सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

दीप पर्व का प्रथम दिवस आज धनवंतरी दिवस है आइये सबके आरोग्‍य की कामना करें नारी शक्ति के इन स्‍वरों आदरणीया लावण्‍या शाह जी, इस्‍मत ज़ैदी जी, शार्दूला नोगजा जी, कंचन चौहान और हिमांशी के साथ ।

और दीप पर्व आ ही गया । समय की अपनी ही गति के साथ चलता हुआ ये दीप पर्व आज फिर हमारी देहरी पर खड़ा हुआ है । प्रकाश के उत्‍सव की परंपरा केवल और केवल भारत में ही है । सबसे महत्‍वपूर्ण बात ये है कि ये परंपरा प्रतीक के रूप में तब होती है जब रात अंधकार में डूबी होती है । हम सब अपने घरों की सफाई रंगाई पुताई तो खूब करते हैं लेकिन अपने मन के अंदर जो बरसों से कबाड़ जमा हो रहा है उसे साफ नहीं करते । वहां रंगाई पुताई नहीं करते । वहां की देहरी पर अल्‍पना नहीं सजाते । और होता ये है कि हमें हर तरफ सब कुछ फीका फीका लगने लगता है । हमें लगता है कि कुछ नहीं है ये त्‍यौहार, पर्व, सब कुछ तमाशा है । इसलिये कि मन में कबाड़ जमा है । मन में रंगाई पुताई बरसों से नहीं हुई । घर की सफाई हो गई, तन के लिये ब्‍यूटी पार्लर हैं ( अब तो पुरुषों के भी ) किन्‍तु मन का क्‍या हो । तो आइये आज ही संकल्‍प लें कि इस दीपावली एक बार मन की सफाई रंगाई पुताई भी की जायेगी । आज आरोग्‍य का दिवस है सो सबके लिये कामना ''सर्वे सन्‍तु निरामय'' ‍। आमीन ।

deepavali_lampदीप खुशियों के जल उठे हर सू deepavali_lamp

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(काष्‍ठकला, लकड़ी पर उकेरे गये गणेश, लक्ष्‍मी और सरस्‍वती )

आज हम आधी आबादी की कविताओं, ग़ज़लों और गीतों की ओर मुड़ रहे हैं । दीपावली नारी की ही पूजा का पर्व है । हम लक्ष्‍मी के रूप में शक्ति के उस रूप की पूजा करते हैं जो जीवन के तीन प्रमुख तत्‍वों तन, मन, धन में से एक धन की अधिष्‍ठात्री है । तो आइये सुनते हैं आदरणीया लावण्‍या शाह जी, इस्‍मत ज़ैदी जी, शार्दूला नोगजा जी, कंचन चौहान और हिमांशी की रचनाएं ।

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आदरणीया लावण्‍या शाह जी

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दीप खुशियों के जल उठे हर सू
जगमगाहट बिछे, सजे हर सू

है अमावस की रात काली घनी
चाँद  गायब है सितारों से ठनी
दीपमाला चुनर सी सजती है
आज दुल्हन सी  धरती लगती है 
कहकशां सी बिछी है राहों में
अल्पना दीपकों की ये हर सू

दीप माटी के  टिमटिमाने लगे
द्वार तोरण हैं मुस्कुराने लगे
चूरमा मेवे थाल में हैं सजे
गृह सुशोभित  हुए फनूस जले
उठती मीठी किलक है बच्चों  की
रेशमी साड़ी है दिखे हर सू

दीप ज्योति से हैं नयन भरते
हाथ सज धज के आरती करते
पायलों संग खनक रहे कंगन
आज आनंद से भरा आंगन
लाभ और शुभ का वर दे मां लक्ष्मी
शुभ की ये रोशनी बिछे हर सू

दीप खुशियों के जल उठे हर सू
जगमगाहट बिछे, सजे हर सू

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वाह वाह वाह निर्मल गीत । ये गीत पूज्‍य नरेंद्र शर्मा जी के गीत 'ज्‍योति कलश छलके' की याद आ गई । और आये भी क्‍यों न आखिर को उनकी ही तो गुणी बिटिया का गीत है । यूं लगता है जैसे एक पूरा वितान खुल गया हो आंखों के सामने । एक एक पंक्ति मानो दीपावली पर कोई काव्‍य लेख हो 'लाभ और शुभ का वर दे मां लक्ष्‍मी' ये दुआ सबके लिये आज धनतेरस पर । बधाई बधाई बधाई ।

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आदरणीया इस्‍मत ज़ैदी जी

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बाग़ फूलों से हैं लदे हर सू
ये बहारों के वलवले हर सू

वो तसव्वुर में भी अगर आया
रंग सारे बिखर गए हर सू
पाप इन्सां के, कष्ट में धरती
ये तड़प लाए ज़लज़ले हर सू

कितने लोगों ने दी है क़ुर्बानी
तब बिखर पाए क़हक़हे हर सू
एक लम्हे में ख़ाक थी बस्ती
और रिश्ते थे अधजले हर सू

खिलखिलाया कहीं कोई बच्चा
"दीप ख़ुशियों के जल उठे हर सू"
अपहरण , क़त्ल , लूट , राहज़नी
हैं ये ख़बरों के सिलसिले हर सू

