मित्रों दो दिन जब तरही की अगली पोस्ट नहीं लगी तो पाठक चिंतित हो गये कि क्या हो गया अचानक । किन्तु चिंता की कोई बात नहीं है असल में हुआ ये है कि सामान्य तरही में हम दो दिन छोड़ कर ही पोस्ट लगाते रहे हैं । चूंकि बहुत दिनों के बाद कोई रेगुलर तरही हो रही है इसलिये पिछली आदतें याद नहीं रही । खैर । तो बात ये भी कि 19 जनवरी के कार्यक्रम की विध्वित घोषणा हो चुकी है। और कुछ लोगों के आने की सूचना भी मिल चुकी है। कुछ लोगों ने अपनी असमर्थता जताई है। अभी तक की प्राप्त सूचना के अनुसार वंदना अवस्थी जी, गौतम राजरिशी, अंकित सफर आदि पहुंच रहे हैं।
नव वर्ष तरही मुशायरा
मोगरे के फूल पर थी चांदनी सोई हुई
इस बार बहुत ही नाज़ुक ग़ज़लें मिली हैं। शायद मिसरे का असर है। बहुत सुंदर शेर निकाले गये हैं इस बार। हालांकि मुझे अभी भी ऐसा लगता है कि कई सुंदर काफिये छूट गये हैं और यदि सब कुछ ठीक रहा तो भभ्भड़ कवि उन छूटे हुए काफियों पर ही ग़ज़ल कहेंगे इन्शाअल्लाह । आज हम दो नौजवान शायरों की दिलकश ग़ज़लें सुनने जा रहे हैं । दोनों को एक साथ लगाने के पीछे एक कारण है। कारण ये कि दोनों ग़ज़लें मानो एक दूसरे की ध्वनि से ही गूंज रही हैं। मानो जहां एक छोड़ रहा है वहां से दूसरा उठा रहा है। अंकित और दिगंबर दोनों ही महत्तवपूर्ण शायर हैं और दोनों ही कुछ अलग करने में विश्वास रखते हैं। तो आइये सुनते हैं दोनों की ग़ज़लें।
दिगंबर नासवा
कुदरती एहसास है या जिंदगी सोई हुई
बर्फ की चादर लपेटे इक नदी सोई हुई
कुछ ही पल में फूल बन कर खिलखिलाएगी यहाँ
कुनमुनाती धूप में कच्ची कली सोई हुई
रात भर आँगन में पहरा जान कर देता रहा
मोगरे के फूल पर थी चाँदनी सोई हुई
थाल पूजा का लिए तुम आ रही हो दूर से
आसमानी शाल ओढ़े जागती सोई हुई
यूं भी देखा है कभी इस प्रेम के संसार में
जागता प्रेमी मिला और प्रेयसी सोई हुई
फेस-बुक के शोर में सब इस कदर मसरुफ हैं
ब्लौग पे लगता है जैसे शायरी सोई हुई
कुछ कटे से हाथ, कुछ साँसें, सुलगती सिसकियाँ
संग-मरमर ओढ़ कर मुमताज़ थी सोई हुई
मतले से ही ग़जल़ को क्या खूब उठाया गया है। मौसम का पूरा चित्र सामने आ गया है। बर्फ की चादर लपेटे सो रही नदी का बिम्ब बहुत सुंदर बना है। और फिर गिरह का शेर भी कुछ अलग बन गया है। मिसरा ए तरह को पूरी तरह से अपने में समेटे हुए। थाल पूजा का लिये आने में इस ओढ़े हुए आसमानी शाल की तो बात ही क्या है, एक प्रतीक ही सब कुछ कह गया है। अब बात अंतिम शेर की, ताजमहल का पूरा का पूरा चित्र खींच दिया है उस एक शेर में । मुमताज के सोने का दृश्य मानो सामने ही आ गया है। बहुत ही सुंदर है ग़ज़ल। वाह वाह वाह ।
अंकित सफ़र
नीम करवट में पड़ी है इक हँसी सोई हुई
देखती है ख़ाब शायद ये परी सोई हुई
है बहुत मासूम सी जब तक है गहरी नींद में
परबतों की गोद में ये इक नदी सोई हुई
रात की चादर हटा जब आँख खोली सुबह ने
मोगरे के फूल पर थी चाँदनी सोई हुई
कोई आहट से खंडर की नींद जब है टूटती
यक-ब-यक है जाग उठती इक सदी सोई हुई
अपनी बाहों में लिये है आसमाँ और धूप को
इक सुनहरे ख़ाब में है ये कली सोई हुई
