सावन इस समय हमारे अंचल पर पूरी कृपा के साथ बरस रहा है । आज सुबह सुबह से ही रुक रुक कर बरसात का सिलसिला बना हुआ है । बाज़ार में रक्षा बंधन का त्यौहार अभी से अपनी झलक दिखाने लगा है । और इधर तरही में भी आनंद का माहौल बना हुआ है । पिछले अंक में गौतम और नीरज जी की जुगलबंदी ने धमाल मचाया था तो आज भी दो कवयित्रिओं की जुगलबंदी होने जा रही है ।
प्रीत की अल्पनाएं सजी हैं प्रिये
आज निर्मला कपिला जी और अनन्या सिंह की ग़ज़लें हैं । दोनों की उम्र में बड़ा फासला है । लेकिन एक बड़ी समानता ये है कि दोनों ग़ज़ल कहना लगभग साथ साथ ही सीखना शुरू किया । निर्मला जी पूर्व से कहानीकार हैं, लेकिन यहां आकर उन्होंने ग़ज़ल का मात्रिक विन्यास सीखना शुरू किया, और ऐसा ही कुछ अनन्या ने भी किया । आज ये स्थिति है कि दोनों की ग़ज़लों में बहर की त्रुटि देखने की आवश्यकता ही नहीं होती । निर्मला जी की दो साल पहले की ग़ज़लें और आज की ग़जल़ें देखी जाएं तो उनमें ज़मीन आसमान का अंतर आ गया है । इन दोनों ने सिद्ध किया है कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती है । आइये सुनते हैं दोनों से उनकी ग़जल़ें ।
आदरणीया निर्मला कपिला जी
मैने इस बार के मुशायरे के लिये गज़ल तो लिखी है लेकिन इस उम्र मे वो नज़ाकत कहाँ रहती है कि प्रेम पर कुछ सुन्दर सा लिखा जाये। हल्के फुलके कुछ शेर ।
कल्पना में तू ही तू बसी है प्रिये
संग तेरे ही मेरी खुशी है प्रिये
ज़िन्दगी मिल गयी प्यार तेरा मिला
रात पहलू में तेरे कटी है प्रिये
चाहता हूँ तुझे इस तरह मैं कि ज्यों
चाँद की लाड़ली चाँदनी है प्रिये
गुलबदन, सुर्ख से होंठ मय से भरे
हर अदा ही मुहब्बत भरी है प्रिये
आज दीपक जलेगा जो बाती मिली
आस जुगनू सी दिल मे जगी है प्रिये
आ चलें चाँद तारों की महफिल जहाँ
रात चुपके से ढलने लगी है प्रिये
भोर उगती हुयी रात ढलती हुयी
सब मे तेरी कमी ही कमी है प्रिये
इन शरारत भरी आँखों मे कुछ तो है
कौमुदी क्यों तू छलने चली है प्रिये
ये प्रतीक्षा लगे अब तो मुश्किल मुझे
आज आँखों मे थोडी नमी है प्रिय
अर्श, माला को समर्पित
अर्श, माला की जोडी बनी है प्रिये
प्रीत की अल्पना सी सजी है प्रिये
बहुत बहुत सुंदर ग़ज़ल । ख़राब स्वास्थ्य और दूसरी सारी परेशानियां झेलते हुए जो ग़ज़ल निर्मला जी ने कही है उस गज़ल के लिये क्या कहा जाये । भोर उगती हुई रात ढलती हुई सबमें तेरी कमी ही कमी है प्रिये, बहुत सुंदर तरीके से कमी को इंगित किया है । आज दीपक जलेगा जो बाती मिली, में प्रणय की सूक्ष्म बातों को इशारों में कह दिया गया है बहुत सुंदर । आ चलें चांद तारों की महफिल जहां, पारंपरिक शेर है जो खूब बन पड़ा है । वाह वाह वाह ।
अनन्या सिंह
