आज रूप चतुर्दशी है । कल आरोग्य का दिवस था तो आज रूप का है । उसके बाद कल धन का आयेगा । मतलब ये कि हमें बताया गया है कि हमारे जीवन के आवश्यक तत्वों का क्रम क्या है । सबसे पहले आता है अच्छा स्वास्थ्य । उसके बाद आता है रूप । और तीसरे क्रम पर आता है धन । यहां रूप शब्द एक व्यापक अर्थ वाला शब्द है । इसकी बहुत सारी परिभाषाएं दी जा सकती हैं । किन्तु सहज अर्थ में जो रूप का अर्थ है उसी को यदि मान कर चलें तो आज सुंदरता का दिन है । आज रूप को निखारने का दिन है । पूर्व में सौंदर्य का अर्थ केवल नारी होता था । किन्तु आज पुरुष भी रूप के मामले में सजग है । मगर आज हम इस रूप चतुर्दशी पर नारियों की ही रचनाएं सुनेंगे । आइये कामना करें कि हम सबके मन अंदर से इतने सुंदर हो जाएं कि उनकी सुंदरता हमारे चेहरे पर भी दिखाई दे ।
घना जो अंधकार हो तो हो रहे तो हो रहे
आज चार कवयित्रिओं का दिन है । देवी नागरानी जी, शार्दूला नोगजा जी, कंचन चौहान जी और अनन्या 'हिमांशी' ।
अनन्या 'हिमांशी'
वो मुझसे होनहार है, तो हो रहे, तो हो रहे।
सभी को उससे प्यार है, तो हो रहे, तो हो रहे।
उसे ग़ुरूर चाँद पर, मुझे नुजूम से खुशी
उसे अना से प्यार है, तो हो रहे, तो हो रहे।
शमा यहाँ बुझी नही, वहाँ कभी जली नही,
हमी को उनसे प्यार है, तो हो रहे, तो हो रहे।
ये रात ही सहर मेरी, पता मुझे डगर मेरी,
घना जो अंधकार है, तो हो रहे, तो हो रहे
निदा सिमट गयी मेरी क़फस के बीच अब तो फिर
दरख्त से पुकार है, तो हो रहे, तो हो रहे।
न खास बन सका कभी, वो आम ही बना रहा,
जहाँ को उससे रार है, तो हो रहे, तो हो रहे
तवील जिंदगी मेरी, सिफत यहाँ खुशी मेरी,
जो कुछ ग़मों का भार है, तो हो रहे, तो हो रहे
बेरब्त मग़रबी का है जुनून उनके सिर चढ़ा,
बिना वज़ह खुमार है, तो हो रहे, तो हो रहे।
छुटकी ने तूफानी गिरह बांधी है । बहुत कुशलता के साथ मिसरों को जोड़ा है । सुंदर । लेकिन जो शेर अहा अहा है वो है 'निदा सिमट गई मेरी कफस के बीच' । बात केवल ये कि ये छुटकी इस उम्र में ऐसा कैसे कह रही है । हां इन सबके बीच मतला जो बहुत ही भोलेपन के साथ अपने कमतर होने को न केवल स्वीकार कर रहा है बल्कि किसी और के लिये उस पर गर्व भी कर रहा है । इस उम्र में इस भाव से सोचना भविष्य के लिये बहुत बहुत सुखद संकेत है । बहुत सुंदर बहुत सुंदर ।
आदरणीया शार्दूला नोगजा जी
घना जो अन्धकार हो, तो हो रहे, तो हो रहे
नसीब ज़ार-ज़ार हो, तो हो रहे, तो हो रहे
गिरा, उठा, बढ़ा, चला, विपद से मैं नहीं डरा
विजय, विराम, हार हो, तो हो रहे, तो हो रहे
बुझी न ज़िन्दगी की लौ, कभी कयामतों से डर
सुनामी, सैंडी, ज्वार हो, तो हो रहे, तो हो रहे
बिना प्रभा प्रभात क्या, ईमान बिन समाज क्या
शयन को नागवार हो, तो हो रहे, तो हो रहे
गहो दिशाविहीन मन, प्रभो रहूँ तेरी शरण
मरण का मुक्तिद्वार हो, तो हो रहे, तो हो रहे
दीवानगी की खुशबुयें, छिपाए छिप नहीं सकीं
खफ़ा गुलों सा यार हो, तो हो रहे, तो हो रहे
सृजन की रश्मियों का रथ, बढ़ा तू मीत अनवरत
कुहास दुर्निवार हो, तो हो रहे, तो हो रहे