याद ए माज़ी में खो गई थी ’शेफ़ा’
गीत बचपन के जब सुने हर सू

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वाह वाह वाह । खिलखिलाया कहीं कोई बच्‍चा, वाह क्‍या सुंदर तरीके से गिरह बांधी है बिल्‍कुल ही नये विचार के साथ । पूरी ग़ज़ल पीडि़त मानवता की शोक गाथा है । पीडि़त मानवता जो अंधेरों से जूझ रही है युद्ध कर रही है । और इंतज़ार कर रही है उजालों के महानायक का । कितने लोगों ने दी है क़ुर्बानी, देश को याद रखना हर हाल में ज़रूरी है । बधाई बधाई बधाई ।

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आदरणीया शार्दूला नोगजा जी

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दीप खुशियों के जल उठे हर सू
मन बता तू ही क्यों घुटे हर सू

खुश्क होठों पे  जो  दरारें हैं
गीत  ग़ज़लों के वो शरारे  हैं
थाम के शम्श की  जली लपटें
चाँद ने हँस के शब गुज़ारे  हैं
आज तो रात है अमावस की
रोशनी कौन ला  धरे हर सू

माना के छिन रहे निवाले हैं
आदतन दीप फ़िर भी बाले हैं
खुरदुरे हाथों से उम्मीदों ने
अल्पनाओं में रंग डाले हैं
तोड़ना आस का ये  धागा क्या
ज़िंदगी ये भरम रखे हर सू

ढेर कचरों के उठ गए  फ़िर से
चौक गलियाँ नहाई  हैं सिर से
जीव माया से उठ गया होगा
लग रहे आचरण बड़े  थिर से
जीत मानव की ही दिवाली है
जोत मन की जली रहे हर सू

दीप खुशियों के जल उठे हर सू
शब्द  मिसरी बने घुले हर सू

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वाह वाह वाह अनोखे रंग समेटे हुए है ये गीत । खुरदुर हाथों से उम्‍मीदों ने अल्‍पनाओं में रंग डाले हैं, ये पंक्तियां केवल और केवल आप ही लिख सकती हैं । ये पंक्तियां क्‍या कहूं, ये पीर का काव्‍य हैं । जीत मानव की ही दिवाली है, जोत मन की जली रहे, दीपावली को परिभाषित करती हुईं ये पंक्तियां दर्शन शास्‍त्र का खुला हुआ पन्‍ना हैं । नये तरीके से लिखा हुआ सुंदर गीत । बधाई बधाई बधाई । 

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कंचन सिंह चौहान

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है तो उस पार, पर दिखे हर सू
मेरे साजन की लौ जले हर सू
साँस दर साँस बसा है, मुझमे
ढूँढ़ती हूँ, मगर उसे हर सू
सेज सूली चुनी थी मीरा ने 
चढ़ के सूली पिया मिले हर सू
बात कबिरा ने है, अजीब कही
ढाई आखर  से ही सजे हर सू
खोज तेरी है, नाम जीवन का
दुःख की बदली पुकारे ये हर सू
कोई रैदास तो बने पहले
तीर्थ घर में ही फिर दिखे हर सू
उर्वशी बाँध पायेगी, कब तक
धैर्य जीता है, भोग से हर सू
राम लिक्खा रहीम ने जब जब
हिंद की बानगी दिखे हर सू
साधना उर्मिला की रंग लायी
दीप खुशियों के जल उठे हर सू

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वाह वाह वाह । मीरा के भक्ति काव्‍य को महादेवी जी के छायावाद से मिलाकर उस पर अपनी स्‍वयं की शैली से कशीदाकारी की गई है । ढाई आखर से ही सजे हर सू, कंचन ये पंक्ति बहुत ऊंची है तुमने कबीर को गिरह बांधी है, संभाल कर रखना इन पंक्तियों को । और गिरह में उर्मिला को जिस प्रकार बांधा है कमाल है । सांस दर सांस और खोज तेरी है नाम जीवन का ये दोनों शेर बस तुम ही लिख सकती हो । बधाई बधाई बधाई । 

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अनन्या (हिमांशी)

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चाँद बिन चाँदनी दिखे हर सू
आज मोती बिछे बिछे हर सू
चांद मेरा न जाने खोया कहां
ढूँढ़ती फिरती हूं उसे हर सू
आज फिर से धरा हुई, जगमग
दीप खुशियों के जल उठे हर सू
जाने कैसी अजीब उल्फत है
ख्वाब में भी वही दिखे हर सू
आज फिर वो यहाँ से गुज़रे हैं 
पत्‍थरों पे हैं गुल खिले हर सू
नफरतों का दिखा के ढोंग मुझे
मुं‍ह  छिपाते हैं फिर रहे हर सू
रात करवट बदलते बीती है
कह रहे हैं ये रतजगे  हर सू

वाह वाह वाह नन्‍हीं बिटिया तो अब बड़ी हो गई है । रूमानी शेर कहने लगी है । बहुत सुंदर शेर निकाले हैं । जाने कैसी अजीब उल्‍फत है ख्‍वाब में भी वही दिखे हर सू, हम्‍म गहरी बात को सरलता से कह दिया है । आज फिर वो यहो से गुजरे हैं दीप खुशियों के जल उठे हर सू गिरह को प्रेम  से गूंथ कर बांधा है । बहुत सुंदर । प्रेम के रस में पगी ये ग़ज़ल बहुत कुछ कह रही है । बधाई बधाई बधाई ।

