इस बार की तरही लगने में दो दिन का विलंब हुआ है । और आज भी ये काम बस भागते भागते ही किया जा रहा है । दरअसल पिछले दस दिनों से कामकाज की व्यस्तता चरम पर है । एडमीशन की प्रक्रिया अंतिम तिथि होने के कारण पूरा अटेंशन मांग रही है । शरद जोशी जी का निबंध याद आता है जिसमें उन्होंने लिखा था कि हिन्दुस्तान के लोगों को सबसे ज्यादा डर लगता है फार्म भरने से । आधे से ज्यादा भ्रष्टाचार की जड़ तो ये फार्म ही है । फार्मों में ऐसी ऐसी जानकारी मांगी जाती है जिसका कहीं कोई लेना देना नहीं होता । शरद जोशी जी का कहना था कि सरकार का बस चले तो वो डाक टिकिट खरीदने पर भी फार्म लगा दे । आपको भरना पड़े कि डाक टिकिट क्यों खरीद रहे हैं, किसको भेजेंगे आदि आदि । खैर तो पिछले दस दिनों से बच्चों के एडमीशन फार्मों से माथाफोड़ी चल रही है । आज समय निकाल कर ये दो ग़ज़लें लगा रहा हूं ।
प्रीत की अल्पनाएं सजी हैं प्रिये
आज दो वर्सेटाइल शायर । वर्सेटाइल शायर इसलिये क्योंकि ये दोनों ही अपने हिसाब से ग़ज़लें कहते हैं । अपने हिसाब से प्रयोग करते हैं । और दोनों ही खूब लोकप्रिय हैं । ये दोनों ही पारंपरिक शब्दावली को तोड़ते रहे हैं । दोनों ही आम आदमी की भाषा में ग़ज़लें कहते हैं । और यही शायद इनकी लोकप्रियता का कारण भी है । तो आइये आज सुनते हैं श्री नीरज गोस्वामी जी और कर्नल गौतम राजरिशी की ग़ज़लें ।
श्री नीरज गोस्वामी जी
इस बार की तरही ने दिमाग का पूरी तरह से भुरता बना दिया...हज़ार बार सोच सोच के भी कोई शेर इसमें घुसा ही नहीं...हार कर ये फैसला लिया के इस बार की तरही में भाग नहीं लेना है...और मैं अपने इस फैसले पर दृढ भी था के अचानक कल रात एक मिसरा दिमाग में आया...और मैं उठ कर बैठ गया...नींद में जो कुछ लिखा उसे वैसे का वैसा आपको भेज रहा हूँ...निहायत आम ज़बान में बिना किसी लाग लपेट के शेर कहने की कोशिश की है ।
हर अदा में तेरी दिलकशी है प्रिये
जानलेवा मगर सादगी है प्रिये
लू भरी हो भले या भले सर्द हो
साथ तेरे हवा फागुनी है प्रिये
बिन तेरे बैठ आफिस में सोचा किया
ये सजा सी, भी क्या नौकरी है प्रिये
पास खींचे, छिटक दूर जाए कभी
उफ़ ये कैसी तेरी मसखरी है प्रिये
मुस्कुराती हो जब देख कर प्यार से
एक सिहरन सी तब दौड़ती है प्रिये
पड़ गयी तेरी आदत सी अब तो मुझे
और आदत कहीं छूटती है प्रिये ?
