दीपावली को लेकर जबरदस्त उत्साह कल टिप्पणियों में देखने को मिला । ऐसा लगा कि मानो सचमुच ही कहीं कोई सुतली बम फोड़ कर शुरुआत हुई हो । आखिरकार है भी तो दीवाली स्पेशल । इस बार बहुत अच्छी ग़जल़ें मिली हैं सबने बहुत मन से दीपावली की तरही की ग़ज़लें कही हैं । इस बार जो चीज सबसे मुश्किल थी वो थी मिसरे के साथ रदीफ का सामंजस्य तथा तादात्म्य स्थापित करना । कुछ ऐसा कि रदीफ मिसरे का हिस्सा रहे उससे अलग न हो । और सबसे कठिन था मतले में दोनों मिसरों में ये तादात्म्य स्थापित करना । क्योंकि हर सू को आपको अलग अलग दो मिसरों में एक के बाद बांधना है । ऐसा ही एक मतला जो मुझे इस प्रकार के उदाहरणों पर हमेशा याद आता है जिसमें लगभग इसी प्रकार के रदीफ को बहुत सुंदरता के साथ जनाब अमीर मीनाई ने बांधा था ''सरकती जाये है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता-आहिस्ता, निकलता आ रहा है आफ़ताब आहिस्ता-आहिस्ता'' । मुश्किल होती है इस प्रकार के रदीफों को मतले में बांधने में । इस बार लोगों ने इस मुश्किल से भी पार पाया है ।
( मधुबनी में श्री गणेश, लक्ष्मी तथा सरस्वती )
तो आइये आज सुनते हैं दो और शायरों को । आज हमारा ये तरही मुशायरा एक ही शहर में केन्द्रित हो रहा है । वो शहर जो हिंदी साहित्य के लिये काबा, काशी की तरह महत्व रखता है । और जहां के अमरूद भी बहुत प्रसिद्ध हैं ( मैंने आज तक नहीं खाये, जबकि मैं अमरूदों का जबरदस्त खाऊ प्रशंसक हूं । ) जी हां सही समझा आज ये मुशायरा गंगा और यमुना के संगम की सैर कर रहा है । आज दोनों शायर इलाहाबाद के हैं श्री सौरभ पांडे जी तथा श्री शेषधर तिवारी जी । तो आइये आनंद लेते हैं इनकी ग़जल़ों का ।
श्री शेषधर तिवारी जी
श्री शेषधर तिवारी जी का नाम हमारे तरही मुशायरों के लिये कोई नया नाम नहीं है । वे पूर्व के मुशायरों में भी आते रहे हैं और छाते रहे हैं । वे इलाहाबाद के रहने वाले हैं और www.thatsme.in नाम की एक सोशल वेब साइट चलाते हैं । आइये उनसे उनकी ग़ज़ल सुनते हैं ।
दिल के ज़ज्बात यूँ दिखे हर सू
लोग हंस कर गले मिले हर सू
आज भी है सवाल, सहरा में
आब ही आब क्यूँ दिखे हर सू
ज़िंदगी मुस्कुरा नहीं पाती
चश्मे नम लोग दिख रहे हर सू
कोई हैवान क्यूँ बना होगा
नेक इंसान पूछते हर सू
ख्वाहिशें बढ़ गयी हैं अब इतनी
आज ईमान बिक रहे हर सू
दिल कई आज रात टूटे हैं
लोग अफ़सूरदा दिखे हर सू
गुम कहाँ हो गयी मुहब्बत सब
आज दिखते हैं दिलजले हर सू
दुःख भरे दिन को कह खुदा हाफ़िज़
''दीप खुशियों के जल उठे हर सू''
