दीपावली तीन दिनों का त्यौहार है, वैसे कुल मिलाकर पांच दिन होते हैं । धनतेरस, रूप चतुर्दशी ( नरक चौदस) , लक्ष्मी पूजन ( दीपावली) , गोवर्धन पूजा ( सुहाग पड़वां) और भाई दूज ( चित्र गुप्त पूजन, यम द्वितिया ) । किन्तु यदि तीन को ही माना जाये तो ये तीन दिन तीन प्रतीक हैं । प्रतीक हमारे जीवन के तीन अंगों का । तन, मन और धन । पहले हमारे जीवन में क्रम होता था मन, तन, धन अर्थात स्वस्थ मन पहले रखो, फिर बाद में तन और धन की सोचो । किन्तु अब हम पहले धन की सोचते हैं ( वो धन भी स्वस्थ धन नहीं है ) उस के चक्क्र में तन का सत्यानाश करते हैं और मन बिचारे के बारे में सोचने का समय तो आज किसी के पास भी नहीं है । व्यक्ति के जीवन में तीन स्वस्थ अंगों का महत्व है स्वस्थ मन, स्वस्थ तन और स्वस्थ धन । स्वस्थ सरस्वती, स्वस्थ काली और स्वस्थ लक्ष्मी । तीनों के लिये वर्ष भर में तीन अवसर आते हैं सरस्वती के लिये वसंत पंचमी, महाकाली के लिये दुर्गा अष्टमी और लक्ष्मी के लिये दीपावली । आइये हम भी प्रयास करें कि हमारे जीवन के ये तीनों अंग स्वस्थ रहें । आमीन ।
( सुप्रसिद्ध चित्रकार अमिता सिंह द्वारा बनाई गईं तीन पेंटिंग्स लक्ष्मी, गणेश और सरस्वती )
चलिये आज के मुशायरे की ओर चलते हैं । हां एक आवश्यक बात कुछ लोगों ने 'सू' का जेंडर जानना चाहा है तो 'सू' एक फारसी शब्द है जिसका अर्थ तरफ, ओर, दिशा होता है तथा ये स्त्रीलिंग होता है । तो आइये आज तीन शायरों से सुनते हैं ग़ज़ल । दो तो हमारे चिरपरिचित हैं तथा एक पहली बार आ रहे हैं । आज के शायर श्री दिगम्बर नासवा, श्री प्रकाश पाखी और डॉ. उमा शंकर साहिल कानपुरी ।
श्री दिगम्बर नासवा
ढोल मिरदंग बज रहे हर सू
थाल पूजा के हैं सजे हर सू
कारतिक माह की अमावस में
दूर तक रौशनी दिखे हर सू
राम सीता लखन के स्वागत में
राह में फूल हैं बिछे हर सू
तेरे आने की की सुगबुगाहट से
''दीप खुशियों के जल उठे हर सू''
फूंक पाते नहीं हैं दिल में उसे
यूँ तो रावण यहाँ जले हर सू
हो पड़ोसी का घर भी जब रौशन
तब ही दीपावली मने हर सू
राम है दिल में और रावण भी
जिस की चाहत वही मिले हर सू
वाह वाह वाह एक मुसलसल दीप पर्व में डूबी ग़ज़ल । ग़ज़ल जिसमें अतर लोबान की महक समाई हुई है । राम सीता लखन के स्वागत में राह में फूल हैं बिछे हर सू, क्या शब्द चित्र बनाया है मानो पुष्पक बस उतरने ही वाला है । इस ग़ज़ल की सबसे बड़ी विशेषता है कि इसमें किसी भी मिसरे में रदीफ असंबद्ध नहीं हो रहा है । तेरे आने की सुगबुगाहट में सुगबुगाहट ने जादू जगा दिया है । बधाई बधाई बधाई ।
श्री प्रकाश पाखी
