शुक्रवार, 1 जनवरी 2010

नया साल जीवन में सुख ले के आए : यही है ग़ज़ल की कक्षा की तरफ से सबके लिये कामना । आज ही से प्रारंभ हो रहा है ग़ज़ल की तकनीक पर आधारित ब्‍लाग ग़ज़ल का सफ़र और आज नये साल के ठीक पहले ही दिन प्रारंभ करते हैं तरही मुशायरा 2010

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आप लोग हैरत में पड़ रहे होंगें कि ये अचानक मिसरा बदला हुआ क्‍यों आ रहा है । दरअसल में मिसरा तो वही है किन्‍तु नये साल के लिये उसे थोड़ा बदल कर कह रहा हूं । उसके पीछे एक कारण ये है कि कल ही शार्दूला दीदी का मेल मिला जिसमें उन्‍होंने कहा है कि नये साल को लेकर मिसरा कुछ नकारात्‍मक है सो मैंने भी सोचा कि मिसरा तो वही रहने देते हैं लेकिन आज नये साल के ठीक पहले दिन उसको यूं कह कर बोलते हैं नया साल जीवन में सुख ले के आये आपको ये मिसरा सुना सा लग रहा होगा । दरअसल में ये मिसरा नहीं है बल्कि नये साल के शुभकामना संदेशों पर छपने वाला वाक्‍य है जो संयोग से हमारी बहर से भी मिल रहा है और काफिये से भी । सो इसलिये ही इसको उपयोग कर लिया है । वैसे भी जीवन की जो आपाधापी है उसमें सबके लिये यही कामना होनी चाहिये कि नया साल सबके जीवन में सुख लेकर आये ।

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ग़ज़ल का सफ़र :  ग़ज़ल का सफ़र आज से ही प्रारंभ हो रहा है । श्री नीरज गोस्‍वामी जी को शुभारंभ के लिये चुना है कि वे आज सबसे पहले इसका अवलोकन करेंगें और पहली टिप्‍पणी देंगें और उसके बाद ये ब्‍लाग आमंत्रितों के लिये खोल दिया जायेगा । ग़ज़ल का सफ़र ब्‍लाग उस ऊहापोह का समापन करने का प्रयास है जिसमें पिछले एक साल से उलझा था । ऊहापोह ये कि अब आगे की बातें सार्वजनिक कैसे की जाएं । बस उसको लेकर सोचते सोचते यहां तक पहुंचा कि यहां पर ही आगे की बातें बताई जाएं । इस ब्‍लाग पर सिवाय ग़ज़ल की व्‍याकरण तथा तकनीक के कुछ और नहीं होगा । केवल एक ही बात होगी ग़ज़ल की । उसमें भी विशेष तकनीक की बात की जाएगी । हालंकि हो सकता है कि कुछ बातें दोहराई जाएं लेकिन उसमें भी कोशिश की जाएगी कि कुछ नया किया जाए । कुछ ऐसा जो कि पिछले से अलग हो । कई लोग कहते हैं कि बहर वगैरह तो हमें आती नहीं काफिया रदीफ पता नहीं, हम तो जो मन में आए लिख देते हैं । मेरा ऐसा मानना है कि यदि आप नियम को ही नहीं मान रहे हैं तो फिर लिख ही क्‍यों रहे हैं । ये लोग सीखने से बच रहे हैं । सीखने की कोई उम्र नहीं होती ये बात हम निर्मला दी से सीख सकते हैं उनमें सीखने की जो ललक है वो अद्भुत है ।

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नया साल ना जाने क्‍या गुल खिलाए

डॉ. मोहम्‍मद आज़म जी के मिसरे पर इस बार हम नये साल का तरही मुशायरा आयोजित कर रहे हैं । बहरे मुतकारिब का ये मिसरा है जिसमें 122-122-122-122 का वज्‍़न है । और जो लोग बहरों के बारे में नहीं जानते हैं उनके लिये ये कि ललाला-ललाला-ललाला-ललाला  को गा लें बहर समझ में आ जायेगी ।

