दीपावली एक एक दिन सरक सरक कर पास आ गई । अब बस एक ही दिन रह गया है दीपों के त्यौहार में । आज तो रूप की चतुर्दशी है । रूप को सुंदर बनाने का दिन । कुछ लोग कहते हैं कि शरीर कुछ नहीं है जो कुछ है आत्मा है । मेरा मानना है कि दोनों का अपना महत्व है । घर में रहने वाले प्राणियों का महत्व है तो ईंट पत्थर से बने घर का भी महत्व है । घर यदि सुंदर हो, साफ सुथरा हो, हवादार हो तो घर में रहने वालों को आनंद आता है, अच्छा लगता है । वैसे ही यदि तन स्वस्थ हो, सुंदर हो, साफ सुथरा हो तो उसमें रहने वाली आत्मा को आनंद आता है । तन और मन दोनों का अपना महत्व है । सुंदर रहना और सुंदर दिखना ये कोई अपराध नहीं है । रूप का सौंदर्य का अपना महत्व है, और ये भी सच है कि सुंदर शरीर में यदि सुंदर और संवेदनशील मन भी हो तो रूप हजार गुना बढ़ जाता है । ठीक वैसे ही जैसे बहुत सुंदर घर में कर्कश स्वभाव के लोग रहते हों तो उस घर से लोग कन्नी काटते हैं । तो आइये आज अपने सौंदर्य और रूप का पर्व मनाएं । रूप की चतुर्दशी मनाएं ।
( गणेश, लक्ष्मी और सरस्वती की एक सुंदर तस्वीर )
आज दीपावली के पहले ही चार शानदार ग़ज़लों के धमाके । चारों पारंपरिक ग़ज़लों के पैटर्न पर कही गईं ग़ज़लें । रूप चतुर्दशी पर चार सुंदर ग़ज़लें, और क्या चाहिये । तो आइये सुनते हैं श्री द्विजेन्द्र द्विज जी, श्री हलीम सैन्थली जी, श्री नवीन चतुर्वेदी जी और मुस्तफा माहिर पंतनगरी की ग़ज़लें ।
श्री द्विजेन्द्र द्विज जी
हैं उजालों के सिलसिले हर सू
‘दीप खुशियों के जल उठे हर सू’
आँगन -आँगन में अल्पनाएँ हैं
आस के फूल खिल गये हर -सू
द्वार- आँगन हैं दीपमालाएँ
कहकशाँ -सी दिखाई दे हर सू
जैसे लौटे थे राम अयोध्या में
आज वैसा ही कुछ लगे हर -सू
जिनकी परदेस में है दीवाली
उनको अपना ही घर दिखे हर -सू
मुँह छिपाता फिरे है सन्नाटा
हैं पटाख़ों के क़हक़हे हर सू
कौन गुज़रा है दिल की गलियों से
हैं चिराग़ों के क़ाफ़िले हर -सू
क्यों न हो आज नूर की बरखा
जब इबादत में हैं दिये हर सू
काश हो ज़िन्दगी भी दीवाली
नूर की इक नदी बहे हर सू
( द्विज भाई का एक सुंदर गीत भी आया है जो दीपावली के पश्चात खुमार उतारने के लिये लगाया जायेगा । या यूं कहें कि बासी दीवाली मनाई जायेगी उससे । )
वाह वाह वाह । क्या कहूं, किस शेर को कोट करूं । द्विजेन्द्र जी की कहन का तो मैं हमेशा से मुरीद हूं । कौन गुज़रा है दिल की गलियों से, उफ क्या किया जाये इस शेर का, इसको सुनने के बाद जो हालत है वो क्या है उफ, उफ, उफ । जब इबादत में हैं दिये हर सू, ग़ज़ब का मिसरा, इस मिसरे को सुनने के बाद दीपक को देखने का दृष्टिकोण ही बदल गया है । काश हो जिंदगी भी दीवाली, काश ये दुआ क़ुबूल हो जाए, काश सचमुच नूर की नदी हर सू बहे । बधाई बधाई बधाई ।
आप पहली बार आये हैं सो आपका संक्षिप्त परिचय । आप कस्बा सैंथल, जिला बरेली में रहतें है. शेरो शाएरी का सिलसिला बुजुर्गों से चला आ रहा है. पिछले साल प्रेसिडेंट ऑफ़ ग़ज़ल का अवार्ड मिला था.आप मशहूर शाईर प्रो. वसीम बरेलवी के पीर भाई हैं मतलब आपके दादा( मुन्तकिम हैदरी सैन्थ्ली ) आपके और वसीम साहब दोनों के उस्ताद थे. जिनका सिलसिला दाग़ देहलवी व् हैदर देहलवी से है.
