शनिवार, 4 जून 2011

छोडकर वो छत पे मिलना बाग में मिलने लगे हैं प्रेम के स्थल बदलती गर्मियों की ये दुपहर. आइये आज तरही मुशायरे में सुनते हैं राणा प्रताप सिंह की एक खूबसूरत ग़ज़ल.

तरही का सिलसिला धीरे धीरे चल रहा है. हालांकि अभी तक तो समापन हो जाना था लेकिन फिर भी कुछ और लम्‍बा होने की संभावना है.  इसी बीच कल दांतों की रूट कैनाल करवा ली गई है तथा अभी तो ऐसा लग रहा है कि ठीक प्रकार से हो गई है. आगे की आगे. इसी बीच दो दिन से मौसम खुशनुमा हो गया है, दो दिन पहले रात को जमकर बरसात हुई है और उसके कारण सुब्‍हें और रातें कुछ ठंडी हो गईं हैं. हालांकि अभी भी दिन में जबरदस्‍त उमस है. दोपहर अभी भी वैसी की वैसी बनी हुई है. बरसात की प्रतीक्षा करती धरती को इस हल्‍की सी बरसात से कुछ राहत तो मिली है किंतु अभी भी बहुत प्‍यास बाकी है. खैर आइये आज सुनते हैं राणा प्रताप सिंह से एक सुंदर सी तरही ग़ज़ल.

ग्रीष्‍म तरही मुशायरा

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और सन्‍नाटे में डूबी गर्मियों की ये दुपहरी

 

आज की तरही में हम राणा प्रताप सिंह की एक ग़ज़ल सुनने जा रहे हैं, ये भी ताज़ा ताज़ा शायर हैं इसलिये विचारों में कुछ नयापन कुछ ताज़गी दिखाई देती है. नये शायरों के मिसरों में जो नये प्रकार के टुकड़े आते हैं वो एक अलग प्रकार का आनंद देते हैं.

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राणा प्रताप सिंह

अब आ गया है सबसे कठिन काम , चलिए ट्राई करते हैं , नाम: राणा प्रताप सिंह, जन्मस्थान: सुलतानपुर, जन्म तिथि: 4 अप्रैल 1984

rana prtap main aur meri patnee2 सारा बचपन इलाहाबाद में बीता, घर में साहित्य का माहौल तो था, शेरो शायरी भी हो जाया करती थी पर रदीफ काफिया और बह्र का कुछ पता नहीं था, नीरज और बच्चन के गीत घर में लोरियों की जगह सुनाये जाते थे पर घर में किसी ने भी लिखने के बारे में कभी सोचा भी नहीं था|

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मां और बेटे के साथ, पत्‍नी और बिटिया

प्रयाग विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान एक दो कवितायें लिखी थी और उनका आकाशवाणी से प्रसारण भी हुआ था, थियेटर में भी कुछ दिन काम किया था पर भारतीय वायु सेना में आने के बाद ये सब एकदम से ठप्प हो गया था की एक दिन इन्टरनेट पर कविता कोष के बारे में पता चला तो वहाँ भ्रमण करने लगा और वही पर लिखा था कि "फेस बुक पर कविता कोष के फैन बनिए" बस उसी दिन से फेस बुक पर आ गए और वहाँ मई 2010 को दो लाइन लिख कर लगाईं तो श्री योगराज प्रभाकर जी से पता चला कि काफिया और रदीफ क्या होता है| फिर तो हमने खोजबीन शुरू कर दी और गज़ल लेखन की बीमारी लग गई| गुरु जी आपके ब्लॉग तक कैसे पहुंचा इसका भी एक किस्सा है ....एक दिन फेस बुक पर ही कही  "मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन" लिखा देखा, तो इसका मतलब जानने के लिए गूगल में सर्च किया तो आपके दर्शन हो गए| बस फिर क्या था उस रात को ही पुरानी सारी पोस्ट पढ़ गया और "फलक पे झूम रही सांवली घटाएं है" तरही के लिए गज़ल भी भेज दी| मेरी रचना प्रक्रिया कुछ ऐसी है हमेशा कोई पंक्ति, मिसरा दिमाग में चलता ही रहता है भले वो मुकम्मल ना हो पाए या महीनों बाद मुकम्मल हो, ये काम तब भी जारी रहता है जब में गाडी चला रहा हूँ या मार्केट में हूँ या किसी से बात ही कर रहा हूँ| बस इसी तरह से कुछ बन जाता है| 

तरही ग़ज़ल

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थोड़ी खट्टी थोड़ी मीठी गर्मियों की ये दुपहरी

आम की चटनी सरीखी गर्मियों की ये दुपहरी

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पुरसुकूं है गर मिले तो छाँव का बस एक टुकड़ा

