गुरुवार, 8 नवंबर 2012

अभिनव शुक्‍ल, धर्मेंद्र कुमार सिंह और सौरभ शेखर के साथ हम आज से प्रारंभ कर रहे हैं दीपावली का तरही मुशायरा ।

दीपावली आ ही गई है । रौशनी का पर्व । जिसे ठीक उस दिन ही मनाया जाता है जिस रात अमावस होती है । हम सब जीवन भर अंधेरे से एक लड़ाई लड़ते रहते हैं । कभी ये अंधेरा जीतता हुआ नज़र आता है तो कभी हम उससे जीतते हुए नज़र आते हैं । पिछले दिनों एक राजनेता के किसी बयान पर जिसमें एक नायक और खलनायक की तुलना की गई थी काफी बवाल  हुआ । दरअसल उक्‍त राजनेता बात को ग़लत तरीके से बोल गये थे । आई क्‍यू के स्‍थान पर बात होती है सकारात्‍मक और नकारात्‍मक ऊर्जा की ।  सकारात्‍मक ऊर्जा जो प्रतीक होती है रौशनी का, उजाले का, प्रकाश का । नकारात्‍मक ऊर्जा जो प्रतीक होती है अंधकार का, तम का । तो बात वही है कि आप अपने अंदर की कौन सी ऊर्जा का पोषण कर रहे हैं । हमारे पूर्वज कह कर गये हैं कि 'जैसा खाओगे अन, वैसा होगा मन' । इसी बात का विस्‍तार दिया जाये तो मेरे विचार में हम जो कुछ पढ़ते हैं, सुनते हैं देखते हैं उसका ही हम पर सबसे ज्‍यादा असर होता है । और उसी के कारण हमारे अंदर की सकारात्‍मक या नकारात्‍मक ऊर्जा का पोषण होता है । और उसी के चलते हममें से कोई गांधी या विवेकानंद बन जाता है तो कोई हिटलर । बात आई क्‍यू की नहीं है बात है सकारात्‍मक या नकारात्‍मक ऊर्जा की । और उसीके चलते हम अपनी तरह की ऊर्जा वालों के साथ एक जुड़ाव महसूस करते हैं । आइये इस दीपावली अपने अंदर की सकारात्‍मक ऊर्जा को और बढ़ाएं और अपने अंदर के प्रकाश को मजबूत करें ।

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घना जो अंधकार हो, तो हो रहे, तो हो रहे

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आज तीन शायरों के साथ हम शुरूआत कर रहे हैं । तीन के साथ इसलिये क्‍योंकि जितनी ग़ज़लें प्राप्‍त हुई हैं उस हिसाब से हम तीन तीन को लेकर भी दीपावली तक चल सकते हैं । आज दीपावली के तरही की शुरूआत कर रहे हैं अभिनव शुक्‍ल, धर्मेंद्र कुमार सिंह और सौरभ शेखर। तीनों की ग़ज़लें अपने अपने रंग में हैं और विभिन्‍न भावों को समेटे हैं । तो आइये सुनते हैं तीनों की ग़ज़लें ।

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dharmendra kumar

धर्मेन्द्र कुमार सिंह

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हजार बार हार हो, तो हो रहे, तो हो रहे
सपाट गर लिलार हो, तो हो रहे, तो हो रहे

बस एक दीप चाहिए बना रहे जो राहबर
घना जो अंधकार हो, तो हो रहे, तो हो रहे

बहू तो लाइए जरा, सुनेगा फिर न आपकी
सपूत होनहार हो तो हो रहे तो हो रहे

न आँख मूँद कर कभी किसी को मानिए खुदा
कोई युगावतार हो, तो हो रहे, तो हो रहे

लगाइए, निराइए, फसल जहाँ में प्यार की
भविष्य में तुषार हो, तो हो रहे, तो हो रहे

विजय समय की बात है जो मित्र मेरे साथ हों
रकीब होशियार हो, तो हो रहे, तो हो रहे

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बहुत सुंदर ग़ज़ल कही है । मतला ठीक प्रकार से गढ़ा गया है । इस बार का मिसरा ज़रा सी चूक से हिंदी का वाक्‍य दोष बनने की संभावना लिये हुए है । इस बात का इस ग़ज़ल में बहुत ध्‍यान रखा गया है । न आंख मूंद कर कभी, में एक बहुत सामयिक विषय पर इशारों में बात कर दी गई जो प्रभावी बन पड़ी है । गिरह का शेर भी भली प्रकार से बांधा गया है दीपक को राहबर बना कर अंधेरे से लड़ने की बात को खूब गूंथा है । आखिरी शेर भी सुंदर है । वाह वाह वाह, खूब आगाज़ है मुशायरे का ।

