इस बार के तरही मुशायरे में बहुत विविध रंगी ग़ज़लें मिलीं । और अब सामने है सचमुच का विविध रंगी त्यौहार । अभी तक होली के मुशायरे के लिये कुछ रचनाएं मिल चुकी हैं । लेकिन इंतजार है कि और सब लोग भी रचनाएं भेजेंगे । मिसरा तो याद है न
केसरिया, लाल, पीला, नीला,हरा, गुलाबी
कुछ मेल मिले हैं कि रदीफ काफिया कुछ समझ में नहीं आ रहा है, उनके उदाहरणार्थ एक मिसरा 'जिसको भी तुमने देखा वो हो गया गुलाबी'' । कुछ लोगों ने पूछा है कि रचना हास्य की भेजनी है या सामान्य, तो उनके लिये ये कि होली पर कुछ सामान्य नहीं होता है ।
तो होली के लिये जल्द से अपनी रचना भेजें ।
एक सूचना -30 मार्च को भोपाल के टीटीटीआई सभागार में आपके मित्र को 'वागीश्वरी सम्मान' प्रदान किया जायेगा । जो मित्र भोपाल में हों वे सदर आमंत्रित हैं ।
ये क़ैदे बामशक्कत जो तूने अता की है
श्री गिरीश पंकज जी
इक दिन सभी को जाना पड़ता है तयशुदा है
जो भी समझ न पाए तो उसकी ये खता है
अहसान मानता हूँ भगवान् या खुदा का
ये कैद-ए -बामुशक्कत जो तूने की अता है
दुःख मिल रहा है मुझको कल तो खुशी मिलेगी
आयेंगे दिन सुनहरे हमको यही पता है
जो खुश नहीं रहेंगे जीवन नरक बनेगा
लगता है आजकल ये हर द्वार की कथा है
वो था बड़ा ही ज़ुल्मी अब भागता फिरे है
छोटा-सा दीप जबसे आँगन में इक जला है
कितने ही लोग ऐसे जिनके छिपे हैं चेहरे
आयेगा वक्त अब तक पर्दा कहाँ हटा है
मन में वसंत छाया बिछुड़ा वो प्यार पाया
मुरझा गया था 'पंकज' सहसा अभी खिला है
सबसे पहले तो मतला बहुत प्रभावी बना है । जीवन की कड़वी सच्चाई को बयान करता हुआ मतला बहुत कुछ कह रहा है । घर में संतान हो जाने के बाद अपराध बोध किस कदर कचोटता है उसका उदाहरण है वो था बड़ा ही ज़ुल्मी शेर । और कितने ही लोग ऐसे जिनके छिपे हैं चेहरे में सोच को विस्तार दिया गया है । मकते के शेर में अपने नाम का प्रयोग बहुत सुंदरता के साथ हुआ है । बहुत सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह ।
श्री समीर लाल ’समीर’ जी
ये कैदे बामश्क्कत, जो तूने की अता है
ये मुझको दी सजा है या खुद को दी सजा है.
ये दुनिया देखती है, हाथों में हाथ अपने
इसमें तेरी रजा है, इसमें मेरी रजा है.
इल्ज़ाम जो मोहब्बत, के हम पे लग रहे हैं
तेरी भी कुछ खता है, मेरी भी कुछ खता है.
जो इश्क की गली में, मंदिर है प्रीत वाला
वो तेरा भी पता है, वो मेरा भी पता है
नाकामियों का मतलब, कोशिश में कुछ कमी है
ये तुझको भी पता है, ये मुझको भी पता है.
