बुधवार, 26 अक्तूबर 2011

आ ही गया प्रकाश पर्व, सबको मंगल कामनाएं, शुभ कामनाएं, उजास आप सबके जीवन में हमेशा भरी रहे यही कामना है । आइये दीपावली मनाएं श्री राकेश खंडेलवाल जी, श्री नीरज गोस्‍वामी जी, डॉ. सुधा ओम ढींगरा जी, श्री समीर लाल जी और श्री तिलक राज जी कपूर के साथ ।

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और बहुप्रतीक्षित प्रकाश पर्व आज देहरी पर आ ही गया है । वही पर्व जिसको लेकर नवरात्री के समय से ही इंतज़ार प्रारंभ हो जाता है । आइये सब कुछ भूल कर दीपावली मनाएं । एक दिया घर की और एक मन की देहरी पर रखें । अपने घर और मन दोनों को एक साथ प्रकाशित करें । और अपने इस मित्र के कहने पर एक काम ज़ुरूर करें, यदि आप सोचते हैं कि आपके कारण पिछले वर्ष भर में किसी को भी ठेस लगी है उसे दुख पहुंचा है तो आज के दिन सबसे पहले उसे ही दीपावली की शुभकामनाएं दें । जिंदगी बहुत छोटी है दोस्‍ती के लिये ही, तो फिर दुश्‍मनी जैसी चीजों पर इसे ज़ाया क्‍यों किया जाये । आज के दिन सब भूल जाएं और बस उस अंधेरे को जिसे दुश्‍मनी कहा जाता है, दोस्‍ती नाम के एक छोटे से दीपक से खत्‍म कर दें । ये मेरा अनुरोध है । आइये दीप जलाएं ।

प्रकाश के पर्व दीपावली की आप सब को शुभ कामनाएं

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deepavali_lamp दीप ख़ुशियों के जल उठे हर सू deepavali_lamp

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( गणेश, लक्ष्‍मी, सरस्‍वती का आज के दिन आवश्‍यक रूप से पूजा जाने वाला दीपावली पूजा का पाना यंत्र सहित )

आज दीपावली को हम मनाने जा रहे हैं अपनी वरिष्‍ठ जनों के साथ । वरिष्‍ठ इस मायने में भी कि वे साहित्‍य में अग्रज हैं और इस मायने में भी कि इस ब्‍लाग के साथ वे प्रारंभ से ही जुड़े हैं । ये पांचों किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं । तो आइये आइये दीपावली मनाएं श्री राकेश खंडेलवाल जी, श्री नीरज गोस्‍वामी जी, डॉ. सुधा ओम ढींगरा जी, श्री समीर लाल जी और श्री तिलक राज जी कपूर के साथ ।  आज के इस स्‍पेशल में गीत हैं, ग़ज़लें हैं और छंदमुक्‍त कविता भी है ।

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आदरणीय श्री राकेश खंड़लवाल जी

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मानता हूँ  कि अन्धेरा तो घना छाया था
वाटिका लील गईं फूल की उठी खुशबू
पर सवेरे में कहीं देर नहीं बाकी अब
’दीप खुशियों के जल उठे हर सू’’

तम की अंगड़ाई महज एक लम्हे की तो है
बूँद रुकती है कहाँ एक तवे पर जलते
जेठ की दोपहर में बर्फ के इक टुकडे को
देर कितनी है लगी नीर में झट से गलते
आस के दीप में साँसों का तेल भरना है
और धड़कन को बना बाती  जला कर रखना
नैन की क्यारियों में आप ही   उग  आयेगा
कल के रंगीन उजालों का मधुरतम सपना
देके आवाज़ तुझे कह रही हैं खुद रातें
अपनी क्षमताओं को फिर से संभाल  कर लख तू
ये घनी रात अब तो ढलने को तत्पर देखो
’दीप खुशियों के जल उठे हर सू’’

गीत के साथ गले मिल के चलीं हैं गज़लें
नज़्म के कुछ नये उनवान लगे हैं उठने
वो सियाही जो तिलिस्मों ने बिखेरी थीं कल
उनकी रंगत भी लगी आप ही देखो उड़ने
अपने विश्वास की झोली को संभालो फिर से
फिर से निष्ठाओं को माथे पे सजा कर रख लो
पीर के पल जो तुझे  देने लगे भ्रम दुःख का
उसको आधार बना कर, ज़रा खुल कर हंस लो
काली रातों के अंधेरों को मिटाने के लिए
हार क्या मान सका, रोज चमकता जुगनू
और अब सामने निखरे हुये तेरे पथ पर
’दीप खुशियों के जल उठे हर सू’’

पंक में रहके निखरते रहे पंकज हर पल
घिर के काँटों में गुलाबों ने बिखेरी खुशबू
चीर के काली घटा चन्दा बिखेरे आभा
स्वर्ण लोहे को करे खंड शिला का बस छू
तेरे अन्तस में बड़ी क्षमता उन सभी की सी
देख आईना जरा अपने को पहचान सखे
कल के सूरज की किरन द्वार खटखटाने से
पहले तेरे ही इशारों की रहे राह तके
आज पहचान ले तू खुद को अगर जो साथी
कल के सर बोलेगा चढ़ कर के तेरा ही जादू
उठ जरा और बढ़ावा दे जली हर लौ को
’दीप खुशियों के जल उठे हर सू’’

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वाह वाह वाह क्‍या गीत है । मानो चांदनी को केवड़े के इत्र में घोल कर चंदन की कलम से लिखा गया है । पूरा गीत सुगंध से भरा हुआ है, उजाले की सुगंध से । उजाले की सुगंध ? जी हां उजाले की सुगंध से । गीत के साथ गले मिले के चली हैं ग़जल़ें, क्‍या बात कह दी है ऐसा लगता है कि आज की तरही को ही परिभाषित कर दिया गया है । यूं तो नहीं कहा जाता है राकेश जी को गीतों का राजकुमार । बधाई बधाई बधाई । प्रणाम प्रणाम प्रणाम ।