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तो आज कुछ अधिक समय निकाल कर टिप्‍पणियां दीजिये इन पांचों विशिष्‍ट प्रविष्टियों का । और इसलिये भी कि आज की ये प्रविष्टियां बहुत खास हैं । दाद देते रहिये और आनंद लेते रहिये । आज बहुत सी विधाओं का संगम हुआ है सो आज का दिन खास है ।

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22 टिप्‍पणियां:

  1. मज़ाक एक अलग स्थिति होती है, सामान्‍य से हटकर। सामान्‍य स्थिति में हर समझदार पुरुष यही कहता है कि:
    'या देवी सर्वभूतेषु स्‍त्रीरूपेण संस्थित:'
    स्‍त्री को ईश्‍वर ने कुछ ऐसा बनाया है कि उसमें अवसरानुकूल हर रूप मौज़ूद है सृष्टि का, और जब-जब सृजन की बात आयी उसने पुरुष के दंभ को पूर्ण विनम्रता से तोड़ा है।
    आज की रचना-प्रस्‍तुति इस का प्रमाण है कि भावनाओं में भी स्‍त्री की अनुभूतियॉं संपूर्ण इंद्रधनुषी छटायें बिखेरने की क्षमता रखती हैं।
    बहुत-बहुत बधाई सभी बहनों को और हिमांशी को।

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  2. आज की तरही में तो कमाल हुआ है.. गीतों और गज़लों का संगम है.
    लावण्या जी का गीत अद्भुत है. बार बार पढ़ रहा हूँ. लाजवाब है. हर बार वाह निकलती है. चाँद तारों के ज़िक्र से होते हुए, द्वार तोरण, चूरमा , मेवा मिष्ठान, रेशमी साड़ी, कंगन, पायल, सबका खूबसूरती से ज़िक्र किया है.. बहुत बहुत बधाई.

    शार्दुला जी ने भी कमाल किया है इस गीत में.
    "रौशनी कौन ला धरे हर सू.." वाह!
    "माना के छिन रहे निवाले हैं../ तोडना आस का ये धागा क्या, जिंदगी ये भरम रखे हर सू" लाजवाब.
    और फिर बहुत ही खूबसूरती से अंत में कही गई बात.. जोत मन में जली रहे हर सू.शब्द मिस्री बने घुले हर सू. बहुत बहुत मुबारकबाद.

    इस्मत जी की गज़ल, जैसे की आपकी गज़लें हमेशा होती हैं, उस्तादाना अंदाज़ में कही हुई गज़ल है. खूबसूरत मतला और मकता और उनके बीच मोतियों से जड़े अशआर. गिरह तो बहुत ही कारीगरी से बाँधी है.
    "वो तसव्वुर में भी अगर आया/रंग सारे बिखर गए हर सू." वाह.
    कहकहे काफिये का भी बहुत ही खूबसूरती से इस्तमाल किया है.
    "एक लम्हे में ख़ाक थी बस्ती.." लाजवाब शेर है.
    खूबसूरत गज़ल के लिए दिली मुबारकबाद.

    कंचन ने भी बहुत बढ़िया गज़ल कही है. गिरह तो चौंकाने वाली है. उर्मिला के बारे में तो सोचा ही नहीं! कुछ शेर तो बहुत ही खूबसूरत बने हैं.
    "सांस दर सांस बसा है मुझमे..", "सेज सूली चुनी थी मीरा ने.", "खोज तेरी है नाम जीवन का.", उर्वशी बंद पायेगी कब तक.." बहुत अच्छे लगे.. बहुत बहुत बधाई.

    हिमांशी ने पहले भी चौंकाया था, इस बार भी चौंकाया है..बहुत प्यारे शेर कहे हैं.गिरह भी खूब बाँधी है.
    "चाँद मेरा न जाने खोया कहाँ..", "आज फिर वो वहाँ से गुज़रे हैं." बहुत बढ़िया शेर हैं..
    लेकिन ये दो शेर "जाने किसी अजीब उल्फत है.." और "रात करवात बदलते बीती है." तो बस लाजवाब हैं. बहुत बहुत बधाई हिमांशी.

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  3. इसे कहते हैं कमाल...आज तरही में फुलझड़ियाँ चल रही हैं...रंगीन मोतियों की बारिश हो रही है...हर शेर /बंद सितारों सा चमक रहा है...कमाल है कमाल...तिलक भाई अपने कमेन्ट में जो कह गए हैं उसके बाद कुछ कहने को नहीं बचता.

    लावण्या दी की कलाम के हम सब क्यूँ कायल हैं इस सवाल के जवाब में उनकी कोई भी रचना पढ़ कर देख लीजिये. दीपावली पर कही उनकी रचना भी अद्भुत है..दीप माला की चुनर...दीपकों की अल्पना...बच्चों की मीठी किलक...खनकते पायल और कंगन...क्या नहीं है इस रचना में...वाह...इसे पढ़ कर कौन आनंद से सरोबार नहीं होगा...लावण्या जी को मेरा प्रणाम और दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं....

