आ गई आ गई दीपावली अपने रंगों और प्रकाश की छटा बिखेरती हुई आ गई है । उल्लास और उमंग का ये पर्व अपने पूरे सौंदर्य के साथ पूरे भारतवर्ष में और भारत के बाहर जहां जहां भी भारतीय हैं वहां वहां जगमगा उठेगा । दीप जल उठे हैं और अंधकार को चुनौती देने का दायित्व अपने सिर पर उठा लिया है वर्तिकाओं ने । ये प्रकाश पर्व आप सबके जीवन में सुख शांति और समृद्धि लाये । सबके जीवन में प्रकाश हो । सबका जीवन सुखमय हो । आरोग्य का धन सबके घर में हो । ये रौनक यूं ही लगी रहे । ये सिलसिला यूं ही चलता रहे । सबको मंगल कामनाएं, शुभकामनाएं, शुभ दीपावली ।
आदरणीय तिलक राज कपूर जी
मुझे तुम्हीं से प्यार हो तो हो रहे तो हो रहे
तुम्हें ये नागवार हो तो हो रहे तो हो रहे।
सभी को साथ देखने की चाह में मेरा अगर
वज़ूद दरकिनार हो तो हो रहे तो हो रहे।
अधर पे मुस्कराहटें, नज़र खुलूस से भरी
अगर यही ख़ुमार हो तो हो रहे तो हो रहे।
लगाम सौंप कर किसी के हाथ सोचना नहीं
वो सरफिरा सवार हो तो हो रहे तो हो रहे।
सजा के दीप द्वार पर खुले नयन निहारती
प्रिये से अपनी हार हो तो हो रहे तो हो रहे।
अदा के साथ अपका नयन के तीर छोड़ना
किसी के दिल के पार हो तो हो रहे तो हो रहे।
चले हैं राह पर तेरी लिये तेरी ही रौशनी
घना जो अंधकार हो, तो हो रहे, तो हो रहे।
सजा के दीप द्वार पर अहा क्या कहा है । और उसी प्रिये से अपनी हार हो तो हो रहे तो हो रहे । इस बार के कुछ कठिन से रदीफ को बहुत सुगमता के साथ निभाता हुआ मिसरा । चले हैं राह पर तेरी लिये तेरी ही रौशनी में बहुत सुंदर तरीके से गिरह को बांधा है । गिरह की गांठ इतनी नफासत से बांधी है कि दिख ही नहीं रही है । एक कुछ अलग तरह का शेर है लगाम सौंप कर किसी के हाथ, ये शेर बहुत व्यापक अर्थ लिये हुए है । और इसे कई कई संदर्भों में उपयोग किया जा सकता है । सुंदर ग़ज़ल । बासी दीपावली में तिलक जी की दो और ग़ज़लें शामिल होंगीं । पर आज की ग़ज़ल के लिये तो बस वाह वाह वाह ।
आदरणीय नीरज गोस्वामी जी
तुझे किसी से प्यार हो तो हो रहे तो हो रहे
चढ़ा हुआ ख़ुमार हो तो हो रहे तो हो रहे
जहाँ पे फूल हों खिले वहां तलक जो ले चले
वो राह, खारज़ार हो तो हो रहे तो हो रहे
उजास हौसलों की साथ में लिये चले चलो
घना जो अन्धकार हो तो हो रहे तो हो रहे
बशर को क्या दिया नहीं खुदा ने फिर भी वो अगर
बिना ही बात ख़्वार हो तो हो रहे तो हो रहे
मेरा मिजाज़ है कि मैं खुली हवा में सांस लूं
किसी को नागवार हो तो हो रहे तो हो रहे
चमक है जुगनूओं में कम, मगर उधार की नहीं
तू चाँद आबदार हो तो हो रहे तो हो रहे
आबदार: चमकीला
फ़कीर हैं मगर कभी गुलाम मत हमें समझ
भले तू ताज़दार हो तो हो रहे तो हो रहे