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आदरणीय श्री नीरज गोस्‍वामी जी

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ढूंढते हो कहाँ उसे हर सू
बंद आंखें करो दिखे हर सू

दीप से दीप यूं जलाने के
चल पड़ें काश सिलसिले हर सू
एक रावण था सिर्फ त्रेता में
अब नज़र आ रहे मुझे हर सू
 
छत की कीमत वही बताएँगे जो
रह रहे आसमां तले हर सू
आप थे फूल टहनियों पे सजे
हम थे खुशबू बिखर गए हर सू

वार सोते में कर गया कोई
आँख खोली तो यार थे हर सू 
दिन ढले क़त्ल हो गया सूरज
सुर्ख ही सुर्ख देखिये हर सू

( मिश्री/निमकी/मधुरा के लिए ये शेर )
जब से आई है वो परी घर में 
दीप खुशियों के जल उठे हर सू
जब कभी छुप के मुस्कुराती है
फूटते हैं अनार से हर सू
है दिवाली वही असल “नीरज”
तीरगी दूर जो करे हर सू

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वाह वाह वाह । उफ कितनी धमकियां दे दे कर लिखवाई गई है ये ग़ज़ल । और उस पर भी ये कि बाकी के शेरों पर अत्‍याचार हो गया है क्‍योंकि मैं तो एक ही शेर के सौंदर्य में उलझ कर रहा गया हूं 'आप थे फूल टहनियों पे सजे, हम थे ख़ुश्‍बू बिखर गये हर सू' क्‍या शेर है उफ, उफ, उफ । घर में आई नन्‍ही परी निमकी के लिये लिखे दो शेर तो वात्‍सल्‍य के दीप हैं । आप थे फूल टहनियों पे सजे, गुनगुनाता जा रहा हूं और साथ ले भी जा रहा हूं इसे । बधाई, बधाई, बधाई । प्रणाम प्रणाम प्रणाम ।

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आदरणीया डॉ. सुधा ओम ढींगरा जी

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माटी के दीयों से भरी बाल्टी
हाथ में थमाते हुए ...
नन्हें -नन्हें दीपों में
सरसों का तेल डाल
रात भर रखने का निर्देश दे
माँ मिठाइयों को सजाने लगतीं ...

दूसरे दिन उनमें तेल से सनी
रूई की लम्बी बात्ती डाल
मुंडेरों, आलों* और रसोंतों* पर
हम बच्चे पंक्ति -पंक्ति में
उन्हें रख जलाने लगते....
पाजेब, चूड़ियाँ, घाघरा, नथ, टीका, सिर के फूल
पारंपरिक पंजाबी दुल्हन सी सजी -संवरी माँ के
कानों के झुमकों की चमक
रंग -रोगन से पुते घर की महक
रौनक और चहल- पहल
फुलझड़ियाँ और पटाकों के शोर में
दीप खुशियों के जल उठते हर सू ....

अब धागे की बात्ती
और मोम से भरे
तरह -तरह के रंगों से रंगे 
माटी के दीये ड्राईवे पर रख....
गहनों की खनक
साड़ियों की चमक
चेहरों की दमक
देसी -परदेसियों में
अपनों के चेहरे ढूँढती ...
माँ -मौसी, पापा -चाचा, भाई -बहन
कई नामों और रिश्तों में उन्हें बांधती... 
फुलझड़ियों और चकरियों की
रौशनी में महसूसती
दीप खुशियों के जल उठे हर सू .....

आलों*--आला -दीवाल में बना ताक
रसोंतों*-- रसोंत -छत पर सीमेंट से बना बेंच

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वाह वाह वाह । ऐन दीपावली के दिन स्‍मृतियों की गागर छलका दी है । हम सब की यादों में वे दीपावलियां हैं जब हम दीपों की क़तार सजाते थे । मां के आदेश पर दीप बालते थे । पहला बंद उस काल खंड में और दूसरा वर्तमान में और दोनों में ग़ज़ब का संतुलन क्‍या बात है । मुंडेरों, आलों और रसोतों पर, देशज शब्‍दों के प्रयोग से कविता का सौंदर्य कैसे बढ़ता है ये साफ दिख रहा है । बधाई बधाई बधाई । प्रणाम प्रणाम प्रणाम ।

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आदरणीय श्री समीर लाल जी

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तेरी मुस्कान से खिले हर सू
दीप खुशियों के जल उठे हर सू
आग नफ़रत की  दूर हो दिल से
है दुआ ये अमन रहे हर सू

बूंद से ही बना समंदर है
अब्र ये सोच कर उड़े हर सू
नाम तेरा लिया है जब भी तो
कोई खुश्बू बहे, बहे हर सू
था चला यूं 'समीर' तन्हा ही
लोग अपनों से पर मिले हर सू

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वाह वाह वाह । बहुत व्‍यस्‍तता के बाद भी किसी एयरपोर्ट पर प्‍लेन की प्रतीक्षा करते हुए ये ग़ज़ल कही गई है । पूरी ग़ज़ल सकारात्‍मक सोच से भरी है । नाम तेरा लिया है जब भी तो क्‍या बात है । और मतला तो ग़ज़ब का है एकाकीपन को क़ाफिले से दूर हो जाने की बात कितने सलीक़े से कही गई है । आग नफरत की दूर हो दिल से है दुआ ये अमन रहे हर सू, आइये समीर जी के स्‍वर में हम भी स्‍वर मिलाएं । बधाई बधाई बधाई । प्रणाम प्रणाम प्रणाम ।

