शिवना प्रकाशन द्वारा शाम आयोजित पुण्य स्मरण संध्या में स्व. जनार्दन शर्मा, स्व. नारायण कासट, स्व. अबादत्त भारतीय, स्व. ऋषभ गांधी, स्व. कैलाश गुरू स्वामी, स्व. कृष्ण हरि पचौरी, स्व. मोहन राय तथा स्व. रमेश हठीला को काव्यांजलि अर्पित की गई। कार्यक्रम की अध्यक्षता मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी की सचिव श्रीमती नुसरत मेहदी ने की जबकि मुय अतिथि के रूप में नगरपालिका अध्यक्ष श्री नरेश मेवाड़ा तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में इछावर के विधायक श्री शैलेन्द्र पटेल उपस्थित थे। दीप प्रज्जवलन तथा दिवंगत साहित्यकारों, पत्रकारों को अतिथियों द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित करने के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। बी बी एस क्लब की ओर से वसंत दासवानी ने पुष्प गुच्छ भेंट कर सभी अतिथियों का स्वागत किया। इस पुण्य स्मरण संध्या में शिवना प्रकाशन द्वारा साहित्यकारों को समानित किया गया। अतिथियों ने स्व. बाबा अबादत्त भारतीय स्मृति शिवना समान जानी मानी कथाकारा श्रीमती स्वाति तिवारी को, जनार्दन शर्मा स्मृति शिवना समान सुप्रसिद्ध कवि श्री मोहन सगोरिया को, स्व. रमेश हठीला शिवना समान वरिष्ठ शायरा श्रीमती इस्मत ज़ैदी को तथा स्व. मोहन राय स्मृति शिवना समान सीहोर के ही वरिष्ठ शायर श्री रियाज़ मोहाद रियाज़ को प्रदान किया गया। सभी को शॉल श्रीफल समान पत्र तथा पुष्प गुच्छ भेंट कर ये समान प्रदान किये गये। इस अवसर पर शिवना प्रकाशन की आठ पुस्तकों, मुकेश दुबे के तीन उपन्यासों ‘क़तरा-क़तरा ज़िंदगी’, ‘रंग ज़िंदगी के’ तथा ‘कड़ी धूप का सफ़र’, नुसरत मेहदी के उर्दू ग़ज़ल संग्रह ‘घर आने को है’, अमेरिका की कवयित्री सुधा ओम ढींगरा के काव्य संग्रह ‘सरकती परछाइयाँ’, पूर्व पुलिस महानिरीक्षक श्री आनंद पचौरी के काव्य संग्रह ‘चलो लौट चलें’ तथा मुबई की कवयित्री मधु अरोड़ा के काव्य संग्रह ‘तितलियों को उड़ते देखा है’, हिन्दी चेतना ग्रंथमाला ‘नई सदी का कथा समय’ का विमोचन किया गया। समान समारोह के पश्चात कवि समेलन में समानित तथा आमंत्रित कवियों ने अपनी प्रतिनिधि रचनाओं का पाठ किया। स्वाति तिवारी, मोहन सगोरिया, इस्मत ज़ैदी, नुसरत मेहदी, तिलकराज कपूर, रियाज़ मोहमद रियाज़, मुकेश दुबे, गौतम राजरिशी, हरिवल्लभ शर्मा, डॉ. आज़म तथा वंदना अवस्थी दुबे ने अपनी प्रतिनिधि रचनाओं का पाठ कर दिवंगत साहित्यकारों को काव्यांजलि प्रदान की। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में शहर के सुधि श्रोता, पत्रकार एवं प्रबुद्ध जन उपस्थित थे।
और अब आइये तरही को आगे बढ़ाते हैं श्री द्विजेन्द्र द्विज, श्री सागर सियालकोटी और श्री विनोद पाण्डेय के साथ।
मोगरे के फूल पर थी चांदनी सोई हुई
द्विजेन्द्र द्विज
बेख़ुदी ओढ़े हुए है ज़िन्दगी सोई हुई
क्या जगाएगी उसे अब शायरी सोई हुई
जागते हों ग़म ही ग़म और हर ख़ुशी सोई हुई
ऐ ख़ुदा किस्मत न देना तू कभी सोई हुई
क़ाफ़िले की पीठ पर ख़ंजर न क्यों आता भला
रहज़नी जागी हुई थी रहबरी सोई हुई
दोस्ती का यह भी प्यारे दोस्तो है इक मुक़ाम
दुश्मनी जागी हुई है दोस्ती सोई हुई
इसमें सन्नाटों के साज़ों के सिवा कुछ भी नहीं
सुन - सुना पाती नहीं मेरी सदी सोई हुई
