तरही अब अपने मुकाम पर आ पहुंची है, धीरे धीरे चलते चलते हम समापन पर आ गये हैं. अगले सप्ताह तरही का समापन हो जायेगा. तरही को लेकर कभी कोई निश्चित क्रम नहीं रखा कि कब किसकी ग़ज़ल लगानी है. आउटलुक का तरही वाला फोल्डर खोलने पर जो दिख जाये उसकी बारी आ जाती है. कभी कभी कोई आगे हो जाता है तो कभी कभी कोई पीछे हो जाता है. खैर ये तो होता ही रहता है. कल फिर यूं लग रहा है कि सुब्ह कुछ व्यस्तता रहनी है क्योंकि कुछ मेहमान आ रहे हैं सो कल की तरही ग़ज़ल को आज ही लगा रहा हूं. ताकि कल का दिन खाली नहीं जाये.
ग्रीष्म तरही मुशायरा
और सन्नाटे में डूबी गर्मियों की ये दुपहरी
आज तरही मुशायरे में हम आदरणीया निर्मला कपिला जी की ग़ज़ल सुनने जा रहे हैं. निर्मला जी एक मिसाल हैं इस बात की, कि यदि सीखने की ललक हो तो उम्र कोई बाधा नहीं है. तो आइये सुनते हैं उनकी ग़ज़ल.
परिचय- जन्म तिथि 25 -11- 1949, जन्म स्थान -गाँव-- रायपुर सहोडां-- जि. ऊना [हिमाचल प्रदेश}, शिक्षा--- डिपलोमा फार्मेस, लेखन विधायें कहानी, कविता, गज़ल, नज़्म हाईकु, दोहा, लघुकथा आदि, प्रकाशन-1]-- कहानी संग्रह [वीरबहुटी} स्टार पब्लिशर्ज़ चन्डी गढ।, 2] कहानी संग्रह [प्रेम सेतु] अभिशेक पब्लिशर्ज़ नई दिल्ली।, 3] काव्य संग्रह [सुबह से पहले ] समाज धर्म प्रकाशन मेहतपुर जिल उना-हि.प्रा.], 4] देश की 51 कवियत्रियों की काव्य् कृ्ति शब्द माधुरी मे कविताओं का प्रकाशन.{ श्री रामेश्वर कम्बोज़ व डा, भावना कुंवर} जी के हाईकु संग्रह- चंदनमन मे प्रकाशित मेरे हाईकु, प्रसारण रेडिओ विविध भरती जालन्धर से कहानी -- अनन्त आकाश का प्रसारण
इसके अतिरिक्त सरिता दैनिकजागरण अजीत हिन्दी ,वागमय वर्षिक आदि पत्रिकाओं मे प्रकाशन और समाज धर्म पत्रिका मे सतम्भ लेखन-- बच्चों का कोना तथा कविता कहानियाँ-- आदि शब्द भारती, काव्य संग्रह . सम्मान 1--पँजाब सहित्य कला अकादमी जालन्धर, 2---ग्वालियर सहित्य अकादमी ग्वालियर की ओर से, शब्दमाधुरी सम्मान, .शब्द भारती सम्मान, व विशिष्ठ सम्मान, 3.कला प्रयास मँच नंगल द्वारा सम्मानित, 4अखर चेतना मंच दुआरा सम्मानित, 5 परिकल्पना ब्लॉग विश्लेषण-२००९ में वर्ष केशः सर्वश्रेष्ठ कहानीकार पुरुस्कार, 6 संवाद डोट काम द्वारा श्रेष्ठ कहानी लेखन पुरुस्कार
7 कई कविता गोष्ठियों मे सम्मानित।, सम्प्रति-- कार्य क्षेत्र---- सेवनिवृ्त [पंजाब सरकार}, आज कल ब्लागिन्ग. मेरे दो स्वतन्त्र ब्लाग हैंऔर 7-8 ब्लाग सम्मिलित हैं.