वाह वाह वाह उस्तादाना अंदाज़ में कहे हैं कई सारे शेर । ''जिंदगी मुस्कुरा नहीं पाती, चश्मे नम लोग दिख रहे हर सू'' इस शेर का तो जवाब नहीं । मृग मरीचिका को बहुत सुंदर तरीके से बांधा है आब ही आब क्यूं दिखे हर सू में । गिरह भी बहुत सुंदरता से और नये तरीके से बांधी है । ख़ूब ।
श्री सौरभ पाण्डेय जी
नैनी, इलाहाबाद के रहने वाले श्री सौरभ जी भी हमारे मुशायरे में पहली बार आ रहे हैं सो इनका संक्षिप्त सा परिचय । चेन्नै स्थित सॉफ़्टवेयर क्षेत्र की कई प्रतिष्ठित कम्पनियों में कार्यरत रहे। वर्ष 2006 में टेक्निकल हेड के तौर पर हैदराबाद स्थानतरित हुए। कोलकाता इकाई श्रेई सहज में नेशनल कॉर्डिनेटर के पद पर हैं। इस उत्तरदायित्त्व ने भारत सरकार की डिपार्टमेंट ऑफ़ इन्फॉर्मेशन टेक्नोलोजी के अंतर्गत चलायी जा रही अति महत्त्वाकंक्षी परियोजना नेशनल ई-गवर्नेंस प्लान को क्रियान्वित करने का अवसर दिया। इसी क्रम में ग्राम्य विकास मंत्रालय की कई परियोजनाओं के क्रियान्वयन का भी दायित्त्व है। विगत कुछ माह से मात्रिक और वर्णिक रचनाओं पर प्रयास कर रहे हैं बावजूद घोर कार्यालयी व्यस्तता के, अंतर्जाल के मंचों पर संलग्नता, साहित्यिक वातावरण से सानिध्य और जुड़ाव साहित्य-सेवा की सात्विक इच्छा साकार रूप ले सके.
ज़िंदगी खीझती लगे हर सू
लोग फिर भी निबाहते हर सू
दीप जलते हैं रौशनी के लिये
कालिमा बोझती उसे हर सू
सूख पानी गया है आँखों से
दीखती है नमी मुझे हर सू
शाख़ पे उल्लुओं को जो देखा
रौशनी झेंपती फिरे हर सू
रात भर चाँद पास सोता है
वो मगर ढूँढता दिखे हर सू
रोटियाँ कर रही उसे नंगा
शर्म की बात क्यों करे हर सू
ज़िन्दग़ी भी न थी यों आवारा
चाह की धूल क्यों उड़े हर सू ?
बात परवाज़ की कहो क्यों हो
परकटे बाज़ रह गये हर सू
तितलियाँ खुश दिखीं बहारों में
फूल ’सौरभ’ लुटा रहे हर सू
वाह वाह वाह सुंदर शेर कहे हैं सौरभ जी ने । रात भर चांद पास सोता है जैसा उम्दा शेर कहा गया है इस ग़ज़ल में तो बात परवाज़ की कहो क्यों हो जैसा सामयिक शेर भी है । तितलियां खुश दिखीं बहारों में मकते में अपने नाम को बहुत ही कलापूर्ण तरीके से बांधा है । सारे शेर सचमुच ही सौरभ लुटा रहे हैं । वाह खूब ।
तो आनदं लीजिये दोनों शायरों की इन बेहतरीन ग़ज़लों का और दाद देते रहिये । क्योंकि एक रचनाकार को हम उसकी रचना का सबसे अच्छा प्रतिफल सराहना ही दे सकते हैं । तो आनंद लीजिये और कल मिलते हैं कुछ और ग़ज़लों के साथ ।
वाह वाह.. कमाल की ग़ज़लें.
जवाब देंहटाएंशेषधर जी की गज़ल वाकई खूबसूरत अंदाज़ में कही गई है.
"आज भी है सवाल सहरा में.." क्या खूब शेर है.
"जिंदगी मुस्कुरा नहीं पाती.." पहले मिसरे ने ही मन मोह लिया.
"ख्वाहिशें बढ़ गईं..", "गम हो गई मुहब्बत सब." बहुत खूब. शेषधर जी को बहुत बहुत बधाई एवं धन्यवाद.