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अभिनव शुक्‍ल

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जो मेघ पर मल्हार हो, तो हो रहे, तो हो रहे,
नदी की तेज़ धार हो, तो हो रहे, तो हो रहे.

ये कोई कम नहीं हमारा हौसला बुलंद है,
कमीज़ तार तार हो, तो हो रहे, तो हो रहे.

अब उल्लुओं से और क्या निज़ाम चाहते हो तुम,
घना जो अन्धकार हो, तो हो रहे, तो हो रहे.

जमाई जी तो खा चुके हैं जम के खीर पूड़ियाँ,
जो सास पर उधार हो, तो हो रहे, तो हो रहे.

हमारे तुम, तुम्हारे हम, तुम्हारे हम, हमारे तुम,
इसी का नाम प्यार हो, तो हो रहे, तो हो रहे.

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वाह अब उल्‍लुओं से और क्‍या निज़ाम वाले शेर में कमाल कमाल गिरह बांधी है, मन खुश हो गया । गिरह का मिसरा सानी एकदम बरस कर आ रहा है । कमाल गिरह । झकझोर देने वाला शेर, बहुत आगे जाने वाला शेर । प्‍यार की परिभाषा को अंतिम शेर में बखूबी व्‍यक्‍त किया गया है । और कमीज़ तार तार में मिसरा उला में वाक्‍य का गठन प्रभावी बन पड़ा है । वही सहजता जिसकी बात हम पिछली पोस्‍ट में कर चुके हैं । बहुत सुंदर ग़ज़ल कही है वाह वाह वाह ।

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saurabh shekhar

सौरभ शेखर

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बदी का कोहसार है, तो हो रहे,तो हो रहे
सफ़र तवील यार है, तो हो रहे,तो हो रहे

न कम हुआ जुनूँ अभी, न हौसला हुआ है कम
शदीद इन्तिशार है, तो हो रहे,तो हो रहे

लिखा तो जायेगा हमारा नाम जंगजूओं में
अगर हमारी हार है, तो हो रहे,तो हो रहे

अकेली लौ चिराग की बहुत है इसके वास्ते
'घना जो अन्धकार है, तो हो रहे,तो हो रहे'

मुहब्बतें तो खुशबुओं की तर्ह फ़ैल जाएँगी
अना का गर हिसार है, तो हो रहे,तो हो रहे।

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मतला ही शुरू में अपनी ओर खींच रहा है बदी के कोहसार के साथ सफर के तवील होने की बात का बहुत सुदंरता के साथ जोड़ा है । सौरभ ने 'हो' के स्‍थान पर 'है' को बांधा है । गिरह का शेर खूब बन पड़ा है । अकेली लौ चराग़ की बहुत है इसके वास्‍ते, में जो ललकार है वो कई कई प्रश्‍नों के उत्‍तर समेटे हुए है । और जो शेर बाकमाल बना है वो है लिखा तो जायेगा हमारा नाम जंगजुओं में । ये शेर लम्‍बी दूरी का घोड़ा है । खेल भावना को भली प्रकार से अभिव्‍यक्‍त करता हुआ । वाह वाह वाह ।

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तो आज तीनों शायरों ने रंग जमा दिया है । शानदार आगाज़ किया है मुशायरे का । कमाल कमाल के शेर कहे हैं । जितने कमाल शेर हैं उतनी ही दाद दी जाये । आनंद लीजिये तीनों ग़ज़लों का और मन से दीजिये दाद । कल मिलते हैं कुछ और शायरों के साथ ।

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61 टिप्‍पणियां:

  1. वाह. मुशायरे की बहुत ज़ोरदार शुरुआत हुई है..तीनों शायरों ने गजब के शेर कहे हैं.
    धर्मेन्द्र जी के:
    'बस एक दीप चाहिए..', 'न आँख मूँद कर..' खास तौर पर पसंद आये.
    अभिनव जी का 'अब उल्लुओ..' वाला शेर तो बस कमाल है. मतला भी ज़ोरदार है.
    सौरभ जी ने भी गिरह बहुत खूब बाँधी है. मतला भी बहुत सुन्दर है और 'लिखा तो जाएगा..' वाला शेर बहुत अच्छा लगा.
    तीनो शायरों को दिली मुबारकबाद.

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  2. दीपावली की शुभकामनाओ एवं नकारात्मक तथा सकारात्मक विचारों की सटीक विवेचना के साथ शुरुआत हुई है इस मुशायरे की. मन जगमगा गया.

    धर्मेन्द्रजी को सुनना सदा से एक अनुभव हुआ करता है. वे अपनी ग़ज़ल के शेरों में नये बिम्ब गढ़ते हैं. इस बार भी ऐसा ही है. इसी लहजे में मुझे आखिरी शेर विशेष रूप अपना-अपना सा लगा है. गिरह के शेर पर ढेरों दाद कुबूल फ़रमाइये, हुज़ूर.
    आपकी ग़ज़ल में लिलार, निराना आदि शब्दों के प्रयोग ने माहौल को मनसायन कर दिया है. बहुत-बहुत बधाई व दिवाली की शुभकामनाएँ, धर्मेन्द्र भाई.

    अभिनव शुक्लजी को संभवतः पहली बार सुन रहा हूँ. उल्लुओं और अंधकार को लेकर आपने बहुत जानदार गिरह लगायी है. अभिनवजी का आखिरी शेर कितनी आसानी से कितना कुछ कह रहा है ! वाह ! अभिनवजी को बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ.. .

    भाई सौरभ शेखरजी का व्यक्तित्व आपकी अभिव्यक्तियों से बखूबी संप्रेषित होता है. न कम हुआ जुनूं अभी.. तथा लिखा तो जायेगा हमारा नाम.. इसी ऊँचाई के शेर हैं.
    गिरह के शेर पर भाई सौरभ शेखरजी को विशेष बधाई.. .

    शुभ-शुभ

    --सौरभ पाण्डेय, नैनी, इलाहाबाद (उप्र)

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  3. अभिनव शुक्ल, धर्मेंन्द्र सिंह और सौरभ भाई की ग़ज़लों ने कमाल कर दिया। लगा साहित्यिक दीवाली शुरू हो गयी है। तीनों ने तरही मुशायरे को सफल कर दिया, लेकिन अभिनव को पढ़ना और अधिक सुखद लगा। शुभकामनाये। इस बार चाह कर भी मैं शामिल न हो सका, इसका अफसोस है। सभी रचानाकार मित्रो को दीपावली की शुभकामनाये।

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  4. तीनों शायरों की ग़्ज़लें एक से बढ कर एक हैं। आप तीनों को बहुत बहुत बधाई।
    मुशायरे की बेहतरीन शुरुवात के लिये सुबीर भाई और दीपावली पर्व की सभी को मुबारकबाद्।

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  5. "आगाज़ तो अच्छा है अंजाम खुदा जाने,,,," वाले गाने में असमंजसता है लेकिन अबकी बार की तरही में अंजाम का पता लग रहा है,,,हर बार की तरह इस बार की तरही भी बुलंदियों को छूएगी,,,जिस तरही की शुरुआत धरमेन्द्र जी की ग़ज़ल " बस एक दीप चाहिए,,," जैसे लाजवाब शेर से हुई हो उसकी कामयाबी शत प्रतिशत है,,,

    उसके बाद अभिनव जी के शेर " अब उल्लुओं से और क्या निजाम,,," जैसे बिलकुल नयी ज़मीन पर कहे शेर और "हमारे तुम तुम्हारे हम,,,जैसे प्यार की चाशनी में डूबे शेर, सौरभ जी के "लिखा तो जाएगा हमारा नाम,,," और अकेली लौ चिराग की ,,,," जैसे खुद्दार शेर तालियाँ बजाने को मजबूर कर रहे हैं,,,,