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आदरणीय श्री तिलक राज जी

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कुम्कुम: रौशनी भरे हर सू
एक उम्मी‍द दे रहे हर सू
देखकर रंग दीप लहरी के
मन मयूरी बना फिरे हर सू
रौशनी है अलग चराग़ों की
आज मंज़र नये दिखे हर सू
आगमन आपका हुआ सुनकर
दीप खुशियों के जल उठे हर सू
भावना गंग की लिये जग में
रौशनी दीप की बसे हर सू
हार अंधियार मान बैठा है
दीप ही दीप यूँ सजे हर सू
राह रौशन हुई है 'राही' की
कुछ नये ख्वाब जी उठे हर सू

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वाह वाह वाह । तिलक जी की कुछ और भी ग़ज़लें हैं जो दीपावली के बाद की बासी दीपावली में आएंगीं । आज उनके द्वारा भेजी गई चार ग़ज़लों में से एक । सबसे पहले गिरह की बात । आगमन शब्‍द ऐसा लग रहा है मानो सजी हुई अल्‍पना के ठीक बीच में दीया रख दिया गया है । एक शब्‍द की शक्ति कैसी होती है ये देखिये ।और दीप लहरी पहले मिसरे में तथा मयूरी दूसरे में समान ध्‍वनि से उत्‍पन्‍न सौंदर्य का प्रयोग अनुभूत कीजिये । और बात मकते की, कुछ नये ख्‍वाब की क्‍या बात है । बधाई बधाई बधाई । प्रणाम प्रणाम प्रणाम ।

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तो आनंद लेते रहिये इन वरिष्‍ठ रचनाकारों द्वारा रची गई दीपमाला का । निहारते रहिये और दाद देते रहिये । आप सब के जीवन में सुख शांति और समृद्धि का प्रकाश हमेशा बना रहे । पूरे विश्‍व में शांति हो, अमन हो, चैन हो । धर्म प्रेम का द्योतक बने, युद्ध का नहीं । इन्‍सान प्रेम के महत्‍व को समझे । और क्‍या दुआएं मांगूं । बस प्रेम प्रेम प्रेम और प्रेम । प्रेम के दीपकों को हर ओर जगमग कर दे मेरे मालिक, मेरे ईश्‍वर, मेरे मौला, मेरे भगवान, मेरे अल्‍लाह, मेरे गॉड, मेरे रब । आमीन ।

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दीपावली की शुभकामनाएं ।

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24 टिप्‍पणियां:

  1. दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं.

    राकेश जी के गीत हमेशा ही अद्भुत होते हैं. यह खूबसूरत गीत हम सब के लिए दीपावली का उपहार है. बहुत ही प्यारा गीत. बहुत बहुत धन्यवाद.

    नीरज जी हैट वाली फोटो का मैं फैन हूँ. एक दम काऊ बॉय इस्टाइल! और गज़ल और भी खूबसूरत.बहुत प्यारा मतला..
    "दीप से दीप यूं जलने के/चल पड़ें काश सिलसिले हर सू.." वाह वाह! बहुत बढ़िया ख्याल.
    "छत की कीमत वही बताएँगे जो, रह रहे आसमाँ तले हर सू." लाजवाब!
    "दिन ढले क़त्ल हो गया सूरज.." कमाल!
    "आप थे फूल..हम थे खुशूबू.." और "वार सोते में कर गया कोई.." इन दो शेरों पर तो वारे जाऊं.
    और गिरह बहुत बहुत पसंद आई.
    बहुत बहुत बधाई नीरज जी.

    सुधा जी की कविता ने वाकई समृतियों की गागर छलका दी है. दीपावली का वर्णन करती हुई, बहुत खूबसूरत कविता है. सुधा जी को बहुत बहुत बधाई.

    समीर जी फेसबुक पर कई दिनों से गायब हैं. मुशायरे में उन्हें देख कर बहुत अच्छा लगा.
    बहुत बढ़िया मतला और गज़ल.."बूँद से ही बना समंदर है..","नाम तेरा लिया है जब भी तो.." वाह कमाल किया है समीर जी. बहुत बहुत बधाई.

    तिलक जी की गज़ल हमेशा हीरे जैसी तराशी हुई होती है. यह भी है. मतले मिने कुम्कुमः का प्रयोग चौंका गया. बहुत बढ़िया मतला है.गिरह भी खूब बाँधी है. आगमन शब्द सचमुच इस शेर का सौंदर्य और बढ़ा रहा है. सभी अशआर खूबसूरत हैं. "रौशनी है अलग चिरागों की..", "हर अंधियार मान बैठा है.." खास तौर पर पसंद आये. हार्दिक बधाई.

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  2. सब एक से बड एक नगीने है ....
    सब को दीपावली की मुबारक और शुभकामनाएँ!

