शनिवार, 22 अक्तूबर 2011

दीपावली का त्‍यौहार हवाओं में अपने आने की आहट दर्ज करवा चुका है और उसी आहट में आज जुड़ रहे हैं रविकांत पांडे, राजीव भरोल और सुलभ जायसवाल के स्‍वर ।

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आदमी को जिस प्रकार से बनाया गया है उस मिट्टी में उत्‍सवों को किसी उत्‍प्रेरक की तरह से गूंथा गया है । उत्‍प्रेरक जो हमें कहते हैं कि जिंदगी बहुत सुंदर है इसे जी के तो देखो । दरअसल में इन्‍सान एक ऐसा सामाजिक प्राणी है जो अकेला नहीं रह सकता । अकेला रहेगा तो नैराश्‍य में डूब जायेगा । नैराश्‍य जीवन के प्रति मोह को समाप्‍त करता है । इसीलिये समाज की कल्‍पना हुई । जब लगा कि समाज के अलावा और भी कुछ चाहिये जो इन्‍सानी जिंदगी में समय समय पर आकर उत्‍साह भर दे तो उत्‍सवों की पर्वों की त्‍यौहारों की कल्‍पना और रचना की गई । और इन्‍सान जीने लगा । वो समाज में रहता है, परिवार में रहता है और त्‍यौहारों के बीच अपने एकाकीपन को धो डालता है । एकाकीपन जो बहुत सारी समस्‍याओं का मूल है अवसाद, नैराश्‍य और न जाने क्‍या क्‍या । कल प्रकाश पाखी ने बहुत अच्‍छी बात कही थी इल्‍म ताबूत था गुरूर कफ़न । हम जितने ज्ञानी होते जाते हैं उतने हम  कठिन होते जाते हैं, और जिंदगी सरलता का नाम है । ज्ञान के अपने साइड इफेक्‍ट्स हैं । तो आइये भूल जायें कि हम कितने ज्ञानी हैं, भूल जाएं कि  हम तो महान हैं, आइये पर्व की मस्‍ती में डूब जाएं । क्‍योंकि ''जिंदगी मिलेगी न दोबारा'' ।

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gold ganesh laxmi sarswati

( सोने के पत्‍तर पर कारीगीरी से बनाये गये गणेश लक्ष्‍मी तथा सरस्‍वती । )

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तरही मुशायरे में आज आ रहे हैं रविकांत पांडेय, राजीव भरोल और सुलभ जायसवाल । तीनों ही मुशायरे के चिरपरिचित नाम हैं सो कोई परिचय नहीं सीधे ही उनकी ग़ज़लों का आनंद लिया जाये ।

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रविकांत पांडेय

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डालियों पर सुमन खिले हर सू
आ गये दिन बहार के हर सू

आमदे यार की खबर सुनकर
''दीप खुशियों के जल उठे हर सू''
फूल हैं हम नहीं मरा करते
बन के खुश्बू बिखर चले हर सू

मोम से ख्वाब मेरे छू के उसे
कतरा-कतरा पिघल गये हर सू
उसकी मूरत है दिल के मंदिर में
खामखां लोग ढूंढते हर सू
चल के इक सिम्त ही मिले मंजिल
हैं वो नादां जो दौड़ते हर सू

वाह वाह उम्‍दा ग़ज़ल और हिंदी उर्दू का सुंदर संगम है । गिरह का शेर बहुत सुंदर तरीके से बांधा गया है । एक ही बात को दो प्रकार से तरही में कहा गया सज्‍जन जी ने मायके से लौटने की बात कही तो रविकांत ने आमदे यार । मोम से ख्‍वाब में बारीक नक्‍़क़ाशी है । उसकी सूरत है दिल के मंदिर में एक शब्‍द खामखां जिस नफासत के साथ गूंथा है उसने सौंदर्य को दोबाला कर दिया है । और फूल हैं हम की तो बात ही क्‍या । बधाई ।