पंखुड़ी से पत्थरों को काट कर दिखला सके
है कहाँ अब वो ग़ज़ल की नाज़ुकी सोई हुई
हाँ , पहुँच कर ही उसे मंज़िल पे मिलता है सुकून
राह में देखी नहीं दीवानगी सोई हुई
है वही ज़ीनत शहर की और है रौनक़ वही
है अभी फुटपाथ पर जो खलबली सोई हुई
सुबह तक हर शय सजाएगी क़रीने से यही
दिख रही है जो अभी ये हड़बड़ी सोई हुई
बाग़ में फूलों को भी वहशत की गोली खा गयी
मौत थी जागी हुई और ज़िन्दगी सोई हुई
लाख इन आँखोँ ने कोशिश की छुपाने की मगर
थी लबों पर पीर कोई अनकही सोई हुई
छटपटा कर मर गया अब या मेरे अंदर का शोर
या लबों पर है मेरे इक ख़ामुशी सोई हुई
फिर अचानक छिड़ गईं बातें तेरी अंदाज़ की
फिर अचानक जाग उट्ठी नग़्मगी सोई हुई
अब मज़ा देते हैं मेरे पाँवों के छाले मुझे
ये जगाते हैं मेरी आवारगी सोई हुई।
फिर उमड़ पाई न वो सपनों के मर जाने के बाद
आँसुओं की भीड़ आँखों में रही सोई हुई
एक फोटो यह भी इस तहज़ीब की अल्बम का है
चुटकुले जागे हुए संजीदगी सोई हुई
धुन्ध की चादर हटा देंगे अभी सूरज मियाँ
फिर पहाड़ों पर खिलेगी धूप भी सोई हुई
रास्ता काली सुरंगों से निकालेगी ज़रूर
लेगी जब अँगड़ाइयाँ यह रौशनी सोई हुई
मेरी आँखों मेँ है अब तक उस हसीं मंज़र का नूर
'मोगरे के फूल पर थी चांदनी सोई हुई'
जान कम पड़ती वफ़ा की इस इमारत के लिए
इसलिए 'द्विज' रह गयी इसमें कमी सोई हुई
अब मज़ा देते हैं मेरे पांवों के छाले मुझे, ये शेर बहुत खूब बन पड़ा है। वैसे तो द्विज भाई की ग़ज़लों का हर शेर ही सुंदर होता है। और इस बार तो ग़ज़ल भी लम्म्म्म्म्बी है तो इसमें से किसी एक को छांटना तो वैसे ही बहुत मुश्किल है। द्विज भाई नए बिम्बों को शायर हैं। रहज़नी जागी हुई थी रहबरी सोई हुई क्या कमाल रचा है। और उसमें मिसरा उला में खंजर तो कमाल कमाल है। एक खंजर के बहाने जाने कहां कहां इशारा कर दिया है शायर ने । वाह । और हां तहज़ीब के एल्बम में चुटकुलों के जागने और संजीदगी के सोने की जो टीस हम सबके मन में है उस टीस की तरफ शेर ने क्या सलीके से इंगित किया है। और एक शेर में बिम्ब का कमाल है। जिस में पत्थरों को पंखुड़ी से काटने की बात कही है। सुरेंद्र वर्मा के उपन्यास का शीर्षक याद आ गया 'काटना शमी का वृक्ष पद्म पंखुरी की धार से' । खूब कहा । पूरी की पूरी ग़ज़ल बहुत सुंदर बनी है। हर शेर एक से बढ़कर एक । वाह वाह वाह। कमाल।
सागर सियालकोटी
आप पहली बार हमारे मुशायरे में आ रहे हैं तो पहले आपका स्वागत । आपकी एक ग़ज़लों की किताब " उर्दू शायरी आवाज़ें " यश पब्लिकेशन दिल्ली से 2013 में छप कर आ चुकी है।
हर शजर पर रात को इक आश्ती सोई हुई
मोगरे के फूल पर थी चांदनी सोई हुई
मैकदा सुनसान था बस्ती भी कुछ खामोश थी
हर तरफ जैसे नुमायां ज़िन्दगी सोई हुई
लोग महंगाई से हर सू घिर गए हैं दोस्तों
दर बदर जैसे भयानक मुफलिसी सोई हुई
क्या बताएं हाल अपना दोस्तों से या खुदा
जल रहा हूँ बेबसी में हमग़मी सोई हुई
जोड़ मत इस ज़िन्दगी के तार जो टूटे हुए
दर्दे दिल में बेकसी की रागनी सोई हुई
हम तो "सागर" जीत कर भी आपसे जीते नहीं
हुस्न जोरावर रहा मर्दानगी सोई हुई
आश्ती :खामोशी, शांति