गीत का भाव लिये हुए एक सुंदर ग़ज़ल । गिरा, उठा, बढ़ा, चला के साथ विजय, विराम, हार का अजब कन्ट्रास्ट पैदा किया गया है । सुनने में ही आनंद प्रदान कर रहा है । फिर गहो दिशाविहीन मन, अहा क्या प्रार्थना है, हम बहुत दिनों से अपनी रचनाओं में प्रार्थना करना ही भूल गये हैं । लेकिन इस एक शेर में अनोखी प्रार्थना है । और आखिरी शेर सृजन की रश्मियों का रथ बढ़ा तू मीत अनवरत, ऐसा लगता है कि हर रचनाकार के लिये ये पंक्ति लिखी गई है । हर उस के लिये जो जीवन की कठिनाइयों से हार मान रहा है । बहुत बहुत सुंदर ।
कंचन सिंह चौहान
धरा की सेज पर नदी घुली जलधि में जा रही,
उधर पयोद के अधर शशी का मुख भिगो रहे।
मिलन मिलन है हर तरफ धरा से आसमान तक,
सिमट के तम में, ओढ़ तम, ये रति रती है यों कहे
घना जो अंधकार है, तो हो रहे तो हो रहे।
तुहिन छिड़क के छेड़छाड़ कर रहे हैं तारागण,
कभी जलधि ज़रा सा ज्वार ला उन्हे डरा रहा।
कभी ज़रा गरज के मेघ कह रहा, रुको अभी,
कभी छुपा के चाँद वो नक्षत्र को चिढ़ा रहा।
प्रणय मगन हुए युगल, खुदी में फुसफुसा रहे।
घना ये अंधकार यूँ ही हो रहे, हाँ हो रहे।
उधर चकोर इक खड़ा गगन की चौंध से परे,
शशी के प्रेम में पड़ा, निशा का साथ है किये।
न डाह है, न आह है, दरस कि किंतु चाह है,
परस के चाँदनी ज़रा सी भेज दे मेरी प्रिये।
ऋषीमना, यती बना, चकोर ये दुआ करे,
तनिक सा दूर से सही, प्रिया का साथ तो रहे।
घना जो अंधकार है, तो हो रहे तो हो रहे।
तुहिन छिड़क के छेड़छाड़, बहुत सुंदर शिल्प है, गीतों के स्वर्ण युग की याद दिलाता सा । महादेवी जी की शब्दावली में बात करता हुआ । पूरा का पूरा बंद प्रणय और उसके आस पास की क्रियाओं का सजीव चित्रण है । याद आ रहा है गुलज़ार का गीत 'छुप जाऊंगी रात ही में' । बहुत सुंदर बंद गढ़ा है । एक और पंक्ति प्रेम का पूरा काव्य बन गई है 'न डाह है, न आह है, दरस की किंतु चाह है' अहा अहा अहा । याद आ गये कुछ पुराने दिन । कितनी सुंदरता के साथ प्रेम का चित्रण है कि न डाह या ईर्ष्या है, न आह या आंसू हैं केवल और केवल दरस की चाह है, प्रणय की या स्पर्श की नहीं केवल दरस की । बहुत सुंदर बहुत सुंदर । कंचन का एक और गीत बासी दीपावली में भी आयेगा ।
आदरणीया देवी नागरानी जी
किसीसे दिल को प्यार हो, तो हो रहे तो हो रहे
ये जान भी निसार हो, तो हो रहे तो हो रहे
ये माजरा है क्या सुराब सी लगे है ज़िंदगी
जो ख़ुद ही बेक़रार हो, तो हो रहे तो हो रहे
है सूनी शाखें उस शजर की आज, उसका भी
कोई तो ग़मगुसार हो, तो हो रहे तो हो रहे
ज़ुबान ख़ार सी न हो, न गहरे घाव दिल को दे
जो राह ख़ारदार हो, तो हो रहे तो हो रहे
ज़मीन रेगज़ार हो और छाले पाँव के तले
जिगर के आर पार हो, तो हो रहे तो हो रहे
करम जो उसका हो तो बाल बांका कोई क्या करे ?
वो टूटी कश्ती पार हो, तो हो रहे तो हो रहे
बहुत अच्छा मतला है किसी से दिल को प्यार हो तो हो रहे और उसके बाद जान भी निसार हो तो हो रहे । एक और शेर में बड़ी बात कही गई है जुबान खार सी न हो न गहरे घाव दिल को दे । बहुत सुंदर बात है । आखिरी शेर में ऊपर वाले के करम की बात को सुंदर तरीके से व्यक्त किया है । बहुत सुंदर बहुत सुंदर ।
तो ये हैं आज रूप चतुर्दशी की रूपवान रचनाएं । चार अलग अलग भावभूमि पर लिखी गईं रचनाएं । चारों का आनंद लें और दाद देते रहें । और हां यदि किसी के पास टिप्पणियों के स्पैम में नहीं जाने देने का कोई उपाय हो तो बताए । अब तो सारी ही टिप्पणियां स्पैम में जा रही हैं । चलिये तो कल मिलते हैं दीपावली विशेषांक के साथ ।
congrats to all poets for their nice poetry.
