सोमवार, 31 अक्तूबर 2011

एक बहुत ही जानदार शानदार दीपावली के मुशायरे के बाद आइये कुछ और ग़ज़लों कविताओं के साथ मनाई जाये बासी दीपावली । आज सुनते हैं श्री अशोक सलूजा अकेला जी और श्री वीरेंद्र जैन की ग़ज़लें ।

दीपावली का त्‍यौहार संपन्‍न हो गया । बीतना समय का कार्य है सो वो बीतता है । सब कुछ ठीक हो गया । इस बीच बहुत व्‍यस्‍तता रही । दीपावली के ठीक बाद एक कार्यक्रम होना था जिसकी जिम्‍मेदारी टीम पी सी लैब पर थी । कार्यक्रम भी ठीक प्रकार से हो गया । लेकिन हां ये हुआ कि कार्यक्रम की व्‍यस्‍तता में अंकित के साथ बैठना बहुत ज्‍यादा नहीं हो पाया । दीपावली का अपना आनंद होता है सो उसका आनंद लिया गया । अब छठ पर्व की तैयारी चल रही है । अस्‍त होते सूर्य की पूजा और उदित होते सूर्य की पूजा । अभी दीपावली का त्‍यौहार कार्तिक पूर्णिमा तक चलने वाला है क्‍योंकि छठ पूजा के बाद देव प्रबोधनी एकादशी तथा उसके बाद कार्तिक पूर्णिमा ये सब एक के बाद एक होने हैं । तो आइये कुछ और ग़ज़लों के साथ मनाते हैं बासी दीपावली ।

deepavali_lampदीप ग़ज़लों के जल उठे हर सू deepavali_lamp

दीप ग़ज़लों के जल उठे हर सू, हमारे मिसरा ए तरह को इस बार शायरों ने यही बना दिया है । इतनी जगमग करती हुई ग़ज़लें आईं कि लगा कि दीप ही दीप जल उठे हों । और आज सुनते हैं श्री अशोक सलूजा अकेला जी तथा श्री वीरेंद्र जैन  की ग़ज़लें ।

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( पंडित अभिषेक शर्मा सुपुत्र श्री बब्‍बल गुरू पीसी लैब में दीपावली की पूजा करवाते हुए । )

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अशोक सलूजा  'अकेला'

अपने बारे में कहने को कुछ नही , जो एहसास रखता हूँ उन्हें जैसा महसूस करता हूँ ,लिख कर समय काटता हूँ !बस..... आज आप के ब्लॉग पर पढ़ रहा था ...जैसा समझा ,वैसे ही लिख दिया । बस क्या कहूँ ...

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दीप खुशियों के जल उठे हर सू
इक लहर सी है अब उठे हर सू
हर तरफ हैं बज़ार में मेले
फूल खुशियों के हैं खिले हर सू
दुख सभी का मिटेगा सोच के ये  
सब गले आज मिल रहे हर सू
आँख से आंसू मैंने पोंछ दिए 
फूल ही फूल जब दिखे  हर सू

दीप जलते हैं ज्‍यों दिवाली में  
दिल में अब रौशनी भरे हर सू
जी लिया है बहुत अंधेरों में  
रौशनी की नदी बहे हर सू
जिंदगी जब हो  झूम के गाती
चुप "अकेला" ये क्‍यों फिरे  हर सू
  
वाह वाह वाह । अच्‍छी ग़ज़ल कही है पूरी की पूरी ग़ज़ल सकारात्‍मक सोच से भरी है । दीपावली का अर्थ ही सकारात्‍मक सोच को बढ़ाना है । श्री अकेला जी ने जिस प्रकार के शेर निकाले हैं वो दीपावली की मूल भावना को प्रतिबिम्बित कर रहे हैं । बधाई बधाई बधाई ।

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श्री वीरेंद्र जैन

मैं वीरेंद्र जैन वड़ोदरा में निवासरत हूँ एवं सिविल सर्विसेस के लिए प्रयत्न कर रहा हूँ , मैंने एक छोटी सी कोशिश की है ग़ज़ल लिखने की, मेरा पहला प्रयास है ,  आप सब अपना आशीर्वाद दें ।

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फूल महके जो प्यार के हर सू
दीप खुशियों के जल उठे हर सू
इश्क की जब हवा बहे हर सू
एक नई दुनिया तब दिखे हर सू

चाँद उतरा फलक से है शायद
उसकी आहट सुनाई दे हर सू
उसने कर ली दो बातें जो मुझसे
मेरे ही चर्चे हो रहे हर सू

बस गया है नज़र में तू ऐसे
तेरी सूरत दिखे मुझे हर सू
यूँ तो सब कुछ ही पाया है फिर भी
मुझको तेरी कमी खले हर सू

सब्ज़ बागों पे छाई वीरानी
रंग पतझड़ के ही दिखे हर सू
शाम के ढलते ही मेरे दिल में ,
मेले यादों के फिर लगे हर सू
दर्द और ग़म की इन्तहां है बस
बदली अब पीर की छंटे हर सू