है बेरहम ये दुनिया, दूजा जहां बसाएं
तेरा भी फैसला है मेरा भी फैसला है
एक प्रयोग के तहत ये ग़ज़ल कही गई है । जिसमें मिसरा सानी को एक ही प्रकार से लिखने की कोशिश है । ये प्रयोग पूरी तरह से सफल रहा है। इसी प्रयोग के चलते मतला बहुत सुंदर होकर सामने आया है । और इल्जाम जो मोहब्बत के हम पे लग रहे हैं में भी मिसरा सानी का प्रयोग सुंदर बन पड़ा है । जो इश्क की गली मे मंदिर है प्रीत वाला में ये प्रयोग अपने सुंदरतम रूप में सामने आया है । नाकामियों का मतलब में भी ये प्रयोग बहुत खूब बना है । सुंदर ग़ज़ल,वाह वाह वाह ।
श्री मंसूर अली हाशमी जी
हरदम कचोटती जो वो अंतरात्मा है,
काजल की कोठरी में जलता हुआ दिया है
ये क़ैदे बामशक़्क़त जो तूने की अता है
कर भी दे माफ अब तो ये मेरी इल्तिजा है
दरया में है सुनामी , धरती पे ज़लज़ला है
ए गर्दिशे ज़माना दामन में तेरे क्या है?
यारब मिरे वतन को आबादों शाद रखना
दिल में भी और लब पर मेरे यही दुआ है
फैशन, हवस परस्ती, अख्लाक़े बद , ये मस्ती
जब जब भटक गए हम तब तब मिली सजा है
जम्हूरियत है फिर भी 'राजा' तलाशते है !
अपनी सहूलियत से कानून बन रहा है
क्या बात ! पाप अपने धुलते नही हमारे ,
गंगा नहा लिए है, ज़मज़म भी पी लिया है
मज़हब कहाँ सिखाता आपस में बैर रखना ?
है वो भी तो अधर्मी दिल जो दुखा रहा है
'चार लाईना', माअज़रत के साथ :
"जुल्फों के पेंचो ख़म में दिल ये उलझ गया है,
दीवाना मुझको करती तेरी हर एक अदा है
पाबंदियाँ है आयद रंगे तगज्ज़ुली पर
कैसे बयाँ करूँ मैं , तू क्या नही है क्या है।"
क्या कहा जाये मतले के बारे में, काजल की कोठरी में जलते हुए दिये की उपमा से अंतरात्मा को खूब पहचान दी है । आनंद का शेर । फिर शेर जम्हूरियत है फिर भी राजा तलाशने का शेर, आज के लोकतंत्र पर पैना व्यंग्य कसा है । लोकतंत्र के बाद भी हमारे देश में चल रही वंश परंपरा किसी राजशाही से कम नहीं है । गिरह का शेर एक अलग प्रकार से उस मोक्ष कामना है जिस मोक्ष को पाने के लिये बड़े बड़े ग्रंथ रचे गये । मजहब कहां सिखाता में धर्म को खूब परिभाषित किया गया है । अधर्मी सचमुच वही है जो दिल दुखाता है । और चार लाइना में शायर अपने ओरिजनल रंग हास्य में डूबा होकर होली का माहौल बना रहा है । सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह ।
तो दाद देते रहिये और तालियां बजाते रहिये।
बेहतरीन गज़ल तीनों महानुभावों को बहुत बहुत मुबारकबाद और धन्यवाद भी।
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा शब्द संयोजन और भाव भी |
जवाब देंहटाएंतीनों रचनाकारों को ढ़ेरों बधाईयाँ .........
" जब दिल से निकली आह और नैनों को सजल किया है,
कहते हैं दाद देने वाले क्या खूब ग़ज़ल किया है .
तीनों ही रचनाकारों की बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल है,सभी को सादर आभार.
जवाब देंहटाएंवाह वा.... आदरणीय पंकज जी की ग़ज़ल का एक एक शेअर धारदार, जानदार, शानदार है पढ़ कर दिल खुश हो गया ... एक से बढ़ कर एक ... जय हो
जवाब देंहटाएंआदरणीय समीर लाल जी की शाइरी पर क्या कहूँ, समीर जी अब स्वयं सिद्ध शायर हो चुके हैं इसलिए कुछ कहना न कहना एक सामान है ...
मुहतरम मंसूर साहब की ग़ज़ल ने लाजवाब कर दिया हर एक शेअर के लिए बार बार ... जिंदाबाद
बाद के ४ मिसरे तो कहर बरपा हैं .....