    छोटी बहन इस्मत के बारे में क्या कहूँ...हमेशा मुझे अपने कलाम से लाजवाब कर जाती हैं...ऐसे शेर कहती हैं के उस्ताद कान पकड़ लेते हैं..."वो तसव्वुर में भी अगर आया"..."कितने लोगों ने दी है कुर्बानी"..."खिलखिलाया कहीं कोई बच्चा"( इतनी पाक और प्यारी गिरह के कलम चूमने को जी चाहता है), जैसे लाजवाब अशआर इस्मत की पहचान बन चुके हैं...दुआ करता हूँ वो हमेशा ऐसे अशआर कहती रहें...इस बार दिवाली उनके यहाँ खुशियों की बारात ले कर आये..." आमीन .

    शार्दूला जी को जब पढ़ा है आपकी तरही में ही पढ़ा है और हर बार उन्हें पढ़ कर और पढने की ललक हो जाती है. उनकी रचनाओं में प्रयुक्त शब्द और भाव अलौकिक होते हैं..."खुश्क होटों की दरारें...,खुरदुरे हाथों से उम्मीदों..ज़िन्दगी के भरम तोड़ने की बात करती उनकी रचना अप्रतिम है..बार बार पढने को प्रेरित करती है...उन्हें और उनके समस्त परिवार को दीपावली की ढेरों शुभ कामनाएं.

    एक नटखट और बेहद संजीदा बिटिया जैसी कंचन के बारे में क्या कहूँ? कितने ही शैतान भाइयों को समझदारी का पाठ पढ़ाती उनकी ये बहना जब कभी की कलम उठाती है सबकी छुट्टी कर देती है. सुनते हैं वो बोलती बहुत है, जब बोलने लगती है तो सुनने वाले कान पकड़ लेते हैं, अकसर बहुत बोलने वाले अच्छा लिख नहीं पाते लेकिन कंचन इसका अपवाद है..."सेज सूली चुनी थी मीरा ने",..."बात कबीरा ने है अजीब कही", "कोई रैदास तो बने पहले", साधना उर्मिला की रंग लायी"( इस मिसरे को मैंने संभल कर रख लिया है) जैसे मिसरे कोई दूजा लिख कर तो दिखाए...जियो कंचन...तुम्हें ये दिवाली वो सारी खुशियाँ दे जिनकी तुमने कामना की है...

    हिमांशी बिटिया को जब पहले पहल पढ़ा था तब ही लग गया था के आगे चल कर ये बड़े बड़ों के कान काटने वाली है...आखिर उसने वो ही कर दिखाया..."चाँद बिन चांदनी दिखे हर सू",..."जाने कैसी अजीब उल्फत है"..रात करवट बदलते बीती है"...जैसे अशआर कह कर उसने आने वाले समय में उस्तादों की हालत पतली करने की खबर दे दी है...शाबाश बिटिया, यूँ ही लिखती रहो...ये दिवाली तुम्हारे लिए टोकरे भर खुशियाँ लाये.

    गुरुदेव आप जिस तरह इस बार पोस्ट के आरम्भ में दिवाली पर सन्देश दे रहे हैं वो प्रयास इस तरही मुशायरे को नयी ऊंचाइयों पर ले जा रहा है...

    नीरज

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  4. इसे कहते हैं "पंचकोटि महामणि". पाँचों रचनाएँ उत्कृष्ट. दीपोत्सव के सुर-ताल से संगत करती हुईं.

    लावण्या शाह जी का गीत सुन्दर बन पड़ा है.सुहाग के प्रतीकों से दीपोत्सव की बहुत सटीक उपमाएं
    दी गई हैं.

    इस्मत जी की ग़ज़ल ऊँचे मयार की ग़ज़ल है.संवेदना और करुणा से ओत-प्रोत.

    शार्दूला जी का गीत न केवल मर्मस्पर्शी भावों की बानगी है,बल्कि शिल्प के लिहाज से भी अत्यंत सफल है. विशेष तौर पर गीत की आखिरी पंक्ति बहुत प्रभावी है.

    कंचन जी अपनी ग़ज़ल में आत्म से आध्यात्म की यात्रा करा रही हैं.अपने मकते में उन्होंने राम
    कथा का उपेक्षित परिप्रेक्ष्य केंद्र में ला खड़ा किया है.साहित्य का एक जरूरी काम यह भी है कि जो आँखों से ओझल है,उसे आँखों के सामने लाया जाए.

    अनन्या की ग़ज़ल भी अच्छी है.इतने युवा लोग
    अगर ग़ज़ल की विधा में हाथ आजमाते हैं तो उन्हें भरसक प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए.

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  5. घर आँगन के साथ आज मन की भी सफाई हो ... सच्ची दीपावली तो तभी मानेगी ...
    दीपक और अनार के अलावा आज तो गीत, गज़लों और कविताओं की बहार से भी महक रहा है पूरा ब्लॉग ... आदरणीय लावण्या जी का मधुर गीत दस्तक है दीपावली की ... बस आनद ही आनद ...इस्मत जी के शेर भी गज़ब ढा रहे हैं ... कितने लोगों ने दी है कुर्बानी ... सच्चाई को बयान कर रहा है ... और ये शेर ... एक लम्हे में ख़ाक थी बस्ती ... हकीकत के इतना करीब है ... आदरणीय शार्दुल जी का गीत भी सीधे दिल में उतर गया ... ढेर कचरों के उठ गए फिर से ... जैसे दिवाली की तैयारियों को बाँध दिया है हकीकत में ... बहुत ही लाजवाब गीत है ... और कंचन जी ने तो चोंका दिया है इस ग़ज़ल में ... सांस दर सांस बसा है मुझमें ... खोज तेरी है नाम जीवन का .. या फिर साधना उर्मिला की रंग लाई ... कितने सहज शेर कहे हैं ... प्रेम की विशुद्ध कल्पना लिए ...
    ये तरही अब नए रूप में बदलती जा रही है ... आलोकिक होई जा रही है ....