ये छुटकी देखते ही देखते कितनी बड़ी हो गई । किसी ने सच कहा कि बेटियां बहुत जल्दी जल्दी बढ़ती हैं । या शायद ये सच हो कि बेटे और बेटियां दोनों ही समान रूप से बढ़ते हैं लेकिन बढ़ती हुई बेटियों को देख कर उनकी विदाई की घड़ी पास आती लगने लगती है । अनन्या ने स्वयं मात्राएं गिनना और बहर पर शेरों को बिठाना सीखा है और आज वो बहर में ग़ज़ल कहना अच्छी तरह से सीख चुकी है ।
जिंदगी बिन तेरे नाखुशी है प्रिये।
साथ तेरा मेरी जिंदगी है प्रिये।
मन का दर और आँगन चमक से गये,
प्रीत की अल्पना यूँ सजी है प्रिये।
प्रेम राधा किशन का अनूठा बड़ा,
और अपनी कहानी वही है प्रिये।
राह तकती रही मैं तेरी साँझ भर,
आज खामोश फिर से गली है प्रिये।
दीप रोशन हुए, जब मिले तुम से हम,
ना बची अब कहीं तीरगी है प्रिये।
बाद बरसों तेरी चिट्ठियाँ हैं खुली,
फिर भी खुशबू वही की वही है प्रिये।
बूँद में बस तेरा अश्क़ है दिख रहा,
आज बारिश नही थम रही है प्रिये।
बाद बरसों तेरी चिट्ठियां हैं खुली, में मिसरा सानी क्या प्रवाह से आ रहा है, बच्ची खूब कह दिया है ये शेर । 'वही की वही' पर तो दिल से बिना प्रयास वाह निकल रही है । ये सहज रवानगी है जो वही की वही के प्रयोग में आ रही है । वाह । राह तकती रही मैं तेरी सांझ भर, में सांझ भर बहुत सुंदर बना है । दिन भर, रात भर जैसे प्रयोग तो होते रहे हैं लेकिन ये सांझ भर का प्रयोग तो अनूठा है । और तिस पर मिसरा सानी में गली की खामोशी क्या बात है । मतला भी सुंदर है । बहुत बहुत सुंदर वाह वाह वाह ।
ये क्या??? आदरणीय निर्मला जी
जवाब देंहटाएंक्या अब " दी" नहीं हूँ? तो मै नही बोलती जब तक सुबीर मुझ से क्षमा नही माँगेंगे। अरे एक बहन को इस तरह पराये की तरह सम्बोधन? तौबा तौबा।
दी, दरअसल में आदरणीय चित्रा मुदगल जी ने मुझे कहा कि पंकज जब मंच से किसी को पुकारना हो, किसी को संबोधित करना हो तो उस समय 'जी' ही लगाना चाहिये, क्योंकि तब एक साहित्यकार दूसरे साहित्यकार को पुकार रहा होता है । मुझे लगा कि उनकी बात सही है । इसलिये वहां मंच पर आपको जी कहा ।
हटाएंमैं तो इस तर्क से सहमत हूँ। कार्यालयीन संबंध, मंचीय संबंध आदि सार्वजनिक स्वरूप के ऐसे संबंध हैं जहॉं कोई भेदभाव नहीं होना चाहिये, व्यक्तिगत झुकाव नहीं दिखना चाहिये। इसलिये वहॉं सामान्य संबोधन के शबद ही उपयुक्त रहते हैं। अन्यथा आपने एक महिला को 'दी' कहा ओर दूसरी को 'जी' तो व्यक्तिगत झुकाव bias का प्रश्न बन सकता है।
हटाएंसच इसी चलते कल दो बार बड़ा झिझकते हुए गुरू जी के किसी मित्र से गुरू जी के लिये "पंकज सुबीर जी" कहना पड़ा, सच पूछिये तो बिलकुल वैसा ही था, जैसे किसी से अपने पिता के नाम के बाद जी लगा कर बताना। परंतु हाँ कुछ चीजें करनी ही पड़ती हैं।
हटाएंnirmala ji aur ananyaa ki ghazale bhi kam naheen. ananyaa men prachur sambhavanaa hai...
जवाब देंहटाएंbehad sundar aur bhavpurn gazalen...sundar bhav se nihit gazal..nirmla ji aur ananyaa ji aap dono ko hardik badhai..