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  3. राकेश जी का गीत;;;
    सतह पर श्‍वॉंस लेता हूँ फिर इक डुबकी लगाता हूँ नया मोती लिये हर बार मैं उपर को आता हूँ।
    अभी डुबकियॉं लगा रहा हूँ। हॉं, श्‍वॉंस लेने भर को उपर आना ही पड़ता है, इतना गहरा उतरने का पहला प्रयास है।

    पंकज भाई का आभारी हूँ जो नीरज भाई को डरा-धमका कर लिखवा ली ये ग़ज़ल, मेरा तो अनुरोध नहीं सुनते हैं जनाब। इस मुकम्‍मल ग़ज़ल पर क्‍या कहूँ-एक-एक शेर तराशा हुआ, उपमा-अलंकार; कुछ भी तो नहीं छोड़ा। हुजूर आपके मत्‍ले के शेर की भावना आज एक ग़ज़ल के रूप में। इस मत्‍ले के मुकाबिल तो कमज़ोर है लेकिन आईयेगा जरूर।

    सुधा जी ने जीवंत कर दिया पारंपरिक संदर्भों को और एक नये शब्‍द 'रसोंत' से भी परिचित कराया वहीं अप्रवासी भारतीय की दीवाली के अहसास जीवंत किये।

    समीर भाई तो मेरे हुरियारे भाई हैं पंकज भाई की मेहरबानी से। 24 घंटे गिटपिट-गिटपिट अंग्रेजी में घिरे इंसान को हिन्‍दी के लिये समय मिल जाता है यह क्‍या कम है। जल्‍दी में ही सही लेकिन बात पूर्णता से कही है और एक सच्‍ची दुआ के रूप में।

    राकेश जी, नीरज भाई, सुधा जी और समीर भाई के साथ-साथ पंकज भाई को बहुत-बहुत बधाई इस प्रस्‍तुति के लिये।
    सभी को दीपावली की हार्दिक बधाई।

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  4. आज के मुशायरे के कवि /गीतकार /शायर/ सब वरिष्ठ ज्योति -पुंजों को मेरा प्रणाम.
    श्री राकेश खंडेलवाल के गीत का मुखड़ा. वाह-वाह वाह -वाह , हमेशा स्मृति में बना रहने वाला है.
    यह सारा गीत ही उजालों का संगीत है.साथ ही साथ गीत की अंतिम पंक्तियाँ.......वाक़ई उजालों के इत्र में घुला हुआ गीत.


    और ये जो मेरे ही नहीं मेरे जैसे लाखों मुरीदों के ज़ेह्नो-दिल में ख़ुश्बू की तरह हरदम महकने वाले श्री नीरज गोस्वामी जी हैं इन्होंने तो
    बन के ख़ुश्बू बिखर गए हर सू , वाले शेर की ख़ुश्बू से ही मदहोश कर रखा है.अब इनकी ग़ज़ल के बाक़ी ख़ूबसूरत शेरों की बात क्या करूँ?

    दिन ढले क़त्ल हो गया सूरज
    का भी तो कोई जवाब नहीं है!

    और

    "दीप से दीप यूँ जलाने के
    चल पड़ें काश सिलसिले हर सू "

    वाले शे’र में

    " यूँ "

    भी तो लाजवाब है
    और ग़ज़ल का मतला !!वाह !वाह!

    और इस "यूँ " के
    सबसे मह्त्वपूर्ण सूत्रधार है : भाई पंकज सुबीर जी.... बधाई बधाई !बधाई!


    आदरणीय सुधा जी ! समस्त स्मृतियाँ उचकाने वाली , देशज शब्दों के धागों से सौंदर्य का जादू बुनती और बिखेरती , आपकी यह सुन्दर कविता
    अश्रुकलश छलका जाने की भाव प्रवणता से भी तो सम्पन्न है. धन्यवाद.

    आदरणीय समीर लाल जी की ग़ज़ल का रंग भी अनूठा है . आदरणीय तिलक राज कपूर जी की और ग़ज़लों की भी प्रतीक्षा रहेगी . अभी तो बस: उनका यह शे’र: वाह वाह क्या बात है!

    देखकर रंग दीप लहरी के
    मन मयूरी बना फिरे हर सू

    जवाब देंहटाएं
  5. दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ
    ==============================

    इस मंच के वरिष्ठों ने अपनी रचनाओं और ग़ज़लों से मन को शांति, हृदय को संतोष तथा सुखन को अंदाज़ दिया है.
    सादर बधाइयाँ.

    आद. राकेशजी को पढ़ते हुए शब्दों का प्रवाह देखते ही बनता है. गीत के मुखड़े से जो लगा तो मुग्ध हुआ बहता गया.
    .. पर सवेरे में कहीं देर नहीं बाकी अब..
    अद्भुत !!
    प्रत्येक अंतरा भाव और कहन की सान्द्र बूँद सदृश है. क्या ही जिजीविषा है -
    काली रातों के अंधेरों को मिटाने के लिये
    हार क्या मान सका, रोज चमकता जुगनू..
    आपकी लेखिनी के उत्साह को सादर नमन राकेशजी.


    आद. नीरज गोस्वामी की ग़ज़ल का एक-एक शे’र देर तक कानों में घुलता रहा. और हम देर तक गुमते रहे. किस शे’र को सराहूँ.. किस शे’र पर वाह करूँ !!
    मतले की कहन आध्यात्मिक ऊँचाई की बानग़ी है. या फिर, आज हर सू दीखते रावण पर उजबुजाती झल्लाहट दिखाता शे’र.
    छत की कीमत वही बताएँगे जो
    रह रहे आसमां तले हर सू
    बहुत सही.. बहुत सही.. क्या महीन कहा आपने आदरणीय ! बहुत खूब !!
    आप थे फूल टहनियों पे सजे
    हम थे खुशबू बिखर गए हर सू
    इस शे’र को विशेष दाद कहा है मैंने नीरजजी. स्वीकार करियेगा.
    वार सोते में कर गया कोई.. वाह !
    लेकिन, इस ग़ज़ल के जिस शे’र ने मुझे आपकी सोच के विस्तार से परिचित कराया है, वो ’दिन ढले कत्ल हो गया सूरज..’ है. कितनी गहरी परख है आज के घटनावार की.
    आपकी कहन और वैचारिक समृद्धि को मेरा सादर अभिनन्दन.

    आदरणीया सुधाजी की रचना स्मृतियों का गागर लिये आयी है. शब्द और भाव जब आपस में गुँथ जाएं तो कैसी मनोहारी रचना उमगती है इसकी बानग़ी है आपकी प्रस्तुत रचना.
    सादर बधाई.. .