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  6. आज गीतों और गज़लों का ये सुन्दर अनुपम संगम हुआ है.

    लावण्या जी ने गीत में जो जो चित्र उकेरे हैं बहुत सुन्दर..!
    प्रणाम!

    शार्दुला जी हर बार कुछ अलग अपने अंदाज में देकर चली जाती हैं और हम तरही का इंतज़ार करते रहते हैं.
    रौशनी कौन ला धरे हर सू. तोडना आस का धागा.. शब्द मिस्री बने घुले हर सू. बहुत बहुत सुन्दर !!
    प्रणाम!

    इस्मत जी और गज़ल जैसे एक दुसरे के पूरक हों, गंभीर से गंभीर स्थिति को अपने अशआर में ऐसे पिरोती है कि बस वाह वाह और वाह!!
    बेहतरीन गिरह !
    वो तसव्वुर में भी अगर आया/रंग सारे बिखर गए हर सू. इसे तो जिसने महसूस किया है उसके दिल से पूछिये बस.
    लाजवाब गज़ल !
    प्रणाम!

    कंचन जी ने अद्भूत और ऐतिहासिक ग़ज़ल कह डाली. उर्वशी बाँध पायेगी कब तक और उर्मिला... इस मकते पर अगणित शब्द न्योछावर!
    प्रणाम!

    हिमांशी ने भी गज़ब की परिपक्वता दिखाई है.जाने कैसी अजीब उल्फत है... सुन्दर. बहुत बहुत बधाई आप सभी को !!

    आचार्य जी के इस अनूठी प्रस्तुति पर उनके इस ऐतिहासिक प्रदर्शन पर बहुत बहुत शुभकामनाये!!
    तरही जिंदाबाद!

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  7. आज तो सुपर-डोस हो गया है. अभी सिर्फ और सिर्फ पढने का आनंद ले रहा हूँ. हर शब्द, हर पंक्ति अपने में बहुत खूबसूरत भाव लिए हुए है, उन में ही खोता सा जा रहा हूँ.

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  8. श्रद्धा रूपेण संस्थिता ...

    लावण्या जी के गीत के प्रवाह में देर तक बहता रहा. शब्द-चित्र की मनोहारी कला से मन झूम उठा है. शुभ की ये रोशनी बिछे हर सू... आमीन.

    इस्मत आपा की नामधन्य इस्मतजी ने नाम अनुरूप काव्य-आनन्द को कई गुणा कर दिया है.
    कमनीय भावनाओं की बेथकी उड़ान हो या वर्तमान की कठोर सचाई जहाँ बस्ती का ख़ाक होना और रिश्तों का सुलग उठना हो या ख़बरों के बेतरतीब सिलसिले हों, आपकी कलम अपनी पकड़ बनाये काम कर रही है.
    मेरी बधाई

    शार्दुलाजी को आपके अनहोने गीत के लिये मेरा हार्दिक साधुवाद.
    माना कि छिन रहे निवाले हैं
    आदतन दीप फिरभी बाले हैं
    खुरदुरे हाथों से उम्मीदों ने
    अल्पनाओं में रंग डाले हैं .. विस्मित हूँ जी !
    या, जीव माया से उठ गया होगा.. !! अद्भुत !!! तो ऐसे भी लिख जाते हैं आप?
    कहना गलत न होगा, मैं हमेशा बाट देखूँगा आपकी रचनाओं की.

    कंचनजी अपने रहस्यमय और गुंफित भावों को ले कर आयीं हैं. ..’उस पार न जाने क्या होगा..’ को बराबर उत्तर देता मतला. वाह!
    आपके किस शे’र की कहूँ? मीरा, कबीर, रैदास सभी को अपने बिम्ब में पिरोया है आपने !
    उर्मिला वाले शे’र पर मेरी ढेरमढेर हार्दिक बधाइयाँ स्वीकारें, कंचनजी.

    अनन्या या हिमांशी !? .. :-))
    मतले में ’बिछे’ को जिस ढंग से आपने दुहराया है वो कमाल कर रहा है.
    चाँद मेरा न जाने खोया कहाँ
    ढूँढती फिरती हूँ उसे हर सू
    उद्विग्न, आकुल हिरणी घूम गयी आँखों में. वाह !
    जाने कैसी अजीब उल्फ़त है.. सामने मेरे साँवरिया ! इस अंदाज़ को आध्यात्म में समझ का चरम कहते हैं.
    आज फिर वो यहाँ से गुजरे हैं
    पत्थरों पे हैं गुल खिले हर सू
    विशेष दाद लीजिये इस शे’र पर.
    इस ग़ज़ल से आपकी मशक्कत बखूबी झलक रही है.

    आप सभी देवियों को दीपावली की अनेकानेक शुभकामनाएँ और बधाइयाँ.