वाह वाह वाह । उम्‍दा ग़ज़ल है । और मुझे लगता है कि ये जो श्री वीरेंद्र ने कहा है कि ये उनकी पहली ग़जल़ है ये उन्‍होंने विनम्रता पूर्वक कहा है । परिचय तो नहीं है पर दावे से कह सकता हूं कि ये उनकी पहली ग़ज़ल नहीं है । जिस प्रकार से दीर्घ और लघु का संतुलन दूसरे रुक्‍न में बनाया है उससे तो यही पता चलता है । और चांद उतरा फलक से है शायद जैसे शेर पहली बार में नहीं कहे जा सकते । बस गया है नज़र में तू या फिर उसने कर ली दो बातें जैसे शेर तो यही कह रहे हैं । बधाई बधाई बधाई ।

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तो आनंद लीजिये बासी दीपावली का । और आनंद लीजिये इन ग़ज़लों का । ये ग़ज़लें जो दीपपर्व की स्‍मृतियों को फिर से उभार रही हैं । दाद देते रहिये और आनंद लेते रहिये ।

15 टिप्‍पणियां:

  1. मैने तो दोनो शायरों को पहली बार पढा है और दोनो के आखिरी शेर मे अटक कर रह गयी एक मे खुशियाँ दूसरे मे उदासी यही तो ज़िन्दगी है। दोनो की गज़लें बहुत अच्छी लगी। बधाई और शुभकामनायें।

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  2. अशोक जी और वीरेंद्र जी को खूबसूरत गज़लों के लिए बहुत बधाई..बहुत खूब शेर कहे हैं.
    अशोक जी के "दीप जलते हैं ज्यों दीवाली में,दिल में अब रौशनी भरे हर सू." और "जी लिया है बहुत अंधेरों में.." खास तौर पर पसंद आये.

    वीरेंद्र जी के अनुसार ये उनकी पहली कोशिश है लेकिन लगता नहीं है की पहली बार गज़ल कह रहे हैं..बहुत उम्दा शेर कहे हैं."चाँद उतरा फलक से है शायद..", "बस गया है नज़र में तू ऐसे.", "यूं तो सब कुछ ही पाया है फिर भी..". "सब्ज बागों पे छाई वीरानी.." बहुत पसंद आये.
    दोनों शायरों को हार्दिक बधाई.

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  3. स्‍वागत है अशोक जी और वीरेंद्र जी का और उनकी अभिव्यक्‍तियों का।
    अशोक जी केवल मेरे हमउम्र ही नहीं जीवंत भी लग रहे हैं, भोपाल के हों तो कभी महफि़ल जमाते हैं।
    दोनों ग़ज़लें सुंदर अभिव्‍यक्ति हैं जहॉं अशोक जी की ग़ज़ल में सीधी सादी बात सीधे सादे तरीके से कही गयी है वहीं वीरेन्‍द्र की ग़ज़ल उनकी आयु की भावनाओं का प्रतिनिधित्व करती है।
    दोनों को बधाई।

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  4. सुबीर जी ,नमस्कार !
    मैंने जो भी अपने बारे में आप को लिखा ,वो ही सच है ! सिर्फ एहसास महसूस कर सकता हूँ,और वैसे ही लिख कर समय काटता हूँ | मैंने जो भी लिखा, उसमे आपने सजा-सवांर कर उसको गज़ल बना दिया यह आप का बडप्पन है | बहरहाल आप का अपने ब्लॉग पर स्नेह,मान सम्मान पा कर बहुत अच्छा लगा|आप सब को पढ़ कर कुछ सीखने की कोशिश करता रहूँगा |
    सम्मान के लिए -
    आभार -आप सब को !

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  5. अशोक जी और वीरेंद्र जी का स्वागत है इस मंच पर ...
    अशोक जी से ब्लॉग जगत के जरिये ही कुछ आत्मिक सम्बन्ध हैं ... और अब तो इस छात्रावास के सम्बन्ध भी बन गए ... सच है की दिवाली एक आशावादी और सकारात्मक सोच का त्यौहार है और अशोक जी की पूरी गज़ल इसी सोच को ले कर है ... हर तरफ हैं बाजार में मेले ... या फिर ... दीप जलते हैं ज्यों दिवाली में ... बहुत ही कमाल के शेर बने हैं ...
    वीरेंद्र जी एक मंझे हुवे विनम्र शायर की तरह आए हैं ... और कमाल के शेर कह गए ... बस गया है नज़र में तू ऐसे ... यूँ तो सब कुछ ही पाया ... बहुत ही सादगी भरे प्रेम की कल्पना लिए है ... और चाँद उतरा फलक से है शायद ... ये तो कमाल ही है ...