    आदरणीय समीरजी को पहली दफ़े सुन रहा हूँ और आपकी सकारात्मक वैचारिकता से प्रभावित हुआ हूँ. हर्दिक अभिनन्दन.

    आदरणीय तिलकराजजी से सम्पर्क रहा है और आपको सुनता रहा हूँ. प्रस्तुत ग़ज़ल के मतले से बहुत ही प्रभावित हुआ हूँ.
    आगमन आपका हुआ सुनकर.. में आपने मुलामियत से छुआ है.
    कुछ नए ख्वाब के जी उठने की बात कर आपने अपनी सकारात्मकता से परिचित कराया है.

    --सौरभ पाण्डेय, नैनी, इलाहाबाद (उप्र)

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  6. राकेश जी के गीतों का तो मैं प्रशंसक हूँ। इनके एक गीत में इतनी नई उपमाएँ और नए बिंब मिल जाते हैं जितने किसी दूसरे के पूरे कविता संग्रह में न हों। बहुत बहुत बधाई उन्हें इस गीत के लिए।

    नीरज जी की ग़ज़ल के बारे में क्या कहूँ। आप थे फूल...वाले शेर ने दिल लूट लिया। बहुत बहुत बधाई उन्हें इस शानदार ग़ज़ल के लिए।

    सुधा ओम ढींगरा जी की कविता तो लाजवाब है। बहुत बहुत बधाई उन्हें।

    समीर लाल जी की ग़ज़ल के बारे में क्या लिखूँ, बस नमन ही कर सकता हूँ।

    तिलक राज जी की ग़ज़ल की तारीफ करना तो सूरज को दिया दिखाना है। बहुत बहुत बधाई उन्हें इस ग़ज़ल के लिए।

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  7. हट्टे कट्टे डब्ल्यू.डबल्यू.एफ टाइप के कद्दावर पहलवानों के बीच एक मरियल से बौने को अखाड़े में उतार दिया जाय तो उस पर क्या बीतेगी...??? वो ही मुझ पर बीत रही है...सच बात तो ये है के मुझे इस अखाड़े में कनपटी पर पिस्तौल रख कर उतारा गया है...गुरुदेव रा-वन या समझें डान का रूप धर मुझे ऐसे धमकाए के अपनी तो घिघ्घी बंध गयी...बंधी हुई घिघ्घी से जो ग़ज़ल मुशायरा शुरू होने के एक दिन पहले मुकम्मल हुई उसे भेज चैन की सांस ली. अब उस ग़ज़ल की आप लोग तारीफ़ कर रहे हैं...बहुत नाइंसाफी है भाई.

    आदरणीय राकेश जी का मैं बहुत बड़ा फैन हूँ...उन जैसा शब्द और भाव का अद्भुत संगम मुझे कहीं दूर दूर तक किसी की रचना में भी दिखाई नहीं देता...प्रशंशा के सभी शब्द उनकी रचनाओं के समक्ष बौने नज़र आते हैं. माँ सरस्वती के लाडले इस पुत्र की रचनाएँ पढना एक ऐसे से अनुभव से गुजरने जैसा है जिस से बार बार गुजरने को दिल करता है. कौनसा शब्द कौनसी पंक्ति छाँट कर अलग से बताऊँ...??? हतप्रभ हूँ...उनके साथ अपनी रचना प्रकाशन होते देखना मेरे जीवन की बहुत बड़ी उपलब्धि है...गुरुदेव पंकज जी का इस कृपा के लिए बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत.... आभारी हूँ.

    सुधा जी की रचना ने मुझे बरसों पीछे पहुंचा दिया...मन आलों रसोतों और मुंडेरों को फिर से ढूँढने निकल पड़ा...अद्भुत रचना...यूँ भी सुधा जी विदेश में रह कर देश की मिटटी की खुशबू वहां फैलाती रहती हैं...उनके कारण बहुत से प्रवासी परिवार अपने वतन से खुद को बहुत करीब पाते हैं...उनकी कवितायेँ हमेश प्रेरक सोम्य और प्यार में डूबी होती हैं...आज उन्हें पढ़ कर बहुत अच्छा लगा.

    समीर भाई की बात करना पुराने मुहावरे को दोहराऊं तो 'सूरज को दिया दिखाना है' . हम उनकी रचनाओं को जब से ब्लॉग जगत में आये हैं तब से पढ़ते आये हैं...उनका गध्य और पध्य लेखन में कोई सानी नहीं. उनकी ये छोटी सी लेकिन बेहद खूबसूरत ग़ज़ल की जितनी प्रशंशा की जाय कम होगी.

    तिलक जी अल्लादीन के जिन्न की मानिंद हैं जो हर काम सहज और चुटकी बजाते कर डालते हैं. सृजन का अकूत भण्डार उनकी उर्वर खोपड़ी में समाया हुआ है , आप उन्हें कोई विषय दें वो पलक झपटते ही उस पर सैंकड़ों शेर कह कर भेज देंगे...शब्दों के जादूगर हैं वो...देखिये ना किस ख़ूबसूरती से आगमन शब्द को उन्होंने अपने शेर में पिरोया है...सच उन जैसा भाई पा कर मैं तो अपने आपको धन्य मानता हूँ.

    अंत में बिना आपको धन्यवाद दिए बात पूरी नहीं होगी. जिस ख़ूबसूरती से आपने इस पूरे मुशायरे को अंजाम तक पहुँचाया है उसकी मिसाल आने वाली नस्लें सदियों तक देंगी. एक कमी रह गयी...बस...अगर उस्ताद शायर /कवी भभ्भड़ जी भी अपनी रचना के साथ इस मुशायरे अवतरित हो जाते तो भाई इस आयोजन को पांच चाँद लग जाते...चार तो राकेश जी के आने से लग ही चुके हैं. मेरी फ़रियाद उन तक जरूर पहुंचा दें.