जवाब देंहटाएंग़ज़ल की खूबसूरती बनी रहे ख़ुदा मेरे
जवाब देंहटाएंजो नर पे भारी नार हो, तो हो रहे तो हो रहे
:) :)
हटाएंकंचन जी का " तनिक सा दूर सही................................... मुझे विद्यापति के आशावाद की चरम परिणति दिखती हैं बधाइ। हिमांशी जी भी काफी अच्छा लिखी है। देवी नागरानी जी की मतला के बाद का दूसरा शेर लाजबाब है................. बधाइ सभी को
जवाब देंहटाएंविद्यापति ??? आशीष जी एतनौ ना चढ़ावा जाये कि दिया जराये खरती भूईयाँ प् वापस आये में दिक्कत होई जाये। :) :)
हटाएंयौ, त अहूँ बाइज सकै छी ? विस्मय पैग भेल कंचन जी.. .!!!
हटाएंकंचन दी मैं अपनी उपल्बधि इसी मे मानता हूँ कि आपने उत्तर भोजपुरी मे दिया।
हटाएंसौरभ जी एखने आशचर्य चकित नै होउ.....एखन तँ मैथिली भोजपुरी, अवधी, ब्रजभाषा बाजए बला सभहँक पूरा पाँति ठाढ़ हएत कने दिन मे।:P
हटाएंकंचन दी मैं अपनी उपल्बधि इसी मे मानता हूँ कि आपने उत्तर भोजपुरी मे दिया।
हटाएंसस्नेह दीपावली की शुभकामना...
हटाएंदीपावली क अनेक शुभकामना. मुदा, मैथिलीबला हम्मर निहोरा त अहाँ बिसरिये गेलियइ.
हटाएंकेयो बात नै.. . दिन-महिना-बरस अखन एताह.
:-))))
मैथिली बाला नाही सौरभ जी बाला अवधी हई, हाँ भोजपुर मिथिला हर जगहीं भाई बसा हईन तो सब देस अब आपन लागे लाग बाय... :)
हटाएंकंचन जी, गलती से या सही कहिये अतिरेक में भाई आशीष अनचिन्हार को आपका प्रत्युत्तर मैं मैथिली भाषा मे दिया गया समझ बैठा. बस मैं भी तुतलाता हुआ शमिल हो गया.
हटाएंआगे, मैथिली भाषा में हुए मेरे सारे संवाद आशीष जी से ही हुए हैं.
शुभ-शुभ
रूप-चतुर्दशी के अवसर पर सटीक टिप्पणी के साथ आज के मुशायरे का शुभारंभ आनन्ददायी है.
जवाब देंहटाएंपंकजभाईजी, आजका दिन मात्र बाह्य अथवा भौतिक ही नहीं बल्कि अन्तःकरण विशेषकर वृत्ति शुचि हेतु निर्धारित दिवस है. रूप और शुचिता का सम्बन्ध परस्पर कितना अन्योन्याश्रय है यह सहज ही समझा सकता है. आज के दिवस विशेष की अनेकानेक शुभकामनाएँ.. .
आजका मुशायरा कई मायनों में विशिष्ट है. इसलिये नहीं कि आज का सत्र कवयित्रिओं के नाम समर्पित है. बल्कि इसलिये कि जिस भाव-दशा का निर्वहन कवयित्रिओं द्वारा अत्यंत सहजता से हो जाता है उसी दशा के निर्वाह के लिये कवि-शायरों को विशेष मानसिक अवस्था ’ओढ़ना’ होती है, बावज़ूद इसके, उक्त निर्वहन सदा से प्रश्नों की ज़द में रहा है.
पंकज भाईजी की प्रस्तुति-व्यवस्था को मेरी शत्-शत् बधाइयाँ.
वाह! कमाल की गजलें और गीत.
जवाब देंहटाएंअनन्या ने एक बार फिर बहुत बढ़िया शेर कहे हैं.. “शमा यहाँ बुझी नहीं, वहाँ कभी जली नहीं.” कमाल का शेर है. गिरह भी बेहतरीन है.
शार्दूला जी की गज़ल बहुत खूबसूरत भाव लिए हुए है. कंचन का गीत बहुत ही खूसूरत है. 'उधर चकोर इक खड़ा... तनिक सा दूर से सही प्रिय का साथ तो रहे..” बहुत सुन्दर.
देवी नागरानी जी की गज़ल भी पसंद आई. मतला बहुत अच्छा है. 'जुबां खार सी न हो ..” बहुत ही खूबसूरत मिसरा.
शुक्रिया राजीव जी !!
हटाएंअनन्या ’हिमांशी’ को इसी मंच पर पहले भी सुन चुका हूँ.
