हम आप सब के प्रेम पियारे भभ्भड़ कवि भौंचक्के बोलिस रहिन । कल का दिन जो कुछ हुआ सो हुआ लेकिन वैसा कुछ भी आज नहीं होना चाहिये । कल बहुत लोग भंगिया पी पी के बहुत ऊधम मचायरहे । सो कल सारे दिन हमारा माथा का नाम कपाल टनटनाया रहा ।जवान छोकरे छोकरियां दिन भर इत्ती मस्ती किये कि बस । आज कुछ अच्छा होबे की उम्मीद हेगी । काय कि आज तो सबरे के सबरे बुढि़याए लोग आ रय हैं । जोन कछु बुढियाय नहीं लग रहे हेंगे तोन के बारे में जान लो कि वो सब ब्यूटी पार्लर में से आ रहे हैं । अपनी अपनी उमर घटवा के । कोनो के बोटेक्स के अंजिक्शन लगे हैं तो कोनों ने फेस लिफटवा करवाई है । कोनो कोनो ने तो .................. जाबे दो सेंसर हो जाएगा, हमारा ये जो है ये फेमिली शो है । एक्कोदम नीचे जो द्विजवा को फुटवा छपा रहिन उका देख के आपको समझ में आयेगा कि हम का कहत कहत छोड़ दिहिस रहिन । होली आय गइस रहिन । सो अब का करिस । खूब मौज मस्ती करिस । भांग तो दुइ दिन पहले की बात रहिन आज तो साक्षात ऊ का बारी है । ऊ का, समझ नहीं पडिस, अरे ऊ ही जेका सब लोग महुआ की सुपुतरी कहत रहिन । तो आज तो भैया जै बात जै बात होई के रहिस ।
आज के सगरे बुढऊ लोगों को परिचय भी संग में रहिस रहिन । सारे बुढ़ऊ बुढियाती उमर में गन्नाय रहे हैं । कोनो की भी मती पूछो सगरे के सगरे आग खाओ अंगारे @@@@ हो रहे है । कोऊ से कछु कहने जाओ तो जोगी रा सारारारा कह कह के होरी की आड़ में अपने मन की कर रहे हैं । सच कहा है किसी ने' होली में दो से बचो बूढा बच्चा जात' । बच्चा तो मान जाय है पर बूढा, ऊ तो ससुर तजरुबे वाला होत रहिस । ऊ तो अपनी उमर के आड में सबे कछु करबे चाही ।
होली है भई होली है बुरा न मानो होली है ।
केसरिया लाल पीला नीला हरा गुलाबी
सगरे लोग लुगाइन को होली की शुभकामनाएं, केसरिया होली है, लाल ललाई होली है, पीली पीली होली है, नीली नीली होली है, हरी हराई होली है, गुलो गुलाबी होली है । होली है भई होली है । होली है भई होली है ।
द्वजेन्द्र द्विज
ई मुटल्ली जोन आपको दिखिस रहिन ई सीधे पहाड से सीधे चल्ली आ रहि स रहिन, ई मुटल्ली जो है ई भी घजल लिखबे की शौकीन रहिस । आप ई की इस्टाइल पर भिल्कुल भी नहीं जाइस । बुढिया गई है पर इस्टाइल छोडबे की नहीं । किछु दिना पहले बुढिया का चिश्मा उतर गया । तो का भया सुसरी बिना चिशमा के भी घजल लिख रइ है और धना धन लिख रही है । अउर का परिचय दिया जाय । बस इत्ता सिमझ लो कि आप्पो आप को ही खूब बडी साइरा सिमझती है । का है कि अपने देस में गलतफहमी पे कोउ टैक्स जो नहीं है । तो आइये सुनते हैं बुढिया की घजल ।
   
होली है  यारो, मेरा  चश्मा हुआ गुलाबी     
‘सच्ची में’ कह रहा हूँ देखा-सुना गुलाबी     
केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी     
होली में रंग लेकिन सब पर चढ़ा गुलाबी     
तू है गुलाब जैसी , तेरी हर अदा गुलाबी     
तू इक  हवा गुलाबी, तू इक घटा गुलाबी     
होली में हो गया है मेरा हौसला गुलाबी     
मेरे लिए भी माँगो कोई दुआ गुलाबी     
अपने शबाब पर है अब तो हवा गुलाबी     
जा, जाम ला गुलाबी, मुझको पिला गुलाबी     
अब जब कि हो गई है सारी फ़ज़ा गुलाबी     
मेरी जान आके मुझसे चक्कर चला गुलाबी     
तेरी बेरुख़ी से मैं भी, मुरझा के रह गया हूँ     
आकर बरस तू मुझपर, मेरी घटा गुलाबी     
तू ‘Jet-black’ लेकिन रह-रह के सोचता हूँ     
किस झोंक में था मैंने तुझको कहा गुलाबी     
तेरे  सामने  मैं  सूखे  पत्ते-सा  काँपता  हूँ     
मुझे बख़्श, जा गुलाबी , मुझे छोड़ जा गुलाबी     
होली के दिन तो कोई ‘mono-colour’ नहीं है     
‘Multi-colour’ है दुनिया , सबपे फबा गुलाबी     
बाक़ी मेरे लिए भी ‘choice’ नहीं है कोई     
आँखें हैं ‘pink’ उसकी मैं भी हुआ गुलाबी     
सत्तर का हो गया पर बदला नहीं है ससुरा     
दादा भी बन गया है लेकिन रहा गुलाबी     
चाँटा जड़ा जब उसने आँखों में रंग नाचे,     
केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी     
वो भाँग की पिनक में था गुलबदन का साया     
उतरी जो भाँग उसकी , भैंसा मिला गुलाबी     
‘सज्जन’, ‘ख़याल’, ‘पंकज’, ‘नीरज’, ‘नवीन’, ‘सौरभ’,     
‘नवनीत’ ‘अर्श’, ‘राही’ सब पर चढ़ा गुलाबी     
‘वीनस’, ‘मधुर’, ‘सुलभ’, का ‘राजेन्द्र’, ‘नासवा’ का     
‘राजीव’ का, ‘उड़न’ का, चक्कर चला गुलाबी     
होली का है वो अन्धा, है हाल उसका मन्दा,     
जाओ निकालो, ‘द्विज’ को काँटा चुभा गुलाबी 
अरे दद्दा हम ई बतावा तोभूल ही गये कि बुढिया तो इंगरेजी की परफोसर है । मुंहजली देखो तो कैसे टकाटक इंगरेजी के शब्द फैंक रही है । बुढा गई है पर अभी भी गुलाबी चक्कर चलानें को दिल कूद कूद रहा है । कोनो भी कोइ दाद वाद नइ देगा इत्ती बुरी घजल पे । जो भी दाद देने की कोसिस करेगा ऊ के मुंह में दो किलो गोबर के कंडे जुल्मी सिपइया के हाथ से ठुंसवाये जाएंगे ।
सूचना - खबर आई रहिस है कि दुबई में रहबे बारे एक कोनो दिगम्बर नासवा के सामने बड़ी दिक्कत हो गई है । काय के दुबई की सरकार ने आर्डर दिये हैं कि जिसका भी जो भी नाम होगा वो अपने नाम के हिसाब से ही रहेगा । मतबल ये कि जेका नाम खुशबू है ऊका महकते रहना होगा। तो दिगम्बर नासवा के सामने परेसानी जो है वो आप उनके नाम का अर्थ निकाल के समझ सकते हैं । जिन किसी को इस मुश्किल का हल मिले वो अवश्य सूचित करें । सूचना समापत भई ।
मधुभूषण शर्मा मधुर
काय बुढऊ का एको बार मधु से काम नहीं चल रओ हतो जो तुम दो बार मधु लगा लिये । एको बारे आगे मधु और एको बार पीछे मधु । बुढापे में जे ही हो जाविस रहिन । अब कित्ती बार भी मधु लगा लो चाहे तो दो बार आगे और दो बार पीछे लगा लो पर किछु भी नहीं होने वाला । जब उमर का ही मधु सूख जाये तो नाम के मधु से का होविस रहिन । हमहू का है लगता रहो मधु मधु मधु ।
   
होली का आज दिन है, मौसम हुआ गुलाबी     
हुड़दंग वो मचाओ, कर दो फज़ा गुलाबी     
केसरिया लाल पीला नीला हरा गुलाबी     
रंगे-रदीफ़ में हो हर काफिया गुलाबी     
होली का ये मिलन तो कुछ हो गया गुलाबी     
आगे भी क्या चलेगा ये सिलसिला गुलाबी     
कुछ यूं हुए हैं अपने मनमोहना गुलाबी     
उन्नीस छू लिया तो हर हादसा गुलाबी     
होली का आज दिन है, मौसम हुआ गुलाबी     
हुड़दंग वो मचाओ, कर दो फज़ा गुलाबी     
