शनिवार, 8 अक्तूबर 2011

तरही मुशायरा काव्‍य के विविध रूपों का एक इन्‍द्र धनुष, जो अपने सारे रंगों के साथ दीपावली के अवसर पर निखरने वाला है ।

इस बार दीपावली के मुशायरे में जो ख़ास है वो ये है कि इस बार हम मुरक्‍कब बहरों की तरफ बढ़ गये हैं । मुरक्‍कब बहरें जो कि दो विभिन्‍न प्रकार के रुक्‍नों के संयोग से बनती हैं । और इस बार हम काम कर रहे हैं बहरे खफ़ीफ़ पर । बहरे खफ़ीफ़ एक ऐसी बहर है जो कि बहुत पसंद की जाने वाली बहर है । मगर मुशायरे की घोषणा के लगभग बीस दिन बीत जाने के बाद भी ऐसा लग नहीं रहा है कि ये बहर लोगों को पसंद आ रही है । अभी तक जिन रचनाकारों की रचनाएं मिल चुकी हैं वे हैं श्री राकेश खंडेलवाल जी, लावण्‍य शाह दीदी, श्री निर्मल सिद्धू, श्री नवीन चतुर्वेदी, श्री धर्मेंद्र सिंह सज्‍जन, श्री दिगंबर नासवा, डॉ संजय दानी और श्री सौरभ शेखर । अर्थात 8 रचनाकारों की रचनाएं मिल चुकी हैं । मैं ग़ज़ल के स्‍थान पर रचना शब्‍द का प्रयोग इसलिये कर रहा हूं कि हमारे तरही मुशायरे में सब प्रकार की सामग्री होती है जहां एक ओर ग़ज़लें होती हैं वहीं दूसरी ओर गीत और छंदमुक्‍त कविताएं भी शामिल होती हैं । कुल मिलाकर हमारा ये तरही मुशायरा दरअसल में काव्‍य के विविध रूपों का एक इन्‍द्र धनुष होता है । और ये इंद्रधनुष अपने सारे रंगों के साथ दीपावली के अवसर पर निखरने वाला है विविधरंगी रचनाओं से ।

बहरे खफ़ीफ़ में चूंकि दो प्रकार के रुक्‍न हैं इसलिये इसके मुज़ाहिफ़ रुक्‍न भी दो प्रकार के हो सकते हैं । इसमें फाएलातुन के और मुस्‍तफएलुन दोनों ही सामिल रुक्‍नों के मुज़ाहिफ़ रुक्‍न हो सकते हैं । जैसा कि हम पहले जान चुके हैं कि बहरे खफ़ीफ़ की सालिम बहर को उर्दू या हिंदी में उपयोग में नहीं लाया जाता है इसलिये इसकी मुज़ाहिफ़ बहरें ही उपयोग में लाई जाती हैं । जैसे कि इस बार की ही जो बहर है जिसमें 2122-1212-22 (112) वज्‍़न है । या यूं कहें कि फाएलातनु-मुफाएलुन-फालुन( फएलुन) है । अब इसमें जो पहला रुक्‍न है वह तो सालिम ही उपयोग किया जा रहा है । किन्‍तु दूसरे रुक्‍न में कुछ तब्‍दीली की गई है । तब्‍दीली ये की गई है कि कुछ मात्राओं को कम कर दिया गया है । अब ये देखें कि कुल कितनी मात्राएं कम की गईं हैं । दूसरा रुक्‍न है 2212 जिसको कि बना दिया गया है 1212 इसका नाम होता है मख़बून । इसका नाम मख़बून इसलिये है क्‍योंकि ये ख़ब्‍न  से बना है । अब ये ख़ब्‍न क्‍या होता है । तो आइये जानते हैं ख़ब्‍न  की परिभाषा ।

ख़ब्‍न : यदि किसी रुक्‍न के प्रारंभ में सबब ख़फ़ीफ़ हो ( यदि एक पूर्ण दीर्घ हो जैसे ग़म, हम आदि जिसे सबब ख़फ़ीफ़ कहा जाएगा ) तो उस सबब खफ़ीफ़ का दूसरा हर्फ गिरा दिया जाता है । जैसे मुस्‍तफएलुन में वज्‍़न है 2212 तो इसमें रुक्‍न के प्रारंभ में ही एक सबब ख़फ़ीफ़ आ रहा है । और यदि हमें इसे ख़ब्‍न करना हो तो इसके पहले दीर्घ की एक मात्रा को घटा कर उसे एक लघु कर देगें । शेष रुक्‍न पूर्ववत ही रहेगा । तो पहली मात्रा को गिराने पर बना 1212 मुफाएलुन । जैसे यदि फाएलुन में खब्‍न किया जायेगा तो बनेगा फएलुन, 212 से बनता है 112 । तो फाएलुन बाली बहर में फएलुन को और मुस्‍तफएलुन वाली बहर में मुफाएलुन को कहा जायेगा मखबून । यही मुफाएलुन बहरे हजज में जब आयेगा तो वहां पर मकबूज के नाम से आयेगा क्‍योंकि वहां पर ये कब्‍ज़ ( रुक्न की पांचवी मात्रा को कम करना ) नाम की तब्‍दीली से पैदा होगा ।