पकड़ तू सच की राह को भले ही झूठ की तरफ
लगी हुई कतार हो तो हो रहे तो हो रहे
जहाँ उसूल दांव पर लगे वहां उठा धनुष
न डर जो कारज़ार हो तो हो रहे तो हो रहे
कारज़ार: युद्ध
चमक है जुगनुओं में कम मगर उधार की नहीं । ये रंग-ए-नीरज से भरा हुआ शेर है । इस प्रकार चांद की हंसी उड़ाना सिर्फ उनके ही बस की बात है । जुगनू की मौलिकता पर अनोखा शेर । और इसी प्रकार का शेर है फकीर हैं भले मगर, बहुत सुंदर शेर है । उस अंतर को स्पष्ट कर रहा है जो फकीर और गुलाम के बीच का है । बाद के दोनों ही शेर उसी कमाल से लिखे गये हैं जैसे जहां उसूल दांव पर लगे वहां उठा धनुष बहुत सुंदर शेर है और उसी प्रकार का शेर है पकड़ तू राह सच । नीरज जी के साथ एक बात अच्छी है वे अपनी मौलिकता कभी नहीं छोड़ते । और ये ग़ज़ल उनके अपने ही रंग की ग़ज़ल है । सुंदर अति सुंदर ।
आदरणीया लावण्या दीपक शाह जी
घना जो अन्धकार हो तो हो रहे, हो रहे
तिमिर से पूर्ण मावसी भले ही फैली हो निशा
वो चंद्रमा अमा का लुप्त नभ से है तो क्या हुआ
सनातनी हूं चिर नवीन बिंदु इक रहस्य हूं
मनुष्य हूँ विधाता का सृजन मैं अग्नि शस्य हूँ
तिमिर को काट क्रोड़ फोड़ तज कठिन ये बंध मैं,
नये सृजन से सृष्टि का पुन: करूं प्रबंध मैं !
तेरे ही शक्ति पीठ का है बल भुजाओं में भरा
हे माँ ! मुझे दुलार दे शिशु अबोध हूं तेरा
मैं तोड़ दूं हरेक बंध, कंदराएं फोड़ दूं
जो बंद लौहद्वार हो तो हो रहे तो हो रहे
घना जो अन्धकार हो तो हो रहे, हो रहे
अमावसी ये कालिमा हटे जो तेरी हो कृपा
जगर मगर जलें जो दीप जगमगा उठे निशा
कनक की दिव्य कांति सा परम शुभम स्वरूप है
कृपा कटाक्ष तेरा पाके रंक क्षण में भूप है
ये चन्द्र सूर्य तारागण, ये सृष्टि का हरेक कण
तेरी विभा से दीप्त हैं ये वर्ष, मास, दिन ये क्षण
तेरी प्रभा ही ले के हर दिशा प्रकाशमान है
तुझी से ही प्रलय है और तुझी से नव विहान है
प्रकाश की विजय का पर्व बार बार आयेगा
अंधेरा बार बार हो तो हो रहे तो हो रहे
घना जो अन्धकार हो तो हो रहे, हो रहे
गीत के मिसरे पर यदि गीत ही लिखा जाये तो उसका आनंद अलग ही होता है । ये गीत उसका ही उदाहरण है । सनातनी हूं चिर नवीन बिंदु बहुत सुंदर है । पूरा का पूरा गीत एक अलग मूड का गीत है । दोनों बंद अपनी अपनी तरह से बात कह रहे हैं, एक स्वयं के लिये और दूसरा उस परमपिता के लिये । एक स्वयं प्रकाश होना है और दूसरा उसके प्रकाश की कामना लिये है । यही तो है जीवन थोड़ा अपना प्रयास और थोड़ा उस परमपिता का आशीष । ये गीत उन्हीं दोनों का सम्मिश्रण है ये गीत । बहुत सुंदर बहुत सुंदर ।
आदरणीया सुधा ओम ढींगरा जी
विदेश के आकाश पर
भारतीयता का झंडा