केसरिया लाल पीला नीला हरा गुलाबी     
रँगे-रदीफ़ में हो हर काफिया गुलाबी     
होली का ये मिलन तो कुछ हो गया गुलाबी     
आगे भी क्या चलेगा ये सिलसिला गुलाबी     
कुछ यूं हुए हैं अपने मनमोहना गुलाबी     
उन्नीस छू लिया तो हर हादसा गुलाबी     
सरकार भी है सहमत दो दिल अगर हैं सहमत     
हो के रहेगी अब तो आबो-हवा गुलाबी     
करती है सी-बी-आई हल्के से क्या इशारा     
माया हो या मुलायम, हर चेहरा गुलाबी     
मोदी का देख जादू हो कांग्रेस तो पागल     
भगवां से हो रही पर क्यूं भाजपा गुलाबी     
जीजा के संग साली जब खेलती है होली     
फिर हर ख़ता गुलाबी, फिर हर सज़ा गुलाबी     
चमका दिए हैं उसने होली के रंग सारे     
गालों पे छा गयी जो शर्मो-ह्या गुलाबी     
रंगीन हैं, 'मधुर' हैं, मेरी तमाम राहें     
मंज़िल ने खुद किया है यूं रास्ता गुलाबी 
ओय होय का शेर हेडा है सहमती से गुलाबी गुलाबी होने का । बुढापे में जे ई तो मजा है किछु करो न करो पर तसव्वुर तो खूबेकर सकत हो । जे बात और जोड लो कि बस तसब्बुर ही कर सकत हो । बुढाप में भगवा रंग की बजाय गुलाबी हो रय हो । काय के मधुर और काय का मधु । बुरी गजल, जो लोग कान से बहरे होंऔर जिनने किछु भी नहीं सुना हो वो दाद दे सकत हैं । और किसी ने दाद दी तो ऊ के दोनों कानों में दो दो बूंद कडवा तेल डलवाया जायेगा, दो बूंदजिंदगी की ।
सूचना - कनाडा की गवरमेन्ट ने अब एकनया कानून बनाया है कि अब वहां पर रहेन वाले सभी चांदुर रेलवे ( गंजे ) को दुई दुई घंटा खरबूज के खेत में खडा रहबे का परी । का है कि ऊ से खरबूज में चमक आयेगी । का है कि चंदिया को देख के खरबूजा रंग बदलता है । ई घोष्णा से हमारे बीच के निरमल सिद्धू खुस भी हैं और परेसान भी । खुस काहे हैं और परेसान काहे ई आप गेस लगाइसे । सूचना समापत ।
मंसूर अली हाशमी  
ई इनका जोडे से खिंचा फोटो रहिस । तन्निक गौर से तो देखिये । कोनो बात निजर आई । नइ आई कोई बात नहीं । सोचते रहो । ई फोटो अपनी वरिष्ठ इमराना हाशमी, भूला किछु और नाम है । तो जो भी नाम हाबे हमका का है । नाम में का धरो है । का नाम में हाशमी लगा होने से सबे कोई इमरान हाशमी बन जाबे । इमरान हाशमी बनने के लिये कलेजा चाहिये सात सात और आठ आठ फेफडे । 
केसरिया, लाल, पीला,  नीला, हरा, गुलाबी    
जिस रंग में तुझको देखा, मन हो गया गुलाबी.     
अब कौन रंग डालू तू ही ज़रा बतादे     
केसरिया,लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी ?     
होली से पहले ही है छायी हुई ख़ुमारी     
हर सूं ही दिख रहा है नीला,हरा, गुलाबी.     
''केसरियालाल'', पीला; क्यूँ होता जा रहा है,     
''सेठानी'' पर सजा जब नीला, हरा, गुलाबी.     
तअबीर मिल रही है, रुखसार से हया की    
आईना हाथ में और चेहरा तेरा गुलाबी     
केसरिया, लाल, नीला; अब खो रहे चमक है     
सब्ज़ा* हुआ है पीला , 'मोदी' हुआ गुलाबी.  
सच बात तो यह है कि हमारे 'धर्म-निरपेक्ष' देश में होली खेलने का अवसर ही नहीं मिला !  बचपन में अपने बंद मोहल्ले में 'सादे पानी' से ही होली ज़रूर खेली.  क्योंकि दूसरी तरफ 'गंदी होली' [ गंदी इसलिए कि उसमे रंगों के अलावा 'गौबर' और 'गालियाँ' भी शामिल होती थी] खेली जाती थी. बच्चों को प्रदूषण से बचाने का ठेका तो हर समाज लेता ही है ! फिर किशोरावस्था आते-आते हम ज़्यादा अनुशासित हो चुके थे, सो सफ़ेद कपड़े पहन कर होली के दिन भी निर्भीक घूम लिया करते थे- यूं 'दाग-रहित'  रह लिये. जवानी में आर. के. स्टूडियो की होलीयाँ देख-देख कर [चित्रों में], लाड़ टपकाते रहे……….     
और अब बुढ़ापे में तो……।     
क्या लाल, कैसा पीला, केसरिया क्या है नीला ?     
सब कुछ हरा लगे है, सावन गया 'गुलाबी' !     
''केसरियालाल'' पीला, कुरता भी है फटेला,     
'नीला' हरी-भरी है, हर इक अदा गुलाबी.     
फिर भी "होलीयाने" की कौशिश कुछ इस तरह की है :-     
टकता है छत से बाबू, चेहरे पे है उदासी,     
खाए गुलाब जामुन  नीचे गधा गुलाबी.     
पिचकारी छूटती है, किलकारी फूटती है,     
ढेंचू का सुर अलापे , देखो गधा गुलाबी.     
[ठीक से तो पता तो नही पर होली के दिन गधों को कुछ विशेष महत्व प्राप्त हो जाता है, इसीलिए गधे महाराज की मदद ले ली है कि होली की इस गोष्ठी में शायद प्रविष्टि मिल जाये.     
पुनश्च :    नीचे से १४ वीं पंक्ति में 'लार' की जगह "लाड़" टपक गयी है ! कृपया टिस्यू पेपर से साफ़ करले ! धन्यवाद. 
जब आप को ही तरही में प्रविष्टि मिल गई तो आपको ये तो समझ ही जाना था कि तरही में गधों के आने पर कोई प्रतिबंध नहीं है । ऊ पे अलग से गधे का नाम लेने की कोनो जरूरत नहीं है । एक बात और कहिस का चाहे ऊ ये कि बुढापे में ढेंचू का सुर मत लगाओ बुढिया, पता चलेगा कि कहीं का सुर कहीं लग जाय का रही । गंदे नाले का कसम खाय रही इत्ती बुरी गजल हम अपनी पूरी जिन्नगी में नहीं सुनी । जोन भी इस गजल पे दाद दे ऊका काली रात में खुजली वाले काले कुत्ते की सगी पत्नी काटे ।
सूचना- अब्बी अब्बी सूचना अई है कि बत्तीसगढ़ में एक डाग-टर को पुलिस ने धर पकडा है । सूचना मिली है कि डागटर का नाम कोनो संजय फंजय दानी है । पुलिस से पिरापत जानकारी के अनुसार डाक्टर मरीज को आपरेशन से पहले अपनी गजल सुना कर बेहाश कर रहा था । जब पुलिस वहां पहुंची तो डागटर एक मरीज को गजल सुना रहा था । पुलिस वाले पहले बेहोश हुए और बाद में उन्होंने डाकटर को पकडा । सूचना समापत भई ।
नवनीत शर्मा      
शकल सूरत से कोनो भी बिल्कुल न समझे की ये बुढिया नहीं  है। हम पहले ही बता दिहिस रहिन कि इध्र कुछ बुढिया लोग किछु किछु  करवा करवा के आइस रहिन । ई बुढिया भी बहुत किछु छिपा के आई है । कोनो हमको बातइस रहिन कि ई बुढिया कोनो पत्तरकार वत्तरकार है । होइबे करी हमका का । अपनी पत्तरकारी उते ही रखियो इते तो भभ्भड की पत्तरकारी चले है । 
चाँटा भी क्या गुलाबी, घूँसा भी क्या गुलाबी    
पड़ते दो हाथ  सूरज ,   तारा दिखा गुलाबी     
देखा है दिल ने जबसे चेहरा तेरा गुलाबी     
फिर बज उठा है दिल में इक दिलरुबा गुलाबी     
मैं रंग ले के उनको रँगने गया तो बोलीं     
‘चल फूट ले यहाँ से, आया बड़ा गुलाबी’     
बेशक मैं साठ का हूँ मुझपे भी रंग फेंको     
वो दौर ही अलग था जब मैं भी था गुलाबी     