दीप खुशियों के जल उठे हर सू
प्रेम के साज बज रहे हर सू
इल्म ताबूत था, गुरूर कफ़न
दफ्न कितने ही हैं पड़े हर सू
था कभी दौरे मजमा पास उनके
अब वो तनहा से फिर रहे हर सू
दौर कैसा ये जलजले कैसे
कटते आए हैं सर झुके हर सू
कौम जिन्दा नहीं, ये तय है,गर
बंद मुट्ठी नहीं उठे हर सू
वाह वाह, अलग तरीके से लिखी गई ग़ज़ल । सामयिक बातों को दर्शन के तड़के के साथ समेटने का सफल प्रयास । इलम ताबूत था गुरूर कफ़न में दार्शनिकता अपनी चरम पर है, और संस्कृत के श्लोक से पुष्ट है कि विद्या ददाति विनयम । कौम जिंदा नहीं ये तय है गर में बहुत तेवर के साथ बात कही है । था कभी दौरे मजमा में एक बार फिर कड़वे यथार्थ को गूंथा है । बधाई बधाई बधाई ।
डॉ. उमा शंकर साहिल कानपुरी
साहिल साहब मुशायरे में पहली बार आ रहे हैं सो पहले इनका परिचय हो जाये । आप जी बी पन्त विश्वविधालय के कृषि महाविद्यालय पंतनगर में senior researcher हैं. गीत, ग़ज़ल में अधिक कार्य किया है बनिस्बत दूसरी विधायों के. मंच पर अच्छी पकड़ है। रेडियो, टी.वी. पर कई बार प्रस्तुती दे चुके हैं। पिछले दिनों एक संग्रह " खिज़ां के फूल" नाम से आया है. सृजन सांस्कृतिक संस्था(पंतनगर) के उपाध्यक्ष व साहित्यिक संस्था "संकल्प" (पंतनगर) के अध्यक्ष हैं ।
मीत बरसों में जब मिले हर सू
दीप खुशियों के जल उठे हर सू
खुशबू खुशबू है बाग़ चाहत का
दिल की शाखों पे गुल खिले हर सू
राख हो जाए शहर पल भर में
आग नफरत की जब लगे हर सू
भागे मैदान छोड़कर कौरव
तीर अर्जुन के जब चले हर सू
आम से ख़ास मुंह छुपाने लगे
राज़ भ्रष्टों के जब खुले हर सू
बाद मुद्दत के खुश हुआ "साहिल"
दीप घर घर में जब जले हर सू
वाह वाह वाह । आते ही धमाका कर दिया है साहिल जी ने । आम से खास मुंह छुपाने लगे में देश की वर्तमान स्थिति को मुखर होकर स्वर प्रदान किया है । खुश्बू खुश्बू है बाग चाहत का में बारीकी से बांधा है दोनों मिसरों को । और भागे मैदान छोड़कर कौरव में अर्जुन के तीर बाकमाल हैं । मकते में दीपावली को सुंदर तरीके से अभिव्यक्त किया गया है । शुभागमन हुआ है साहिल जी का मुशायरे में । बधाई बधाई बधाई ।
खूब आनंद बरसाया है आज के तीनों शायरों ने और तीन अलग अलग तरीकों से अपनी बात को बांधा है । सो दाद दीजिये कि इन शायरों ने अपना समय निकाल कर ये अशआर कहे । सुझाव आया है कि यदि सबकी रिकार्डिंग मिल जाये तो दीपावली के बाद इस पूरे मुशायरे का एक पोडकास्ट किया जाये । आपका क्या विचार है । मुझे तो अच्छा लग रहा है । तो देते रहिये दाद और लेते रहिये आनंद ।
वाह. एक बार भी तीन ज़ोरदार ग़ज़लें..