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राजीव भरोल 'राज'

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मैंने चाहा था सच दिखे हर सू

उसने आईने रख दिए हर सू

ख्वाहिशों को हवस के सहरा में

धूप के काफिले मिले हर सू

लोग जल्दी में किसलिए हैं यहाँ,

हड़बड़ाहट सी क्यों दिखे हर सू

कांच के घर हैं, टूट सकते हैं

यूं न पत्थर उछालिए हर सू

फूल भी नफरतों के मौसम में

खार बन कर बिखर गए हर सू

लौट आया वो रौशनी बन कर

"दीप खुशियों के जल उठे हर सू

ये अमावस की रात है फिर भी

हैं उजालों के सिलसिले हर सू

वाह वाह वाह, ग़ज़ल की बात सबसे पहले इस संदर्भ में कि इस ग़ज़ल में रदीफ़ को मिसरे के साथ महीन रेशम के तार से ऐसा गूंथा है कि जोड़ नजर ही नहीं आ रहा है । मतलब ये कि रदीफ और मिसरे का किसी भी शेर में सामंजस्‍य गड़बड़ाया हो ऐसा हुआ ही नहीं है । अब बात शेर की तो कांच के घर और लोग जल्‍दी में हैं जैसे अर्थपूर्ण शेर एक बहुत ही प्रभावशाली मतले की छत्रछाया में बंधे हैं । पूरी ग़ज़ल सुंदर है बधाई बधाई ।

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सुलभ जायसवाल

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गीत होठों से जा लगे हर सू
ताल से ताल जब मिले हर सू
हैं हवाओं में खुश्‍बुएं फैलीं
आज गुलशन मे गुल खिले हर सू
रात नाचेगी रौशनी जग‍-मग
''दीप खुशियों के जल उठे हर सू''
फिर न बांटे हमे कोई अब यां
फैल जाने दो बात ये हर सू
हो मोहब्बत यहां वहां हर सिम्त
भाईचारा अमन रहे  हर सू
सूना सूना है जग तुम्‍हारे बिन
हम सनम राह मे थके हर सू
जां है जब तक 'सुलभ' निभाना फर्ज
जैसे भी हो ये तम कटे हर सू

वाह वाह अच्‍छे शेर कहे हैं । सुलभ को लेकर कुछ दिनो पहले तक मुझे संशय था कि सुलभ ग़ज़ल के मीटर को मुश्‍किल से पकड़ पायेगा किन्‍तु अब वो संशय दूर हो गया है । अच्‍छे शेर निकाले हैं । और अच्‍छी बात ये है कि आपसी भाईचारे पर अच्‍छी बातें कहीं है । फिर न बांटे हमें कोई अब, या हो मोहब्‍बत जैसे शेर इस देश की गंगा जमुनी तहजीब के नाम हैं । सुंदर बधाई बधाई ।

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तो ये आज के तीनों शायर जिन्‍होंने अपने हिसाब से समां बांधा है । तीनों ने अपने तरीके से प्रयोग किये हैं । और मुझे ऐसा लगता है कि काफी सारी तालियां बजनी ही चाहिये । तो आप सब उसी प्रकार आनंद में मगन होकर तालियां बजाइये जिस प्रकार से पिछले दिनों से बजा रहे हैं ।

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25 टिप्‍पणियां:

  1. gazab ki gazal hain teeno hi. maza aa gaya. teeno ko badhaai. jaisa k guru ji ne kaha rajeev ji k liye k radeef aur qafeeye mein jod nazar nahi aa raha hai. vakai aisa hai bhi. iska measurement aise bhi kar saktein hain k agar " har soo" hata dein to sher adoore ho jayenge. kuch kami si lagegi. wah wah kya matla kaha hai. gazal ki aankh hai ye.bahut badhai

