कल सीहोर में हल्की फुल्की बरसात हुई. इस प्रकार जैसे कोई अहसान किया जा रहा हो. तपिश कुछ और बढ़ गई है उस बरसात के बाद से. उमस भी बढ़ी हुई है. खैर ये तो है कि मानसून की दस्तक हो चुकी है. इसी बीच आने वाली 15 जून को एक और खगोलीय घटना होने वाली है पूर्ण चंद्रग्रहण की. रात को तांबे का चंद्रमा देखना हो तो जागना तो पड़ेगा. आपको पता है न कि मैं आकाश का दीवाना हूं. वहां होने वाली हर घटना को देखना अच्छा लगता है. लेकिन अफसोस कि 15 जून को यदि बादल हुए तो कुछ भी नज़र नहीं आयेगा. दो साल पहले पूर्ण सूर्यग्रहण के समय भी यही हो गया था. केवल पंद्रह दिन के अंतर से पहले सूर्य ग्रहण और फिर चंद्र ग्रहण अपने आप में अनोखी बात है. और ये चंद्र ग्रहण तो वैसे भी खास है. तो ये तो हुई चंद्र ग्रहण की बात, आइये आज सुनते हैं समापन सप्ताह की पहली ग़ज़ल.
ग्रीष्म तरही मुशायरा
और सन्नाटे में डूबी गर्मियों की ये दुपहरी
आज तरही में हम सुनने जा रहे हैं इलाहाबाद के वीनस केशरी की एक सुंदर सी ग़ज़ल, इसके बाद बस कुछ और शाइर बाकी हैं और सब कुछ ठीक रहा तो भभ्भड़ कवि भौंचक्के इस तरही का समापन कर सकते हैं.
वीनस केशरी
मेरा जन्म 1 मार्च 1985 दिन शुक्रवार को एक माध्यमवर्गीय वैश्य (केसरवानी {केशरी}) परिवार में हुआ | पता नहीं यह शुक्रवार का असर था या हमारे व्यावसायिक प्रकाशन "वीनस एंड कंपनी" का असर था की मेरा नाम रखा गया "वीनस", बचपन से आज तक इस नाम ने कई गुल खिलाए हैं वीनस को विनय भी पढ़ा गया और विनास भी, बहुत लोग तो इसे मेरा नाम मानने से ही इन्कार कर देते हैं और असली नाम बताने को कहते हैं तब परिचय पत्र काम आता है,पहले स्कूल की कॉपी दिखाई जाती थी. दिक्कत यह भी है की मैं इंग्लिश में अपना नाम venus लिखता हूँ जो वेनुस और वेणुस होता है खैर नाम कथा फिर कभी ...हाँ एक बात जरूर कहूँगा की जब मैं "सुबीर संवाद सेवा" में आया तो बहुत दिन तक गुरु जी को भी मेरे नाम पर शंका थी और वो तब तक बनी रही जब मैं पहली बार उनसे साक्षात मिल नहीं लिया :)
फोटो : (वर्ष 1987) मम्मी जी श्रीमती अरुणा केशरी, दीदी डा. खुशबू केशरी, मैं वीनस केशरी
२००८ के मार्च में लैपटाप लेना मेरे जीवन की बड़ी घटना तब बनी जब नेट से जुडा और हिंद युग्म ब्लॉग पर गज़ल की कक्षा में पंकज सुबीर जी को गज़ल की कक्षा चलाते देखा, मैं हैरान रह गया की गज़ल का भी कोई विज्ञान होता है ,,,,, फिर कुछ दिन बाद वहाँ कक्षा बंद हो गई तो बड़े नाटकीय तरीके से सुबीर संवाद सेवा को खोजा,,, वो दिन है और आज का दिन है... जो कुछ जाना सब कुछ गुरु जी का बताया हुआ है,,, जो कुछ सीखा सब गुरु जी के सिखाया हुआ है जानने और सीखने की प्रक्रिया सतत ज़ारी है
फोटो : (वर्ष 1987) मैं वीनस केशरी उम्र : २ वर्ष