जवाब देंहटाएंसमझ, अनुभव और प्रस्तुतिकरण के तौर पर अनन्या अवश्य बड़ी हुई हैं. इनके के कई शेर ’साहसी’ बन पड़े हैं, किन्तु, कहन में स्त्री सुलभ अवगुंठित इंगित हैं. इसका सुन्दर उदाहरण है शमा कभी बुझी नहीं.. . ! बहुत सुन्दर. बहुत सुन्दर !!
अदम्य विश्वास और स्पष्टता से लबरेज़ गिरह का शेर ये रात ही सहर मेरी.. पर ढेर सारी बधाइयाँ.
और दरख़्त की पुकार वाला शेर तो एकदम से चौंकाता है. अभी कल ही अंकित को लेकर हमने शायर की उम्र पूछी थी. इन सभी ’नयो’ की बेलाग कोशिशों पर दंग हूँ !
न खास बन सका कभी.. . पुनः ऐसा शेर है जो बिना आत्मविश्वस्ति के सतत दीर्घ श्वसन के कहा ही नहीं जा सकता. वाह !
लेकिन विशेष रूप से सूचिबद्ध करूँगा मतले को. ’धत्, ऐसी की तैसी’ का यह अंदाज़ मुझे बहुत-बहुत भाया है.
बहुत-बहुत स्नेह और ढेरम्ढेर बधाइयाँ, अनन्या ’हिमांशी’.. .
आदरणीया शार्दूला नोगजाजी की ग़ज़ल निर्मलता, स्नेह, श्रद्धा, विश्वास और उत्साह निस्सृत करती दुर्निवार बढ़ती जाती है.
जवाब देंहटाएंगिरा, उठा, बढ़ा, चला.. . से उमगता अनवरत प्रयास आपके प्रति नत करता है तो बुझी न ज़िन्दग़ी की लौ.. . का उत्साह अत्यंत मुग्धकारी है. बहुत सुन्दर कहन हुई है.
गहो दिशाविहीन मन.. . वाले शेर के माध्यम से मार्जार-भक्ति का सुन्दर उदाहरण साझा हुआ है. सादर.. .
इसी क्रम में सृजन की रश्मियों का रथ.. . वाला शेर है.
कुहा का आच्छादन या उसका अनवरत व्यापते जाना भले आतंक का पर्याय दीखते हों, परन्तु, ’हों तो हों, चलो-बढ़ो..’ के भाव संग हम निश्चिंत हों का आत्मबल देता हुआ सा है यह शेर.
आदरणीया शार्दूलाजी, आपकी प्रस्तुति पर सादर अभिनन्दन.
आदरणीया देवी नागरानीजी की ग़ज़ल पर मैं क्या कह सकता हूँ !
जवाब देंहटाएंसीख और सुझाव व सलाह देते आपके अश’आर पुनरुत्साहित करते हुए से सामने आते हैं.
इसकी तस्दीक करते हैं ज़ुबान खार सी न हो.. . या फिर ज़मीन रेगज़ार हो.. .
अभी-अभी शार्दूलाजी का एक शेर मार्जार-भक्ति का भाव उत्पन्न करता हुआ सा सामने था. आदरणीया देवीजी का आखिरी शेर मर्कट-भक्ति का सुन्दर उदाहरण हुआ है. हम अपने प्रयास के क्रम में क्यों कम हों, उसका करम तो है ही. जय हो.. .
माँ-बहनें ’तृण धरि ओट कहत बैदेही..’ को कितनी शिद्दत से जीती चली जाती हैं, हैं न ! परिवार-समाज के शरीर में संस्कृति वाहिका-धमनियाँ सदृश अनवरत क्रियारत, कार्यरत !
सादर प्रणाम
कंचनजी.. . लालित्य-विन्यास ! सुगढ़ प्रस्तुतिकरण !!
जवाब देंहटाएंउर्वर धरा की सेज पर नदी के अनवरत घुलते चले जाने का दृश्य विमुग्धकारी है.
अनुभूतियाँ वायव्य मात्र न रह कर श्वसन का आधार बन जायँ तो जीवन-तत्त्व हो जाती हैं. हुलस के प्रकारादि का जितना गहन और महीन चित्रण हुआ है वह तंतुओं में उद्वेग का कारण सुलभ करा रहा है.
न डाह है, न आह है.. .
इस अभिव्यक्ति में निर्लिप्तता हठवादी एकदम नहीं अपितु अंतर्जीवी है.
भाव उर के स्वयं संसृत, स्वर न खोले.. . बात हो अधर न बोले.. .
बहुत-बहुत बधाई, कंचनजी.
