दीपावली यदि नहीं होती घरों में सफाई तक नहीं होती, ये वाक्य कल किसी ने कहा । मुझे लगा बात तो सही है । आदमी लापरवाही की मिट्टी से बना है । उसे कोई कारण चाहिये होता है । दीपावली एक कारण होता है साफ सफाई करने का । काश ऐसा ही कोई त्यौहार होता जिसमें अपने अंदर की भी साफ सफाई कर ली जाती । जो कलुष, जो गंदगी घर से साफ की जाती है वो ही मन की भी साफ की जाती । मगर ऐसा कोई त्यौहार नहीं है । हम घरों से तो गंदगी हर साल साफ करते हैं लेकिन मन में गंदगी साल दर साल जमा करते जाते हैं । गंदगी के ढेर बढ़ते जाते हैं । और इतने बढ़ जाते हैं कि हमारा अंतस उस गंदगी से छटपटाने लगता है । हम समझ ही नहीं पाते कि ये गंदगी इतनी हमारे अंदर आई कहां से । आइये इस दीपावली पर विचारों की बुहारी लेकर अपने अंतस को भी जरा बुहार दें । बुहार दें ताकि अंदर बाहर दोनों जगमगा उठें ।
घना जो अंधकार हो, तो हो रहे, तो हो रहे
आज तरही मुशायरे में तीन चिर परिचित शायरों की रचनाएं हैं । डॉ संजय दानी, सुलभ जायसवाल और मुकेश कुमार तिवारी । तीनों ने विविध रंगी ग़ज़लें कही हैं ।
डॉ संजय दानी
जुदाई से करार हो तो, हो रहे, तो हो रहे
विरह ही अपना यार हो, तो हो रहे, तो हो रहे
ग़रीबों का शिकार हो, तो हो रहे, तो हो रहे,
दरे-अमीर दार हो, तो हो रहे, तो हो रहे
अमीरों के लिये है पर्व रौशनी का, अपने घर
घना जो अंधकार हो, तो हो रहे, तो हो रहे।
सुखों के बादलों को अपनी छत पे रोक कर रखो,
पड़ोसी अश्कबार हो, तो हो रहे, तो हो रहे
न देखो हादसों की ओर, वक़्त ये खराब है
मदद की भी पुकार हो, तो हो रहे, तो हो रहे।
ख़ुदा से हम ग़रीबों ने दुखों की पूंजी पाई है,
सुखों का सर फ़रार हो, तो हो रहे, तो हो रहे
पलों की ज़िन्दगी है ख़ूब खाओ पीओ दोस्तों,
गली गली उधार हो, तो हो रहे, तो हो रहे
वतन का पैसा शन्ति से पचाना आना चाहिये,
दबी दबी डकार हो, तो हो रहे, तो हो रहे
दिखावे से ही प्यार हो, तो हो रहे, तो हो रहे
हसीनों की ही कंपनी में दानी नौकरी करो,
ज़रा सा कम पगार हो, तो हो रहे, तो हो रहे
अच्छी ग़ज़ल कही है डॉ दानी ने । ऋणम कृत्वां घृतं पिवेत को बहुत ही सुंदरता के साथ 'पलों की जिन्दगी है खूब खाओ पीओ दोस्तों' में बांधा है । न देखो हादसों की ओर एक सामयिक शेर है, आज के हालात पर सटीक बयान है ये शेर । कोई मदद के लिये पुकारता हो तो पुकारता रहे, मत देखो, समय खराब है । दानी जी ने दो ग़ज़लें भेजी थीं जिनको मिक्स करके मैंने एक ग़ज़ल निकाली है इसलिये दोनों के मतले आ रहे हैं । अच्छी ग़ज़ल ।
सुलभ जायसवाल
तिमिर में छल की धार हो, तो हो रहे, तो हो रहे
ये पाप कारोबार हो, तो हो रहे, तो हो रहे
ये पर्व है प्रकाश का, नमन करें नमन करें
धना जो अंधकार हो, तो हो रहे, तो हो रहे
वो एक गूँज प्यार की, करे मुझे अजर अमर
जो जीत में भी हार हो, तो हो रहे, तो हो रहे
बहुत छोटी सी ग़ज़ल । मतला और दो शेर । मगर छोटी होने के बाद भी असर लिये हुए है । सुलभ धीरे धीरे ट्रेक पर आ रहा है । मतला बहुत अच्छे तरीके से गढ़ा है । और उसी प्रकार से गिरह का शेर भी कहा है । तिमिर में छल की धार हो कह के कुछ अलग कहने की कोशिश की है सुलभ ने । अच्छी ग़ज़ल ।