जवाब देंहटाएंदिगंबर जी:
एकदम दीपावली के माहौल वाली गज़ल कही है और सब शेर बहुत खूसूरत. गिरह भी खूब बाँधी है. मतला भी बहुत सुंदर है. सभी शेर पसंद आये लेकिन जो सब से अधिक भाये वो हैं. "राम है दिल में और रावण भी/जिस की चाहत वही मिले." वाह. "हो पडोसी का घर भी जब रौशन.." बहुत नेक ख्याल. बहुत बहुत बधाई.
प्रकाश जी:
बहुत बढिया मतला है. "इल्म ताबूत था, गरूर कफ़न.." क्या मिसरा है और क्या शेर है. एकदम चौंकाने वाला और दार्शनिक पुट लिए. वाह. "था कभी दौरे मजमा.." और "दौर कैसा ये जलजले कैसे/कटते आये हैं सर झुके हर सू." क्या गहरे शेर कहे हैं. आखिरी शेर तो एकदम सामयिक और लाजवाब! बहुत बहुत बधाई.
उमाशंकर जी:
आपको पहली बार पढ़ रहा हूँ और पहली बार में ही बहुत प्रभावित हुआ हूँ. मतले में तरही मिसरा बहुत ही खूबसूरती से प्रयोग किया है. "खुशबु खुशबू है बाग चाहत का.."वाह क्या शेर है. "राख हो जाए शह्र पल भर में.." बहुत बढ़िया. "आम से खास मुंह छुपाने लगे." आज के दौर की बात कही है. इस उम्दा गज़ल के लिए दिली मुबारकबाद.
hindi me kament karane ke liye pahale computer band karana paDegaa . baad me aatee hoon blog deklh kar lagataa hai aaj hi diwali hai ati sundar. shubhakamanayen badhai. comment ke liye fir ati hoon dopahar ke baad
जवाब देंहटाएंफिलहाल पाखी साब की तरही पर ठिठका हुआ हूँ....
जवाब देंहटाएंवाह क्या शेर कहे हैं| इतने दिनों बाद इनको पढ़ना हुआ और चकित कर दिया जनाब ने |
इतने दिनो तक छुपे हुये थे और अब शेरों में ये उस्तादी निखार ....उफ़्फ़ !
इल्म ताबूत, गुरूर कफन वाला मिसरा शब्दातीत किए हुये है|
॥और आखिरी शेर भी .... सलाम पाखी साब, सलाम!
नसावा जी की " हो पड़ोसी...", "राम है दिल में " बहुत रोशन ख्याल के, दिवाली-नुमा अशआर ! बहुत बधाई!
जवाब देंहटाएंपाखी जी का लिखा जब भी पढ़ा है अच्छा लगा है, इसलिए इल्म वाले शेर का भाव तो समझ में आ गया पर लगा कि इल्म शब्द के बजाय कुछ और जो केवल किताबी पढ़ाई या कुछ ऐसा ही प्रयोग होता तो अधिक ठीक रहता क्योंकि 'इल्म' तो 'ज्ञान' है केवल पढ़ाई नहीं. पता नहीं मैं गलत भी हो सकती हूँ. पांखी जी समझाइएगा कृपया.
गुरूर कफ़न होने का भाव अतिउत्तम! मक्ता आज के हालत का आइना सा है... सशक्त!
साहिल जी को पहलीबार पढ़ा है. अच्छी ग़ज़ल कही है उन्होंने. "आम से ख़ास..." बहुत ही असरदार शेर!
सादर
wah wah teno bahut hi acchi gazal hain. lekin digambar nasva ji ki gazal ek aisi gazal hai jiske har sher mein har soo ka justification ho raha hai. aisa is baar bahut kam dekhne ko mila k har soo ka nirvaah poori tarah se ho. bahut acchi gazal badhai..........
जवाब देंहटाएंमुशायरा बहुत अच्छी तरह से आगे बढ़ रहा है.
जवाब देंहटाएंआज भी तीनों शायरों की ग़ज़लें बहुत पसंद की जायेंगी.और रचनाकार तो खैर अपनी जगह हैं हीं,आपकी कलात्मक प्रस्तुति ने समां बांध दिया है.