बहुत बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंकल अंकित के शेर से ढेर हुए और आज अनन्या ने "ये रात ही सहर मेरी,,," जैसी गिरह लगा कर चारों खाने चित्त कर दिया,,,उस पर " निदा सिमट गयी,,,," जैसा कद्दावर शेर क़यामत ढा गया,,,कभी ऐसे शेर उस्तादों की बपौती हुआ करते थे लोग कहते थे मियां दर्द सहो,,,ज़िन्दगी धूप में जलाओ,,,अनुभव से बाल सफ़ेद करो तब एक आध अच्छा शेर कहने की सोचना,,,और यहाँ इस तरही में देखिये ये छोटे छोटे कल के बच्चे बड़े बड़ों के कान क्या सफाई से काट रहे हैं,,,बहुत अच्छा लग रहा है,,,शायरी में नयी पौध की सोच पर जो ख़ुशी हो रही है उसे बयां करना मुश्किल है,,,दुआएं निकल रही हैं इन होनहार बच्चों के लिए,,,वाह।।।एक आध नहीं सैंकड़ों दाल कबूल करो,,,दोनों हाथों से कबूल करो,,,
जवाब देंहटाएंशार्दूला जी को तरही ही में पढने का अवसर मिला है और हमेशा उन्हें और पढने की इच्छा बलवती होती गयी है,,,शब्द और भाव पर उनका अधिकार विस्मयकारी है,,," गिरा उठा बढ़ा चला,,," "गहो दिशा विहीन मन,,," और "दीवानगी की खुशबूएं,,," जैसे लाजवाब शेर तालियाँ बजाने पर मजबूर कर रहे हैं,,,वाह शार्दूला जी बहुत ही अच्छी ग़ज़ल कही है आपने,,,दाद कबूल करें,,,
कंचन का नाम ज़ेहन में एक चंचल चुलबुली लेकिन बहुत संवेदनशील लड़की की तस्वीर बनाता है लेकिन उसकी रचनाएँ उसे एक धीर गंभीर लड़की की छवि प्रस्तुत करतीं हैं,,,,विलक्षण प्रतिभा शाली है कंचन,,,हिंदी के ऐसे शब्द और भाव अब कहाँ पढने को मिलते हैं,,,अद्भुत रचना है कंचन की,,,तुहिन छिटक के,,,तुहिन शब्द बरसों बाद पढ़ा,,,कमाल कर दिया कंचन कहाँ से ढूंढ निकला इसे,,,वाह,,,वाह वाह,,,
"जबान खार सी न हो,,," जैसी बात नागरानी दीदी जैसे लोग ही कह सकते हैं,,,ये शेर जैसे उन्होंने अपने लिए ही कहा हो,,,ये ग़ज़ल उन्हीं की तरह नाज़ुक और ममतामयी है,,,ढेरों दाद,,,
इस बार की दिवाली पे जो भाव और शब्दों की रौशनी हुई है वो अप्रतिम है,,,,धन्य हो गए प्रभु ऐसी दुर्लभ रचनाएँ पढ़ कर,,,
नीरज
कल अंकित के शेर से ढेर हुए और आज अनन्या ने "ये रात ही सहर मेरी,,," जैसी गिरह लगा कर चारों खाने चित्त कर दिया,,,उस पर " निदा सिमट गयी,,,," जैसा कद्दावर शेर क़यामत ढा गया,,,कभी ऐसे शेर उस्तादों की बपौती हुआ करते थे लोग कहते थे मियां दर्द सहो,,,ज़िन्दगी धूप में जलाओ,,,अनुभव से बाल सफ़ेद करो तब एक आध अच्छा शेर कहने की सोचना,,,और यहाँ इस तरही में देखिये ये छोटे छोटे कल के बच्चे बड़े बड़ों के कान क्या सफाई से काट रहे हैं,,,बहुत अच्छा लग रहा है,,,शायरी में नयी पौध की सोच पर जो ख़ुशी हो रही है उसे बयां करना मुश्किल है,,,दुआएं निकल रही हैं इन होनहार बच्चों के लिए,,,वाह।।।एक आध नहीं सैंकड़ों दाल कबूल करो,,,दोनों हाथों से कबूल करो,,,
जवाब देंहटाएंशार्दूला जी को तरही ही में पढने का अवसर मिला है और हमेशा उन्हें और पढने की इच्छा बलवती होती गयी है,,,शब्द और भाव पर उनका अधिकार विस्मयकारी है,,," गिरा उठा बढ़ा चला,,," "गहो दिशा विहीन मन,,," और "दीवानगी की खुशबूएं,,," जैसे लाजवाब शेर तालियाँ बजाने पर मजबूर कर रहे हैं,,,वाह शार्दूला जी बहुत ही अच्छी ग़ज़ल कही है आपने,,,दाद कबूल करें,,,
कंचन का नाम ज़ेहन में एक चंचल चुलबुली लेकिन बहुत संवेदनशील लड़की की तस्वीर बनाता है लेकिन उसकी रचनाएँ उसे एक धीर गंभीर लड़की की छवि प्रस्तुत करतीं हैं,,,,विलक्षण प्रतिभा शाली है कंचन,,,हिंदी के ऐसे शब्द और भाव अब कहाँ पढने को मिलते हैं,,,अद्भुत रचना है कंचन की,,,तुहिन छिटक के,,,तुहिन शब्द बरसों बाद पढ़ा,,,कमाल कर दिया कंचन कहाँ से ढूंढ निकला इसे,,,वाह,,,वाह वाह,,,
"जबान खार सी न हो,,," जैसी बात नागरानी दीदी जैसे लोग ही कह सकते हैं,,,ये शेर जैसे उन्होंने अपने लिए ही कहा हो,,,ये ग़ज़ल उन्हीं की तरह नाज़ुक और ममतामयी है,,,ढेरों दाद,,,
इस बार की दिवाली पे जो भाव और शब्दों की रौशनी हुई है वो अप्रतिम है,,,,धन्य हो गए प्रभु ऐसी दुर्लभ रचनाएँ पढ़ कर,,,
नीरज
नीरज जी दीपावली मंगलमय हो...!!