    मेरी और आप सब को दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएं .

    नीरज

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  8. भभ्‍भड़ कवि मालवा क्षेत्र की परंपरा निभाने के लिये बासी दीवाली मनाने आएंगे । और उनके साथ द्विज जी का गीत
    , तिलक जी की तीन अन्‍य ग़ज़लें तथा कुछ और रचनाकार होंगे जिनकी रचनाएं बिलंब से मिलीं । आप सब को दीपावली की मंगल कामनाएं । आप सब के जीवन में सुख शांति और समृद्धि का वास हो । उजास का उल्‍लास और पूर्णता का प्रकाश हो । शुभकानाएं, शुभकामनाएं, शुभकामनाएं । मिलते हैं बासी दीपावली में ।

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  9. दीपावली की मंगल कामनाएं ...
    आज तो वरिष्ट कवियों और गज़लकारों का जमावड़ा है ... कुछ भी कहना सूरज को दिया दिखने वाली बात होगी ... आदरणीय राकेश जी ने तो उजाला कर दिया है अपने शब्दों से ...
    नीरज जी के शेरों ने तो बाँध के रख लिया है ...एक रावण था सिर्फ त्रेता में ... वार सोते में कर गया कोई ... दिन ढाले क़त्ल हो गया सूरज ... अब किसी किस को कोट करू ... हर शेर में छा गए हैं नीरज जी ...
    आदरणीय डाक्टर सुधा जी की रचना तो बीते समय में ले गई ... समय के अंतर को खूबसूरती से संजोया है रचने मैं ...
    समीर लाल जी की गज़ल की तो बात ही कुक और है ... मतला तो जैसे भाभी को देख के ही लिखा है ... और नाम तेरा लिया है जब भी तो ... गज़ब की खुशबू बहा रहा है ..
    आदरणीय तिलक राज जी ने सच में जबरदस्त शेर कहे हैं ... देख कर रंक दीप लहरी के ... रौशनी है अलग चरागों की ... आगमन आपका हुवा सुनकर ... सच में दिवाली के आगमन की सूचना दे रहे हैं ...

    कमाल का मुशायरा है आज ... हर रंग में डूबा हुवा ...

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  10. जगमग जगमग पोस्ट है
    हलचल करते घोस्ट
    टिमटिम करते कमेंट हैं
    ज्यों चाय संग टोस्ट।
    ...सभी को बहुत बधाई।

    और यह कि....

    माटी के तन में
    सासों की बाती
    नेह का साथ ही
    अपनी हो थाती

    दरिद्दर विचारों का पहले भगायें
    आओ चलो हम दिवाली मनायें।
    ...दिवाली की ढेर सारी शुभकामनाएं।

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  11. आ.सुबीर जी,
    आपने इस मुशायरे में यादगार रचनाओं के वो दिए जलाये हैं जिससे हमारी दिवाली कुछ और जगमग हो गई है.
    विद्वानों की राय अलग हो सकती है लेकिन मुझे हमेशा लगता रहा है कि गीत लिखना सबसे मुश्किल काम है.शायद इसीलिए गीत लिखने वाले भी अपेक्षाकृत कम हैं.बहरहाल राकेश जी के गीत के लिए तो मैं एक शब्द ही कहूँगा-मेस्मेराईजिंग.इस गीत की तो मुशायरे से इतर भी ऐसी प्रासंगिकता है कि इसे स्कूल कालेजों के सिलेबस का हिस्सा होना चाहिए.

    और नीरज जी की ग़ज़ल.....कहते हैं कि शायरी का दूसरा नाम नफासत है.नीरज जी की
    ग़ज़ल उसी नफासत का नायाब नमूना है.जरा मतले की रवानी तो देखिये.ऐसा सहज
    संगीत जैसे नदी की दो लहरें हों.बहुप्रशंसित शेर "आप थे फूल...."को जितने कोणों से देखें
    उतने अर्थ नज़र आयेंगे. नीरज जी के हीं शब्दों का प्रयोग करते हुए कहूँगा कि यह 'कालजयी' शेर है.मैं बेहिचक कहना चाहूँगा कि मेरी सूची में यह मुशायरे की सर्वश्रेष्ठ ग़ज़ल है.
    सुधा ढींगरा जी की कविता भी दीपावली के उज्जवल अहसासों से रौशन है.
    समीर लाल जी और तिलक कपूर जी की ग़ज़ल पढ़ कर भी बहुत आनंद आया.
    बासी दिवाली का इंतजार रहेगा.
    अंत में सभी को ज्योतिपर्व की असीम बधाईयों के साथ कुछ मंगल कामनाएं:
    सक्षमता का शुभ दीपक हो
    ममता का आलोक हो
    हो ऐसा ही दीप पर्व यह
    समता का दिव्यलोक हो.