उसको किसी कलर की होगी भी क्योंग जरूरत     
गुस्से में लाल रुख़ है,  वैसे भी था गुलाबी     
होली की धुन में हमने मुखड़ा ही गुनगुनाया     
कोरस में फिर गधों ने मंज़र किया गुलाबी     
कनटाप इक दिया है उनके ब्रदर ने जबसे     
खाना न खा सके हैं जबड़ा हुआ गुलाबी     
कानों में, नाक में भी, बनियान तक हमारी     
केसरिया लाल पीला नीला हरा गुलाबी     
दाँतों का ‘सेट’ दिखा कर बोले बुज़ुर्ग हमसे     
है ये ‘मेमरी’ पुरानी , हुआ मैं भी था गुलाबी'     
तुमने तो कल कहा था कोई नईं है घर पे     
टपका ये फिर कहाँ से ‘भइया’ तिरा गुलाबी     
दीवार फाँदनी थी उनके मकाँ की यारो     
लेकिन फिसल गया तो उतरा नशा गुलाबी 
काय के जब भी किसी को ठुकवाना होता है तो हम अपना भैया को अलमारी में छिपा देते हैं । और बाद में हमे अपने आसिक को जूते से ठुकते हुए देख भोत मजा आवत है । सो आप ठुके । मगर आपके गले की कसम गजल तो इत्ती बुरी लिखी है इत्ती बुरी लिखी है कि अक्षर अक्षर में से बास आ रही है । कोई भी दाद देने की कोसिस न करे । कोई भ पत्तरकारी के डर में जदी दाद देगा तो ऊका होली की गोद में प्रलाद की जगे पे बिठाया जायेगा ।
सूचना- महिन्द्रा एंड महिन्द्रा कम्पनी ने अपने यहां पर काम करने वाले मुकेश कुमार तिवारी की तनखा दुगनी कर दी है और सेलरी भी बढा दी है वेतन बढाने पर भीविचार चल रहा है । इनको अब फेक्ट्री में बैठ कर अपनी भोत बुरी बुरी गजलें सुनानी पडती हैं । जिससे मजदूर तेजी से काम करते हैं । काय कि जल्दी से काम करके....... भागो । सूचना समापत भई ।
नीरज गोस्वामी     
जिनके बारे में आप सोच रहे होंगे कि जे माथे पर इलग से एक काली लट किधर से आई हे । तो जे जो काली लट है बुढिया के माथे पर जे तो काले करमों का परिणाम है । जे काले कुकर्म कभी भी दबते नहीं है । किसी न किसी उमर में फूट के बाहर आ ही जाते हैं । इ काली लट जो है इ सारी कहानी कह रही है । 
केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी    
सारे लगा के देखे, तुझपे खिला गुलाबी     
रहता था लाल हरदम, दुश्मन के खून से जो  
होली में प्यार से वो, खंज़र हुआ गुलाबी     
काला कलूट ऐसा की रात में दिखे ना     
फागुन में सुन सखी वो, लगता पिया गुलाबी     
आँखों में लाल डोरे, पावों में हल्की थिरकन     
तू पास हो तो मुझ पर, चढ़ता नशा गुलाबी     
पैगाम पी का आया, होली पे आ रहे हैं     
मन का मयूर नाचा, तन हो गया गुलाबी     
कल तक सफ़ेद झक थी, जुम्मन चचा की दाढ़ी     
काला किया लगा तब, है मामला गुलाबी     
होली पे मिल के 'नीरज' इक दूसरे को कर दें     
केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी 
इमान से बुढिया ने अजुन तलक इत्ती बुरी गजल कभी नहीं सुनाई थी । बुरी तो पेले भी सुनाई पर इत्ती बुरी तो कोइ कदी नी थी । अइसन लगविस रहिन जइसन कि कोनो नीम की पत्ती को करेले का रस में मिला कर कुनैन का पानी छिडक छिडक के लिखी हो । दाद देने की कोनो जिरूरत नहीं है बुढिया की गजल पे । केवल दाद देने के लिये हमने किछु किन्नर बुलाय हैं जो आय हाय कह के दाद देंगे । सरोता में से कोई भी दाद देगा तो उसको भी किन्नरों में शामिल कर दिया जायेगा ।
सूचना- पाकिस्तान की सरकार ने भारत के इंजीनियर धर्मेंद्र कुमार सिंह की सेवाएं मांगी है । पाकिस्तान ने भारत की सीमा पर एक बडा बांध बनाने के लिये ये सेवाएं मांगी हैं । गुप्तचर सूत्रों के अनुसार बांध बनते बनते ही टूट जायेगा । और पाकिस्तान का मकसद पूरा हो जायेगा । सूत्रों के अनुसार इनके बनाये बांध उदघाटन के पहले ही धूम धडाम हो जाते हैं । पाकिस्तान के प्रस्ताव पर सरकार विचार कर रही है । कुछ लोगों का कहना है कि दे दो बला टले । सूचना समाप्त हुई ।
राकेश खंडेलवाल  
जे डुकरिया सीधे अमरीका से आ रइ हेगी । अमरीका में दो रंग के लोग रेते हैं । जे डुकरिया दूसरे रंग की है । कुछ सूचना मिली है कि जे डुकरिया ओबामा की साली है । कुछ का जे भी केना है कि ओबामा की भूतपूर्व प्रेमिका की सगी लडकी है ये । परिचय तो भोत बडा नहीं है पर इत्ती सी बात  समझ लो कि पूरे अमरीका में इस समय बुढिया का खौफ है । जे लम्बे लमब्े गीत सुना सुना कर पूरे अमरीका को दहशत में डाला हुआ है डुकरिया ने । 
केसरिया    लाल  पीला   नीला   हरा   गुलाबी    
ये तरही का हमको मिसरा  दिखता नहीं ज़रा भी     
आँखों पर इक चश्मा जाने कैसा  चढ़ा हुआ है     
सूखा गीला भूरा काला थी क्या   कहीं  खराबी     
होठों पर तुम टाला जड कर कैसे बैठ गए हो     
हमने तो ख़त तुमको भेजा, हर इक बार जबाबी     
तीसमारखां गज़लें अपनी भेजेंगे तरही में     
किन्तु एक भोपाली होगा सौ दो सौ पर भारी     
सुनो  अदब से बा मुलाहिजा होशियार हो जाओ     
खोपोली का दादा आता ले कर ठाठ नबाबी     
जय हो होली की खुनक की . जनाब पंकजजी का पत्र आया और साथ ही फोन भी ठकठका दिया कि मियाँ  होली आ रही है तो ग़ज़ल लिखो और तो और अल्टीमेटम भी दे दिया की तीन दिन में सबको लपेट कर रख देंगे इसलिये अभी बिना एक मिनट की देरी किये लिख कर भेजो..हमने उनको साफ़ साफ़ मना कर दिया की ग़ज़ल वज़ल या हज़ल लिखना हमारे बूते का नहीं है तो दूसरी गोली दाग दी की ठीक है-- तरही में ग़ज़ल लगाने से पहले जो हम उठा पटक करते हैं वैसा ही कुछ लिख डालो. अब मरता क्या न करता वाली नौबत आ गई साहब. हम्ने तय किया कि माफ़ी माँहने  हम सीधे सीहोर ही पहुँच जाते हैं. इस बहाने माफ़ी माँगने के साथ साथ थोड़ा ताजा ताजा गाजर का हलवा भी उड़ा लिया जायेगा. और कोई दूसरा रास्ता बचा भी तो नहीं. हमको न तो गज़ल लिखना आता है न ही लेख न गद्य. हमने आज तक तो कुछ लिखा नहीं. खूब समझाया  भाई साहब  अपने सौरभ हैं, वीनस हैं, अंकित-प्रकाश,धर्मेन्द्र,गौतम, सुलभ, सौरभ, विनोद, द्विजजी,दिगम्बर,राजीव , शार्दुला, कंचन, रजनी सुमित्राजी, इस्मताजी के साथ साथ और भी धुंआधार शायर हैं तरही के लिये. निर्मल सिद्धूजी अभी शीत समाधि तोड़ने  वाले हैं और निर्मलाजी अपनी कलम की धार घिस घिस कर पैनी कर रहीहैं, और फिर---- अपने मियाँ भोपाली एक साथ इकत्तीस गज़लें लेकर किनारे पर मौक़ा तलाश रहे हैं तो भाई नीरज जी सचिन तेंदुलकर की तरह अपनी कलम से हर घंटे एक ग़ज़ल बाउंड्री की तरफ फेंक रहे हैं तो हमें बख्शिये. 