फहरा रहे हो तो हो रहे तो हो रहे
गीता की सौगंध ले
पद ग्रहण
कर रहे हो तो हो रहे तो हो रहे
देश छोड़ परदेश जा बसे ,
'प्रवासी' सुन
पीड़ित हो तो हो रहे तो हो रहे
देश द्रोही नहीं,
न कहेंगे देश प्रेमी
दुखित हो तो हो रहे तो हो रहे
पूर्वग्रह हैं, डालेंगे हाशिये पर
लेखन तुम्हारा
व्याकुल हो तो हो रहे तो हो रहे
विदेश का तेल, देश की बाती
जला लो जितनी
हृदय में घना जो अंधकार हो
तो हो रहे तो हो रहे ।।
'प्रवासी' शब्द की पीड़ा केवल प्रवासी ही जान सकता है । और उस एक शब्द के दंश को कहां कहां भोगना पड़ता है । साहित्य में जिस प्रकार से एक पूरा खंड अलग कर दिया गया है प्रवासी नाम से उस खंड से खंड खंड होने की पीड़ा को समेटे है ये छंदमुक्त कविता । विदेशों में बसे भारतीय अपने साथ भारतीयता का परचम लेकर गये हैं जिसे वे विदेश में फहरा रहे हैं किन्तु यहां अपने ही देश में उनको हाशिये पर डाला जा रहा है । वे वहां हिन्दी की बिन्दी पूरे विश्व के माथे पर लगा रहे हैं और हम उनको प्रवासी ठहरा कर खारिज कर रहे हैं । बहुत सुंदर कविता ।
अश्विनी रमेश
फ़ज़ा जो खुशगवार हो, तो हो रहे ,तो हो रहे
बहार ही बहार हो, तो हो रहे,तो हो रहे
तुम्हारे इंतजार में ये रात बीत जायेगी
घना जो अंधकार हो, तो हो रहे, तो हो रहे
चमन अगर उजाड़ हो तो क्या है तेरा फायदा
तू गुलशने बहार हो, तो हो रहे, तो हो रहे
तुम्हारे साथ जो गुज़ारे पल, सदा वो साथ हों
तुम्हारी यादगार हो, तो हो रहे, तो हो रहे
छोटी मगर सुंदर ग़ज़ल । अपने तरीके से बात कही गईं हैं जिसमें । भले ही चमन के उजाड़ होने पर बहार के न होने की बात हो या किसी के इंतजार में रात को काटने की बात हो । बहुत सुंदर तरीके से बात कही गई हैं । बहुत सुंदर ।
तो मित्रों आनंद लीजिये इन रचनाओं का । और दाद देते रहिये । आप सबको दीपावली की मंगल कामनाएं । याद रखिये इस बार हमारे पास बासी दीपावली के लिये भी पटाखों का स्टाक है जो हम दीपावली के बाद चलाएंगे । उनमें भी काफी दमदार पटाखें हैं । तो आज की रचनाओं पर आनंदित होइये । एक बार फिर से मंगल कामनाएं, शुभ शुभ, जय जय ।
सच कहूँ तो जब मैं अपना नाम तिलक जी, लावण्या दी, सुधा जी और अश्विनी जैसे प्रतिष्ठित और स्थापित रचनाकारों के साथ देखता हूँ तो बहुत संकोच होता है। अपनी उम्र से आधी और आधी से भी कम उम्र के ग़ज़लकारों की ग़ज़लें पढ़ कर दिल कहता है अभी कितना कुछ सीखना बाकी है मेरे लिए और कभी लगता है के उछालना छोड़ ही दूं के क्यूँ के मेरे लिए इस विधा के अंगूर खट्टे हैं मान लेने में ही भलाई है। इस बार की तरही में जब दिमाग के घोड़ों ने चलने से इनकार कर दिया तो उस्ताद घुड़सवार तिलक जी के दरबार में हाजरी लगाईं उन्होंने जो चाबुक पकड़ाई उसे लाख फटकारा लेकिन घोड़े टस से मस नहीं हुए,,,लंगड़े घोड़ों पर चाबुक क्या असर करती,,,खैर बड़ी जद्दो ज़हद के बाद वो धक्के खा के जितना चले उसी की बदौलत जो ग़ज़ल तैयार हुई उसे भेज दे कर गंगा नहा लिए,,,