एक गहरी साँस में निगलेगा पूरी ही ज़मीं
प्यास शायद है समंदर की अभी सोई हुई
ख़ाब में इक ख़ाब बुनते जा रही है आदतन
नींद के इस काँच-घर में ज़िन्दगी सोई हुई
अहा क्या कमाल की गिरह बांधी है जीओ । क्या कमाल । गिरह का शेर हाथ पकड़ कर अपने साथ देर तक रोक रहा है। और उसके ठीक बाद का ही शेर और कमाल का है। आहट, खंडहर और सदी। ये तीन शब्द ही अपने आप में पूरी कहानी होते हैं। इन तीनों को लेकर कमाल का शेर बुना है। कमाल। और अंतिम शेर भी छायावाद के प्रभाव को लेकर रचा गया है । वैसे ये पूरी की पूरी ग़ज़ल ही छायावादी ग़ज़ल है। इसमें सारे प्रतीक छायावाद के हैं। नींद के इस कांच घर में जिन्दगी सोई हुई में खाब में खाब बुनने की बात खूब है। वाह वाह वाह । कमाल की ग़ज़ल ।
तो आज की दोनों ग़ज़लों का आनंद लीजिये । और दाद देते रहिये। कुछ लोगों को टिप्पणी करने में परेशानी आ रही है । कृपया बताएं कि आप कौन से ब्राउज़र का उपयोग कर रहे हैं क्योंकि मोजि़ला में ये समस्या नहीं आ रही है। यदि हो सके तो मोजिला का प्रयोग करें। दाद देते रहें। मिलते हैं अगले अंक में।
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जवाब देंहटाएंबेहतरीन गजलियात। दोनों शायरों को बधाई।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया शाहिद जी ...
हटाएंbahut umda rachna
हटाएंकुछ ही पल में फूल बन खिलखिलाएगी....... फेसबुक के शोर में .......वाह वाह बहुत सुन्दर और कुछ कटे से हाथ....... ओह! ताज के दोनों पहलू,ताजमहल की मुकम्मल दासतां एक शेर में कह दी गई। दिगम्बर नासवा जी को सुन्दर गज़ल की ढेरों बधाईयां।
जवाब देंहटाएंरात की चादर हटा..वाह,खूबसूरत शेर......एक गहरी सांस में निगलेगा...बहुत गहरी सोच वाह..अंकित सफर जी को इस खूबसूरत गज़ल के लिए बधाईयां।
आभार आपका पारुल जी ...
हटाएंवाह कमाल की गज़लें. दोनों शायरों ने इस मुश्किल रदीफ़ और काफिये के साथ भी इतने अच्छे शेर कहे हैं.
जवाब देंहटाएंदिगंबर जी का मतला बहुत बढ़िय है और गिरह तो लाजवाब लगाईं है. मुमताज वाला शेर बहुत खूबसूरत हुआ है. "कच्ची कली" और "आसमानी शाल ओढ़े.. " वाले शेर भी कमाल के हैं. दिगंबर जी को मुबारकबाद.
अंकित की ग़ज़ल तो हमेशा की तरह बेहद नाज़ुक और शब्दों का खूबसूरत चयन..
बहुत सुंदर मतला. गिरह बेहद सुन्दर लगी है. मिसरा ऊला और सानी जैसे एक दूसरे के लिए ही बने हों. "प्यास शायद है समंदर की अभी सोई हुई" बहुत सुंदर शेर.."नींद के इस कांच घर में ज़िन्दगी सोई हुई.." वाह. "है बहुत मासूम सी जब तक है गहरी नींद में.." बहुत सुंदर शेर.. "कोई आहट से.." और "इस सुनहरे खाब में .." बहुत सुंदर शेर हुए हैं.. अंकित की दिली दाद और मुबारकबाद.
राजीव जी ... तहे दिल से शुक्रिया ... यही खासियत है इस गुरुकुल की ...
हटाएंदोनों ही शायरों ने कमाल के शे’र निकाले हैं। दिगंबर जी ने मतले से ही बाँध लिया तो अंकित जी ने गिरह से जो बाँधा कि वाह वाह अपने आप निकल पड़ी। बहुत खूब भाई बहुत खूब। दोनों शायरों को इन शानदार ग़ज़लों के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंसज्जन जी ... बहुत आभार ...