परिवार में पापा जी श्री राज बहादुर केशरी, मम्मी जी श्रीमती अरुणा केशरी, दीदी डा. खुशबू केशरी, मैं वीनस केशरी, छोटा भाई आकाश केशरी और छोटी बहन कोमल केशरी हम 6 जन हैं नेट पर आने के बाद एक परिवार यहाँ भी बन गया जो बढ़ता जा रहा है, यहाँ ऐसे लोग मिले जिनसे नाता किसी भी रिश्ते से बढ़ कर है. चित्रकारी , थर्माकोल माडल बनाना अब शौक के साथ साथ व्यवसाय के अंग भी हो गए हैं इसलिए इनके लिए पर्याप्त समय मिल जाता है ग़ज़ल के लिए समय निकाल लेता हूँ
तरही ग़ज़ल
भोर से ही आ धमकती गर्मियों की ये दुपहरी |
बेहया मेहमां के जैसी गर्मियों की ये दुपहरी |
0
कोई मुझको भी सिखा दे, आम के पेड़ों पे चढना,
तोडनी है अब मुझे भी गर्मियों की ये दुपहरी |
0
खिन्नियों का इक शज़र क्यों अब भी मेरा मुन्तजिर है,
क्यों सदा देती है अब भी गर्मियों की ये दुपहरी |
0
वो भी अब वातानुकूलन यंत्र पर मोहित हुए हैं,
कल जिन्हें अच्छी लगे थी गर्मियों की ये दुपहरी |
0
फिर पसीना पोंछ कर छोटू ने ठेले को धकेला,
हो गई फिर, पानी-पानी गर्मियों की ये दुपहरी |
0
आदमी ने किस कदर धरती को लूटा, देख कर अब,
हो रही है लाल-पीली गर्मियों की ये दुपहरी |
0
क्यों धडकते शह्र की जिंदादिली से तिलमिला कर,
और सन्नाटे में डूबी गर्मियों की ये दुपहरी |
0
कूलरों के घास की सौंधी सी खूशबू के भरोसे,
हमने भी क्या खूब सोची गर्मियों की ये दुपहरी |
फिर पसीना पोंछ कर छोटू ने ठेले को धकेला, हो गई फिर पानी पानी गर्मियों की ये दुपहरी, बहुत बढि़या तरीके से इंसान के हौसले और प्रकृति के बीच की ज़ोर आज़माइश को चित्रित किया है. खिन्नियों का इक शज़र क्यों अब भी मेरा मुन्तजि़र है, ये शेर भी सुंदर बन पड़ा है. मुन्तजि़र शब्द इस मिसरे में बूटे की तरह टंका हुआ है. कोई मुझको भी सिखा दे आम के पेड़ों पे चढ़ना ये शेर भी सुंदर बना है.
तो आनंद लीजिये इस ग़ज़ल का और मिलते हैं अगले अंक में एक और शाइर के साथ.
बड़ी ही सुन्दर गजल।
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों से इस गज़ल का इन्तेज़ार था.
जवाब देंहटाएंवीनस भाई, अगर आप अमरीका में होते तो आपको नाम की समस्या बिलकुल नहीं होती..Venus माने Venus. यहां तो मेरे नाम को राजीव से कभी रेजीव कर देते हैं और कभी राहीव(स्पैनिश में J to ह पढ़ते हैं)!
तस्वीरें ज़ोरदार हैं. टांग पर टांग वाली फोटो तो एकदम झक्कास है.
गज़ल एकदम मस्ती में लिखी है और एक से बढ़ कर एक शेर निकले हैं. बेहद बेहद पसंद आये. मतला बहुत धमाकेदार और फिर "कोई मुझको भी सिखा दे आम के पेड़ों पे चढ़ना..तोडनी है अब मुझे भी." आहा! क्या बात है. "खिन्निओं का इक् शजर..", "वो भी अब वातानुकूलन यंत्र पर मोहित हुए हैं." बहुत बढ़िया. "फिर पसीना पोंछ कर छोटू ने ठेले को धकेला." ये शेर बहुत खूबसूरत है और मेरे ख्याल से हासिले गज़ल शेर है. "आदमी ने किस कदर धरती को लूटा.." ग्लोबल वार्मिंग के बारे में बड़े सुद्नर तरीके से कहा है. गिरह भी खूब बांधी है. और मकता भी बहुत सुंदर कहा है. इतनी खूबसूरत गज़ल के लिए बधाई और दिली दाद कबूल करें.
aam ke pedon pe chadhna .. waah.. paseena ponch kar.. khoobsurat wimb.. aur kyun dadakta shahar.. bahut khoob..