जवाब देंहटाएंअपने अनुज तिलक जी के बारे में क्या कहूँ उनकी विलक्षण प्रतिभा पर पहले भी कसीदे पढ़ चुका हूँ ,,,उन जैसे विलक्षण प्रतिभा वाले इंसान कम ही होते हैं,,,एक मिसरे पर पूरा दीवान रच देने की काबलियत वाले इस शायर की शायरी के बारे में जितना कहा जाय कम होगा। जैसी गिरह तिलक जी ने लगे है वैसी सोच पाना ही किसी भी शायर के लिए एक उपलब्धि है,,,कमाल किया है उन्होंने वाह,,,सज़ा के दीप जैसे प्यार की चाशनी में डूबे शेर तो तिलक जी की खास पहचान बन चुके हैं, "सभी को साथ देखने की,,," शेर तिलक जी के स्वभाव को प्रदर्शित कर रहा है,,,कमाल किया है उन्होंने कमाल,,,
लावण्या दी के गीत के बारे में क्या कहूँ? हिंदी गीतों का स्वर्ण काल लौट आता है वो जब भी अपनी लेखनी उठाती हैं,,,तिमिर से पूर्ण मावसी,,, जैसे अछूते भाव और शब्द अब कहाँ पढने को मिलते हैं, ये सब आपकी तरही के माध्यम से पुनर्जीवित हो जाते हैं, मुझे इस बार की तरही में गीत ग़ज़लों पर भारी लगे।
सुधा जी ने प्रवासी शब्द से होने वाली पीड़ा को शब्द दिए हैं। मेरे विचार से हर वो इंसान जिसके दिल में देश बसता है कभी प्रवासी हो ही नहीं सकता भले ही विश्व के किसी भी हिस्से में क्यूँ न रहे। उत्कृष्ट रचना है सुधा जी की।
भाई अश्विनी जी ने मात्र एक शेर "चमन अगर उजाड़ हो,,," जैसा कद्दावर शेर कह कर पूरी ग़ज़ल कह दी है। ऐसे शेर ऊपर से उतारते हैं।
इस तरही को पढने वाले प्रत्येक पाठक और उसके परिवार को दिवाली की हार्दिक शुभकामनाएं .
नीरज
आदरणीय नीरज गोस्वामी जी,
हटाएंशुक्रिया मेरी गज़ल का शेर पसंद करने के लिये ! आप जैसे उदार इन्सान इस दुनिया में बहत कम रह गये हैं जो दूसरों को हमेशा प्रोत्साहित करते हैं !आपकी सबसे बड़ा बड़प्पन तो यही है कि आप दूसरों को अपने से बेहतर और खुद को कमतर बताते हैं !
,
हुजूर।
हटाएंआप यूँ ही हमें गर फ़ुलाते रह
देखिये एक दिन .....
Ashwini Ramesh JI aapki kavita bahut hi kmal ki hai.....
हटाएंAapki kavita je rang bhi hame dekhne ko mila dhanyabaad Sir
उस्ताद शायरों की जानदार गज़लें.. आनंद आ गया.
जवाब देंहटाएंतिलक जी की गज़ल बहुत पसंद आई. "सभी को साथ देखने की चाह में.." गजब का शेर है. 'अधर पे मुस्कुराहटें..', 'लगाम सौंप कर किसी के हाथ..', 'सजा के दीप..', 'अदा के साथ ..', चले हैं राह पर..'. बहुत प्यारे शेर कहे हैं.
