त्यौहारों के अवसर पर आयोजन की एक लम्बी परंपरा हमारे देश में रही है । दीपावली पर, ईद पर, होली पर, 15 अगस्त पर पहले काफी काव्य गोष्ठियां, मुशायरे होते थे । ये सब त्यौहार के माहौल में चार चांद लगा देते थे । त्यौहार बीत जाने के बाद भी चलते रहते थे आयोजन । धीरे धीरे सब कम हो गया और कहीं कहीं तो ख़त्म भी हो गया । अब मेरे ही उस शहर में जहां दीपावली और ईद की नशिश्तों में जनाब क़ैफ़ भोपाली साहब, शेरी भोपाली साहब जैसे लोग आया करते थे, उस शहर में न ईद पर कोई नशिश्त होती है और न दीपावली पर । खैर भला हो इंटरनेट का कि किसी रूप में ही सही हम उस परंपरा को जीवित तो रख पा रहे हैं । और इस बार के तरही को जिस प्रकार से सबका प्रतिसाद ग़ज़लों के और ग़ज़लों पर टिप्पणियों के रूप में मिल रहा है उससे मन गार्डन गार्डन हो रहा है । तो आइये आज के शायरों को सुना जाये । आज के मुशायरे में तीन शायर हैं श्री निर्मल सिद्धू, डॉ. संजय दानी और वीनस केसरी ।
( कलमकारी पैंटिंग से बने श्री गणेश, लक्ष्मी और सरस्वती)
आज के तीनों शायर का परिचय देने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि ये हमारे मुशायरों के जाने पहचान नाम हैं । पहले भी मुशायरों में अपने अशआरों से सबका दिल जीत चुके हैं और आज भी यही करने वाले हैं । स्वागत कीजिये श्री निर्मल सिद्धू, डॉ. संजय दानी और वीनस केसरी का ।
डॉ. संजय दानी
दीप खुशियों के यूं जले हर सू,
तीरगी ख़ौफ़ में रहे हर सू।
सुख के बाज़ार बंद होने लगे ,
गम के सामान ही बिके हर सू।
है कठिन फ़र्ज़ का सफ़र लेकिन,
चलने वाले हैं चल रहे हर सू।
हमपे सरहद का ज़िम्मा है जब तो,
दुश्मनों का लहू बहे हर सू।
चांदनी बेवफ़ाई में डूबी,
चांद को ताने ही मिले हर सू।
हुस्न के बेरहम समंदर में,
साहिले इश्क़ कुछ बने हर सू'
क्यूं अमीरों की जंग में दानी,
बस ग़रीबों के सर कटे हर सू।
वाह वाह वाह अच्छे शेर निकाले हैं डाक्टर साहब ने । सबसे सुंदर बन पड़ा है मकता, बड़ी गहरी बात को बहुत सरल तरीके से बांध कर कमाल किया है दानी जी ने । है कठिन फ़र्ज का सफर में दर्शन को सुदंरता से बांधा है संजय जी ने । मतले में भी रदीफ को बहुत ही बढि़या निभाया है । बधाई बधाई बधाई ।
वीनस केसरी
आज हम पूछते फिरे हर सू
वो ही वो क्यों हमें दिखे हर सू
जब से वो फूल मुस्कुराया है
कोई खुशबू रहे मेरे हर सू
उसने क्या कह दिया है कुदरत से
दीप खुशियों के जल उठे हर सू
बज़्म में खुल के उनको क्या देखा
उफ़ ! वो घबरा के देखते हर सूं
अक्स अपना ही मुझको खलने लगा
मिल रहे जब से आईने हर सू
बाँटते है हम अपनी दुश्वारी
चाहते हैं खुशी मिले हर सू
आज सपनों को कर ले सच 'वीनस'
दे रही है सदा तुझे हर सू