मतले के साथ ही गिरह का शानदार कमाल रचा है सागर जी ने। आश्ती शब्द के सौंदर्य को जिसमें महसूस किया जा सकता है। और एक शेर है मैकदा सुनसान था बस्ती भी कुछ खामोश थी हर तरफ जैसे नुमांया जिन्दगी सोई हुई। सन्नाटे का चित्र बहुत ही सुंदरता के साथ बनाया गया है। उस खामोशी को महसूस किया जा सकता है इस शेर में। और दोस्ती वाले शेर में हमग़मी का सो जाना और उसकी पीड़ा को खूब स्वर दिया गया है। बहुत सुंदर ग़ज़ल कही है सागर जी ने। वाह वाह वाह।
विनोद पाण्डेय
बिन किसी के लग रही थी हर ख़ुशी सोई हुई
वो मिला तो जग गयी यह जिंदगी सोई हुई
इक अदब के साथ भँवरे बाग़ में दाखिल हुए
लग रहा है आज उनकी है कली सोई हुई
धूल,बारिश,नाव,किस्से,काठ घोड़ा अब कहाँ
आजकल तो बालकों की है हँसी सोई हुई
है ख़ुशी नववर्ष की पर मन हमारा कह रहा
मत पटाखे तू बजा है लाडली सोई हुई
बेचता था स्वप्न वो,सौदा किया फिर चल दिया
ख्वाब में डूबी रही वो बावली सोई हुई
पेड़ सारे कट गए हैं गाँव विकसित हो गया
बन गयी सड़कें नदी, में है नदी सोई हुई
मनचले कुछ भेड़ियों का बढ़ रहा है हौसला
कब तलक आखिर रहेगी शेरनी सोई हुई
चौंधियायी चाँद की आँखें जमीं पर देख यह
मोगरे के फूल पर थी चाँदनी सोई हुई
हर दफा इक जनवरी को सब यही हैं सोचते
इस दफा किस्मत जगेगी है अभी सोई हुई
बेचता था स्वप्न वो, सौदा किया फिर चल दिया में क्या विरह है। उस बावली का ख्वाब में सोए रहना बहुत ही सुंदर बिम्ब है। विरह को प्रेम कविताओं का सबसे सुंदर रंग इसीलिए तो माना जाता है। यदि विरह न हो तो प्रेम ही क्या है। पेड़ सारे कट गए हैं गांव विकसित हो गया में सड़कें नदी में बनना और फिर नदी का सोना, वाह वाह इस तरह भी सोचा जा सकता है। क्या बात है। और जनवरी में सबाक यही सोचना कि इस दफा जागेगी किस्मत है अभी सोई हुई में मानव मन की आशावादिता को अच्छा चित्रण किया गया है। हम सब जनवरी से यही तो उम्मीद लगाते हैं कि बस अब ये जो नया है इसमें सब कुछ बदल जाएगा। धूल बारिश नाव किस्से काठ घोड़ा में बचपन के सारे प्रतीकों को बहुत सुंदरता के साथ पिरोया गया है। वे सारे प्रतीक जो अब विलुप्व्त हो गये हैं उनको फिर से याद करवा दिया । बहुत ही सुदंर गजल कही है। क्या बात है वाह वाह वाह।
तीनों शायर के अशआर बेहतरीन लगे। तीनों शायरों को मुबारकबाद।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसब से पहले शिवना प्रकाशन का सम्मान समारोह तथा पुस्तक विमोचन के सफलतापूर्वक संपन्न होने पर ढेरों बधाइयाँ। जिस समारोह में आप और आपकी कर्मठ टीम के साथ सिहोर के साहित्य प्रेमी जुड़े हों उसकी सफलता के बारे शंशय हो ही नहीं सकता। औपचारिकता से कोसों दूर ये समारोह एक पारिवारिक समारोह है तभी इसमें इतनी आत्मीयता प्रेम और उत्साह दिखाई देता है। सभी सम्मानित साहित्यकारों को मेरी बधाई।
जवाब देंहटाएंआज की तरही के उस्ताद शायरों को पढ़ कर आनंद साथ साथ बहुत कुछ सीखने को भी मिला
द्विज जी की क्या बात करूँ ,मैंने तो उन्हें अपना गुरु मान उनसे शायरी की बारीकियां सीखने की कोशिश की है मेरी हर जायज़ नाजायज़ समस्या का हल उन्होंने बड़े प्रेम से दिया है। तरही में प्रस्तुत उनकी ग़ज़ल लम्बी है ये पढ़ते वक्त पता ही नहीं चलता बल्कि लगता है अरे खत्म भी हो गयी। बहुत से नए काफियों साथ उन्होंने जो तिलिस्म रचा है वो पाठक को बांध लेता है। उनके बारे में मेरा कुछ कहना छोटा मुंह बड़ी बात होगी। " रहजनी जागी हुई थी ---", " है कहाँ अब वो ग़ज़ल ---","थी लबों पर पीर की ---", " आंसुओं की भीड़ ---", ", " चुटकुले जागे हुए ---", जैसे शेर कहना उन्हीं के बस की बात है। मैं उनकी लेखनी को प्रणाम करता हूँ।