हटाएंपंकज जी धन्यवाद
जवाब देंहटाएंअँधा क्या चाहे ?1 आँख ,आपने दो दो बख़्श दी। एक साथ 2 ग़ज़लें। भाई वाह।
पहले दिगंबर जी से रूबरू होते हैं। बड़ी खूबसूरती से आपने कुदरत को अपने कहन में गूँथा है।हर शेर एक नयी तस्वीर खींचता सा दिखता है। रही बात फेसबुक की तो जनाब वहाँ शोर के साथ आप पाएंगे insomniacशायरी। ख़ैर.....उम्दा ग़ज़ल के लिए दिली दाद क़ुबूल करें।
सादर
पूजा भाटिया
पूजा जी बहुत शुक्रिया ...
हटाएंदिगम्बर जी ने बहुत ही खूबसूरत शेर कहें हैं।
जवाब देंहटाएं"बर्फ की चादर लपेटे .... " वाह, क्या खूब बिम्ब बाँधा है। गिरह भी उम्दा लगाई है, और उसके बाद वाला शेर कतई जानलेवा है "थाल पूजा का लिए ...." लाजवाब। आखिरी शेर में क्या मंज़र उकेरा है। वाह वाह
आपकी ग़ज़ल कहर ढा रही है अंकित जी ... आभार आपका ...
हटाएंअंकित जी
जवाब देंहटाएंआपने मिसरे को कमाल गिरह में बांधा है पढ़ने वाले भी संग हो लिए हैं।
एक बेहतरीन ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल करें।
सादर
पूजा भाटिया
गुरुदेव आपने इतनी गहराई से इन शेरो को पढ़ा और समझा है की मुझे भी अब लग रहा है वाकई अच्छी ग़ज़ल लिख दी ...
जवाब देंहटाएंऔर अंकित जी ने तो जैसे हर शेर में वाह वाह मुंह से खींच ली ... मतले ने ही बाँध लिया और गिरह ने आगे नहीं जाने दिया बहुत देर तक ... हर शेर इतनी मजबूती से बाँधा है की सुभान अल्ला ...
जिन चिंतिति पाठकों का जिक्र पंकज पोस्ट के आरम्भ में किया है उनमे से एक मैं भी था , अब जब तरही शुरू हो चुकी थी तो पूछना लाजमी था कि अगली पोस्ट कब आएगी। खैर साहब तरही की दूसरी पोस्ट आई और फिर से ये बात सिद्ध हुई कि इंतज़ार का फल मीठा होता है।
जवाब देंहटाएंये दोनों मेरे बहुत प्रिय युवा शायरों की फेहरिश्त में शुमार शायर हैं और दोनों ही अपनी अपनी कला में माहिर हैं ,एक दम अनूठे, इन दोनों को पढ़ना माने वहाँ पहुंचना है जहाँ रवि भी नहीं पहुँच पाता।
दिगंबर जी की ग़ज़ल जैसे "कुनमुनाती धूप में कच्ची कली सोयी हुई " , उस पर तरही की बेजोड़ गिरह जैसे सर्दियों के मौसम में गरमा गरम दाल बाटी के संग चूरमा - अहा हा - और फिर जानलेवा मकता - ताजमहल मुमताज पर बेजोड़ शेर -फेसबुक वाले शेर में तो आपने मेरे दिल की बात कह दी -- जियो दिगंबर भाई जियो।
अंकित ने अपनी ग़ज़ल से बता दिया है कि अब उसने अपने आलस्य को छोड़, झाड़ पौंछ कर अंगड़ाई ले ली है और मैदान में ताल ठोक कर उतर आया है। गिरह के शेर पे तालियां बजा कर हाथ लाल किये जा था कि खंडर वाले शेर ने सीधा आँखों में आँखे डाल के पूछा मियां बोलो अब क्या बजाओगे ? "नीम करवट ", और "नींद का कांच घर" अंकित की ग़ज़लों की खूबियाँ हैं - जियो अंकित - बहुत आगे जाओगे --पक्का।
जिनकी गजलें पढ़ कर ग़ज़ल सीखी उन्ही नीरज जी से गजल की तारीफ़ ... तहे दिल से शुक्रिया ...
हटाएंकुदरती एहसास है या जिंदगी सोई हुई
जवाब देंहटाएंबर्फ की चादर लपेटे इक नदी सोई हुई .....