किसलिये हैं ये ज़लज़ले हर सू
आजकल फिर हैं रतजगे हर सू
इन फ़ज़ाओं में ज़हर मत घोलो
फैल जाएँ न मस'अले हर सू
किसलिए आज आम होने लगेँ
जान देने के मशगले हर सू
उसकी नज़रें मिलीं तो ऐसा लगा
खुल गए जैसे मैकदे हर सू
फिर! अंधेरों से जंग का ऐलान
पहले शम्में जलाइये हर हर सू
अ'म्न का दौर फिर से आएगा,
हमने भेजे हैं काफिले हर सू
आंधियां तो बुझा चुकीं थी चिराग
ये दिए कैसे जल पड़े हर सू
कैसा कानून कैसी ताज़ीरें
अपने अपने हैं फैसले हर सू
एक काबे के हो के रह जाओ
सर न अपना झुकाइये है सू
एक मंज़िल पे जाके एक हैं सब
यूँ तो फैले हैं रास्ते हर सू
शाम ढलते ही शब का सन्नाटा
जाके पढता है मरसिये हर सू
चाँद बन कर न इतना इतराओ
जाग जाएँ न मरहले हर सू
अपना दिल पहले देख लेते अगर
हम तुझे यूँ न ढूंढते हर सू
अम्न के नाम पर यहाँ कुछ लोग
नफरतों को हैं बाँटते हर सू
क्या ये सौगाते-इश्क कम है "हलीम"
खुद को बदनाम कर चले हर सू -
वाह वाह वाह । अपना दिल पहले देख लेते अगर, क्या बात है सीधी कबीर से जाकर टकराती है बात । एक मंजिल पे जा के एक हैं सब का मिसरा सानी कितनी सादगी से कहा गया है, क़ुर्बान होने को मन चाहे । उसकी नज़रें मिलीं तो ऐसा लगा में मयकदे खुलने की उपमा लाजवाब कर रही है । अम्न का दौर फिर से आयेगा, हमने भेजे हैं क़ाफिले हर सू, काश हलीम साहब के क़ाफिले हर सू में सफल हो जाएं और अम्न का दौर फिर से लौट आये । चांद बन कर न इतना इतराओ सुंदर । बधाई बधाई बधाई ।
थे अँधेरे बहुत घने हर स
हमने दीपक जला दिए हर सू
मोर से नाचने लगे हर सू
ज़िक्र जब आप के हुए हर सू
सारी दुनिया पे राज है इनका
हुस्न वाले तो छा गए हर सू
पर्व से पूर्व मिल गया बोनस
दीप खुशियों के जल उठे हर सू
इस ज़मीं पर ही एक युग पहले
आदमी थे उसूल के हर सू
हर तरफ नफरतों का डेरा है
अब मुहब्बत ही चाहिए हर सू
यार माली बदल गया है क्या
तब चमन में गुलाब थे हर सू
उस को देखा तो यूं लगा मुझको
तार वीणा के बज उठे हर सू
लोग कितने उदास हैं या रब
कुछ तो खुशियाँ बिखेर दे हर सू
वाह वाह वाह । मतले से ही शानदार शुरूआत । थे अंधेरे बहुत घने हर सू, हमने दीपक जला दिये हर सू, रदीफ के मतले में निर्वाह की कठिन डगर का बख़ूबी निर्वाहन । इस ज़मीं पर ही एक युग पहले बहुत गहरी बात कही है, सचमुच एक कड़वी सचाई जिसे उतनी ही ख़ूबी से गढ़ दिया है शेर में । गिरह के शेर को सम सामयिकता के प्रयोग करते हुए इस प्रकार बांधा है कि आज के समय में प्रासंगिक हो गया है । और वीणा के तार बजने की आवाज़ तो सचमुच ही सुनाई दे रही है । बधाई बधाई बधाई ।
आप नफरत न बांटिये हर सू
लोग प्यासे हैं प्यार के हर सू
मौत का खौफ है निगाहों में,
सांस लेते हैं हादसे हर सू
दरया की अपनी मुश्किलें साहिब,
प्यास के अपने मस'अले हर सू
कैसी छाई हुई है मायूसी,
तेरे जाने के बाद से हर सू.
शब के सीने पे तू दिया रखकर
रौशनी को बिखेर दे हर सू
अपने अन्दर तलाश कर उसको,
क्यूँ उसे ढूंढता फिरे हर सू
संग गद्दीनशीं हुए जब से,
आईने टूटने लगे हर सू.
तेरी हैरत बता रही तूने,
मुझको देखा है देखके हर सू.
बेटा परदेस से जो घर लौटा
दीप खुशियों के जल उठे हर सू.
वाह वाह वाह । शब के सीने पे तू दिया रख कर, दीपावली के पूरे पर्व को एक ही शे'र में समेट दिया गया है । और उस्तादाना रंग लिये हुए कहा है शेर तेरी हैरत बता रही तूने, क्या बात कही है । कैसी छाई हुई है मायूसी, उदासी के इस शेर में दोनों मिसरे एक दूसरे के साथ मानो फेवीकोल के जोड़ से बंधे हैं, मुकम्मल शेर । गिरह के शेर में बेटे को लेकर एक नया प्रयोग कर दिया है, जो भावुक कर दे रहा है । और उतनी ही ख़ूबी के साथ कहा गया है मतला भी । बधाई, बधाई बधाई ।
आज चारों शायरों ने सचमुच धमाके कर दिये हैं, मुझे लगता है कि ये धमाके दीपावली की घोषणा का शंखनाद हैं । सुन ओ अंधेरे अब उजालों का दौर होगा । तो सुनतें रहिये इन चारों की ग़ज़लें और देते रहिये दाद । आनंद लेते रहिये । रूप चतुर्दशी की बहुत बहुत मंगल कामनाएं ।
वाह. बहुत ही खूबसूरत गजलें सुनने को मिल रही हैं इस मुशायरे में.