आज की शुरूआत डॉ. मोहम्‍मद आज़म साहब की ग़ज़ल के साथ ही करते हैं । आज़म जी अब कोई अपरिचित नाम नहीं हैं । पिछली तरही में वे खूब दाद बटोर कर गये हैं । इस बार चूंकि मिसरा उनका ही था इसलिये हम उनसे ही आरंभ करते हैं ।

azam ji

डॉ. मोहम्‍मद आज़म 

खुदा दिन न ऐसे किसी को दिखाए
जब उसका ही साया उसी को डराए

सदा एक ऐसी मेरे दिल से आए
कोई जैसे बिछड़े हुए को बुलाए

नये देश में ख़ूब रं‍गीनियां हैं
मगर मुल्‍क अपना न हम भूल पाए

मुझे याद हैं वो मुसीबत के दिन जब
मिरे अपने भी बन गए थे पराए

हर इक साल गुज़रा है नीरस अभी तक
''न जाने नया साल क्‍या गुल खिलाए''

ये है दर्द सहने की ताक़त पे निर्भर
कराहे कोई तो, कोई मुस्‍कुराए

मैं उस राह पर दौड़ता फिर रहा हूं
फरिश्‍तों के जिस पर क़दम डगमगाए

ख़ता है यही, सच को सच कह दिया है
हर इक शख्‍़स मुझ पर है पत्‍थर उठाए

अदा से मिरी कशमकश में फंसा हूं
न तू दूर जाए, न तू पास आए

हर इक रास्‍ते से जो वाकि़फ थे आज़म
वही मंजि़लों तक कभी जा न पाए

ठीक वीरेंद्र सहवाग की तरह धमाकेदार शुरूआत की है तरही की डॉ आज़म ने । मेरे विचार में लगभग हर विषय को उन्‍होंने स्‍पर्श कर दिया है । फिर भी मुझे सबसे ज्‍यादह पसंद आया है मकता । मकते में बहुत खूबी से उन्‍होंने तंज कसा है । ये आनंद का मकता है निर्मल आनंद का मकता  । आप सब आनंद लीजिये दाद दीजिये और अपनी बारी आने की प्रतीक्षा कीजिये । इस बार भी तरही में बहुत धमाकेदार प्रस्‍तुतियां होने जा रही हैं । कई वरिष्‍ठ जनों ने इस बार भी अपना आशिर्वाद तरही को प्रदान किया है । उनकी प्रस्‍तुतियां तो विंटेज क्‍लासिक की तरह होंगीं हीं साथ में पाठशाला के विद्यार्थियों में भी जबरदस्‍त प्रदर्शन की उत्‍साह है । इस बार कई सारे लोग पहली बार तरही में आ रहे हैं । सो उनका भी स्‍वागत होगा । इसी बीच नीरज जी ने शायद ग़ज़ल का सफ़र का फीता काट कर उसका उद्घाटन कर दिया होगा मैं उधर जाता हूं आप इधर संभालें । दाद देते रहें तालियां बजाते रहें । नव वर्ष शुभ हो मंगलमय हो ।

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29 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत शानदार शुरुआत। बहुत अच्छी ग़ज़ल ।
    आपको नव वर्ष 2010 की हार्दिक शुभकामनाएं।

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  2. अति सुन्दर !आपको नव-वर्ष की ढेरो शुभकामनाये !

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  3. नूतन वर्षाभिनन्‍दन।
    तरही का मिसरा वास्‍तव में नकारात्‍मक होने के कारण टेढ़ा था लेकिन शायर तो शायर हैं वो भी जानते हैं कि कैसे एक डंडा मारकर ऋण को धन किया जाता है।
    नये साल की शुरुआत एक बेहतरीन ग़ज़ल से।
    बधाई।
    तिलक राज कपूर

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  4. गुरूदेव, प्रणाम! सबसे पहले तो आपको, आपके प्रियजनों एवं पूरे गुरूकुल को नववर्ष की बधाई। हां, ये सच है कि पुराना मिसरा कम से कम सकारात्मक तो नहीं लग रहा था इसलिये मेरा अनुमान है ज्यादातर गिरह नकारात्मक ही मिलेंगे और शायद एक जैसे भी। अब आपने आदरणीय नीरज जी को "उठहु राम भंजहु सिव चापा" का आह्वान दे ही दिया है तो उम्मीद करता हूं कि नववर्ष आगमन के इस शुभ-मुहुर्त्त में ही ये मांगलिक कृत्य संपन्न हो जायेगा। और डा. आजम ने तो शुरूआत ही सुपर-डुपर तरीके से की है-नये साल का अनोखा उपहार!पहले तो मतला ही शानदार, फ़िर दर्द वाला, फ़रिश्तों वाला और मक्ते का शेर, सब के सब कयामत ढा रहे हैं।