@शार्दूला जी
जवाब देंहटाएंयहाँ इल्म का अर्थ सतही ज्ञान ही है,क्यूंकि विशुद्ध और सर्वोच्च ज्ञान के साथ गुरुर कभी जुड़ ही नहीं सकता...ज्ञान और गुरुर आपस में सम्बन्धित है...यह भाव आते ही यहाँ इल्म का अर्थ सतही ज्ञान बन जाता है...मेरा ऐसा ही मंतव्य था..
vaah vaah vaah vaahvah vaah.
जवाब देंहटाएंbahut khoob.ek se badh kar ek ghazal. kamaal kar hai teenon shaayaron ne.digambar ji shaardula ji aur kaanpuri saahab, aap teenon ne hi ye mushaayaraa loot liyaa hai. bahut-bahut badhaaee.
दीप खुशियों के जल उठे हर सू
जवाब देंहटाएंशायरी महके आप से हर सू !!
यही कहना चाहूँगा दिगंबर जी की गजल सुनने के बाद.
प्रकाश पाखी जी ने फिर से चौंकाया है. था कभी दौरे मजमा... विशेष पसंद आये.
श्री साहिल कानपुरी जी ने जो समां बाँधा है मजा आ गया. विशेष कर आम से ख़ास.... के क्या कहने. सामयिक सुर सुन्दर प्रस्तुति !!
आप तीनो को बहुत बहुत बधाई!!
ऊपर "टीम आई.डी. से टिप्पणि हो गयी." यह भी खूब रही.
जवाब देंहटाएंतीनो ही शायरों ने अच्छे शेर कहें हैं.
जवाब देंहटाएंदिगम्बर जी, क्या खूब शेर निकाले हैं, हर शेर दीपावली के आगमन और सुन्दरता को बढ़ा रहा है. गिरह तो बहुत उम्दा बाँधी है. "फूंक पाते नहीं............", अच्छा शेर कहा है."राम है दिल में........", वाह वा. बधाई स्वीकारें.
प्रकाश पाखी जी तो अब बस तरही तरही में ही नज़र आते हैं, मगर जब भी आते हैं तो कुछ यादगार शेर दे जाते हैं.
"इल्म ताबूत था..........", बहुत गहरी बात कह दी है. इस एक शेर का ही नशा इतना है कि आगे नहीं बढ़ने दे रहा है. ढेरों दाद सिर्फ इस शेर के लिए, बाकी के लिए अलग से.
"था कभी दौरे मजमा.............", उफ्फ्फ, फिर से मारक शेर. वाह वा
"दौर कैसा ये.........", उम्दा कहन, लाजवाब शेर.
"कौम जिंदा............." अच्छा शेर है.
एक मुकम्मल ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई.
गुरुदेव, डॉ. उमा शंकर साहिल साब इससे पहले पिछले साल आयोजित बरसाती तरही "फ़लक पे झूम रही ..........." में आग़ाज़ कर चुके हैं. अब तो ये भी पुराने हो गए हैं.
साहिल साब, गिरह अच्छी बाँधी है.
"भागे मैदान................", अच्छा शेर कहा है और काफिये के साथ बहुत अच्छे से निभाया है. बधाइयाँ डाक साब.
एक अच्छी ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद.
गुरुदेव आपने, पोस्ट की शुरुआत में गाँठ बाँध के रखने वाली बातें कही हैं. वाकई, व्यक्ति के जीवन में तीन स्वस्थ अंगों का महत्व है स्वस्थ मन, स्वस्थ तन और स्वस्थ धन । सभी के जीवन के ये तीनों अंग स्वस्थ रहें, यही दुआ करता हूँ. आमीन
जवाब देंहटाएंरेकॉर्डिंग का सुझाव तो अच्छा है.