हटाएंआज तो मैं बहुत लेट हो गया, कुछ कहने को बचा ही नहीं, तिसपर नीरज भाई की डबल टिप्पणी।
जवाब देंहटाएंअनन्या :
‘वो मुझसे होनहार ... ‘ में टकराव की स्थिति से निकलने का सुगम मार्ग है। गिरह उत्तम। उर्दू पर पकड़ यूँ ही बढ़ती रही तो भाई ये उर्दू मदरसे में न पढ़ाने लगे। एक पुराना ईनाम देना बाकी है, उसी को भारी करता हूँ। इस दिलकश ग़ज़ल के लिये बधाई।
शार्दूला जी:
मत्ले के शेर से चुनौती, उसपर दूसरा शेर बहुत दमदार रहा। गहो दिशाविहीन मन का समर्पण, सृजन की रश्मियों से होती हुई यह ग़ज़ल शब्दचयन की दृष्टि से गीत माधुर्य के बहुत करीब है। इस दिलकश ग़ज़ल के लिये बधाई।
कंचन जी:
ये ग़ज़ल के स्कूल के छात्रों का भाग-भाग कर गीत लिखना क्षम्य नहीं है (ऐसे गीतों से मेरी ग़ज़ल को डर लगता है) । बहुत प्यारा गीत है इसलिये ग़ज़ल की रियायत दी। इस मधुर गीत के लिये बधाई।
आदरणीय देवी नागरानी जी:
प्यार मे जॉं निसार तो अनादि काल से सार्वभौमिक अधिकार है, तो हो रहे, तो हो रहे। इस दिलकश ग़ज़ल के लिये बधाई।
एक बार फिर सबको बहुत बहुत बधाई।
तिलक जी ! आपकी टिप्पणी पढ़ के हँस भी रही हूँ और आश्चर्य में भी हूँ कि कल अनन्या मुझे वो पोस्ट दिखा रही थी, जिसमे आपने ईनाम की बात की थी और मैने कहा, उस समय कुछ सोचा होगा, अब भूल गये होंगे।
हटाएंआज टिप्पणी पढ़ते ही हँसी आ गयी कि ना ईनाम देने वाला भूला है़, ना लेने वाला।
भूलने के लिये और बहुत कुछ है, बच्चों से किया वायदा भुलाना ईश्वर से किया वायदा भुलाने समान है।
हटाएंअनन्या ने बहुत ही खुबसूरत ग़ज़ल कही है ! एक बेहद सुकून सी ग़ज़ल पढ़ने को मिली है ! बहुत ख़ूब ! मगर रार पर बहन जी याद आ गई ! :)
जवाब देंहटाएंशार्दूला दी की ग़ज़ल में एक उत्साह है ! बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल है ! गहो दिशाविहीन मन वाला शे'र बहुत ही खुबसूरत बन पडा है !
बहन जी कर हर बंद खुबसूरत है ! सभी में अलग अलग बिम्ब हैं ! ये रूप पहली दफ़ा देख रहा हूँ और वो भी बेहद खुबसूरत ! वाह !
देवी दी की ग़ज़ल का हर शे'र एक तज़ुर्बे की बात करता हुआ है ! बहुत कुछ सिखाने को मिला ! कुछ शे'र में बहुत ही महीन बात की गई है !
सभी देविओ को दीवाली की ढेर सारी शुभकामनाएं !