सुन्दर भावप्रद गज़लें, इसीलिए इंतजार रहता है सुबीर संवाद सेना का,
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावप्रद गज़लें, इसीलिए इंतजार रहता है सुबीर संवाद सेवा का,
जवाब देंहटाएंवाह ! वाह !! और वाह !!!
जवाब देंहटाएंजी खश हो गया, अभी अभी थक कर मै चूर था, मगर तीनो शायरोँ को सुनने के बाद बस आनंद ही आनंद.
श्री गिरिश जी, श्री समीर जी और श्री हाशमी जी... को बहुत बहुत बधाईयां !
@श्री गिरीश पंकज जी,दुःख मिल रहा है मुझको कल तो ख़ुशी मिलेगी / मुरझा गया था "पाठक" सहसा अभी खिला है / बहुत खूब !!
जवाब देंहटाएं@ श्री समीर लाल जी,
इसमें तेरी रजा है इसमें मेरी रजा है / क्या बात है सर, युनिवर्सल बेमिसाल !
@ श्री मंसूर अली जी,
हरदम कचोटती जो वो अंतरात्मा है / सर ये तो मेरे साथ था हमेशा और आगे भी साथ चलेगा .... लाजवाब कर दिया आपने
अब रतलाम दौरे में मुलाकात का इन्तजार है। आखरी में धुआंधार शे'रो के लिए :) :) :)
आदरणीय गुरूजी 'वागीश्वरी सम्मान के लिए बधाई ! वैसे आपको जितने भी सम्मान दिए जाए वो कम है। साहित्य के लिए आपने जो किया है वो सारे सम्मानों से बढकर है! बहुत कम लोग होते है जो अपने ज्ञान को बाटते है .
जवाब देंहटाएंगजल पर प्रतिक्रिया, एक बार फिर से गजल पड कर करुगा .
कितने ही लोग ऐसे जिनके छिपे हैं चेहरे
जवाब देंहटाएंआयेगा वक्त अब तक पर्दा कहाँ हटा है
आदरणीय गिरीश पंकज जी वाह क्या गजल कही है
आदरणीय समीर लाल ’समीर’जी
ये कैदे बामश्क्कत, जो तूने की अता है
ये मुझको दी सजा है या खुद को दी सजा है.
वाह वाह वाह ये मुझको दी सजा है या खुद को दी सजा है. :)
नाकामियों का मतलब, कोशिश में कुछ कमी है
ये तुझको भी पता है, ये मुझको भी पता है.
बहुत बढ़िया
हरदम कचोटती जो वो अंतरात्मा है,
काजल की कोठरी में जलता हुआ दिया है
आदरणीय मंसूर अली हाशमी जी बहुत अच्छी गजल। में गजल के बारे में ज्यादा जानता नहीं हूँ और पर आपका जो मतला है उसे पड़ कर अन्दर से खुद ब खुद आवाज आइ की वाह वाह क्या बात है
क्या बात ! पाप अपने धुलते नही हमारे ,
गंगा नहा लिए है, ज़मज़म भी पी लिया है
बहुत खूब कहाँ वाह वाह जी
गुरुदेव वागीश्वरी सम्मान कार्यक्रम के लिए पुनः हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंवागीश्वरी सम्मान के लिये हार्दिक बधाई। मेरी पूरी कोशिश रहेगी कि उस दिन कुछ जल्दी निकल सकूँ और कार्यक्रम में उपस्थित रहूँ।
जवाब देंहटाएंजाना सभी को इक दिन ये बात तैशुदा है के भाव से प्रारंभ होकर इस कैदे बामशक्कत के लिये ईश्वर का आभार व्यक्ते करते हुए गिरीश जी ने भविष्य के सुनहरे सपने देखे और मक्तें तक आते-आते मन में वसंत छा गया। इसमें कोई शक नहीं कि शायर का नाम मक्ते् में इसी तरह सटीक रूप से जुड़े तो मक्ते के शेर की खूबसूरती बढ़ जाती है।
समीर लाल जी ने खूबसूरत प्रयोग किया है। मत्ले के शेर जैसा प्रश्न कम ही शायर कर पाते हैं।
हाशमी जी की ग़ज़ल पर क्या कहूँ, बस नतमस्तक हूँ। इतनी परिपक्व ग़ज़ल कम ही पढ़ने को मिलती हैं। हर शेर बुलंदी पर खड़ा है और शेर की कसावट का उदाहरण है अपने आप में। तू और मैं दोनों संदर्भ में इस प्रश्न का उत्तर सारी उम्र नहीं मिलता कि ‘मैं क्या हूँ और क्या नहीं हूँ’।
आज के तीनों शायरों को हार्दिक बधाइयाँ.