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  2. पाठशाला के नियमित छात्रों की ग़ज़लें कह रही हैं कि अब स्‍नातकोत्‍तर स्‍तर की कक्षायें प्रारंभ की जा सकती हैं, स्‍नातक तो सभी हो गये हैं, कुछ शेर तो डाक्‍टरेट लेवल पर आ रहे हैं।
    अब ये गुलशन सँवर गया कितना
    रंग इसका हमें कहे हर सू।

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  3. फूल हैं हम मरा अन्हीं करते
    बन के खुशबू बिखर चले हर सू
    वाह...वाह...
    उसकी मूरत है दिल के मंदिर में
    खामखा लोग ढूंढते हर सू
    गुरुदेव ने क्या खूब कहा..खामखाँ लफ्ज़ से शेर निहायत खूबसूरत हो गया है...रवि को उर्दू हिंदी दोनों ज़बानों में महारत हासिल है वो ग़ज़ल और गीत दोनों बहुत ख़ूबसूरती से कहते हैं...इस ग़ज़ल के लिए उन्हें ढेरों बधाई.
    ***
    राजीव जी की ग़ज़ल ने मन मोह लिया. इस मुशायरे में अब तक वो सबसे पहले कमेन्ट करने वाले रहे हैं, उनमें प्रथम रहने की कामना है और इसी वजह से उन्होंने इस तरही में कमाल के शेर निकाले हैं. हर शेर बहुत कारीगरी से तराशा गया है...और ढेरों दाद के काबिल है.किसी एक शेर को अलग से कोट करने से बाकी के शेरों के साथ नाइंसाफी होगी...मेरी राय में कोई शेर कमज़ोर नहीं है...ऐसी बाकमाल ग़ज़ल कहने के लिए राजीव भाई जियो...
    ***
    सुलभ जी गुरुकुल के पुराने छात्र हैं और उनकी ग़ज़ल इस बात का पुख्ता सबूत है कि उन्होंने गुरुकुल में कितनी संजीदगी से सब कुछ सीखा है. प्यार मोहब्बत भाई चारा सभी भावों को बहुत खूबी से उन्होंने अपने अशआर में पिरोया है. वाह सुलभ जी वाह. इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए ढेरों बधाइयाँ.

    मुशायरे में जगमगाते शेरों से अब तो आँखें चुधियाने लगी हैं.

    नीरज

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  4. गुरुदेव ... आज का पाठ सही मायने में कुंजी है संजो के रखने के लिए ... इस बात से मैं १०० फी सदी सहमत हूँ की ज्ञानी हो कर .. बड़ा बन कर हम अपनी सरलता खोने लगते हैं अपने अंदर के बच्चे को कहीं सुला देते हैं और यही कारण है गरूर पैदा होने का ... काश की वो सरलता सहजता बनी रहे सब में ...

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  5. रवि कान्त जी ने तो सच मानों प्यार की बयार ही बहा दी ... आमदे यार की खबर सुन के ... या उसकी मूरत है दिल के मंदिर मैं ... सादे शब्दों में प्रेम की ऊँचाइयों को छुवा है ...
    और राजीव जी तो लूट रहे हैं इस मुशायरे को ... पहला शेर ही इतना कमाल है की बार बार लौट आता हूँ इसपे .. और फिर कांच का घर है .. ये फिर फूल भी नफरतों .. या फिर ... लगता है है पूरी गजल ही उतर जायगी ऐसे ... बहुत बहुत बधाई है राजीव जी को ...
    और सुलभ जी के तो क्या कहने .. ये जरूर है आजकल बस तरही में ही नज़र आते हैं पर जब आते हैं धमाकेदार आते हैं ... फिर न बांटे ... या फिर ... हो मोहब्बत ... अपने शेरों के माध्यम से जागरूकता लाने का प्रयास कर रहे हैं ... आशा है अपने प्रयास में वो सफल होंगे ... ...