सागर भाई लुधियाना पंजाब के उस्ताद शायर हैं मुझे ख़ुशी है कि मेरा आग्रह मानकर उन्होंने इस तरही में अपनी लाजवाब ग़ज़ल भेजी। मैं उनका शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ। शजर पर आश्ती के सोने वाला गिरह का मिसरा अद्भुत है, महंगाई से घिरे लोगों की पीड़ा सटीक लफ़्ज़ों में बयां की है और बेकसी की रागनी क्या खूब बात की है अहा हा वाह। सागर साहब ढेरों दाद कबूलें
विनोद जी अपनी तरह के बेजोड़ शायर हैं। चौंकाने वाले शेर कहना आपकी फितरत है। अदब साथ भंवरों का बाग़ में दाखिल वाली बात हो , धूल बारिश नाव के किस्से हों, स्वप्न बेचने वाले की बात हो , मनचले भेड़ियों जिक्र हो या फिर हर जनवरी किस्मत के जगने की उम्मीद हो, हर शेर में विनोद जी ने कमाल किया है। इस विलक्षण प्रतिभा के शायर को मेरा सलाम।
नीरज जी , मुझे याद है ब्लॉग लेखन के दौरान आप को और आपके द्वारा प्रस्तुत किताबों की दुनिया अक्सर पढता था , वह वो दौर था जब ग़ज़ल लेखन के बारे में कुछ समझ पाया । आज उन सब का प्रतिफल मिला तो आपके योगदान को नकार नहीं सकता । आपको पढ़ना हमेशा सुखद रहा और आपका स्नेह हमेशा काम का । आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।
हटाएंआदरणीय नीरज भाई साहब
हटाएंआपके प्यार प्रेम और स्नेह की सुगंध और चांदनी में महकता चमकता रहता हूँ।यह आपके बड़प्पन,आशीर्वाद और उत्साहवर्धक टिप्पणियों का परिणाम है कि थोड़ा बहुत कह लेता हूँ।
ज़र्रानवाज़ी के लिए शुक्रिया।
शिवना समारोह सफल रहा इस बात की सभी को बधाई ... सम्मानित साहित्यकारों को बधाई ....
जवाब देंहटाएंद्विज जी की ग़ज़ल और शेरो को तो बस पढ़ते ही जाने का नाम करता है ... उस्तादों वाली बात और इतनी सहजता से कहे शेर की सीधे मन में उतर जाते हैं ... पूरी ग़ज़ल का हर शेर अलग पहचान छोड़ जाता है ... ढेरों बधाई दिल से इस उम्दा ग़ज़ल की ...
सागर भाई का स्वागत है इस तरही में ... पके हुए शायरों का कलाम पढने का मजा अलग ही होता है ... गिरह का शेर पढ़ते हुए ये बात सच हो जाती है ... मंहगाई वाला शेर भी हकीकत अपने अंदाज़ से कह रहा है ... बहुत बहुत दिली दाद इस ग़ज़ल पर ...
विनोद जी को तो लम्बे समय से पढ़ रहे हैं और ताज़ा मुद्दों और ताज़ा हालात पे लिखना उनका शौंक है ... धुल बारिश नाव , बेचता थ स्वप्न .. जैसे कमाल के शेर सीधे दिल को छूते हैं ... बहुत बहुत बधाई विनोद जी को इस ग़ज़ल की ....
आपका हमेशा से प्रेम मिलता रहा है दिगंबर जी । आपके स्नेह और आशीर्वाद का ही प्रतिफल है यह । आशीर्वाद देते रहें । सादर नमस्ते
हटाएंभाई दिगंबर नासवा जी प्रेम और स्नेह के लिए हार्दिक आभार।
हटाएंछटपटा कर मर गया अब या मेरे अंदर का शोर
जवाब देंहटाएंया लबों पर है मेरे इक ख़ामुशी सोई हुई
फिर अचानक छिड़ गईं बातें तेरे अंदाज़ की
फिर अचानक जाग उट्ठी नग़्मगी सोई हुई
अब मज़ा देते हैं मेरे पाँवों के छाले मुझे
ये जगाते हैं मेरी आवारगी सोई हुई।
बहत ख़ूब, द्विज जी, शानदार Score है आपका, हमें तो काफियों के ही लाले पड़े हुए थे. लाजवाब अशआर, बधाई.