अगली बार हम ये देखने की कोशिश करेंगें कि जो हमारी बहर में आखिर का रुक्‍न है जिसको लेकर हमारे पास स्‍वतंत्रता है कि हम 22, 112, 2121, 221 कुछ भी ले सकते हैं । तो ये रुक्‍न किस प्रकार की तब्‍दीली से पैदा किये जा रहे हैं । याद रहे कि ये तब्‍दीली अपने सामिल रुक्‍न फाएलातुन में की जायेगी । क्‍योंकि तीसरा रुक्‍न हमारी सालिम बहर में फाएलातुन है । तो उसी फाएलातुन में अलग अलग प्रकार की जि़हाफ़ से हम पैदा करेंगें मुज़ाहिफ़ रुक्‍न  । तो वही बात हुई कि जब रुक्‍न अपने मूल रूप में हो तो उसे सालिम रुक्‍न कहा जाता है । और जब उसमें कुछ जिह़ाफ़  से अर्थात मात्रा की घट बढ़ कर दी जाये तो वो मुज़ाहिफ़ रुक्‍न  कहलायेगा ।

सालिम रुक्‍न + जिहाफ़ = मुज़ाहिफ़ रुक्‍न

मुस्‍तफएलुन (2212) + जिहाफ़ (ख़ब्‍न) = मुज़ाहिफ़ रुक्‍न (मख़बून ) 1212

तो ये तो बहुत सी जानकारी है जो कि रुक्‍नों के बारे में है । आइये अब तो कलम उठा कर हम ग़ज़ल को लिखने की शुरूआत करें । ठीक है बहुत से लोग मेल द्वारा कुछ न कुछ बहाना कर चुके हैं । तो उनको उनके हाल पर छोड़ते हुए कम से कम आप तो ग़ज़ल लिखें । क्‍योंकि बहाने बाज तो हर स्थिति के लिये बहानों के साथ तैयार होते हैं । कभी बहर कठिन है तो कभी काफिया, कभी विषय कठिन है तो कभी रदीफ । एक कहावत है जिसमें कुछ ऐसा कहा गया है कि आंगन टेढ़ा और नाच वाच जैसा कुछ । अभी तो पूरी याद नहीं आ रही है आपको याद आये तो बताइये । मेरा ऐसा मानना है कि हम जिस बात को लेकर ( कवि, शायर, लेखक ) लोगों से अतिरिक्‍त फुटेज प्राप्‍त कर रहे हैं कम से कम उसके प्रति तो ईमानदार रहें । हम कवि के रूप में समाज से अतिरिक्‍त मान प्राप्‍त करना तो चाहते हैं लेकिन हम कविता नहीं लिखना चाहते । कुछ लोग तरही की घोषणा के साथ ही मेल कर देते हैं अरे इस बार तो बहुत कठिन है । ऐसा लगता है कि आगे से दो प्रकार के मिसरे देने होंगें एक सामान्‍य मिसरा और दूसरा बहरे हजज पर अत्‍यंत लचर मिसरा । क्‍योंकि हजज पर तो कम से वो लोग लिख ही पाएं ।

खैर आभार श्री राकेश खंडेलवाल जी, लावण्‍य शाह दीदी, श्री निर्मल सिद्धू, श्री नवीन चतुर्वेदी, श्री धर्मेंद्र सिंह सज्‍जन, श्री दिगंबर नासवा, डॉ संजय दानी और श्री सौरभ शेखर के प्रति जो उन्‍होंने समय पर रचनाएं भेज कर बात का मान रखा । आशा है 16 अक्‍टूबर तक बाकी लोगों की भी रचनाएं प्राप्‍त हो जाएंगीं ।

और एक नज़र इधर भी ।

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18 टिप्‍पणियां:

  1. गुरूजी,
    बह्र बढ़िया है अधिक मुश्किल नहीं है. गज़ल भी लगभग हो गई है..बस मतले में अटका हूँ बात बन नहीं रही है. जल्द ही भेजता हूँ. इतनी सारी नई जानकारी के लिए धन्यवाद.

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  3. तस्वीर के बारे में कहना तो भूल ही गया. बहुत ज़ोरदार है...