केसरिया लाल पीला नीला हरा गुलाबी   
रंग कत्थई जामुन वाला,अनन्नास,उन्नावी    
भूरा,धानी,चटकीला सा चाकलेट असमानी    
तोतई मटमैला कजरारा और रंग पुखराजी    
सभी रंग चढ़ गये हुई फिर काया जरा नबाबी    
केसरिया लाल पीला नीला हरा गुलाबी 
मौसम की मस्ती रंगों पर तन पर मन पर छाये   
फ़ागुन चुहल करे जेठों से भी भाभी कहलाये    
सुरे बेसुरे राग सभी गूँजें पूरब पश्चिम में    
मस्त हुआ नन्देऊ सेड़ का पंचम सुर में गाये    
सेवन करे भांग का पैमाने को छोड़ शराबी    
केसरिया लाल पीला नीला हरा गुलाबी 
शिवबूटी को घिस कर घोली कुल्लड़ में ठंडाई   
थाप चंग पर देते गाती इक टोली फ़गुनाई    
चिलम चमेली की बाँहों में मन खाये हिचकोले    
रंग डाल कर भिगो ना तन को चूनर चोली बोले    
हलवाई की भट्टी में  बाकी ना राख जरा भी     
केसरिया लाल पीला नीला हरा गुलाबी 
शाखा पर लेते नव पल्लव नींद छोड़ अंगड़ाई   
अम्बर से पूनम ने भर कर कलश सुधा बरसाई    
चले खेत से खलिहानों से स्वर्णमयी कुछ बूटे    
धानी चूनर गेंहू की बाली के सँग लहराई    
गंगा के संग मुदिन ह्रदय से नाचे झेलम रावी    
केसरिया लाल पीला नीला हरा गुलाबी
ऐ मैया ऐ माताराम, नेक छोटो कर दे जिरा इस गीत को । काय के अमरीका वाले तो झेलबे के भोत मिजबूत होते हैं पर इधर अपने इधर इत्ती मजबूती नहीं हेगी । काय री परमेशरी इत्तो बडो गीत काय लिखे है री । धे ठकाठक धे ठकाठक, गीत है कि मालगाडी । एक डिब्बा फिर एक डिब्बा । भभ्भड कवि ई घोषित करते हैं कि इत्ते घटिया और टुच्चे गीत पर कोई भी वाह वाह करबे के लिये अपना सिरीमुख नहीं खोले । जिसने सिरीमुख खोला उसका कान में पूरा का पूरा इनका किताब अंधेरी रात का सूरज उतार दिया जायेगा ।
सूचना- कल के अंक में श्री विनोद पांडेय ने अपनी एक टिप्पणी में भभ्भड को कुशल कवि, साहित्यकार, गजलकार और जाने कौन कौन सा ऊल जलूल बात कही है । होली के अवसर पर इस प्रकारी की ऊल जलूल बातें बिल्कुल भी बरदास्त नहीं की जाएंगी । विनोद पांडेय को तीन गिलास भंग की पिलाई जाये ताकि वे इस प्रकार की ऊलजुलुल बातें बंद करें । सूचना समापत भई ।
समीर लाल ’समीर’
झिंगा लाला झिंगा लाल हुर्र हुर्र, झिंगा लाला झिंगा लाला फुर्र फुर्र । हचाबो मसाबो मसाबो । क्या आपको समझ में नहीं आ रहा । ये दरअसल  कवि की भाषा में बात कीजा रही थी । ये जो डोकरी आपको घूंघर वाले बाल लिये दिखाई दे रही है ये किरजिंगलिप्पा के आदिवासी इलाके से आई हे । डोकरी के उमर पर ना जाइये । बात की बात में उडन तश्तरी की तरह सर्र से जोगीरा सारारा करते निकल जाती है ।    
केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी    
मौसम हुआ हैं रंगीं, बादल हुआ गुलाबी     
खुश्बू सी है फिज़ा में , ये कैसी बहकी बहकी  
कोई गुलाब है के, गजरा तेरा  गुलाबी  
त्यौहार होली का है, यूं चढ़ रही खुमारी   
अंखियन की डोर देखी,  कजरा भया गुलाबी     
फागुनिया प्रीत का रंग , छिपता नहीं छिपाये     
सांवरिया साजना भी  भंवरा बना गुलाबी     
छन्ना के रुठ जाना, छन्ना के मान जाना     
कहता समीर इसको नखरा तेरा  गुलाबी 
भोत बुरी गजल हे रे भैया भोत बुरी गजल । इत्ती बुरी तो अपने पूरे इतिहास में नहींलिख हो गी । इत्ती बुरी की भभ्भड़ कवि पूरी गजल सुनने के दौरान दो बार बाहर जाकर कानों से उल्टियां करके आए हैं । एक बार इधर के कान से और दूसरी बार उधर के कान से । अभी तक कान मिचला रहे हैं भभ्भड के । तो अब जिनका भी दाद देने का है वो समझ लें कि उनको होली से रंग पंचमी तक ये ही गजल सुनाई जायेगी ।
सूचना - कल के अंक पे अपनी कमेंट में सौरभ पांडेय लिखविस रहिन कि सूचनवा के बाद का टुनटुनी-टुनटुन... अने टिंगटौगठुस्स को काय ला म्यूट करे बैठे हैं, भभ्भर कवीजी ?? हर सूचना का पाछे टिंगटौंगठुस्स.. टिंगटौंगठुस्स.. का बजना बनता था न । ई में हमें बाद का ठुस्स तो सिमझ में आ रहिस किन्तु ऊ जो पहिले का टिंगटौंग है ऊ हमार कपाल में नहीं घुसिस । कोनो को सिमझ में आय रहिस तो भभ्भड को सिमझाने की किरपा करें । सूचना समापत भई ।
सौरभ पाण्डेय
ई इल्लाहाबादी अमरूद हैगा रे भैया । लोग कहिस रहिन कि इल्लाहाबादी अमरूद अंदर से लालम लाल रहिस, लेकिन किन्तु परंतु ये अमरूद तो बाहर से भी लाल गुलाबी हो रहिस रहिन । बुढोती में बुझौती लौ की फडफडाहट का रंग किस दिना से गुलाबी हो रहिन है । सूचना ये भी है कि इ जो बुढिया है ई इल्लाहाबाद के किसी नइ उमर के लरिका के चक्कर में अपना बुढापा खराब कर रही है । राम बचाये ।
कचनार से लिपट कर महुआ हुआ गुलाबी    
फिर रात से सहर तक मौसम रहा गुलाबी     
बेदम हुए बहाने बेबाक पैंतरों से     
लय साधता खटोला, होता गया गुलाबी     
करने लगीं छतों पर कानाफुसी निग़ाहें.. .  
कुछ नाम बुदबुदाकर, फागुन हुआ गुलाबी     
इस क्रम को याद रखना, ये दौर प्यार के हैं -     
केसरिया.. लाल.. पीला.. नीला.. हरा.. गुलाबी.. .!!     
उसने किया इशारा तो साथ हो लिए हम     
भागे मग़र पलट कर वो शख़्स था गुलाबी     
ऐसी चढ़ी फगुनहट, संसद पढ़े जोगीरा     
आलाप ले रहा है, मनमोहना गुलाबी..     
वो फूल रख गयी है टेबुल पे, पर करूँ क्या  
दफ़्तर ने आज ही तो चिट्ठा रखा गुलाबी .. 
हें...... बुढिया सरम कर सरम । काहे को कचनार और महुआ की आड में अपने बुढाते हुए दिल का गुबार हेड रही है । काय का हम को नहीं पता की इलाहाबाद के उस लरिके का नाम कचनार सिंह केसरी है । ऊ कचनार है तो हुइबे करी पर तू कब से महुआ हो गई । बासी बंदगोभी अपने को महुआ कह रही है । और गजल तो भोत बुरी के दी हेगी । काय लरिका ने किछु नइ सिखायो । कोनो को भी दाद देने की जिरूरत नहींहै । लरिका आयेगा तो खुद ही सबके बदले में बुढिया को जूतन से दाद देगा ।
सूचना- आज भभ्भड कोई भी मुंहझौंसे को आदरणीय-फादरणीय, श्री-फ्री, जी-बी, साब-वाब आदि आदि नहीं लगा रहे हैं । का है कि कल प्रकाश अर्श ने अपनी टिप्पणी में भभ्भड कवि को अत्यंत आदर के साथ भभ्भड साब कह के पुकार लिया था । होली के दिनों में भभ्भड को आदर देने और लेने की बिल्कुल आदत नहीं है । कल साब सुनने के बाद भभ्भड की घुटने की धड़कन बढ़ गईं थीं । बडी मुश्किल से कंट्रोल हुई हैं । कोई भी आज आदर की बात नहीं करे । सूचना दी एंड ।
शेषधर तिवारी
नाम तो धरा हेगा शेषधर किन्तु एक मक्खी भी सिर पर बैठ जाये तो पूरा देह का ब्रहमांड हिल पड़े । डोकरी तरही में कभी कभी आती है ।इस बार तो भोत दिन के बाद चक्कर लगा है । मैंने पूछा कि किधर गई हती तो बोली की दूर के रिश्ते के बेटे की शादी में गई थी । मैंने पूछा दूर के रिश्ते का बेटा । तो बोली मेरे चौथे पति की पांच वी पत्नी के तीसरे पति का बेटा था । जोगीरा सारा रा रा ।
   
सूरज उगा है लेकर ऐसी छटा गुलाबी     
दुनिया के सर पे जैसे सेहरा सजा गुलाबी     
कर दे मेरे मसीहा कोई कमाल ऐसा  
इठला के बोले हर शै इक जाम ला गुलाबी     
टकरायेंगे परिंदे सर आज आसमां से     
है इस कदर फजां पर नश्शा चढ़ा गुलाबी     