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  12. समस्त कुटुम्बियों को प्रकाश पर्व दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें

    अग्रजों की रचनाओं को पढ़वा कर दिवाली पर्व का आनद कई गुना बढ़ा दिया आपने सुबीर जी| साथियों ने दिल खोल कर जो टिप्पणी दान का शुभारम्भ किया है, बहुत अच्छा लग रहा है| रचनाधर्मियों को भी अपनी रचनाओं से अब और अधिक स्नेह होना लगेगा, वो अब और अधिक अच्छा लिखने के लिए अवश्य ही प्रेरित होंगे|

    आ. राकेश खंडेलवाल जी की रचनाओं में शब्द ऐसे गति पकड़ते हैं जैसे कि हायवे पाते ही गाड़ियाँ दौड़ने लगती हैं| कोइ भी शब्द ठूँसा हुआ मालुम नहीं पड़ता| बात को घुमा फिरा कर कहने की बजाय राकेश जी सुनील गावस्कर के स्ट्रेट ड्राइव की तरह प्लेस करते हैं| आ. राकेश जी को इस सुन्दर और सुरुचिपूर्ण गीत के लिए बहुत बहुत बधाई|

    नीरज भाई जैसे खिलंदड स्वभाव के अग्रज से ऐसी ही ग़ज़ल की उम्मीद थी| इनकी ग़ज़लें तो ग़ज़लें, टिप्पणियाँ भी पढ़ने में बहुत मज़ा आता है| यक़ीन न आये तो इनकी टिप्पणियों को एकत्र कर के देख लो| जीवन को जीने का मस्त मौला स्वभाव इनसे सीखना पडेगा - आ रहा हूँ जल्द ही भूषण स्टील में| पंकज भाई तो बिजी हैं, हम तुम ही मिलेंगे जल्द ही| हर सू को मतले से जो पकड़ा है, सो हर शेर में उस की गिरह एकदम चुस्त बिठाई है आपने| सिलसिले लफ्ज़ को बेहतर मिसरे प्रदान किये हैं आपने| यह ग़ज़ल जहाँ आसमान वाले शेर के ज़रिये आम आदमी का प्रतिनिधित्व कर रही है वहीं खुश्बू वाले शेर के ज़रिये आपने अनुजों के सामने फिर से एक मिसाल रख दी है, कि बच्चो ऐसे कहा करो ग़ज़लें| प्रणाम नीरज भाई प्रणाम| अभी आपसे बुत कुछ सीखना है| बहुत बहुत बधाई इस बेहद ही असरदार ग़ज़ल के लिए| और हाँ वो वात्सल्य रस वाले शेरों के लिए तो आप की ही स्टाइल में उफ़ युम्मा|

    आलों - रसोंतों जैसे शब्दों का टच दे कर रचना में चार चाँद लगा दिए हैं आ. शार्दूला जी ने| भूतकाल और वर्तमान के बीच जो तारतम्य बिठाया गया है इस रचना में और वो भी सकारात्मक मनोभावों के साथ, अद्वितीय है| इस उत्कृष्ट रचना के लिए बहुत बहुत बधाई शार्दूला जी|

    ब्लॉग के जाने पहिचाने व्यक्तित्व समीर भाई की बात ही निराली है| अब वो चाहे गद्य हो या पद्य, आप हर बार अपनी छाप छोड़ने में क़ामयाब रहते हैं| व्यस्त जीवन में रहते हुए भी ऐसा साहित्यिक जुड़ाव विरले लोगों में ही देखने को मिलता है| ब्लॉग जगत में ख़ास कर नए लोगों की हौसला अफ़जाई करने वालों में आप का नाम अग्रपंक्ति में आता है| सिर्फ पांच शेरों के माध्यम से ही अपनी बात को सशक्त तरीक़े से सबके सामने रख दी है समीर भाई ने| बहुत बहुत बधाई|

    आ. तिलक भाई साब - हाँ वही तिलक भाई - फिर से बूढ़ी बातियों में तेल डाला - आप मिसरे ऐसे चुन चुन कर बुनते हैं - जैसे इस से अच्छा हो ही नहीं सकता था| और हाँ, अब तो मुझे भी इन का बड़ी साइज़ वाला फोटो मिल गया [यहीं से भाई]| विवेचित ग़ज़ल का मतला, ओह क्या कमाल का मतला है| जबरदस्त, सटीक और सार्थक मतला| इस मिसरे पर आ रही ग़ज़लों के मतलों का यदि चुनाव किया जाए तो यह श्रेष्ठ मतलों में शुमार होता है| हार अँधियार मान बैठा है - वाह वाह वाह, क्या कहने इस शेर के| इस मस्त मस्त ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाइयाँ|

    भभ्भड़ जी गर्मियों की दुपहरी के बाद फिर से आ रहे हैं, जान कर आनंद हुआ| प्रतीक्षा रहेगी|

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  13. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपको और आपके पूरे परिवार को
    दीपावली की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

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  14. आज दीपावली है भारत की यादों में मन लीन है और हाथ माँ लक्ष्मी के पूजन में -
    और अब नयन रससिध्ध कवि श्री राकेश जी , तिलक भाई साहब , समीर भाई , नीरज भाई
    व् सुधा जी की इत्ती सुंदर सामयिक और भारतीय संस्कारों से ओत प्रोत रचनाओं को पढकर
    दीपावली के दिन उपहार पाकर मग्न है ..आप सब को ईश्वर इसी तरह सृजनशील बनाए रखें
    यह ईश्वर से मांगती हूँ ...और अब ,
    आपकी रचना की प्रतीक्षा रहेगी अनुज जी :)
    आज इतना ही , आप सब के संग अब मिठाई :)
    ..दीपावली सुभ हो जी
    सादर स स्नेह
    - लावण्या

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  15. गीत अभिव्यक्ति के लिए विशेष मायने रखते हैं जिसे समझने के लिए स्वर्गीय पं नरेन्द्र शर्मा के शब्द उचित होंगे, "गद्य जब असमर्थ हो जाता है तो कविता जन्म लेती है। कविता जब असमर्थ हो जाती है तो गीत जन्म लेता है।"

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  16. KHUBSOORAT CHITRAN DEEPAWALI KA. DHERO RANG SAMETE.

    SABHI VARISHTH JANO KO PRANAAM!

    AAP SABHI KO DEEPPARV KEE SHUBHKAMNAYEN!