आदरणीय हाशमी जी नमस्कार
हटाएंआपको और काफ़िये के लाले ?क्या बात करते हैं जी , आप जो टिप्पणी भी तरही के शेरों में करते हैं। बहुत ही कमाल और शायराना टिप्पणी होती हैं आपकी और राकेश जी की
वैसे भी ये काफ़िये हमने पहले ही चुरा लियें हैं। आपकी ग़ज़ल का इंतज़ार रहेगा।
ससम्मान
मोहतरम मंसूर अली हाशमी साहब
हटाएंहौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से ममनून और मशकूर हूँ।
पारुल सिंह जी,
हाशमी साहब के बारे में जो आपने लिखा है,मैं उससे सौ फ़ीसदी सहमत हूँ।
हर शजर पर रात को इक आश्ती सोई हुई
जवाब देंहटाएंमोगरे के फूल पर थी चांदनी सोई हुई
ला जवाब गिरह बांधी है सागर साहब ने, बहुत खूब.
(पास रक्खा है शजर ने चांदनी की नींद का
फूल के आग़ोश मे एक महजबीं सोई हुई)
हाशमी जी , जितना खूबसूरत शेर था वैसा ही खूबसूरत जवाब
हटाएंवाह वाह वाह
पास रखा हैं शज़र ने चांदनी की नींद का
वाह क्या पास रखा है . वाह
फूल के आग़ोश में एक महजबीं सोई हुई
इस नाज़ुक नर्म शेर के लिए बहुत बहुत बधाई हाशमी जी
शायद ये ही है वो सलीका गजल का जिसके लिए पंकज जी कहते हैं कि शायरी मैं शब्दों का बड़ा महत्त्व हैं ....... एक एक लफ्ज मखमल सा और बहुत ही नाज़ुक ख्याल
मुझे मजबूरन टिप्पणी करनी पड़ी। मुझे समझ बहुत कम है, समझ नहीं आता था जब कोई कहता हैं इस शेर को साथ लिए जा रहा हूँ। आज खुद बा खुद समझ आ गया।
इस शेर को साथ लिए जा रही हूँ। बहुत सी शुभकामनाएं आपको।
शुक्रिया पारुल जी ज़र्रा नवाज़ी का. यह तो पंकज जी के तरही मिसरे का कमाल है कि चांदनी को एक जीवित पात्र बना कर हमारे ज़हन में बिठा दिया, बाकी काम शाइरों के कवि ह्रदय ने ख़ूबी से कर दिया है. ख़ूबसूरत चीज़ें प्रेरक बन जाती है; इस बार ये श्रेय 'चांदनी' लूट गई.
हटाएं"चांदनी किरदार बन कर ज़हन पर छाई रही
फिक्रे शाइर से क्या निखरी रौशनी सोई हुई."
ग़ज़ब अशआर निकाले है, विनोद पाण्डेय जी आपने.
जवाब देंहटाएंइस शेर का तो जवाब नही.....
बेचता था स्वप्न वो , सौदा किया फिर चल दिया
ख्वाब में डूबी रही वो बावली सोई हुई
शेर पसंद करने के लिए शुक्रिया हाश्मी जी । स्नेह बनाये रखें ।
हटाएंइस मंच पर जिन शायरों की गज़लों का बेताबी से इन्तज़ार रहता है उनमें द्विजजी भी एक है. नीरजजी, तिलकजी, इस्मतजी, सुलभजी के साथ साथ शाहिद, सज्जन, विनोद, शार्दुला, अंकित, गौतम और रवि की रचानाओं की महक के लिये मन लालायित रहता है. इस मंच पर नये आने वाले शायरों की रचनायें अद्वितीय होती है. आज की गज़लें भी एक से बढ़ कर एक है.
जवाब देंहटाएंद्विजजी को अनूठे बिम्बों के लिये विशेष बधाई. पुस्तकों के विमोचन पर आपको बधाई. हाँ कार्यक्रम तो असाधारण होना ही था.