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  7. ’ज्यों-ज्यों डूबे श्याम रंग.. ! ’ जो रंग जमा है उसके लिये मन में बरबस ये बात कौंध जाती है. ’ज्ञान के अपने साइड-इफेक्ट होते हैं’ इस सनातन वाक्य पर सादर बधाई. परस्पर स्नेह और मान का संचार न हो, परस्पर संवाद न हो तो अश्वत्थ सा ज्ञान भी ऊसर का पर्याय हो जाता है जिसकी छाँह में कुछ उगा नहीं करते.
    पंकजभाईजी, आपने बहुत गहरी बात कही है.
    सादर.
    भारत भूमि प्राकृतिक तथा मानवीय दोनों रूपों में उत्सवधर्मी रही है. और हम इसी उत्सवधर्मिता का मुखर प्रतिफल हैं.

    प्रति पोस्ट गणेश, लक्ष्मी तथा सरस्वती के मनोहारी चित्र विशेष प्रतीक्षित होने का कारण बन गये हैं ! यह संचालक की संवेदनशीलता का अत्युत्तम उदाहरण है.

    रविकांतजी की ग़ज़ल स्वतः संसृत होती चलती है. जिसने यह समझ लिया हो कि ’चले इक सिम्त ही मिले मंजिल’ उसके लिये किसी अगर-मगर की बात फिर नहीं रह जाती. आपके सभी शेर आपके इल्म और मशक्कत की आप कह रहे हैं.
    आमदे यार... उठे हर सू ... हृदय की प्रसन्नता उफन कर बाहर आती प्रतीत हो रही है. कमाल !
    फूल हम हैं... बिखर चले हर सू .. . इस जीजिविषा को सलाम.
    मोम के ख्वाब.. गये हर सू .... बहुत ही महीन और रुमानियत लबरेज़ शेर है. बहुत-बहुत बधाई.
    उसकी मूरत... ढूँढते हर सू ... मन जब कबीर-कबीर हो आय तो जुबान कुछ ऐसी ही बेलागोसाफ हो जाती है.
    रविकांतजी हार्दिक स्नेह व बधाइयाँ.

    राजीव भोराल ’राज’जी की टिप्पाणियाँ प्रस्तुत आयोजन के उस दिन की सबसे पहली टिप्पणियों में से होती हैं. और सभी शायर आपके उत्साहवर्धन के कायल हैं.
    मतले की साफगोई ने ही दिल रख लिया. एक बहुत बड़ी बात इस शान्दार तरीके से कही गयी है कि मुँह से बस वाह ही निकलता है. आपके जिन अश’आर ने विशेष रूप से प्रभावित किया है -
    ख्व्वाहिशों को हवस... मिले हर सू .... एक ऊँचे स्तर की बात है जहाँ उन शख़्सों की चर्चा है जो जाने-अनजाने खामखयालियों में खुद को चकचकाती धूप में खुद को उलझा लिया करते हैं. इस सोच पर बहुत बहुत बधाई.
    कांच के घर... उछालिए हर सू
    फूल भी नफरतों... गए हर सू
    ये अमावस... सिलसिले हर सू
    बहुत-बहुत बधाई है भाई.

    सुलभजी के मतले से ग़ज़ब का संगीत निस्सृत हो रहा है. आपने दिलों को जोड़ने की बात की है और खूब की है.
    फिर न बांटे... ये हर सू
    हो मोहब्बत... रहे हर सू
    आपकी बातें सुलभजी स्पष्ट और ऊँची हैं. उम्दा कहन पर दिली दाद लीजिये.

    तीनों ही हस्ताक्षरों को पुनश्च ढेरोंढेर बधाइयाँ तथा दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ.

    --सौरभ पाण्डेय, नैनी, इलाहाबाद (उप्र)

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  8. वो कहते हैं न "मन बगिया खिल खिल जाये"
    पिछले कुछ दिनों से लगातार बरस रहे हैं - आनंद ही आनंद....!

