सोमवार, 9 जुलाई 2012

थाल पूजा का हाथों में ले के तू आ प्रीत की अल्पनाएं सजी हैं प्रिये, आइये आज सुनते हैं दिगम्‍बर नासवा से एक नहीं दो ग़ज़लें ।

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प्रीत की अल्‍पनाएं सजी हैं प्रिये

धीरे धीरे मुशायरा अपनी गति पकड़ चुका है । और इधर झूम कर बरसात भी आ गई है । कल भोपाल में आदरणीया चित्रा मुद्गल जी का कहानी पाठ सुन कर जब लौट रहा था तो सारे रास्‍ते मूसलाधार बरसात हो रही थी । बहुत दिनों बाद तेज बारिश में ड्राइव करने का आनंद लिया ।

एक शुभ सूचना

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डॉ. आज़म द्वारा लिखित पुस्‍तक आसान अरूज़ का विमोचन दिनांक 12 जुलाई को भोपाल में होने जा रहा है । विमोचन उत्‍तराखंड के राज्‍यपाल महामहिम श्री अज़ीज़ क़ुरैशी साहब के कर कमलों से सम्‍पन्‍न होगा । वैसे कार्यक्रम को अगस्‍त में करने की कार्ययोजना थी लेकिन महामहिम का समय अचानक मिल जाने के कारण ये कार्यक्रम भोपाल में होने जा रहा है । विमोचन को जो कार्यक्रम सीहोर में होना है वो अपने निर्धारित समय पर अगस्‍त या सितम्‍बर में होगा । तो यदि आप दिनांक 12 जुलाई को भोपाल में हैं ( तिलक जी सुन रहे हैं न आप) तो समय निकाल कर शहीद भवन पर शाम 7 बजे आयोजित होने वाले कार्यक्रम में पधारें । मुझे भी अच्‍छा लगेगा और डॉ आज़म जी को भी । विमोचन के बाद एक छोटा सा मुशायरा भी होगा क्‍योंकि महामहिम राज्‍यपाल महोदय मुशायरों के बहुत बहुत अच्‍छे श्रोता हैं । वे भोपाल की गंगा जमनी संस्‍कृति का प्रतिनिधित्‍व करते हैं ।

तो ये तो हुई शुभ सूचना, चलिये अब आज तरही का क्रम बढ़ाते हैं । आज हम सुनने जा रहे हैं दिगम्‍बर नासवा से उनकी दो सुंदर ग़जल़ें । पहली ग़जल बहुवचन में है और दूसरी  एकवचन में है ।

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दिगम्बर नासवा

प्रेम तो मेरा बहुत ही प्रिय विषय है इसलिए मैंने एक नहीं २ ग़ज़लें लिख डाली हैं ...
दोनों ही ग़ज़लें भेज रहा हूँ ... अगर कोई शेर ठीक न बना हो तो गुणीजनों से
गलती की क्षमा चाहता हूँ ...

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खुशबुएं तुझ को छू कर बही हैं प्रिये
मन के आँगन में कलियां खिली हैं प्रिये

रूठना एक टक देखना मानना
ये अदाएं तो मन में बसी हैं प्रिये

आसमानी दुपट्टा झुकी सी नज़र
देख कर भी न नज़रें भरी हैं प्रिये

थाल पूजा का हाथों में ले के तू आ
प्रीत की अल्पनाएं सजी हैं प्रिये

ये दबी सी हंसी चूडियों की खनक
मन में फिर कल्पनाएं जगी हैं प्रिये

जब से आने का तेरे इशारा हुवा
ये बहारें भी महकी हुयी हैं प्रिये

चाँद माथे पे आ के तेरे रुक गया
घंटियां मंदिरों में बजी हैं प्रिये

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खिलखिलाती हुई तू मिली है प्रिये
उम्र भर रुत सुहानी रही है प्रिये