सौरभ पांडे जी को पहली बार पढ़ रहा हूँ. क्या खूबसूरत शेर कहे हैं! बहुत बढ़िया मतला और फिर ये शेर:
"सूख पानी गया है आँखों से..", "शाख पे उल्लुओं को जो देखा", "जिंदगी भी न थी यों आवारा" बहुत बढ़िया..
लेकिन "बात परवाज़ की कहो क्यों हो/परकटे बाज रह गए हर सू" और "रात भर चाँद पास सोता है/वो मगर ढूँढता दिखे हर सू" ये दो शेर तो लाजवाब हैं.
सौरभ जी, इस खूबसूरत गज़ल के लिए बहुत बहुत धन्यवाद और बधाई.
गुरूवर,
जवाब देंहटाएंतरही की दूशरी किश्त पर पहिली टिप्पणी देने का मौका मिला है।
आपने बहुत ही सटीक बात कही है दोनों ही गज़लें अपने बेहतरीन और जुदा से अश’आरों के लिये काबिल-ए-तारीफ हैं।
शेषधर तिवारी जी का शे’र बहुत पसंद आया :-
आज भी है सवाल सहरा में
आब ही आब क्यूँ दिखे हर सू
और यह भी
दुःख भरे दिअन को कह खुदा हाफिज
दीप खुशियों के जल उठए हर सू
इन्शा अल्लाह!!
सुअरभ जी ने तल्ख अंदाज में अपनी बात खूब कही है :
बात परवाज की कहो क्यों हो
परकटे बाज रह गये हर सू
कमाल कर दिया है इस शे’र में :
रात भर चाँद पास सोता है
वो मगर ढूँढता दिखे हर सू
तरही अपनी नई बुलंदियों की ओर अग्रसर है......
गुरूवर, एक जिज्ञासा है क्या इस तरही के समापन के बाद इसको पॉडकास्ट कर सकते हैं तो इन बेहतरीन शायरों से ही इन ऊम्दा गज़लों को सुना भी जा सके?
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
दोनों शायर के ग़ज़लियात बेहतरीन लगे ,
जवाब देंहटाएंशेष्धर जी का मक्ता लाज़वाब नज़र आ रहा है और
सौरभ जी का परकटे बाज़ रह गये हर सू ख़ूबसूरत बना है । बधाई।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंवाह...वाह...वाह...कितना भी करूँ बात बनेगी नहीं...सिर्फ ये कहूँगा के जिस तरही में :
जवाब देंहटाएंआज भी हैं सवाल सहरा में
आब ही आब क्यूँ दिखे हर सू
ज़िन्दगी मुस्कुरा नहीं पाती
चश्मे नम लोग दिख रहे हर सू
और
सूख पानी गया है आँखों से
दीखती है नमी मुझे हर सू
रात भर चाँद पास सोता है
वो मगर ढूंढता दिखे हर सू
जैसे कालजयी शेर आये हों उसकी कामयाबी की बात क्या सोचना वो तो कामयाब हो ही गया है. दोनों शायरों को मेरा आदाब और ढेर सारी दाद पहुंचा दें. ये ग़ज़लें ऐसी हैं जैसे दिवाली की रात ज़मीन को रौशनी से नहलाते हुए अनार...और क्या चाहिए. जय हो
नीरज
मधुबनी की पैंटिंग की अलग ही बात है!
जवाब देंहटाएंशेषधर जी को फेस बुक पर पढता रहता हूम कभी कभार,... अच्छे शे'र कहते हैं, अब यह शे'र ही देखें..की आज भी है सवाल सहरा में, आब ही आब क्यूँ दिखे हर सू...क्या गज़ब की बात कही है इन्होनें... बहुत बधाई फिर से तरही मे शरीक होने के लिये बहुत स्वागत है और बधाई इतनी खुब्सूरत ग़ज़ल के लिये..