जवाब देंहटाएंद्विज जी मेरे पसंदीदा शायर हैं और उनकी ग़ज़लें हमेशा ही सीधे दिल पर असर करने वाली होती हैं.
यह भी वैसी ही एक गज़ल है. मतला बहुत खूब कहा है. सभी अशआर लाजवाब हैं.
"कहकशां सी दिखाई दे हर सू.." वाह.
"जिनकी परदेस में है दीवाली/उनको अपना ही घर दिखे हर सू" हमारे मन की आपने कैसे जान ली?
कहकहे काफिये का बहुत सुन्दर प्रयोग किया है.
"कौन गुजरा है दिल की गलियों से.." ये शेर तो ऐसा है कि बस कुछ कहे नहीं बनता.. अद्भुत.
"जब इबादत में हैं दिये हर सू.." क्या खूबसूरत मिसरा है. "नूर की इक् नदी!" लाजवाब ख्याल.
द्विज जी, इस खूबसूरत गज़ल के लिए धन्यवाद और बहुत बहुत बधाई.
हलीम साहब को पहली बार सुन रहा हूँ और पहली ही बार में मुरीद हो गया. कहाँ हम एक एक शेर के लिए तरस रहे थे और कहाँ इतने सारे शेर और सब एक से बढ़ कर एक. कमाल का मतला गज़ब का ख्याल. किसी भी एक शेर को कोट करना असंभव है. फिर भी "इन फिजाओं में ज़हर मत घोलो..", "किसलिए आज आम होने लगे..", "उसके नज़रें मिलीं तो ऐसा लगा..", "फिर! अंधेरों से जंग का ऐलान..", "अमन का दौर.."
लगता है सभी शेर कोट करने पड़ेंगे.
लाजवाब गज़ल है. हलीम साहब को दिली मुबारकबाद.
नवीन जी की बात ही अलग है. सहज में ही किसी भी विधा में उम्दा कहते हैं. एकदम सहजता से कहा हुआ मासूम मतला. मन खुश हो गया. गिरह एक दम अलग और हकीकत से जुड़ी. समय से पहले बोनस मिल जाए तो खुशियों के दीप तो जलेंगे ही!
"मोर से नाचने लगे हर सू..." वाह! "हुस्न वाले तो छा गए हर सू.." वाह वाह वाह वाह.! क्या बात है.
"इस ज़मीं पर...आदमी थे उसूल के.." बहुत बढ़िया.
"यार माली बदल गया है क्या..", "तार वीणा के ..", "कुछ तो खुशियाँ बिखेर दे.." बहुत उम्दा शेर हैं.
नवीन भाई एक खूबसूरत गज़ल के लिए दिली मुबारकबाद.
मुस्तफा जी की गज़ल में भी मतला बहुत सहजता से कहा गया है और पते की बात कह रहा है. मकते में गिरह भी बहुत उम्दा बाँधी है. अलग ख्याल लिए. और सभी शेर बहुत खूबसूरत.
"दरिया की अपनी मुश्किलें साहिब/प्यास के अपने मसअले हर सू." इस शेर की तो जितनी भी तारीफ़ की जाये कम होगी.
"किसी छाई हुई है मायूसी/तेरे जाने के बाद से हर सू." लाजवाब.
"शब् के सीने पे तू दिया रख कर/रौशनी को बिखेर दे हर सू." वाह वाह. शब् के सीने पे.. वाह.
"संग गद्दीनशीं हुए जब से..","अपने अंदर तलाश कर.." बहुत प्यारे शेर.
मुस्तफा जी बहुत बहुत मुबारकबाद.
इस ब्लाग पर तो सच मे नूर की बरसात हो रही है . इन उस्ताद शायरों की कलम को सलाम। दिवाली की सब को शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंदीपावली की मुबारक और शुभकामनाएँ!
जवाब देंहटाएंआज तो नूरो रंग की बारिश हुई है - सचमुच लाजाब दिवाली लाजाब तरही !!
जवाब देंहटाएंबेमिसाल दिवाली बेमिसाल तरही !!
जवाब देंहटाएंद्विज जी, हलिम साहब, मुस्तफा जी, नवीन जी,
क्या तारीफ़ करें हम आपकी शायरी की.
बहुत बहुत बधाई !!
चलते चलते
जिनकी परदेस में है दिवाली, जब इबादत में हैं दीये
तेरी हैरत, बेटा परदेस से
यूँ तो फैले हैं रास्ते
क्या ये सौगाते-इश्क कम है,
पर्व से पूर्व मिल गया...