    रविकांत जी का तरही में मैं इसलिए इन्तजार करता हूँ कि वो धार्मिक, सनातन हिंदी शब्दों के साथ ग़ज़ल कहते हैं.
    लेकिन आज तो "आमदे यार...उसकी मूर्त है...चल के इक सिम्त...." पर मन बहुत खुश हुआ है.

    राजिव जी लम्बे कद के शायर है ही. मतला और मक्ता सब ख़ास है.

    बहुत बहुत बधाई आप दोनों को.

    -
    मेरे अशआर पसंद करने के लिए आप सभी का शुक्रिया!!
    दीपावली की शुभकामनाएं!!

    जवाब देंहटाएं
  9. त्यौहार कितना महत्पूर्ण होता है, ये भूमिका सभी के लिए पठनीय है.
    दीपावली की शुभकामनाएं!!

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  11. राजीव जी आपने कमाल की ग़ज़ल लिखी है मुझे बहुत पसंद आई.. ग़ज़ल का हर एक शेर खूबसूरती से बयाँ है वाह!! बाकि भी सभी ग़ज़लें तारीफ के काबिल है .

    -कुसुम शर्मा

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  12. आज के तीनो ही चिर-परिचित शायरों की ग़ज़लों का बेसब्री से इंतज़ार था.
    रवि कान्त भाईजी, व्यस्तताओं के बीच में भी बहुत खूब शेर कहें हैं.
    गिरह बहुत सुन्दर बाँधी है.
    "फूल हैं हम नहीं ........................अच्छा शेर है.
    मोम के ख्वाब.............हासिल-ए-ग़ज़ल शेर. वाह वा
    उसकी मूरत................वाह वा
    बधाई स्वीकारें.

    राजीव जी से कल ही बात हो रही थी. और मैं कह रहा था आपकी ग़ज़ल का बहुत इंतज़ार है और इंतज़ार इतनी जल्दी ख़त्म हो जायेगा सोचा न था.
    मैंने चाहा था................क्या मतला गूथा है. कमाल है. वाह वा
    ख्वाहिशों को हवस के सहरा में............बहुत खूब.
    लोग जल्दी में.........अच्छा शेर बना है
    कांच के घर हैं.............मिसरा-ए-सानी में जो बात इतने करीने से आगे बढ़ी है वही जादू है शेर में. उम्दा शेर, उम्दा कहन
    गिरह भी अच्छी बाँधी है.
    मुझको भी तरकीब सिखा दे "यार जुलाहे".
    राजीव जी बेहतरीन ग़ज़ल के लिए ढेरों बधाइयाँ

    सुलभ जी, अच्छे शेर निकाले हैं,
    अच्छा मतला कहा है.
    रात नाचेगी................बहुत खूब, गिरह अच्छे से बाँधी है.
    फिर ना बाटें.........................वाह वा
    सुन्दर ग़ज़ल के लिए बधाइयाँ.

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  13. राजीव की ग़ज़ल, मेरे समझ से इस मुशायरे की सिरमौर ग़ज़लों में से एक होगी| मतला तो खैर तमाम तारीफ़ों से परे है| बहुत ही उम्दा ...करोड़ों दाद में भी न समेटे जाने लायक| ...और आखिरी शेर में एक बस अमावस और उजाले से दीवाली पर्व विस्तार, असत्य पर सत्य की विजय का उद्घोष ....वाह, राजीव बहुत ही अच्छे |

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  14. सुलभ भी इतने दिनों बाद दिख रहा है और साथ ही हैरान कर रहा है| फिर न बांटे हमे कोई वाला शेर तो खून कहा ...वाह!!!

