तरही मुशायरे को लेकर रोज एक दो ग़ज़लें मिल रही हैं । बहुत ही अच्छी और सुंदर ग़ज़लें मिल रही हैं । लेकिन कुछ नियमित लिखने वाले अभी भी सो ही रहे हैं और जाने किस बात की प्रतीक्षा कर रहे हैं । रविकांत ने मुशायरे की तारीख को लेकर कई बार प्रश्न किया है मेरे विचार से सीहोर में होने वाला मुशायरा वसंत पंचमी यानि 20 जनवरी को होने की संभावना है । क्योंकि उस दिन ही शिवना प्रकाशन द्वारा सरस्वती पूजन भी किया जाता है । उस दिन ही ये मुशायरा भी आयोजित किया जायेगा । शिवना प्रकाशन द्वारा पिछले कई सालों से ये सरस्वती पूजन आयोजित किया जाता है । इस बार चूंकि वसंत पंचमी कुछ पीछे आ गई है इसलिये नव वर्ष का आयोजन और मुशायरा दोनों ही उस दिन किये जा सकते हैं । फरवरी में आदरणीय राकेश खंडेलवाल जी की सीहोर यात्रा प्रस्तावित है तथा उस दिन भी शिवना द्वारा एक कार्यक्रम आयोजित करने की योजना है ।
ग़ज़ल की कक्षाओं को लेकर कई दिनों से ऊहापोह हो रही थी । उसके पीछे भी एक कारण ये था कि अब जो बहुत ही गूढ़ बातें शेष हैं वे इस प्रकार से सार्वजनिक रूप से नहीं बताई जा सकती । जिन लोगों ने अभी तक लगभग तीन सालों तक तप किया है वे ही उसके पात्र हैं । ऐसा नहीं है कि नये लोगों को इस ब्लाग पर जाने का मौका नहीं मिलेगा । लेकिन उनको ही मिलेगा जो सुपात्र भी हैं और जिनके मन में सीखने की कुछ इच्छा भी है । कई सारी बातें ऐसी हुई जिनसे कि मन खिन्न हो गया था । फिर लगा कि सर्वाजनिक न करके यदि इस प्रकार से आगे का काम किया जाये तो उससे मन को शांति मिलेगी कि जो कुछ भी ज्ञान है वो कम से कम वितरित तो हो रहा है । ये ब्लाग जैसा कि पूर्व में बताया जा चुका है कि आमंत्रण के द्वारा पढ़ा जाने वाला ब्लाग होगा । जिन लोगों को आमंत्रण भेजा जायेगा केवल वे ही अपने जीमेल एकाउंट से लागिन करके इसको पढ़ सकेंगें । दरअसल में ये ब्लाग कुल मिलाकर वह पुस्तक ही होगी जिसे मैं लिख रहा हूं । इसमें कुछ भी दूसरा कार्य नहीं होगा केवल ग़ज़ल की तकनीक पर ही चर्चा होगी । ब्लाग का नाम रखा गया है ग़ज़ल का सफर । इसमें कोई विजेट या साइड बार नहीं है । बहुत ही सीधा सा ब्लाग है । बाकी का सारा काम जिसमें तरही मुशायरा आदि सब कुछ होता है वो इस ब्लाग पर पूर्ववत ही चलता रहेगा ।
तरही के आयोजन के लिये ले जा रहा हूं घूरो मत कोई भी
तरही को लेकर कई सारी ग़ज़लें मिल चुकी हैं और कई सारे लोगों ने कहा है कि वे जलदी ही भेज रहे हैं । प्रयास ये है कि ठीक एक जनवरी 2010 को तरही का आयोजन प्रारंभ हो जाये और उसके साथ ही ग़ज़ल का सफर की अधिकारिक रूप से लान्चिंग भी हो जाये । वैसे इस बार पिछली बार के मुकाबले में कुछ अधिक ग़ज़लें मिलने की संभावना है । उसके पीछे कारण ये है कि पिछली बार त्यौहार की व्यस्तता थी । इस बार छुट्टियां चल रहीं हैं । इस बार का मिसरा न जाने नया साल क्या गुल खिलाए बहरे मुतकारिब पर है । बहरे मुतदारिक के बारे में मैं पहले ही बात चुका हूं कि ये एक गाई जाने वाली बहर है । और ये सालिम तथा मुजाहिब सारी बहरों में गाई जाने वाली होती है । बहरे मुतकारिब और बहरे मुतदारिक ये दोनों ही पंचाक्षरी रुक्नों से बनी मुफरद बहरें हैं । बाकी सारी मुफरद बहरें सप्ताक्षरी रुक्नों से बनी हैं । पिछली बार जो जुजबंदी के बारे में बताया गया था उसको आधार बना कर हम बहरे मुतकारिब के रुक्न के जुज़ निकाल सकते हैं । बाकी बातें तो हम ग़ज़ल के सफर पर करेंगें ही ।