बेमिसाल !!
चार महारथियों ने तो मुशायरे को एक अलग ही ऊंचाई दे दी है|
जवाब देंहटाएंअलग से आता हूँ इन बेमिसाल अशआर पर तालियाँ बजाने....
परमानंद! हम जैसे पाठको के लिए नूर की बरसात!
जवाब देंहटाएंसभी अग्रजों (अनुजों) ने एक से बढ़ के एक लिखा है. सब को श्रद्धानत प्रणाम!
आदरणीय द्विज जी के ये नाज़ुक बिम्ब याद रह जाएंगे:
कौन गुज़ारा है दिल की गलियों से; हैं चिरागों के काफिले हर सू -- वाह वाह!
क्यों न हो आज नूर की बरखा, जब इबादत में हैं दिए हर सू -- खूबसूरत, ग्राफिक!
नूर की इक नदी बहे... वाह, बेहद खूबसूरत!
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उफ्फ! कितने खूबसूरत अशआर हैं ये! एकदम पारंपरिक असरदार ग़ज़लों की याद ताज़ा करा दी हलीम साहब ने! एक मंजिल पे जा के एक हैं सब; यूँ तो फैले हैं रास्ते हर सू -- कारीगरों सा है ये शेर जैसे हीरा टाँक दिया हो!
अपना दिल पहले देख लेते अगर; हम तुझे यूँ न ढूंढते हर सू -- रूहानी भी, रूमानी भी..सूफियाना!
फ़िर! अँधेरे से जंग का एलान; पहले शम्मे जलाइये हर सू --- बस लग रहा है कि कैसे सिर झटक, के हाथ स्वीप कर के ये शेर बात कर रहा है सुनने वालों से!
शाम ढलते ही शब का सन्नाटा, जाके पढ़ता है मरसिए हर सू -- खूबसूरत!
इन फ़ज़ाओं में जहर मत घोलो; फैल जाएं न मस'अले हर सू -- वाह!
सलाम कुबूल फरमाएं!
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सामायिक, सहज और प्रभावशाली मिसरे! आ. नवीन जी छंद विशेषज्ञ तो हैं ही, ये ग़ज़ल भी खूब कही है उन्होंने!
पर्व से पूर्व मिल गया बोनस... बधाई!
... आदमी थे उसूल के हर सू ...वाह!
यार माली बदल गया है क्या ... क्या बात है..एकदम बोल चाल की बात!
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और माहिर साहब की (यथा नाम!) खूबसूरत ग़ज़ल के ये शेर बहुत उम्दा हैं:
मौत का खौफ़ है निगाहों में; सांस लेते हैं हादसे हर सू --क्या बात है!
शब के सीने पे तू दिया रख कर .... वाह!
अपने अन्दर तलाश कर उसको ... बढ़िया!
संग गद्दीनशीं हुए जब से, आईने टूटने लगे हर सू -- क्या बात है, वाह वाह वाह!
देखा है देख के हर सू... खूबसूरत!
बेटा परदेस.. वाह!
और इन अशआर के बीच एक ये शेर ले जा रही हूँ आपने साथ ---
दरया की अपनी मुश्किलें साहिब
प्यास के आपने मस'अले हर सू
सादर शार्दुला
अवाक हूँ...सुबह से पढ़ कर सोच रहा हूँ क्या टिप्पणी दूं? ऐसी ग़ज़लों पर भी कोई टिप्पणी दी जा सकती है क्या? इन्हें तो सिर्फ महसूस किया जा सकता है...एक पुराने गाने की पैरोडी बना कर कह रहा हूँ..."जिक्र होता है जब क़यामत का...ऐसे शेरोन की बात होती है"
जवाब देंहटाएंद्विज भाई जितने प्यारे इंसान हैं उतने ही प्यारे शेर कहते हैं, उनके अशआर उनका ही आईना हैं...कभी उनसे बात कर के देखिये...सुकून का दरिया बहने लगता है...ऐसे लोगों से गुफ्तगू करना खुदा की इबादत करने जैसा है...मुझे शायरी का इल्म सिखाने में द्विज भाई का नंबर बहुत ऊपर आता है, इस लिहाज़ से वो मेरे गुरु हैं...अपने गुरु के बारे में क्या कहूँ? उनके किस शेर को कोट करूँ?
कौन गुज़रा है दिल की गलियों से
हैं चिरागों के काफिले हर सू
क्यूँ न हो आज नूर की बरखा
जब इबादत में हैं दिए हर सू
नतमस्तक इन शेरों पर...वाह द्विज भाई वाह...जियो.
हलीम साहब को पढने का ये मेरा पहला मौका है, अफ़सोस हो रहा है इन्हें पहले क्यूँ नहीं पढ़ पाया..ऐसे हैरत अंगेज़ शेर कहें हैं इन्होने की आँखें बार बार मलने पर भी यकीन नहीं हो रहा...कमाल के अशआर...वो भी ढेर सारे...