    इन तीनों युवा शायरों को ढेरों दाद,,,,

    कल की तरही का बेसब्री से इंतज़ार है।

    नीरज

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    1. चौं भाई मियां ब्‍लाग की सजावट करने वाले के लिये दो फूटे शब्‍द भी नहीं, बहुत बेइन्‍साफी है ये ।

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    2. गुरुदेव हम बहुत कोशिश किये लेकिन ब्लॉग की सज्जा के लिए प्रशंशा के उपयुक्त शब्द पूरा शब्द कोष छानने के बाद भी नहीं मिले,,,जो शब्द मिले वो सूरज को दीपक दिखाने के समान मिले,,,क्या कहते,,,मन ही मन आप और आपकी टीम का अभिवादन किये और तालियाँ बजाते रहे,,,जय हो।

      नीरज

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    3. हमें तो अभी तक बहुत से लोगों ने पैदा होने की बधाई भी नहीं दी है शब्‍दकोष में शब्‍द न मिलने के कारण।

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    4. गुरुवर,

      साज सज्जा और छटा निराली है। लेकिन मोबाइल और टेबलेट पर भारी जरुर पड़ है।

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  6. तीनों ग़ज़ल प्रमाण हैं कि तरही मिसरा चुनौतीपूर्ण अवश्‍य था लेकिन असंभव नहीं। जिस विविधता के रंग इन ग़ज़लों में समेटे गये हैं वह स्‍पष्‍ट करते हैं कि यह मिसरा कहन का दायरा भी सीमित नहीं करता, बस प्रयासिक गंभीरता की मॉंग अवश्‍य करता है।
    पंकज भाई के साथ-साथ तीनों शायर बधाई के पात्र हैं।

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    1. सही कहा तिलक जी । सौरभ ने जिस प्रकार से नये काफियों की खोज की है वो यही बताती है कि प्रयास तो करना ही होगा । किसी ने कहा भी तो है कि 'या तो आप सफल होते हैं या आपके पास बहाने होते हैं'

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    2. सर दिल्ली में भेंट के दौरान जब आपने कहा कि इस मिसरे को चुनौती के रूप में लो तो सहज ही आत्मविश्वास बढ़ गया।आपके स्नेह को सौभाग्य समझता हूँ।

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  7. दीपावली तरही मुशायेरे की शुरुआत हो चुकी है, ये सुनकर ही मन उल्लास से भर गया है और साथ-साथ जो ग़ज़लें पढने का इंतज़ार था वो भी ख़त्म हुआ. अब तो ग़ज़लों और गीतों के धूम धड़ाके में डूबने का वक़्त आ गया है. शुरुआत तीन धुरंधर शायरों से हो रही है.

    धर्मेन्द्र जी, हमेशा नए-नए शब्दों के प्रयोगों से आनंद लाते हैं, मतला इसी की बानगी है.
    गिरह बहुत उम्दा बाँधी है, "बस एक दीप चाहिए..............", वाह वाह
    "न आँख मूद कर........." वाला शेर भी अच्छा कहा है.
    बधाई स्वीकारें.

    अभिनव जी, इस ब्लॉग से शुरुआत से जुड़े हुए हैं, और अपनी उपस्थिति बनाये रखते हैं. ये शेर खासतौर पे पसंद आये.
    ये कोई कम नहीं हमारा हौसला बुलंद है,
    कमीज़ तार तार हो, तो हो रहे, तो हो रहे.

    और ये तो हासिल-ऐ-ग़ज़ल है
    हमारे तुम, तुम्हारे हम, तुम्हारे हम, हमारे तुम,
    इसी का नाम प्यार हो, तो हो रहे, तो हो रहे.
    बेहद खूबसूरत. बधाइयाँ.