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  15. और अपने रवि मियाँ तो बेधड़क अपनी शायरी में ब्गड़ने का इल्ज़ाम गालिबों-मीर पर दाल रहे हैं आजकल| अभी अभी जनाब का दो शेर पढ़ा
    "आंसुओं ने रोशनाई और कलम दी पीर ने
    यूं मुझे शायर बनाया दोसतों तकदीर ने
    ये फकीराना तबीयत यूं नहीं हासिल हुई
    कुछ बिगाड़ा गालिबों ने कुछ बिगाड़ा मीर ने"

    ....और अब ये तरही , अपनी तमाम व्यस्तता में भी समय निकाल कर अच्छे शेर कहे है| आमदे यार की खबर सुनकर वाले गिरह का एक बहुत ही रोचक वाकिया है जो रवि को मालूम है| एक ही विचार कैसे बाहर पे बांध कर शब्द दर शब्द कश्मीर से कानपुर तक पहुँच जाये....ये गिरह है उसका उदाहरण|ख्वाबों का मोम सा होना और फिर उसका कतरा कतरा पिघलना...गुंजन ने अवश्य सुना होगा इस शेर को, इसी यकीन के साथ बधाई :-)

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  16. सुबीर भैया, हर दिन इंतज़ार सा रहता है कि आज आप क्या कहेंगे भूमिका में, कौन सी पंटिंग लगायेंगे... देख के, पढ़ के सूकून सा मिलता है. आज आपके आगाज़ ने मुझे २००९ के दिवाली तरही "दीप जलते रहें झिलमिलाते रहें" के एक शेर की याद दिला दी.
    बालपन की गली निष्कपट चुलबुली,
    बन सरल बारिशों में नहाते रहें
    ...आभार और आशीष!
    २००९ की तरही से महावीर दा की भी याद आ गई.
    उस तरही से उनके दो शेर कोट कर रही हूँ:
    दीपमाला पहन कर सजी है धरा
    दीप जलते रहें, झिलमिलाते रहें
    बस 'महावीर' की तो यही है दुआ
    प्यार का हम ख़ज़ाना लुटाते रहें
    --- दादा भाई महावीर जी
    --------
    इस बार देख रही हूँ कि तरही इतनी समृद्ध है कि टिप्पणी में अशआर कोट करने के बाद हमेशा लगता है, ओह! ये तो रह गया, ये भी कितना खूबसूरत था! यानि कि मन रोज बेशुमार दौलत हासिल कर रहा है ! सो सभी को धन्यवाद, आभार और सबसे ज्यादा आपको सुबीर भैया!
    ---------
    रविकांत जी का "आमादे यार.." बहुत खूबसूरती से कहा गया शेर लगा. "फूल हैं हम..." के लिए उन्हें सलाम! "चल के इक सिम्त..." बेहद उम्दा!
    राजीव जी की ग़ज़ल में गीत की तरह एक चढ़ाव सा दिखा मुझे, सीढ़ी दर सीढ़ी. सारे शेर बहुत खूबसूरत हैं! "लौट आया वो रोशनी बन कर ..." इतना नूर समेटे है कि मन जैसे बन्ध सा गया है और कोई और शेर पढ़ने नहीं दे रहा है. आशीष लें !
    सुलभ जी का " रात नाचेगी रौशनी जगमग ..." सुन्दर लगा.
    ----
    अब जैसे दीपावली द्वार पे ही खड़ी हो... आखिर थोड़ा अधिक पूरब में हूँ न :)
    सादर, स्नेह...

    जवाब देंहटाएं
  17. रविकांत पांडेय

    आमदे यार की खबर सुनकर
    ''दीप खुशियों के जल उठे हर सू''

    फूल हैं हम नहीं मरा करते
    बन के खुश्बू बिखर चले हर सू

    मोम से ख्वाब मेरे छू के उसे
    कतरा-कतरा पिघल गये हर सू

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    राजीव भरोल 'राज'

    मैंने चाहा था सच दिखे हर सू
    उसने आईने रख दिए हर सू

    ख्वाहिशों को हवस के सहरा में
    धूप के काफिले मिले हर सू

    कांच के घर हैं, टूट सकते हैं
    यूं न पत्थर उछालिए हर सू
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    सुलभ जायसवाल