आंधियां तो बुझा चुकी थीं चराग
ये दिए कैसे जल पड़े हर सू
अपना दिल पहले देख लेते अगर
फिर तुझे यूँ न ढूंढते हर सू
तालियाँ...तालियाँ...तालियाँ...ढेरों दाद कबूल करें जनाब.
नवीन भाई की क्या बात करूँ...मेरे छोटे भाई की तरह हैं , गुणों की खान हैं...विलक्षण प्रतिभा के धनी हैं...जब कभी उनसे बात होती है एक आध नयी चीज़ सीखने को मिलती है...अपनी बातों और अपने कलाम से चौंका देना उनका प्रिय शगल है...
पर्व से पूर्व मिल गया बोनस
दीप खुशियों के जल उठे हर सू
(तरही के मिसरे पर लगायी बेहतरीन और बिलकुल अलग सी गिरह, जिसे नौकरी पेशा लोग दिल से महसूस कर सकते हैं)
यार माली बदल गया है क्या
तब चमन में गुलाब थे हर सू
दिल बाग़ बाग़ हो गया इन अशआरों को पढ़ कर...ढेरों दाद कबूल करें भाई...क्या ग़ज़ल कही है..वाह...
अब बात मुस्तफा जी की...इनकी एक किताब मुझे अंकित ने दी थी, जिसमें इनके कहे शुरुआत के शेर हैं, उन को पढ़ कर अंदाज़ा हो गया था के आगे चल कर किस पाए के शेर कहेंगे...आज मेरा अंदाज़ा बिलकुल सही निकला...
दरया की अपनी मुश्किलें साहब
प्यास के अपने मसअले हर सू
शब् के सीने पे तू दिया रख कर
रौशनी को बिखेर दे हर सू
सुभान अल्लाह...लाजवाब कर दिया मुस्तफा भाई...वाह...
वो लोग जो उर्दू शायरी के भविष्य को लेकर दुबले हो रहे हैं इस मुशायरे में आयें और देखें के उर्दू शायरी खास तौर पर ग़ज़ल का भविष्य कितना उज्जवल है...गुरुदेव इस आयोजन के लिए आपकी जय हो...
नीरज
आज तो आपने एटम बम्ब छोड़ दिया सुबह सुबह गुरुदेव ...
जवाब देंहटाएंद्विज जी तो मेरे भी पसंदीदा शायरों में से हैं और उनकी गज़ल पढ़ कर लग रहा है खजाना हाथ आ गया आज ... हर शेर स्पष्ट बात कहता हुवा ...जिनकी परदेस में है दीवाली ... जैसे मेरे मन की बात लिख दी ... और मुंह छिपाते फिरे हैं सन्नाटे ... क्या लाजवाब शेर है ... द्विज जी को ढेरों बधाई और शुभकामनाएं ...
हलीम जी के शेर भी बहुत कमाल हैं ... उनकी नज़रें मिलीं तो ऐसा लगा ... या फिर एक काबे के हो के रह जाओ ... बहुत ही सादगी से कहे रूमानी शेर हैं ... उनके शेरों में छिपे सन्देश को अगर माँ लें तो सच्ची दिवाली मन जाए ...
और नवीन जी तो माहिर हैं गीत, गज़ल, कविता और छंदों के ... मतले में ही धमाका कर दिया नवीन जी ने ... प्रेम और सादगी लिए ये शेर ... मोर से नाचने लगे हर सू ... या फिर ... सारी दुनिया पे राज है इनका ... उसको देखा तो यूँ लगा मुझको ... सीधे दिल में उतर जाते हैं नवीन भाई ... और ये शेर पढ़ के दिल फख्र से उठ जाता है ... इस जमीं पर ही एक युग पहले ... ऐसा तो मेरे भारत देश में ही हो सकता है ... मज़ा अ गया नवीन जी ... छा गए आप ...
मुस्तफा जी ने भी कमाल के शेर बांधे हैं ... मौत का खौफ है निगाहों में ... बहुत ही कमाल का शेर है ... और आखरी शेर में तो जान ही ले ली .... बेटा परदेस से जो घर लौटा ... माँ की दीपावली तो तभी मनती है ...
बहुत खूब ... दीपावली की शुभकामनाएं सभी को ...
आज का हर एक शेर, अलग ही अंदाज़ लिए हुए है.
जवाब देंहटाएंश्री द्विजेन्द्र द्विज जी की ग़ज़ल लाजवाब है. शेर दर शेर उतरने पे एक अलग ही एहसास हो रहा है.
"जैसे लौटे थे राम.............", वाह वा. अद्भुत कहन, बहुत खूबसूरती से पिरो दिया है.
"जिनकी परदेश में है...........", वाह वा
"मुंह छिपाता फिरे है सन्नाटा..............", क्या खूब मिसरा है, तिस पे सानी ग़ज़ब ढा रही है, पटाखों के कहकहे वाह. जिंदाबाद शेर.