पी गई है छाँव सारी गर्मियों की ये दुपहरी

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खुद में खुद को खोजती है भोर सहमी, शाम तिश्ना

और सन्नाटे में डूबी गर्मियों की ये दुपहरी

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छोडकर वो छत पे मिलना बाग में मिलने लगे हैं

प्रेम के स्थल बदलती गर्मियों की ये दुपहरी

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बेवजह ही मुस्कुराना, बुदबुदाना, झुंझलाना

बिन तेरे पागल बनाती गर्मियों की ये दुपहरी

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गर न हो बिजली तो एसी बंद कूलर बंद पंखे

इन सभी को मुंह चिढाती गर्मियों की ये दुपहरी

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ट्रेन की खिडकी से देखा है फकत दुनिया को जिसने

उसको क्या मालूम कैसी गर्मियों की ये दुपहरी

पुरसुकूं है गर मिले तो छांव का बस एक टुकड़ा, पी गई है छांव सारी गर्मियों की ये दुपहरी, इसके मिसरा सानी में रदीफ का जो राबिता क़ाफिया के साथ उत्‍पन्‍न हो रहा है वो कमाल का है. इस बार ऐसा हो रहा है कि कई कई शेरों में रदीफ का राबिता नहीं आ रहा है. ये होता है जब भी रदीफ लम्‍बा होता है तो रदीफ काफिया के सामंजस्‍य में परेशानी आती है. लेकिन इस शेर ने ग़ज़ब का सामंजस्‍य पैदा किया है. और हां मतले में जो पुदीने और कच्‍ची कैरी की चटनी का प्रतीक आया है वो भी सुंदर है,  गिरह का शेर भी बहुत ही सुंदर बन पड़ा है.

तो सुनते रहिये ये सुंदर ग़ज़ल और इंतजार कीजिये अगली तरही में एक और शायर का.

17 टिप्‍पणियां:

  1. क्या शानदार ग़ज़ल कही है राणा भाई, बहुत बहुत बधाई।
    थोड़ी खट्टी, थोड़ी मीठी...भाई मजा आ गया।
    पी गई है छाँव सारी......बहुत सुंदर।
    गर न हो बिजली....भाई हम भी गुजर चुके हैं इस अनुभव से। अब तो खैर हम ही बनाते हैं तो कोई कमी नहीं है बिजली की।
    ट्रेन की खिड़की....इस शे’र ने तो गजब कर दिया है। क्या घुमा के दिया है उनको जो दूर दूर से देख कर समझते हैं कि उन्होंने गर्मियों की दुपहरी देख ली।
    बहुत सुंदर ग़ज़ल राणा भाई, हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए।

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  2. वाह वाह राणा जी, क्या ग़ज़ल कही है..
    "पी गई है छाँव सारी गर्मियों की ये दुपहरी.." क्या जबरदस्त मिसरा है.
    गिरह वाला शेर भी खूब बन पड़ा है.
    "छोड़ कर वो छत पे मिलना..", "गर न हो बिजली तो ए सी बंद..", बहुत ही खूबसूरत.
    आखिरी शेर तो बहुत ही बढ़िया है. ढेरों दाद कबूल करें....

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  3. ट्रेन की खिड़की से देखा है फ़कत दुनिया को जिसने,
    उसको क्या मालूम कैसी गर्मियों की ये दुपहरी।
    उम्दा गज़ल, बेहतरीन मक्ता।

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  4. राणा जी की ग़ज़ल तेज गर्मी आये बारिश के झोंके जैसी है..."पी गयी हैं छाँव सारी..." तो हासिले ग़ज़ल शेर है...आज के युवाओं की सोच को नमन है...इतने कमाल के मिसरे बनाते हैं के भाई हम जैसे तो मुंह खोले अवाक रह जाते हैं...वाह राणा जी वाह...तरही को नयी ऊँचाई बख्शी है आपने अपने अशआरों से...हर शेर निहायत कारीगरी से गढ़ा गया है इसलिए किसी एक शेर को अलग से कोट करना मुश्किल काम है...इस बार की तरही गुरूजी के अद्भुत फोटोग्राफ्स लगाने की वजह से हमेशा याद रखी जाएगी...