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  6. दोनों ही रचनाकारों ने अच्छे अश’आर कहे हैं। अशोक जी को बहुत बहुत बधाई इन अश’आरों के लिए।
    वीरेंद्र जी की ये पहली ग़ज़ल तो नहीं होगी। बड़े ही शानदार अश’आर कहे हैं उन्होंने और अगर सच में ही ये पहली ग़ज़ल है तब तो आगे ये पता नहीं क्या करेंगे। बधाई वीरेंद्र जी को

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  7. अब सात गुणा सात वाली ग़ज़ल का इंतजार है। उसके बाद ही मुशायरा खत्म माना जाएगा

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  8. गुरूवर,

    दीपावली की व्यस्तता कुछ ऐसी रही कि बासी दीवाली के बाद भी कुछ पोस्टें ताजा रह गयीं मेरे लिए।

    आज उन सभी ताजी पोस्टों को पढ़ना है....

    प्रस्तुत पोस्ट में आपका ख्याल बिल्कुल सही लगा मुझे भी कि वीरेन्द्र जी कि यह पहली गज़ल तो नही लगी लेकिन यदि ऐसा है तो.....भविष्य का एक अच्छा गज़लगो आज अवतरित हुआ है इस मंच पर।

    सब्ज बागों पे छाई वीरानी
    रंग पतझड़ के ही दिखे हर सू

    बहुत अच्छा लगा यह शे’र...

    अशोक सलूजा साहब का यह संदेश सबःई तक पहुँचे इसी कामना के साथ :-

    दुःख सभी का मिटेगा सोच के ये
    सब गले आज मिल रहे हर सू

    इन्शाल्लाह.....

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

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  9. प्रणाम गुरुदेव ,
    आपने मुझे इतना मान दिया , इसके लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद | आपने अपने ब्लॉग पर मुझे स्थान दिया , मैं स्वयं को धन्य समझता हूँ | आप लोगों के सानिध्य में ग़ज़ल सीखने के लिए प्रयासरत हूँ | आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया ....

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  10. श्री अशोक सलूजा जी एवं श्री वीरेन्द्र जैन जी ने जिस प्रकार तरही मुशायरे को विस्तार दिया है वो काबिले तारिफ है.

    आँख से आंसू मैंने पोंछ दिए
    फूल ही फूल जब दिखे हर सू.... ये शेर लंबे अनुभव की दास्ताँ है.
    ‍‍--
    बस गया है नज़र में तू ऐसे
    तेरी सूरत दिखे मुझे हर सू
    यूँ तो सब कुछ ही पाया है फिर भी
    मुझको तेरी कमी खले हर सू

    जी बिल्कुल ए॓सा ही होता है. वीरेन्द्र जी ने बड़ी खुबसूरती से बयाँ किया है.

    बहुत बहुत बधाई !!

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  11. अशोक जी,
    दीपावली पर विशेष तौर पर लिखी गई पूरी ग़ज़ल खूब पसंद आई

    इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई
    ये दो शेर तो खास पसंद आये

    दीप खुशियों के जल उठे हर सू
    इक लहर सी है अब उठे हर सू

    जिंदगी जब हो झूम के गाती
    चुप "अकेला" ये क्‍यों फिरे हर सू

    जवाब देंहटाएं
  12. अशोक जी,
    दीपावली पर विशेष तौर पर लिखी गई पूरी ग़ज़ल खूब पसंद आई

    इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई
    ये दो शेर तो खास पसंद आये

    दीप खुशियों के जल उठे हर सू
    इक लहर सी है अब उठे हर सू

    जिंदगी जब हो झूम के गाती
    चुप "अकेला" ये क्‍यों फिरे हर सू

    जवाब देंहटाएं
  13. वीरेंद्र जैन जी,

    आपकी रचनाएँ पहले भी पढ़ने का सुअवसर प्राप्त हुआ है

    आपमें ख्यालों की पुख्तगी तो है ही अब आपकी रचनाओं में शिल्प का कसाव भी विशेष आकर्षित कर रहा है

    गज़ल खूब पसंद आई
    हर शेर लाजवाब,,

    पहली ग़ज़ल में ये तेवर हैं तो कुछ दिन बाद क्या होगा,,, :)

    कोई शेर कोट नहीं कर रहा हूँ क्योकि हर शेर पसंद आया है

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  14. अशोक जी और वीरेंदर जी की ग़ज़लें पढ़ कर बहुत अच्छा लगा...अशोक जी की ग़ज़ल सकारात्मक सोच से भरी हुई है और बेहतरीन शेरों से सजी हुई है...वीरेंदर जी ने अपने कलाम से चौंका सा दिया है...इस उम्र में ऐसे अशआर...वो भी पहली ग़ज़ल में...सुभान अल्लाह...क्या बात है...इन दोनों शायरों को मेरी दिली दाद पहुंचा दें...

    नीरज

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  15. दोनों ही शायरों को पहली बार पढ़ रहा हूँ.
    अशोक 'अकेला ' जी का ये शेर, "आँख से आंसू मैंने ..................", अच्छा बना है. बधाई स्वीकारें.
    वीरेंद्र जी हुस्न-ए-मतला बहुत ही खूब कहा है. "चाँद उतरा फ़लक से...", अच्छा शेर कहा है. खूबसूरत ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद.
    उम्मीद है कि दोनों शायरों को आगे भी पढने का मौका मिलता रहेगा.

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