जवाब देंहटाएंkhoob gazal hui..
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल... हर एक शे'अर बेहतरीन है!!!
जवाब देंहटाएंवीनस ने तो और भी कमाल कर दिया मिसरा तो लाजवाब है और ये शेर \\
जवाब देंहटाएंफिर पसीना पोंछ -----
कितने खूब सूरत तरीके से गहरी और जव्लन्त समस्या की ओर इशारा किया है।
आदमी ने किस कदर---- जो आदमी ने किया है वो गर्मियों की दुपहरी ही बता सकती है जब मुसाफिर कहीं विश्राम के लिये छाँव ढूँता है। बहुत अच्छी गज़ल कही वीनस ने। आखिर शागिर्द किसका है!ये दो साल के बच्चे की तस्वीर बहुत अच्छी लगी । वीनस को आशीर्वाद।
फिर पसीना पोंछ कर छोटू ने ठेले को धकेला,
जवाब देंहटाएंहो गई फिर पानी पानी गर्मियों की ये दुपहरी।
बहुत ख़ूब , सुन्दर ग़ज़ल विनस केशरी जी को बधाई।
नाम में क्या रक्खा है; नाम में ही तो सब कुछ है। अब देखो भाई आप बन गये न तरही 'केसरी'।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत ग़ज़ल है। मेरा हमउम्र शायर तो अब यही कह सकता है कि 'याद क्यूँ आती है अब भी, गर्मियों की वो दुपहरी'। क्यूँकि जब गर्मियॉं मज़ा देती थीं, अपनी तो वो उम्र निकल चुकी। कुछ समय सदायें देती रही फिर समझ गयी कि कुछ नये साथी तलाशने होंगे; नये लोगों को सदायें देने लगी और अब ऐसे ही बढ़ते बढ़ते आप तक आ पहुँची।
बधाई हो भाई तरही 'केसरी'
वीनस भाई ने क्या शानदार ग़ज़ल कही है। कई बार तो मुझे भी लगा कि ये इनका तखल्लुस है। वरना इलाहाबाद में किसी का नाम वीनस होना वाकई अपने आप में प्रयोग है। अब कभी वीनस जी से कभी मुलाकात होगी तब सिखाया जाएगा इनको आम के पेड़ पर चढ़ना। बहुत खूबसूर शे’र है ये। छोटू वाले शे’र ने तो पूरे मुशायरे को ही एक कदम आगे ढकेल दिया है। तरही की गिरह तो लाजवाब बँधी है। बहुत बहुत बधाई वीनस भाई को।
जवाब देंहटाएंवाह वीनस जी वाह! क्या बेहतरीन शायरी है.
जवाब देंहटाएंहमारे इलाहाबादी वीनस भाई, आप तो इस मंडली में ख़ास हो ख़ास. परिवार से मिलकर बहुत अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंआम के पेड़ों पर चढ़ना....
सुन्दर गिरह लगाई है.
हो गयी फिर पानी पानी गर्मियों की ये दुपहरी. इस पर ढेरो दाद!!!!!
वीनस जी की उम्र और और उनके शेर .... कहीं कोई मेल नही है ... बचपन में इतनी मंजी हुई बातें .... कमाल है कमाल है कमाल है .... बहुत डोर तक जाएँगे वीनस जी ऐसा विश्वास है .. तरही की ये ग़ज़ल भी लाजवाब है .... हर शेर में बचपन और गर्मियों का मज़ा आ रहा है ... जितनी खूबसूरत शुरुआत हुई थी इस तरही की उतना ही कमाल का समापन होने वाला है ....
जवाब देंहटाएंकुछ ही लोग ऐसे होते हैं जो बचपन में जितने क्यूट लगते हैं बड़े होने पर भी उतने ही क्यूट लगते हैं...आज वीनस के बचपन की फोटो देख कर जाना कि वीनस भी उन्हीं चंद लोगों में से एक है. "होनहार बिरवान के होत चीकने पात..."