    --सौरभ पाण्डेय, नैनी, इलाहाबाद (उप्र)

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  9. बहुत सुन्दर दीपमय प्रस्तुति ..
    दीपावली की सुन्दर प्रस्तुति हेतु आभार!
    दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनायें!

    जवाब देंहटाएं
  10. मेरे यहाँ दिवाली पार्टी की तैयारी चल रही है और उससे पहले ही सभी बहनों लावण्या जी , ज़ैदी जी, शार्दूला, कंचन और अनन्या बिटिया ने अपने गीतों और ग़ज़लों से उत्सव का माहौल बना दिया है | लावण्या जी ने चूरमा मेवे के थाल सजा दिए , ज़ैदी जी ने बच्चे की खिलखिलाहट से , शार्दूला जी ने खुरदरे हाथों से उम्मीदों को अल्पनाओं के रंगों में डुबोते हुए जोत मन की जला दी है, कंचन ने मीरां की भक्ति और उर्मिला की साधना को खूबसूरती से पिरो कर अनन्या ने रूमानी मोती बिखेर दिए हैं ...बधाई ..बहुत- बहुत बधाई |

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत सुंदर गीत ,,लावण्या जी आप ने तो आज ही दीपावली का समां बाँध दिया

    शार्दूला जी वाह ! क्या बात है
    तोड़ना आस का ये धागा......... बहुत सुंदर पंक्तियां

    क्या बात है कँचन !!
    तुम तो जो भी लिखती हो अच्छा ही लिखती हो
    ग़ज़ल के अंतिम शेर
    कोई रैदास ............
    उर्वशी बाँध...............
    साधना उर्मिला की ............
    तो कमाल के हैं

    और हिमाँशी ख़ुश रहो बिटिया ,,बस लिखती रहो
    आज फिर वो यहां ........
    वाह !
    क्या बात है !!

    अंत में आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया मेरी ग़ज़ल को सराहने के लिये

    जवाब देंहटाएं

  12. सौ. शादुर्ला बिटिया के लिए - ' जोत जली रहे मन की हरसू ' शुभ मंगलम दीपावली
    ईश्वर आपके समग्र परिवार को दीपों की लौ सी मधुर मुस्कान से सजा कर रखें ..
    बहन इस्मत जैदी जी के हरेक नफीस अंदाज़ में लिखे शेरों के लिए - 'हरेक रोशन चिराग में आपका अंदाज़े बयाँ पुर नूर है ' यूं ही लिखती रहें ...ये दुआ है जी ..
    बिटिया कंचन की पूजन में लीन छवि देख कर बचपन का घर याद आ गया और बेटे , आपका लिखा , हमारे भारतीय संत कवियों और आत्म बलिदानी महान नारियों की स्मृति को दीप पर्व पे स्मरण करवाते हुए आज आपने प्रकाशित कर दिया ! जीती रहो खुश रहो और इसी तरह भाव प्रणव सात्विकता लिए , लिखती रहो...दीपावली की मंगलकामनाएं समस्त परिवार को ..
    नन्ही अनन्या जितनी प्यारी व् नाज़ुक है उतने ही उसके लिखे शब्द भी हैं इस दीपावली पे मिठाई खाना और इसी तरह मीठे मधुर शब्दों से सृजन रत रहना - स स्नेह आशिष -
    और मेरे गुणी अनुज " गुरु जी " पंकज भाई को समस्त परिवार समेत धनतेरस , दीपावली व् नये वर्ष की मंगल कामनाएं और ह्रदय से आभार जो मेरे लिखे को सजा संवार के ( मरम्मत कर के :) इतने स्नेह से प्रस्तुत किया और भाई दूज पे छोटे भाई के लिए स स्नेह आशिष सहित एक लंबा सा लाल कुमकुम का तिलक भेज रही हूँ ..
    मेरी रचना जिसे आप सब ने पसंद किया यह उन्हीं से शुध्ध हुई है - अत: पुन : आभार
    यहाँ पधारे सभी साथी मित्रों को मेरे परिवार की ओर से , शुभ दीपावली कहते हुए अब विदा लेती हूँ ..खूब आनन्द मंगल मनाईयेगा ..स स्नेह, सादर , - लावण्या सीनसीनाटी , ओहायो प्रांत , यु. एस . से भारत भूमि को मेरे सादर प्रणाम

