कुछ लोग कहते हैं कि सम्मान पुरस्कार, इन सबसे कुछ नहीं होता । मेरा ऐसा मानना है कि इनसे लेख्ान पर कोई प्रभाव पड़ता हो या न हो किन्तु इनसे लेखक पर बहुत प्रभाव पड़ता है । क्योंकि ये एक प्रकार की स्वीकृति होते हैं कि हां आप जो कुछ कर रहे हैं उसे देखा जा रहा है । हां ये ज़रूर है कि सम्मानों और पुरस्कारों का स्तर देने वाली संस्थाओं ने ही कम किया है । मगर फिर भी समाज की नज़र होती है इस बात पर कि कौन सी संस्था इस मामले में अभी भी मापदंडों पर कड़ाई से अमल कर रही है । शिवना के सम्मानों तथा पुरस्कारों के मामले में अभी तक इस बात ध्यान रखा गया है । शिवना सारस्वत सम्मान, शिवना सम्मान तथा शिवना पुरस्कार ये तीनों देते समय बहुत सोच विचार कर निर्णय लिया जाता है । सम्मान और पुरस्कार एक प्रकार की जवाबदारी लेकर आते हैं । कि हां अब आपको और बेहतर काम करना है । इनसे परिपक्वता आती है । तिलकराज कपूर जी के चयन का आप सब ने जिस प्रकार से स्वागत किया है उससे पता चलता है कि चयन समिति की सोच और आप सब की सोच कितनी मिलती जुलती है । यह सम्मान समारोह वर्ष 2013 में किया जायेगा । प्रयास है कि इस बार अगस्त अथवा सितम्बर में हो । आगे रब दी मर्जी ।
''ये क़ैदे बामशक्कत जो तूने की अता है''
आज सुनते हैं तीन रचनाकारों को । इस्मत दी और सौरभ जी तो हम सबके लिये सुपरिचित नाम हैं बल्कि वे इस परिवार के वरिष्ठ सदस्यों में हैं । आज हमारे इस परिवार में एक नये सदस्य का प्रवेश हो रहा है । सुमित्रा शर्मा जी पहली बार इस परिवार में अपनी रचना के साथ आ रही हैं । इन्होंने पहले ग़ज़ल लिख कर अपने ब्लाग पर लगा दी थी, किन्तु जब इन्हें पता चला कि परंपरा अनुसार तरही में भेजी गई रचना को तरही में आने से पहले कहीं और नहीं लगाया जाना चाहिये तो इन्होंने तुरंत अपने ब्लाग से ग़ज़ल को हटा लिया । तो आइये सुनते हैं तीनों गुणी रचनाकारों की रचनाएं ।
आदरणीया इस्मत ज़ैदी ’शेफ़ा’ जी
गुज़रा ये सानेहा वो मुझ से जुदा हुआ है
हर ख़्वाब रेज़ा रेज़ा हो कर बिखर गया है
ज़ुल्फ़ों की छाँव की या रुख़्सार ओ लब की बातें
अच्छी लगें ये जब तक ,रोटी का आसरा है
आँसू बता रहे हैं ,अफ़सान ए तबस्सुम
नाकाम हसरतों की बस इक यही सदा है
मुझ को ज़रा बता दे दुश्वारियों की मुद्दत
"ये क़ैद ए बामशक़्क़त जो तूने की अता है "
वो जाते जाते उस का इक बार मुड़ के कहना
देखो न भूल जाना, इतनी सी इल्तेजा है
कैसे यक़ीन कर लूँ? हम फिर कभी मिलेंगे
कब तुम ने ऐ ’शेफ़ा’ ये वादा वफ़ा किया है
वो जाते जाते उसका इक बार मुड़ के कहना, ग़ज़ब ग़ज़ब कहन, कितनी सादगी से बात कह दी गई है । पारंपरिक ग़ज़ल में सबसे बड़ा आकर्षण होता है सादगी और मासूमियत से बात को कहना । और ये गुण्ा इस्मत दी की ग़ज़लों में खूब होते हैं । और उस के एकदम उलट एक और प्रभावशाली शेर जुल्फों की छांव की, उसमें रोटी के आसरे की बात ने खूब प्रभाव उत्पन्न किया है । और एक और बेहतरीन शेर सामने आया है आंसू बता रहे हैं, इस्मत दी जिस सलीक़े से बात कहती हैं वो आज कम देखने को मिलता है । गिरह का शेर भी खूब बन पड़ा है । सुंदर रचना वाह वाह वाह ।
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी
सूरज भले पिघल कर बेजान हो गया है ।
इस धुंध में अगन है.. तूफ़ान पल रहा है ॥
मालूम था ठगा ही रह जायगा समन्दर
क्यों आज संस्कारों के भाव पूछता है ?