"कौन गुज़रा है दिल की..............", एक मखमली शेर, जिसके रेशमी एहसास को पढ़ते वक़्त महसूस भी किया जा सकता है. वाह वा
इस खूबसूरत ग़ज़ल से मिलवाने के लिए शुक्रिया और बधाइयाँ. आपके गीत का इंतज़ार रहेगा.
हलीम साहब को पहले भी सुन चुका हूँ. बहुत खूबसूरत ग़ज़लें कहते हैं और आज यहाँ पे आपके अशआर पढके बहुत ख़ुशी हो रही है.
"इन फ़ज़ाओं में ज़हर मत घोलो ................", वाह वा. उम्दा कहन. जिंदाबाद शेर.
"किसलिए आज आम होने लगेँ ..........." वाह वा, क्या खूब शेर कहा है, इशारों इशारों में बहुत ऊँची बात कही है.
"फिर! अंधेरों से जंग का ऐलान ........", वाह वा
"अ'म्न का दौर फिर से आएगा, हमने भेजे हैं काफिले हर सू". आमीन. कुछ भी कहने के लिए नहीं बचा है. लाजवाब शेर.
"एक मंज़िल पे जाके एक हैं सब
यूँ तो फैले हैं रास्ते हर सू "
वाह वा, एक बहुत ही खूबसूरत पैगाम दिया है. जिंदाबाद जिंदाबाद जिंदाबाद
"शाम ढलते ही शब का सन्नाटा
जाके पढता है मरसिये हर सू "
काफिये का अद्भुत संयोजन है शेर में. वाह वा
"चाँद बन कर न इतना इतराओ ............." वाह वा
उफ्फ्फ, हर शेर लाजवाब है और पूरी ग़ज़ल सहेजने लायक है. कितनी खूबसूरती से शेर कहें हैं, बहुत कुछ सीखने को भी मिला. हलीम साहब इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए दिली दाद कुबूल करें.
नवीन जी, बहुत खूब मतला कहा है.
जवाब देंहटाएं"पर्व से पूर्व............." अहा, नौकरी-पेशा लोगों का हाल-ए-दिल उतार के रह दिया.
"इस ज़मीं पर ही एक युग पहले ..........", वाह वा
"हर तरफ नफरतों का डेरा है ...............", उम्दा शेर.
इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाइयाँ
मुस्तफा भाई, तेरी ग़ज़ल का इंतज़ार आज ख़त्म हुआ.
बहुत करीने से शेर कहें हैं.
"आप नफरत न बांटिये हर सू. लोग प्यासे हैं प्यार के हर सू "
मतला बहुत खूबसूरती से गढ़ा है. वाह वा दोस्त
"मौत का खौफ है निगाहों में.............", वाह वा उम्दा कहन
"दरया की अपनी मुश्किलें साहिब...................", ग़ज़ल की आँख है ये तो. लाजवाब शेर.
"कैसी छाई हुई है मायूसी....................", उफ्फ्फ, क्या कहूं रे. वाह वा
"शब के सीने पे तू दिया रखकर .................", कातिलाना शेर.
"अपने अन्दर तलाश कर उसको.......", "संग गद्दीनशीं हुए जब से........." उम्दा शेर बने हैं.
"तेरी हैरत बता रही तूने, ................", तिरछी कलम का कमाल. वाह वा दोस्त
इतने सारे ज़हर शेर कहने के बाद, लाजवाब गिरह लगाई है.
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है. बधाई क्या दूं, गले लग जा.
मेरी तो बोलती बंद है।
जवाब देंहटाएंऑंगन-ऑंगन का अलिफ़-वस्ल तो देखते बनता है।
कहन के एक से बढ़कर एक उदाहरण लिये ये ग़ज़लें कह रही हैं कि:
हो गयी शाम कुछ खबर न हुई
रंग इतने यहॉं दिखे हर सू।
द्विज जी सरीखे मकबूल शायर की आमद से मुशायरा फख्रमंद हुआ है.
जवाब देंहटाएंउनकी कलम की तारीफ़ के लिए लफ्ज कम हैं मेरे पास.
हलीम सैन्थ्ली जी के लिए बस इतना कि ऐसी ग़ज़ल वही लिख सकता है जिसके लहू में शायरी हो.
नवीन जी की ग़ज़ल उनके नेक मंसूबों का आईना है.ग़ज़ल उम्दा उतरी है.
मुस्तफा जी का एक शेर और महफ़िल उनके नाम:
' तेरी हैरत बता रही तूने/मुझको देखा है देख के हर सू '.
और कहने को अब कहिये क्या रह गया .........