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अपनी बात
परिचय तो उसका होता है जिस मे कुछ खास हो. एक आम औरत हूँ. घूँघट से नेट तक का सफर गर्मियों की किसी तपती दुपहरी से कम तल्ख नही रहा, शायद इसी लिये गर्मिओं का लुत्फ उठा नही पाई. फिर बचपन मे लडकियों को कहाँ इतनी छूट थी कि वो भरी दुपहरी मे कहीँ बाहर निकले. बस इतना याद है कि बेरिओं के बेर बहुत खाये वो भी कोई और तोड दे. किकर के पत्तों को पीस कर सूलों और काने की मधानी बना कर, करवे मे लस्सी रिडकना सलाई कढाई सीखना,माँ से कई कुछ सीखना,चरखा चलाना ,कपास मे से बिनौले निकालना, सूत अटेरना, बस इन सब का आनन्द लेते गर्मियों की लम्बी दुपहरी में. बचपन मे दुपहरी मे बाहर निकलते हुये डर लगता था सब कहते कि वो सामने वाले पीपल पर भूत रहते हैं शायद बडों को लडकियों के डराने को यही रास्ता सूझा था. एक दिन मुझे दुपहर मे पीपल के नीचे ले गयी मेरी सहेलियाँ उस दिन घर आ कर इतना तेज़ बुखार चढा और ऊपर से डाँट पडी कि गर्मिओं की दुपहरी मे अजीब स डर लगता था. बस इतना ही याद है। आजकल समय बिताने के लिये ब्लाग मिल गया है. कुछ आढे तिर्छे शब्द ही लिख पाटी हूँ कैसे लिखूँ अच्छा 1967 के बाद हिन्दी पदी लिखी ही नही थी 2004 से लिख्क़्ना शुरू किया सो आप जैसे सुधिजनो से सीख रही हूँ अब कई बार लगता है कि समय बहुत कम रह गया है सीख कर करूँगी भी क्या लेकिन जब तक साँस है कुछ तो करते ही रहना है. जब आयी थी ढंग से एक शब्द भी लिखना नही आता था लेकिन ब्लागजग्त के उत्साहवर्द्धन से हल्का फुलका लिखने लगी हूँ. सब का धन्यवाद.
तरही ग़ज़ल
डर सा इक दिल में उठाती गर्मिओं की ये दुपहरी
और सन्नाटे मे डूबी गर्मियों की ये दुपहरी
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चिलचिलाती धूप सी रिश्तों में भी कुछ तल्खियाँ हैं
आके तन्हाई बढाती गर्मिओं की ये दुपहरी
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हां वही मजदूर जो डामर बिछाता है सड़क पर
मुश्किलें उसकी बढाती गर्मिओं की ये दुपहरी
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है बहुत मुश्किल बनाना दाल रोटी गर्मिओं मे
औरतों पर ज़ुल्म ढाती गर्मिओं की ये दुपहरी
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आग का तांडव कहीं और हैं कहीं उठते बवंडर
यूँ लगे सबसे हो रूठी गर्मिओं की ये दुपहरी
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कुछ तो राहत सी मिले बरसात के आसार हों गर
आँख बादल को दिखाती गर्मिओं की ये दुपहरी
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तैरना तालाब में कैसे घडे पर पार जाना
याद बचपन की दिलाती गर्मियों की ये दुपहरी
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रात तन्हा थी मगर कुछ ख्वाब तेरे आ गये थे
पर भला कैसे कटेगी गर्मियों की ये दुपहरी
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बर्फ मे शहतूत रख,तरबूज खरबूजे खुमानी
मौसमी सौगात लाती गर्मियों की ये दुपहरी
रात तन्हा थी मगर कुछ ख़्वाब तेरे आ गये थे पर भला कैसे कटेगी गर्मियों की ये दुपहरी, बहुत अच्छा बन पड़ा है शेर. लेकिन जो शेर जबरदस्त हुआ है वो है चिलचिलाती धूप सी रिश्तों में भी कुछ तल्खियां हैं, विरह को बहुत ही सुंदर तरीके से बांधा गया है इसमें. तैरना तालाब में कैसे घड़े के पार जाना और है बहुत मुश्किल बनाना जैसे शेर भी ग़ज़ल के सौंदर्य का और बढ़ा रहे हैं. बहुत सुंदर ग़ज़ल.
तो सुनते रहिये इस ग़ज़ल को और इंतजा़र कीजिये अगले शायर का.
बढ़िया ग़ज़ल ........हर शेर बेहतरीन
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार गजल । मजदूर की मुश्किल बढाने वाली, खास तौर पर चूल्हे पर रोटी बनाने वालियों पर अत्याचार करती, कहीं आग लगाती । बचपन में वाकई न गर्मी देखते थे न सर्दी हमारे यहां तालाव था। और जब गर्मी है ही तो मौसम फलों के रुप में अपनी सौगात भला क्यों न देगा । बहुत सुंदर अच्छी भी और बुरी भी ""गर्मिया ""
जवाब देंहटाएंआदरणीय निर्मला जी की कहानियाँ, रचनाएँ और ग़ज़लें पढ़ कर कभी कभी उनकी ऊर्जा देख कर जलन होती है ... इस उम्र में जो वो करतीं हैं बहुत कम के ही बस में होता है ....
