शनिवार, 16 जनवरी 2010

करूं काम तो मन बहुत गीत गाए, गया वक्‍त जाकर न फिर लौट पाए । तरही मुशायरे के विशेष आमंत्रित खंड में आज दो अग्रजाओं लावण्‍य दीदी साहब और शार्दूला दीदी को सुनें ।

आज तरही में विशेष आमंत्रित रचनाओं को सुनने का दिन है । पिछले शनिवार को हमने आज के दिन गीत और ग़ज़ल की जुगलबंदी सुनी थी । राकेश जी और प्राण साहब ने मिल कर समां बांध दिया था । आज भी एक जुगल बंदी है । आज की जुगल बंदी दो अग्रजाओं की है । इनमें भी शार्दूला दीदी से तो कविता बाकायदा कानूनी नोटिस भेज कर प्राप्‍त की गई है । लावण्‍य दीदी साहब  ने कानूनी नोटिस भेजने का अवसर नहीं दिया । केवल निवेदन पर ही उनकी कविता प्राप्‍त हो गई । तरही का पिछला अंक बहुत ही जबरदस्‍त अंक था । रविकांत और दिगम्‍बर दोनों ने ही धमाकेदार प्रस्‍तुति दी । दिगम्‍बर ने जिस प्रकार से शेर निकाले उससे मैं हतप्रभ हूं । ऐसा लग रहा था मानो अपनी भावनाओं का एक एक क़तरा निचोड़ कर शेरों में भर दिया है । शार्दूला दीदी और लावण्‍य दीदी साहब का परिचय देने की धृष्‍टता नहीं कर सकता । सुनिये दोनों अग्रजाओं  को और आनंद में डूबिये ।

शार्दूला दीदी का नाम परी और पंखुरी ने चॉकलेट वाली सिंगापुर बुआ रखा है । सही नाम रखा है क्‍योंक‍ि जितनी सुरीली आवाज़ शार्दूला दीदी की है उससे मुझे लगता है कि ये दिन भर चॉकलेट खाती रहती हैं । अपना ब्‍लाग नहीं बनाने पर अड़ी हैं और मेरा समर्थन उनके इस निर्णय को है । इन्‍होंने मेरी कहानी तमाशा को बहुत सुंदर तरीके से रिकार्ड करके भेजा है जो ब्‍लाग के साइड बार में विजेट पर उपलब्‍ध है कृपया उसे ज़रूर सुनें ।

shardula didiशार्दुला दीदी

करूँ काम तो मन बहुत गीत गाए
लिखूँ बैठने कुछ लिखा ही न जाए
ग़ज़ल बन गई एक सहमी चिरैया
उड़ाऊँ उड़े ना, बुलाऊँ न आए
समय एक माली, कि मैं फूल सूखा
न जाने नया साल क्या गुल खिलाए

ग़ज़ल पर दाद देने के साथ एक आपत्ति लगा रहा हूं आप सब मेरा साथ दें । आपत्ति ये कि मतला और दो शेर बस । सुनने वालों पर ये इमोशनल अत्‍याचार करना ठीक नहीं है । इतने सुंदर शेर निकाले और इतने कम निकाले । गौतम के ब्‍लाग से बाकायदा चुराई गई आपकी इस तस्‍वीर का होली के मुशायरे में जो कार्टून बनाया जायेगा उसके लिये अब आप स्‍वयं जिम्‍मेदार होंगीं ।( इसे धमकी समझा जा सकता है ) । और अब दाद, उफ क्‍या शेर निकाले हैं मतला तो ऐसा लगता है कि मेरे मन की ही बात लिख दी है । और ग़ज़ल को चिरैया बना कर क्‍या प्रतीक लिया है । वाह वाह वाह ।

lavnya didi sahabलावण्‍य दीदी साहब

दीदी साहब के बारे में क्‍या कहूं ऐसा लगता है मानो नेह की एक गागर लिये निकलती हैं और सबके ब्‍लागों पर अपने आशीष के रूप में छलकाते हुए निकल जाती हैं । जब भी वे ब्‍लाग पर आती हैं तो ऐसा लगता है मानो हज़ारों हज़ार ज्‍योति कलश ब्‍लाग पर छलक गये हैं । पूरा ब्‍लाग जगमगा उठता है । उनकी कविताओं के बारे में कुछ कहना अर्थात अपने ही शब्‍दकोश के अकिंचन होने की बात सार्वजनिक करना है जो मैं नहीं करना चाहता । पहले उनके शुभकामना संदेश और फिर तरही पर लिखा उनका विशेष गीत ।

आयी किरण धरा पर, लेकर शुभ सन्देश
तन, मन धन अर्पन कर,पाओ सुफल विशेष .
हो मंगलमय प्रभात पृथ्वी पर मिटे कलह का कटु उन्माद ,
वसुंधरा हो हरी - भरी , नित, चमके खुशहाली का प्रात !
 