आदरणीय भाई खंडेलवाल जी
हटाएंआपको ग़ज़ल पसंद आई।
मेरा सौभाग्य।
हार्दिक आभार।
पंकज जी , कार्यक्रम की सफलता के लिए ढेर सारी बधाइयाँ । आप जिस मेहनत और ईमानदारी के साथ साहित्य सेवा में लगें हैं उसमें सिर्फ आपको सफलता ही मिलेगी । आपका व्यक्तित्व ही ऐसा है ।कार्यक्रम की रिपोर्ट पढ़ी , बहुत अच्छा लगा ।
जवाब देंहटाएंइतनी व्यस्तता में आपने तरही मुशायरा को भी चलाये रखा है वो भी बेहतरीन प्रस्तुति के द्वारा । आज अपनी ग़ज़ल मुशायरे में देख कर अच्छा लगा । साथ ही साथ द्विज जी और सागर जी जैसे बड़े अनुभवी और श्रेष्ठ शायर के साथ मेरी प्रस्तुति मेरे लिए भाग्य की बात है । द्विज जी को तब से पढ़ रहा हूँ , जब ग़ज़ल के बारे में जानना शुरू किया था । उनकी कमाल की शायरी होती है , आज भी कुछ वैसा ही दिखा ,हर शेर कबीलेतारीफ़ । मेरी ओर से ढेर सारी बधाई और शुभकामनायें । सागर जी को भी पहली बार पढ़ना बहुत सुखद लगा । सारे शेर मन मोह रहे हैं । बधाई सागर जी ।
मेरे प्रयास पर आप सभी का प्रेम ,मेरा हौसला और बढ़ा रहा है । कोशिश करूँगा निरंतर और अच्छा लिख पाऊँ । बाकी आप सभी अग्रजों का प्रेम और आशीर्वाद है । हौसला आफजाई के लिए मै सभी शायरों का आभार व्यक्त करता हूँ । राकेश जी , हाश्मी जी , दिगंबर जी,नीरज जी ,संजय जी आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद । स्नेह ऐसे ही बनायें रखें और अपने अनुभव से मेरा मार्गदर्शन भी करते रहें ।
पंकज जी ,तरही मुशायरा वाकई बहुत ही अच्छा चल रहा है ,आज द्विज जी , सागर जी को पढ़ना
अच्छा लगा । आगे और शेर का इंतज़ार है । आपका आशीर्वाद और मार्गदर्शन मिल रहा है ,यह गौरव की बात है । प्रणाम ।
कार्यक्रम हमेशा की तरह जानदार रहा और शानदार रहा और इसमें कोई शक़ नहीं कि इस तरह का पारिवारिक वातावरण सामान्यतय: देखने को नहीं मिलता।
जवाब देंहटाएंयहॉं प्रस्तुत सभी ग़ज़लें अपने अपने रूप में लावण्य लिये हैं और मोगरे पर सोई हुई चांदनी का सौन्दर्यवर्धन रही हैं।
द्विज भाई ने अच्छी लंबी इनिंग खेली है और अपने अनुभव से नवाज़ा है।
दिनांक 19 जनवरी के कार्यक्रम के लिये इस तरह पर एक ग़ज़ल प्रस्तुत करने का विचार था जो समयाभाव के कारण पूरा नहीं हो सका तो कल ही फेसबुक पर वो ग़ज़ल चिपकायी। जिसके एक शेर का मिसरा रहजनी रहबरी के संबंध में ही था:
इस अनवरत् युद्ध में मैं साथ किसको ले चलूँ
रहजनी जागी हुई है, रहबरी सोई हुई।
द्विज भाई के एक शेर के मिसरा-ए-सानी और इसके मिसरा-ए-सानी में संयोगवश एक ही बात सोच में है। हॉं मिसरा-ए-ऊला द्विज भाई का बहुत उपर है। स्वागत है।
आदरणीय भाई तिलकराज कपूर जी
हटाएंहार्दिक आभार।
आदरणीय भाई तिलक राज कपूर जी
हटाएंआपने सही कहा ऐसे आयोजन दुर्लभ होते हैं ।भाई पंकज सुबीर साहब को सफल आयोजन के लिए बधाई।
रहज़नी और रहबरी वाले शेर में मुझे तोआपका ऊला भी बहुत अच्छा लग रहा है।
आशीर्वाद देते रहा करें।
आदरणीय भाई तिलक राज कपूर जी
हटाएंआपने सही कहा ऐसे आयोजन दुर्लभ होते हैं ।भाई पंकज सुबीर साहब को सफल आयोजन के लिए बधाई।
रहज़नी और रहबरी वाले शेर में मुझे तोआपका ऊला भी बहुत अच्छा लग रहा है।
आशीर्वाद देते रहा करें।
दोस्ती का मुक़ाम जिसमें दुश्मनी जागी हुई हो और दोस्ती सोई हुई…… कितना ख़तरनाक़ सच। बहुत सच्चा शेर,,,सुन सुना पाती नहीं मेरी सदी सोई हुई… बहुत बहुत सुन्दर शेर इस सुन सुना पाने ने सदी के न सुन पाने को और प्रभावी बना दिया है जिससे शेर आम बोलचाल की भाषा मे कही बात सा लग रहा है, काव्य में जब ऐसे शब्द आते हैं तो स्वत: ही रूप निखार जाता है कविता का।