मन खिन्न है । मन खिन्न है कल आये कुछ मेल पढ़कर । दरअसल में ऐसा लगता है कि अब मानवीय मूल्यों, रिश्तों नातों का युग बीत ही चुका है । अब सब कुछ पैसा ही हो चुका है । मन दुखी है बहुत दुखी है । पता नहीं हम किस ओर जा रहे हैं । यद्यपि इस विषय में एक बार सुधा दीदी से विस्तार से चर्चा हुई थी तथा उन्होंने भी इस मामले को लेकर दुख व्यक्त किया था । किन्तु अब जब उसी प्रकार के मामले में मुझे भी घसीट लिया गया तो मुझे ऐसा लगा कि मैं भी अपराधी हो गया हूं । हम कब इन्सानों को इन्सान समझना प्रारंभ करेंगें । हम कब रिश्तों से ऊपर पैसा होता है ये मानना बंद करेंगें । बहुत बहुत दुख होता है इस प्रकार के मामलों में । ऐसा लगता है कि वास्तव में जीवन मूल्य समाप्त होते जा रहे हैं । यद्यपि मैं अपराधी नहीं हूं फिर भी चूंकि मेरा नाम उपयोग में लाया गया है इसलिये मैं क्षमाप्रार्थी हूं । इस विषय पर एक तीखी ग़ज़ल लिख रहा हूं जिसमें अपनी पूरी पीड़ा को पूरी ताकत के साथ झोंक दूंगा । इस विषय पर आज इतना दुखी हूं कि बस । लेकिन पीड़ा से जन्म होता है रचनाओं का सो हो सकता है कुछ अच्छा हो जाये ।
गुरुदेव आपकी सारी बातें समझ में आ गयीं सिवा अंतिम पैरा को छोड़ कर...मुझे पूरी बात तो समझ नहीं आई लेकिन इतना जरूर समझ में आया है की आप किसी कारण से क्षुब्ध हैं...शायद कोई आपकी अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरा है या फिर आपको बिना बात किसी मुद्दे पर घसीटा गया है...बात जो हो लेकिन आपका यूँ क्षुब्ध होना सही नहीं है...मानवीय मूल्यों रिश्ते नातों का का युग बीत चूका है...सही कहा आपने...अब सब कुछ पैसा ही हो चुका है...ये भी सही कहा आपने...लेकिन ये कौनसी नयी बात हुई क्षुब्ध होने की...हाँ कोई अगर ऐसा नहीं करे और आप क्षुब्ध हों तो बात समझ में आती है...ये सब तो हम आज नहीं बहुत समय से पढ़ते या होते देखते हैं...कौन ऐसा इंसान होगा जिसे इन बातों की जानकारी न हो या जो ऐसी सोच वाले व्यक्तियों का शिकार न बना हो...जब ये आज के इंसान की फितरत ही हो चुकी है तो फिर क्षुब्ध होना उसी बात कुछ ठीक बात नहीं लगती...आप ये भी जरूर देखिये जो अभी भी कुछ लोग ऐसे होंगे आपके आसपास जो रिश्ते नातों में विश्वाश रखते हैं...जिनके लिए पैसा ही सब कुछ नहीं... आप उनके बारे में सोच कर खुश होइए...दुखी होने के लिए कोई दूसरे कारण तलाश कीजिये...जो कारण आपने दिए हैं वो अब हम सब के जीवन का हिस्सा बन चुके हैं...अब भाई बिच्छू को हाथ में उठायें या अनजाने उसके पास चले जाएँ वो तो कटेगा...इस पर दुखी न हों...सावधान रहें की ऐसे बिच्छू टाइप लोगों से दूर रहा जाये...
जवाब देंहटाएंतरही मुशायरा जल्द चालू कीजिये इसे क्या पूरे जनवरी माह में चलाये रखेंगे?
नए ब्लॉग का बेताबी से इंतज़ार है...