जवाब देंहटाएंइस ग़ज़ल के शेर इनकी परिपक्व सोच और लाजवाब लेखन की बानगी है ... है बहुत मुश्किल बनाना ... य फिर ... रात तन्हा थी ... लाजवाब शेर हैं ... और शशक्त लेखनी बयान कर रहे हैं ...
बहुत ही सुंदर ग़ज़ल है। कुछ शे’र तो बहुत ही अच्छे बन पड़े हैं। चिलचिलाती धूप वाले शे’र तो मन मोह लिया। आदरणीय निर्मला जी को हार्दिक बधाई। इनके परिचय से यह तो लग गया कि सीखने की कोई उमर नहीं होती।
जवाब देंहटाएंpuna: padh kar achha laga
जवाब देंहटाएंनिर्मला जी के बारे में कहना सदा मुश्किल रहा है. ऐसे ऐसे चमत्कार कर दिखतीं हैं के सिवा दंग रह जाने के और कुछ बचता ही नहीं. उनकी ऊर्जा , सहज आचरण और सभी के लिए अथाह प्यार अनुकरणीय है. तरही की इस ग़ज़ल में चिलचिलाती धूप में...जैसा शेर लाजवाब कह कर मुझे उनके सम्मान में सर झुकाने को मजबूर कर दिया है. गर्मियों की दोपहर में पसीनों में नहाती महिलाओं द्वारा दाल रोटी बनाने जैसे कष्ट कारी कार्य को एक भुक्त भोगी महिला ही शब्द दे सकती है. घड़े पर पार जाने वाला शेर सोहनी -महिवाल की कहानी की याद दिला गया. रात तनहा थी बेहद खूबसूरत शेर है. बर्फ में लगे शेह्तूत खरबूजे मतीरे अचानक से मुंह में पानी ले आये हैं.
जवाब देंहटाएंइस बार की तरही में कुछ एक शेर ऐसे लाजवाब आये हैं के उन्हें क्लासिक की श्रेणी में रखा जा सकता है. जो हमेशा याद रहेंगे. ये इस तरही की सबसे बड़ी कामयाबी है.
नीरज
''निर्मला जी के बारे में कहना सदा मुश्किल रहा है. ऐसे ऐसे चमत्कार कर दिखतीं हैं के सिवा दंग रह जाने के और कुछ बचता ही नहीं. उनकी ऊर्जा , सहज आचरण और सभी के लिए अथाह प्यार अनुकरणीय है. तरही की इस ग़ज़ल में चिलचिलाती धूप में...जैसा शेर लाजवाब कह कर मुझे उनके सम्मान में सर झुकाने को मजबूर कर दिया है. गर्मियों की दोपहर में पसीनों में नहाती महिलाओं द्वारा दाल रोटी बनाने जैसे कष्ट कारी कार्य को एक भुक्त भोगी महिला ही शब्द दे सकती है. घड़े पर पार जाने वाला शेर सोहनी -महिवाल की कहानी की याद दिला गया. रात तनहा थी बेहद खूबसूरत शेर है. बर्फ में लगे शेह्तूत खरबूजे मतीरे अचानक से मुंह में पानी ले आये हैं.
जवाब देंहटाएंइस बार की तरही में कुछ एक शेर ऐसे लाजवाब आये हैं के उन्हें क्लासिक की श्रेणी में रखा जा सकता है. जो हमेशा याद रहेंगे. ये इस तरही की सबसे बड़ी कामयाबी है.''