मन सरोवर में खुशियों के 'नीरज' खिले
पास आहट तेरी आ रही है प्रिये
अहा अहा खूब शेर कहे हैं । पड़ गयी तेरी आदत सी अब तो मुझे में मिसरा सानी जिस रवानी की साथ आता है वो अपने साथ बहा ले जाता है । मतला भी खूब गूंथ कर बनाया है और कन्ट्रास का सुंदर उपयोग किया है । सिहरन दौड़ने वाला शेर मामूली सी बात से चौंका देने वाला शेर है । बहुत सुंदर । बिन तेरे ऑफिस में सोचा किया, में एक बार फिर से साधारण सी बात को अपने शेर में उपयोग कर उसको मिडास टच दे दिया है नीरज जी ने । मकते में नाम का उपयोग खूब है । वाह वाह वाह ।
कर्नल गौतम राजरिशी
लीजिये मेरी तरही पेश है, सुबीर सवाद सेवा पर प्रेम में रसमय हुये माहौल को तनिक अलग-सा रंग देने की कोशिश है कि प्रेम का ये भी तो रंग हो सकता है, शायद थोड़ी-सी मोनोटोनी भी टूटे :-)
सच कहूँ, तो यहाँ ठीक ही है प्रिये
तू नहीं, ग़म नहीं, दूसरी है प्रिये
तू न करना वरी, बिन तेरे भी यहाँ
प्रीत की अल्पना सज चुकी है प्रिये
चैन से देख पाता हूँ टीवी मैं अब
चैनलों की न डिश में कमी है प्रिये
पार्टियाँ देर तक रोज़ ही चलती है
दोस्तों की घणी कम्पनी है प्रिये
दिन गुज़र जाता है जिन-बियर संग ही
शाम व्हिस्की में फिर डूबती है प्रिये
फेसबुक से अभी, बस अभी फ्री हुआ
आज नाइट मेरी लोनली है प्रिये
मत ले टेंशन ज़रा भी मेरी बातों का
मुझ पे मैजिक तेरा स्ट्रांगली है प्रिये
...और आखिर में ये शेर बतौरे-खास "प्रकाशमाला" के लिए
मॉनसून अब के दिल्ली न आए, तो क्या
मेरी बारिश तो तेरी हँसी है प्रिये
हम्मम...., घर परिवार से दूर सीमा पर पदस्थ सेना का एक कर्नल ऐसी ही ग़ज़ल लिख सकता है । ये तो मज़ाक की बात । लेकिन अंग्रेज़ी के शब्दों का बहुत खूब उपयोग किया है । गौतम ये पहले भी करता रहा है । दूसरी भाषा के शब्द साहित्य में इस प्रकार आने चाहिये कि वो लगे ही नहीं कि दूसरी भाषा के हैं । गौतम को ये कला आती है । मतला ही ग़ज़ल के मूड को ग़ज़ब तरीके से कह रहा है । मतले को ठीक प्रकार से देखें । बहुत साधारण से शब्द, साधारण सी बात, लेकिन मिसरे में असाधारण तरीके से गूंथ दिया गया है । तरही मिसरे पर गिरह भी जबरदस्त तरीके से लगाई है । स्ट्रांगली मैजिक वाला शेर जिस मासूमियत से भरा है उस पर क़ुर्बान होने को दिल चाहता है । और अर्श माला के लिये लिखे शेर का मिसरा सानी खूब बना है । वाह वाह वाह ।
और अंत में ये सूचना कि आपके इस मित्र का नया कहानी संग्रह महुआ घटवारिन सामयिक प्रकाशन से आ चुका है ।
वाह कमाल की ग़ज़लें हैं. दोनों वर्सेटाइल और गजब के शायर हैं. नीरज जी की गज़ल कमाल की है. क्या शेर कहे हैं सब के सब एक से बढ़ कर एक. 'आदत' वाला शेर तो बस लाजवाब है. नीरज जी को बहुत बहुत बधाई. कर्नल गौतम के गज़ल ने माहौल बदला है और बहुत ही बढ़िया गज़ल कही है.अंग्रेज़ी के आम बोलचाल के शब्दों का बखूबी से प्रयोग किया है जो गज़ल की खूबसूरती और बढ़ा रहे हैं. बहुत बहुत बधाई.
जवाब देंहटाएंहा हा हा हा ---- कर्नल साहिब की गज़ल पढते हुये हंसी नही रुक रही क्या गज़ल कही है इतने संगीन महौल मे इतनी ज़िन्दादिली-- वाह सलाम है\
जवाब देंहटाएंफेस बूक से अभी----
मानसून अब के दिल्ली न आये तो----- बहुत खूब।
नीरज जी की गज़ल के भी क्या कहने। हर एक शेर लाजवाब है। दोनो को बधाई।
वाह..............