जवाब देंहटाएंहाँ, पहुँच कर ही उसे मंज़िल पे मिलता है सुकून , राह में देखी नहीं दीवानगी सोयी हुई। ……दीवानगी की परिभाषा और पैमाना है ये शेर। वो दीवानगी ही क्या जो सो जाये फिर वो दीवानगी किसी भी मंज़िल की हो कोई फ़र्क़ नहीं। ये शेर तो वक़्त को संभल कर रख लेना होगा, कभी दुष्यंत कुमार का शेर "कौन कहता है आसमान में सुराख़ नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों" कोई भूल जाये तो इस शेर को पढ़ लें।
बाग़ में फूलों वहशत की गोली खा गयी,उफ़ शेर अपने विस्तृत मायने लिए हुए खौफनाक सच्चाई बयां कर रहा है। फिर अचानक जाग उट्ठी नग्मगी सोयी हुई … वाह वाह कितना नाजुक शेर बहुत ही सुन्दर।
किस किस का जिक्र करे पूरी ग़ज़ल बाकमाल है बहुत बहुत बधाई दिविज जी को। बस इक ख्याल मन में आ रहा है इतनी लम्बी ग़ज़ल और एक शायर बहुत ………… है। हा हा हा, हैकिंग आती तो मेरे जैसे चार इस एक ग़ज़ल से तरही में हिस्सा ले लेते और शायर कहलाये जाते सो अलग। खैर ये तो मज़ाक था बहुत ही बहुत सुन्दर ग़ज़ल दिविज जी को एक बार फिर बधाई।
सागर जी ने बेहतरीन मतला दिया अपनी ग़ज़ल को बहुत सुन्दर एक नया लफ्ज़ सीखने को मिला "आश्ती " शुक्रिया सागर साहब।
मैकदा सुनसान था ....... ये शेर बहुत से मायने समेटे हैं … जैसे जावेद अख्तर जी कहते हैं शायरी मे किसी लफ़्ज के माने बस वो ही नहीं हुआ करते जो पढ़ने में आते हैं शायर एक लफ्ज़ से कई इशारे करता है और शायरी मे मैक़दे का मतलब ख़ुशी ,जिंदगी ,रेस्ट्रिक्शन्स आदि भी होता है। सोई हुई जिंदगी के हालत बयां करता खूबसूरत शेर।
हमगमी के सोने वाला शेर कमाल है सच हमगमी का सोना ही खुद में एक बड़ा गम है। बहुत ही अच्छी ग़ज़ल सागर जी शुभकामनाएं।
एक अदब के साथ भँवरे बाग़ …… वाह वाह भँवरे और अदब के साथ वाह विनोद जी कमाल शेर कहा।
धूप, बारिश ,नाव ,किस्से। …… बेचता था स्वप्न वो.……बहुत ही सुन्दर। .... मत पठाखे तू बजा …
नए नए माता पिता बने अभिभावकों का शेर मालूम होता है जो अपना लड़कपन छोड़ कर अब जिम्मेदारी समझ रहें हैं। खूब। यूँ तो विनोद जी के सभी शेर अपनी खूबसूरती के चलते नज़र खींच रहें हैं पर गिरह वाले शेर में अपनी ही चाँदनी को मोगरे की छवि के साथ घुला देख कर चाँद का चौंधियाना कमाल लगा वाह वाह खूब शेर विनोद जी बहुत बहुत शुभकामनाए।
शिवना के सम्मान समारोह में पुरुस्कृत और शिरकत करने वाले,व जिनकी किताबों का विमोचन हुआ उन सभी साहित्यकारों को बहुत बहुत शुभकामनाएं।
पारुल जी , सोच के साथ ईमानदारी की है बाकी कुछ नहीं । अभी भी ग़ज़ल में खुद को नया मानता हूँ । इन सब के बावजूद आप सभी का इतना स्नेह मिला यह सौभाग्य की बात है । ग़ज़ल पसंद आयी ,आपने इस नए रचनाकार का हौसला बढ़ाया ,आपका बहुत बहुत धन्यवाद । सादर नमस्ते
हटाएंआदरणीय पारुल सिंह जी
हटाएंमेरी ग़ज़ल पर समीक्षात्मक और उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार।आपने समय निकाल कर इस लंबी ग़ज़ल को पढ़ा और बहुत से शेरों को क्वोट भी किया। दुष्यंत जी के एक शेर के साथ मेरे शेर की तुलना! कहाँ मैं और कहाँ ये मुकाम...अल्ला अल्ला।
शुक्रिया।
द्विज जी की हर ग़ज़ल में कुछ शे’र बेहद अच्छे होते ही होते हैं। "छटपटा कर मर गया....", "अब मज़ा देते हैं..", "फिर उमड़ पाई न..." जैसे शे’र ये दिखाते हैं कि वो किस पाये के शाइर हैं। उन्हें बहुत बहुत बधाई इस शानदार ग़ज़ल के लिए।
जवाब देंहटाएंधर्म प्रा जी हौसला अफ़ज़ाई के लिए शुक्रिया।