बचना कि हो न जाए तकसीर कोई मुझसे     
चेहरा हर एक मुझको दिखने लगा गुलाबी     
मिल जाए आज मौक़ा तो मैं गले लगा लूं     
मुझसे लिपट के होता है देवरा गुलाबी     
तख्मीस हो न जाए हर शेर इस ग़ज़ल का     
होली के रंग में हर मिसरा हुआ गुलाबी     
सच है ये मैं दियानतदारी से कह रहा हूँ     
ज़ह्राब लब का मंज़र दिखने लगा गुलाबी  
हालाते जाँकनी में लेटे बुज़ुर्ग की भी     
यादों में हंस रहा है इक हादसा गुलाबी     
जिस रंग में भी चाहे मुझको तू रंग देना     
“केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी”     
पूछा जो दोस्तों से क्या रंग भंग का है     
इक घूँट पी के बोले "अब हो गया गुलाबी"     
हो रंग कोई सबकी अपनी कशिश है लेकिन     
मखसूस कुछ है इसमें जो है जुदा गुलाबी     
ऐजाब हो रहा है हर इक हसीं को खुद पर     
यूँ लडखडा रहे हैं मर्दाज़्मा गुलाबी  
माइल ब औज है अब, नश्शा ये भंग का है     
दिखने लगेगी सब को सारी फ़ज़ा गुलाबी     
बदख्वाह है परीशां दे कैसे बद्दुआयें  
जब बद्दुआ भी निकले बनकर दुआ गुलाबी     
दौराने रंगपाशी पूछा जो उनकी च्वाइस  
नज़रें मिला के बोले वो बरमला "गुलाबी" 
खतम हो गई गजल, सचमुच खतम हो गई गजल । कोई जाकर पक्का करो कि खतम हो गई है । मुच्ची में खतम हो गई हो तो भभ्भड कवि नींद खतम करके उठ जाएं । किसी डाक्टर ने परचा लिख दिया है इनको कि एक गजल सुबह एक दोपहर और एक शाम को लिखना है । और हर गजल में तीन सौ अठहत्तर शेर होना कम्पलसरी है । इत्ती बुरी गजल सुनने के बाद भभ्भड के लिये भांग पीना जिरूरी हो गया है । इस बीच में कोई भी दाद नी देगा । जो दाद दे उसको कबरी बिल्ली की कसम ।
सूचना - कल की पोस्ट में बुढऊ तिलक राज कपूर अपना भेजे का कपाल घुसा कर एक टिप्पणी करी रही कि केवल एक ही बहर में हंसना है । ऊ टिप्पणी को बिल्कुल ध्यान नहीं दिया जाए । आप अपनी मन मर्जी की बहर में हंस सकते हैं । भीनस केसरी जिस बहर में हंसा है ऊ भी चलेगा । जे में भी आपको फेफडा परमीशन दे ऊ बहर में हंसे । सूचना समापत भई रही ।
तिलक राज कपूर      
जे ब्बात, बुढिया को देखो  तो सही । ससुरी मध्यप्रदेश की चक्की का आटा खा खा के बुढापे को रोके हुए है । मुस्कुराहट पे तो जैसे टैक्स ही लगा हो । कुछ दबी सी कुछ खिली सी । जे बात कही जाती रही है कि जे जो मुसायरा है इसमें कोई भी लिखी हुई गजल नहीं पढेगा । तो हाथ में जो कागज पत्तर है ऊ फैंक दिया जाए । 
हास्य  ग़ज़ल-1    
होली की मस्तियों में डूबे चचा गुलाबी     
घर से चलें हैं जैसे इक मनचला गुलाबी।     
पतली कमर हिली तो ठुमका लगा गुलाबी     
टपके जो दॉंत निकला मुँह पोपला गुलाबी।     
चाची मना रही हैं होली अलस्सुँबह कल,     
ये जानकर चचा को सपना दिखा गुलाबी।     
पगड़ी सजी चचा की होली के रंग लेकर     
केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी।     
निकले  चचा गधे पर उल्टी  दिशा में बैठे     
चाची ने जब ये देखा चेहरा हुआ गुलाबी।     
पिचकारियॉं लिये सब छज्जे भरे हुए थे     
चाची चचा को सबने, मिलकर किया गुलाबी।     
चाची चचा मिलन से, छाया सुरूर ऐसा     
रंगीन थी दुपहरी, सूरज ढला गुलाबी।     
हास्य ग़ज़ल-2     
बीबी ख़फ़ा हुई तो, जीवन हुआ गुलाबी     
चर्चा मेरा नगर में होने लगा गुलाबी।     
सारी हसीं नगर की, चक्कर लगा रही हैं     
ऐसे में हो न जाये, हमसे ख़ता गुलाबी।     
होली की दी इज़ाज़त, तो रंग यूँ लगाया     
मेरे अधर को छूकर उसने किया गुलाबी।     
चेहरे पे रंग मेरे उसने लगा के बोला     
ये हाथ रुक न पाये, सर हो गया गुलाबी।  
होली पे ये लिपिस्टिक काजल बिके धड़ाधड़     
केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी।     
बोतल चढ़ा के मुझपर इल्ज़ा म रख दिया है     
सर चढ़ के बोलता है तेरा नशा गुलाबी।     
देखा उदास उसको तो वैद्य ने बताया     
ये रोग है गुलाबी, इसकी दवा गुलाबी। 
ग़ज़ल-3  
वीरान जि़न्दगी में कुछ भी न था गुलाबी     
आहट सुनी तुम्हाबरी सब कुछ हुआ गुलाबी।     
रंगीनियॉं लिये है पतझड़ के बाद फागुन     
टेसू खिला हुआ ज्यूँ , केसर मिला गुलाबी।     
रिश्ते बदल रहे हैं पल-पल में रंग कितने     
केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी।     
गेसू में रंग काला भरकर खुदा ने सोचा     
गालों में क्यां भरूँ अब, फिर भर दिया गुलाबी।     
मदिरा का रंग क्या है, किसको दिखा बताओ     
ऑंखों का रंग लेकिन सबको दिखा गुलाबी।     
तू है कि संग-ए-मरमर सा जिस्म इक मुजस्सम     
लेकर गुलों की रंगत जो हो गया गुलाबी।     
बिखरी है राह पर जो, उस धूप से बचा कर     
झुलसा न दे कहीं ये, चेहरा तेरा गुलाबी।  
बस तीन ही गजल.... काय और नहीं लिखीं । और लिख लेती बिन्नो । काय तीन से तेरो तो किछु भी नइ होने बारो । पांच सात आठ किछु और लिख लेती । बुढापे में भी आदत नहीं छूट रही है । आपके गले की सौं जिनने भी तीनों गिजलें पूरी सुनी हैं वो हाथ ऊपर कर दें । उन सब को अलग से सम्मान किया जायेगा । भभ्भड़ कवि घोसित करते हैं कि भले ही पहली गजल खराब थी लेकिन दूसरी उससे भी खराब थी । हां ये बात अलग है की तीसरी दोनों से और ज्यादा खराब थी । कुल मिलाकर बात ये हुई कि तीनों ही खराब थीं । दाद देने वाले को @@@@###### कम लिखा ज्यादा समझना । 
सूचना- @@@@###### #####@@@@ #####@@@@@ @@@@#### #####@@@@ @@@@#### @@@@@##### ##$$#### @@@@@### @@@##### $$$$$##### सूचना समाप्त हुई ।
नवीन चतुर्वेदी
इत्ते सारे माइक, काय का एक से काम नहीं चल रओ थो । अच्छा भोत तरीकेसे बोलना हेगा । एक माइक पे दोहे, एक पे छंद एक पे गजल और एक पे गीत । का है कि अलग अलग माइक से बोलने में अलग अलग प्रभाव आता है । एक ही माइक और एक ही मुंह से श्रोता बोर हो जाता है । अलग अलग तरीके से बोर करना हो तो माइक भी अलग अलग होना चाहिये ।
   
चूनर पे तक चकत्ता इत्ता बड़ा गुलाबी     
कहने लगीं सहेली, वो कौन था? गुलाबी     
कैसे बताए सब को, थी सोच में गुलब्बो     
नज़रें चुरा के बोली कुछ लोच में गुलब्बो     
होली का पर्व है सो, पुतवा रही थी घर को     
मिस्टर ने थामी कूची, मैंने गहा कलर को     
दीवार पुत चुकी थी, दरवाज़ा रँग रहे थे     
ठीक उस के पीछे सखियो कुछ वस्त्र टँग रहे थे     
मिस्टर तपाक बोले, इन को हटा दो खानम     
मैंने कहा सुनो जी, तुम ही हटा दो जानम     
कुछ और तुम न समझो, मैं ही तुम्हें बता दूँ     
मैं समझी वो हटा दें, वो समझे मैं हटा दूँ     
दौनों खड़े रहे थे, जिद पे अड़े रहे थे     
दौनों की जिद के चलते कपड़े पड़े रहे थे     
आगे की बात भी अब तुम सब को मैं बता दूँ     
दौनों ने फिर ये सोचा, चल मैं ही अब हटा दूँ     
यूँ हाथ उठाया उन ने, इत मैं भी मुड़ चुकी थी     
कब जाने सरकी चुनरी शानों पे जो रुकी थी     
फिर जो बना है बानक कैसे बताऊँ तुमको     
शब्दों से सीन सारा कैसे दिखाऊँ तुमको     
हेमंत ने अचानक बहका दिया था हमको     