मौसम तिज़ारतों के अंदाज़ क्यों न सीखे
चिंगारियाँ सजातीं.. बाज़ार सज रहा है ॥
जो ज़िस्म जी रही हूँ, लगता मुझे सदा यों --
ये कैदे बामशक्कत, जो तूने की अता है ॥
रखना खुले झरोखे, आती रहें हवाएँ..
तोतारटंत उसका, पर आज तक गधा है ॥
ग़र खंडहर चिढ़े हों ख़ामोश पत्थरों से
ये मान लो कि जुगनू को ख़ौफ़ रात का है !!
हर माँ बहन व बीवी की शान के मुकाबिल-
जीता हुआ ज़माना, क्यों आज बेहया है ?
सबसे पहले बात मतले की, सूरज भले पिघल कर बेजान हो गया है और धुंध में अगन के साथ तूफान के पलने का बिम्ब बहुत सुंदर बना है । और ऐसा ही एक बिम्ब उभर कर आ रहा है गर खण्डहर चिढ़े हों में प्रतीकों और बिम्बों से बात करना छंदमुक्त कविता का गुण है किन्तु वही गुण जब छंदबद्ध कविता में उपयोग किया जाता है तो कमाल कमाल हो जाता है । संस्कारों के भाव पूछने पर समंदर के ठगे रह जाने की बात कहने वाला शेर भी बहुत खूब ब ना है । गिरह के शेर में स्त्री को लेकर मिसरा गढ़ना अलग प्रभाव उत्पन्न कर रहा है । बहुत सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह ।
आदरणीया सुमित्रा शर्मा जी
केन्द्रीय विद्यालय से 2007 मे pgt अंग्रेजी रिटायर हुई। पढने पढ़ाने का शौक बचपन से था। भाग्य ने बहुत इम्तिहान लिए पर शायद मेरी जिजीविषा को नहीं मार पाया। अब शाम पड़े भी कुछ न कुछ अपने व समाज दोनों के लिए करने की ललक बरक़रार है। मुश्किलो से भरी होने के बाद भी जिंदगी और दुनिया दोनों बहुत खुबसूरत हैं। एक और बात ईमेल, ब्लॉग सब मेरे लिए नए है। मेरी एक पडोसी मित्र,जो मुझे मेरे स्वर्गीय बेटे जैसी लगती है, ने आपसे संपर्क करने को कहा। इसे बहर मे लिखने के लिए मैंने श्री नीरज गोस्वामी जी का दिशानिर्देश लिया।
ये कैदे बामशक्कत जो तूने की अता है
जो की नहीं खताएँ ये उनकी ही सजा है
ये मातमो के मंजर हर राह मे लगे है
हैवान आदमी पर अब हावी हो चला है
गमगीन सी है गलियाँ सड़के भी सूनी सूनी
जिसको भी देखती हूँ लगता वो गमजदा है
पाला किये जिसे वो अपना लहू बहा कर
लख्ते जिगर वो सारे अब दे गए दगा है
आँखों को ख्वाब कितने परसे थे जिंदगी ने
शीशे सरीखे टूटे क्यों किसको ये पता है
माना ख़ुशी मुक्कमिल मिलती नहीं जमीं पर
थोड़ी सी जो मिली है लगती है ज्यूँ सजा है
कब तक छिपेगा सूरज इन गम के बादलो से
आने को है उजाले इतना मुझे पता है
लगता नहीं है कि सुमित्रा जी ने अभी अभी ग़ज़ल पर काम करना शुरू किया है । प्रारंभिक दौर की ग़ज़लों में जिस प्रकार का कच्चापन मिलता है वो बिल्कुल नहीं है । गमगीन सी हैं गलियां सड़कें भी सूनी सूनी में बहुत सजीव चित्रण किया है आज के माहौल का । कब तक छिपेगा सूरज में आशा और उम्मीद की जो किरण झिलमिला रही है वो शेर का नई ऊंचाइयां प्रदान कर रही है । आंखों को ख्वाब कितने परसे थे जिंदगी ने में मिसरा सानी और उला बहुत सुंदर तरीके से एक दूसरे का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं । बहुत सुंदर रचना वाह वाह वाह ।
तो सुनते रहिये तीनों रचनाकारों को और देते रहिये दाद ।
और याद रखिये होली के तरही के मिसरे को ।
केसरिया, लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी
अपनी प्यारी बहन इस्मत के कलाम से दिल बाग़ बाग़ हो गया, किस भाई को अपनी इस होनहार बहन पर फक्र नहीं होगा। जियो इस्मत जियो। " आंसू बता रहे हैं..." ."मुझको जरा बता दे..." और "वो जाते जाते मूड कर,,," जैसे शेर इस्मत जैसी कद्दावर शायरा ही कह सकती है। ग़ज़ल का हर शेर निराला और रिवायती उर्दू शायरी की खुशबू लिए हुए है। सुभान अल्लाह। ऊपर वाले से दुआ करताहूं मेरी इस छोटी सी बहन का कलम इसी कामयाबी के साथ चलता रहे, चलता रहे। आमीन।
