कल रात चंद्रग्रहण की रात थी. लेकिन वही हुआ जो दो साल पहले पूर्ण सूर्यग्रहण के समय हुआ था, पूरी रात चांद बादलों से घिरा रहा, बूंदें बरसती रहीं और चंद्रग्रहण को देखने की आस मन में ही रह गई. कितने दिनों से इस चंद्रग्रहण की प्रतीक्षा थी, लेकिन कुछ नहीं देख पाया. चलिये ये तो सब नियति नटी के खेल हैं, उसमें हम आप क्या कर सकते हैं, लेकिन इसी बीच ये हो गया है कि बरसात ने दस्तक दे दी है, कल भी दिन भर रह रह कर पानी बरसता रहा और रात को भी यही हाल रहा. गर्मियों का मौसम विदा ले रहा है, 15 जून को मध्यप्रदेश में सामान्यत: मानसून की दस्तक का समय माना जाता है और इस बार ऐसा लग रहा है कि मानसून समय पर दस्तक दे रहा है. तरही की सारी पोस्टें अब शेड्यूल कर दी गई हैं, आज की पोस्ट के बाद केवल चार ग़ज़लें और, तथा उसके बाद यदि रब की रज़ा रही तो सोमवार या मंगलवार को भभ्भड़ कवि भौंचक्के अपनी सात गुणा सात ग़ज़ल के साथ तरही का विधिवत समापन करेंगें.
ग्रीष्म तरही मुशायरा
और सन्नाटे में डूबी गर्मियों की ये दुपहरी
इस बार की तरही की सबसे बड़ी विशेषता रही है इसकी विविधता, हर विधा में कविताएं इस बार की तरही में आईं और पसंद की गईं. आइये आज सुनते हैं डॉ सुधा ओम ढींगरा जी से उनकी एक छंदमुक्त कविता.
डॉ. सुधा ओम ढींगरा जी
पंजाब के जालंधर शहर में जन्मी डा. सुधा ढींगरा हिन्दी और पंजाबी की सम्मानित लेखिका हैं। वर्तमान में वे अमेरिका में रहकर हिन्दी के प्रचार-प्रसार हेतु कार्यरत हैं।
प्रकाशित साहित्य-- कौन सी ज़मीन अपनी ( कथा संग्रह), धूप से रूठी चांदनी ( काव्य संग्रह) मेरा दावा है (काव्य संग्रह-अमेरिका के कवियों का संपादन ) ,तलाश पहचान की (काव्य संग्रह ) ,परिक्रमा (पंजाबी से अनुवादित हिन्दी उपन्यास), वसूली (कथा- संग्रह हिन्दी एवं पंजाबी ), सफर यादों का (काव्य संग्रह हिन्दी एवं पंजाबी ), माँ ने कहा था (काव्य सी .डी ), पैरां दे पड़ाह , (पंजाबी में काव्य संग्रह ), संदली बूआ (पंजाबी में संस्मरण ), १२ प्रवासी संग्रहों में कविताएँ, कहानियाँ प्रकाशित।
डॉ ओम ढींगरा एवं डॉ सुधा ढींगरा
विशेष--विभौम एंटर प्राईसिस की अध्यक्ष, हिन्दी चेतना (उत्तरी अमेरिका की त्रैमासिक पत्रिका) की सह- संपादक। हिन्दी विकास मंडल (नार्थ कैरोलाइना) के न्यास मंडल में हैं। अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति (अमेरिका) के कवि सम्मेलनों की राष्ट्रीय संयोजक हैं। इंडिया आर्ट्स ग्रुप की स्थापना कर, अमेरिका में हिन्दी के बहुत से नाटकों का मंचन किया है। अनगिनत कवि सम्मेलनों का सफल संयोजन एवं संचालन किया है। रेडियो सबरंग ( डेनमार्क ) की संयोजक।
कौन सी ज़मीन अपनी का विमोचन, कहानी पाठ
पुरस्कार- सम्मान-- अमेरिका में हिन्दी के प्रचार -प्रसार एवं सामाजिक कार्यों के लिए वाशिंगटन डी.सी में तत्कालीन राजदूत श्री नरेश चंदर द्वारा सम्मानित। चतुर्थ प्रवासी हिन्दी उत्सव 2006 में ''अक्षरम प्रवासी मीडिया सम्मान.'' हैरिटेज सोसाइटी नार्थ कैरोलाईना (अमेरिका ) द्वारा ''सर्वोतम कवियत्री 2006' से सम्मानित , ट्राईएंगल इंडियन कम्युनिटी, नार्थ - कैरोलाईना (अमेरिका ) द्वारा 2003 नागरिक अभिनन्दन ''. हिन्दी विकास मंडल , नार्थ -कैरोलाईना( अमेरिका ), हिंदू- सोसईटी , नार्थ कैरोलाईना( अमेरिका ), अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति (अमेरिका) द्वारा हिन्दी के प्रचार -प्रसार एवं सामाजिक कार्यों के लिए कई बार सम्मानित।
पत्रकारिता : संवाददाता -प्रवासी टाइम्स (यू.के.), स्तंभ लेखिका - शेरे-ए-पंजाब (पंजाबी), विदेशी प्रतिनिधी - पंजाब केसरी, जगवाणी, हिन्द समाचार
ब्लाग http://hindi-chetna.blogspot.com, http://www.vibhom.com, http://shabdsudha.blogspot.com/
तरही कविता
चिलचिलाती धूप से
तपती सड़कें,
सूरज का बढ़ता गुस्सा औ'
तापमान का चढ़ता पारा
बेचैन होते पशु -पक्षी
तड़पती प्रकृति व
पसीने से भीगे
चिपचिपाते,
बदन.