कुछ ग्रीष्म ने भी सखियो दहका दिया था हमको     
बरसात की घटा ने दिखलाया रंग ऐसा     
कुछ था वसंत जैसा और कुछ शरद के जैसा     
कर याद फिर शिशिर को दौनों हुए शराबी     
इस वास्ते चकत्ता चूनर पे है गुलाबी     
इस वास्ते चकत्ता चूनर पे है गुलाबी     
इस वास्ते चकत्ता चूनर पे है गुलाबी 
छुट्टन से छमिया ने कहा छिटके मत छोकरे नैन लड़ा ले    
फूल सजा गजरे में गुलाब का इत्र लगा कर मूड बना ले     
नौकरिया ने शरीर में जंग लगा दई है तो उपाय करा ले     
चंग बजाय के रंग उड़ाय के भंग चढाय के जंग छुड़ा ले 
इत कूँ बसन्त बीतौ, उत कूँ बौरायौ कन्त    
सन्त भूलौ सन्तई कूँ मन्तर पढ़ौ भारी    
पाय कें इकन्त मोसों बोलौ रति-कन्त कीट    
खूब है गढ़न्त तेरे अंगन की हो प्यारी    
तदनन्तर ह्वै गयौ गुणवन्त – रति वन्त    
करि कें अनन्त यत्न बावरी कर डारी    
साँची ही सुनी है बीर महिमा महन्तन की    
साल भर ब्रह्मचारी, फागुन में संसारी
पेले वाले गीत पर तो सिरम के मारे भभ्भड कुछ के नहीं पा सक रहे हैं । काय कि सिरम तो सबके आती है ना । उसके बाद जो छुट्टन और छमिया का किस्सा है ऊ किछु किछु कम सरम का है । तीसरा जो किछु भी है वो भभ्भड के माथा कानाम कपाल के ऊपर से निकल गया है । जिनके नहीं गुजरा हो वो भभ्भड़ को एसएमएस करके समझाएं । दाद देने की कोसिस भी करने वाले को पछीट पछीट के मारा जाएगा । एक कोठी में कीचड़ और नाली का पानी घोल रखा है उसमें पछीटा जायेगा । सो सिमझ में आ जाये ।
सुचना- घोसना की जाती है कि आज की पोस्ट पर जदी कोई भी टिपपणी करते समय जी, साहब, आदरणीय, जनाब जैसे लुच्चे शब्दों का प्रयोग किसी के लिये भी करेगा तो उसको अगले साल होली के डांडे की जगह पर प्रयोग किया जायेगा । किसी भी प्रकार के आदरणीय अथवा फादरणीय शब्दों का प्रयोग पूरी तरह से प्रतिबंधित है । जो भी करेगा ओ के वास्ते @@@@### । जोगीरा सारा रारा, जोगीरा सारा रारा । ओय चली चल चली चल ओय चली चल सारारा , ओय चली चल ओय चली चल ओय चली चल सारा रा।
सबको होली की शुभ का म ना एं । मंगल कामनाएं । आप सबके जीवन में रंगों का ये त्यौहार खुशियों के नये रंग लाये । आपके जीवन में जो भी कलुष है वो रंगों की बोछार से धुल जाये । हर तरफ सुख हो शांति हो समृद्धि हो । आनंद की रस वर्षा हर ओर हो । हम सबके बीच में प्रेम बना रहे सदभाव बना रहे । आमीन ।
होली की शुभकामनाएं
भभ्भड़ कवि भौंचक्के
 
अबे ओ नाती के ससुरे धतूरे घनचक्कर भभ्भड़ बूढा किसे बोल रिया है रे ? खुद की शकल देखि आईने में लगता है जैसे पैदाइश के टाइम ही तीस बरस का होगा। कलमुहे हम जैसे जवान लोगों से जलता है, खुद की उड़ गयीं इसलिए हमरी जुल्फें देख सुलगता है , नाश पीटे तुझे क्या इसी दिन के दिन के लिए खिला पिला के बड़ा किया था के भरी जवानी में हमें बूढा बोले ? आग झोंक दूं तेरे मुंह में, होली की आड़ में भड़ांस निकाल रहा है कमबख्त। आँखें हैं या बजरबट्टू? निगोड़े को सही से नज़र भी ना रिया कुछ भी। अबकी बार तो होली के मौके पर बच्चा समझ के छोड़े दे रहे हैं वर्ना---असल में अभी तो हमारे खेलने खाने के दिन हैं---जलने वाले जला करें---हुर्रे
जवाब देंहटाएंकुछ भी कहो फुल टू मज़ा आ गया
तोका बोलिस रहिन बुढऊ बुढऊ बुढऊ । मधुबाला से इसक करने की उमर हेगी । बुड्ढा सठिया गया ।
हटाएंभभ्भड़ कवि का शेर
हटाएंमिझको जो आया घुस्सा, मैंने जमाई चप्पल
हंसता रहा मगर वो माटी मिला गुलाबी
भभ्भड़ कवि किछु धार्मिक हो रय हें
हटाएंरंगों की अदला बदली यूं हो गई प्रणय में
संवला गई है राधा, कान्हा हुआ गुलाबी
वेसे नीरज जी ऊपर के टिपण्णी की पहली पंक्ति होली में सभी बूढ़े ऐसा ही बोलते हैं .... हा हा हा :) ;)
हटाएंआहा हा हा ...वाह रे भभ्भड़ वाह कमाल किये हो, क्या लिख दिए हो---अद्भुत
हटाएंभभ्भड़ कवि का एक और नजराना
हटाएंहै भंग चढ़ गई या हो बैठा टिन्चू टिन्चू
चौं लग रहा है मिझको वो कलमुंहा गुलाबी
सभी को होली की शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंनीरज
पुनश्च: वैसे इस बार तरही में एक से बढ़ कर एक घटिया गीत,ग़ज़लों और दोहों की मानो सुनामी ही आ गयी थी। तरही ख़तम हुई, मानो जान बची और लाखों पाए।
बुरा मान लो होली है ---हम भी देखते हैं क्या कर लोगे?:-) :-)
जो बुरा माने वो भाड़ में जाये जोगिया सारा रा रा
हटाएंभभ्भड़ कवि का एक और शेर
हटाएंथीं तीन साड़ी पहले से ही गुलाबी उस पे
चौथी भी कल ले आया ठठरी बंधा गुलाबी
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति,आप सब को होली की हार्दिक शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंघर में तो बन के रहते, चुपचाप एक गीदड़
जवाब देंहटाएंबाहर निकल के कहते, खुद को जनाब 'भभ्भड' ?
अब तक 'कबूतरी' को हैं ढूंढ़ती निगाहें
चाहे कबूतरी वो सठिआई हो या मुच्छड़
होली पे भांग पी के अब कर लो हमसे मस्ती,
नर बन सकें न नारी, तू लाख बेल पापड़
--मधु भूषण 'फक्कड़'
मधु है न है मधुरता,फक्कड़ है या है झंक्कड़*
हटाएंनारी है या के नर है ये मरदुआ गुलाबी
(झंक्क्ड़ जिससे पतंग लूटी जाती है । )
फक्कड़ों, भभ्भडों में अब हो गयी भिड़ंत है
हटाएंलगते है नर न नारी,लगते है बस "गुलाबी".
दाढ़ी ने लाज रख ली मेरी वगरना याँ तो,
हटाएंधोती-प्रसाद सारे क्या लग रहे "गुलाबी" !
फक्कड़ जी और भभ्भड़!
हटाएंदोनों चलाओ चक्कड़
हम हैं जवान मुच्छ्ड़
हमका पसन्द पापड़
ओ बे ! जवान मुच्छड़,
हटाएंबाटी के बदले तूने ,
माँगा है 'चपटा' पापड़ !
भाभी बनी हैं भैया, भैया बने हैं भाभी
हटाएंभाभी के दाढ़ी आई, मंसूर हैं गुलाबी
उइ मां भांग के नशे में काफिया सटक गया
हटाएंछोड़ा रदीफ को ओ, सटका निकल गली से
हटाएंकरवाया काला मुंह जो था काफिया गुलाबी
जोगिया सा र रा रा, जोगिया सा र रा रा
हटाएंसर पे चढ़ा है फागुन, है जोगिया गुलाबी
चेहरे बदल दिए है, क्या हाथ की सफाई !
हटाएंवो बन गयी है दढ़ियल और 'हाशमी'गुलाबी.
वाह वा! सुबीर भैय्या, हमका भी नाही बख्शा,
होली के ही बहाने, झटका दिया गुलाबी !
नफरत की कालिमा को आओ हटाएं मिल कर
हटाएंधो दें कलुष सभी यूं, हो आत्मा गुलाबी
देवर जी मत बखशना, भाभी का ये था आर्डर
हटाएंहम भी तो देखें इनको पहने रिदा गुलाबी
जवाब देंहटाएंबहुत सराहनीय प्रस्तुति. आभार !
ले के हाथ हाथों में, दिल से दिल मिला लो आज
यारों कब मिले मौका अब छोड़ों ना कि होली है.
मौसम आज रंगों का , छायी अब खुमारी है
चलों सब एक रंग में हो कि आयी आज होली है
लौटता हूँ रात को खबर लेने। अभी तो त्वरित टिप्पणी में एक शेर:
जवाब देंहटाएंपंकज को मानते थे हम सब शरीफ़, उसने
हर ब्लॉग सुन्दरी को नज़रें गड़ा के मारा।
आप अपने कायाकल्प पर इतराइये, हुज़ूर ! हाय हाय हाय ... :-))))
हटाएंक्या रूप निखर रिया ए ! आपकी ऐसी छरहरी, लोच-लचक-लीची-लीची, तन्वंगी देह इस जन्म के पूर्वार्ध तो क्या पिछले सात जन्मों के पूर्णार्ध में भी नाय री हेगी.. अमा, अपन तो मुखड़ा छोड़.. लाहौलबिलाकुव्वत, होली के बावज़ूद बुरा मानने का सबब बन रिया ए.. .