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  5. बहुत शानदार शुरुआत, आपको तथा आपके परिवार को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
    regards

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  6. Main us raah par daudta phir raha hoon
    farishton ke jis par kadam dagmagaye

    ek ek sher apne aap mein ek sandesh liye hue.

    Dr. azam ki gazal margdarshan bani hai .
    Nav varsh ki shubhkamnaon ke saath

    Devi Nangrani

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  7. इससे बेहतरीन सुबह और क्या होगी.

    सब कुछ करीने से सजा हुआ. खुशबू बिखेरता हुआ.

    आजम साहब ने तरही ग़ज़ल की शानदार शुरुवात की है. मक्ता लाजवाब है. अभी अज़ल का सफ़र का दीदार भी करना है. रोमांचित हूँ....

    गुरूजी आपकी प्रस्तुति नायब है.

    नया वर्ष नयी उम्मीदों
    नयी तैयारियों के नाम
    नूतन उत्साह और
    नवीन चेतना के नाम

    नववर्ष की बधाई एवं शुभकामनाएँ!
    - सुलभ जायसवाल 'सतरंगी'

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  8. बहुत बढिया .. आपके और आपके परिवार के लिए भी नववर्ष मंगलमय हो !!

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  9. गुरु देव ,
    सादर प्रणाम,
    पहली ही गजल हम जैसे नौसिखियों को बोल्ड कर गयी.मोहम्मद आजम साहब ने तो छक्के पे छक्के लगते हुए शेरों की गेंदों को स्टेडियम से बाहर भेज दिया है.इसी से सीखने को बहुत कुछ मिला.
    पर एक बात मुझे सिखाएं 'कोई'और 'जब' में तो 'ला'(दीर्घ) की मात्रा है फिर भी गजल में बहर नहीं टूट रही है.जहाँ तक मैं समझा हूँ 'कोई' का उच्चारण में 'क' ही ध्वनित हो रहा है.और 'जब' में 'ज'ही ध्वनित हो रहा है.मुझे सबसे बड़ी कठिनाई दीर्घ स्वरों को लघु स्वर के रूप में रुक्न में लाने में होती है.क्या इसका कोई फार्मूला है.
    'हर इक साल गुजरा है नीरस गुजरा है नीरस अभी तक' में गिरह इतनी सुन्दर है की बार बार पढ़े जा रहा हूँ.
    'है दर्द सहने की ताकत पर निर्भर'
    'मैं उस राह पर दौड़ता फिर रहा हूँ...'
    'खता है यही की सच को सच कह दिया'
    और
    फिर
    'हर इक रास्ते से जो वाकिफ थे आजम..'
    इन शेरों पे कुर्बान हो जाने का जी चाहता है...
    आदरणीय आजम साहब हमारी बधाई स्वीकार फरमाएं...
    और गुरुकुल के सभी भाई बहनों और उनके परिवारों को नव वर्ष की मंगल कामनाएं.

    और नीरज भाई से गुजारिश....
    गजल के सफ़र पर अपनी टिप्पणी लेकर जल्दी पहुंचें बाहर भीड़ इन्तजार कर रही है.हम सब नव वर्ष के दिन ही गजल के सफ़र की क्लास ज्वाइन करना चाहते है ...वर्ना लेट फीस आपको भरनी पड़ेगी.
    शुभ कामनाएं !
    प्रकाश पाखी

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  10. आँखों को ठंडक पहुंचता आप के ब्लॉग का बदला बदला सा कलेवर और दिलो दिमाग पर छाते हुए डा. आज़म साहब के एक से बढ़ कर एक खूबसूरत अशआर....इसे से बढ़िया नए साल की शुरुआत भला क्या हो सकती थी? लाजवाब कर दिया आपके इस अंदाज़ ने...इस तरही में पिछली बार से बड़े धमाके होने वाले हैं ये नज़र आ गया है...आज़म साहब की ग़ज़ल का " मैं उस राह पर दौड़ता फिर रहा हूँ..." और मक्ता अपने साथ लिए जा रहा हूँ...आज़म साहब को मेरी और से दिली दाद दीजियेगा...आपकी तरही से मेरा खज़ाना बढने वाला है इसमें शक नहीं.