जवाब देंहटाएंसौरभ भाई की ग़ज़लों का मैं दीवाना हूँ। शायरी की जैसी समझ उन्हें है वैसी बहुत कम लोगों को होती है। तरही की पूरी ग़ज़ल अपना एक अलग निराला रंग लिए हुए है। कहन में सादगी के साथ शायरी का पूरा मज़ा दे रही है उनकी ये ग़ज़ल। मतले से ही उन्होंने बाँध लिया है, "इस धुंध में अगन है,,," अहाहा क्या अनूठा प्रयोग है वाह, " मौसम तिजारतों के,,," कहन में नया पन है, गर खंडहर चिड़े हों,,," लाजवाब शेर बन पड़ा है। कमाल सौरभ भाई कमाल।
सिखने की कोई उम्र नहीं होती, इस बात का ज्वलंत उधाहरण हैं सुमित्रा जी की ये ग़ज़ल। मेरी जब उनसे बात हुई तो उनका उत्साह देख मैं चकित हो गया। यकीन माने ये उनका बड़प्पन है के उन्होंने बहर में लिखने के लिए मेरे दिशा निर्देश की बात की है जबकि हकीकत ये है के उनकी ग़ज़ल थी ही बहर में। मैं खुद अभी सीखने के दौर में हूँ , भला मैं क्या दिशा निर्देशन करता। कुछ लोग होते हैं जिनमें संगीत बसता है उनमें एक लय होती है, सुमित्रा जी में संगीत और लय दोनों हैं। उनके अशआर हमारे आज के दौर का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। " ये मातमों के मंज़र,," गमगीन सी हैं गलियां,,,"" आंखों के ख़्वाब,,," जैसे शेर इशारा कर रहे हैं के आने वाले दिनों में हमें उनसे ऐसे और कई बेहतरीन अशआर पढने को मिलेंगे। इस ग़ज़ल के लिए उन्हें ढेरों बधाई।
नीरज
नीरज भैया,
हटाएंबहुत बहुत शुक्रिया ,दुआ करती हूं कि ताज़िंदगी मुझे आप की ये दुआएं मिलती रहें और आप का साया हम पर क़ायम रहे(आमीन)
लेकिन भैया मुझे क़दआवर शएरा न कहें प्लीज़ अभी तो मैं तिफ़्ल ए मकतब हूं ,कहते हैं न सीखने की कोई उम्र नहीं होती :)
भाई नीरजजी, आप मेरी ग़ज़लों के दीवाने हैं ! ओह्होह.. . !
हटाएंजबसे पढ़ा है, हम ऊँचे-ऊँचे हुए चल रहे हैं, भइया ! ’गर्भनाल’ की प्रत्येक नई प्रति आपकी आदायगी से ही शुरु से होती है मेरे लिये. आपको मेरे कहे का कुछ भी पसंद आता है या आया, यह सुनना मेरे लिए किसी पुरस्कार से कम नहीं है.
आपके सहयोग व मार्गदर्शन का आकांक्षी हूँ.
सादर.. .
waaaaaaaaaaaaaaaaah waaaaaaaaaaaaaaah waaaaaaaaaaaaaah kya kahne hain Ismat Zaidi Sahiba ...behtreen ghazal se nawaza hai aapne kya kya sher kah diye hain koi jawab hi nahi hai ...zindabaad...matla ta maqta aik shandaar kalaam .....daad hazir hai
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ज़फ़र बेटा ,
हटाएंहमेशा ख़ुश रहो
bht khoob Saurabh Pandey sahab kya umdah kalaam se nawaza hai aapne Zindabaad
जवाब देंहटाएंहृदय से धन्यवाद, भाई ज़फ़रुल हसनैन.
हटाएंMohtarma Sumitra Sharma Sahiba ... behad meyari kalaam se nawaza hai aapne kya kahne bht khoob...Lajawab aur bemisaal
जवाब देंहटाएं@इस्मत जी
जवाब देंहटाएंमत्ले के शेर में हर ख्वाब रेज़ा रेज़ा हो कर बिखरना बड़ी खूबसूरती से बॉंधा गया है। दूसरे शेर में ‘भूखे पेट न भजन गोपाला’ का अंदाज़; सही है कि रोटी का आसरा न हो तो ज़ुल्फ़, आरिज़ो लब का ख़्याल भी किसे आ सकता है; भूखे पेट तो क्रॉंति जन्मती है।
गिरह के शेर में आपने जो सवाल खड़ा किया है उसका उत्तर तो हर कोई चाहता है।
‘वो जाते-जाते उस का..... ‘ बहुत ही खूबसूरत शेर है।
@सौरभ जी
इस धुंध में अगन और पलने वाले तूफ़ान की ही तो प्रतीक्षा है। समन्दंर से सवाल मत करना, भाई ऐसा बवाल मत करना।
‘मौसम तिज़ारतों के...’ का अंदाज़ लाजवाब है। झरोखे खोल कर रक्खो, नयी कुछ सोच आने दो। खंडहर का शेर गहरे उतरने को आमंत्रित कर रहा है। ‘हर मॉं बहन व बीबी ‘ का शेर आज के सामाजिक परिवेश पर सीधी चोट कर रहा है।
@सुमित्रा जी
आपकी ग़ज़ल वास्तव में ऐसी है कि इसे किसी की पहली ग़ज़ल मानना कठिन है। आपने इसे पीड़ा की अभिव्यकक्ति के साथ-साथ उम्मीद की किरण से जिस तरह बॉंधा है वह पूर्णता ग़ज़ल कहने के प्रारंभिक दौर में बहुत कम देखने को मिलती है।
तीनों ग़ज़ल अपना प्रभाव छोड़ती हैं।
बेहद मशकूर हूं तिलक जी
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हटाएंआदरणीय तिलकराजजी, आपकी वाहवाहियों का अटूट सिलसिला बना रहा है मेरे लिये ! यह आपका बड़प्पन है.