हा हा हा.. .
पंकज का ये नहीं है, भभ्भड़ का दोष है ये
हटाएंदो घूंट भांग पी के सब कुछ किया गुलाबी
भभ्भड़ सुबीर भाई
हटाएंकाहे हुए कसाई
दो घूँट भाँग पी कर
नारी को नर किये हो
नर को किये हो नारी
जो चार घूँट पीते
तो और पड़ते भारी
................... हा हा हा हा हा
होली की मंगल कामनाओं सहित
तोहार
भैया
भंगड़
पहाड़ वाले
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ...सादर!
--
आपको रंगों के पावनपर्व होली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
हत्तेरे की.. हुत्तेरे की... होत्तेरे की.. !.. ... .. धत्तेरे की.. .
जवाब देंहटाएंएब्डोमेनवा फुललेंथ में बथाये लगा भाई ! हँसी के त अवजिये बिला गया है. पेट धरे, मूँ बाये पड़े हैं.. आऽऽऽ !! ..
ई भभ्भड़वा ऊ भोकारी पर भोकारी पारिस.. जे ओः .. . भेजा गोल भया भन्ना गिया..
एकदम भकचोन्हर क दिहिस भाई !.. हम सीकमभर भायँ-भायँ बोकर रिये एँ.
हम भांग पी भले लें या चाट लें दुपव्वा
चढ़ने का कुछ नईं रे, खोपड़ भया गुलाबी.. .
****
ठुस्स बुझाया !? ... घुटना सलामत है रेऽऽऽ ...! :-))))
त ऊ टिंगटौंगवा ओही के पहिले वाला डोलडलवा है.. . एक सूचना एक टिंग.. दोसर सूचना दोसर टिंग .. अइसे ! .. आ ओही बीचे ठुस्स.. .
हा हा हा हा हा हा... . :-))))))
मजा आय गिया ..
अरे कोई है ...... ज़रा फ्रेगरेंस मारो................... बे..............
हटाएंहै बाद टिंग के इक टिंग, ओही के बाद टौंगवा
हटाएंफिर फुस्स जो हुई है, उसका मजा गुलाबी
@ नवीन भाई .. .
हटाएंभाई नवीन आपो क्या-क्या समझ गये जी !?
क्या फ्रेगरेंस मांगा, माइक हुआ गुलाबी .. .. .. :-))))))
भाई नवीन समझे हैं ठुस्स को बखूबी
हटाएंइस ठुस्स की बदौलत, कमरा हुआ गुलाबी
@ पंकज भाई .. .
हटाएंदेखा, पुलक के निखरा, गज़बे कमाल टौंगवा
हर सूचना पे टिंग्टिंग देता मजा गुलाबी .... . . हा हा हा हा.. ..
जय होऽऽऽऽऽ
हटाएंहम ठुस्स पर हैं भौंचक, ये तो बवालिया है
पर ठुस्स ने किया है.. माहौलवा गुलाबी .. ..
का हम बताएं दद्दा का कर दिया है तुमने
हटाएंइक ठुस्स से किया है माइण्डवा गुलाबी
थोड़े हैं सेण्टीमेण्टल और हैं ज़रा से मेण्टल
हटाएंतिस पे निगोड़ी भंगिया का ये नशा गुलाबी
जोगिया सा र रा रा, जोगिया सा र रा रा
हटाएंसर पे चढ़ा है फागुन, है जोगिया गुलाबी
छाया खुमार सब पर, किस एक की कहें क्या
हटाएंइस भाव-भावना से.. हर राबिता गुलाबी..
इस भरपूर शाब्दिक होली के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ .. . जय-जय ..
“परकास फ़र्श” बूढ़ा ,भभ्भड़ की लेता साइड !!!!
जवाब देंहटाएंनीरज को कहता बुड्ढा, इसको करो अवाइड
खुद लड़की है या लड़का होता नहीं डिसाइड
पकड़ो लिटाओ इसको , गोबर का रंग फेंको
“बूढ़ा” सबद को मुँह से कहना करे अवाइड.
कोई नहीं जवां है, सारे के सारे बूढ़े
हटाएंतन पे है भगवा लेकिन, मन में भरा गुलाबी
पंकज सुबीर भाई
जवाब देंहटाएंक्यों हो गया कसाई
दो घूँट भाँग पीकर
नारी को नर किये हो
नर को किए हो नारी
सच सच बताव इत्ती
है भाँग काँ से मारी?
सच्ची बताऊँ सिस्टर!
बुढ़िया नहीं मैं अब भी
चिश्मा लगा के देखो,
बोलो तो भेज दूँ मैं
आँखों की वो दवाई
था फार्मूला जिसका
तुमने था कल बताया...
मैं भी अभी अभी हूँ
कुछ भाँग पी के आया.......
होली की हार्दिक शुभकामानाओं सहित
तोहार
पहाड़ वाले भैया
गुलाबी भाई
आंखों की वो दवाई भेजो द्विजेन्द्र भाई
हटाएंफिर से हो जिन्दगी में हर इक दिशा गुलाबी
पंकज सुबीर भाई
जवाब देंहटाएंकाहे हुए कसाई
दो घूँट भाँग पी कर
नारी को नर किये हो
नर को बनाए नारी
जो चार घूँट पीते
तो और पड़ते भारी
................... हा हा हा हा हा
होली की मंगल कामनाओं सहित
तोहार
जवान भैया
पहाड़ वाले
कोई नहीं यहां नर, अंदर से सब हैं नारी
हटाएंऊपर से काले पीले, अंदर छटा गुलाबी
भाई होली हो तो ऐसी। मारे हँसी के पेट फटा जा रहा है, और तमाम कोशिशों के बावजूद बह्र के बाहर जा कर हँसे जा रहा है। क्या तस्वीरें लगाई हैं भई वाह...... अद्भुत कारीगरी। होली बना दी भई :)
जवाब देंहटाएंसभी मित्रों को सपरिवार होली की शुभ कामनाएँ
विशेष : - रंगों की अदला बदली ने मन मोह लिया भाई..... क्या बात है क्या बात है क्या बात है .... Supper se Upper.......... दौनों तरहियों पर भारी......... ख़ुश रहें पंकज भाई और ख़ूब यश कमाएँ.......
हो बह्र या नहीं हो, हंसिये ज़रूर लेकिन
हटाएंहंसने से खून बढ़ता, होती छटा गुलाबी
ये पहली बार जाना, पहली दफ़ा सुने हम
हटाएंहँसना अरूज़ में हो, बनती ’हवा’ गुलाबी .. .
हो गर गुलाबी गुल तो उसमें कमाल क्या है
हटाएंहै तो कमाल ये के ऊगे भटा गुलाबी
होली के सारे रंग उंडेल दिए आपने इस रंगारंग प्रस्तुति में ........इतनी मस्ती तो होली में भी नहीं मिल पाती आजकल ...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति ......
आपको होली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
आप सभी को होली की शुभकामनायें। बेहतरीन प्रस्तुति और ख़ूबसूरत अशआर्।
जवाब देंहटाएंचलो माफ़ किया, अब कुछ नहीं बोलता। यहॉा तो लगता है सब के सब सीधे टैंकर चढ़ा गये है भॉंग और महुआ मिलाकर। इतनी पस्त हालत में इतने शायर कभी नहीं देखे, अब बेचारों पर क्या हमला करना।
जवाब देंहटाएंकुछ भी कहो अंग्रेजी नीरज (भाई नहीं कहूँगा आज), और आस्ट्रेलियन सौरभ पर दिल आ रहा है। दोनों एकदम झकास जवान हैं इन्हें कौन बुढि़या बोलेगा। मस्त लग रही हैं।
गुस्सा तो बहुत आ रहा है सब पर, अपुन शराफ़त से तीन ग़ज़ल पर आ गये तो सबने पेल दीं लम्बी-लम्बी ग़ज़ल। (वैसे राज़ की बात ये है कि भभ्भड़ कवि ने वक्त रहते समझाईश दे दी थी कि होली है, वरना अपुन का क्या है हर रंग पर तीन तीन ग़ज़ल हेड़ देते।
भंगेडि़यों के इस सम्मेलन के लिये कोई किसी को बधाई नहीं देगा वरना हर बधाई पर तीन ग़ज़ल और तीन शेर और सुनने पड़ेंगे।
ऑस्ट्रेलियन कि अलसेसियन ? .. भंगिया उतर री ए का ???