    सौरभ भाई, खूबसूरत अशआर के मालिक. अभी तो मेरे ज़ेहन से इनकी पिछली तरही में कही ग़ज़ल का नशा नहीं उतरा है. इस बार भी बहुत खूबसूरत शेर गढ़े हैं.
    मतला लाजवाब बुना है. वाह वाह
    "लिखा तो जायेगा हमारा नाम जंगजूओं में .............." लाजवाब शेर है.
    "अकेली लौ चिराग की बहुत है इसके वास्ते .......", बहुत उम्दा गिरह बाँधी है.
    "मुहब्बतें तो खुशबुओं की तर्ह फ़ैल जाएँगी ..............", बेहद खूबसूरत शेर.
    वाह वाह वाह............दिली दाद कुबूल करें.
    आप की पिछली ग़ज़लों की तरफ देखूं तो इसमें शेरों की संख्या कम मिली, इतनी नाइंसाफी क्यों.

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    उत्तर
    1. अंकित भाई शुक्रिया।अशआर कम इसलिए हुए कि एक तो सख्त ज़मीन ऊपर से बड़ों की नसीहत।आपकी ग़ज़ल का इंतज़ार है।

      हटाएं
  8. वाकई कमाल और धमाल आगाज़ है मुशायरे की, राकेट, अनार एक से एक छूटें..
    धर्मेन्द्र जी, अभिनव जी, सौरभ जी, आप तीनो को बहुत बहुत बधाई!!

    एक बार पुनः प्रभावी भूमिका के साथ सुन्दर मंच सजा है.
    (अरे अभी अचानक से एक काफिया भी मिला, अनार. कल तो कुछ सूझ ही नहीं रहा था)

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  9. वाकई कमाल और धमाल आगाज़ है मुशायरे की, राकेट, अनार एक से एक छूटें..
    धर्मेन्द्र जी, अभिनव जी, सौरभ जी, आप तीनो को बहुत बहुत बधाई!!

    एक बार पुनः प्रभावी भूमिका के साथ सुन्दर मंच सजा है.
    (अरे अभी अचानक से एक काफिया भी मिला, अनार. कल तो कुछ सूझ ही नहीं रहा था)

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  10. वाकई कमाल और धमाल आगाज़ है मुशायरे की, राकेट, अनार एक से एक छूटें..
    धर्मेन्द्र जी, अभिनव जी, सौरभ जी, आप तीनो को बहुत बहुत बधाई!!

    एक बार पुनः प्रभावी भूमिका के साथ सुन्दर मंच सजा है.
    (अरे अभी अचानक से एक काफिया भी मिला, अनार. कल तो कुछ सूझ ही नहीं रहा था)

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  11. धर्मेंद्र जी मतला ही बढ़िया बना है "सपाट गर लिलार हो" में लिलार शब्द आकर्षित कर रहा है।

    सपूत होनहार हो.... :) :) होनहार सपूत ही तो....

    "ना आँख मुँद कर कभी" बहुत सही बात कही आपने, बस निर्मल बाबा तक ना पहुँचे...:)

    तुषार काफिये को बहुत सटीक तरीके से निभाया आपने.. बधाई बधाई।

    पूरी ग़ज़ल ही उत्तम।

    अभिनव जी!

    "जमाई जी तो खा चुके हैं जम के खीर पूड़ियाँ"

    क्या बेहतरीन व्यंग्य है। खूब खूब।

    सौरभ शेखर जी की भी ग़ज़ल बहुत ही अच्छी।

    आप सब को बधाई और बधाई आयोजक को....!!

    फिर मिलते हैं कल।

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    उत्तर
    1. लम्बे रदीफ़ का मतला कहना मुझे बड़ा कठिन लगता है। इत्ते से मतले के लिए बहुत बार दीवाल पर सर पटकना पड़ा। पता नहीं लोग लम्बे रदीफ़ पर भी खूबसूरत मतला कैसे कह लेते हैं। पसंद करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया।

      हटाएं
    2. जो मुझ जैसे आलसियों के मेलबाक्स में मेल डाल डालकर मिसरे निकाल ले उसे आयोजक कहते हैं। :)

      हटाएं
  12. गुरूवर,

    सबसे पहले तो समस्त गुरू परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाईयाँ, त्यौहारों के मौकों पर खुशियों, मिठाईयों के साथ साथ जिसका इंतजार रहता है वह है.....तरही, जिस प्रकार होली की शुरूआत होली का डांडा गाड़ने से ही हो जाती थी वैसे ही तरही की शुरूआत मिसरे से होती है फिर तो सभी अपने अपने रंग घोलने को तैयार हो जाते हैं। गुरूजी ने जो पूर्व कथ्य लिखा है सकरात्मक ऊर्जा और नकारात्मक ऊर्जा के बारे में क्या कहना।