जवाब देंहटाएंबेहतरीन...........
मोनोटनी खतम करने का विचार बढ़िया था...
सादर
अनु
नीरज भाई साहब का मत्ले का शेर तो बिलकुल ऐसे है जैसे किसी ने उनके बारे में ही कहा हो।
जवाब देंहटाएंनीरज भाई के सम्मान में एक शेर देखें
नाज़नीनों सी अदा है, दिलकशी है
हुस्ने-बेपरवा में ऐसी सादगी है।
इस उम्र में बीबी मुस्कुरा कर देख ले तो जेब कटने का खतरा हो जाता है और एक अलग ही सिहरन होती है ये बात अर्श को समझना होगी, कहीं वो नवविवाहितों वाली सिहरन न समझ ले।
आदत डाल ली आपने, सफ़ल हो गये। यह बात भी अर्श ने समझ लेना चाहिये। दीर्घकालिक अनुभव का सार है। पत्नी जैसी भी हो, पति ने उसकी आदत डाल लेनी चाहिये, बस जीवन सफ़ल हो गया। (मुझे मालूम है आदरणीय भाभी सा ब्लॉग नहीं देखतीं इसलिये निडर होकर अपनी बात रख रहा हूँ।
बधाई।
कर्नल साहब ने बड़ी खूबसूरती से विरह को हास्य रंग देते हुए संयोग में बदल दिया।
इसमें एक शेर और जोड़ना चाहूँगा कि:
चाय की चुस्कियों में तेरी याद थी
बाद मुद्दत ये कड़वी लगी है प्रिये।
अब बूझिये कि चाय की चुस्की कड़वी लगी, या याद कड़वी लगी, या चाय में घुली याद कड़वी लगी।
कर्नल साहब ने ब्रेक दिया।
बधाई।
तिलक जी नीचे कमेंट में नीरज जी ने भोपाल वाले हट्टे कट्टे शायर का जिक्र किया है । आप इस बारे में अपने क्या विचार व्यक्त करना चाहेंगे ।
हटाएंगुरुदेव...आप मुझे पिटवाओगे...तिलक जी को लगेगा के उनके अलावा भोपाल में और कोई हट्टा-कट्टा शायर नहीं है...मैंने इसी डर से उनका नाम नहीं लिया था लेकिन आपने तो पूरी जनम पत्री ही खोल दी...अब जो मेरा हश्र होगा उसके जिम्मेदारी आपकी होगी...यूँ ही तुफैल में मैंने कमेन्ट कर दिया याने अनजाने में ही कह दिया " आ बैल मुझे मार" ( मुझे यकीन है तिलक जी से अब मैं बच जाऊंगा क्यूँ के वो चाहे जो हों कम से कम बैल तो नहीं हैं)
हटाएंनीरज
अपना देश हिन्दीभाषी है इसलिये यहॉं हिन्दी के बारह बजाने की पूरी छूट है। अब आदमी वैल बोल रहा है कि बैल इसमें सुसंगत संदर्भ के बिना भेद करना मुश्किल होता है। चलिये इसे छोड़ते हैं और आप को गॉंव की ओर ले चलते हैं जहॉं कोई हट्टा-कट्टा बैल नहीं होता; हॉं सांड जरूर हट्टे-कट्टे होते हैं। बैल तो प्रेमचंद की कहानियों में भी कभी हट्टा-कट्टा नहीं हुआ, हॉं सियाराम शरण की एक कहानी में जरूर मेरे जैसा सुदर हट्टा-कट्टा बैल था।
हटाएंआप मुझे बैल नहीं मानते तो क्या सांड मानते हैं। आदरणीय क्यों घर में झगड़ा करवाने पर तुले हैं। आप तो मुझे बैल ही मान लें, जो गृहस्थी का हल खींच रहा बिना किसी कोलाहल के। हॉं मारने का न्सौता न दें, एक तो आसानी से रिजर्वेशन मिलता नहीं आजकल, दूजे किराया भी बहुत बढ़ गया है, अब तो कोई सींग के सामने ही आकर खुद ही खड़ा हो जाये तो शायद सिर कुछ हिल जाये वरना सिर इतना भारी हो गया है कि आपको खुद ही सींग पकड़कर उसपर गिरना होगा। इस उम्र में किसी को कुछ कहने तक की इच्छा नहीं होती, मारना तो दूर की बात।