सौरभ जी भले नये हों इस तरही के लिये मगर ग़ज़ल वाकई उस्तादों वाली है...बहुत ही बारीक़ शे'र के साथ तपती बात की है उन्होने एक शे'र मे की.. रोटियाँ कर रही उसे नंगा... बहुत ही तीखी बात की है ग़ज़ल के लहज़े मे ... बहुत बधाई सौरभ जी को भी.... खूब तालियाँ...
वेसे इलाहाबाद हमेशा लाज़वाब करता रहा है इस तरही को ...
अर्श
आब ही आब क्यूँ दिखे हर सू...
जवाब देंहटाएंश्री शेषधर तिवारी जी जब से सुना हूँ, इस बार इंतज़ार कर रहा था मैं. आज तडके वे मिल भी गए. बहुत खूब ग़ज़ल कहे.
बहुत बहुत बधाई! ख्वाहिशें बढ़ गयी है इतनी पर दाद कुबूल करें..!
श्री सौरभ पाण्डेय जी भी इलाहाबाद से हैं ये जानकार और ख़ुशी हुई. पहली मुलाकात में ही छा गए सर.
तितलियाँ खुश दिखी बहारों में....... वाह वाह क्या मक्ता है.
--
दिवाली की विशेष साज सज्जा पर तो मैं मोहित हुआ जा रहा हूँ.
आज तो मुशायरे की रवानी उफान पर है.दोनों फनकारों,जनाब शेषधर जी और जनाब सौरभ पाण्डेय जी ने कमाल के अशआर निकाले हैं.खास कर शेषधर जी का यह शेर: "आज भी हैं सवाल सहरा मेंआब ही आब क्यूँ दिखे हर सू" .और सौरभ जी का "रात भर चाँद पास सोता है,वो मगर ढूंढता दिखे हर सू" तो हासिले-महफ़िल है.
जवाब देंहटाएंjiyo allahabad :)
जवाब देंहटाएंआज तो इलाहाबाद छा गया ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही कमाल की गज़लों ला गुलदस्ता है ...
शेष धर जी को कई बार पढ़ा है और हर बार उनकी कलम का कायल हुवा हूँ ...
गुम कहाँ हो गई मुहब्बत सब ... या फिर जिंदगी मुस्कुरा नहीं पाती ... बहुत कुछ कह जाते हैं ...
सौरभ जी ने भी कमाल किया है बहुत ही उम्दा ... संवेदनशील शील शेर हैं सभी ...
रोटियां कर रही उसे नंगा .. या फिर सूख पानी गया है आँखों से ... बहुत ही गहरी बात कर गए ...
दोनों शायरों को बहुत बहुत बधाई इन लाजवाब गज़लों पे ... मुशायरा परवान चढ रहा है ...
गुरूवर,
जवाब देंहटाएंअपनी टंकण त्रुटियों के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ।
सविनय,
मुकेश कुमार तिवारी
HAR SHER PYARE HAIN...DIWALI KO JEEVANT KARANE WALE.. BADHAI..SHAYARON KO...
जवाब देंहटाएंपाठकों की सकारात्मक प्रतिक्रियाओं पर मैं नत हूँ, मुग्ध हूँ. सबसे बड़ी बात, पंकजजी ने मुझे मेरे ’बड़े भइया’ शेषधरजी के साथ बिठा कर बहुत मान दिया है. .. :-))
जवाब देंहटाएंसादर.. .
--सौरभ पाण्डेय, नैनी, इलाहाबाद (उप्र)
मधुबनी पेंटिंग देख के मन प्रसन्न हुआ:)
जवाब देंहटाएंदोनों ग़ज़लें खूबसूरत हैं.
शेषधर जी का ये शेर बहुत ही उम्दा है:
आज भी है सवाल सहरा में,
आब ही आब क्यूं दिखे हर सू
"जिन्दगी मुस्कुरा नहीं पाती ... " और "दुःख भरे दिन..." ये दोनों भी सुन्दर!