गौतम भैया के लिये एक शेर
उनकी यादों के लम्स में क्या था
हो रहे हैं जो रतजगे हर सू
बज़्म में खुल के उनको क्या देखा, बड़े ही उस्तादाना तरीके से लिखा है वीनस ने इस शेर को और मिसरा सानी में उफ की तो बात ही निराली है । अक्स अपना ही मुझको खलने लगा बड़ा गहरा शेर है सीधे राजनीति से जाकर टकरा रहा है । ये ही वो तरीका है जिससे व्यवस्था के खिलाफ शेर कहे जाते हैं । बधाई बधाई बधाई ।
श्री निर्मल सिद्धू
दीप ख़ुशियों के जल उठे हर सू
रात, दिन बन गई लगे हर सू
जगमगाने लगा शहर कुछ यूं
बस चमक ही चमक दिखे हर सू
बाद मुद्दत के हो रही हलचल
नगर में मेले हैं लगे हर सू
है चमकता सितारों सा हर घर
जोत से जोत जब जगे हर सू
शोर है मच रहा पटाख़ों का
यूं नदी जोश की बहे हर सू
गुनगुनाता रहे चमन सारा
प्यार की बात ही चले हर सू
दूर दुनिया से ग़म जो हो जायें
गीत उल्फ़त का बज उठे हर सू
मुस्कुराते हुये वो आये जब
यूं लगा फूल हैं खिले हर सू
ज़िन्दगी मौज में गुज़र जाये
वो चलें साथ जो मिरे हर सू
प्यार को तेरे कोई ना समझे
तू तो निर्मल यूं ही बिके हर सू
गुनगुनाता रहे चमन सारा, प्यार की बात ही चले हर सू, उम्दा तरीके से दुआ मांगी है निर्मल जी ने काश ये दुआ क़ुबूल हो जाए । मुस्कुराते हुए वो आये जब में बहुत ही सादगी से बात को यूं कहा है कि उस मासूमियत पर दिल क़ुर्बान । और फिर एक निर्मल सी दुआ कि दूर दुनिया से ग़म जो हो जाएं । वाह वाह वाह । बधाई बधाई बधाई ।
तो देवियों और सज्जनों ये हैं आज के तीनों बाकमाल शायर । तीनों ने बहुत सुंदर अशआर कहे हैं और आनंद के अशआर कहे हैं । सो आनंद लीजिये तीनों ग़ज़लों का और देते रहिये दाद । क्योंकि ये वो रस है जो बेमोल मिलता है, इस रस की कोई क़ीमत नहीं, बस ज़रा दोनों हाथों को कष्ट देकर तालियां बजा दीजिये और मुंह से वाह वाह कर दीजिये हो गया काम । तो आनंद लीजिये ।
वाह वाह. गजब हो रहा है मुशायरे में इस बार. बहुत ही खूसूरत ग़ज़लें आ रही हैं.
जवाब देंहटाएंसंजय दानी जी की गज़ल बहुत बढ़िया है. ये शेर :
"सुख के बाज़ार बंद होने लगे..", "है कठिन फ़र्ज़ का सफर लेकिन..", "चाँदनी बेवफाई में डूबी.." वाह! मकते की तो जितनी तारीफ़ की जाये कम होगी.. बहुत बहुत बधाई संजय जी.
वीनस ने बहुत ही खूबसूरत शेर कहे हैं. आनंद आ गया. गिरह बहुत बढ़िया बाँधी है. मतला बहुत खूबसूरत है और फिर :
"जब से कोई फूल मुस्कुराया है/कोई खुशबू रहे मेरे हर सू." लाजवाब! क्या बात है!
"बज़्म में खुल के उनको क्या देखा..", "अक्स अपना ही मुझको खलने लगा.." बहुत उम्दा.
"बांटते हैं हम अपनी दुश्वारी/चाहते हैं खुशी मिले हर सू." कितनी बड़ी बात कही है.
और अंत में उतना ही खूबसूरत मकता. क्या कहने.
छा गए!