खुदा आपकी जवानी बरकरार रखे दरकिनार न करे।
बहुत कुछ सिख रहा हूँ आप सभी से तिलक जी ..... :)
हटाएंशुक्रिया गुरुदेव आपनी मेरी ग़ज़ल को कर्नल गौतम की ग़ज़ल के साथ पोस्ट किया है किसी उम्र दराज़ शायर की ग़ज़ल के साथ नहीं...हा हा हा हा मेरा इशारा आप समझ गए होंगे...अरे हाँ वोही भोपाल वाले हट्टे कट्टे लाजवाब शायर...गौतम के साथ तरही शेयर करना मेरे लिए गर्व का विषय है. एक शायर तन मन से युवा है और दूसरा याने मैं , मन से...:-)
जवाब देंहटाएंगौतम मेरे प्रिय शायरों में से है...उसकी शायरी बहुत अलग हट के है...प्रेम की मधुरिमा में लिपटे उसकी ग़ज़लों के शेर अद्भुत होते हैं...इस तरही के शेरों में अंग्रेजी शब्दों को उसने इस ख़ूबसूरती से पिरोया है के वो दूसरी भाषा के जबरदस्ती ढूँसे हुए शब्द नहीं लगते बल्कि आम बोलचाल की भाषा के शब्द लगते हैं और ये ही इस पूरी ग़ज़ल की खासियत है...इस नौजवान शायर को मेरी और से ढेरों बधाइयाँ...
दोस्तों की घणी कंपनी...
फेस बुक से अभी ...
जैसे शेर अपने साथ लिए जा रहा हूँ...
और हाँ...महुआ घटवारिन किताब का बेताबी से इंतज़ार है.
नीरज
नीरज जी
हटाएंपड़ गई तेरी आदत सी अब तो मुझे
और आदत कहीं छूटती है प्रिये
ये शेर कमाल कमाल का शेर है । उफ ग़ज़ब की रवानगी है । खूब भालो ।
गुरुदेव...आमी बांगला जानी ना...
जवाब देंहटाएंतरही के कानून के हिसाब से मेरी ग़ज़ल ख़ारिज होनी चाहिए थी, लेकिन ये गुरु देव का स्नेह है जिन्होंने एक वरिष्ठ नागरिक को इस तरही में शामिल होने की छूट दी...तरही का मिसरा इस ग़ज़ल में से गायब है...जो मिसरा ज़हन में आया वो इस कदर लचर था के उसे शामिल न करना ही मुनासिब समझा वरना तरही मिसरे के चक्कर में पूरी ग़ज़ल ही खारिज करनी पड़ती...जिस तरह अड़ियल घोड़े को चाबुक मार मार कर चलाया जाता है उसी तरह प्रिय अनुज तिलक जी ने मुझे कौंच कौंच कर ग़ज़ल कहने पर मजबूर कर दिया...ग़ज़ल अच्छी है या बुरी इस के लिए जिम्मेवार मैं नहीं तिलक भाई जी हैं.
हटाएंदोनों निराले अंदाज़ के गज़लकार एक साथ ... आज तो कमाल के साथ धमाल भी है ...
जवाब देंहटाएंनीरज के हर शेर में "उनकी" अदा और नखरे की झलक कमाल कर रही है ... सीधे अंदाज़ में कहे शेर सीधे दिल में उतर जाते हैं ... जिंदाबाद नीरज जी ...
अपने कर्नल साहब ने तो आज गज़ब का रंग चढ़ा दिया इन मुशायरे पे ... प्रीत की इन्तेहा की झलक नज़र आ रही है हर शेर में ... खास कर के मतले में तो दूसरी की बात करते हुवे भी उनका जी जिक्र है ... इंग्लिश की आम भाषा का प्रयोग उनको सबसे अलग तो वैसे ही खड़ा कर रहा है ... प्रकाश माला का शेर भी बहुत लाजवाब है ...