जवाब देंहटाएंदोनों ग़ज़ल सधी हुई, नपे-तुले शब्दों के प्रयोग की सुदरता लिये। निर्मला दी (मुझे डॉंट नहीं खानी है) आप ने जो प्रगति की है, ग़ज़ल लेखन में, वह प्रशंसनीय है। विश्वास होने लगा है कि यह विधा भी सीखी जा सकती है।
जवाब देंहटाएंभोर उगती हुई, रात ढलती हुई को एक बार और देख लें।
अनन्या ने विरह और संयोग का खूबसूरत मिश्र-भाव उत्पन्न किया है जो आखिरी शेर में इंतिहा तक पहुँच गया है।
pankaj ji ek gajal samwad sewa se aai agzlein hamesha padhti hu is baar ek gazal bhejne ka mera bhi bada mn hai.....
जवाब देंहटाएंदोनों ही ग़ज़लें कमाल हैं ...
जवाब देंहटाएंनिर्मला जी की गज़ल तो जैसे परिपक्व, कोमल और मधुर प्यार की महक लिए है ... भोर उगती हुयी रात ढलती हुयी ... ये शेर तो सीधे दिल मी उतर गया ... मिर्माला जी की जिंदादिली को सलाम है ...
अनन्य जी की गज़ल भी लाभुत लाजवाब है ... प्रेम की गंध लिए हर शेर लाजवाब है .. बाद बरसों तेरी चिट्ठियाँ हैं खुली ... अलग अंदाज़ का शेर है ... वाह .. वह निकलती है हर शेर पे ...
ACHCHHEE GAZALON KE LIYE NIRMLA KAPILA JI AUR ANANYA SINGH JI KO
जवाब देंहटाएंBADHAAEE AUR SHUBH KAMNAAYEN .
निर्मला कपिला जी और अनन्या जी दोनों की ग़ज़लें बहुत अच्छी हैं !दोनों को बहत खूब !
जवाब देंहटाएंएक कम्पेतिबिलिती है दोनों गजलों में ,कथ्य में भी और सांगीतिकता में भी ..कृपया यहाँ भी पधारें -
जवाब देंहटाएंकविता :पूडल ही पूडल
कविता :पूडल ही पूडल
डॉ .वागीश मेहता ,१२ १८ ,शब्दालोक ,गुडगाँव -१२२ ००१
जिधर देखिएगा ,है पूडल ही पूडल ,
इधर भी है पूडल ,उधर भी है पूडल .
(१)नहीं खेल आसाँ ,बनाया कंप्यूटर ,
यह सी .डी .में देखो ,नहीं कोई कमतर
फिर चाहे हो देसी ,या परदेसी पूडल
यह सोनी का पूडल ,वह गूगल का डूडल .
निर्मला जी और अननय्या जी को बहुत बहुत मुबारकबाद्। निर्मला जी का ये शेर भोर उगती हुई रात ढलही हुई , सबमें तेरी कमी ही कमी है एक मेयार को छू रहा है
जवाब देंहटाएंऔर अनन्या जी का ये शे"र "बाद बरसों तेरी चिट्ठियां हैं खुली ,फिर भी खुश्बू वही की वही है प्रिये" एक अलग से मिठास का अहसास करा रहा है, हालाकि अनन्याजी का मतला ग्रामेटिकली मुझे जम नहीं रहा है क्यूंकि अगर जिन्दगी को संबोधन कर रहे हैं तो "प्रिये" गलत है और प्रिये को संबोधित कर रहे हैं तो "नाखुशी" ग़लत है।
दोनो ही बहुत ही सुंदर गजलें है !
जवाब देंहटाएंनिर्मला दी बहुत ख़ूब !!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर मतला और साथ ही
"सब में तेरी कमी ही कमी....
"कौमुदी ...........
वाह वाह इतने सुंदर अश’आर हुए हैं दी,,बधाई हो
अनन्या बेटी’ बहुत प्रतिभा है तुम में वरना
"ख़ुश्बू वहीं की वहीं.......