क्यूँ न हो आज नूर की बरखा
जवाब देंहटाएंजब इबादत में हैं दिए हर सू....गुरु के बारे में क्या कहूँ?...natmastak hooN....दीपावली की शुभकामनाएं
इतने बड़े बड़े धुरंधरों के बीच अपने जैसे अदने क़द के आदमी को देख कर चकित हूँ| इस स्नेह के लिए आभार सुबीर जी|
जवाब देंहटाएंप्रोपर कमेन्ट करने फिर लौटूंगा, अभी तो सिर्फ हाजिरी ही लगा रहा हूँ|
चारों ग़ज़ल खूब पसंद आई
जवाब देंहटाएंढेर सारी बधाई
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सभी को दीपावली की हार्दिक बधाई
कुछ नई पोस्टस और इस पोस्ट पर कमेन्ट छूट गया है, अभी मोबाइल से ही पढ़ा भी है, फिर से पढ़ कर कमेन्ट करूँगा
सादर
इन धुरंदरों की किन शब्दों से तरीफ़ करूँ, कोष ख़ाली कर दिया इनकी ग़ज़लों ने ..सभी ग़ज़लें बार -बार पढ़ रही हूँ ...
जवाब देंहटाएंसुबीर जी,
जवाब देंहटाएंमित्रों, परिजनों के साथ आपको भी पर्व की मंगलकामनायें! तमसो मा ज्योतिर्गमय!
इस तरही के माध्यम से ही आप सभी को जाना है और तबसे भाग्य को सराहता हूँ. पंकजजी ने कम शब्दों में ही पर बहुत गहरी बात कही है --तन स्वस्थ हो, सुन्दर हो, साफ सुथरा हो तो उसमें रहने वाली आत्मा को आनंद आता है. रूपचौदस के उपलक्ष्य में कही गयी बात हृदय को प्रसन्न कर गयी.
जवाब देंहटाएंपहले कि आज की ग़ज़लें पढूँ मैं सभी को दीपावली की शुभकामनाएँ संप्रेषित कर रहा हूँ.
द्विजेन्द्र द्विजजी को पढ़ना एक अवसर है. मतले में ही आपने जो बेजोड़ की गिरह लगायी है कि मन खुश होगया है.
जैसे लौटे थे राम अयोध्या में... इस शे’र ने विकैरियसली हमें उस अयोध्या से दो-चार करा दिया जो श्रीराम की बस अगवानी में बिछी जा रही है. कल्पना अपने चरम पर है !
जिनकी परदेस में है दीवाली..
जो अपनी ज़मीन या अपने मादरेवतन से दूर हैं उनकी भावनाओं को कितने सधे हुए शब्द मिले हैं ! वाह !!
मुँह छिपाता फिरे है सन्नाटा.. में सन्नाटे का ग़ज़ब का परसोनिफिकेशन हुआ है. चित्र सा उभर रहा है कि कैसे सन्नाटा मुँह छिपाता फिर रहा है !
कौन गुजरा है दिल की गलियों से..
दीपों की जगमगाहट के लिये जो कारण आपने दिया है, द्विजजी, उसकी भावुकता दिल की गहराइयों में उतर गयी है.
आखिरी शेर में आपने जिस सकारात्मकता के लिये दुआ की है वह मोह गयी.
आपको इस सकारात्मक सोच के लिये हार्दिक बधाइयाँ...
हलीम सैन्थलीजी को पढ़ते हुए किसी फ़कीर के कलाम सुन रहा हूँ का गुमां हो रहा है.
अ’म्न का दौर फिर से आएगा.. आपके सकारात्मक विचारों का आईना है.
आपकी सोच में बसी ज़िन्दग़ी को जीने की चाह शिद्दत से उभर कर आयी है. आपको दीपावली की शुभकामनाएँ.
भाई नवीनजी की रचनाओं और ग़ज़लों को सुनता रहा हूँ. आपके समर्पित ’साहित्यिक-तप’ से वाकिफ़ हूँ. उंगली पकड़ कर राह दिखाने वालों में से हैं आप. जिस आसानी से आप छंद की विधाओं पर ’ललला ललला’ कर चर्चा करते हैं, उसी नफ़ासत से आप ग़ज़ल कहते हैं. और क्या खूब कहते हैं. आपकी सोच की उन्मुक्त उड़ान से हम कितनी ही दफ़ा चकित हुए हैं !
मोर नाचने लगे.. में आपने मोर की बात क्या की एक दृश्य ही साझा कर लिया है.
जिस शे’र में तरही का गिरह लगा है उस पर सामयिन-पाठकों ने पहले ही बहुत कुछ कह दिया है. ये शे’र नवीन जी को लेकर कही गयी मेरी उपरोक्त बातों की गवाही देता है. नवीनजी, मैं वाकई चकित हूँ.
इस ज़मीं पर ही एक युग पहले.. वाह !
अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान और आज के हालात आपने एक साथ दोनों पर अपनी कलम चलायी है. और बात बेहतर उभर कर आयी है.
यार माली बदल गया है क्या
तब चमन में गुलाब थे हर सू
अलबत्त ! बेज्जोड़ ! क्या कहन है !! विधा जानना एक बात है और भावनाओं में उभ-चुभ होना एक बात. मज़ा ये है कि नवीनभाई दोनों कैटेगरी के फन में माहिर हैं. आपकी कमाल की सोच को सलाम.