तुझको देखा था पूजा की थाली लिए
इस मिलन की कहानी यही है प्रिये

दिन तेरे नाम से खिलखिलाता रहा
रात भी मुस्कुराती रही है प्रिये

रात भर क्या हुआ कौन से गुल खिले
सिलवटों ने कहानी कही है प्रिये

आसमानी दुपट्टा झुकी सी नज़र
ये अदा आज तक भी वही है प्रिये

तोलिये से है बालों को झटका जहां
उस तरफ से हवा फिर बही है प्रिये

बाजुओं में मेरी थक के सोई है तू
पल दो पल जिंदगानी अभी है प्रिये

ये दबी सी हंसी चूडियों की खनक
घर के कण कण में तेरी छवि है प्रिये

तू अंगीठी पे रोटी बनाती है जब
मुझको देवी सी हरदम लगी है प्रिये

बहुत ही सुंदर ग़ज़लें कही हैं । चांद माथे पे आके तेरे रुक गया में बहुत सुंदरता के साथ शब्‍दों को गूंथा गया है । गिरह का शेर भी बहुत उम्‍दा तरीके से बांधा गया है । दोनों मिसरे एक दूसरे का पूरक हैं । एक ही प्रकार के भावों को दोनों ग़ज़लों में अलग अलग तरीके से बांधा है । सिलवटों की कहानी में प्रतीकों का अच्‍छा इस्‍तेमाल किया गया है । पूजा की थाली को दोनों ही ग़ज़लों में बहुत अच्‍छे से निभाया है । दोनों ही शेर सुंदर बन पड़े हैं । बहुत सुंदर ग़ज़लें । वाह वाह वाह ।

26 टिप्‍पणियां:

  1. दोनों ग़ज़ल कामयाबी के आसमान छू रहे हैं ,इन दोनों में मुझे दुसरी ग़ज़ल ( एक वचन आधारित) गज़ल ज़ियादा अच्छी लगी। नासवा जी को बधाई।

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  2. दोनों गजलें भरपूर प्रेम से
    क्या खूब सजी हैं नासवा जी प्रिय .....
    आनद आ गया !शुभकामनाएँ|

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  3. बहुत सुन्दर गज़ल....
    नासवा जी की रचनाओं की तो यूँ भी कायल हूँ..
    बेहतरीन गज़ल सांझा करने का शुक्रिया पंकज जी.
    सादर
    अनु

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  4. दिगम्बर तो दिलो दिमाग पर छाये हैं हमारे....आज तो गज़ब ही कर दिये...वाह!!

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  5. बहुत सुन्दर गजल ||

    अच्छी प्रस्तुति |

    बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर ||

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  6. doद दो गज़लें? तौबा तौबा ये काम तो नासवा जी ही कर सकते हैं।दोनो गज़लें एक से बढ कर एक हैं।
    आसमानी दुपट्टा----
    चाँद् माथे----- ये दबी से हंसी---- वाह वाह । नासवा जी को इस गज़ल के लिये बधाई। और पुस्तक विमोचन के लिये डा. आजम जी और शिवना प्रकाशन को बधाई।

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  7. वाह...ग़ज़ब..एकवचन और बहुवचन दोनों रूपों में ग़ज़ल बेहतरीन बन पड़ी है..दिगंबर जी की ग़ज़लें तो मैं सालों से पढ़ता आ रहा हूँ..एक और खूबसूरत प्रस्तुति...सुंदर ग़ज़ल..और शानदार मुशायरा...दिगंबर जी को हार्दिक बधाई..शुभकानाएँ.

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  8. प्यार की दास्ताँ प्यार की ज़बान में प्यारे दिगंबर जी ने जिस अंदाज़ में पेश की है उसके लिए तारीफ़ का हर लफ्ज़ बौना है. ग़ज़लों सबसे बड़ी खूबी ये है के वो दिल से कहीं गयीं हैं और सीधे दिल तक पहुँच रही हैं. आम फहम ज़बान में अपनी बात को असरदार ढंग से पहुंचा देना बहुत बड़ा फन होता है और दिगंबर जी इस फन के उस्ताद हैं.
    आसमानी दुपट्टा, ये दबी सी हंसी, ..जैसे मिसरे फिर से अलग अंदाज़ में उन्होंने दूसरी ग़ज़ल में पेश कर अपनी लेखनी का लोहा मनवा दिया है...वाह दिगंबर जी वाह...हम तो आपके वैसे भी बहुत बड़े फैन हैं...आपकी ग़ज़लें पढ़ के लगा हम गलत नहीं हैं...ऐसी ग़ज़लें जो कहेगा उसके हम जैसे लोग फैन नहीं होंगे तो क्या होंगे? जियो भाई जियो...

    नीरज

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  9. वाह. दिगंबर जी. एकवचन और बहुवचन दोनों में ही गजले कह दीं और वो भी एक से बढ़ कर एक...
    बहुत ही खूबसूरत शेर कहे हैं. बहुत बहुत बधाई.

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  10. दोनों ही ग़ज़लें बहुत सुंदर हैं। बहुत बहुत बधाई दिगंबर जी को

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  11. क्या बात है !! दिगम्बर जी एक ग़ज़ल कहना हमारे लिये मुहाल था और आप ने २ कह दी और वो भी इतनी मुकम्मल
    वाह !! बहुत सुंदर !!