वाह...दीवाली पर अशआरों के धमाकों पर धमाके हो रहे हैं...फुलझड़ियाँ छूट रहीं हैं...रॉकेट चल रहे हैं...जमीन चक्कर घूम रहे हैं...इनकी रौशनी से आँखें चुंधिया रही हैं...
जवाब देंहटाएंतेरे आने की सुगबुगाहट में
दीप खुशियों के जल उठे हर सू
"सुगबुगाहट" का इतना सुन्दर प्रयोग मैंने आज तक किसी शेर में नहीं पढ़ा...इस लफ्ज़ के खूबसूरत इस्तेमाल के लिए दिगंबर जी को तहे दिल से दाद देता हूँ
फूंक पाते नहीं हैं दिल में उसे
यूँ तो रावण यहाँ जले हर सू
इंसानी फितरत और दिल में पल रहे राग द्वेष पर करारा व्यंग है.
राम है और दिल में रावण भी
जिसकी चाहत वाही मिले हर सू
जिसकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत तिन देखी वैसी का क्या खूब शायरी में रूपांतरण किया है...वाह...
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इल्म ताबूत था गुरुर कफ़न
दफन कितने ही हैं पड़े हर सू
इस शेर के लिए प्रकाश जी की जितनी प्रशंशा की जाय कम होगी...कमाल का शेर कहा है.
कौम जिंदा नहीं ये तय है गर
बंद मुठ्ठी नहीं उठे हर सू
बेहतरीन शेर...ढेरों दाद इस ग़ज़ल के लिए
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खुशबू खुशबू है बाग़ चाहत का
दिल की शाखों पे गुल खिले हर सू
वाह...बेहतरीन शेर...जिस अंदाज़ से कहा गया है वो काबिले दाद है.
आम से खास मुंह छुपाने लगे
राज़ भ्रष्टों के जब खुले हर सू
आज के जेल जाने में होड़ लगा रहे नेताओं पर कड़ा प्रहार किया है
उमा शंकर जी को पहली बात पढ़ कर बहुत अच्छा लगा...उम्मीद करते हैं इनकी कलम का जादू गाहे बगाहे देखने को मिलता रहेगा.
तालियाँ...तालियाँ...तालियाँ...इस लाजवाब मुशायरे के आयोजन के लिए...ये मुशायरा ब्लॉग जगत में मील का पत्थर साबित होने वाला है.
नीरज
पोस्ट के आरम्भ में आपने जो तत्व ज्ञान की बातें समझाई हैं उस से किसी के लिए भी ये समझना आसान होगा कि आप सब के गुरु क्यूँ कहलाते हैं. चंद शब्दों में जीवन का सार निचोड़ कर रख दिया है आपने. आप सच्चे मार्ग दर्शक हैं.
जवाब देंहटाएंनीरज
आदरणीय
जवाब देंहटाएंआपके इस मुशायरे का नियमित श्रोता और पाठक हूँ यद्यपि सभी गज़लें एक से बढ़ कर एक मिल रही हैं और समय की सीमितता के कारण सभी पर कुछ कह पाना सम्भव नहीं हो पाता लेकिन आज के एक शेर
इल्म ताबूत-------- ने अपने आप मज़बूर किया कि बधाई दूँ आपको.
कुछ शेर जो याद की किताब में दर्ज़ हो चुके हैं--
हमने गुल्लक में जो सहेजे थे----
नाम दीपक का हो रहा--------
अक्स अपना ही मुझको खलने लगा.