कृपया नीरज जी पढ़ें ...
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जवाब देंहटाएंवाह ! दो शायर और दोनों लाजवाब !
जवाब देंहटाएंनीरज भाई को जबसे जाना है और पढ़ा है कई बार अचंभित करते लगे हैं. बिन तेरे बैठ आफ़िस में... तथा पड़ गयी तेरी आदत सी... कुछ ऐसे ही शेर हैं.
अपने अलग अंदाज़ के लिये मुस्कुराती हो जब देख कर प्यार से.. . भी दिल को छू लेने वाला शेर है. लकिन, तिलकराज जी ने इसे जो आयाम बख़्शा है उससे इसे पढ़ते ही बेसाख़्ता हँसी आ जारही है.
मेरी हार्दिक बधाइयाँ, नीरजभाई.
नीरज भाई की ग़ज़ल के साथ चस्पां चित्र.. सुभानअल्लाह ! इसके लिये अवश्य ही पंकज भाई की उदारता को नमन !..
**************
कर्नल गौतम राजऋषि ! यह नाम ही काफ़ी है अलहदा ग़ज़लों के लिये. नेट पर आपका सान्निध्य बहुत कुछ समझने का कारण रहा है मेरे लिये.
प्रस्तुत ग़ज़ल पर कहूँ तो सब गुडी-गुडी चलता जा रहा था, तभी मत ले टेंशन जरा भी.. . जैसे शेर ने माहौल को एकदम से जता दिया कि शायर कितना संजीदा है. अपने ख़्वाबों की प्रियतमा को ये किस शिद्दत से चाहता है. वाह !
गौतम राजऋषि को मेरी हार्दिक बधाइयाँ.
--सौरभ पाण्डेय, नैनी, इलाहाबाद (उप्र)
ये हुआ न तरही में स्वादिष्ट तड़का....
जवाब देंहटाएंनीरज सर जी, कोई "आदत" नहीं छूटने वाली. बहुत खूब अंदाजे बयान, साधारण में असाधारण !
कमाल करते हैं गौतम भैया आप भी. आज तो मूड मसाला बीयर पानी सब हो गया. लेकिन सच कहता हूँ... स्ट्रोंगली वाले शे'र ने दिल छू लिया.
बहुत बहुत बधाई!!
महुआ घटवारिन / पंकज सुबीर / सामयिक प्रकाशन... मतलब बहुत से साहित्य प्रेमियों का इन्तजार ख़त्म हुआ.
जवाब देंहटाएंआ. नीरज जी की रचनाएं और उनकी टिप्पणियां उनके स्नेही और जीवंत व्यक्तित्व को सदैव सामने लाती रहतीं हैं।आज की ग़ज़ल में भी उन्होंने रंग जमा दिया है।सभी शेर सधे हुए और उस्तादाना हुए हैं।बधाई स्वीकार करें।
जवाब देंहटाएंऔर हमारे प्यारे गौतम भैया ने तो अपनी निराली शैली में मुशायरे का मिजाज ही बदल दिया।क्या चुटीला अंदाज़ है।भाषा के क्या अनूठे प्रयोग।पूरी ग़ज़ल की धार खासी तेज है।और 'प्रकाशमाला ' को संबोधित आखिरी शेर से बढ़िया भी कोई compliment हो सकता है क्या?