नीरज जी की लगाई गिरह बहुत खूबसूरत है. `बेहद खूब्सूरत शेर. 'जहाँ पे फूल हों..', 'उजास हौसलों की...', 'बशर को क्या नहीं दिया..', मेरा मिजाज़ है..', 'चमक है जुगनुओ में..', 'फ़कीर हैं..', 'पकड़ तो सच की राह..', जहाँ उसूल दांव पर लगें..' कमाल के शेर. कमाल की गज़ल.
लावण्या जी का गीत बहुत अच्छा है..'तुझी से प्रलय है और तुझी से नव विहान है.... अँधेरा बार बार हो तो हो रहे तो हो रहे..' बहुत सुंदर.
सुधा जी की छंदमुक्त कविता बहुत अच्छी लगी.
अश्विनी जी की गज़ल बेहद पसंद आई. गिरह तो बहुत ही अच्छी लगी. एकदम रेशमी गिरह है. आसान शब्दों में बात कह दी है. बहुत बहुत बधाई..
मंच पर गुणीजनों की अपेक्षा का स्तर कायम रखने का प्रयास आपको पसंद आया इसके लिये आभारी हूँ।
हटाएंराजीव भरोल जी ,
जवाब देंहटाएंमेरी गज़ल के प्रति आप द्वारा अभिव्यक्त शब्दों के लिए बेहद शुक्रिया !
कुछ भी कहें, एक बात स्पष्ट है कि इस बार का तरही मिसरा आसान चुनौती नहीं रहा; विशेषकर इस कारण कि यह दोपोत्सेव से भी जुड़ा हुआ है। ग़ज़ल कहने में पूर्ण अंधकार की स्थिति बन गयी और उसी में से तरही मिसरे की बात ही उभरी कि ‘घना जो अंधकार हो तो हो रहे तो हो रहे’ ग़ज़ल तो कहनी ही है। इसी प्रयास में यह ग़ज़ल हो तो गयी लेकिन दीपोत्सव और अंधकार की बात अनुपस्थित रही्। पंकज भाई का निर्देश प्राप्त हुआ कि अंधकार के प्रतिमान लेते हुए एक ग़ज़ल तो कहनी ही है। इसके प्रयास में कुछ और शेर बन गये और इस प्रकार एक ग़ज़ल कतरनों में से निकल आई। आप सबका स्नेह उर्जा दिये रहता है तो कुछ बन जाता है बस वही सब तीन ग़ज़लों में है जिसका पहला अंक आज आपके सामने है।
जवाब देंहटाएंनीरज भाई साहब जैसे सहज सरल हैं वैसे ही उनके शेर होते हैं, बिना किसी उलझाव के सीधी-सीधी बात, जीवन का अनुभव समेटे हुए हर शेर अलग अलग रंग का इन्द्रधनुष प्रस्तुत करता हुआ। हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती वाली गहराई है गिरह के शेर में।
लावण्या जी के गीत माधुर्य की प्रतीक्षा तो बेताबी से रहती है। एक अलग ही शब्दावली से परिचय होता है। दोपोत्सव पर सटीक रचना।
सुधा ओम ढींगरा जी की प्रस्तुति एक अलग ही परिदृश्य की पृष्ठभूमि का भावपक्ष प्रस्तुत करती हुई।
रमेश जी ने प्रतीक्षा को जो अभिव्यक्ति दी है गिरह में वह विशिष्ट है वहीं गुलशने बहार को उसके होने न होने का अर्थ समझाता हुआ तीसरा शेर और चौथे शेर में साथ-साथ गुजरे पलों के यादगार लम्हेा में परिवर्तन होने की भावाभिव्यक्ति।
सभी को दीपोत्सव की हार्दिक बधाई।
जनाब , तिलकराज कपूर जी , मेरे शेरों पर टिप्पणी के लिए मैं बड़े एहतराम से आपका शुक्रिया अदा करता हूँ !