निर्मल सिद्धू जी कि गज़ल..वाह. मतला तो एकदम हट के. दूसरे मिसरे ने चौंका दिया. और फिर ये शेर:
"गुनगुनाता रहे चमन सारा/प्यार की बात ही चले हर सू." बहुत बढ़िया.
"दूर दुनिया से गम जो हो जाएँ.." वाह.
और "मुस्कुराते हुए वो आये जब/यूं लगा फूल है खिले हर सू." , "जिंदगी मौज में गुजर जाए,/वो चलें साथ जो मेरे हर सू." बहुत प्यारे शेर.
मकता तो बेहद बेहद पसंद आया. निर्मल जी, दाद कबूल करें.
वाह सभी ने क्या शेर निकाले हैं. अभी लम्बी टिप्पणी नही दे सकूँगी़ सब को अच्छी गज़लों के लिये बहुत बहुत बधाई. आप[ाको भी बधाई, शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंबेमिसाल ! उफ़ एक पर एक लाजवाब.
जवाब देंहटाएंडॉ. संजय दानी जी के अशआर
है कठिन फ़र्ज़ का सफ़र लेकिन,
चलने वाले हैं चल रहे हर सू।
क्या खाने दिल की बात, दिल जीत ले गए दानी साहब.
क्यूं अमीरों की जंग में दानी, बस ग़रीबों के सर कटे हर सू। बहुत खूब! बधाई !!
बेमिसाल ! उफ़ एक पर एक लाजवाब.
जवाब देंहटाएंवीनस जी के अशआर
जब से वो फूल मुस्कुराया है
कोई खुशबू रहे मेरे हर सू
बज़्म में खुल के उनको क्या देखा
उफ़ ! वो घबरा के देखते हर सूं
बाँटते है हम अपनी दुश्वारी
चाहते हैं खुशी मिले हर सू
आज सपनों को कर ले सच 'वीनस'
दे रही है सदा तुझे हर सू
बहुत बहुत बहुत सुन्दर!
और निर्मल सिद्धू जी के अशआर
जवाब देंहटाएंबाद मुद्दत के हो रही हलचल
नगर में मेले हैं लगे हर सू
गुनगुनाता रहे चमन सारा
प्यार की बात ही चले हर सू
ज़िन्दगी मौज में गुज़र जाये
वो चलें साथ जो मिरे हर सू
वाह वाह ! वाह वाह !! बहुत बधाई आप सभी को.
सौरभ शेखर के शेर-
जवाब देंहटाएंकुछ बियाबाँ अभी भी वीराँ है
यूँ तो रौनक बहुत लगे हरसू
तीरगी मान की जो मिटा पाए
काश ऐसा दिया जले हर सू
वाह क्या आगाज था मुशायरे का....और गुरुदेव की ब्लाग की छटा मान मोहने वाली रही..
अश्विन रमेश साहब ने
आज उठती ख़ुशी की लहरें है
आज सब नाचते मिले हर सू
कहकर क्या समां बांधा है ...देर से दाद नजर कर रहा हूँ... पर मजा आगया..
फिर अगले दौर में शेषधर तिवारी जी की ग़जल ने मुशायरा लूट लिया...
आज भी सवाल है सहरा में
आब ही आब क्यूँ दिखे हर सू
ख्वाहिशें बढ़ गयी है अब इतनी
आज इमान बिक रहे हर सू
हर शेर हजारों तारीफों का हक़ दार है..वाह वाह!
और सौरभ पाण्डेय जी
रोटियां कर रही है उसे नंगा
शर्म की बात क्यों करे हर सू
बात परवाज की कहो क्यों हो
पर कटे बाज रह गए हर सू
उस्तादों को सलाम...वाह!वाह!!वाह!!
तारीफ में शब्द कम पड़ेंगे... अच्छे अच्छे मुशायरे इस तरही मुशायरे के आगे फीके पड़ने वाले है...
आज की गजलों पर सोचता हूँ कि दिलों जान न्योच्छावर कर दूं वाह वाह...