    आपका "ग़ज़ल का सफ़र" ब्लॉग मेरी फेवरेट मधुबाला की तरह हसीन और ज़हीन है...मुझे विश्वाश है की ये ब्लॉग उसी की तरह, देखने पढने सुनने वालों को अपना मुरीद बना लेगा...

    नीरज

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  11. नये साल की सारी की सारी शुभकामनायें गुरुदेव आपको, भाभी जी को, नन्हीं परी-पंखुरी को और शिवना की पूरी टीम को और खास तौर पर सोनु और हठीला जी को!

    हर उपलक्ष्य पर ब्लौग का बदलता कलेवर का अंदाज आपका हमेशा अचंभित करता रहा है मुझे। ये ग्राफिक्स, ये एनिमेशन, ये सजावट...उफ़्फ़! "ग़ज़ल के सफर" से रुबरु होकर आ चुका हूँ और अब डा० साब के तरही की जादू में डूबा हुआ हूँ। इतनी अच्छी ग़ज़ल से शुरुआत हुई है मुशायरे की कि अपनी अदनी ग़ज़ल के बारे में सोच रहा हूँ...सोच रहा हूँ कि तनिक और मेहनत क्यों नहीं की।

    डा० साब की वो उस फरिश्ते वाले शेर पर "'मैं उस राह पर दौड़ता फिर रहा हूँ" पर करोड़ों दाद। मुझे ग़ज़ल के ऐसे तेवर बड़े भाते हैं।

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  12. ham daad dena jaante hai...gazal ke bhavon ko samajhte hai...lekin koi formula nahi jaante....seekhna bhi chahte hai......pls. gazal ke A B C se start karein...... taaki hamare jaiso ka bhi bhala ho sake

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  13. मोहतरम पंकज सुबीर साहब,
    हर शेर दिल में उतरता चला गया
    आपके ब्लाग से हम जैसे तालिबे-इल्म बहुत कुछ सीख लेंगे
    आप सभी को नये साल की बहुत बहुत मुबारकबाद
    जज्बात पर भी तशरीफ लाईयेगा
    शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

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  14. नव वर्ष आप सभी को मंगलमय हो.
    जनाब डॉ. मोहम्मद आज़म साहब, आपकी ग़ज़ल को बार बार पढ़ा है और हर दफ़ा पहले से ज़्यादा लुत्फ़ आया. एक ख़ूबसूरत ग़ज़ल इनायत करने के लिए दाद और शुक्रिया क़ुबूल कीजिए.
    सुबीर जी, डॉ. मिहम्म्द आज़म साहब की एक नायाब ग़ज़ल से नए साल की शुरुआत की है, बहुत ही अच्छा लगा. आप इतने व्यस्त जीवन के बावजूद भी जिस लगन और मेहनत से 'सुबीर संवाद सेवा' द्वारा निस्वार्थ भाव से इस नेक कार्य में जुटे हुए हो, सराहनीय है. बस, यही कामना है कि हर क़दम पर आपको सफलता मिले.
    महावीर

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  15. करूँ टिप्पणी इस गज़ल पे मैं कैसे
    था ढूँढ़ा बहुत, लफ़्ज़ मिल ही न पाये

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  16. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  17. subeer ji itni umda ghazal padhwane ke liye bahut bahut shukriya
    har sher apne mafhoom aur khoobsurat alfaz ke sath mukammal hai shayar mubarakbad ke haqdar hain
    bahut achchha laga blog par tarahi mushaira dekhkar