हटाएंभाई धर्मेन्द्र जी
हटाएंहिम्मत बढ़ाने के लिए आभारी हूँ।
सागर साहब को बहुत बहुत बधाई इस ग़ज़ल के लिए।
जवाब देंहटाएंविनोद जी ने बहुत अच्छे शे’र कहे हैं। उन्हें बधाई इस ग़ज़ल के लिए।
जवाब देंहटाएंहौसला आफजाई के लिए शुक्रिया धर्मेन्द्र जी ।
हटाएंकार्यक्रम की सफलता के लिए सुबीर जी एवं शिवना प्रकाशन को बहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंअरे वाह विनोद जी के शेर तो लाजवाब है
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत धन्यवाद संजय जी ।
हटाएंसबसे पहले तो पूरी शिवना टीम और विशेषतःपनकज जी को हार्दिक बफहाय एक सफल वार्षिक आईजन के लिए। मुबारकां है जी ढेर सारी।
जवाब देंहटाएंअब ग़ज़लकारों पर आते हैं-द्विज जी को बधाई के साथ शुक्रिया इतने खूबसूरत अशआर कहने के लिए। "हड़बड़ी सोई हुई वाला शेर संग लिए जा रही हूँ।ढेरों दाद क़ुबूल करें।
सागर साहब के मंजे हुए अशआरों के नाम ढेरी सारी दाद क़ुबूल करें।
विनोद जी की ग़ज़ल भी खूब हुई हर। हार्दिक बधाई स्वीकार करें विनोद जी।
ढेर सारी तालियां और दाद ही दाद तीनो कलमकारों के लिए
पूजा जी , हौसला आफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया । आप सभी को पसंद ग़ज़ल आयी तो मेरा लिखना सफल हो गया । सादर नमस्ते
हटाएं*हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएं*पंकज जी
*आयोजन
इन्हें कृपया यूं पढ़ें। typing mistakes के लिए मुआफ़ी चाहती हूँ
सादर
पूजा
जैसाकि विदित है आदरणीय पंकजभाईजी, आयोजन की सफलता की सूचना मिल गयी थी, लेकिन उस वक्त मैं प्रवास पर होने के कारण लिखित बधाई दर्ज़ नहीं करा पाया था.
जवाब देंहटाएंअनेकानेक बधाइयाँ. आपकी तथा आपके सहयोगियों की संलग्नता और आवश्यक समर्पण के आलोक में आयोजन का सफल होना अवश्यंभावी ही था. सभी शुभचिंतक मात्र सूचित होना चाहते थे.
आजके ग़ज़लकारों में आदरणीय द्विज जी की ग़ज़ल पर कुछ कहना उचित नहीं है. इस तथ्य को तो आपने स्वयं ही जाहिर कर दिया है. हम द्विज जी को बस सुन रहे हैं.
आदरणीय सागर स्यालकोटी जी को पहली बार पढ़ रहा हूँ. किन्तु, आपकी शख़्सियत के बारे में सुना अवश्य है. इस मंच के माध्यम से परिचित हुआ. आभार
भाई विनोदजी की ग़ज़ल आपके लगातार अभ्यासी होने का सुन्दर परिणाम है. ’बेचता था स्वप्न..’ वाला शेर जिस गहराई की मांग करता है, विनोदजी ने उसे निराश नहीं किया है. हृदय से शुभकामनाएँ.
तरही मुशायरा अपनी त्वरा में है. इसकी विशेष बधाई..
भाई सौरभ जी
हटाएंमुझे आपकी टिप्पणी समझ नही आई।
'कुछ कहना उचित नही है'
आदरणीय द्विजभाईजी, मेरे कहने का आशय यही है कि आपकी ग़ज़लों से हम प्रेरणा लेते रहे हैं. इन पर मेरे जैसा कोई कुछ कहे भी तो क्या कहे ? जब सीखना ध्येय हो तो बस सुनना चाहिये. यह मेरा मानना रहा है.
हटाएंआपको मेरे निवेदन का अर्थ पूछना पड़ा यह मेरे कथन की असंप्रेषणीयता ही हुई.
सादर
प्रिय भाई सौरभ जी
हटाएंयह आपके कथन की असम्प्रेषणीयता नहीं है
मेरी अपनी समझ का फेर था जो आपके उत्तर से ठीक हो गया है।
सौरभ जी , आप का स्नेह है । निरंतर सीखना मेरा ध्येय है । हौसला आफजाई के लिए शुक्रिया । प्रणाम
जवाब देंहटाएंआदरणीय सागर सियालकोटी और प्रिय भाई विनोद कुमार पांडेय जी को उनकी खूबसूरत ग़ज़लों के लिए हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंआदरणीय सागर सियालकोटी और प्रिय भाई विनोद कुमार पांडेय जी को उनकी खूबसूरत ग़ज़लों के लिए हार्दिक बधाई।
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