हटाएं’झरोखे खोल कर रखने’ और ’ नई सोच को आने देने’ को साझा कर आपने इस बेतुकी बंद से लगते शेर की मानों कुँजी ही दे दी है. क्या ऋग्वैदिक काल से ही हम Let the noble thoughts come from all sides नहीं कहते रहे हैं ! साहब, बावज़ूद इसके आज हम किस हश्र को प्राप्त हो गये हैं !
आपका सहयोग बना हुआ है, भाई साहब, यह सहयोग बना रहे.
शिवना सम्मान से नवाज़े जाने पर मैं आपको पुनः बधाई देता हूँ. सादर.
कान पकड कर माफी मांगती हूँ । सोचा नही था कि मेरी गैर हाजरी मी मुशायरा इतनी ऊचाइयाँ छू लेगा कि मै वहाँ तक पहुँचना तो दूर आँख उठा कर देख भी नही पाऊँगी। इतने माह मे शायद बहुत कुछ भूल भे3ए गयी हूंम
जवाब देंहटाएंमेरा भाग्य अच्छा है आते ही अपनी सब से प्यारी बहन इस्मत जी की गज़ल पढने को मिली निशब्द हूँ। स्क़ौरभ जी ने तो कमाल पर कमाल किया है दोनो को बहुत बहुत बधाई और मेरे छोटे वीर जी को बहुत सारी बधाईयाँ जो इस मशाल को बढाये चले जा रहे हैं। सुमित्रा जी को पहली बार पढा है। बहुत ही उमदा लिखती हैं । देखिये मै कब शामिल हो पाती हूँ फिर से इस काफिले मे। सब को शुभकामनायें।
निर्मला दी होली के मिसरे ''केसरिया लाल पीला नीला हरा गुलाबी'' पर लिख भेजिये एक ग़ज़ल । आपकी होली की ग़ज़ल तो वैसे भी कमाल होती है ।
हटाएंबहुत बहुत शुक्रिया निर्मला दी कि आप ने मुझे सब से प्यारी बहन कहा सच मैं बहुत ख़ुश हूं ,
हटाएंकैसी हैं आप ?
आपको मेरा कहा पसंद आया, यह मेरे लिए अत्यंत संतोष की बात है. आपका सादर आभार निर्मला दी.
हटाएंइस्मत ज़ैदी जी
जवाब देंहटाएंआँसू भी है, तबस्सुम, जुल्फों की छाँव, रोटी
शामिल है दर्दे रुखसत, 'इस्मत' की दास्ताँ मे.
सौरभ पाण्डेय जी
-------------------
धुंध में अगन जो ढूँढे, जुगनू जो तीरगी में
संस्कारों की भी परवाह 'सौरभ' ये कर रहा है.
सुमित्रा शर्माजी:
------------------
अब शामे ज़िंदगी और ये शौक़े शायरी है
लफ्जों का इक सफ़र है, यादों का क़ाफ्ला है.
शुक्रिया जनाब मंसूर अली हाशमी साहब
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंशुक्रिया हाशमी जी
हटाएंये शॊके शायरी ही इस शाम की ताक़त है
इसमें ही है तराना इसमें ही फ़साना है
कुछ तारे आसमां मे अब उजागर हुए है
कदमो के लिए काफी शायद ये उजाला है
सुमित्रा
शुक़्रिया हाशमी साहब.. .
हटाएंदे हौसला बराबर, रखना कड़ी निग़ाहें
अंदाज़ हाशमी के सौरभ स्वीकारता है.. .
इस्मत ज़ैदी , सुमित्रा शर्मा , सौरभ पाण्डेय तीनों की ग़ज़लें एक से बढ़कर एक धन्यवाद सुबीर जी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शकुंतला जी
हटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद, शकुन्तलाजी.. .