दानी साहब तो वैसे भी उस्ताद है गजलों के...
क्यूँ अमीरों की जंग में दानी
बस गरीबों के सर कटे हर सू
कितनी भी दाद दें कम पड़ेगी...
वीनस भाई तो गजब ढ़ा रहे है हर शेर लाजवाब है...
अक्स अपना ही मुझको खलने लगा
मिल रहे जब से आईने हर सू
भाई क्या जान लोगे...ऐसे गजब के शेर कहकर...अपुन तो अब शायरी से भी किनारा कर ले तो अच्छा है...आपके आगे तो अपने शेर टुच्चे से लगेंगे....
वाह वाह वाह....वाह वाह वाह !
निर्मल सिद्धू साहब...
आपने दिवाली के लिए क्या दुआएं महका दी है हर सू..वाह वाह !
है चमकता सितारों सा हर घर..
जोत से जोत जब जगे हर सू..
हर शेर तारीफ़ के काबिल है...समय के अभाव में कम लिख पा रहा हूँ इसलिए तारीफ़ में वह भी शामिल किया जाए जो...दिल में आ रहा है पर लिख नहीं पा रहा हूँ..
प्रकाश पाखी
जिस तरही में ऐसे बाकमाल शेर आ जाएँ उस पर हम कोई क्या टिप्पणी करें?...ये तरही नहीं है उस्तादों का दंगल है...जिसमें जीत हार नहीं है सिर्फ पाठकों के आनंद का सामान है...आनंद भी भरपूर...वाह...जियो...कमाल के अशार पढवाने के लिए संजय दानी , वीनस केसरी (इसे तो हिंद केसरी होना चाहिए ) और निर्मल सिद्धू जी आप तीनों का बहुत बहुत शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंक्यूँ अमीरों की जंग में 'दानी'
बस ग़रीबों के सर कटे हर सू
***
बज़्म में खुल के उनको क्या देखा
उफ़! वो घबरा के देखते हर सू
***
गुनगुनाता रहे चमन सारा
प्यार की बात ही चले हर सू
नीरज
संजयभाईजी की कलम से वाकिफ़ हूँ और उन्हें पढ़ता रहा हूँ.
जवाब देंहटाएंहै कठिन फ़र्ज़ का सफ़र लेकिन
चलनेवाले हैं चल रहे हर सू
आपके इस शेर ने देर तक थामे रखा. कहन में पूरी दुनियादारी समायी हुई है.
मक्ते में आप सवाल कम हक़क़तबयानी ज़ियादा करते दीखते हैं. सिवा मौन हामी भरने के कोई कुछ नहीं कर सकता.
ग़ज़ल पर बधाई संजयसाहब.
वीनस केशरी.. ये नाम भर नहीं है. इस छोटकू की शख़्सियत में मुझे ’एनकैप्सुलेटेड’ दीवान दीखता है -जानने-पढ़ने के लिये भरपूर सामान उपलब्ध कराता हुआ.
प्रस्तुत ग़ज़ल के किस एक शेर पर कहूँ ?
’उसने क्या कह दिया’ के फलसफ़े पर पूरी किताब लिखी जा सकती है.
बज़्म में खुल के उनको क्या देखा
उफ़! वो घबरा के देखते हर सू
क्या अंदाज़, क्या शरारत! एक चलचित्र का असर है इस शेर में. अय-हय !
अक्स अपना ही मुझको खलने लगा
मिल रहे जब से आईने हर सू
बाँटते हैं हम अपनी दुश्वारी
चाहते हैं खशी मिले हर सू
इन अशार और मतले की आशावादिता पर बधाई कुबूल हो. बहुत अच्छे वीनसभाई.
निर्मलजी के बाले गये दीयों के साथ हमभी हर सू जगरमगर देख रहे हैं.