धन्यवाद एवं शुभकामनायें
आज प्रस्तुत तीनों ग़ज़लों ने एक गंभर समस्या खड़ी कर दी जब विशेष पसंद आये शेर छॉंटने चला। अब सब के सब तो पुर्नुद्धरित करने करने का कोई कारण नहीं दिखता। एक से बढ़ कर एक, सब के ख़याल नेक।
जवाब देंहटाएंसभी को बधाई।
क्या कहें, क्या ना कहें ये कैसी मुश्किल हाय।
जवाब देंहटाएंकोई तो बता दे इसका हल ओ मेरे भाय।
तीनों ही शायरों ने गजब के अश’आर कहे हैं। कई कई बार पढ़ चुका हूँ। मुशायरा तो अपने पूरे शबाब पर आ गया है। तीनों शायरों को इन शानदार ग़ज़लों के लिए बहुत बहुत बधाई
झिलमिल-झिलमिल और चटक रंगों ने भान करा दिया है कि दीपावली आही गयी है.
जवाब देंहटाएंसाइट की शोभा बरनी न जाय !
दिगम्बर नासवाजी ने ’हर सू’ शब्द का बखूबी प्रयोग किया है. ’तेरे आने की सुगबुगाहट..’ को बेहतर ढंग से बाँधा गया है. दीपावली के प्रतीकों का उपयोग कर अपनी बातें कहना भला लगा. मक्ते के लिये विशेष बधाई.
प्रकाश पाखीजी की इल्म और ग़ुरूर को इस तरीके बांधना रोचक लगा है. दौर कैसा भी हो सारी मुसीबतें झेलता एक मासूम ही है. मक्ते के लिये हृदय से बधाई. क्या ताव है ! बहुत खूब.
उमाशंकर साहिल कानपुरीजी का मतला सीधी-सीधी बात करने में बहुत कुछ कह गया. आपके अश’आर की ताज़ग़ी ध्यान खींचती है. आने वाले दिनों में आपके कहने की प्रतीक्षा रहेगी.
हृदय से बधाई आज के तीनों ही शायरों को.
--सौरभ पाण्डॆय, नैनी, इलाहाबाद (उप्र)
प्रकाश जी ने पिछली तरही में भी बहुत अच्छी तरही कही थी और अबकी भी....
जवाब देंहटाएंदिगंबर जी की रचनाएं दिन ब दिन परवान चढ़ रही हैं
और कानपुरी जी की बात यूँ भी अच्छी ही लगेगी ना कानपुर के जो ठहरे
फूंक पाते नहीं हैं दिल में उसे
जवाब देंहटाएंयूँ तो रावण यहाँ जले हर सू
नासवा जी की शुद्ध दीपावलीमय ख़ूबसूरत ग़ज़ल का हासिल ए ग़ज़ल शेर
बहुत ख़ूब !!
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कौम जिंदा नहीं ये तय है गर
बंद मुठ्ठी नहीं उठे हर सू
बेहतरीन अक्कासी है आम इन्सान की ज़हनी कैफ़ियत की
क्या बात है !!
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आम से खास मुंह छुपाने लगे
राज़ भ्रष्टों के जब खुले हर सू
आज के समाज और निकट भविष्य की स्थिति का सटीक चित्रण ,,
बहुत सुंदर !!
तीनों शो’अरा को बहुत बहुत मुबारक हो
कल मैं इस पोस्ट को बहुत जल्दी -जल्दी में देख पाया था.
जवाब देंहटाएंऔर बहुत जल्दी में अपनी टिप्पणी में पाखी जी को शार्द्ला लिख गया हूँ.
यह मैंने अभी नोट किया है. क्षमा याचक हूँ.
उजालों की इस मोहक महफ़िल के लिए बधाई.
dदोनो की गज़लें बार बार पढ रही हूँ, हैरान हूँ कि इतने उमदा शेर कैसे लिखे जाते हैं ,हर एक शेर लाजवाब. मै तो एक भी शेर नही कह पाई\ दोनो को बहुत बहुत बधाई लाजवाब शायरी के लिये और सब को दीपावली की शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंएक से बढ़ कर एक ग़ज़लें! धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंमुशायरा अपने जोबन पे चल रहा है ... पाखी जी के शेर और गज़ल पढ़ के लग रहा है जैसे किसी उस्ताद को पढ़ रहा हूँ ... इल्म ताबूत था ... और .. कौम जिन्दा नहीं ... बहुत ही गहरी बात कहते हैं .. बधाई है इस मुकम्मल गज़ल के लिए ...