ये शेर न लिख पातीं ,,,,ये ग़ज़ल तुम्हारी प्रतिभा को साबित कर रही है
ख़ूब ख़ुश रहो और इसी तरह हमारे मन भी ख़ुश करती रहो :)
ये मंच एक परिवार का है मुझे सम्मान की नही केवल प्यार की जरूरत है। सम्मान मिले तो लगता है अब बहुत बूढी हो गयी हूँ और बूढों से अक्सर कुछ समझदार लोग दूरी बना लेते हैं इस लिये डरती हौऔँ बस केवल एक सनेहमयी प्रेम की जरूरत है जो मुझे कुछ करने का उत्साह दे। सभी तो अपने आप चलने वाले नही होते किसी को हाथ पकड कर भी मंजिल तक ले जाना पडता है मुझे आप जैव्स, तिलक भाई जी जैसे भाईयों की जरूरत है।जिसने जो खोया हो उसे ही उसकी अहमियत पता होती है। मै इस मंच को एक परिवार समझती हूँ। मेरे भाई सदा सुखी3 रहें बस यही दुआ है।
जवाब देंहटाएंनिर्मला जी मेरी हम उम्र हैं उनका और मेरा ग़ज़ल लेखन का सफ़र लगभग साथ ही शुरू हुआ ...लेकिन उन्होंने इतने समय में ग़ज़ल लेखन के क्षेत्र में जो छलांग लगायी वो कोई ओलंपियन ही लगा सकता है...इस बार की तरही में दो सीनियर सिटिजन, याने मेरी और निर्मला जी, की भागीदारी इस बात का सबूत है के प्यार उम्र का मोहताज़ नहीं होता....नौजवानों को सन्देश है कि प्यार को हमेशा दिल में जिंदा रखो...जवां बने रहने के लिए सोच को जवां रखो... निर्मला जी के ये शेर "आज दीपक जलेगा...", "भोर उगती हुई...." " आ चलें चाँद तारों की..." उनकी जवां सोच के प्रमाण हैं...मेरा उन्हें सलाम...
जवाब देंहटाएंअनन्या बिटिया ग़ज़ल लेखन के क्षेत्र में बहुत आगे जायेगी इस में कोई संदेह नहीं...शेरों की बुनावट बहुत महीन और दिलकश है...""रात कटती रही..."" बाद बरसों के..."(तालियाँ तालियाँ तालियाँ)" ,जैसे शेर मेहनत और ऊपर वाले के आशीर्वाद के बिना नहीं कहे जा सकते...मैं उसके सुखद भविष्य की कामना करता हूँ.
नीरज
वैसे तो बहुत छोटी है सर अनन्या ! कुल मिला कर अभी १५ साल की होगी परसों।
जवाब देंहटाएंअभी कमेंट करना भी नही आता उसे। लेकिन जहाँ तक मैं जानती हूँ तो जिंदगी को संबोधित नही किया गया है इस मतले में। प्रिये को संबोधित कर उसे बताया जा रहा है कि " मेरी प्रिय ! तुम्हारे बिना, मेरी जिंदगी में नाखुशी है और तुम्हारा प्यार मेरी जिंदगी है।"
वैसे ग़लत भी हो सकता है, शायद... अनन्या की बुआ होने के कारण, इस टिप्पणी का स्वागत और धन्यवाद ....!!