मुस्कुराते हुये वो आये जब
यूं लगा फूल हैं खिले हर सू
ज़िन्दग़ी मौज में गुजर जाये
वो चलें साथ मिरे हर सू
उनकी ग़ज़ल के ये शेर मुझे बहुत पसंद आये. और मक्ते की कहन बेजोड़ है.
तीनों कामयब ग़ज़ल पर मेरी हार्दिक बधाइयाँ और पंकजजी को इस मुशायरे के लिये सादर अभिनन्दन.
नया धमाका पिछले धमाके से ज्यादा तेज होता है हर बार .. क्या गज़ब की ग़ज़लें हैं ...
जवाब देंहटाएंडाक्टर संजय जी के शेरों में तो जैसे जीवन दर्शन समेटा हुवा है ... है कठिन फ़र्ज़ का सफर लेकिन ... या फिर .. क्यों अमीरों की जंग में दानी ... लाजवाब शेर हैं ...
और वीनस जी के बारे में तो आपने खुद ही कह दिया है उस्तादों के उस्ताद हैं वो ... पके हुवे शेर कहे हैं सब ... अक्स अपना ही मुझको खलने लगा .. और ये शेर ... उनकी यादों के लम्स में क्या था ... चुप करा देते हैं ... क्या कमाल किया है वीनस जी ने तो ...
और निर्मल जी ने बहुत हो सादगी से अपने बात रक्खी है ... बाद मुद्दत के हो रही हलचल ... काश ये हलचल ऐसे ही बनी रहे ... पटाखों का शोर यूँ ही बना रहे ...
उनकी यादों के लम्स में क्या था
जवाब देंहटाएंहों रहे हैं जो रतजगे हर सू
वीनस इस शेर के लिए जरा पीठ तो आगे करना...थपथपाने के लिए हाथ मचल रहे हैं...
आज मुशायरे का तीसरा दिन है और शायर भी तीन
जवाब देंहटाएंहैं.सुबीर जी की एक और सुसंगति.
दानी साहब ने दीपावली मुशायरे के बहाने हमें हमारे फ़र्ज़ की याद दिलाई है.बहुत खूब.उनका मकता
भी काबिले तारीफ़ है.
भाई वीनस की तो पूरी ग़ज़ल ही रूमानी है.उनके नगीने जैसे अशआर में जो शेर हीरे की तरह चमक रहा है.वो ये है: जब से वो फूल मुस्कुराया है/कोई खुशबू रहे मेरे हर सू.
सिद्धू जी का ये शेर कि: ज़िन्दगी मौज में गुजर जाए/वो चलें साथ जो मिरे हर सू भी बहुत पसंद आया.
बहुत बहुत खूबसूरत!
जवाब देंहटाएंदानी साहब की "है कठिन फ़र्ज़ का सफ़र..." और "क्यूं अमीरों की जंग... " और "हमपे सरहद का जिम्मा.." - वाह वाह!
वीनस जी की "उसने क्या कह दिया..." और "अक्स अपना ही मुझको खलने लगा" -- क्या बात है! और "बज़्म में खुल के ... " ... अब इस पे क्या कहें :)
निर्मल जी का ये शेर "है चमकता सितारों सा हर घर..." आपने निहित अर्थ को ले के बहुत उज्ज्वल!
वीनस जी ने प्यारेलाल के लिए जो खूबसूरत शेर कहा है उसे मेरी तरफ से भी पढ़ लें दुबारा :)
सादर
लगातार धमाके हो रहे हैं इस दीवाली में और वो भी एक से बढ़कर एक। मैं सभी टिप्पणी करने वालों से पूर्णतया सहमत हूँ। तीनों ही शायरों ने कमाल के अश’आर कहे हैं। इस मुशायरे में तो कोई कमजोर शे’र खोजने से भी नहीं मिल रहा है। बहुत बहुत बधाई तीनों ही शायरों को।
जवाब देंहटाएंगुरुदेव, त्योहारों की रौनक, आपके ब्लॉग पर, तरही के आते ही और निखर उठती है. वाकई मन गार्डन-गार्डन करने वाली बात ही है, तरही धीरे-धीरे परवान चढ़ता जा रहा है. कलमकारी पेंटिंग लाजवाब है. आज के तीनो ही शायर, जाने-पहचाने हैं.