    नीरज

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  5. गुरु जी प्रणाम,

    इलाहाबाद अब भी ताप रहा है, बरखा रानी का इंतज़ार है, राणा जी की ग़ज़ल का हर शेर लाजवाब है, बहुत मज़ा आया पढ़ कर

    पी गई है छाँव सारी गर्मियों की ये दुपहरी... अहा क्या लाजवाब मिसरा है... आनंदम आनंदम

    और गिरह तो क्या जोरदार बांधी है कि बस मज़ा आ गया ...
    खुद में खुद को खोजती है भोर सहमी, शाम तिश्ना
    और सन्नाटे में डूबी गर्मियों की ये दुपहरी

    हर शेर उम्दा,, राणा भाई जिंदाबाद

    तरही जिंदाबाद

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  6. तरही मुशायरे को पहले दिन से सुन रही हूँ पर एक भी टिप्पणी नहीं लिख पाई बाएँ हाथ पर चोट लग गई थी | दो -तीन दिन पहले ही हाथ टाईप करने के काबिल हुआ है | कुछेक ईमेल मेरी एसोसिऐट बिंदु सिंह ने भेजीं और दाएँ हाथ से थोड़ा बहुत काम किया | पर दिक्कत होती थी | ख़ैर अब मैं ठीक हूँ तो सबसे पहले बधाई तरही मुशायरा बहुत सफलता से चल रहा है | अब मैं अपने बंधुओं से बात करती हूँ राकेश खंडेलवाल, धर्मेन्द्र कुमार सिंह, प्रकाश पाखी, रविकांत पाण्डेय, डॉ. आज़म, राजीव भारोल 'राज़', गौतम राजरिशी, कंचन सिंह चौहान, तिलक राज कपूर, निर्मल सिद्धू, संजय दानी, अंकित सफर, नविन सी चतुर्वेदी, दिगंबर नासवा, लावण्या जी एवं गिरीश पंकज जी को बहुत- बहुत बधाई | राकेश जी के गीत, लावण्या जी की कविता और बाकि सबों की ग़ज़लों ने मुझे समृद्ध कर दिया | आप सब लोग कितना अच्छा लिखते हैं | काश ! मैं भी आप लोगों की तरह लिख पाऊं |

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  7. गुरु देव प्रणाम,
    राणा प्रताप को जब पहली दफा सीहोर में सुना था , तभी से प्रभावित हूँ ! कुछ मिसरे या यूँ कहूँ की कुछ शे'र ने वाकई चौंकाए थे वहां भी और आज इस तरही में भी ! गिरह में भी अदायगी काबिले गौर है , और फिर पी गई है छाँव वाले मिसरे के बारे में वाकई जितनी तारीफ़ की जाए कम है ! राणा प्रताप को बधाई इस बेहद खुबसूरत ग़ज़ल के लिए !

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  8. हर शेर नयापन लिये हुए, नयी बातें, नये शब्‍द और नये दृश्‍य। गिरह का शेर भी अभिनव प्रयोग है।
    भाई इस उम्र में ये प्रस्‍तुति!

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  9. प्रेम के स्थल बदलती ... वाह मज़ा आ गया इस शेर को पड़ के ... छिचीलाती गर्मी में भी प्रेम का मौका नही चूकना चाहिए ...
    क्या बात है राणा प्रताप जी ... मस्त ग़ज़ल है पूरी की पूरी ....
    दुरुदेव आपको दाँत से राहत मिली ... कुछ मौसम ने राहत दी ... अच्छी खबर है ... मुशायरे में बहुत आनंद आ रह है ...

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  10. राणा जी आपने तो चौंका दिया. आपकी संवेदनशीलता से वाकिफ तो थे, पर जिस प्रकार गर्मियों की दुपहरी पर शेर कहें हैं लाजवाब कर दिया.
    आम की चटनी सरीखी गर्मियों की ये दुपहरी
    पी गई है छाँव सारी गर्मियों की ये दुपहरी
    उसको क्या मालूम कैसी गर्मियों की ये दुपहरी ....
    शानदार गिरह लगाई है
    सुन्दर यादगार ग़ज़ल !

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  11. बहुत खूब राना जी, बेहद खूबसूरत ग़ज़ल कही है.
    "पुरसुकूं है गर मिले तो छाँव का बस एक टुकड़ा..................", वाह वा बेहद उम्दा शेर. ढेरों दाद कुबूल करें.
    गिरह भी अच्छी बाँधी है.
    बधाई स्वीकार कीजिये.

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  12. मस्त मस्त ग़ज़ल आर पी, हमारा रंगरूट अब एक मुकम्मल फौज वाला साहब सरीखा लगने लगा है

    झुंझलाना शब्द को बहुत सही जगह पर लगाया है आपने

    मतले में निदा फ़ाजली साहब की ग़ज़ल की याद ताज़ा करा दी - शायद यूं था - मकके की सौधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी माँ| मजा आ गया मित्र|

    और भैया गर्मियों की दुपहरी में छत और बाग - ये राज़ की बात अच्छी बता दी आपने

    आखिरी शेर में क्या बात कही है भाई, ट्रेन की खिड़की.......... आला बात कही है इस शेर में आप ने

    बहुत बहुत बधाई आर पी

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