एक अधिकारिक सूचना पहले प्रदान की जाती है । वो सूचना ये कि दिनांक 2 दिसम्बर को सीहोर में शिवना प्रकाशन का आयोजन होने जा रहा है । कार्यक्रम में शिवना द्वारा दिये जाने वाले सुकवि रमेश हठीला सम्मान तथा सुकवि मोहन राय युवा पुरस्कार प्रदान किये जाएंगे । कार्यक्रम दो चरणों में होगा । प्रथम खंड में सम्मान समारोह होगा तथा दूसरे खंड में सुबीर संवाद सेवा परिवार मुशायरा होगा । इसमें सुबीर संवाद सेवा से जुड़े रचनाकार काव्य पाठ करेंगें । विधिवत कोई सूची नहीं है कि कितने शायर होंगे । बस ये कि सुबीर संवाद सेवा से जुड़े जो भी रचनाकार उपस्िथत रहेंगे वे सब दूसरे चरण में काव्य पाठ करेंगे । सुकवि रमेश हठीला सम्मान की घोषणा पिछले वर्ष जनवरी में की जा चुकी है । यह सम्मान सुप्रसिद्ध रचनाकार श्री नीरज गोस्वामी को प्रदान किया जायेगा । सुकवि मोहन राय युवा पुरस्कार हेतु नाम शीघ्र ही घोषित किया जायेगा । मैं आपको आमंत्रित करने की औपचारिकताओं में इसलिये नहीं पड़ूंगा कि सुबीर संवाद सेवा मेरा ब्लाग नहीं है, वो आप सबका है, सो ये कार्यक्रम भी आप सबका है । अपने ही कार्यक्रम में आने के लिये किसी आमंत्रण की आवश्यकता नहीं होती है । आप आएंगे तो मुझे अच्छा लगेगा ।
''सुकवि रमेश हठीला सम्मान 2012'' श्री नीरज गोस्वामी
आइये आज बासी परंपरा को और आगे बढ़ाते हैं । आज बासी में एक ताज़ा माल भी है । ताज़ा इस मामले में कि ये मुख्य मुशायरे की बस पकड़ते पकड़ते चूक गये थे । बाकी बासी मुशायरे में वे रचनाकार आ रहे हैं जो मुख्य मुशायरे में भी रचनापाठ कर चुके हैं, इस कारण वे बासी हैं । मुस्तफा माहिर ताज़ा ताज़ा आ रहे हैं बासी मुशायरे में । तो आज तिलक जी के साथ मुस्तफा की जुगलबंदी ।
घना जो अंधकार हो, तो हो रहे, तो हो रहे
मुस्तफ़ा माहिर
वो बाइसे-क़रार हो तो हो रहे तो हो रहे
रक़ीब हो कि यार हो तो हो रहे तो हो रहे
हमें तो बोलना है सच, हमें तो खोलना है सच
भले ही जान ख़्वार हो तो हो रहे तो हो रहे
विसाल का यकीन था विसाल का यकीन है
तवील इंतज़ार हो तो हो रहे तो हो रहे
फ़क़ीर तो फ़क़ीर है जो कह दिया सो कह दिया
ये शाह का दयार हो तो हो रहे तो हो रहे
ये प्यार पाक है मगर है पत्थरों पे बेअसर
ये याद यादगार हो तो हो रहे तो हो रहे
तुम्हारे लफ्ज़ थे दुआ, तुम्हारा लम्स था दवा
ज़माना ग़मगुसार हो तो हो रहे तो हो रहे
गुलों ने खूब जी लिया हयात का हर एक पल
ये आखिरी बहार हो तो हो रहे तो हो रहे
तुम्हारी याद के दिए जो दिन ढला जला लिए
घना जो अन्धकार हो तो हो रहे तो हो रहे
सबसे पहले बात उस शेर की जो क्य खूब बन पड़ा है 'विसाल का यकीन था विसाल का यकीन है' अहा क्या कह दिया है । मिसरा सानी में रदीफ और काफिया कमाल कमाल निभाये गये हैं । ये बात मैं पहले भी कह चुका हूं कि इस बार के मिसरे पर ग़ज़ल कहना कठिन नहीं है, कठिन है रदीफ और काफिये को ठीक प्रकार से निभाना । विशेषकर 'हो रहे तो हो रहे' में जो एक प्रकार की लापरवाही है जो इग्नोर करने का भाव है उसे ठीक प्रकार से निभा ले जाना । ये लापरवाही ही मुख्य है जिसका स्वर कुछ कुछ 'भाड़ में जाओ' से मिलता है । और उस लापरवाही को विसाल के मुकाबले खड़े इंतज़ार में बहुत सुंदर तरीके से निभाया है मुस्तफा ने । फकीर तो फकीर है में एक बार फिर से शाह के दयार के प्रति वह लापरवाही या इग्नोर करने की भावना बहुत सुंदर तरीके से व्यक्त हुई है । तुम्हारे लफ़्ज़ थे दुआ बहुत सुंदर मिसरा है । गुलों ने खूब जी लिया में एक बार फिर से रदीफ काफिया को बेहतर तरीके से निभा ले गये है । बहुत सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह । देर आयद दुरुस्त आयद ।