जवाब देंहटाएंगिरीश पंकज जी का फ़लसफ़ाना अंदाज़, समीरलाल जी की प्रयोगधर्मिता तथा मंसूर अली हाशमी जी की ज़िन्दादिली.. वाह वाह वाह !!
पंकजभाईजी वागीश्वरी सम्मान की हार्दिक शुभकामनाएँ.
सादर
वागीश्वरी सामान के लिए बहुत बहुत बधाई गुरुदेव ...हमारे लिए बी ये फख्र की बात है ...
जवाब देंहटाएंआज तो तीनों ही शायरों ने कमाल किया है ...
जवाब देंहटाएंगिरीश जी ने मतले के शेर में जीवन के सच को सहज ही लिख दिया है ... वो था बड़ा ही जुल्मी ... ये शेर भी बहुत खूब बन पड़ा है ..
ओर समीर लाल जी ने जो प्रयोग किया है वो गज़ल की खूबसूरती बढा रहा है ... मतला तो जैसे बनाने वाले पे ही सवाल खड़ा कर रहा है ... ओर मिहब्बत के इल्ज्ज़म पे बस इतना ही कहूँगा ... आल बराबर लगी है दोनों तरफ ...
आदरणीय मंसूर साहब ने भी बहुत दिलकश शेर कहे हैं .. यारब मेरे वतन को ... सच्चे दिल से निकली दुआ है ...जम्हूरियत है फिर भी ... आज के समाज की मानसिकता को दर्शाता है ... वो खुद नहीं बल्कि खुदा ढूँढता है आर काम के लिए ...
तीनों ने ही लाजवाब ग़ज़लें कहीं हैं ... वाह वाह वाह ...
सबसे पहले तो वागीश्वरी सम्मान के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकारें। ब्लॉग पर तो लगता है कि होली शुरू हो चुकी है। इस शानदार इंद्रधनुषी माहौल के लिए बधाई स्वीकारें।
जवाब देंहटाएंतीनों शायरों ने कमाल की ग़ज़लें कही हैं। पंकज जी ने "वो था बड़ा ही जुल्मी..." क्या शानदार शे’र कहा है। इस शानदार ग़ज़ल के लिए पंकज जी को बहुत बहुत बधाई।
समीर लाल जी ने एक नया प्रयोग किया है और क्या खूब किया है। एक से बढ़कर एक अश’आर हुये हैं और क्या शानदार हुए हैं। पूरी ग़ज़ल बहुत अच्छी है। बहुत बहुत बधाई समीर जी को।
मंसूर साहब के तो मत्ले ने ही दिल जीत लिया। वाह वाह। क्या बिम्ब लाये हैं। बधाई बधाई बधाई। पूरी ग़ज़ल ही शानदार है और आखिरी की चार लाइनों ने तो गजब ही ढा दिया है। बहुत बहुत बधाई मंसूर साहब को।
यहॉं तो होली शुरू हो गयी। होली पर हास परिहास तो स्वाभाविक है लेकिन इतनी गंभीर तरही के बाद हास-परिहास का मूड बनते-बनते समय तो लगना ही है।
जवाब देंहटाएंरदीफ़ बहुत कठिन नहीं तो सरल भी नहीं है निर्वाह की दृष्टि से फिर भी एक बार प्रवाह बना तो आप देखेंगे कि होली-तरही की ग़ज़ल आती चली जा रही हैं।
वागीश्वरी सम्मान के लिए हार्दिक बधाई!