    सभी गज़लें एक नया विजन नया संदेश दे रही हैं और गज़ल की टेक्निकलिटी के बारे में सभी गुणी जनों ने खूब कहा है, मैं तो सिर्फ आनन्द ही ले रहा हूँ।

    सादर,

    मुकेश कुमार् तिवारी

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  13. धर्मेन्द्र जी , अभिनव जी और सौरभ जी , आप तीनों ने अच्छा लिखा है ,तीनों की अपनी अपनी खासियत है !

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  14. सौरभ, मेरे प्यारे...क्या कहूँ, विगत छ-सात महीने से जिस तरह के शेर तुम कहने लगे हो...चकित हूँ| चकित कम हूँ जला-भुना ज्यादा हूँ, सच कहूँ तो :-)

    कहाँ से काफ़िये निकाल के लाये हो वत्स....हम कमबख़्त सर धुनते रह गए और वही गिने-चुने पारंपरिक काफ़ियों में ही उलझे रहे और इधर तुम "कोहसार" "इंतिशार" और "हिसार" से लूट ले गए| पीठ थपथपाकर करोड़ों दाद! लिखते रहो यूं ही...अल्लाह करे ज़ोरे-कलम और ज़ियादा !

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    1. चुभती-चुभती-सी ये कैसी पेड़ों से है उतरी धूप
      आंगन-आंगन धीरे-धीरे फैली इस दोपहरी धूप

      गर्मी की छुट्‍टी आयी तो गाँवों में फिर महके आम
      चौपालों पर चूसे गुठली चुकमुक बैठी शहरी धूप

      जिक्र उठा है मंदिर-मस्जिद का फिर से अखबारों में
      आज सुबह से बस्ती में है सहमी-सहमी बिखरी धूप

      बड़के ने जब चुपके-चुपके कुछ खेतों की काटी मेंड़
      आये-जाये छुटके के संग अब तो रोज कचहरी धूप

      झुग्गी-झोंपड़ पहुंचे कैसे,जब सारी-की-सारी हो
      ऊँचे-ऊँचे महलों में ही छितरी-छितरी पसरी धूप

      बाबूजी हैं असमंजस में, छाता लें या रहने दें
      जीभ दिखाये लुक-छिप लुक-छिप बादल में चितकबरी धूप

      घर आया है फौजी, जब से थमी है गोली सीमा पर
      देर तलक अब छत के ऊपर सोती तान मसहरी धूप

      हटाएं
    2. भैया ऐसी ग़ज़लों से हम सब दोस्त जितने जले-भुने बैठे हैं, उसकी तो तुलना ही नहीं हो सकती।और हाँ 6-7 महीने पहले तो एक ही उल्लेखनीय घटना हुई थी मेरे साथ,और वो है आपसे भेंट।

      हटाएं
  15. शुकुल जी, बड़े दिनों बाद अवतरित हुये हैं...कहाँ गुमशुदा हो जाते हैं महाराज? आपके हास्य की चाशनी में लिपटे अशआर की प्रतीक्षा रहती है इस मंच पर, वैसे देख रहा हूँ आजकल उधर अंतर्राष्ट्रीय मंच पे छाए हुये हैं कवि-सम्मेलनों में ....
    जमाई जी तो खा चुके वाले पे ठहाके लगाने से रोक नहीं ...टिपिकल अभिनव शुक्ल स्टाइल :-)

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  16. धर्मेन्द्र जी उर्फ DKS-poet साब को सलाम ! आपका ये नया-नवेला अंदाज़ सब का ध्यान खींच रहा है इन दिनों...लफ़्ज़ वेब पर भी देखा और अब इधर भी| बहुत खूब...सपूत होनहार के व्यंग्य की मार बड़ी पैनी बन पड़ी है |