मुकेश कुमार तिवारी
नज़र का तिरछा वार हो तो हो रहे तो हो रहे
जिगर के आर पार हो तो हो रहे तो हो रहे
हमारी बाजुओं का ज़ोर कम नहीं हुआ अभी
ये जंग ए आरपार हो तो हो रहे तो हो रहे
फना हुई है जिंदगी सुकून की तलाश में
बचा रहा करार हो तो हो रहे हो रहे
बताएँगी ये दूरियाँ हैं कैसे साथ साथ हम
दिलों में दफ़्न प्यार हो तो हो रहे तो हो रहे
यूं दीप मन में जल उठें प्रकाश चारों ओर हो
घना जो अंधकार हो तो हो रहे तो हो रहे
बची रहे उमीद आखिरी दिलों में बस तेरी
खुला प्रलय का द्वार हो तो हो रहे तो हो रहे
सलीब ए उम्र पे टँगी मनुष्यता के वास्ते
अगर हमारी हार हो तो हो रहे तो हो रहे
बहुत अच्छे तरीके से शेर निकाले हैं मुकेश जी ने । गिरह का शेर प्रकाश के आगमन के साथ बांधा गया है । और उसी प्रकार से ईश्वर पर आस्था की बात को बची रहे उमीद के माध्यम से अभिव्यक्त किया गया है । हमारी बाजुओं का जोर कम नहीं हुआ अभी में हौसले के साथ बात को कहा गया है । ग़ज़ल में विभिन्न रंगों का बहुत ही कुशलता के साथ समावेश किया गया है । बहुत सुंदर ।
तो ये थे आज के तीन रचनाकार । ग़ज़लों का आनंद लीजिये और दाद देते रहिये । आज की ये तीनों ग़ज़लें अब आपके हाथों में हैं आनंद लीजिये और प्रशंसा कीजिये । मिलते हैं कल कुछ और रचनाकारों के साथ ।
वाह क्या बात है आपको दीपावली की शुभकामना
जवाब देंहटाएंदानी साहब ने ग़ज़ल के माध्यैम से अच्छीू चुटकियॉं ली हैं। आखिर शेर खतरनाक है भाई, कुछ तनख्वाैह कम पायेंगे, कुछ हसीना पर लुटायेंगे तो घर क्याच ले जायेंगे। बाद में होश आने पर यह न कहना पड़े कि ‘सब कुछ लुटा के होश में आये तो क्यां किया’। प्रचलित प्रवृत्ति को खूब पकड़ा है, सफ़ल रहे हैं।
जवाब देंहटाएंसुलभ ने तीन शेर पर अपनी बात समेटकर एक उदाहरण प्रस्तुित किया है जरूरी नहीं 5 या 7 शेर कहे जायें, अक्सपर मुशायरों नामी शायर भी मत्ले का शेर और एक दो शेर कह कर आगे बढ़ जाते हैं, उद्देश्यअ स्पेष्टअ है कि बेजान या कमज़ोर शेर सुनाने से बेहतर है कि कम लेकिन पुष्ट शेर प्रस्तुैत किये जायें जो प्रभाव छोड़ें।
मुकेश तिवारी जी ने ग़ज़ल व गिरह तो खूब बॉंधी ही, आखिरी शेर में बहुत अच्छीट भावना व्यतक्ते की है।
आनंद आ गया।
क्या अश’आर कहे हैं तीनों ही शायरों ने। बहुत बहुत बधाई और दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंदानी जी ग़ज़ल पढ़ कर चेहरे पर मुस्कान खिल गयी...कहीं सादे शब्दों में तीखे व्यंग बाण चलायें हैं उन्होंने कहीं स्मित हास्य बिखेरा है तो कहीं आज के हालात पर तल्ख़ टिपण्णी भी की है, सर्व गुण संपन्न ग़ज़ल है उनकी...
जवाब देंहटाएंसुलभ जी ने भले ही तीन शेर कहें हों लेकिन वो हम जैसों के तेरह पर भारी हैं, मतला बहुत अच्छा बुना है...आप सही कह रहे हैं अब उन्हें हम कामयाब ग़ज़लकार कह सकते हैं...
आशा और उत्साह से भरी मुकेश जी की ग़ज़ल अलग ही मज़ा दे रही है, बहुत अच्छे शेर कहें उन्होंने...
इन तीनों विलक्षण ग़ज़लकारों को ढेरों बधाई...बधाई...बधाई....