जवाब देंहटाएंडॉ. संजय दानी जी, अच्छी शेर कहें है.
सुख के बाज़ार बंद होने...........वाह वा
है कठिन फ़र्ज़ का सफ़र ................. जिंदाबाद शेर
मक्ता भी खूब कहा है. बधाई स्वीकारें.
निर्मल सिद्धू जी, अच्छी ग़ज़ल कही है, कुछ शेर तो बहुत उम्दा बने हैं.
मतला, बहुत खूब कहा है, तिस पे गिरह जो बाँधी है, अच्छे से बाँधी है. वाह वा
गुनगुनाता रहे चमन सारा......... बढ़िया शेर.
दूर दुनिया से गम जो हो जाएँ.. ........ अच्छा शेर है.
मुस्कुराते हुए वो आये जब.............. बहुत सलीके से कहा गया शेर, एक अलग ही मासूमियत झलक रही है. वाह वा
जिंदगी मौज में गुजर जाए.......... उम्दा शेर
बहुत अच्छी ग़ज़ल बनी है, दिली-दाद कुबूल करें.
कल की तरही पर तो इलाहाबादियों का पूरा ही कब्ज़ा था, और आज भी इलाहाबाद के साहित्यिक गलियारों से, एक बांका जवान आ गया है वीनस केसरी. अक्सर देखा गया है, अधिकतर शेर कहने या लिखने वाले, शुरूआती अवस्था में रूमानियत से भरपूर शेर कहते हैं और फिर धीरे-धीरे सभी रंगों में बिखरते जाते हैं. मगर वीनस बाबू के सन्दर्भ में थोडा अलग हो गया है. जहाँ तक मुझे जान पड़ रहा हैं इन्होने शुरुआत में सामाजिक शेर कहें लेकिन इनपे आजकल रूमानियत का प्यारा सा बुखार छाया हुआ है. आजकल ज्यादा रोमांटिक हुए जा रहे हैं, बहुत खूब. लगे रहो.
जवाब देंहटाएंअब आते हैं, तरही ग़ज़ल पे-
जब से वो फूल मुस्कुराया है..............वाह वा, किसकी मुस्कान पे फ़िदा होके ये शेर निकला है.
बज़्म में खुल के उनको........... उफ्फ्फ, बहुत अच्छा शेर कहा है, गुरूजी तो तारीफ कर ही चुके हैं. लेकिन ये बताओ, ये शब्द जिसपे आज के ज़माने के मशहूर शायर, नाम तो तुम जानते ही होगे उनका पटेंट है, उनसे तो इजाज़त तो ले ली ना.
या फिर उनको खुश करने के लिए ही ये खतरू शेर कह दिया
उनकी यादों के लम्स...............उफ्फ्फ्फ़
बहुत खूब
अक्स अपना ही मुझको खलने ......................., अहा क्या शेर निकला है वीनस, मज़ा आ गया. जिंदाबाद, जिंदाबाद. बहुत खूब, लाजवाब शेर है. बारहां पढ़े जा रहा हूँ.
ग़ज़ल में अच्छे शेर बाँधे हैं. बहुत बहुत बधाई.
गुरूवर,
जवाब देंहटाएंआज इस त्रयी ने तो जैसे तरही में चार चाँद लगा दिये हो, एक से बढ़कर एक बेमिसाल शे’र।
दानी साहब का शे’र "चाँदनी की बेवफाई और चाँद को ताने.." क्या खूबसूरत ख्याल बुना है।
वीनस का शे’र " अक्स अपना ही मुझको खलने लगा........"