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  18. देर से आने के लिये क्षमा याचना। नये साल की तरह उजला सा न्लाग क रंग देख कर खुशी हुई। नये साल की आप्लो भाभी जी को और बच्चों को शुभकामनायें और आशीर्वाद । डा़ साहिब की गज़ल कमाल है मैं तो शब्द ही नहीं ढूँढ पा रही हूँ। बस इसी खुशी से सराबोर हूँ कि आपके माध्यम से मुझे गज़ल के धुरन्ध्रों की गज़लें पढने का अवसर मिल रहा है ।मेरी टिप्पणी तो सूरज को दीप दिखाने जैसी है । इस लाजवाब गज़ल के लिये डा़मुहम्म्द आजम साहिब जी को बहुत बहुत बधाई और इस मुशायरे की सुन्दर शुरुआत के लिये आपको बधाइ और धन्यवाद।

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  19. मुझे याद है वो मुसीबत के दिन जब
    मेरे अपने भी बन गए थे पराये ..

    इस शे'र के बारे में कुछ भी नहीं कह पाउँगा आज़म साहिब के , जिस खूबसूरती से उन्होंने अपनी बात कही है वो काबिले तारीफ है ,
    सबसे पहले तो तरही की शुरुयात पर भाग ले रहे सभी शईरों को मेरे तरफ से नव वर्ष की ढेरो शुभकामनाएं ,,... आश्रम के भी सभी भाई बहनों को नव वर्ष की ढेरों बधाईयाँ ...
    गुरु देव भाभी जी को नव वर्ष पर सादर प्रणाम और बिटिया पारी पंखुरी ,
    को ढेरो प्यार ,
    वाकई तरही की शुरुयात सहवाग के धमाके दार ओपनिंग से हो चुकी है
    मध्य क्रम को इस संभालना होगा .. मगर गुरु देव आप अकेले ही काफी हैं पूरी पारी के लिए
    ग़ज़ल का सफ़र का इंतज़ार खत्म , और मैं वहीँ हाजिरी देने जा रहा हूँ ...

    मैं उस राह पर दौड़ता फिर रहा हूँ
    फरिश्तों के जिस पर कदम डगमगाए ...

    आमीन ...

    अर्श

    जवाब देंहटाएं
  20. प्रणाम गुरु जी,
    तरही की शुरुआत ही डॉ. आज़म जी से हुई है, उनसे सिहोर में मिल भी चूका हूँ और सुन भी चुका हूँ, बहुत अच्छे शायर है वो और इसी बात को पुख्ता कर रही है इस तरही में उनकी ये ग़ज़ल.
    वाकई एक जानदार और शानदार शुरुआत.
    नपे तुले लफ़्ज़ों से खूबसूरत शेर निखार के आये आये हैं उसके कहने ही क्या.
    मतला और उस पे हुस्न-ए-मतला अच्छे बन पड़े हैं, और जिस शेर ने महफ़िल लूट ली है वो है...'मैं उस राह पर........."

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  21. अपनी लेट लतीफ स्पिरिट को बनाये रखते हुए आ गई हूँ सबसे अंत में अपनी बात कहने

    गज़ल के सफर पर भीड़ लग के खतम भी हो चुकी होगी.. अब इत्मीनान से जा कर पढ़ूँगी उधर

    और आजम साहब की गज़ल वाक़ई धुँआधार ओपेनिंग... एक और बात गुस्ताखी की मुआफी माँगते हुए कहूँगी कि आज़म साहब के शेर दीवाली की तरही से बहुत बहुत ज्यादा अच्छे निकले हैं, चूँकि आजम जी जिस मुकाम पर हैं वहाँ उनका मुकाबला सीधे उन्ही से है और अपने खुद के कीर्तिमान तोड़ने होते हैं इस मुक़ाम पर....!

    तो अब तारीफ किस शेर की करें ये मुश्किल आ रही है।

    सदा एक ऐसी मेरे दिल से आये,
    कोई जैसे बिछुड़े हुए को बुलाये


    क्या शेर है...

    मुझे याद हैं वो मुसीबत के दिन जब...

    क्या हक़ीकत बयाँ की है।

    हर इक साल गुज़रा है नीरस...