हटाएंइस्मत ज़ैदी जी , सुमित्रा शर्मा जी , सौरभ पाण्डेय जी तीनों की ग़ज़लें एक से बढ़कर एक धन्यवाद सुबीर जी
जवाब देंहटाएंहर एक गज़ल उम्दा हर शेर अनूठा है
जवाब देंहटाएंमैं कोट करूँण किसको गंभीर मसअला है (quote _
धन्यवाद राकेश जी
हटाएंआपका हार्दिक धन्यवाद, राके भाई साहब.
हटाएंइस्मत आपा,
जवाब देंहटाएंइस पुरअसर, कामयाब ग़ज़ल के लिए ढेरो ढेर मुबारकबाद
// हर ख़्वाब रेज़ा रेज़ा हो कर बिखर गया है //
इस एक मिसरे में वो दर्द बयाँ हुआ है जिस पर एक उपन्यास लिखा जा सकता है,
मिसरे के लिए अपना एक शे'र याद आता है ....
जाने कैसा दर्द बसा था आखों में,
उनको पल भर देख के सदियाँ हैरां हैं ....
बहुत बहुत शुक्रिया बेटा ,,हमेशा ख़ुश रहो
हटाएंएक शेर को कई आयाम से कहने का हुनर यूँ ही और हर किसी को कहाँ मयस्सर होता है
जवाब देंहटाएंसौरभ जी के एक एक शेर में कई कई अर्थ निहित हैं, जैसे कह रहे हों... अभी इस अर्थ को भी तो देखो, समझो
पाठकों के लिए समझ के नए द्वार खोलती इस ग़ज़ल के लिए सौरभ जी को हार्दिक बधाई
वीनस भाई, आपकी बधाई को स्वीकार कर रहा हूँ. पर काश, हर शेर पर सवार होते, मज़ा आ जाता.
हटाएंअनुमोदन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद.
कब तक छिपेगा सूरज इन गम के बादलो से
जवाब देंहटाएंआने को है उजाले इतना मुझे पता है
वाह वा !!!
किसी कठिन बात को जब आसान शब्द मुहैया करवाए जाते हैं तो शाइरी खुद -ब- खुद उस मेअयार पर पहुँच जाती है कि हर पढ़ने/सुनने वाला झूमने लगता है
इन माइनों में आदरणीया सुमित्रा जी की ग़ज़ल बेहद प्रभावित करती है,
आपका हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन है
सादर
इस्मत जी , सौरभ जी और सुमित्रा जी आप तीनों की ग़ज़लें एक से बढ कर एक हैं आप तीनों को बहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया जनाब !
हटाएंभाई संजय दानीजी, आप कहाँ हैं आजकल ? मेरी इस ग़ज़ल को मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार.
हटाएंबहुत ही शानदार ग़ज़ल कही है इस्मत जी ने।
जवाब देंहटाएंहर ख्वाब रेज़ा रेज़ा.....बहुत ही शानदार मिसरा। इस ग़ज़ल के लिए दिली दाद स्वीकार करें इस्मत जी।
सौरभ जी लाजवाब ग़ज़ल कही है आपने। ये अंदाज आपका पहली बार देख रहा हूँ। इस ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकार कीजिए।
सुमित्रा जी की ग़ज़ल से कहीं भी नहीं लगा कि ये उनकी पहली ग़ज़ल है। बहुत बहुत बधाई उन्हें और भविष्य के लिए शुभकामनायें।
बहुत बहुत शुक्रिया धर्मेंद्र जी
हटाएंभाई धर्मेन्द्र जी, आपने जो कुछ कहा है वह बहुत कुछ है. आप सुन लेते हैं तो संतोष भी रहता है.
हटाएंशुभ-शुभ
बहुत बहुत शुक्रिया सभी का। संवारने वाले,छापने वाले और पढ़ कर हौसला अफजाई करने वालो का। एक बात और। यह वाकई मेरी पहली गजल नहीं है। पर छपने वाली और बहर मे लिखी जाने वाली पहली ही है। इससे पहले लिखती तो रही हूँ थोडा बहुत पर छपने कभी नहीं भेजी। हाँ एकाध बाल कविता और कविता बेशक छप गयी है।
जवाब देंहटाएंसुमित्रा
बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल है सुमित्रा जी
हटाएंबधाई हो !
आज की तीनो ग़ज़लें पसंद आईं।इस्मत ज़ैदी जी की ग़ज़ल बहुत अच्छी है।एक दम सधी हुई।ज़ोरदार मतला।'जुल्फों की छाँव ..' वाला शेर भी बहुत प्रभावी हुआ है और गिरह का तो कहना ही क्या! बहुत बधाई आपको!
जवाब देंहटाएंअग्रज सौरभ पांडे जी की ग़ज़ल का तेवर सबसे पहले ध्यान खींचता है।अपने समय की विकरालता से व्यथित एक संवेदनशील मानस की वेदना तमाम अश'आर में भरी हुई है।एक बहुत कामयाब ग़ज़ल के लिए उन्हें ढेरों बधाई।
आ. सुमित्रा जी की ग़ज़ल के विषय में सुबीर सर ने ठीक ही कहा है कि ये उनका आरंभिक प्रयास तो नहीं ही लगता है।आपको भी एक अच्छी ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई।.