सौरभजी का "सूख पानी गया..." और "चाँद रात भर..." दोनों शेर पसंद आए.
सादर ...
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जवाब देंहटाएंॐ
जवाब देंहटाएंभाई श्री सौरभ पांडेय तथा भाई श्री शेषधर तिवारी जी की बेहतरीन रचनाओं के लिए उन्हें बहुत बहुत बधाई तथा निरंतर ऐसी बढ़िया रचनाएँ लिखते रहने के लिए मेरी शुभेच्छाएं । इन रचनाओं से दीपावली की ओर अग्रसर होते हुए जगमगाहट दूर दूर तक फ़ैल कर शुभ लाभ का मंगलकारी पैगाम फैला रही यह पोस्ट बेहद आकर्षक लग रही है . आप की मेहनत रंग लायेगी ये जानते हैं . सभी रचनाकार साथियों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं
स स्नेह , सादर ,
- लावण्या
आज की विशेष उपलब्धि दिखे ये शेर
जवाब देंहटाएंआज भी है सवाल, सहरा में
आब ही आब क्यूँ दिखे हर सू
ख्वाहिशें बढ़ गयी हैं अब इतनी
आज ईमान बिक रहे हर सू
दुःख भरे दिन को कह खुदा हाफ़िज़
''दीप खुशियों के जल उठे हर सू''
रात भर चाँद पास सोता है
वो मगर ढूँढता दिखे हर सू
रोटियाँ कर रही उसे नंगा
शर्म की बात क्यों करे हर सू
बात परवाज़ की कहो क्यों हो
परकटे बाज़ रह गये हर सू
तितलियाँ खुश दिखीं बहारों में
फूल ’सौरभ’ लुटा रहे हर सू
आज भी है सवाल, सहरा में
जवाब देंहटाएंआब ही आब क्यूँ दिखे हर सू
ज़िंदगी मुस्कुरा नहीं पाती
चश्मे नम लोग दिख रहे हर सू
ख्वाहिशें बढ़ गयी हैं अब इतनी
आज ईमान बिक रहे हर सू
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रात भर चाँद पास सोता है
वो मगर ढूँढता दिखे हर सू
रोटियाँ कर रही उसे नंगा
शर्म की बात क्यों करे हर सू
तितलियाँ खुश दिखीं बहारों में
फूल ’सौरभ’ लुटा रहे हर सू
श्री शेषधर तिवारी जी, श्री सौरभ पाण्डेय जी
यूं तो पूरी ग़ज़ल बहुत प्यारी कही है मगर इन तीन शेर की क्या ही तारीफ करू,
कितनी ही बार पढ़ चुका हूँ
दिल खुश हो गया
आपको बहुत बहुत बधाई
अरे वाह,
जवाब देंहटाएंतिलक जी और मेरी पसंद कितनी 'सेम-सेम' है
:)
क्या बात है, दोनों ही शायरों ने कमाल की ग़ज़लें कही हैं। मुझे तो हर शे’र पसंद आया क्यूँकि मुझे पता है इस ‘हर सू’ ने कितना तरसाया है। एक एक मिसरा दिमाग के हलक में हाथ डालकर निकालना पड़ता है तभी ‘हर सू’ फिट होता है शे’र में।
जवाब देंहटाएंशेष सौरभ मिले जो सहरा में
आब बनकर बिखर पड़े हर सू
कोटिशः बधाई हो दोनों शायरों को और इलाहाबाद को जहाँ ऐसे शायर रहते हैं।
ख़्वाहिशें बढ़ गई हैं .....
जवाब देंहटाएंएक ख़ूबसूरत ग़ज़ल का सब से ख़ूबसूरत शेर
बात परवाज़ की .....
बहुत उम्दा !!