हटाएंबेहतरीन गुलों से सजायी गई आज के इस गुल्दस्ते के लिये सभी उस्ताद शयरों और कवि कवित्रियों को मुबारकबाद और धन्यवाद्।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संजय जी।
हटाएंदीपावली की शुभकामनाओं के साथ आज के दोनों उस्ताद शायरों, आदरणीय तिलकराजजी और आदरणीय नीरजजी, आदरणीया लावण्या दीदीजी, आदरणीया सुधाजी को ग़ज़लों और प्रस्तुतियों पर सादर बधाइयाँ.
जवाब देंहटाएंमित्र अश्विनी रमेशजी का प्रयास भी समीचीन लगा है.
लगाम सौंप कर किसी के हाथ सोचना नहीं
वो सिरफिरा सवार हो, तो हो रहे, तो हो रहे.. . तिलकराजजी, ग़ज़ब-ग़ज़ब-ग़ज़ब !
पकड़ तू सच की राह को भले ही झूठ की तरफ़
लगी हुई कतार हो, तो हो रहे, तो हो रहे.. . हृदय से धन्यवाद इस अनुमोदन के लिये, नीरज भाईजी.
सनातनी हूँ चिर नवीन बिंन्दु इक रहस्य हूँ
...
जो बंद लौहद्वार हो, तो हो रहे, तो हो रहे.. अदम्य आश्वस्ति के ये भाव निस्तेज जड़ में प्राण फूँक गतिमान कर दें ! सादर नमन, आदरणीया !
सादर
धन्यवाद सौरभ जी।
हटाएंसुक्रिया , सौरभ जी !
हटाएंइसे कहते हैं उस्तादों की उस्तादाना रचनाएँ। कहाँ तो एक शे’र भी नहीं सूझ रहा था और कहाँ अच्छे अच्छे अश’आर की झड़ी लगी हुई है। बहुत बहुत बधाई सभी उस्ताद रचनाकारों को।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत ग़ज़लें और गीत... सभी रचनाकारों को और इस मंच को बधाई।
जवाब देंहटाएंतिलक जी ने एक बार सिद्ध किया कि हम नये लोग एक आध बार कुछ अच्छा लिख कर भले खुश हो लें, लेकिन बड़े आखिर बड़े ही होते हैं। हर बार उत्तम लिखना ये आप लोगों के ही वश की बात है।
जवाब देंहटाएंमतला साधारण शब्दों में दिल छू लेने वाली बात।
सभी को साथ देखने की चाह में मेरा अगर,
वज़ूद दरकिनार हो, तो हो रहे, तो हो रहे।
किसी घर के प्रमुख, किसी संस्था की प्रबंधन समिति के खास सदस्य जैसी बात।
वो सिरफिरा सवार हो, तो हो रहे, तो हो रहे।
क्या बात है। एक अलग सी बात, अलग तरीके से कही गयी।
बधाई तिलक जी बार बार बधाई।
धन्यवाद कंचन जी। यह एक कड़वा सच है कि हर जगह स्वयं के वज़ूद की चाह ने उनकी क्षमता को बॉंध दिया है जो 'कुछ' कर सकते हैं। अगर मनुष्य अपने वज़ूद की चाह को पीछे छोड़कर केन्द्रित हो जाये 'सर्वे भवन्तु सुखिन:.....' पर तो अमिट छाप छोड़ सकता है।
हटाएंनीरज जी !
जवाब देंहटाएंउजास हौंसलों की साथ में लिये चले चलो।
बहुत खूब गिरह...!!
चमक है जुगनुओं की कम, मगर उधार की नही....!!
एकदम सही बात बहुत खूब बहुत खूब.....