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    उत्तर
    1. हजूर सलाम तो हम करते हैं आपको। गोली और ग़ज़ल से एक साथ खेलना सब के बस की बात नहीं। आपको मिसरे पसंद आए इसके लिए बहुत बहुत शुक्रिया।

      हटाएं
  17. अरे धुत धुत ...कमेंटबा सब कहाँ बिला जा रहा है , तनिक देखिएगा गुरूदेव...माना कि ब्लौग का छटा बहुते निखर रहा है लेकिन एतना भारी भरकम ग्राफिकबा से हमरा नेट का सपीड हाँफने लगता है .... रहम खाइये अपने होनवार बचबा पर

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  18. तीनों गज़लें खूबसूरती से कही गई हैं. अभिनव का खीर वाला शेर सचमुच उसकी पसन्द बता रहा है. सौरभ और धर्मेन्द्र के सुन्दर शेर पढ़कर कुछ पुरानी प<क्तियाँ याद आ गईं

    तम की सत्ता से लड़ने को, हाथों में मशाल हो न हो
    एक दीप है साथ हमारे बस इतना विश्वास बहुत है.

    शुरुआत में ही दीपावली के अनार और फ़ुलझड़ियाँ छूट रहे हैं. अब संभलने की रुत आ गई है क्योंकि अगले पटाखे और बम इस ब्लाग पर अपनी दिवाली मनवाने आने वाले हैं. आप चारों को साधुवाद.

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  19. धर्मेद्र जी
    जिस सहजता से आप हिन्दी के शब्दों का प्रयोग करते हैं और तद्भव से तत्सम शब्दावली तक आपका जो 'कमांड' है वह देखते ही बनता है
    एक फ्लो जो हमें तद्भव से तत्सम तक तिरते रहने को मजबूर करता है
    और मजबूरी भी कैसी ... जिसमें सिर्फ और सिर्फ आनंद हो ...
    वाह वा मित्रवर हार्दिक बधाई स्वीकार करें


    बस एक दीप चाहिए बना रहे जो राहबर
    घना जो अंधकार हो, तो हो रहे, तो हो रहे

    सच कहता हों मैंने भी मिसरा ए तरह यही गिरह लगाई थी .. मगर कुछ और सूछ गया तो बदल कर कंट्रास्ट लाने की कोशिश की ...

    बहू तो लाइए जरा, सुनेगा फिर न आपकी
    सपूत होनहार हो तो हो रहे तो हो रहे

    न आँख मूँद कर कभी किसी को मानिए खुदा
    कोई युगावतार हो, तो हो रहे, तो हो रहे

    ये दो शेर भी खूब पसंद आये

    जय हो

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    1. आपका तो तारीफ़ करने का भी अंदाज शायराना है। बहुत बहुत शुक्रिया मित्र इस अपार स्नेह के लिए।

      हटाएं
  20. अभिनव जी
    यह तेवर और तंज़
    माशाल्लाह, क्या कहने
    मैं खुद इस रंग में कहने की कोशिश करता हूँ इसलिए बेहिचक कह सकता हूँ कि यह शेर खूब सबसे जियादा पसंद आये
    ढेरों दाद !

    अब उल्लुओं से और क्या निज़ाम चाहते हो तुम,
    घना जो अन्धकार हो, तो हो रहे, तो हो रहे.

    जमाई जी तो खा चुके हैं जम के खीर पूड़ियाँ,
    जो सास पर उधार हो, तो हो रहे, तो हो रहे.

    जवाब देंहटाएं
  21. वाह वा !

    सौरभ साहेब क्या रवां दवां ग़ज़ल कही है

    न कम हुआ जुनूँ अभी, न हौसला हुआ है कम
    शदीद इन्तिशार है, तो हो रहे,तो हो रहे.......... जिंदाबाद

    लिखा तो जायेगा हमारा नाम जंगजूओं में
    अगर हमारी हार है, तो हो रहे,तो हो रहे...... आफरीन

    अकेली लौ चिराग की बहुत है इसके वास्ते
    'घना जो अन्धकार है, तो हो रहे,तो हो रहे'... खूब गिरह लगाई

    मुहब्बतें तो खुशबुओं की तर्ह फ़ैल जाएँगी
    अना का गर हिसार है, तो हो रहे,तो हो रहे।... बहुत खूब निभाया

    आपकी ग़ज़ल पढ़ कर लगा जैसे जनवरी के महीने में पानी बरसने के बाद चटकीली धूप बिखर गई हो जो

    वाह भई वाह

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. वीनस भाई शुक्रिया,पर मुन्तजिर तो आपके शाहकार का हूँ!