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  12. दोनो ग़ज़लें बहुत सुन्दर लगीं!!!
    ये दो अश'आर बहुत अच्छे लगे!!!

    ये दबी सी हँसी चूड़ियों की खनक...
    तू अंगीठी पे रोटी बनाती है जब...

    सादर बधाई !!

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  13. पहली ग़ज़ल का अन्तिम शेर-

    चांद माथे पे आ के तेरे रुक गया
    घंटियां मंदिरों की बजी हैं प्रिये.

    क्या कहूं, कि कितना सुन्दर शेर है ये..बधाई.

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  14. हिन्दी भाषा में ग़ज़ल ! बहुत कुछ है !!.. .
    आद. दिगम्बर नासवा जी की दोनों प्रस्तुतियाँ मनमोहक हैं. जीवन में कई पल मनस-तंतुओं में अँटक जाते हैं. ’तौलिया और हवा..’ ने तो जैसे दृश्य ही उकेर दिया है. वाह !

    सादर बधाई.

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  15. वाह भाई वाह। दो-दो ग़ज़लों का धमाका। खूबसूरत भाव और शब्‍द।
    आप तीसरे व्‍यक्ति हो गये, यहॉं की तरही में एक से अधिक ग़ज़ल देने वाले।
    एकवचन में शेर-2 और शेर-4 की पहली पंक्ति एक बार फिर देख लें रदीफ़ से स्‍वर-साम्‍यता है।

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    1. आपकी पारखी नज़र का शुक्रिया तिलक जी ... ये गलती कबूल ... आशा है गुनीजन क्षमा करेंगे इस भूल के लिए ...

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  16. 12 जुलाई 7 बजे शहीद भवन नोट कर लिया है, अवश्‍य उपस्थित रहूँगा। निश्चिंत रहें, हाल के किसी न किसी कोने में चॉंद चमकता दिखेगा।

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  17. चाँद को क्या मालूम चाहता है उसको ये चकोर...(याने मैं) :-)

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    1. चाहता है मुझे कोई चकोर वाह-वाह, वाह-वाह, वाह-वाह, वाह-वाह, वाह-वाह, वाह-वाह, वाह-वाह.. रोक दूँ.. रोक दिया।

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  18. ये मुशायरा निश्चित ही अपनी दिशा पे अग्रसर है ... सभी का शुक्रिया इस उत्साह वर्धन का और मार्ग दर्शन का ... गुरुतुल्य मनीषी जब तारीफ़ करते हैं तो अच्छा लगता है ...

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  19. नसवा जी और भाभी जी दोनों से मिल चुका हूँ, और ऐसे मे लगता ही नहीं कि इनकी शादी को इतने साल हो गए ! एक अलग ही मीठापन है दोनों के रिश्ते में ! और ये दोनों आज की ग़ज़लें उसी मीठास से पकी हुई हैं! हर शे'र की बुनावट में प्रेम का ख़ास ख़्याल रखा गया है! दोनों ही ग़ज़लें प्रेम मे डूबोई हुई हैं! यहाँ तो एक शे'र कहना मुश्किल है और कहाँ जनाब नें दो दो ग़ज़ल कह डाले ! बहुत अच्छा लगा दिगम्बर जी ! बहुत बधाई दोनों ग़ज़ल के लिये !


    अर्श

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  20. दिगम्बर जी ने, एकवचन और बहुवचन दोनों में ग़ज़लें कहीं हैं.............वाह
    "थाल पूजा का......", गिरह बहुत उम्दा बाँधी है. "चाँद माथे पे..........", बहुत खूब मंज़रकशीं की है.
    "बाजुओं में मेरे ......................" वाह वा. "......पल दो पल जिंदगानी अभी है प्रिये". लाजवाब

    ढेरों बधाइयाँ.

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  21. यह मुशायरा प्रेममय है और इसमें आज जम कर प्रीत के रंग घोलें हैं हमारे दिगंबर जी अपने अंदाज में. दो ग़ज़लें एक पर एक शेर.... क्या कहने.
    ये दबी सी हंसी....... घर के कण कण में..... बहुत सुन्दर !!

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  22. वाह! नासवा जी ने एकवचन और बहुवचन दोनों को बेहद खूबसूरती से निभाया है. दोनों ही ग़ज़लें उम्दा हैं.बधाई स्वीकार करें.

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