सौरभ जी बहुत बहुत शुक्रिया !
हटाएंअनन्य भाई सौरभ शेखर जी, आपके अनुमोदन को मैं हृदय की गहराइयों से स्वीकार करता हूँ.
हटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद.
वो जाते जाते उस का इक बार मुड़ के कहना
जवाब देंहटाएंदेखो न भूल जाना, इतनी सी इल्तेजा है .........
इसमें ही सब कुछ कह दिया .अच्छी ग़ज़ल
बेहद शुक्रिया जनाब !
हटाएंआदरणीया इस्मत आपा की ग़ज़ल के साथ मेरी प्रस्तुति का स्थान पा जाना मेरे लिए व्यक्तिगत उपलब्धि से कम नहीं है. आपके अश’आर में मैंने संवेदनशील हृदय की ऊहापोह और मुलायम भावनाओं की तरंगों का सुन्दर तथा सटीक संप्रेषण देखा है. मैं हर बार सीखता हूँ, कि आसानी से, इत्मिनान से और लिहाज़ से अपनी बातें कहते कैसे हैं.
जवाब देंहटाएंप्रस्तुत ग़ज़ल का ही शेर ज़ुल्फ़ों की छाँव की या रुख़्सार ओ लब की बातें.. . जितनी बार पढ़ो उतनी दफ़े आपकी कहने की अंदाज़ के प्रति नत करता है. आदरणीया, आपकी संवेदनशील दृष्टि को मैं बार-बार सलाम करता हूँ.
वो जाते-जाते उसका इक बार मुड़ के कहना.. . भावनाओं का सैलाब सा न फूट पड़े तो क्या ! इस शेर के सानी का ’देखो न भूल जाना’ में कितना अपनापन, कितनी उम्मीद, कितनी तड़प है कि हर बार हूक सी उठती है.
जुदाई के क्षणों को इतनी खूबसूरती बाँधने की ऐसी ताकत उसी दिमाग़ की हो सकती है जो दिल की धड़कनों से प्राण पाता हो.
आपको बधाई तो क्या कहूँगा, आगे भी आपके सहृदय सहयोग का आकांक्षी हूँ.
सादर
आदरणीया सुमित्रा शर्माजी को पहली बार सुनना इतनी उम्मीदें जगा गया है कि निग़ाहें इस मंच के हर मुशायरें में आपकी ग़ज़ल ढूँढें तो आश्वर्य न हो.
ये मातमों के मंजर.. . में ’हर राह’ को फिट कर मंजर का सामान्यीकरण दिल को छू गया है.
आँखों ख्वाब कितने परसे थे ज़िन्दग़ी ने.. . में मासूम ज़िंदादिली को हालात से मिल रहे मुसलसल थपेड़ों का कितना सुन्दर बयान हुआ है ! वाह-वाह !
आपकी इस ग़ज़ल को मैं दिल से दाद देता हूँ. तथा, आने वाले समय के लिए सादर शुभकामनाएँ प्रेषित हैं.
शुभेच्छाएँ..
सौरभ जी पह्ले तो एक ख़ूब्सूरत और आसान ज़बान में बड़ी बात कह देने वाली ग़ज़ल के लिये मुबारकबाद क़ुबूल करें
हटाएंइतनी प्रशंसा की मैं हक़दार नहीं हूं जितनी आप ने कर दी है ,,ज़र्रानवाज़ी है आप की ,,इस हौस्ला अफ़्ज़ाई के लिये बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीया इस्मत जी
जवाब देंहटाएंख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़बूल फ़रमाइये.
`ज़ुल्फ़ों की की छाँव की या रुख़्सार-ओ-लब की बातें'
शे'र साथ लिये जा रहा हूँ.
यूँ तो सारी ग़ज़ल ही बहुत ख़ूब है.
बहुत बहुत शुक्रिय द्विज जी
हटाएंआदरणीय भाई सौरभ जी,
जवाब देंहटाएंखूबसूरत मतला
सूरज भले ही बेजान है ... लेकिन धुन्ध में तूफ़ान पल रहा है. बहुत ख़ूब.
संस्कारों के भाव पूछता समन्दर ठगा ही रह जायेगा... सुंदर.
मौसमों की तिजारत....
गिरह...
चिढ़े हुए खण्डहर.....
नि:सन्देह..... प्रभावशाली ग़ज़ल... और आश्वस्ति कि आपकी कलम से और भी ख़ूब ग़ज़लें आती रहेंगी.
हार्दिक बधाई.
आपकी नज़रों में यह ग़ज़ल क़ामयाब है तो यह मेरे रचनाकर्म को अनुमोदन है. द्विजेंद्रभाई अवश्य ही अभ्यास और प्रयास आगे भी जारी रहेंगे.