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  4. ये तस्‍वीर तो कुछ ऐसी है कि:
    तस्‍वीर दिखाता हूँ, फिर भी वो नहीं पटती बतर्ज़ तस्‍वीर बनाता हूँ, तस्‍वीर नहीं बनती।
    पंकज भाई डार्क चश्‍मा लगाने से लड़कियॉं समझ जाती हैं कि आईटम शरारती है।
    बह्र कठिन है ऐसा किसी ने मज़ाक में कह दिया होगा, ये तो एक अच्‍छी बह्र है। और अगर ये कठिन है तो फिर वाफि़र क्‍या है। रहा सवाल अब तक केवल आठ आने का तो आप देखेंगे कि:
    आठ से सोलह हुए, फिर मल्लिका से हो गये
    दीप कार्तिक मास भर तरही में यूँ जलते रहे।

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  6. ये किस हीरो की तस्वीर है, पहचान में नहीं आ रही है। ऐसा लगता है किसी फिल्म में देखा है मैंने। :))))))

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  7. मेरा किसी भी प्रकार का बहाना नही है गुरू जी ! बस आपने ही जो एक लक्ष्य दिया है वही १५ अक्टू को पूरा होना है और इस बीच बिलकुल भी समय नही है। और मिसरा तो क़तई कठिन नही है।

    चश्मा वश्मा.... बढ़िया है ऽऽऽऽऽऽऽ

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  8. बह्र ए खफीफ के नामकरण की आधारभूत जानकारी मिली,, साथ साथ जिहाफत का लेसन भी चल रहा है तो टू-इन-वन वाली बात हो रही है और दोहरा लाभ मिल रहा है

    इस बार मुशायरा बड़ा कड़ाई वाला दिखा रहा है :)

    मेरी ग़ज़ल भी बस पूरी होने वाली है जल्द ही भेजता हूँ

    फोटू झकास है :)))

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  9. है प्रतीक्षा कि राजीव,कंचन,तिलक
    और नीरज बिखेरें नई खुश्बुयें
    अर्श वीनस या अंकित की क्या मैं कहूँ
    नित्य ही और ऊँचाईयाँ वे छुयें
    रंग लेकर नवीनी नवीन आयें जब
    तब न सज्जनजी पीछे तनिक रह सकें
    रंग बिखराये तरही में आ इस तरह
    गीत गायें अगरबत्तियों के धुँय

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  10. जिहाफ़ भी...उफ्फ ! खैर बहुत ही अच्छी जानकारी मिली बहरे ख़फ़ीफ़ के बारे में जिसमे कुछ जानकारियाँ बाकी थीं! ग़ज़ल लिखने की कोशिश करूंगा कि समय रहते अपनी उपस्थिती दर्ज़ करा सकूँ!

    फोटू तो ओले ओले वाला टाईप है.. वेसे कल का क्या प्रोग्राम है?

    अर्श

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  11. सोलिड लेशन है. समझ में देर से आती है...
    फोटू देख सोच पे पड़ गया.

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  12. बहरे खफीफ की जानकारी का पिटारा, एक-एक बात करीने से ज़ेहन में उतार रहा हूँ. वैसे १६ अक्टूबर दूर नहीं है मगर अपनी ग़ज़ल के ओर-छोर पकड़ने की कोशिश कर रहा हूँ.
    फोटो तो कातिल है, चश्मा तो आपका माना जा सकता है मगर ये बाल किसके उड़ाए हैं. मेरे तो नहीं है शायाद, अरे भाई जिसके है पहचान लो. सन्नी के तो नहीं.

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  13. इस स्याह चश्में के पीछे निहायत ही उम्दा क़लमक़ार है जिसकी विलक्षण लेखन क्षमता का आज मैं भी क़ायल हो गया......

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  14. .



    प्रियवर पंकज सुबीर जी
    सादर सस्नेहाभिवादन !

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    आपको जन्मदिवस की हार्दिक बधाई-शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !

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    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  15. गुरूवर,

    प्रयास किया है और आज भेज भी दिया है हो सकता है ऊम्दा गज़लों के बाद कहीं भी जगह मिल जायेगी।


    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

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  16. आ. पंकज सुबीर जी, आप को जन्म दिन की बहुत बहुत शुभ कामनाएँ। हिन्दी साहित्य को उत्तरोत्तर समृद्ध करने के लिए समर्पित आप के साहित्यिक प्रयासों को सादर नमन। ईश्वर आप को शतायुषी वर दें और आप यूँ ही साहित्य रसिकों को अपने अर्जित ज्ञान और अनुभव से अभिभूत करते रहें।

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  18. Kavitayen kaisi vishay koi bhi chalega kya, bas last date to pata chal gai hai, haarne ke liye main bhi kavita bhej sakta hoon kya, agar haan to jaankari zarur chahunga aur anumati bhi. E mail nukkadh@gmail.com

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