      हटाएं
  22. लिलार, होनहार, युगावतार, तुषार, इन्तिशार, हिसार - भाई कहाँ से लाते हैं ऐसे शब्द. हम तो शीर्षासन भी करें तब भी न खोज सकें इनको. धर्मेन्द्र जी एवं सौरभ जी दोनों की ग़ज़लें अच्छी लगीं. ब्लाग पर आते ही लगा की दिवाली मानना प्रारंभ हो चुकी है. आगे आने वाली ग़ज़लों का बेसब्री से इंतज़ार रहेगा.

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  23. धर्मेन्‍द्र जी की शायरी,अभिनव के कलाम
    शेखर की अभिव्‍यक्ति, तीनो को सलाम
    सुबीर संवाद से मिलती कलम को रोशनी, घना जो अंधकार हो, तो हो रहे, तो हो रहे

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  24. ब्लॉग की साज-सज्जा बहुत ही मनोहारी हुई है।एकदम से दिवाली का समां बांध गया है।


    धर्मेन्द्र जी की ग़ज़ल में हमेशा की तरह नए काफिये देखने को मिले।उनकी ग़ज़ल के तमाम अश'आर अच्छे लगे।और विशेष कर गिरह बहुत सुन्दरता से लगाई गई है।बधाई।

    अभिनव शुक्ल जी को भी उनकी ग़ज़ल पर दिली दाद।दूसरा शेर बहुत अच्छा हुआ है।

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  25. सभी अग्रजों और मित्रों का शुक्रगुज़ार हूँ।सुबीर संवाद सेवा की तरही में शिरकत का अलग ही अहसास है।इतने स्नेहिल लोग और इतनी जीवंत टिप्पणियां अन्यत्र दुर्लभ हैं।

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  26. बेहद रोचक , सूझ बुझ से कहे गये भाव लिए तीनों भाईयों की गझलें आज पढीं और खुलकर
    मुस्कुराहट तारी है ...
    आप तरही का आयोजन कर हम सभी को एक परिवार की तरह स्नेह के
    उजालों से यूं ही साथ लिए चलते रहें ये शुभ कामना है
    स स्नेह - लावण्या

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  27. धर्मेन्द्र जी की ग़ज़ल बहुत अच्छी हुई है , वाह वाक़ई देसज शब्द का इस्तेमाल ये बखूबी बड़े आसानी से कर लेते है और उसे निभा भी लेते हैं ! बहुत बधाई इनको !
    अभिनव भाई बड़े दिन बाद दिखे और खया खूब दिखे , जमाई राजा वाला शे'र कोट करने वाला है ! क्या ही खूब व्यंग कसा है इन्होने , वाह वाह बहुत बहुत बधाई...
    सौरभ को पढ़ना अछा लगता है और सुनना उस से भी ज़्यादा ! बेहद विनम्र स्वभाव ! वाक़ई मै भी यही कहूंगा कि इधर बहुत अच्छी ग़ज़लें ने लिखे हैं और वो भी क्या ही खूब ! यहाँ भी ग़ज़ल अच्छी हुई है ! बस यही कि कुछ और शे'र होते तो और मज़ा बढ़ जाता ! फिर भी बहुत बधाई सौरभ को !
    ब्लॉग की छटा और चकमक देखने के बाद लग रहा है की दीवाली आ गई !

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  28. क्या गजब के शे’र कहे हैं अभिनव जी और सौरभ जी ने। अभिनव जी का तंज बरबस ध्यान खींचता है तो सौरभ जी के काफ़िए। बहुत बहुत बधाई दोनों ही शायरों को।
    धन्यवाद सुबीर जी का इस नाचीज़ को मुशायरे की पहली पोस्ट में ऐसे शानदार ग़ज़लकारों के साथ जगह देने के लिए।

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