मैं पहले भी कह चुकी हूँ और फिर कह रही हूँ, लावन्या दीदी, जितनी अद्भुत लेखनी के साथ यहाँ होती है, वैसी कहीं नहीं होती।
जवाब देंहटाएंअद्भुत लिखा है दीदी...अद्भुत। किस बिंदु की प्रशंसा हो और किस पंक्ति की ???
बस नमन...
सुधा जीन ने प्रवास होने के जो भाव कहे और अश्विनी जी के अश्आर के लिये आप दोनो को बधाई।
जवाब देंहटाएंआज की पाँचों रचनाएं उत्कृष्ट श्रेणी की हैंऔर इनसे मुशायरे का समापन होना और भी अच्छी बात रही।आ.कपूर साहब,आ.नीरज गोस्वामी जी और आ. अश्विनी रमेश जी की ग़ज़लें तथा आ. लावण्या शाह जी और आ. सुधा जी के गीत खूब पसंद आये।हार्दिक साधुवाद।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया , सौरभ शेखर जी !
हटाएंअशवनी भारद्वाज जी , डॉ० संजय दानी जी , धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी ,दीपिका रानी जी , कंचन सिंह चौहान जी-- आप सब का तह दिल से , शुक्रिया !
जवाब देंहटाएंसबसे पहले दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाएं सभी को !
जवाब देंहटाएंतिलक जी की ग़ज़ल बहुत अच्छी हुई है ! मतला बहुत ठोस है , जो आम बोलचाल की बात है और यही बात औरों से अलग कर देती है शाईर को ! खुलूस लफ़्ज़ का इस्तेमाल भी ख़ूब है ! और गिरह तो बाकमाल लगाईं है इन्होने , एक टकराव के साथ सफलता ! बहुत कम ऐसे शे'र देखने को मिलते हैं ! बहुत सुन्दर ग़ज़ल के लिए बहुत बधाई फिर से !
नीरज के मतले में एक ज़िद है एक हठ है जिसमे अपनी ही एक सुन्दरता है ! बेह्द मुलायम मतला है !
मेरा मिजाज़ वाले शे'र के लिए अलग से करोडो दाद ! मुझे ऐसे शे'र बेह्द आकर्षित करते हैं ! बहुत खूब !
पकड़ तो सच की राह वाला शे'र भी सुन्दर है ... एक बेह्द खुबसूरत ग़ज़ल के लिए बहुत बधाई ...
लावण्या दी का गीत लिखने का एक अलग ही अंदाज़ है जिसमे शुद्धतम शब्द होते हैं, और वो शब्द खुद अपनी श्रेष्ठतम देने के फ़िराक़ में होते हैं, मगर वहीँ देसज शब्द कमाल करने पर तुले होते हैं, यहाँ भी जगर मगर शब्द वही कर रहा है ! क्या ही खूब गीत है ! वाह आनद आ गया आज तो ! बहुत बधाई दी !
सुधा दी के इस गीत में एक पीड़ा है एक बेचैनी है एक ऐसा दर्द है जिसकी महासुसियत की गहराई बहुत गहरी है ! विछोह का दर्द वाकई ऐसा ही होता है ! इस बेह्द भाउक कर देने वाले गीत के लिए बहुत बधाई !
अहा अश्विनी जी का ये शे'र तुम्हारे इंतज़ार में पढ़ते ही उछल पडा मैं ! क्या ही खूब गिरह लगाईं है इन्होने ! वाह जी वाह ! और चमन वाले शे'र पर बहुत दाद ! छोटी मगर मारक गज़र हुई है वाह !
अर्श
पढ़न-सुनने वाले को पसंद आई। ग़ज़ल अपनी मंज़िल-ए-मक़्सूद तक पहुँची। आभारी हूँ।
हटाएंअर्श जी , मेरे शेरों पर दाद के लिए दिली शुक्रिया !