    इस भाव का एक शेर तो मैने भी भेजा है ना गुरु जी

    ये है दर्द सहने की ताकत पे निर्भर,
    कराहे कोई, तो कोई मुस्कुराये


    वाह.. वाह... वाह.. ये तो बहुत अपना सा शेर है मेरे लिये।

    अदा से वाले शेर में शायद तेरी की जगह मिरी टाइप हो गया है

    मगर ना तू दूर जाये, ना तू पास आये

    क्या खूबसूरत कश्मकश है

    और अंतिम शेर... सही कहा इसी लिये तो कहा जाता है कि एक राह पकड़ो तो मंजिल मिल सारी राह जानने वाले सारी राहें आजमा लेते हैं और राहो पर ही उम्र गुज़ार देते हैं

    बेहतरीन आगाज़ के लिये बधाइयाँ गुरुवर

    जवाब देंहटाएं
  22. मजा आ गया डॉ आज़म को पढ़कर. बड़ी धमाकेदार शुरुवात हुई है/

    नये साल की शुभकामनाएँ.

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  23. देर से आने के लिए क्षमा चाहती हूँ...बहुत ही ख़ूबसूरत ग़ज़ल है...नव वर्ष की शुभकामना...

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  24. गुरु जी मुझे कब "ग़ज़ल का सफ़र" का दीदार होगा..

    जवाब देंहटाएं
  25. नया साल घर पे सबको और आपके सारे पढ़ने वालों को मुबारक हो सुबीर भैया!
    आज ही नेट पे आयी हूँ नए साल में और गुरुजी के ब्लॉग के दर्शन करते ही आपके ब्लॉग पे आयी हूँ.
    यहाँ अपना नाम देख के चौंक गयी, बात ये थी कि साल 2009 जा रहा था, मन बहुत ही भावुक हो रहा था, सो comparatively मिसरा मुझे ironical लगा.
    आज़म साहब ने बहुत खूबसूरती से अपनी बातें कहीं हैं:
    फ़रिश्ते ...वाला शेर बहुत ही उम्दा !
    सदा ऎसी ... वाले शेर में कुछ haunting सा है. वाह!
    ये है दर्द सहने ... क्या अंदाज़े बयां है !
    और मकता वाकई दमदार है और कितना सच्चा भी!

    अब देखिये गौतम भैया , नीरज जी और आपके और भी उम्दा लिखने वाले क्या-क्या गुल खिलाते हैं इस मिसरे को ले के :)
    मेरी impromptu आहुति ये लीजिये:
    करूँ काम तो मन बहुत गीत गाए ...... ( ये आज शनिवार को भी फुल टाईम आफिस जाने की दुःख से उपजा है :)
    लिखूँ बैठने कुछ लिखा ही न जाए
    ग़ज़ल बन गई एक सहमी चिरैया
    उड़ाऊँ उड़े ना, बुलाऊँ न आए
    समय एक माली, कि मैं फूल सूखा
    न जाने नया साल क्या गुल खिलाए ...
    ---- अब देखिये भईया ऐसा तो नहीं चाहिए न आपको लिखा हुआ, सो नहीं भेजा :)

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  26. नए वर्ष का आरम्भ बहुत ज़ोरदार हुआ है,
    हाज़री बहुत देर से दर्ज़ करवा रही हूँ,
    घर मेहमानों से भरा हुआ था और
    कल सब लोग अपने -अपने ठिकानों पर गए हैं
    और आज मैं कंम्प्यूटर खोल पाई हूँ.

    मैं उस राह पर दौड़ता फिर रहा हूँ
    फरिश्तों के जिस पर कदम डगमगाए

    एक- एक शे'र पर बधाई -बहुत -बहुत बधाई.....

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  27. मेरे अति गुणी अनुज पंकज भाई
    आपका साधुवाद!!

    तरही मुशायरे का आगाज़ हुआ और बहुत बढ़िया रचना पढवाई -

    डा. आज़म साहब के लिए भी मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ!

    आगे की कड़ीयों को पढने की उत्सुकता रहेगी
    सद्भाव सहीत,
    - लावण्या

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  28. सबसे पहले माफी देरी से आने की ............ पर जीवन है तो जीवन के कार्य करने सबसे पहले करने ज़रूरी हैं ........... तहरी की शुरुआत सच में धमाकेदार है .......... सब ने इतना कुछ कह दिया है की मेरे लिए कुछ बचा ही नही ...... जैसे आपने लिखा है वरिष्ट लोग गुनिजन भी इस बार आ रहे हैं ..... मुझे तो अभी डर से लग रहा है

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