अर्श
अनन्या जी तमाम संभावनाएं लिये अच्छी गज़ल कह सकती हैं ! अनन्या जी की गज़ल का , तीसरा ,चौथा , पांचवा शेर और मक्ता ज़ोरदार लगा ! इसी तरह शार्दूला जी का मतला , दूसरा ,तीसरा और छठा शेर ज़ोरदार है ! कंचन जी की आखरी सात पंक्तियाँ ज़ोरदार हैं ! देवी नागरानी जी की गज़ल के लगभग सभी शेर ज़ोरदार हैं !
जवाब देंहटाएंशुक्रिया रमेश जी !!
हटाएंअनन्या का क्या कहें। अपना किला घर ही में ढह रहा है। छः तारीख को जब गुरू जी ने मुझसे पूछा कि अनन्या की तरही का क्या हुआ, तो मुझे लगा कि इण्टरमीडियेट की बोर्ड परीक्षाओं में व्यस्त बालिका का मूड नही होगा लिखने का। जब उससे पूछा तो पता चला कि लैपटॉप फॉर्मेटिंग के लिये जाने के कारण उसे पता ही नही चला तरही का मिसरा दिया जा चुका है। बहरहाल मैने बताया कि ७ तारीख अंतिम तिथि है, तो सात ही तारीख को कॉलेज से आने के बाद पाँच से ९ बजे की बीच जो उसने लिखा, उसे देख कर मैं सिर चकरा गया।
जवाब देंहटाएंमजेदार बात वो थी, जो मेरे और गुरू जी के बीच हुई। मैने गुरू जी से कहा "गुरू जी मैं तो अपनी ही ग़ज़ल नही लिख पाती, कहीं लोग ये ना समझे कि अनन्या मेरी मदद से ग़ज़ल लिखती है।
और गुरू जी का लौटती डाक से जवाब आया " तुम और अनन्या की सहायता कर सको ???? जोक आफ द डे।"
अब आगे मैं क्या कहूँ....
खैर चूँकि उम्र के साथ कुछ चमत्कार करने का मन होता है, इसलिये इस बार दाद दी जाती है, मगर जो बात कल गुरू जी ने अर्श के लिये कही, वही बात मुझे अनन्या से भी कहनी है " आगे से ऐसा लिखना कि तुम कहो और दूसरे के दिल तक पहुँचे। जब डिक्शनरी ले कर रचना समझनी पड़े, तो रचना का मजा नही रह जाता।
ग़ज़ल कहने में भाषाई परहेज तो नहीं होना चाहिये, रहा प्रश्न अन्य भाषा के शब्दों के अर्थ का तो सबके पास शब्दकोष नहीं होता इसलिये साथ-साथ अर्थ दे देना ठीक रहता है।
हटाएंमुझे एक बार तेजिन्दर शर्मा जी ने अपनी एक उर्दु लिपि में लिखी कहानी पढ़ने के लिये भेज दी, मैनें उन्हें स्पष्ट किया कि मैं उर्दू नहीं पढ़ सकता हॉा कामचलाऊ शब्दकोषीय ज्ञान अवश्य है लेकिन वह भी हिन्दी लिपि के शब्दकोष के सहारे। उनका उत्तर आया कि उर्दू शब्दों के प्रति मेरा प्रेम देखकर उन्हें लगा कि मैं उर्दू पढ़ना लिखना भी जानता हूँ। उसके बाद से मैनें उर्दू शब्दों का प्रयोग कम कर दिया। हिन्दी में बहुत अच्छी ग़ज़ल कही गयी हैं फिर भी उर्दू की तरु़ हर ग़ज़ल कहने वाला कभी न कभी आकर्षित होता ही है।
शार्दूला जी का नाम सुनते ही, लगता है कि कुछ अच्छा सुनने को मिलेगा। और वो सुनने को मिलता है
जवाब देंहटाएं"गिरा, उठा, बढ़ा, चला, विपद से मैं नही डरा" शेर में।
सिंगापुर में दीपावली की जगमग मुबारक़ दीदी।
नागरानी दीदी जैसे वरिष्ठ व्यक्ति को मैं क्या कहूँ, सिवाय इसके कि दीपावली उतनी ही सुंदर हो जितने आपके शेर...
जवाब देंहटाएंॐ
जवाब देंहटाएंआज रूप चौदस के आत्म - शुचिता के पावन दिवस पर
हमारे परम गुणी अनुज ने सूझ - बुझ का परिचय देते हुए
स्त्रीत्व की उन्नायिकाएं , रचना कर्म में प्रवीण ,
उम्र के विभन्न पडावों पर पहुँचीं हुईं और अपना जीवन
भारतीयता के संस्कारों से सुगन्धित किये हुए
विश्व के अलग अलग स्थानों पर रहनेवाली 4 कवयित्रीओं की बेहतरीन कृतियाँ
पढवा कर मेरे उत्साह - पर्वके उल्लास -आनंद में श्री वृध्धि की है ..