हां यही सही है, मतला बिल्कुल ठीक है । किसी भी रूप में जिंदगी को संबोधित नहीं है प्रिये को ही संबोधित है । और मतले में कोई दोष नहीं बन रहा है कहन का ।
हटाएंदोनों ही ग़ज़लें बहुत सुंदर हैं। निर्मला जी और अनन्या जी को बहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंसुन्दर गज़लें
जवाब देंहटाएंदोनो ही गजले बहुत सुन्दर बन पड़ी है |आप दौनों को बधाई |
जवाब देंहटाएंआशा
॰॰॰कंचन जी और सुबीर भाई को। मुझको अन्न्या की उम्र का अहसास नहीं था वर्ना शयद ऐसी टिप्पणि नहीं करता, कंचन जी के हवाले " "ज़िन्दगी में नाखुशी है" एक सही पंक्ति है पर "ज़िन्दगी बिन तेरे नाखुशी है " मेरे हिसाब से सही नहीं है ,हो सकता है मैं गलत हूं पर जो मुझे ग़लत लगता है उस पर टिप्पणी करना मैं अपनी ज़िम्मेदारी समझता हूं। मेरी गज़लों में भी आज भी कई गल्तियां रहती हैं कोई उसे बताता है तो तुरंत स्वीकार कर सुधारने का प्रयास करता हूं।
जवाब देंहटाएंसंजय जी टिप्पणी करना बिल्कुल सही बात है इस ब्लाग पर बहसों के माध्यम से ही हम काफी चीजों को समझने का प्रयास करते हैं । अनन्या का मतला इसलिये सही है क्योंकि जिंदगी एक ऐसा शब्द है जो दोनों रूपों में उपयोग किया जाता है । आपके द्वारा लिखे गये दोनों वाक्य अपनी जगह सही है 'जिंदगी में नाखुशी है' भी सही है और 'जिंदगी बिन तेरे नाखुशी है' भी सही है । इस प्रकार के बहुत से शब्द हैं जो दोनों रूपों में उपयोग किये जा स कते हैं । यहां ये कहा जा सकता है आप दोनों ही ग़लत नहीं है । जिंदगी को कभी संज्ञा बना लिया जाता है तो कभी जिंदगी क्रिया हो जाती है । ग़लतियों को स्वीकारने का आपका कथन बिल्कुल सही है । गल्तियां ठीक करने से ही शायर धीरे धीरे निखरता है ।
हटाएंअरे संजय जी ! आप द्वारा ग़लती बताना विशथवास मानिये कि बहुत अच्छा लगा। बस इसलिये अपनी बात कही कि अगर मैने ग़लत समझा हो, तो मुझे भी स्पष्ट हो जाये।
जवाब देंहटाएंऔर हाँ देखिये भविष्य में इस प्रकार अपनत्व दिखाना बंद मत कर दीजियेगा। ग़लतियाँ तो उसे ही बताई जाती हैं ना , जिससे अपनापा हो।
भूलवश भी कहीं अगर कुछ ग़लत संदेश गया हो या ग़लतफहमी उपजी हो तो क्षमा कीजियेगा।
दोनों ग़ज़लें पसंद आईं. आ. निर्मला दी ने नौ के नौ उम्दा शेर तो कहे ही हैं,अनन्या की ग़ज़ल भी कुछ कम नहीं।आप दोनों को बधाई।
जवाब देंहटाएंआदरणीय निर्मला जी, इस मंच से हमेशा से जुड़ी हुयी हैं, उनकी ग़ज़लें उनकी टिप्पणियाँ सभी प्रेरित करते हैं.
जवाब देंहटाएंसब में तेरी कमी ही कमी... इस शेर ने बाँध लिया है.
अनन्या को तरही में पढता आया हूँ. आज अनन्या जी ने जो ग़ज़ल कही बहुत सुन्दर है विशेष रूप से चिट्ठियों ने मन मोह लिया.
शुभकामनाएं !!
आदरणीया निर्मला दी के ग़ज़ल के प्रति लगन और समर्पण एक मिसाल बन के सामने आता है.
जवाब देंहटाएंये दो शेर ख़ास पसंद आये,
आ चलें चाँद तारों की महफिल जहाँ
रात चुपके से ढलने लगी है प्रिये.
भोर उगती हुयी रात ढलती हुयी
सब मे तेरी कमी ही कमी है प्रिये
अनन्या, से सबकी बड़ी बड़ी उम्मीदें बंधी है और वो सभी उम्मीदों पे खरी उतर रही है और आगे इन सब उम्मीदों से आगे भी जाएगी.
ये शेर बहुत खूब बने हैं,
बाद बरसों तेरी चिट्ठियाँ हैं खुली,
फिर भी खुशबू वही की वही है प्रिये।
राह तकती रही मैं तेरी साँझ भर,
आज खामोश फिर से गली है प्रिये।