इस से खूबसूरत मतला होना बहुत कठिन है। आ. दिगंबर जी की गजल में एक से बढ़कर एक शे'र हुए हैं लेकिन इस मतले की बात ही अलग है। दिल से वाह वाह अभी तक निकल रही है .... मुमताज़ वाला शे'र भी लाजवाब है। ऐसी बेहतरीन ग़ज़ल मेरे जैसे पाठक को पढ़ने को मिली, दिली शुक्रिया आ. पंकज जी।
अंकित जी की ग़ज़ल का भी क्या कहना ... गिरह का शे'र और खंडहर वाले शे'र में तो अंकित जी ने कलम ही तोड़ कर रख दी है। क्या सोच है, और क्या पिरोया है शब्दों को, दिल झूम उठा है। वाह वाह वाह .....
दिनेश जी ... बहुत शुक्रिया ...
हटाएंवाह वाह बहुत सुन्दर गज़ले. क्या कहने बहुत खूब. दिगम्बर जी एवं अंकित जी दोनों को हार्दिक बधाई .
जवाब देंहटाएंशुक्रिया नीरज जी ,,,
हटाएंमतलब ये कि मेरे जैसे ’चिंतक’ और भी हैं !.. ’शुभ’ जैसा शब्द चाहे तो ’चिंतक’ के पहले ऐड कर लें.. मैं अपनी बड़ाई अब स्वयं कैसे करूँ ?.. :-))
जवाब देंहटाएंपंकज भाईजी, सब कुछ अच्छा-अच्छा चल रहा हो न, तो ये दिल चाहता है कि सब कुछ ऐसे ही अच्छा-अच्छा चलता रहे. बस यही प्रत्याशा ’चिंतक’ बना देती है.
थाल पूजा का लिये तुम आ रही हो दूर से
आसमानी शाल ओढ़े जागती सोयी हुई
कुछ कटे से हाथ, कुछ साँसें, सुलगती सिसकियाँ
संगमरमर ओढ़ कर मुमताज़ थी सोयी हुई
मतले के साथ-साथ इन दो शेरों ने अपने होने से मुग्ध कर दिया !
दिगम्बर भाईजी की कहन के विन्दु उनके आस-पास या अपने संसार के अनुभवों से लिये गये तो होते ही हैं. आपकी ग़ज़लों से गुजरते हुए माहौल बहुत अपना-अपना-सा लगता है. यही आपके कहे की विशिष्टता है. इसी आलोक में मैं इस शेर को देख रहा हूँ.
फेस-बुक के शोर में सब इस कदर मसरूफ हैं
ब्लॉग प् लगता है जैसे शायरी सोयी हुई..
बहुत खूब, भाईजी. दिलसे दाद कुबूल करे, इस प्रस्तुति पर.
आजके दूसरे शायर हैं, अंकित भाई सफ़र.
आपके वर्तमान और उससे हो रहे दैनिक अनुभवों का लाभ आपकी ग़ज़लों को कितना मिल रहा है, यह मतले से ही भान हो जाता है. साथ ही, इस शेर का ज़वाब नहीं है..
अपनी बाहों में लिये है आसमां और धूप को
इक सुनहरे ख़ाब में है ये कली सोयी हुई ..
बहुत खूब, अंकित भाई !
है बहुत मासूम-सी जबतक है गहरी नींद में
परबतों की गोद में ये इक नदी सोई हुई - .. . अय हय हय ! वाह !!
और क्या ग़िरह हुई है ! सुब्ह की अनुभूति को शब्द मिल गये हैं.. !!
अलबत्ता, खंडर जैसे शब्द के स्थान को लेकर मैं तनिक उलझ रहा हूँ, अंकित भाई.
लेकिन जिस सहज ढंग से आपने ग़ज़ल की मुलामियत को निभाया है, वह रोमांचित कर रहा है.
शुभ-शुभ
सौरभ जी ... आपकी तारीफ स सीना चौड़ा हो गया ...
हटाएंफेसबुक के शोर में....और संगमरमर ओढ़कर.. दोनों शेर अद्भुत है।नासवा जी बधाई।
जवाब देंहटाएंअंकित भाई क्या मसूमियत से भरी गजल है।
पर्बतों की गोद में...
एक सदी सोई हुई...
प्यास समन्दर की
और कांचघर वकई परिपक्व से भरे खूबसूरत प्रयोग है ।कमाल की गिरहें है।
दोनों शायर कमाल है।
आभार प्रकाश जी ...
हटाएंवाह! वाह! वाह! दोनों पंख से नाजुक और साथ ही पुख़्ता अश्आर! सुभानअल्लाह! नया साल मुबारक हो सबको! फिर आती हूँ।
जवाब देंहटाएंआभार शार्दूला जी ...