    हैं हवाओं में खुश्‍बुएं फैलीं
    आज गुलशन मे गुल खिले हर सू

    फिर न बांटे हमे कोई अब यां
    फैल जाने दो बात ये हर सू

    हो मोहब्बत यहां वहां हर सिम्त
    भाईचारा अमन रहे हर सू


    वाह वाह वा तरही मुशायरा तो अपने हर अंक के साथ नई उचाईयों पर पहुँच रहा है,

    सोने के पत्तर पर कारीगरी जैसी कमाल की है वैसे ही इन तीन शाइरों की ग़ज़ल के अशआर हैं, महीन बुनावट और आनंदविभोर करने का हुनर इन तीनों के कलाम में दिखा

    रवि भाई ने हमेशा कि तरह हिंदी के शब्दों को खूबसूरती से पिरोया वह कमाल है

    राजीव भाई की ग़ज़ल तरही मुशायरे की सबसे अच्छी ग़ज़लों में से एक होने वाली है

    सुलभ भाई की ग़ज़ल को पढ़ कर सबसे ज्यादा खुशी हुई,, ऐसे कठिन मिसरे पर इतनी प्यारी ग़ज़ल कहना. ,, वाह वाह,, दिल खुश हो गया

    तीनों भाईयों को मेरी ओर से हार्दिक बधाई

    इसके आगे गौतम भईया का कमेन्ट एक बार फिर से पढ़ लिया जाए :)

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  18. वेरी वेरी वेरी वेरी गुड गोइंग सुबीर जी
    ग़ज़लों के साथ साथ आप जो हर पोस्ट में विशिष्ट श्रेणी के चित्र लगा रहे हैं, आप के इस परिश्रम के लिए कुछ भी लिखना कम ही होगा| भाई तरही हो तो ऐसी|

    ग़ज़ल और छन्द दोनों ही विधाओं में अपना परचम लहराने वाले रवि भाई का स्वागत| आपने वो जो अभंग और सभंग श्लेष वाले प्रयोग किये थे, वो तो इतिहास में दर्ज़ हो गए हैं भाई| 'फूल हैं हम" - क्या बात है, क्या बात है, क्या बात है - ये तो भाई सब शेरों पर सवा शेर नहीं ढाई शेर है, सन्नी देओल के ढाई किलो वाले से भी असरदार| 'मोम से ख्वाब' वाला शेर भी अपने अन्दाज़ेबयाँ को ले कर छाप छोड़ रहा है| 'उस कि सूरत' और 'चल के इक सिम्त ही' वाले शेर भी पुरअसर हैं| बहुत बहुत बधाई रवि भाई|

    राजीव भारोल भाई, आप तो मुशायरा लूट ले गए| क्या ग़ज़ल है| क्या क्या गिरह बांधी हैं| बहुत खूब बहुत खूब| सब लोगों ने इतनी तारीफ़ कर दी है, कि अब कोई कहे भी तो क्या| फेसबुक और आप के ब्लॉग पर आप को पढ़ना सदैव ही एक सुखद अनुभव रहा है| इस बार भी आप ने अपना सिक्का जमाया हुआ है| लौट आया वो रोशनी बन कर - इस मिसरे की जबरदस्त गिरह के लिए सेपरेट बधाइयाँ| इस ग़ज़ल का कोई एक शेर कोट करने के काबिल है ही नहीं| सारी की सारी ग़ज़ल ही सर चढ़ के बोल रही है| इस ग़ज़ल के लिए तो होलसेल में बधाइयाँ क़ुबूल फरमाएं राजीव भाई|

    रात नाचेगी वाले मिसरे को बखूबी निभाया है तरही के मिसरे के साथ सुलभ भाई| फिर न बांटे - भाई चारे को समर्पित इस शेर के लिए दिली दाद क़ुबूलें सुलभ भाई| तरही दर तरही आपको पढ़ने में मज़ा आ रहा है| आप से इसी तरह की खुबसूरत ग़ज़लों की उम्मीद रहेगी| इस खुबसूरत ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई सुलभ भाई|

    जवाब देंहटाएं
  19. आज की तीनों ग़ज़लों के साथ ही मुशायरे का कारवां कामयाबी के कुछ और पड़ावों को पार कर गया है.