    - Sulabh (Aaj Allahabad se)

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  17. गोवर्धन पूजा की शुभकामनाएं!
    ----
    गुरुजी का गीत मेरे लिए आपकी तरही के शीश का मुकुट है...गीत के छन्दों के बीच जैसे दो-दो मिसरों के जैसे मोती जड़े हों ... गीत में ग़ज़ल अनुस्यूत! और मज़े की बात ये कि उन्होंने आनायास ही लिख दिया होगा १०-१५ मिनट में ये सब!
    देके आवाज़ तुझे कह रहीं है ख़ुद रातें, अपनी क्षमताओं को फ़िर से संभाल कर लख तू.. वाह !
    ये घनी रात अब तो ढलने को तत्पर देखो...दीप खुशियों... बहुत सुन्दर!
    गीत के साथ गले मिल के .... वाह!
    वो स्याही,...
    आपने विश्वास की झोली... कितना सुन्दर!
    पीर के पल... खूबसूरत!
    तेरे अंतस में बड़ी ..
    आज पहचान ले ...अहा!
    अब बस! वरना पूरा गीत कोट करना पड़ेगा!
    परमानंद! प्रणाम! प्रणाम!
    ========
    आदरनीय नीरज जी का कमाल आपकी हर तरही में देखती हूँ:
    छत की कीमत वही बताएँगे ...वाह! बेहद खूबसूरत!
    आप थे फूल... कितना सुन्दर!
    दिन ढले क़त्ल हो गया सूरज ... बहुत ही सशक्त चित्रण है!
    प्रणाम !
    =======
    सुधा दी की कविता एक कहानी सी है ... आज में बीते कल को ढूंढती हैं आँखें ... बाहुल्य में प्रेम ढूंढती हैं...आपने जड़ों की ओर दौडती, मन को छूने वाली बात!
    प्रणाम स्वीकारें दी!
    =====
    समीर जी का कोई खुश्बू बहे, बहे हर सू... कितना सुन्दर है बहे, बहे का संयोजन!
    "लोग अपनों से ... " भी बहुत सुन्दर!
    ====
    तिलक जी का " देखकर रंग दीप लहरी के; मन मयूरी बना फिरे हर सू" ..बहुत ही सुन्दर, ग्राफिक और मूवमेंट लिए शेर है..अतिसुन्दर!
    आगमन... शब्द का प्रयोग! क्या बात है!
    सुन्दर!
    ===
    अब श्री भ.भ.भ की प्रस्तुति का इंतज़ार है...
    सादर शुभकामनाएं..

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  18. इस मंच पर इतनी सहजता से पढ़ने को मिलती उत्कृष्ट गज़लों और रचनाओं के साथ अपने नाम को देख कर संकोच हो रहा है. तिलकजी और नीरज जी की कलम का तो मैं प्रारम्भ से ही प्रशंसक रहा हूँ.रवि,,अंकित, वीनस, राजीव, क

    सादर

    राकेश

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  19. आपके शब्द ये स्नेह परिपूर्ण हैं
    प्रेरणायें बनी साथ मेरे रहे
    शब्द जितने भी हैं, सब रहे आपके
    कंठ के स्वर में मेरे महज कुछ बहे
    मैं नहीं गीत का व्याकरण जानता
    और संगीत से भी अपरिचित रहा
    कोई भी गीत मैने रचा है कभी
    आईना देख कर भ्रम समूचा ढहा

    शब्द मैं तो नहीं एक भी चुन सका
    शारदी वीन के तार पर से फ़िसल
    आ गये कुछ स्वयं उंगलियाँ थामने
    बन गया गीत कोई बना है गज़ल
    मेरी क्षमता नहीं कुछ सिरज मैं सकूँ
    सर्जना तो करे वीन झंकार ही
    श्रेय भूले से जो भी मुझे दे रहा
    ये महज एक उसक अहै उपकार ही>

    सादर

    राकेश

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  20. आदरणीय भाई राकेश जी,
    यह अनजाने तो हो नहीं सकता कि आपकी प्रतिक्रिया पूरी तरह 'फ़ायलुनृ, फ़ायलुनृ, फ़ायलुनृ, फ़ायलुन्' है।
    आपने तो कहा सबका उपकार है
    आपके स्‍नेह का बस ये आभार है।

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  21. ये कहाँ दिग्गजों के बीच खड़ा कर दिया मास्साब!! कहाँ जाऊँ??

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  22. ये नायाब हीरे तो देखने से रह ही गयी थी। खूबसूरत लाजवाब। बाकी तो सब ने कह ही दिया। आजकल समय बहुत कम दे रही हूँ इस लिये छोटा सा कमेन्ट ही स्वीकार करें। धन्यवाद।

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  23. इस शानदार पोस्ट को सिहोर में पढ़ा था, मगर कोई टिप्पणी नहीं कर पाया था.

    राकेश जी, के गीतों में शब्दों का संयोजन बहुत प्रभावी और आनंदमई रहता है. ये गीत भी बहुत अच्छा है. बधाई स्वीकारें.
    नीरज जी के इस शेर ने बहुत मजबूती से मुझे आगे बढ़ने और पढने से रोक दिया है. "आप थे फूल टहनियों पे सजे...........", वाह वा.
    सुधा जी के गीत ने मिसरी सी यादों में लौटने पर मजबूर कर दिया है. बहुत बहुत बधाई.
    समीर जी की तुरत-फुरत बनी ग़ज़ल अच्छी बनी है. बधाई स्वीकार करें.
    तिलक जी की ग़ज़लें हमेशा कुछ न कुछ सुन्दर लफ़्ज़ों को अपने में पिरो के लाजवाब कर देती है. बहुत बहुत बधाई.

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