दोनों शायरों को मुबारकबाद
इलाहाबाद से तो मुझे भी बहुत लगाव है क्योंकि मैंने भी शिक्षा वहीं से प्राप्त की है
पहले से दूसरा अंक और भी दमदार। यही है एक कुशल मंच संचालक की विशेषता। कहने की आवश्यकता तो नहीं, पर कहना ज़रूरी भी होता है, साहित्यिक प्रयासों के लिए समर्पित भद्रजनों के यथेष्ट साधुवाद हेतु।
जवाब देंहटाएंतिवारी जी शायद दूसरी बार पधारे हैं इस मंच पर। तिवारी जी की ग़ज़ल उनकी अपनी ग़ज़ल है। मतले से ही जानदार और शानदार आगाज़ करती इस ग़ज़ल के तमाम शेर न सिर्फ पुरअसर हैं, बल्कि अपनी बात को मुकम्मल तरीक़े से कहने में क़ामयाब भी हैं। उम्र के इस पड़ाव पर भी तिवारी जी के अंदर सीखने की तथा और बेहतर और बेहतर देने की जो ललक है, वो मेरे लिए अनुकरणीय है। तिवारी जी की लेखनी ने मनोहारी छंद भी लिखे हैं, जिनकी साहित्य रसिकों ने मुक्त कंठ से भूरि-भूरि प्रशंसाएं की हैं।
सौरभ पाण्डेय जी से परिचय तक़रीबन एक साल पुराना है। सब से पहले फेसबुक पर पढ़ी थी उन की कविता। फिर कालांतर में उन की टिप्पणियों के साथ ग़ज़लें भी पढ़ने को मिलीं। इन की 'तुम नहीं समझोगे' कविता जिसने भी पढ़ी, मुक्त कंठ से प्रशंसा ही की। विगत दिनों हरिगीतिका जैसे कंर्ण प्रिय छंद पर अपना लोहा भी मनवा चुके हैं सौरभ भाई। मौजूदा ग़ज़ल का मतला आप के स्वभाव का सही सही परिचायक है। शुरू से आखिर तक यह ग़ज़ल कितनी प्रभावशाली है, आप सभी लिख ही चुके हैं।
दोनों अग्रजों के साथ साथ सुबीर जी को भी बहुत बहुत बधाई, इस काव्यात्मक पर्व को यादगार बनाने के लिए।
तरही के शानदार आग़ाज़ के बाद, इलाहाबाद के दो शायर अपनी ग़ज़लों के साथ आ गए हैं. और क्या खूब रंग जमाया है.
जवाब देंहटाएंशेषधर जी, वाह क्या खूब शेर कहें है,
आज भी है सवाल, सहरा में..............वाह वा
ज़िन्दगी मुस्कुरा...............उम्दा शेर, लाजवाब कहन.
ख़्वाहिशें बढ़ गई........... जिंदाबाद शेर
दुःख भरे दिन...............बहुत उम्दा गिरह लगाई है.
वाह वा, मज़ा आ गया. बधाई स्वीकार करें.
सौरभ जी का स्वागत है, पहली बार आये हैं और अच्छे शेर कहें हैं.
मतला बहुत अच्छे से बाँधा है, बधाइयाँ.
सूख गया पानी..............अच्छा शेर है
रात भर चाँद..................वाह वा, जिंदाबाद शेर
बात परवाज़ की................अच्छा शेर है.
खूबसूरत शेरों और अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई कुबूल करें.
गुरु जी, मधुबनी की बहुत सुन्दर पेंटिंग लगाई है. आनंद ही आनंद. इस बार लगता है, बेहतरीन ग़ज़लों के साथ-साथ, आपके द्वारा ढूंढ के निकाली गई चुनिन्दा पेंटिंग भी देखने को मिलेगी. डबल मज़ा. गुरुदेव, बहुत-बहुत बधाई.
तरही की दूसरी कड़ी पर एक दिन विलंब से आ रहा हूँ| मुझे लगा कि शायद दो दिन का गैप तो मिलेगा...लेकिन लगता है कि बहुत सारी ग़ज़लें आयी हैं इस बार....