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  13. लावण्या दीदी का गीत एकदम मिसरी-घुला है! जैसे संस्कारों और चन्दन-गंध से रच-बसा गीत भेजा हो बड़ी दी ने दीपावली पे ! "दीपमाला चुनर सी सजती है, कहकशां सी बिछी है राहों में, अल्पना ..., दीप माटी के टिमटिमाने लगे, द्वार तोरण हैं मुस्कुराने ..., उठती मीठी किलक है बच्चों की...,आज आनंद से भरा आंगन...शुभ की ये रोशनी...". वाह! बहुत पावन, पवित्र और ज्योतिर्मय गीत. प्रणाम स्वीकारें दीदी!
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    इस्मतजी को जब भी पढ़ा है उनके संवेदनशील और सशक्त हस्ताक्षर से प्रभावित हुई हूँ. ये ग़ज़ल भी कहती है कि वे एक बेहद समर्थ रचनाकार हैं -- "याद ए माज़ी... ", "खिलखिलाया कहीं कोई बच्चा ...", "वो तसव्वुर में भी..." कितने संवेदनशील हैं ये शेर! और " एक लम्हे में ख़ाक थी..." " कितने लोगों ने दी है..." बहुत ही सशक्त शेर हैं! आपको पढना बहुत सुखद लगा! बधाई और शुभकामनाएं इस्मत जी!
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    कंचन ख़ुद जैसी संवेदनशील हैं, उन्होंने वैसी ही संवेदनापूर्ण ग़ज़ल कही है. सबसे पहले कहना चाहती हूँ कंचन कि उर्मिला वाला शेर पढ़ के लगा कि दौड़ के तुम्हें गले लगा लूँ! बहुत बहुत सुन्दर और मार्मिक ! रामायण के सहिष्णु और समर्पित पात्रों में अग्रणी हैं उर्मिला! मिथिला से हैं :) तुम सोच सकती हो कि कैसा जी भर आया होगा मेरा ये शेर पढ़ के, तुम्हें आशीष और ढेर सी दुआएं! अब आगे---"उर्वशी..." वाले शेर के लिए शाबाश! "राम लिखा रहीम ने..." वाह क्या कहन है, क्या विचार है! मज़ा आ गया बच्चे! जियो! "कोई रैदास..." और "बात कबीरा ने है..." वाह! एकदम आला दर्जे की बातें हैं! बहुत उत्कृष्ट ग़ज़ल है कंचन ! मन सच में तुम्हें बहुत याद कर रहा है, काश तुम देख पातीं !
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    हिमांशी तो छुटकी सी, हुनरमंद गुड़िया सी है, जिसे "चाँद मेरा न जाने खोया.." और "आज फ़िर वो यहाँ से गुज़रे हैं.." जैसे खूबसूरत शेर कहते सुनती हूँ तो एक मुस्कराहट चेहरे पे खेल जाती है! वाह! ...जीते रहो बेटा! बहुत खूबसूरत लिखा है तुमने!
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    आदरणीय, आप सब ने मेरे साधारण से गीत को जो मान दिया उसके लिए हृदय से आभारी हूँ.
    सुबीर भैया आपको आशीष और धन्यवाद!
    अन्धकार पे प्रकाश की विजय का उत्सव आप सब के लिए शुभ हो!
    सादर शार्दुला

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  14. "वो तसव्वुर में भी अगर आया...."
    "कितने लोगों ने दी है कुर्बानी....."
    जैसे शेर तो कोई उस्ताद ही कह सकता है!!
    हमारी इस्मत उस्ताद ही तो हैं :)
    पंकज जी, आपका ये मुशायरा मेरे जैसे तमाम ग़ज़ल-शौक़ीनों की क्षुधा शान्त करता है, जहां एक साथ इतने शानदार शायरों को पढने का मौका मिलता है.
    सभी ग़ज़लें एक से बढ के एक हैं. ग़ज़ल की तारीफ़ मैं किसी माहिर फ़नकार की तरह नहीं कर पाती, क्योंकि इसके तकनीकी पक्ष का मुझे ज्ञान नहीं है, हां पढती हूं, और अच्छी ग़ज़ल पर वाह ज़रूर कहती हूं :) :)

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  15. महिला मंडली ने तो और भी कमाल कर दिया। बहुत बहुत बधाई। अभी कुछ दिन बडे कमेन्ट न दे पाने के लिये माफी चाहती हूँ। धन्यवाद।

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  16. आधी आबादी ने शेष सब तरही की छुट्टी कर दी है|वाह!

    लावण्या जी का खूबसूरत गीत दीप के अल्पनाओं सा ही चमक रहा है|

    इस्मत आपा के अशआर तो हमेशा से लुभावने और बेमिसाल होते हैं| बिखर पाये कहकहे वाला शेर अपने आस-पास का लगा|

    "खुश्क होठों पे दरारें हैं,गीत ग़ज़लों के वो शरारे हैं" शार्दुला दी....चुरा लूँ ये पंक्तियाँ आपकी?

    कंचन के मिथक और सूफियाना अंदाज़ .... वल्लाह!

    ...और अपनी छुटकी अनन्या कित्ती बड़ी हो गई है...पत्थरों पे हैं गुल खिले का मिसरा बता रहा है कि एक बड़ी शायर धमाल मचाने वाली है जल्द ही|

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  17. लावण्या दी आपने घर में भाभियों और दीदियो की सजी सजाई छवि सामने ररख दी। बिलकुल चित्रमय....!!

    और इस्मत दी

    पाप इंसाँ के,कष्ट में धरती,
    ये तड़प लाये जलजले हर सू।

    क्या बात कह दी दीदी

    शार्दुला दीदी आप कब अच्छा नही लिखते हैं ?

    खुश्क होठों पे जो दरारे हैं,
    गीत ग़ज़लों के वो शरारे हैं।
    थाम के शम्स की जली लपटें,
    चाँद ने हँस के शब ग़ुज़ारे हैं।
    आज तो रात है अमावस की,
    रोशनी कौन ला धरे हर सू।

    खुरदुरे हाथों से उम्मीदों ने,
    अल्पनाओं में रंग डाले हैं,
    तोड़ना आस का ये धागा क्यों?
    जिंदगी ये भरम रखे हर सू।

    ऐसा आप ही लिख सकती हैं दीदी। बहुत सहज, बहुत सरल, मगर बहुत देर तक मन को छूते रहने वाला।

    और अपने लिये कह दूँ कि भाव मेरे हैं मगर निखार गुरू जी ने दिया है। बहत जल्दी जल्दी मे लिखी गई इस ग़ज़ल में कई बार काफिये लगाने भी भूल गई। सिर्फ लापरवाही से। इसलिये जितनी भी प्रशंसा आप लोगों ने की, उस सब को गुरू जी को समर्पित करती हूँ।

    स्नेह के लिये आशीष के लिये धन्यवाद.....