हटाएंजी पंकज जी ,बिलकुल सही कह रहें है आप मै भी चिंतित हो रहा था कि इतनी शानदार शुरुआत के बाद ब्रेक कैसा लग गया । खैर आप आएं और दो श्रेष्ठ ग़ज़लकारों की बेहतरीन शेर हमें पढने को मिली आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
जवाब देंहटाएंदिगंबर जी मतले से ही क़यामत ढा रहें हैं । कुदरती एहसास और जिंदगी सोई हुई का बढ़िया तारतम्य बैठाया आपने । जागता प्रेमी और प्रेयसी सोई हुई, थाल पूजा का ,फेसबुक सब शेर कमाल के हैं । बस पढता ही गया आपको । बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें ।
दूसरे शायर अंकित जी को भी मुशायरों में पहले भी पढ़ चुका हूँ । भाई कमाल करते हैं । आज भी आपने मन-प्रसन्न कर दिया । वाकई यही शायरी है । दूसरे शेर में नदी की मासूमियत बड़े ही सुन्दर ढंग से शेर में पिरोया आपने । समंदर के प्यास वाला शेर भी दिल में बस गया । हर शेर काबिलेतारीफ अंकित भाई । मुबारक हो ।
पंकज जी , इस प्रकार के नए साल का बेहतरीन मुशायरा । हार्दिक बधाई । प्रणाम
विनोद जी शुक्रिया ...
हटाएंबेहद ख़ूबसूरत गिरह लगाई है दिगंबर जी ने वाह ,,और आख़री शेर का तो जवाब ही नहीं बहुत उम्दा बधाई हो दिगंबर जी
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा गिरह है अंकित की भी ,,इस के अलावा खंडर वाले शेर में ज़बर्दस्त मा’नी पिन्हाए हैं अंकित ने , ख़ुश रहो बेटा कामियाबी की सारी बुलंदियाँ हासिल करो
आभार इस्मत जी ...
हटाएंआज की दोनों गज़लों मनमोहक हैं. जहां अंकित का यह शेर:
जवाब देंहटाएंकोई आहट से खंडर की नींद जब है टूटती------ गहरी सोच को दर्शाता है वहीं दिगम्बर का
फ़ेसबुक ---- वर्तमान की त्रासदी का खुलासा कर रहा है.
दोनों शायरों को असीम शुभकामनायें
नमन राकेश जी को ..
हटाएंवाह वाह वाह.. बहुत उम्दा
जवाब देंहटाएंदिगम्बर नासवा जी जिस तरह प्रतीकों का प्रयोग करते हैं, वो गजल का हुस्न बन जाता है। मुबारकबाद कुबूल फरमाएं
अंकित सफर साहब की गजल के हर शेर पर दिल से दाद, बहुत उम्दा गजल है
'मोगरे के फूल पर थी चांदनी सोई हुई' जितना खूबसूरत मिसरा है ग़ज़ल की ज़मीन के लिहाज़ से उतना ही कठिन लग रहा था लेकिन जिस तरह शाहिद भाई ने शुरुआत की उससे लगने लगा कि शायर भी सिकन्दर से कम नहीं होता। रास्ते की कठिनाईयों को पार कर वो अपना परचम फहराने का प्रयास पूरी गंभीरता से करता है और यही गंभीरता जन्म देती है ऐसे खूबसूरत अश'आर को जो आज की व पिछली पोस्ट में प्रस्तुत हुए। ज़मीन की कठिनाईयों को पार कर आये ये शेर संदर्भ कायम करेंगे।
जवाब देंहटाएंतिलक जी का आभार ...
हटाएंशुक्रिया, आप सब की मुहब्बत के लिए।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत और अविस्मरणीय पोस्ट।
जवाब देंहटाएंदोनों युवा शायरों की प्रतिभा साफ़ साफ़ झलाक रही है इन ग़ज़लों में। अविस्मरणीय पोस्ट इस लिए कह रहा हूँ क्योंकि इन ग़ज़लों का एक एक शेर शेरे बब्बर है।दोनों शायरों को हार्दिक बधाई।
द्विज जी ... आपका आभार ...
हटाएंबहुत खूबसूरत और अविस्मरणीय पोस्ट।
जवाब देंहटाएंदोनों युवा शायरों की प्रतिभा साफ़ साफ़ झलाक रही है इन ग़ज़लों में। अविस्मरणीय पोस्ट इस लिए कह रहा हूँ क्योंकि इन ग़ज़लों का एक एक शेर शेरे बब्बर है।दोनों शायरों को हार्दिक बधाई।
बहुत उम्दा गज़लें- आनन्द आ गया..
जवाब देंहटाएं