नीरज
सर्वप्रथम मैं आपके लिए प्रार्थना करता हूँ, की आप जो भी जैसे भी महती कार्य को अकेले ही अंजाम दे रहे हैं, इस में कोई बाधा उत्पन्न न हो.
जवाब देंहटाएंआप किसी कारणवश क्षुब्ध है, क्रोधित हैं. आपकी प्रतिक्रया जायज है. वक़्त आने पर सब कुछ साफ़ हो जायेगा. ओछी हरकत करनेवाले जरुर पराजित होंगे.
मुझे आपका निर्णय समीचीन लगता है. व्यर्थ के उलझन से यदि नियमित विद्या दान में बाधा उत्पन्न होती है तो बेहतर है, गुरुकुल के पवित्र दरवाजे पर प्रहरी बैठा दें.
मुझे विश्वाश है आने वाले समय में मैं आपके उमीदों पर खड़ा उतरूंगा. मुझे नहीं पता की मैं आपका काबिल शिष्य हूँ अथवा नहीं. लेकिन मैंने मन और कर्म से जब आपको गुरु मान लिया है तो अब साधना नियमित होगी. हाल के समय में जो भी प्राप्त किया, ह्रदय से आभारीहूँ.
चुरा रहे हैं आशाओं के दीपक की जो ज्योति स्वयं ही
जवाब देंहटाएंवे ही कहते दीप प्रज्ज्वलित करने में वे सबसे आगे
हिन्दी की बैसाखी लेकर चलते कासा लिये हाथ में
वे ही तो तोड़ा करते हैं सम्बन्धों के पक्के धागे
मेरी राय मान लें उन पर सिक्का कोई नहीं उछालें
ऐसी गिरी मानसिकता को, हमको देना नहीं बढ़ावा
हिन्दी की प्रतिमा को कोई नहीं अपेक्षायें पूजन की
चन्द पुजारी ही बस मांगा करते हरदम और चढ़ावा
और नीरज भाई के प्रश्न के उत्तर में
बहुत से काम ऐसे हैं जो दोहराये नहीं जाते
बहुत से नाम ऐसे हैं जो बतलाये नहीं जाते
किया है दुश्मनों का इसलिये स्वागत सदा मैने
कि घर आये हुए मेहमान लौय़ाउए नहीं जाते.
पोस्ट पढ़ने के बाद विचलित हुआ मन अब जाकर शांत हुआ आपसे इस लंबी बातचीत के बाद और फिर राकेश जी की सुंदर पंक्तियों से।
जवाब देंहटाएंकुछ लोग अजीब ढ़ंग से चौंका जाते हैं अपने आचार-व्यवहार से और फिर वो आघात अवर्णननीय होता है। पूरा प्रकरण जान लेने के बाद समझ सकता हूँ कि आप पर क्या बीती होगी। आपके संयम को सलाम, किंतु।
"ग़ज़ल का सफर"...उत्तेजित, उत्कंठित कर रहा है। कब आयेगा ये नया साल? उफ़्फ़!
कार्टून वो 2010 की बोतल लेकर चलता हुआ करैक्टर बड़ा मस्त बना है।
पोस्ट की शुरुआती पंक्तियों ने दग्ध मन को तनिक शांत किया है। आपने लिखा है कि " अच्छी और सुंदर तरही मिल रही हैं"। मुझे तो लग रहा था कि बड़ी कमजोर लिखी है इसबार मैंने। लेकिन आपके शब्दानुसार मेरा प्रयास या "अच्छा" और "सुंदर" में से कम-से-कम एक तो है ही।
...और चलते-चलते, इन व्यर्थ के इंसानों
और उनकी ओछी हरकतों से खुद को ज्यादा विचलित होने दें। आप बेशकिमती हो हमजैसे जाने कितनों के लिये।
आपका ये पोस्ट पढ़कर बहुत देर से सोच रहा हूं क्या लिखूं। आपके ब्लॉग का पाठक और आपका प्रशंसक हूं। आप जिस मानसिक अवस्था में हैं .. बस इतना ही कह सकता हूं कि मैं भी गौतम जी की कही बात कहना चाहता हूं, कि इन व्यर्थ के इंसानों और उनकी ओछी हरकतों से खुद को ज्यादा विचलित न होने दें। आप बेशकिमती हैं हमजैसे जाने कितनों के लिये।
जवाब देंहटाएंइस मिसरे पर हम भी कुछ तुकबऩ्दी करने की कोशिश करेंगे!