हटाएंजब दिल आ गया तो क्या अलसेशियन क्या काकेशियन और क्या आस्ट्रेलियन। भंगिया तो अपने से उतर ही नहीं सकती।
हटाएंबचपन में अम्मा कहती थी कि वैसे ही जाने जाओगे जिनके साथ उठोगे बैठोगे...हो गया न लफड़ा इन सारे बूढऊ लोगों के साथ उठने बैठने में...नीरजी गोस्वामी, राकेश खण्डेलवाल, मंसूर हाशमी, तिलकराज.... जी....आदि..आदि में बाकी के सारे उपर वाले मुझे छोद़्अ कर...एक दिन मेरी लुटिया डुबवायेंगे...ये पता था..मगर आज तो हो ही गया...बेवजह बुढऊ जमात मेम शामिल कर दिये गये सबसे हसीन जवान सदी के...संईर लाल ’समीर’.....
जवाब देंहटाएंअरे, हसीनों की नगरी में जाओ और पूछो पता मेरा...हर जुबां लड़खड़ाती मिलेगी...और तुम सोचोगे कि होली का भांग का नशा है....
हा हा...मजा आ गया!!
सन्नाट...\
सबको होली मुबारक...
खुद के बुढ़ियाने पर सकपकाए हुए सारे ही बूढऊ , लगता है ताल ठोंक कर मैदान में आयेंगे अपनी जवानी का लोहा मनवाने......
हटाएं
हटाएंकोई जरा जा के बैद बुलाओ, भभ्भड़ वा की आँख दिखाओ
मंसूर मियां आप तो ऐसी बातें न करें आय हाय आपकी इस खुशनुमा सफ़ेद दाढ़ी पे हज़ार कबूतारियां कुर्बान होने को फडफडा रहीं हैं आप भी कहाँ इस मरदूद भभ्भड़ के चक्कर में आ के हम उम्रो को बूढा कह रहे हैं :-)
हटाएंमगर ज्जो बात है.. हम खूस हैं.. बुढाइये के खूस हैं.. पूछो काहें !! ..
हटाएंहा हा हा.. .
;-))))
अय ह्य छमिया घर में शीशा नहीं है क्या, होता तो हम नौजवानों को बुढाऊ कहने से पहले सौ बार सोचता . बचुआ जा शीशे में थोबड़ा देख फिर आइयो कमेंटवा करने, तू तो बच्चे उन में से है जो पैदा ही बुजुर्ग होते हैं ---हा हा हा हा ---अब बोल बुरा मानेगा ? मान ले होली है .
हटाएंफागुन ग़ज़ब बवाली, बुड़बक बुरा जो माने
हटाएंदेसी चढ़ाय बुढ़ऊ लेते मजा गुलाबी .. .
भै साब जब से आपने हमरी फोटो लगाई है सौ से ऊपर लड़कों के मेरिज प्रोपोजल आ चुके हैं , रुकने का नाम ही नहीं ले रिये, हम ने कही के ऐ मुस्टंडों देखो हमरी मूंछे हैं, तो कहते हैं चलेगी तुम तो हाँ कर दो सुंदरी, एक आप हैं के हमें बुढ़िया बता रहे हैं, तनिक काला मोती याने ग्लूकोमा की जांच करवा लो , हमें तो कुछ गड़बड़ लग रही है तोहार दीदों में---बुरा मानिए होली है।
जवाब देंहटाएंनीरज बाई, दिल तो अपुन का भी आया है।
जवाब देंहटाएंआ हम त आपै के धज्जर पर मुए जा रहे हैं..
हटाएंटकलू उस्ताद इस उम्र में दिल किसी पे आ गया तो उसका इलाज़ भी नहीं हो सकेगा, मियां तुम्हारी उम्र में दिल का ट्रांसप्लांट भी नहीं होता :-)
हटाएंमुए तेरी इस उम्र में दिल आने को हमरी फोटो ही मिली थी ? केटरीना की हाथ न लगी क्या?
कैटरीना का नाम भ्ज्ञी लिया तो सल्लू शर्ट उतारने लगता है। अब आपकी फ़ोटो के बाद तो कहीं और दिल लग ही नहीं रहा है।
हटाएंलुच्चई के सब ठेका इहैं फोड़ा गवा है
जवाब देंहटाएंबुजुरगन अइसी अइसी लुच्चई पेले हैं कि दिमाग तर होय गवा ...
बुढ़वन के बीच हमार का काम ....
जै सिरी राम
आय-हाय हाय-हाय ! ..
हटाएंजे सबपे निसार हम ओही प ’फिराकत’ के ’फ़िराक़’ में .. :-))))
बचुआ तोहार घज़लवा पढ़ के तो लगता है जों अस्सी साल के खूसट ने लिखी है, तू चला है हम कमसिनो को बुढाऊ बताने, निगोड़ा कहीं का
हटाएंदादा जान अभी भंग के नसा नै उतरा का .... हम तो ग़ज़ल पेल्बै नै भये ... आप कहाँ से हमार लुच्ची ग़ज़ल पढ़ लिएव ???
हटाएंऐसी का कहा जात है -- मारो कही लगे वही ,,,
मगर अभी ई ना चली काहे की अभी होली है ....
दुबई सरकार ने तो गज़ब कर दिया ... मैं तो उनके फरमान के हिसाब से कल निकल लिया था ... आज बड़ी मुश्किल से छूट के आ रिया हूं ... वो भी भभड कवि की जमानत पे ...
जवाब देंहटाएंपूछो न क्या हाल किया है पिछवाड़े का ...
हा हा कल से अआना जाना लगा है ब्लॉग पे ... हँसते हँसते बुरा हाल है ...
जवाब देंहटाएंइस बार तो धमाल कर दिया सफी ने ... रुमाल कर दिया सभी ने ... होली की बधाई ओर शुभकामनायें सभी को ....
होली खिलय रियो है, दामन बचय के अपनों,
जवाब देंहटाएंबुढ़ियाती इस फसल में 'पंकज' चना गुलाबी.
लिंगा* बदल-बदल ने इतरय रियो बहुत है, *[sex]
'ओला-पीड़ित' फसल में, 'पंकज' चना गुलाबी.
खुश हो रियो बहुत है गज़ला पढ़य-पढ़य के
कणी भाड़ को है फ़ूत्यो पंकज चना गुलाबी ?
[ चना = काफिया की बंदिश नी वेती तो शब्द 'चनो' घनो सोनो लगतो !]
http:aatm-manthan.com
गजब का पोस्ट तैयार किये हो भैय्या
जवाब देंहटाएंलाजवाब
एतना अपार मेहनत के लिए घनघोर बधाई के पात्र हैं
आपको इक्कीस तोपों की सलामी मिलनी चाहिए ... (एक तो निशाने पे लगेगी ही :-))
होली मंगलमय !!!
केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी
जवाब देंहटाएंये टिप्पी-टिप्पी टापा खेला बड़ा गुलाबी
होली पे भभ्भड़ी की तस्वीर के बिना तो
लगता नहीं होइंगा जिगरा मुआ गुलाबी
होता नहीं है इत्ता तुझसे सिहोर वाली
बुढ़ियों के साथ भेजे इक छरहरा गुलाबी
दफ्तर के काम की क्यों खोटी करा रही है
डॉलर मेरा हरा है, रुपिया तेरा गुलाबी
डर-डर कू भेजता हूँ भभ्डी कमेन्ट तुझको
काला न कर दे मेरा कुर्ता नया गुलाबी
--शार्दूलसिंह :)
भभ्भड़ी की पूरी ग़ज़ल लगाइए और तस्वीर भी!
:) हा हा!! सब के सब बुढ्ढे पगला गये हैं...यहाँ...हम जवान तो निकल ही लें तो अच्छा!!
जवाब देंहटाएंहोली का आया झक्कड़(तेज़ हवा)
जवाब देंहटाएंभभ्भड़ हुए हैं भंगड़
तुम नर कहो या नारी
हैं मधुर जी भी फक्कड़
इक हम पहाड़ी भंगड़
हम तो हैं भाई मुच्छड़
देखो गुलाबी चक्कड़
चश्मा उतार आये
दिखता नही है कुछ भी
तुम नर करो या नारी
मुच्छ्ड़ हैं हम तो अख्खड़
जो दाद नहीं देगा
हम उसको देंगे लफ्फड़
कर देंगे उसको मच्छड़..................................................
और
का कहें....
इतनी घिसी पिटी घजलों से बोर किए हो, हमऊँ हैं कि झेले हैं
२०० फ़ीसद कामयाब मुशायरे के लिए
भाई सुबीर जी को हार्दिक बधाई, हार्दिक धन्यवाद
जो दाद नहीं देगा
जवाब देंहटाएंहम उसको देंगे लफ्फड़
कर देंगे उसको मच्छड
भैंसा बना गुलाबी
माड़ेंगे उसको टक्कड़
कभी सुना था होली का सीहोरा रंग भी होता है।
जवाब देंहटाएंआज देख भी लिया, बाप रे बाप। माई रे माई। दी-दी रे दी-दी। भैया रे भैया। दादा रे दादा।
अब ना खेलम रे हम होली
हम ना खेलम ऐसन होली।
गज़ब भयो रमा जुलम भयो रे। होली बीत गयी नासा नहीं उतरा। नासा दूर ब्रह्माण्ड में खोया हुआ है। अमेरिका, रसिया, चीन, जापान सब परेशान।
अब तो सबका नशा उतर गया होगा। कमेंट देने में अब कोई खतरा नहीं है। बाकी का तो पता नहीं पर ग़ज़लें सारी जवान हैं।
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