नीरज
डॉ. संजय दानी साहब को जब सुनता हूँ कुछ विशेष कहे की अपेक्षा रहती है. आपने इस दफ़े भी निराश नहीं किया है.
जवाब देंहटाएंसुखों के बादलों.. . तथा पलों की ज़िन्दग़ी है.. . अलहदे मिजाज के शेर हैं.
लेकिन जिस बंद ने गुदगुदाते हुए शरीर में फुरफुरी मचा दी है वह है आपका मक्ता ! .. .अय-हय-हय.. .
हुज़ूर सलाम कुबूल फ़रमायें.
प्रविष्टि के बंद त्रिकुटी सी उतान लिये ! भाई सुलभ के आखिरी शेर पर कहना पड़ेगा कि आपके अंदाज़ में हारने की परिपक्वता है. हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ.. .
मुकेशजी की ग़ज़ल, सही है, कई नज़ारे दिखाती हुई सी है.
बतायेंगी ये दूरियाँ.. . खूबसूरत शेर है.
हमारी बाजूओं का ज़ोर.. . एकदम से चचा ग़ालिब की याद दिला गया--
गो हाथ को ज़ुम्बिश नहीं आँखों में तो दम है
रहने दो अभी सागर ओ मीना मेरे आगे..
आज के तीनों ग़ज़लकार को मेरी हार्दिक बधाइयाँ.
गुरुदेव, आपने एक दम सही बात कही है. वैसे घर की सफाई से बुजुर्गों का मतलब मन और दिल की सफाई ही रहा होगा मगर हम सब उसे ईट-पत्थरों का घर समझ बैठे हैं. कल गीतों की बेमिसाल प्रस्तुति के बाद आज तीन ग़ज़लें हाज़िर है अपने अलहदा अंदाज़ लिए हुए.
जवाब देंहटाएंदानी साब का ये शेर लाजवाब कर दे रहा है.
न देखो हादसों की ओर, वक़्त ये खराब है
मदद की भी पुकार हो, तो हो रहे, तो हो रहे।
वाह वाह वाह
बेहद खूबसूरत शेर, इसका नशा ही अलग है. मज़ा आ गया.
सुलभ भाई दिनों दिन ग़ज़ल की बारीकियों से वाबस्ता होते जा रहे हैं और खूबसूरत अशआर कह रहे हैं.
मतला खूब रचा है.
मगर जो शेर....पागल कर दे रहा है, वो है.
वो एक गूँज प्यार की, करे मुझे अजर अमर
जो जीत में भी हार हो, तो हो रहे, तो हो रहे
ढेरों दाद कुबूल करें. जिंदाबाद शेर.
मुकेश जी की ग़ज़ल के ये शेर बेहद पसंद आये, "बताएँगी ये दूरियाँ हैं कैसे साथ साथ हम ..........", वाह वाह
दानी साब बहुत बढ़िया.. हसीनों की कंपनी में नौकरी के बारे में मैं आपसे बिलकुल सहमत हूँ.
जवाब देंहटाएंसुलभ भाई बहुत बढिया मतला.
मुकेश जी, 'हमारी बाजुओं का जोर..' बहुत बढ़िया शेर.
तीनो शायरों को खूबसूरत गज़लों के लिए बहुत बहुत बधाई.
गुरूवर,
जवाब देंहटाएंछोटे से में ही कितनी असरदार बात कही है सुलभ ने और डॉ.दानी की चिकोटियाँ बहुत देर तक याद रहेंगी।
इस तरही में भाग लेने से बहुत कुछ सीकहने को मिलता है जैसे कि "इकेबाना" (जापानी तरीके से बनाया हुआ गुलद्स्ता/बुके) या गणित की भाषा में बात करूं तो परम्यूटेशन-कॉम्बीनेशन आप उन्हीं अंकों से कितने विन्यास बना सकते हैं, अपने सोचे हुए शब्दों से ही कितने असरदार तरीके से पेश किया जा सकता है और कहाँ पर बख्शीस मिल जाती है आशीर्वाद के रुप में।
समस्त गुरू परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ......
मुकेश कुमार तिवारी
अच्छी ग़ज़लें तीनों-की-तीनों...फिर से तरही की रंगत को और और निखारते हुये|
जवाब देंहटाएंदानी साब के व्यंग्य और कटाक्ष का पूत लिए हुए अशआर का अपना ही अंदाजे-बयां है| बहुत खूब !
सुलभ की लेखनी में सचमुच बहुत निखार आ गया है| अच्छे शायरों के साथ उठाना-बैठना हो रहा है उसका और जिसका फर्क बिलकुल दिख रहा है उसकी तरही में| बहुत अच्छे सुलभ !