निर्मल जी का शे’र " जिन्दगी मौज में गुजर जाये......." इन्शाल्लाह यह ख्वाहिश सभी की पूरी हो।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
हुस्न के बेरहम समंदर में
जवाब देंहटाएंसाहिले इश्क कुछ बने हर सू
--संजय दानी
बाँटते हैं हम अपनी दुश्वारी
चाहतें हैं खुशी मिले हर सू
--वीनस केशरी
ज़िंदगी मौज से गुजर जाये
वो चले साथ जो मिरे हर सू
--निर्मल सिद्धू
उपरोक्त तीनों शायरों के उपरोक्त शेर मुझे वज़नी और काबले गौर लगे !
वाह ये धड़ाधड़ आती ये तरही....
जवाब देंहटाएंदानी जी का "हमपे सरहद का जिम्मा" वाला शेर सोच रहा हूँ कि मैंने क्यों नहीं लिखा| चाँद को ताने मिलना वाली बात गजब की लगी...वाह!
साहबज़ादे वीनस के तो खैर क्या कहने | पता नहीं कौन सी भेंट की बात कह रहा था...."लम्स" हुम्म, चलो झेल लेता हूँ| तारीफ फोन पे कर दूँगा |क्न्ट्रोवरसी तो नहीं हो जाएगी बच्चे कोई इतना खतरनाक शेर मेरे नाम कर रहे हो....
सिद्धू साब की तरही भी खूब जाम रही है| बाद मुद्दत के हो रही हलचल वाला मिसरा तो अलग ही रंग का है अपने में .....
निर्मल जी और दानी जी की ग़ज़ल बहुत पसंद आई
जवाब देंहटाएंसुन्दर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई
मेरी ग़ज़ल पसंद करने के लिए और उत्साहवर्धन के लिए आप सभी का हार्दिक आभार
काफी देर से प्रयास कर रहा हूँ कमेन्ट पोस्ट होने में कुछ दिक्कत आ रही है
हौसला अफ़ज़ाई के लिये सभी साथियों का शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंवीनसा जी का-- बांटते हैं हम अपनी दुश्वारी ,
चाहते हैं ख़ुशी मिले हर सू। इस शे"र का कोई ज़वाब नहीं।
सिद्धू साहब का--ज़िन्दगी मौज़ में ग़ुज़र जाये,
वो चले साथ जो मिरे हर सू। बेहतरीन लगा।
टिप्पणी टेस्ट
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर ग़ज़लों के लिए बहुत बहुत बधाई.
जवाब देंहटाएंतीनों शायरों ने अपने अपने लहजे में बहुत ही
ख़ूबसूरत शेर कह डाले हैं. टिप्पणियाँ भी बहुत
खूब हुई है.
बहुत-बहुत बधाई
बहुत ही सुंदर ग़ज़लों के लिए बहुत बहुत बधाई.
जवाब देंहटाएंतीनों शायरों ने अपने अपने लहजे में बहुत ही
ख़ूबसूरत शेर कह डाले हैं. टिप्पणियाँ भी बहुत
खूब हुई है.
बहुत-बहुत बधाई
बहुत ही सुंदर ग़ज़लों के लिए बहुत बहुत बधाई.
जवाब देंहटाएंतीनों शायरों ने अपने अपने लहजे में बहुत ही
ख़ूबसूरत शेर कह डाले हैं. टिप्पणियाँ भी बहुत
खूब हुई है.
बहुत-बहुत बधाई
बहुत ही सुंदर ग़ज़लों के लिए बहुत बहुत बधाई.
जवाब देंहटाएंतीनों शायरों ने अपने अपने लहजे में बहुत ही
ख़ूबसूरत शेर कह डाले हैं. टिप्पणियाँ भी बहुत
खूब हुई है.
बहुत-बहुत बधाई
बहुत ही सुंदर ग़ज़लों के लिए बहुत बहुत बधाई.
जवाब देंहटाएंतीनों शायरों ने अपने अपने लहजे में बहुत ही
ख़ूबसूरत शेर कह डाले हैं. टिप्पणियाँ भी बहुत
खूब हुई है.