जवाब देंहटाएंवीनस की शायरी हमेशा कुछ अलग हट के होती है. छोटी सी उम्र में ही इतनी परिपक्वता माँ सरस्वती के आशीर्वाद के बिना नहीं आ सकती. इस ग़ज़ल के सारे शेर बेहतरीन हैं और मैं "छोटू ने धकेला..."शेर अपने साथ लिए जा रहा हूँ. इस बार की तरही में जितना बचपन याद आया है पहले कभी नहीं आया था.
नीरज
भभ्भड़ कवि 'भौंचक्के' कब अवतरित होंगे...इंतज़ार के पल युगों में परिवर्तित हुए जा रहे हैं...
जवाब देंहटाएंनीरज
वीनस, तुम बचपन से ही मुशायरों में बैठने लग गए थे क्या, तुम्हारी तकिये पे ख़ास अंदाज़ में बैठे/लेते वाली तस्वीर तो यही कह रही है.
जवाब देंहटाएंमतला अच्छा कहा है, "फिर पसीना पोंछ कर छोटू ने ठेले को............" भी अच्छा है.
नाम की चिंता छोड़कर अच्छी से अच्छी ग़ज़ल लिखे चलो.
वीनस भाई बड़ा इंतेज़ार करवाया अपनी ग़ज़ल पढ़वाने के लिए| और साथ ही यह भी कहेंगे कि इस इंतेज़ार का फल मीठा ही निकला| भाई, पंकज भाई के शिष्यों से ऐसी ग़ज़लों की ही अपेक्षा की जाती है| अभी कुछ दिन -पहले इस का एक शेर और पढ़ा था वो वाला - 'सवा अरब की कंट्री का'; जोरदार लगा वो शेर| भाई वीनस हमारा भी आशीर्वाद है तुम्हारे साथ|
जवाब देंहटाएंबेशर्म महमान की उपमा अच्छी रही । गर्मियां और आम की छाया । खिन्नी खिरनी गुना में कहते है चंदेरी की मेवा । छोटू के लिये क्या गर्मी क्या सर्दी मगर भरी दोपहरी में ढेला धकाकर गर्मियों को शर्मिन्दा तो कर ही दिया। लालपीला होना और सन्नाटे मे डूबना उपयुक्त । कूलर की घास की सौधी खुशबू एसी वाले क्या समझ पायेंगे । उत्तम अतिउत्तम ।
जवाब देंहटाएंवीनस भाई! 'बेहया मेहमाँ के जैसी', 'तोडनी है अब मुझे भी' और 'धड़कते शहर' जैसे बिम्ब, आपकी ग़ज़ल को एक नया आयाम दे रहे हैं. कूलर के घास की सौंधी सी खुशबू को भी आपने बखूबी महसूस किया है. वाह..!! पढ़कर मजा आ गया.
जवाब देंहटाएंकूलर के घास की सौंधी खुशबू जैसे एकाएक नथूनों में समा गई...बहुत बहुत उम्दा...जिंदा गज़ल!!!!
जवाब देंहटाएंबधाई वीनस!
वीनस,
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा ग़ज़ल है ..
"कोई मुझको भी सिखा दे आम के पेड़ों पे चढ़ना..तोडनी है अब मुझे भी''.
''फिर पसीना पोंछ कर छोटू ने ठेले को धकेला,
हो गई फिर पानी पानी गर्मियों की ये दुपहरी।''
वाह-वाह बहुत खूब ..बधाई
वाह वाह !!
जवाब देंहटाएंवीनस वाह क्या अंदाज़ है शब्द पिरोने का.
"बे-हया सी गर्मियों की ये दुपहरी.""
ज़रूर पानी-पानी हुई होगी गर्मियों की ये दुपहरी
ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ
देवी नागरानी
फिर पसीन पोछ कर छोटू ने ठेले को ढकेला
जवाब देंहटाएंये शेर पूरी ग़ज़ल पर भारी पड़ गया है।
इंग्लिश नाम की स्पेलिंग इंग्लिश के हिसाब से ही लिखी होती, तो ये सारी समस्या ना आती श्रीमान...!!
आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंग़ज़ल को पसंद करने के लिए तथा हौसला अफजाई के लिए शुक्रगुजार और अपार स्नेह वर्षा से अभिभूत हूँ