मुकेश जी की तरही तमाम रंग समेटे हुये है अपने शेरों में...लेकिन सलीबे-उम्र पर तंगी मनुष्यता के वास्ते का जवाब नहीं|
संजय जी की ग़ज़ल एक गुलदस्ते की तरह है , जिसमे सब कुछ है ज़िंदगी के तमाम पहलू से वाकिफ़ कराती ये ग़ज़ल है ! बहुत अच्छी ग़ज़ल है ! बहुत बधाई !
जवाब देंहटाएंसुलभ का मतला बहुत ही दमदार है , छोटी ग़ज़ल होते हुए भी बहुत अच्छी है ! बहुत बधाई सुलभ को ख़ास तौर से !
मुकेश जी का मतला ही आह वाह वाला है ! शेष अश'आर भी अछे बन पड़े है ! बहुत बधाई इन्हें भी !
अर्श
संजय दानी जी का मतला , सुलभ जायसवाल जी का मक्ता और मुकेश तिवारी जी का तीसरा शेर और मक्ता खूब असरदार लगा !
जवाब देंहटाएंहसीनों कीनही कंपनी में दानी नौकरी करो,
जवाब देंहटाएंज़रा सी कम पगार हो, तो हो रहे, तो हो रहे।
ये भी एक प्रकार लक्ष्मी पूजन ही दानी जी... हा हा हा
सुलभ ???? क्या हुआ ? बस....दीदी की बुराइयाँ मत लो मेरे भाई। आलस बस मेरे ही पास रहने दो। फिलहाल, समझ सकती हूँ, परिस्थितियाँ, फिर भी प्रयास के लिये आशीष।
मुकेश जी ! अच्छे शेर निकाले।
वाह वा संजय दानी साहेब महफ़िल को क्या खूब तंजिया अशआर से नवाजा है तबीयत फडक गई
जवाब देंहटाएंजुदाई से करार हो तो, हो रहे, तो हो रहे
विरह ही अपना यार हो, तो हो रहे, तो हो रहे
ग़रीबों का शिकार हो, तो हो रहे, तो हो रहे,
दरे-अमीर दार हो, तो हो रहे, तो हो रहे
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सुलभ भाई आपके एक शेर तो सवा सौ शेर के बराबर है ढेरो दाद क़ुबूल करें
वाह वा
वो एक गूँज प्यार की, करे मुझे अजर अमर
जो जीत में भी हार हो, तो हो रहे, तो हो रहे
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मुकेश तिवारी जी आपकी ग़ज़ल एक अलग ही कैफियत को बयाँ कर गई
ये अशआर खूब पसंद आये
बची रहे उमीद आखिरी दिलों में बस तेरी
खुला प्रलय का द्वार हो तो हो रहे तो हो रहे
सलीब ए उम्र पे टँगी मनुष्यता के वास्ते
अगर हमारी हार हो तो हो रहे तो हो रहे
तीनों गज़लें प्रभावशाली और परिप्क्वता से लही गयी. विषय को नये आयाम देने में तीनों
जवाब देंहटाएंशायर पूरी महारत के साथ कामयाब. सभी को हार्दिक बधाई.
वाह ..वाह संजय दानी जी , मुकेश कुमार तिवारी जी और सुलभ जायसवाल जी कमाल कर दित्ता । अलग -अलग रंगों के दीयों ने बुद्धि रोशन कर दी । तीनों को बधाई ।
जवाब देंहटाएंसुलभ जी का गिरह वाले मिसरे का कोई जवाब नहीं।
जवाब देंहटाएंमुकेश जी का मक्ता एक ऊंचाई को छू रहा है।
तीनो कवियों को सुन्दर रचनाओं के लिए बधाइयाँ
जवाब देंहटाएंदिवाली की शुभकामनाओं के साथ तीन बेहतरीन ग़ज़लों के रचनाकारों को भी मेरी हार्दिक बधाई। दानी जी( न देखो हादसों) , सुलभ जी (दूसरा शेर), और मुकेश जी का आखरी मिस्र बहुत ही पूरकशिश लगा॥ बहुत ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ!!
जवाब देंहटाएंआज की तीनों ग़ज़लें अच्छी हैं।दानी जी के अश'आर में व्यंग्य धारदार है।सुलभ भाई के तीनों शेर अछे हुए हैं और मुकेश तिवारी जी की ग़ज़ल के भी बेशतर अश'आर पसंद आये।आप तीनों को बधाई।
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