जवाब देंहटाएंसाहिल साहब ने भी कमाल किया है ...पहली बार में ही दिवाली के धमाके की तरह छा गए ... सामाजिक प्रष्टभूमि में लिखे शेर अपना असर छोड़ते हैं ... बहुत बहुत बधाई दोनों शायरों को ...
और गुरुदेव गज़ल के अलावा भी कितना कुछ मिल रहा ही हर पोस्ट में वो बयान नहीं कर सकता ... दिवाली की खुशियाँ यूँ ही फूटती रहें हर सू ...
कल पाखी साब की तरही में ऐसा उलझा रहा कि बाकी दो शायर पे कुछ कह ही न सका|
जवाब देंहटाएंदिगंबर जी तो अपने फेवरिट लिक्खाडों में से एक हैं| आजकल वैसे ही छाए हुये हैं ब्लौग जगत में खूब अपनी इश्किया कविताई और छंदों से.... और ये तरही मुशायरे के थीम पर एकदम सही उतरती हुई उनकी ग़ज़ल...वाह!
उमाशंकर जी को पहली बार पढ़ रहा हूँ| अच्छी कहाँ है उनकी.... बधाई !
ग़ज़ब की ग़ज़ल कहने का शऊर सबमें
जवाब देंहटाएंहरेक शेर की महक शोहरत सी फैली हर सूँ ....
वो हो मुक्तक, ग़ज़ल या फिर कविता
जवाब देंहटाएंनासवा जी तो छा गए हर सू
अपने ब्लॉग की दूसरी ही पोस्ट से धूम मचा रहे हैं आप दिगंबर भाई| वो आप की सीलन वाली कविता मेरे ज़ेहन में गहरे पैठी हुई है| हर विधा में कमाल कर रहे हैं आप| उम्मीद करता हूँ जल्द ही आप के छन्द भी पढ़ने को मिलेंगे| प्रस्तुत ग़ज़ल का रावण वाला शेर हो या राम-रावण वाला शेर, आप ने अपनी लेखनी का जादू बखूबी बिखेरा है| बहुत बहुत बधाई इस खुबसूरत ग़ज़ल के लिए|
सुभाषितानि को ग़ज़ल में उतारने के लिए प्रकाश पाखी भाई का बहुत बहुत आभार| 'कटते आये हैं' के ज़रिये सामाजिक विडम्बना पर गहरा कटाक्ष कर रही है आपकी यह ग़ज़ल| बंद मुट्ठी वाले शेर के ज़रिये भी आप ने अपने मनोभावों को अभिव्यक्ति के धरातल पर लाने का भरसक प्रयास किया है| इस डिफ़रेंट टाइप की ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें पाखी भाई|
हुमा कानपुरी जी को शायद पहली मर्तबा पढ़ रहा हूँ| अतिरंजन और नैराश्य के मध्य बतिया रही है आपकी ग़ज़ल| विद्वानों के अनुसार कवि का धर्म होता है अपने रचना संसार में विविध कालों को समेटना| महाभारत काल की चर्चा कर के आप ने उस नियम का विधिवत अनुपालन किया है| भ्रष्ट राज वाले शेर की जिद्दत जबरदस्त है| इस खुबसूरत ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई|
ॐ
जवाब देंहटाएंश्री दिगम्बर नासवा, प्रकाश पाखी तथा डॉ. उमा शंकर साहिल कानपुरी जी की उम्दा रचनाएं आज ही देख रही हूँ - उन्हें सच्चे ह्रदय से बधाई देते दीपावली की शुभ कामनाएं भी भेज रही हूँ
- स्वस्तिमाय शुभ मंगल -
- लावन्या
गजब गजब के शायर हैं इस महफिल में.
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