हटाएंआदरणीया सुमित्रा शर्मा जी
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति ग़ज़ल की.
आपक हार्दिक स्वागत.
सभी धमाकेदार ग़ज़लें ...
जवाब देंहटाएंइस्मत जी की ग़ज़लें हमेशा से दिल को छूती हैं ...
जुल्फों की छाँव ... ये ऐसा ही शेर है जो हकीकत के बहुत करीब है ...
आंसू बता रहे हैं ... बहुत ही सीधा सच्चा ओर दिल में उतर जाने वाला शेर है ...
वो जाते जाते उनका इक बार मुड के कहना ... कितनी सादगी से दिल की बात कह दी आपने ...
आनंद आ गया पूरी गज़ल पढ़ने के बाद ...
बहुत बहुत धन्यवाद उत्साह्वर्धन के लिये
हटाएंसादगी ओर सहज ही कहे सौरभ जी के शेर तो बेमिसाल हैं ... उनकी ग़ज़लें आकार नई बात सिखा जाती हैं ... उनका शब्द संयोजन ... भाव की स्पष्टता बरबस वाह वाह करने को मजबूर करती है ...
जवाब देंहटाएंमतला ऐसा की मजार सामने आ जाए ...
रखना खुले झरोखे .. नए अंदाज़ का शेर है ...
आखरी शेर तो आज के हालात का हूबहू चित्रण कर रहा है ...
तालियाँ बजाने का मन करता है इतनी लाजवाब गज़ल के बाद तो ... लाजवाब ...
भाई दिगम्बर नासवा जी, मेरी इस ग़ज़ल को मिला आपका मुखर अनुमोदन यह आश्वस्त करता है कि यह प्रस्तुति अपनी जगह प्रयासरत रहना अधिक आवश्यक है.
हटाएंपरस्पर सहयोग बना रहे.
आदरणीय सुमित्रा जी की गज़ल भी बहुत प्रभावित करती है ...
जवाब देंहटाएंये मतामों के मंज़र ... आज के हालात पे सटीक टीका है ..
ग़मगीन सी हैं गालियाँ .. एक आम आदमी की पीड़ा को दर्शाता हुआ शेर है ...
कब तक छुपेगा सूरज ... फिर से आशा की किरण लिए ... आने वाले कल का इस्तिक्बाल करता है ये शेर ...
पूरी गज़ल भावपूर्ण ओर अर्थवान ...
सबसे पहले आपा ने जो गिरह लगाई उसकी.. इन्होने गिरह की दायरे को ही बढा दिया है ! वाह वाह क्या बात है खडे होकर तालियाँ इस गिरह पर !
जवाब देंहटाएंमतला बेहद ख़ुबसुरत है ... सच मे पूरी ग़ज़ल जिस सादगी के लिबास मे है उसके क्या कहने ! ऐसी ग़ज़ले देर तक असर करती हैं ! जह्न मे एक तासीर रखती हैं! सच मज़ा आ गया ! और रोटी के आसरे वाले शे'र ने जैसे झक्झोर कर रख दिया है ! वाह आपा मज़ा आ गया !
सौरभ जी की अपनी एक अलग शैली है जिसमे वो ग़ज़ल मे एक रूह पैदा करते है! और ग़ज़ल जैसे ज़िन्दा हो जाती है! एक रवानी होती है , गिरह के साथ मतला बहुत क़ामयाब हुआ है ! शे'र दर शे'र हक़ीक़त बयानी है ! सवाल है ख़ुद से ! वाह सौरभ जी क्या खूब ग़ज़ल हुई है ! बहुत बहुत बधाई !
सुमित्रा जी का तो सबसे पहले इस ब्लोग पर बहुत बहुत स्वागत है ! इनकी ग़ज़ल बहुत अच्छी हुई है! ये मातमों के मंज़र वाला शे'र ख़ूब है ! ये इस ब्लोग परिवार मे आई और हमें इतनी खुब्सूरत ग़ज़ल से नवाज़ा ! वाह वाह एक बहुत ही अच्छी ग़ज़ल के लिये इन्हे बहुत बहुत बधाई ! उम्मीद करता हूँ आगे भी इनकी अच्छी ग़ज़ले पढने को मिलती रहेंगी !
बहुत-बहुत धन्यवाद, प्रकाश अर्श भाई. अब आपसे क्या कहना. प्रस्तुतियों के पूर्व हमेशा एक असहजपन-सा बना रहता है, जबतक कि सुधीजनों के कहे आश्वस्त न कर दें. कारण क्या बताना, आप सभी जानते हैं.
हटाएंमेरी ग़ज़ल-प्रस्तुतियों की बाबत आपने जो कुछ कहा है, यकीन मानिये, उसी ट्रैक पर चलने की कोशिश आगे भी जारी रहेगी, भले यह कोशिश फिलवक़्त तोतली जुबान में बोलती हुई दिखती है.