जवाब देंहटाएंआपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंआदरणीय गुरूदेव,हम तो साधारण इंसान हैं जो कि "निरमल निरामय एकरस तेहि हरस सोक न व्यापई" की ब्राह्मी स्थिति में नहीं है। ऐसे में किसी की कुटिल भावनाओं से आहत होना स्वाभाविक है। आपके क्षोभ और पीड़ा का सहभागी हूं। नये साल ने गुल खिलाना शुरू कर दिया है। किंतु हमें पूरा भरोसा है कि बादल कितनी भी कोशिश करें,ज्यादा देर तक सूरज को ढंक नही सकते। शेष आपकी तीखी गज़ल का इंतज़ार रहेगा। तरही की बेसब्री से प्रतीक्षा है। नये साल की शुभकामनाओं सहित,
जवाब देंहटाएंआपका-
रवि
गुरु देव को सादर प्रणाम,
जवाब देंहटाएंतरही मुशायरे की तारीख बढ़ जाने से कुछ रहत मिली है, प्रयासरत हूँ तरही में जलसडी से जल्द अपनी ग़ज़ल को शामिल करने के लिए और पहुँच जाऊंगा यह उम्मीद है , ग़ज़ल के कशावों के बारे में जानकार और ख़ुशी हुई , ग़ज़ल के सफ़र पर सभी को बधाई , नव वर्ष में इसकी शुरुयात की बेसब्री से इंतज़ार कर रहा हूँ और तरही की भी , २०१० वाला कार्टून देख खूब हसा , मगर गुरु देव आपका मन खिन्न है यह पढ़ कर दुःख हुआ है , अभी समय बहुत हो गया है वरना कॉल करले ता , मगर गुरु देव आप विचलित ना हों ... पर्वत कभी झुकता नहीं टूटता नहीं , ..
कुछ बात है की हस्ती मिटती नहीं हमारी , सदियों रहा है दुश्मन दौरे जहां हमारा...
उस रचना का इंतज़ार कर रहा हूँ गुरु देव ...
आपका
अर्श
सर, इजाज़त हो, तो हम भी शरीक हो जायें?
जवाब देंहटाएंवो आप ही हैं, जो नाम छुपा कर विवादों से बच रहे हैं, वरना तो ऐसे मुद्दे ढूँढ़े जाते हैं गुरु जी। चर्चित होने और हिट होने का अच्छा अवसर था.. गँवा दिया...!
जवाब देंहटाएंमगर चलिये इसी बहाने कुछ लोगो के असली चेहरे तो सामने आये। अच्छा दिखने और अच्छा होने के बच बड़ा लंबा फासला है गुरुवर...! इसे कम ही लोग तय कर पाते हैं।
मन में बहुत कुछ आ रहा है...मगर लग रहा है कि जब आप ही इस गुस्से को पी गये तो हम लोगों को भी आपसे सीख लेनी चाहिये
नये ब्लॉग पर खुद को आमंत्रण मिलने के प्रति वैसे मैं अन्य गुरुभाईयों की तरह निश्चिंत नही हूँ, क्यों कि मालूम है मैं आपकी सबसे लापरवाह और पिछड़ी छात्रा में आती हूँ...!
परंतु प्रातीक्षा है तरही और ब्लॉग दोनो की।
गुरुदेव ........ आपका खिन्न होना वाजिब ही होगा .......... पर जब शेर चलता है तो मखियाँ तो भिन्भिनाति ही हैं ......... आपको परवा नही करनी चाहिए .......... मुशायरा १ से शुरू होगा ..... मेरे लिए तो बुरी खबर है .......... १ से ५ तक मैं बाहर जा रहा हूँ ....... शायद पढ़ भी न सकूँ .......... कोशिश करूँगा कहीं से नेट खोलने की . ........
जवाब देंहटाएंगुरुदेव,
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम!