मुस्तफ़ा माहिर के सभी अश’आर ताक़ीद करते से लगे. गोया ज़माने को देखे-सुने किसी अनुभवी बुज़ुर्ग़ से सुन रहे हैं.
दरया की अपनी मुश्किलें साहिब
प्यास के अपने मस’अले हर सू
इस शे’र ने देर तक बाँधे रखा मुस्तफ़ा भाई. बधाई.
कैसी छाई हुई है मायूसी
तेरे जाने के बाद से हर सू
एक कालजयी लिखावट है. पुनश्च बधाई.
अपने अन्दर तलाश कर उसको.. आप कबीर को पढ़ते नज़र आये, भाई. जिसने उसको अपने अन्दर तलाशा और पा लिया उसको और भटकना होता ही कहाँ है ! बहुत ऊँची बात सीधे सादे ढंग से कही गयी है.
और जिस शे’र ने निश्शब्द कर दिया है वो शे’र है -
तेरी हैरत बता रही तूने
मुझको देखा है देखके हर सू
सुबहान अल्लाह !!
आज के चारों शायरों ने दिल को वो सुकून दिया है कि दीवाली भली-भली हो गयी है.
--सौरभ पाण्डेय, नैनी, इलाहाबाद (उप्र)
सभी एक से एक...बेहतरीन.
जवाब देंहटाएंदीप हम ऐसे जलायें
दिल में हम एक अलख जगायें..
आतंकवाद जड़ से मिटायें
भ्रष्टाचार को दूर भगायें
जन जन की खुशियाँ लौटायें
हम एक नव हिन्दुस्तान बनायें
आओ, अब की ऐसी दीवाली मनायें
पर्व पर यही हैं मेरी मंगलकामनायें....
-समीर लाल 'समीर'
http://udantashtari.blogspot.com
कुछ खने को अब शेष ही नहीं इन गज़लों के बारे में. बस पढ़ते जायें और आनन्द लेते जायें
जवाब देंहटाएंविद्वानों का मत है कि कवि / शायर बनने से पहले हमें स्पष्ट वक्ता बनना चाहिए| फेसबुक के शुरुआती दिनों में जब मैंने द्विज जी को अपनी मित्र सूची में शामिल किया था, तब पता नहीं था कि आज के दौर के बेहद संवेदनशील और बेहतरीन फनकारों में शुमार रचनाधर्मी से जुड़ रहा हूँ| कालान्तर में यह बात परत दर परत खुलती गयी| आ. द्विज जी को पढ़ते हुए मेरे जैसे कई लोग काफी कुछ सीखते रहते हैं| आप जैसे फन के कुशल कारीगर की कारीगरी पर कुछ कहना मेरे जैसे नौसिखिये के लिए मुश्किल साबित हो रहा है| बस आनंद ही ले रहा हूँ| इस जीवंत रचना के लिए बहुत बहुत बधाइयाँ और आप को सपरिवार दीपावली की ढेरों शुभकामनायें|
जवाब देंहटाएंहर तरही में मौजूदा दौर के कुछ बेहतरीन फनकारों से रू-ब-रू कराने के क्रम में भाई हलीम सैथली जी से मिलवाने के लिए बहुत बहुत आभार पंकज भाई| आ. तुफैल जी ग़ज़ल को ले कर जो कहते हैं, वो बात शेर दर शेर दिखती है हलीम भाई की ग़ज़ल में| हर शेर इतना खूबसूरत है कि वो अपना शेर लगता है| इस खुबसूरत ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाइयाँ और आप को सपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें हलीम भाई|
लोग प्यासे हैं प्यार के हर सू, आह क्या शुरुआत है| बेहद ही चुस्त रद्दीफ़ निर्वहन| दरया-प्यास, शब् के सीने पे - संग गद्दीनशीं के अलावा तेरी हैरत खासा प्रभावित करता है| गिरह का शेर भी बहुत खूब है मुस्तफा माहिर भाई| इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए दिली दाद क़ुबूल करें| आप को सपरिवार दीपावली की शुभकामनायें|
bahut bahut badhai teeno kalamkaron ko. aur shukriya guru ji ko jinhone manzare-aam par itni khoobsurat gazlein rakhin. navin bhai, dwij ji, aur mere ustaad janab haleem saithli ji aap sab ko gazlon ke liye mnarakbaad. ab main apni baat karoon maine guru ji se kaha tha k ye gazal bahut jaldi mein likhi gayi thi isliye vo sher nahi nikal kar aaye jo tarhai mein aur khastaur se guru ji tarhai mein hone chahiye. lekin ye sab aap logon ki zarranavazi hai k aap ne mere toote foote sheron ko bhi acche sheron ki tarah hi izzat bakhshi. aap sab logon ka MAHIR NAVAZI ke liye tahe dil se shukriya. sab ko deewali ki mubarakbaad.
जवाब देंहटाएंइन ग़ज़लों के अभिनंदन को शब्द कहाँ से लाऊँ
जवाब देंहटाएंयही बेहतर होगा इनको पढ़कर चुप रह जाऊँ