धन्यवाद । नववर्ष की हार्दिक बधाई ।
शुक्रिया पांडेय जी नया साल मुबारक हो...
हटाएंकुछ रचनायें अपने आप टिप्पणी लिखवा लेती हैं . वैसे तो सुबीर संवाद सेवा पर हर रचना बेजोड़ होती है परन्तु इस नये वर्ष की प्रथम प्रस्तुति में जो विशेषता है उसके लिये शाहिद और पंकजजी दोनों को ही विशेष बधाई.
जवाब देंहटाएंदो पंक्तियाँ शाहिद के लिये
गोद में रख सर निहारा माँ को तब ऐसा लगा
मोगरे के फूल पर है चाँदनी सोई हुई
शुक्रिया राकेश जी, आपने बहुत अच्छा मिसरा गिरह लगाया है।
हटाएंइस शानदार प्रस्तुति के लिए आ. शाहिद सर जी को नमन।
जवाब देंहटाएंआप के अशआर से माँ आज मेरे रूबरू
जग गई पलकों की मेरे फिर नमी सोई हुई
शुक्रिया दिनेश जी
हटाएंनव वर्ष की शुभकामनाएं देने, प्रभात अब आया है ।
जवाब देंहटाएं..सुन्दर नववर्ष रचना ..
मैं भगवान से प्रार्थना करता हूँ आपका आने वाला और अगले हर वर्ष खुशियाँ और सुख - आनंद से परिपूर्ण हो , सपरिवार सुखी - संपन्न रहें !
शुक्रिया संजय जी
हटाएंसुबीर संवाद सेवा से जुड़े हर शख़्स को नव वर्ष की शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंमुशायरे का आग़ाज़, साल का पहला दिन और शाहिद जी की ग़ज़ल; वाह क्या कहने।
जिस ख़याल पे शाहिद जी ने ग़ज़ल का ताना-बाना बुना है वो ख़ुद में इतनी पाक़ीज़गी लिए हुए है कि हर शेर अपनी अलग छटा बिखेर रहा है।
बेहतरीन मतला कहा है, बेहद मासूमियत से भरा हुआ।
ये शेर "हैं यशोदा… " क्या खूब हुआ है। मिसरा-ए-उला और सानी में दो चित्र, एक कड़ी से जुड़े हुए। वाह वाह
शाहिद जी इस खूबसूरत आग़ाज़ के लिए मुबारकबाद।
शुक्रिया अंकित जी, शुभकामनाएं
हटाएंDigamber Naswa [dnaswa@gmail.com] द्वारा दी गई टिप्पणी ।
जवाब देंहटाएंबहुत कोशिश के बाद भी टिप्पणी नही हो पा रही तो मेल कर रहा हूं ....
इसे कहते हैं मुशायरा ...पावन शुरुआत ने ही मानदन्ड तय कर दिए ....
इस धमाके का जवाब मुमकिन नही .... बहुत ही लाजवाब गज़ल ... हर शेर पे दाद निकलती है ... तारीफ़ को शब्द कम हैं आज .... शाहिद भाइ के हाथों को चूमने का मन करता है ... परिवार के सभी साथियों को नव वर्ष की हार्दिक बधाई ....
आपको भी नव वर्ष मंगलमय हो ....
दिगबंर
जर्रानवाजी के लिए शुक्रिया नासवा जी, आप सबकी रचनाओं का बेताबी से इंतजार है
हटाएंकुछ लोगों द्वारा टिप्पणी प्रकाशित नहीं होने की शिकायत की गई है । शायद किसी ब्राउज़र में समस्या हो सकती है ।
जवाब देंहटाएंSaurabh Pandey [saurabh312@gmail.com]
जवाब देंहटाएंमुशायरे में हमने अपनी टिप्पणी डाल दी है. लेकिन दिख नहीं रही. अतः, मेल के माध्यम से साझा कर रहा हूँ.
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समय चक्र सतत गतिमान है, बिना किसी मत विशेष या किसी विशिष्ट वाद के ! हम अवश्य अपनी-अपनी समझ के अनुसार काल-खण्डों का नामकरण करते हैं. ग्रेगोरियन कैलेण्डर के अनुसार वर्ष बदल गया है. नया वर्ष आ गया है.
गतिविधियों और प्रक्रियाओं के परिचालन में नयापन हो, नयापन दिखे, की अपेक्षाएँ बलवती हैं. इस मंच पर भी अपेक्षित गतिविधियाँ नये ढंग से सामने हैं.
लेकिन हर कार्य अत्यंत सुचारू और व्यवस्थित ढंग से चलने ही लगे तो फिर इस मशीनीपन से क्या जीवन में ऊब और ’वही-वहीपन’ हावी नहीं हो जायेगा ! सो, बेढंगापन सदा स्वीकार्य है. यही तो अपने परिवेश को रोचक बनाती विविधता का अन्यतम कारण है. सो, हर तरीके के बेढंगेपन को सहज समेटे हुए हमारी हार्दिक शुभकामनाएँ - नववर्ष मंगलमय हो !
इतना कुछ कहने का बड़ा अर्थवान कारण है.
कल दिनभर की लगातार होती हुई बारिश ने मेरे आस-पास को पूरी तरह से बिगाड़ कर रख दिया. बिजली की आवाजाही को चलिये इनवर्टर से नियत कर लिया जाय. लेकिन नेट का क्या किया जाय ? दिन भर हाइबरनेशन में रहा. पूरे अट्ठरह घण्टे का हाइबरनेशन !
प्रारम्भ हुए तरही-मुशायरा में मेरा आना अभी हो पा रहा है. लेकिन क्या भावमय प्रारम्भ हुआ है ! माँ के वात्सल्य को नमन करती हुई प्रस्तुति से मन नम हो गया. पंकजभाई ने सही कहा है - रचना पर कुछ कहा जाये तो शब्द कहाँ से आयें ! .. सही कहा आपने, पंकजभाईजी.
आदरणीय भाई शाहिद मिर्ज़ा शाहिद को हृदयतल से शुभकामनाएँ. आपकी इस प्रस्तुति में हमसभी की भावनाएँ शाब्दिक हो रही हैं.
अलबत्ता, ग़िरह का शेर रह गया था. इसकी संयत पूर्ति आदरणीय राकेश भाईजी ने कर दी है.
पुनः, सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएँ.
-सौरभ, नैनी, इलाहाबाद (उप्र)
हौसला अफजाई के लिए शुक्रगुजार हूं आपका सौरभ जी
हटाएंममता तो वैसे भी दिल को छू लेती है शाहिद साहब ने इसे गजल में पिरोकर बेहद खूबसूरत बना दिया है।हर मिसरा लाजवाब है और गज़ल बेमिसाल।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया प्रकाश जी, नया साल मुबारक हो
हटाएंमाँ को समर्पित इस बेहद खूबसूरत ग़ज़ल के लिए भाई शाहिद मिर्ज़ा साहब को हार्दिक बधाई।नववर्ष की मंगल कामनाओं सहित
जवाब देंहटाएंसादर
द्विज
हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया द्विज साहब
हटाएंzaidiismat@gmail.com
जवाब देंहटाएं2015-01-02 16:12 GMT+05:30 ismat zaidi :
बहुत ख़ूब ,, वाह !
मुबारक हो शाहिद साहिब ,,शुक्रिया पंकज
इस्मत साहिबा, हौसला अफजाई के लिए शुक्रगुजार हूं आपका
हटाएं