बहुत-बहुत बधाई
19 अक्टूबर के ये शेर विशेष पसंद आये:
जवाब देंहटाएंडॉ. संजय दानी
सुख के बाज़ार बंद होने लगे,
गम के सामान ही बिके हर सू।
है कठिन फ़र्ज़ का सफ़र लेकिन,
चलने वाले हैं चल रहे हर सू।
चांदनी बेवफ़ाई में डूबी,
चांद को ताने ही मिले हर सू।
हुस्न के बेरहम समंदर में,
साहिले इश्क़ कुछ बने हर सू'
क्यूं अमीरों की जंग में दानी,
बस ग़रीबों के सर कटे हर सू।
वीनस केसरी
आज हम पूछते फिरे हर सू
वो ही वो क्यों हमें दिखे हर सू
जब से वो फूल मुस्कुराया है
कोई खुशबू रहे मेरे हर सू
उसने क्या कह दिया है कुदरत से
दीप खुशियों के जल उठे हर सू
बज़्म में खुल के उनको क्या देखा
उफ़ ! वो घबरा के देखते हर सू
अक्स अपना ही मुझको खलने लगा
मिल रहे जब से आईने हर सू
बाँटते है हम अपनी दुश्वारी
चाहते हैं खुशी मिले हर सू
उनकी यादों के लम्स में क्या था
हो रहे हैं जो रतजगे हर सू
श्री निर्मल सिद्धू
दीप ख़ुशियों के जल उठे हर सू
रात, दिन बन गई लगे हर सू
जगमगाने लगा शहर कुछ यूं
बस चमक ही चमक दिखे हर सू
है चमकता सितारों सा हर घर
जोत से जोत जब जगे हर सू
शोर है मच रहा पटाख़ों का
यूं नदी जोश की बहे हर सू
गुनगुनाता रहे चमन सारा
प्यार की बात ही चले हर सू
मुस्कुराते हुये वो आये जब
यूं लगा फूल हैं खिले हर सू
ज़िन्दगी मौज में गुज़र जाये
वो चलें साथ जो मिरे हर सू
प्यार को तेरे कोई ना समझे
तू तो निर्मल यूं ही बिके हर सू
हर दिन एक पोस्ट वो भी एक से बढ़ कर एक ग़ज़लों के साथ, भाई ये तरही तो बहुत जोरदार जा रही है|
जवाब देंहटाएंअंतरजाल पर पढ़ता रहा हूँ संजय दानी जी को| इन का अपना मिजाज़ है| इस ग़ज़ल में भी बही कायम दिखाई देता है| 'है कठिन फ़र्ज़' 'चाँद को ताने' और 'हुस्न का बेरहम समंदर' सारे के सारे शेर ही चौंका देते हैं| बहुत बहुत बधाई संजय जी को|
चंद हफ्ते पहले वीनस का एक शेर पढ़ा था 'अदब वालों में बेटा बोलता है'..........बहुत सुन्दर शेर है वो| कम उम्र में ही अपने अग्रजों का स्नेहाशीष और सुबीर जी का वरदहस्त प्राप्त करने का सौभाग्य मिला है वीनस को| साहित्य को इस से काफी उम्मीदें हैं| प्रस्तुत ग़ज़ल के लिए वीनस को ढेरों बधाइयाँ| दुश्वारी वाला शेर बेहतरीन शेरों में शुमार किया जाना चाहिए|
"रात, दिन बन गयी लगे हर सू", एक अर्द्ध विराम / कोमा के उपयोग से काव्य में जो अद्भुत अर्थ उत्पन्न होते हैं उस का सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत किया है निर्मल जी ने| 'जोत से जोत' क्या बात है निर्मल जी, सनातन सद्विचार को ले कर आये हैं आप ग़ज़ल में| बहुत बहुत बधाई इस खुबसूरत ग़ज़ल के लिए|