उमस ,
घुटन से भरी हवा,
आलिंगनबद्ध होते
गर्मी और
मेरा शहर.
ऐसे में
बच्चों द्वारा
दूर -दराज़
नीड़ बना लेने के बाद,
एकान्त,
शांत,
बेरौनक,
उदास
सूना मेरा घर.
घर के
बरामदे की चौखट के कोने में
पाईन स्ट्रा के तिनके - तिनके बीन कर
सुनहरी चिड़ियों द्वारा बनाए घोंसले से
भूख, प्यास से व्याकुल
बिलखते
उनके बच्चों का शोर,
तोड़ रहा
अलसाए मन का मौन,
और सन्नाटे में डूबी, गर्मियों की ये दुपहरी.
डॉ विजय बहादुर सिंह जी से एक बार नई कविता पर काफी लम्बी बहस हुई थी, और अंत में उनके इस विचार से सहमत हुआ था कि नई छंदमुक्त कविता में यदि प्रवाह है, संवेदना है, मन के अंदर पैठने की क्षमता है तो वह भी कविता है. सुधा जी की ये कविता ऊपर बताये सभी मानदंडों पर बिल्कुल खरी उतरती है. एक अनूठा शब्द चित्र है ये कविता, और उस पर वो खंड जहां पर बच्चों के चले जाने के बाद सूने घर का चित्रण है वो खंड तो झुरझुरी पैदा करता है. सूनेपन का मौन गीत बन कर ये कविता मन के अंदर गहरे में पैठती जाती है. सचमुच वो घर जहां बच्चों का उल्लास चहल पहल रहता था वहां का सूनापन कितना सालता है. शांत, उदास और बेरौनक, तीन शब्दों में मानो सुधा जी ने उस अकेलेपन का शोकगीत रच दिया है. सुंदर कविता.
तो आनंद लीजिये इस कविता का और मिलते हैं अगले अंक में अगले शायर के साथ.
आज सुबह की पहली पोस्ट खुली तो - आदरणीया सुधा दीदी की ये शांत शांत कविता ने मन और यहाँ के वातावरण को चुपचाप झकझोर दिया.
जवाब देंहटाएंघर में कभी उल्लास तो कभी खालीपन बस यही समय चक्र चलता रहता है.
garmi ki dophari ke saath ghar ke soonepan ke aehsaas ko batati shaandaar rachanaa,wakai bachchon ke bahar chale jaane se ghar main soonapan to badh jaata hai.bahut achchi rachanaa.badhaai,
जवाब देंहटाएंयह कहना ग़लत न होगा कि तरही मिसरे को बड़ी खूबसूरती से बॉंधा गया है इस कविता में। इस प्रकार की कविताओं को मैं अक्सर एकॉंत में सस्वर पढ़ता हूँ और पूरा आनन्द लेता हूँ चिंतन प्रवाह का।
जवाब देंहटाएंसुधा जी को बधाई।
गुरुदेव हमने तो चंद्रग्रहण का एक एक पल अपनी आँखों में संजोया कल रात .... दुबई में रात १०.२० से लेकर ११.४५ तक पूरा चाँद ग्रहण की आगोश में आ गया था ...
जवाब देंहटाएंसुधा जी की इस रचना ने चित्र की तरह कोई नक्शा सा खींच दिया है तपती हुई मिट्टी पे ... ये दोपहरी भी अंज़ान नही है ... लगता है आस पास के किसी केनवास पर छपी हुई है ...
वाकई ये कविता एक शब्द चित्र है। रचनाकारा को बहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंऐसे में बच्चों द्वारा दूर दराज़ नीड़ बना लेने के बाद,
जवाब देंहटाएंयथार्थ से लबरेज़ बेहतरीन कविता के लिये सुधा जी को बहुत बहुत बधाई।
वाह, बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंतरही की ग़ज़लें एक से बढ़ कर एक थी
जवाब देंहटाएंदोहराव व् एकरसता के उस प्रवाह के बाद सुधा जी की इस नज़्म ने सारे मज़े को चौगुना कर दिया... सुधा दीदी की कलम और आपकी प्रस्तुति को नमन.
ॐ
जवाब देंहटाएंसौ . सुधा जी को डा. ओम ढींगरा जी के साथ पहली बार देख रही हूँ -
ईश्वर सुधाजी को ,
उनके अगिनत प्रयासों को , उनकी भावना सभर लेखनी को
तथा रचनाधर्मिता को यूं ही प्रवाहमान रखें
ये बड़ी होने के नाते स स्नेह कह रही हूँ
सादर , स - स्नेह
लावण्या
तरही मुशायरे में तरही कविता बहुत खूब
जवाब देंहटाएंसुधा जी को बधाई
सुधाजी की लेखनी के तेवर हमें अस्खुद उस बहाव में ले जाते है जहाँ शब्द शब्द नहीं बलि एक प्रतिध्वनित गूँज बनकर रह जाते है.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति से सजा है आज यह मंच. शुभकामनाओं के साथ
सुधा जी ने शायद उन सब का दर्द ब्याँ किया है जो आज अपने बच्चों की झलक देखने को भी तरस गये हैं और ज़िन्दा रहने के लिये कोई रास्ता, कोई ज़ज़्वा तलाशते हैं कभी पृकृति मे कभी पशुपक्षिओं मे। सुधा जी की हर विधा पर बहुत अच्छी पकड है। उन्हें बहुत बहुत बधाई।
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