अलग से एक एक पंक्ति के बारे में नहीं लिख रही
क्यूं के मुझे तो पूरी की पूरी रचनाएं पसंद आयीं हैं !
आप सभी जो यहाँ पधारे हैं
उन सभी के लिए मेरी दीपावली पर्व की मंगल कामनाएं भी संलग्न हैं ...
छोटों को स्नेहाशीष और बड़ों को सादर स्नेह,
- लावण्या
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़लें हैं। जितनी दाद दी जाए उतनी कम है। बहुत बहुत बधाई और नमन नारी शक्ति को।
जवाब देंहटाएंकवियित्रियों को समर्पित मुशायरे का आज का अंक सचमुच विशिष्ट है।अनन्या, आ. शार्दूला जी और आ.देवी नागरानी जी की ग़ज़लें तथा कंचन चौहान जी जी का गीत बहुत सुन्दर हैं।आप सभी को हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंहिमांशी की गज़ल में घुली हुई परिपक्व सोच; शार्दुला का दर्शन और सन्देश के बीच बुनी हुई भाषा का रोचक कसाव, कंचन का तीव्र जल प्रपात की तरह अपने साथ बहा ले जाने वाला गीत और आदतणीय देवीजी की सदाबहार सन्देशों युक्त गज़ल. किसी भी एक पंक्ति को उद्धृत करना असम्भव है>सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई.
जवाब देंहटाएंदेरी से आने के लिए माफ़ी....
जवाब देंहटाएंअनन्या की ग़ज़लें पढ़कर आश्चर्य होता है और ख़ुशी भी होती है. आने वाले समय की बुनियाद बहुत मजबूत पड़ रही है.
मतला बहुत अच्छा कहा है और गिरह बेहद शानदार लगाई है.
बहुत बहुत शुभकामनाएं. यूँ ही बेहतरीन लिखती रहो.
शार्दूला दी ने ये शेर बहुत खूब कहे हैं
"गिरा, उठा, बढ़ा, चला, विपद से मैं नहीं डरा ..........", शब्दों का ताना-बाना बहुत सशक्ति से बुना है.
"सृजन की रश्मियों का रथ, बढ़ा तू मीत अनवरत ......." वाह वाह
कंचन दी के गीत के बारे में क्या कहा जाए............बहुत दिनों बाद आपसे गीत सुन रहा हूँ. और गीत का प्रवाह लाजवाब है.
कुछ शब्दों के अर्थ ढूंढ रहा हूँ और कुछ के लिए आपको फ़ोन करूँगा. :)
मिलन मिलन है हर तरफ धरा से आसमान तक,
सिमट के तम में, ओढ़ तम, ये रति रती है यों कहे
जबरदस्त पंक्तियाँ..............वाह वाह
तुहिन छिड़क के छेड़छाड़ कर रहे हैं तारागण,
कभी जलधि ज़रा सा ज्वार ला उन्हे डरा रहा।
कभी ज़रा गरज के मेघ कह रहा, रुको अभी,
कभी छुपा के चाँद वो नक्षत्र को चिढ़ा रहा।
अद्भुत ............
"........परस के चाँदनी ज़रा सी भेज दे मेरी प्रिये। " उफ्फ्फ
लाजवाब दीदी.
मज़ा आ गया.............अब ये गीत आपसे फ़ोन पे भी सुनूंगा, तैयार रहना.
आदरणीय देवी नागरानी जी का कहा हुआ ये शेर बेहद पसंद आया.
ज़ुबान ख़ार सी न हो, न गहरे घाव दिल को दे
जो राह ख़ारदार हो, तो हो रहे तो हो रहे
तेजी से गुजरते वक़्त में हम बहुत सी चीजों के गवाह होते हैं और प्राय भूलते भी हैं.
जवाब देंहटाएंइस मुशायरा में नवयुवकों को परिपक्व होते देखा है, लेकिन इस किशोरी (अनन्या) ने जितने आयाम अब तक दिखाएँ हैं अब कोई आश्चर्य नहीं.. ऐसे अश’आर देख कर. बहुत सुन्दर और प्रभावशाली.
शार्दूला दी जी की पंक्तिया कितनी सशक्त हैं. और अंत में ये.. सृजन की रश्मियों का रथ, बढ़अ तू मीत अनवरत. हम सभी के लिए सन्देश है.
कंचन दी ने प्रकृति के सानिद्ध्य में प्रेम का चित्रण अपने सुन्दर गीत में रच इस मुशायरे को बहुआयामी बना दिया है.
आदरणीया देवी जी ने ख़ूबसूरत मतले के साथ... और ये शे’र... जुबान खार सी न हो कभी चाहे ये राह खारदार हो... एक सुन्दर ग़ज़ल का समापन किया है
एक और यादगार एपिसोड हुयी है ये दिवाली