    और अनन्या, आप सब के आशीष से अभिभूत है। उस पर यूँ ही आशीष बनाये रखें, कहीं बुआ की तरह ना हो जाये.....!! उसके शेरों ने मुझे भी अचंभित कर दिया था। अहसास हुआ कि बिटिया बड़ी हो गई और मुस्कुराने पर मजबूर हो गई।

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  18. शब्द शब्द में दीप हजारों भाव सजे फुलझड़ियों से
    छन्द छन्द मं सोहन हलवा,और अन्तरों मे रसगुल्ले
    पंकज जी की दीवाली की मधुर पेशकश क्या ्कहने हैं
    काव्य जगत में गूँज रहे हैं बस इस तरही के हल्ले

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  19. अद्भुत प्रवाह, सुन्दर और सरस शब्दों से सुसज्जित, मीटर का बाक़ायदा निर्वाह करती और हलकी फुलकी वो बातें जिन के बिना जीवन निरर्थक हो जाता है, को बतियाती इस उत्कृष्ट रचना के लिए आ. लावण्या जी की जितनी तारीफ़ की जाए कम ही होगी| मने खूबज आनंद थयु आ रचना वांची ने| बहुत बहुत बधाई और आप को सपरिवार दीवाली की हार्दिक शुभकामनायें|

    आ. इस्मत दीदी जी सादर प्रणाम| आपको सपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें| आप की ग़ज़ल पढ़ना हमेशा एक सुखद एहसास जगा जाता है| ऐसा खुबसूरत और सटीक मतला आप ही लिख सकती हैं - ये बहारों के वलवले हर सू| वाह वाह वाह, आनंदम, परमानंदम| ग़ज़ल में जलजले विषय पर कहे गए शेरों का जब भी संकलन होगा, किसी भी संकलक के लिए आप के इस शेर को इग्नोर करना दुष्कर होगा| अपहरण.............वाले शेर में बिलकुल आम आदमी की बोलचाल की भाषा सहज ही आकर्षित करती है| इस बेहद ही उम्दा और पुरअसर ग़ज़ल के लिए होलसेल में बधाइयाँ दीदी|

    आ. शार्दूला जी की तारीफ़ तक़रीबन हर गुणी व्यक्ति से सुनी है| अपनी रचनाओं से बरबस ही मन मोह लेने वाली शार्दूला जी की इस रचना को पढ़ कर किसी निर्झर का तसव्वुर यकायक ही उभर आता है ज़ेहन में| काव्य में प्रवाह और वो भी तर्क संगत बातों के साथ, इस निर्बाध लय के लिए बहुत बहुत बधाइयाँ शार्दूला जी|

    है तो उस पार पर दिखे हर सू - सांस दर सांस - कोइ रैदास तो बने पहले - कंचन जी ऐसे शेर तो कभी कभी ही पढ़ने को मिलते हैं| और अंत में साधना उर्मिला की - वाह वाह वाह अद्भुत गिरह| दीप खुशियों के जल उठे हर सू जो मिसरा है, उस की गिरह एक दम सटीक और तार्किक ढंग से लगाई है आपने| बहुत बहुत बधाई और आप को सपरिवार दीपावली की आर्दिक शुभकामनायें|

    चाँद मेरा मेरा न जाने खोया कहाँ, आह कैसे कैसे खूबसरत सेर पढ़ने को मिल रहे हैं इस तरही में| ख्वाब में भी और रात करवट बदलते जैसे सुन्दर अशआर से सजी इस खुबसूरत ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई तथा आप को सपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें|


    पंकज भाई तरही की ये पोस्ट एक बेमिसाल पोस्ट है| ऐसे जानदार और शानदार तरही के लिए आप को फिर से बधाई|

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  20. लावण्या जी के गीत के बारे में क्या कहूँ, समझ नहीं पा रहा हूँ कि प्रशंसा करूँ या नमन करूँ।

    इस्मत जी की ग़ज़ल लाजवाब है। एक से बढ़कर एक अश’आर हैं। बहुत बहुत बधाई उन्हें इस शानदार ग़ज़ल के लिए।

    शार्दूला जी के गीत की तो
    "पंक्ति पंक्ति चोखी है
    ताल लय अनोखी है"
    बहुत बहुत बधाई उन्हें इस गीत के लिए।

    कंचन जी की ग़ज़ल में कबीर, मीरा, उर्वशी, राम, रहीम, उर्मिला इन सब के संगम ने भारत के गौरवशाली इतिहास को सामने ला खड़ा किया। बहुत बहुत बधाई उन्हें इस ग़ज़ल के लिए।

    अनन्या जी की ग़ज़ल इतने मासूम और कोमल भावों से भरी है कि डर लगता है पढ़ने पर हर्फ़ बिखर न जाएँ। बहुत बहुत बधाई उन्हें इस ग़ज़ल के लिए

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