हटाएंऐसा हर बार हुआ है जब भी नीरजजी और तिलकजी की गज़लें पढ़ी हैं, आश्चर्य बार बार अपने पांव फ़ैला कर पसर जाता है और कहता है खोलो आंखें. सोच रहे थे कि अब जो पढ़ लिया उससे आगे ये क्या नया कह पायेंगे लेकिन हर बार सिमसिम को खोल कर नये खज़ाने के साथ आते हैं दोनों. इस बार अश्विनीजी की लेखनी की प्रतिभा ने भी कायल कर लियी.
जवाब देंहटाएंमान्य लावण्यजी का अनूठा अन्दाज़ और सुधाजी के चिर परिचित हस्ताक्षरों से युक्त इस अनुपम भेंट के लिये मान्य पंकज जी को विशेष बधाई.
आदरणीय राकेश जी, आप सब का दिया हुआ स्नेह है जो इस बाती को दीपज्योति का रूप देता है। पूर्ण प्रयास से भी आपके गीत माधुर्य को छू पाने की इच्छा पूरी नहीं हो पाती।
हटाएंसाभार,
सादर
तिलक
राकेश खंडेलवाल जी ,
जवाब देंहटाएंमेरे लेखन पर अभियक्ति के लिए दिली शुक्रिया !
'सुबीर संवाद सेवा' पर एक तो यूँ ही शुअरा का कलाम कह्र ढाता है तिस पर जब कलाम असातिज़ा का हो तो कुछ लंबा-चौड़ा कहते ही नहीं बनता बस, हर एक शेअर पर खुले दिल से हज़ारों दाद
जवाब देंहटाएंएक एक कर दीपावली के दिन पहुंचे और ये मुशायरा भी विभिन्न छटा बिखेरता रहा.
जवाब देंहटाएंआदरणीय तिलक जी, नीरज जी ने अपने चिर परिचित अंदाज में शे’र कहें – ये ख़ास लगा
सभी को साथ देखने की चाह में... लगाम सौंप कर, चले हैं तेरी ही लिए... क्या खूब गिरह है तिलक जी.
मेरा मिजाज है.... पकड़ सच की राह... बहुत खूब कहे हैं नीरज जी ने.
आगे लावण्या दी जी के गीत हिंदी काव्य गीतमाला में एक सुन्दर कड़ी है. सुधा जी ने पीड़ा को बहुत अच्छे से गुंथा है.
अश्विनी जी के शे’र भी अच्छे रहें ... चमन अगर उजाड़ हो तो क्या है तेरा फायदा...
दीपावली का ख़ास दिन और दिग्गजों की ग़ज़लें ... वाह
जवाब देंहटाएंतिलक जी टेढ़े से टेढ़े मिसरों को भी सीधा बना कर खूबसूरत शेरों में ढाल देते हैं. ये शेर उसी की झलकियाँ हैं "सभी को साथ देखने......", "अधर पे मुस्कराहटें.....". वाह वाह
नीरज जी जब जब ये ''सोचने वाली टोपी'' पहनते हैं तो फिर इस बात से दोराय नहीं रखी जा सकती है की आगे कुछ जबरदस्त शेर आने वाले हैं.
मेरा मिजाज़ है कि मैं खुली हवा में सांस लूं
किसी को नागवार हो तो हो रहे तो हो रहे
जिंदाबाद शेर.
"फ़कीर हैं मगर कभी गुलाम मत हमें समझ .............." बेहतरीन
वाह वाह वाह
आ. लावण्या जी और आ. सुधा जी के गीत बहुत ही सुन्दर है और इनके बारे में जितना भी कहा जाए कम ही होगा.
अश्विनी जी ने छोटी मगर खूबसूरत ग़ज़ल कही है.
सभी रचनाकारों को बधाई.
विलंब से ये पन्ना पढ़ने आया और लगा कि नहीं आता तो नीरज जी का ये विलक्षण शेर रह ही जाता ... जुगनू और चाँद की ऐसी तुलना और क्या खूब तुलना शायद पहली बार हुई है कविता और शायरी में.... लाजवाब नीरज जी !
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