सहयोग बना रहे.
बहुत बहुत शुक्रिया अर्श ,, ख़ुश रहो ,सलामत रहो
हटाएंमाफ़ी चाहता हूँ देर से प्रतिक्रिया देने के लिए। इन दिनों इतना व्यस्त चल रहा हूँ की अपने लिए वक्त ही निकाल नहीं पा रहा हूँ बहुत ख़ुशी मिलती है आप जैसे अच्छे गजल कहने वाले को पड़ कर। ....
जवाब देंहटाएंआदरणीया इस्मत ज़ैदी बहुत अच्छी गजल कही है बधाई !
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आपको जब भी पड़ता हूँ बहुत कुछ सिखने को मिलता है बहुत अच्छी गजल .
आदरणीया सुमित्रा शर्मा जी हर शेर पर ये कहुगा की वाह वाह क्या बात है बहुत बढ़िया लिखा है बधाई हो
बहुत बहुत शुक्रिया तपन जी
हटाएंभाई तपनजी, बहुत सधे हुए मंच पर हैं हम-आप. परस्पर सहयोग बना रहे.
हटाएंइस्मत दी को पढना एक अनुभव होता है . सौरभ जी और सुमित्रा जी को पढना रुचिकर लगा .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आशीष !
हटाएंधन्यवाद, आशीषजी.
हटाएंआदरणीया इस्मत दीदी जी,
जवाब देंहटाएंआपको पढना सुनना हमारे लिए एक सुखद अहसास तो है ही साथ में यह एक "मेमोरेबल नोट" भी हो जाता है. इस ग़ज़ल के सभी शेर अपना एक विशिष्ट प्रभाव बना रहे है। और जैसा के मैंने कहा "यादगार चिह्न" वो इसलिए कि आपके हर ग़ज़ल का कम अज कम एक शेर ऐसा जरुर होता है जो हमारे यादों में कभी न मिटने वाला हिस्सा बना लेता है. बस एक बार सुन लो - फिर याद रखने के लिए कोई जतन नहीं करना पड़ता। "वो जाते जाते उस का इक बार मुड़ के कहना "
कोमल अहसासों से लबरेज तारीफ़ के लिए कोई शब्द नहीं हो सकते। बरबस ही आपके वो शेर याद आ गये… "उड़ चला माज़ी की जानिब जब तयख्खुल का परिंदा; ..." आगे "अच्छी लगे ये जब तक ....रोटी का आसरा है" मतलब आपकी रचनाये सादे में ख़ूबसूरत होती है.
आदरणीय सौरभ जी,
आपके सरल व्यक्तित्व के भीतर विशिष्ट ज्ञान है. ऐसा आपकी प्रतिक्रियाओं में देखता रहता हूँ . आज की ये ग़ज़ल बहुत ख़ास लग रही है.
धुंध में अगन है,,, समंदर का ठगा रह जाना,,, क्या बात कही है आपने सर. इसमें एक दर्द महसूस कर रहा हूँ, समंदर जैसे विशाल ह्रदय वाले हर उन व्यक्तियों का जो अपने जीवन काल में एक आदर्श विश्वव्यवस्था के सपने को हकीकत में पान चाहते हैं। आखरी के शे'र भी बहुत खूब हुये. बहुत बहुत बधाई सर जी !!
आदरणीया सुमित्रा जी,
आपको पहली बार सुना और आपने खूब प्रभावित किया है.
ग़मगीन सी है गलियाँ / आँखों को ख्वाब कितने परसे थे ज़िन्दगी ने /आने को है उजाला इतना मुझे पता है / दिल को छू गए सभी अश'आर
बहुत बहुत बधाई आपको। अब आप नियमित आते रहिये. शुक्रिया !!
बहुत-बहुत धन्यवाद कि मेरा कहा रुचिकर लगा, सुलभ भाई.
हटाएंपरस्पर सहयोग बना रहे.
सुलभ आप को कलाम पसंद आया ,शुक्रिया , ख़ुश रहिये हमेशा,
जवाब देंहटाएंये जान कर और भी अच्छा लगा कि आप को इन मामूली सी ग़ज़लों के अश’आर भी याद हैं
मेरा आशीर्वाद आप सब के साथ है
इस्मत जी ,सौरभ जी और सुमित्रा जी को बहुत बहुत बधाई बहुत ही लाजवाब गजले ...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया पारुल जी
हटाएंबहुत देर से आई हूं... अभी सारी टिप्पणियां पढ रही थी. मेरे कहने के लिये तो कुछ बचा ही नहीं. इस्मत को पढती हूं, तो बस चकित होती हूं. शब्द-शब्द जज़्ब होता चला जाता है... समझ में ही नहीं आता ऐसा कैसे कर पाती है वो?
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद वन्दना वैसे ये सब तुम्हारा ही त्प प्रताप है
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