जवाब देंहटाएंतिवारी जी अच्छा लिखते हैं| पढ़ते रहटा हूँ उनको फेसबुक पर जब तब| आज भी सवाल है सहरा मे वाला शेर बहुत खूब है|
सौरभ जी को पहली बार ही पढ़ रहा हूँ| अच्छे शेर कहे हैं उन्होने भी .... रात भर चाँद पास सोता है वाला शेर तो उफ़्फ़ ...गजब का कहा है उन्होने |
मधुबनी पेंटिंग को इस ब्लौग पर देख कर मन खुश हो गया| अपना ननिहाल है|
...और अमरूदों के इस खाऊ प्रशंसक से मिल कर दिल अमरूद अमरूद हो गया :-)
जवाब देंहटाएंहम्म.......गुरुदेव, वाकई इस बार हर सू के अलग अलग दो मिसरों को मतले में एक के बाद बांधना है मुश्किल भरा रहा. आपने जो उदाहरण दिया है, अमीर मीनाई साब की ग़ज़ल का, वो मतला तो अमर है. सही में, बहुत सुन्दरता से बाँधा है.
जवाब देंहटाएंइलाहाबाद के अमरुद मैंने भी आज तक खाए नहीं है, मगर इनके बारे में सुना बहुत है. graduation की पढाई के दौरान अमरूदों की तरह-तरह की किस्मों को रटते वक़्त, "इलाहाबादी सफेदा" तो जबानी याद हो गया था, मगर आज तक अस्ल में इसने जबां को छुआ नहीं है. इंतज़ार है, कब "इलाहाबादी सफेदा" से भेंट होती है.
आप सभी गुनीजन एवं पारखी विद्वज्जनों का बहुत बहुत आभार. मुझे इलाहाबद की प्रशंसा देख कर अधिक खुशी हुई. भाई सौरभ पाण्डेय ने मुझे जो मान दिया है उसके लिए उनका विशेष आभार पर सच में देखा जाय तो उनके लिए ये कहना जायज होगा की अगर आगाज़ ऐसा है तो अंजाम कैसा होगा. सौरभ जी एक सशक्त लेखनी के धनी हैं. सुबीर जी ने सौरभ जी के साथ मेरी ग़ज़ल लगाकर मुझे यह कहने पर विवश कर दिया है की अब आया है ऊँट(मैं) पहाड़ के नीचे. एक सशक्त मंचपर स्थान देने के लिए श्री पंकज सुबीर जी को बहुत बहुत धन्यवाद एवं मुशायरे के आशातीत सफलता के लिए शुभकामनाएं देता हूँ.
जवाब देंहटाएंवाह! क्या अंदाज़-ए-बयां है दोनो हज़रात का, खूबसूरत कलाम दोनो ही! वाह!
जवाब देंहटाएंNice .
जवाब देंहटाएंदोनो ही शायरों ने समा बाँधा है....
जवाब देंहटाएंआज भी है सवाल सहरा में,
आब ही आब क्यों दिखे हर सू
शेषधर तिवारी जी का ये शेर
और सौरभ जी का मतला,
जिंदगी खीझती दिखे हर सू,
लोग फिर भी निबाहते हर सू।
खूब..बहुत खूब...
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसभी विद्वद्जनों को मेरा सादर प्रणाम. आपको मेरा कहा पसंद आया यह मेरे लिये संतोष की बात है. कहना न होगा, अभी बहुत कुछ जानना और सीखना है.
जवाब देंहटाएंभाई नवीनजी चतुर्वेदी ने अपनी आत्मीयता से विभोर कर दिया है. आपका स्वाध्याय तथा साहित्य की अथक साधना ने मुझे आपके प्रति आदरभाव से आप्लावित किया है.
तिलकराजजी, धर्मेन्द्रजी, शेषधरभाई के प्रति आदर भाव रखता हूँ. तथा वीनस के प्रति सादर स्नेह. सभी विद्वद्जनों के प्रति पुनः आभार.
पंकजभाईजी के प्रति सादर नमन.