GAZAL KE SOORAJ AUR CHAAND KO EK SATH DEKH KAR BAHUT ACHCHHAA LAGAA HAI . DONO KEE
जवाब देंहटाएंGAZALEN PADH KAR AANANDIT HO GAYAA HUN MAIN . BKAUL DAAG DEHLVI -
SAATH SHOKHEE KE KUCHH HIZAAB BHEE HAI
IS ADAA KAA KAHIN JAWAAB BHEE HAI
आदरणीय दोनों में मुकाबला कुछ यूँ है कि:
हटाएंशोखियों पर हिज़ाब, या रब्बा
खुद ही खुद का जवाब, या रब्बा।
तीर से चल गये हरिक दिल पे
गिर गया जब निकाब, या रब्बा।
जे का है। जरा सा लेट हो जाओ और लोग भाग लिखने के लिए कछू छोड़ते ही नहीं हैं। इत्ते बड्डे बड्डे पक्के पक्के लोगाँ के कहने के बाद क्या बचता है भाई कहने को।
जवाब देंहटाएंहमारी तरफ से ये अश’आर इन ग़ज़लों के सम्मान में तोपों को सलामी समझे जायँ
(नीरज जी के सम्मान में)
बच गए जो, पके बाल वो भी, मगर
तेरी आदत नहीं छूटती है प्रिये
मुस्कुराती हो जब देखकर प्यार से
दिल पे चींटी कोई रेंगती है प्रिये
(गौतम जी के सम्मान में)
पार्टियों में ही मिलती सदा ये मुझे
मय भी मेरी तरह लोनली है प्रिये
सीरियल देखते देखते यूँ लगा
पोंछ आँसू तू पल में हँसी है प्रिये
आहा मज़ा आ गया..
जवाब देंहटाएंउम्मीद है इस संगत का मुझ पर भी असर होगा,
रकीब उर्स फेके जहाँ इक ऐसा भी शहर होगा..
सर का सारा दरद पल में छू होगया
जवाब देंहटाएंअब के तरही ये मेडीसनी है प्रिये
शेर किसकी खुनक में कहे कौन है
बात ये जाननी लाजिमी है प्रिये
जय हो
नीरज जी और गौतम जी को बेहतरीन ग़ज़ल पेश करने के लिये मुबारकबाद्। ग़ौतम जी द्वारा अंग्रेजी का प्रयोग क़ाबिले-तारीफ़ है ,धीरे धीरे इसका चलन बढेगा ऐसी मुझे आशा है।
जवाब देंहटाएंनीरज भैया ,आप की ग़ज़ल के पहले मिसरे से ले कर आख़री मिसरे तक ,मतले से मक़ते तक
जवाब देंहटाएंपाठक कहीं ये नहीं कह पाता कि ’अरे ये शेर तो बस ऐसा ही है’
बहुत ख़ूब ! बहुत उम्दा !
गौतम तुम तो वैसे भी सब से अलग ही हो ,यहाँ भी तुम ने अपनी इनफ़ेरादियत क़ायम रखी
बहुत सुंदर !!!
टिप्पणी देर से कर पा रहा हूँ ! नीरज गोस्वामी जी की गज़ल पूरी रोमानियत के रंग में रंगी है !सारे शेर अच्छे हैं पर मकते का शेर खासतौर पर पसंद आया ,वाह !गौतम राजरिशी के शेर आधुनिकता के रंग में रंगे है ,इसलिए उनका अपना एक अलग मज़ा है !
जवाब देंहटाएंग़ज़लें तो दोनों ही पढ़ चुका था मगर टिपण्णी नहीं कर पाया था.
जवाब देंहटाएंनीरज जी के इस शेर पे दिल कुर्बान,
"पड़ गयी तेरी आदत सी अब तो मुझे
और आदत कहीं छूटती है प्रिये ?"
लाजवाब, बेमिसाल, शानदार................लफ्ज़ कम पड़ गए.
इस शेर का नशा अलग ही है, जो दिल से उतर ही नहीं रहा.
गौतम भैय्या, ने जिस रंग में ये ग़ज़ल लिखी है उसकी दस्तक वो एक-दो शेरों में पहले भी दिखा चुके थे, मगर इस बार तो पूरी मुकम्मल ग़ज़ल है.
"तू न करना वरी, बिन तेरे भी यहाँ........" वाह
"चैन से देख पाता हूँ टीवी मैं अब...........", हा हा हा. डोरेमोन से छुट्टी मिलने पे कहा जाने वाला शेर.
"पार्टियाँ देर तक रोज़ ही चलती है...............', पार्टियाँ चलती रहें.