आपकी खिन्नता हमारा भी मन खिन्न कर गयी.मुझे विषय का पता नहीं है और जानने की इच्छा भी नहीं है.पता नहीं मुझे ऐसा लगता है कुछ लोग आप से ईर्ष्या रखते है.और आपको मिलने वाले शानदार प्रतिक्रियाओं को पचा नहीं पाते है.सब से अहम् बात तो यह है कि ऐसे लोग अपने को स्वयम्भू बड़ा मान कर चलते है और उनके लिए आप जैसे व्यक्ति को इतना शानदार और बौद्धिक रेस्पोंस मिलना उनकी अपने आप निर्मित शान के खिलाफ जाता है.पर ब्लॉग एक ऐसा माध्यम है जो हरेक व्यक्ति को सच्ची और मौलिक आजादी व रचनात्मकता प्रदान करता है.मेरा मानना है ब्लॉग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता इतना सटीक माध्यम है कि साहित्य के स्थापित स्वयम्भू सामंत इसे अपने लिए खतरा मानने लगे है.इसी के परिणाम में इस तरह के प्रकरण जन्म लेते है.आपकी सोच परिपक्व और सराहनीय है.नकारात्मक ऊर्जा को मोड़ कर रचना का सृजन करना आपसे सीखने और प्रेरणा लेने जैसा है.आपने कक्षाओं के माध्यम से गजल कि बारीकियां समझा कर आम व्यक्ति के रचना कर्म को महत्वपूर्ण समर्थन दिया है.और इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि इससे एक ऐसे साहित्यिक पर्यावरण का जन्म हो रहा है जो आने वाले पांच दस सालों में साहित्य पर कुछ लोगों के एकाधिकार को हमेशा के लिए खत्म कर देगा.इसका माध्यम अंतर्जाल और गूगल का देशी भाषाओँ में ट्रांसलिटरेशन तकनीक होगी.बस इसकी खीज ही कुछ लोगों को बेहद निम्न स्तर का व्यवहार करने को मजबूर करती है.आपकी प्रतिक्रिया प्रेरणा दायक है.
पर मेरी नजर तो उस बोतल पर है जो नव वर्ष पर खुलने वाली है.वैसे भी गुरुकुल में मेरे और गौतम भाई के अलावा किसी की रुचि उसमे नहीं होगी.तो हम दोनों उसे आधा आधा बाँट लेंगे! बस इसीलिए उसको घूर रहा हूँ.
हा हा हा!
सुबीर जी आपके नए कार्य के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ...नए ब्लॉग का बेसब्री से इंतज़ार है...गर देखने को मिल जाए तो क्या बात है...धन्यवाद !!!
जवाब देंहटाएंप्रणाम गुरु जी,
जवाब देंहटाएंनव वर्ष कि हार्दिक शुभकामनायें..............
नए ब्लॉग "ग़ज़ल का सफ़र" का बेसब्री से इंतज़ार है.
आजकल मेरी व्यस्तता थोड़ी बड़ी हुई है, जाने के दिन करीब आ रहे हैं और काफी काम थोप दिए गए हैं. इसी कारन ग़ज़ल लिखने का भी वक़्त नहीं मिल रहा है मगर कोशिश रहेगी कि जल्द ही ग़ज़ल भेज दूं, लगता है इस बार मैं ही सबसे देर कर रहा हूँ (कभी-कभी ये भी होना चाहिए),
ग़ज़ल की कक्षाओं में नयी जानकारियों का मिलना तो हमेशा ही हम नौसिखियों के लिए ज़रूरी है.
आपके खिन्न होने वाली बात पे इतना ही कहना चाहूँगा की जहाँ तक आपसे बात हुई है, मुलाक़ात हुई है उससे यही समझा हूँ की आप एक बहुत ही अच्छे और भावनात्मक इंसान है, नीरज जी की बातों से मैं सहमत हूँ की इस युग में रिश्तों की क़द्र करने वालों की कमी आ गयी है और बेमतलब की ज़िन्दगी जी रहे उन इंसानों की बातों का क्या बुरा मानना.
Wishing you sky…
जवाब देंहटाएंएक आसमान ...
And the shore . . .
एक साहिल
Wishing you meadows…
एक वादी
Where flowers galore…
महकती फूलों से
Wishing you company . . .
प्रियजन का संग साथ
And solace . . .
और कुछ ..एकांत
Lots of happiness …
खुशियों का समंदर
और हसीं हुस्न की बहार
and lots of grace !
All this and more for you in New year and always. . .
… And some more : )
ये सभी और भी बहुत सारा , इस नये साल में भी और हमेशा
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क्या माजरा है ? :-( मैं समझी नहीं ..पर अगर मेरा छोटा भाई दुखी है तब मुझे भी अवसाद है
हमारे सभी साथियों को नये साल के मंगल पर्व पर,
हार्दिक मंगल कामनाएं ......
अग्रिम आभार ...आपकी मेहनत रंग लायेगी
जलनेवालों की शामत ..आयेगी ;-)
अब मुस्कुरा दीजिये...
आज जश्न की रात और ये महफ़िल
बस वल्लाह ................
सादर, स - स्नेह,
- लावण्या