तिलकराज कपूर
लड़ाई आर-पार हो तो हो रहे तो हो रहे
इसी तरह सुधार हो तो हो रहे तो हो रहे।
दहेज दानवों के हाथ जल रही हैं बेटियॉं
दिलों में इनसे रार हो तो हो रहे तो हो रहे।
मिटा रहे है गर्भ में जो मॉं बहन औ बेटियॉं
खुदा की उनपे मार हो तो हो रहे तो हो रहे।
पढ़ो लिखो बढ़ो सभी को साथ में लिये हुए
कठिन ये राह यार हो तो हो रहे तो हो रहे।
न भेद नस्ल का रहे न धर्म जाति रंग का
इसी पे जॉं निसार हो तो हो रहे तो हो रहे।
कतार देख कर कभी खुशी नहीं मिली मगर
ये दीप की कतार हो तो हो रहे तो हो रहे।
बुराईयों पे जीत की प्रतीक दीप रौशनी
ये जिंदगी का सार हो तो हो रहे तो हो रहे।
आज के माहौल पर करारी चोट करता हुआ मतला आर पार की लड़ाई के बाद सुधार की रौशनी को तलाशता हुआ मतला । ये पूरी ग़ज़ल समाज सुधार की ग़ज़ल है । पूरी ग़ज़ल हर सामाजिक बुराई पर करारी चोट करते हुए चलती है । और हां, केवल चोट करते हुए नहीं बल्कि उसका एक हल निकालते हुए भी । मसलन अशिक्षा मिटाने की राह भले ही कठिन हो किन्तु सभी को साथ लेकर चलने से उसका हल हो सकता है । कतार के कन्ट्रास्ट को दीप की कतार के माध्यम से बहुत सुंदर तरीके से व्यक्त किया गया है । बहुत सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह ।
तो चलिये आनंद लीजिये बासी दीपावली के अंक का । अभी कुछ और रचनाएं हमारे पास हैं सकता है कि देव प्रबोधिनी एकादशी तक हम बासी दीपावली के क्रम को जारी रख पाएं । आप आनंद लीजिये आज के दोनों रचनाकारों की रचनाओं का और देते रहिये दाद ।
आज की ग़ज़ल का केन्द्रीय विचार समाज में फैली बुराईयों का अंधकार है जिससे निकल कर रौशनी में आने की बात है। मैं तो बस एक ग़ज़ल कह कर इतिश्री कर बैठा था लेकिन पंकज भाई की प्रेरणा ने रौशनी दी इस अंधकार पर सोचने की। यह ग़ज़ल पूरी तरह समर्पित है पंकज भाई को।
जवाब देंहटाएंआभारी हूं तिलक जी इसके लिये । आप तो 2 दिसम्बर को आ रहे हैं सीहोर ये तो लगभग तय है । लगभग से मतलब मेरी तरफ से तय है आपकी तरफ ये तय किया जाना बाकी है ।
हटाएंतिलक जी आपको खुले आम धमकी दी जाती है अगर आप शराफत से दो दिसंबर को सीहोर नहीं आये तो गुंडों द्वारा उठवा लिए जाओगे,,,आप कैसे आना चाहते हैं इसका फैसला आप करें,,,हमने जो फैसला करना था सो बता लिया,,,
हटाएंनीरज
बिल्कुल सही है इसीलिये तो कहा गया है हमारी तरफ से तो आपका आना तय है अब आपकी तरफ से आप स्वयं तय कर दें या उसे भी हम ही कर देंगे ( बल्कि कर दिया है )
हटाएं2 दिसम्बर को इतवार है इसलिये बीबी के चंगुल से छूटने का कोई तो बहाना चाहिये, सो बहाना मिल गया। इस मौके को चूकने का प्रश्न ही नहीं है। मेरी ओर से निश्चिंत रहें। मेरी कोशिश सपरिवार आने की है, देखता हूँ कितना सफ़ल होती है कोशिश। बच्चन जी की कविता की परीक्षा भी हो जायेगी।