    रविकांत जी के अशआर शेरियत और सदाकत से लबालब हैं.खास कर "फूल हैं हम मरा नहीं करते ..."बहुत पसंद आया.

    राजीव जी की ग़ज़ल को कई बार पढ़ा.क्या मानीखेज मतला निकाला है आपने.फिर "फूल भी नफरतों के मौसम में..."तो एक दम से जेहन में बस गया है.बहुत खूब.

    सुलभ भाई ने बड़े जहीन शेर कहे हैं."फिर न बांटे हमें कोई अब यां......".शेर नहीं सवा शेर कहिये जनाब.

    जवाब देंहटाएं
  20. पंकज जी यक़ीनन आप मुबारकबाद के मुस्तहक़ हैं इस आयोजन के लिये

    फूल हैं हम नहीं मरा करते
    बन के ख़ुश्बू बिखर चले हर सू
    बहुत ख़ूब रवि जी ,,क्या बात है !!

    हो मुहब्बत यहाँ वहाँ हर सिम्त
    भाईचारा अमन रहे हर सू
    बहुत उम्दा पैग़ाम दिया है सुलभ जी ,,ख़ुदा करे आप की ये दुआ जल्द अज़ जल्द पूरी हो (आमीन)

    फूल भी नफ़रतों के मौसम में
    ख़ार बन कर बिखर गए हर सू
    राजीव जी बेहद ख़ूबसूरत मतले से शुरुआत की है आप ने ग़ज़ल की ,,हर शेर अपनी अहमियत ख़ुद बता रहा है ,,
    बहुत ख़ूब !!

    तीनों शायर अपनी उम्दा तख़्लीक़ात के लिये मुबारकबाद क़ुबूल करें

    जवाब देंहटाएं
  21. मुस्तफा जी, तिलक जी, नीरज जी, दिगंबर जी, सौरभ जी, सुलभ जी, कुसुम जी, अंकित भाई, वीनस भाई, गौतम भाई, शार्दुला जी, शारदा जी, नवीन जी, सौरभ जी, इस्मत जी,
    हौसलाअफज़ाई और गज़ल पसंद करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया.

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  22. रविकांत जी, आप कि गज़ल बहुत प्यारी है. गिरह बहुत खूब बाँधी है आपने. और फिर "फूल हैं हम नहीं मारा करते", "मोम के ख्वाब मेरे..", "उसकी मूरत दिल के मंदिर में." बहुत ही उम्दा शेर हैं. दिली मुबारकबाद.
    सुलभ जी, बहुत बढ़िया गज़ल. सुन्दर गिरह है. "फिर न बांटे हमें कोई अब याँ..", "हो मुहब्बत यहाँ वहाँ हर सिम्त.." क्या नेक और खूबसूरत ख्याल है. और "सूना सूना है जग तुम्हारे बिन..", "जाँ है जब तक सुलभ निभाना फ़र्ज़.." बहुत उम्दा. बधाई.

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  23. ानन्द आ गया तीनो गज़लें पढ कर. अब तो ये तीनो उस्ताद शायर बन गये हैं तभी तो कहती हूँ कि सुबीर जी हीरे तराशने मे माहिर हैं\ लाजवाब गज़लों के लिये तीनो को बधाई और इनके गुरूदेव को भी बधाइ और धन्यवाद।

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  24. समाँ बाँध दिया तीनों शायरों ने,रविकांत जी का फूल हैं हम.... दिल को छू गया। राजीव भरोल जी का कोई शे’र कोट करना दूसरे अश’आरों के साथ नाइंसाफी होगी। सुलभ जी ने तो लाजवाब ग़ज़ल कही है। बहुत बहुत बधाई इन तीनों शायरों को

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