जवाब देंहटाएंतीनों रचनाकारों की बेहतरीन रचनाएँ ,
पढ़ने मिलीं....साभार.....!
सभी का बहुत बहुत आभार!!
जवाब देंहटाएंदुःख मिल रहे है मुझको ......अहसान मानता हूँ ....बेहतरीन गजल ..
जवाब देंहटाएंये दुनिया देखती है ...इल्जाम जो मोहब्बत ....नाकामियो का मतलब ...लाजवाब गजल अलग ही अंदाज में
कर भी दे माफ़ अब तो ..यारब मेरे वतन को ...फैशन हवस परस्ती ... बार बार पढ़ी गजल बहुत सहजता से शायर ने अपने भावो को शब्द दिए है और 'चार लाईना ' गजब ढाईना
तीनो शायरों को बहुत बहुत बधाई ..
वागेश्वरी सम्मान के लिए ढेरों बधाइयाँ।
जवाब देंहटाएंहोली से पहले आनंद की वर्षा हो गयी, भाई पंकज जी समीर जी और मंसूर जी की बेमिसाल ग़ज़लें पढ़ कर।
पंकज जी सिद्ध हस्त शायर हैं इस का प्रमाण उनके द्वारा कहे गए "दुःख मिल रहा है---", "वो था बड़ा ही जुल्मी---", "मन में वसंत---" जैसे लाजवाब शेर हैं। वाह पंकज भाई वाह। डली दाद कबूल करें।
समीर भाई के लिए क्या कहूँ ? अपनी अलग राह तलाश कर उस पर चलने वाले बहुत बिरले ही होते हैं और समीर जी उन बिरलों में से एक हैं। तरही में क्या प्रयोग किया है और सफलता पूर्वक किया है। ग़ज़ब। कायल हो गए आपके इस हुनर से भाई। जियो। एक एक शेर कमाल का है। किसकी बात करूँ किसे छोडूं ?
मंसूर भाई अपने कमेन्ट में भी कमाल कर जाते हैं और अपनी ग़ज़ल में भी। सुभान अल्लाह। भाई जान हम तो कुर्बान हैं आपकी कलम पर। काश !!! ऐसी कलम हमारे पास भी होती तो हम भी "हरदम कचोटती जो---", "फैशन हवस परस्ती---", "क्या बात! पाप अपने---", जैसे कद्दावर शेर हम भी कह पाते। भाई वाह वाह---दाद कबूल करें वो भी ढेर सारी ।
सबसे पहले 'वागीश्वरी सम्मान' के लिए पंकज सुबीर साहब को हार्दिक बधाई.
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद पंकज जी को कि :
'तरही' का मिसरा हम से लिखवा गया है क्या-क्या
क्या खूब ये मशक़्क़त हम को करी अता है!
मूलत: आपकी यह मांग प्रेरणादायी रही कि हम इस मर्तबा कुछ गंभीर, यथार्थ, उपयोगी शायरी करे. नतीजा बेहद शानदार रहा .
धन्यवाद उन तमाम साथियों को जिन्होने टिपण्णी के रूप में दाद दी, सराहा, हौसला अफज़ाई की या पढ़ने की ज़हमत भी गवारा की.
अब इंतज़ार है इस तरही की अंतिम कड़ी का , पंकज जी की रचना का .
-- mansoor ali hashmi
सभी प्रतिक्रिया देने वाले लेखक-मित्रो का आभारी हूँ। पहले मेरे पिताजी बीमार थे, अचानक वे 18 मार्च को गोलोक वासी हो गए। इस कारण नेट से कटा रहा। आज अभी कुछ समय मिला। सुबीर भाई की साहित्य सेवा के क्या कहने.वे इतिहास रच रहे हैं।
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