हटाएंसपरिवार आने की कोशिश नहीं, सपरिवार ही आना है । मेरी ओर से आदरणीय भाभी जी को सादर आमंत्रण दे दीजियेगा ।
हटाएंभाई मुस्तफ़ा माहिर ने बड़ी खूबसूरती से बॉधें हैं शेर। इस ग़ज़ल पर पंकज भाई के कहे से मैं सौ प्रतिशत सहमत हूँ। पूरी ग़ज़ल में ये शेर अलग ही आबो-ताब रखते हैं।
जवाब देंहटाएंदोनों ही ग़ज़लें बेहतरीन हैं। बहुत बहुत बधाई मुस्तफ़ा जी और तिलक राज जी को।
जवाब देंहटाएंऔर बहुत बहुत बधाई नीरज जी को इस सम्मान के लिए।
जवाब देंहटाएंमुस्तफा से मेरा परिचय सबसे पहले अंकित ने करवाया था तब से अब तक ये लड़का कुलांचे भरते हुए तरक्की कर रहा है,,,शायरी की नयी ज़मीन तलाश रहा है और बहुत खूब शेर कह रहा है,,,ये युवा शायरी में ताज़ी हवा के झोंके जैसे हैं,,,,इनका तहे दिल से इस्तकबाल होना चाहिए,,,विसाल का यकीन था जैसा शेर कह पाना बड़े बड़े उस्तादों के बस की भी बात नहीं जिसे इतने सहज ढंग से मुस्तफा ने कह दिया है,,,जियो भाई जियो,,,खूब लिखो,,,हमारी दुआएं आपके साथ हैं,,,
जवाब देंहटाएंतिलक जी के लिए कुछ भी का पाना सूरज को दिया दिखाना जैसा है,,,इतना कुछ कह चूका के सिवा वाह वाह के और कुछ कहने को बाकी नहीं रहा,
नीरज
ग़ज़ल का मिज़ाज़ रवां-दवां होना शायद यही है जो मुस्तफ़ा माहिर में है। शायरी का मिज़ाज़ जिसकी रग़ों में उतर चुका हो उसे इस दिशा में आगे वक्त खुद बढ़ायेगा।
हटाएंआपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 20/11/12 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका स्वागत है
जवाब देंहटाएंbhai ji bahut sundar gazal hai dono badhaiyan
जवाब देंहटाएंKYA BAAT HAI... YE BAASI DIWALI TO BAHUT SE RANG SAMETE HUYE HAI.
जवाब देंहटाएंAUR SEHORE YATRA KE BHI AWSAR HAIN...
सर्वप्रथम आदरणीय नीरज जी को ’रमेश हठीला सम्मान’ हेतु सादर बधाइयाँ.
जवाब देंहटाएंआज बसिऔरा संग ’टटका चटनी’ का मेल स्वादिष्ट ही नहीं सुखद भी लगा. भाई मुस्तफ़ा माहिर की ग़ज़ल ताज़ा झोंका की तरहा आयी है.
’तुम्हारे लफ़्ज़ थे दुआ, तुम्हारा लम्स था दवा.. ’ बता देता है शायरी बेलाग साहसी ज़ुबां बोलती है. बहुत-बहुत बधाई.
तिलराजजी के लिये कुछ भी कहना रिपिटीशन होगा.
देखिये, मिलते हैं तो हम परस्पर कितना मेलते हैं.
सादर
उम्दा शेर... बहुत अच्छी गज़लें...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंगुरूवर,
जवाब देंहटाएंइस बासी को ऐसा कहना चाहिए जैसे कि शीतला अष्टमी की पूजा के लिए बासी बनाया जाता है और देवि को भोग लगाया जाता है। मुस्तफा को पढ़ते हुए बहुत कुछ सीखने को मिला और तिलकराज जी तो अपनेआप में ही एक किताब हैं।
रही बात २ दिसम्बर को सीहोर आने की तो अपना तो तय है बस नौकरी से ही पूछना बाकी है।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
पिछली दो पोस्टों पर कुआछ नही लिख पाया क्षमाप्रार्थी हूँ।
मुस्तफ़ा के लिखे का इंतजार रहता है....देर लगी आने में तुमको शुक्र है फिर भी आए तो :-)
जवाब देंहटाएंग़ज़ल तो पूरी ही कमाल की है, लेकिन विसाल का यकीन था वाले मिसरे पे स्पेषल दाद वत्स !
नए में मुस्तफा मुझे बहुत पसंद है ! इसकी शायरी वाकई नए खुशबू से तर रहती है ! विसाल वाले शे'र पे करोडो दाद !
जवाब देंहटाएंअर्श