मैं नीरज भाई से पूरी तरह सहमत हूँ।
सब से पहले आदरणीया निर्मला जी के जीवट को एक बार फिर से सादर प्रणाम|
जवाब देंहटाएंहै बहुत मुश्किल बनाना दाल रोटी गर्मियों में
औरतों पर जुल्म ढाती गर्मियों की ये दुपहरी
ये एक ऐतिहासिक शेर है| मैंने इस तरह का शेर पहली बार पढ़ा / सुना है| "फ़्रोम बुलक कार्ट टु जेट" ये कहावत तो सुनी थी कई सीनियर सिटीजन्स के मुंह से, आज एक और नयी कहावत स्थापित कर दी है निर्मला जी ने - "घूँघट से नेट तक" - ये कहावत दौर की बेहतरीन कहावतों में शुमार हुई|
निर्मला जी ब्लॉग जगत की एक प्यारी प्यारी माँ - दीदी हैं| आप स्वयं सदैव कुछ नया करने के लिए उद्यत रहती हैं| आप को देख कर लगता है हम लोग जो कुछ भी कर रहे हैं, वो तो कुछ भी नहीं है| पंकज भाई, नीरज भाई और तिलक भाई आप तीनों ने इन के बारे में सही लिखा है - ये चमत्कार पर चमत्कार करती रहती हैं|
इन की ग़ज़ल की तारीफ करने लायक शब्द नहीं हैं मेरे पास| सारी बातों को यदि ध्यान में रखा जाए तो मेरे मुताबिक़ इन की ग़ज़ल इस तरही की सर्वोत्तम ग़ज़ल है|
ाप सब का उतसाहवर्द्धन के लिये धन्यवाद। अगर अपनी गज़ल की बात करूँ तो जितनी तारीफ हुयी है उस काबिल अभी तो नही तुक बन्दी करती थी लेकिन गज़ल सीखने का क्रम तो सुबीर जी के गज़ल के सफर से शुरू हुया\ गुरू जी कहने नही देते छोटे भाई बन कर पीछा छुदा लिया लेकिन इनकी प्रेरना और मार्ग दर्शन जबर्दस्ती ले लेती हूँ
जवाब देंहटाएंधन्यवाद उसके लिये बहुत छोटा शब्द है। शुभकामनायें आशीर्वाद।
वाकई सिखने के लिए ये जितनी मेहनत करती हैं उसके आगे नतमस्तक हूँ ! बचपन की याद में शामिल ये बात की तैरना तलब में वाला शे'र एक बार फिर बचपन में ले गया था... और शे'र रात तनहा थी ... वाकई अछि ग़ज़ल कही है इन्होने..
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई
आपके बारे में पहली बार जाना। ब्लॉग से परिचय पुराना है।
जवाब देंहटाएंहै बहुत मुश्किल बनाना दाल रोटी गर्मियों में,
जवाब देंहटाएंऔरतों पर ज़ुल्म ढाती गर्मियों की ये दुपहरी।
बेहतरीन , सच्ची ,समसामयिक और सार्थक ग़ज़ल के लिये निर्मला जी को मुबारकबाद।
निर्मला जी ने बहुत ही सुंदर गज़ल कही है..
जवाब देंहटाएंकुछ शेर तो बहुत बहुत भाये. "है बहुत मुश्किल बनाना दाल रोटी.." बहुत ही बढ़िया है. यह वही कह सकता है जिसने खुद रसोई में बैठ कर खाना पकाया है. "आग का तांडव", "आँख बादल को दिखाती.." बहुत खूब मिसरे हैं. "हाँ वही मजदूर जो डामर बिछाता है सड़क पर." गरीब का दर्द बहुत सुंदर और सरल तरीके से चित्रित किया है.
और ये शेर:
"चिलचिलाती धूप..","तैरना तालाब में..", "रात तनहा थी मगर..","वर्फ में शहतूत रख." तो ऐसे हैं की एक बार पढ़ कर मन नहीं भरता.
निर्मला जी को ढेरों दाद..
आदरणीय निर्मला जी, तो हिंदी ब्लॉगजगत में एक लोकप्रिय आइकोन हैं. ग़ज़ल के प्रति जो निष्ठा है वो हमसब के लिए अनुकरणीय है.
जवाब देंहटाएंचिलचिलाती धुप सी रिश्तों में कुछ तल्खियां हैं...
मैं तो इस शेर पर ठहर सा गया हूँ.
रात तनहा थी मगर...
ग़ज़ल के हर शेर अच्छे लगे.
वाह्………बहुत ही शानदार अन्दाज़-ए-बयाँ रहा ।
जवाब देंहटाएंप्रिय निर्मला जी
जवाब देंहटाएंमैं दिगंबर नसवा जी के साथ बिलकुल सहमत हूँ. हर शेर पढ़कर मेरी सोच ठिठकी हुई है और शब्द निशब्द.
क्या गज़ब तांडव रचाती गर्मियों की ये दुपहरी
झिलमिलाती रक्स करती गर्मियों की ये दुपहरी
खामुशी कह रही है बधाई हो
देवी नागरानी
निर्मला जी की ये ग़जल को भावों के स्तर पर बेहतरीन ग़ज़ल है। जिसमें गर्मी को अलग अलग शेड्स देखा गया है।
जवाब देंहटाएंगर्मियों का त्रासद पक्ष, जिसे महिलाओं और मजदूरों को किस बुरी तरह झेलना पड़ता है, उसे बखूबी ले आईं वे।
हमेशा से ही सम्मान की पात्र लगने वाली निर्मला जी के लिये सम्मान कुछ और बढ़ जाता है, इस पोस्ट के बाद।
man ke naajuk parton par garmiyon ki dopahri ka asar kaise kaise rang aur anubhutiyan udbhut kar sakta hai,uski ek dilkash peshkash hai ye gazal.Ashesh badhai.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन गज़ल के साथ साथ निर्मला जी का संस्मरण...आनन्द आ गया.
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