मंगल कामना : वर्ष २० १० के लिए

गया वक्त जाकर न  फिर लौट पाए

न जाने नया साल क्या गुल खिलाये

समय की नदी में कहीं खो गये हैं

जो दामन छुड़ाकर के, गुम हो गये हैं,

पुकारो, पुकारो, उन्हें भी पुकारो

कोई बीते लम्हों को कैसे बुलाये ?

गया वक्त जाकर न  फिर लौट पाए

न जाने नया साल क्या गुल खिलाये ?

चिता पर शहीदों की आंसू बहे हैं

चिता संग माताओं के दिल जले हैं

जला " ताज " या उनका गुलशन था उजड़ा

धुंआ बन के जो नभ में जाकर समाए 

गया वक्त जाकर न  फिर लौट पाए

न जाने नया साल क्या गुल खिलाये ?

कहीं रंजो गम हैं, कहीं है मुसीबत,

वो बच्चों का रोना, वो बदहाल, हालत,

ए मालिक, रहम के जो कतरे मिलें तो,

ये दुनिया उजड़कर, संवर फिर से जाए,

गया वक्त जाकर न  फिर लौट पाए

न जाने नया साल क्या गुल खिलाये ?

[-- ताज महल होटल के हर शहीद  के परिवार को मेरी विनम्र अंजलि

इस आशा के साथ कि, आनेवाले साल में कोइ बुरा हादसा न हो ...]

ए मालिक, रहम के जो कतरे मिलें तो, ये दुनिया उजड़कर, संवर फिर से जाए, मुझे लगता है कि ये पंक्तियां बिल्‍कुल ह्रदय से निकली पंक्तियां हैं । मौन होकर सुनने के अलावा कुछ नहीं किया जा सकता है । श्रोता पर जादू करते हुए गुज़रती हैं ये कविता । ऐसा लगता है मानो समय भी स्‍तब्‍ध होकर कविता को सुन रहा है  । प्रणाम प्रणाम प्रणाम । मुझे आज्ञा दीजिये और आप आनंद लीजिये दोनों अग्रजाओं की कविताओं का ।

28 टिप्‍पणियां:

  1. शार्दुला जी को तो आपने धमका ही लिया...वाकई और सुनने का मन था और लावाण्या दी...क्या कहने!! आनन्द आ गया दोनों को पढ़कर. ये मुशायरा ही इस बार का...गजब ही गजब के गजब गुल खिलाये वाला हो गया है!!

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  2. शर्दुला जी को कल ही गौतम जी के ब्लाग पर पढा । अभी तो वो नशा भी नहीं उतरा था कि आज आपने एक और तोहफा दे दिया कैसे संभालेंगे खुद को
    करूंम्काम तो मन बहुत गीत गाये
    लोखूँ बैठने कुछ लिखा ही4 न जाये
    लगता है जैसे उन्हों ने बहुत से लोगों के दिल की बात कह दी है। कम से कम मेरे दिल की और सहमी चिरइया वाले शेर के लिये तो लिख ही दिया। शर्दुला जी को बहुत बहुत मुबारक मगर आपसे सहमत हूँ आपकी आपत्ति पर।
    उमकी आवाज़ मे आपकी कहानी सुन रही हूँ। सुन लूँ पहले पूरी
    लावण्या जी को क्या कहूँ उनकी प्रतिभा की तो पहले ही कायल हूँ उनकी मंगल कामनाओं ने मन प्रसन्न कर दिया उन्हें भी नया साल बहुत बहुत मुबारक
    समय की नदी मे कहीं गुम हो गये
    जो दामन छुदा कर के गुम हो गये हैं
    पुकारो पुकारो उन्हें फिर पुकारो
    कोई बीते लम्हों को कैसे भुलाये
    शायद ये भी मेरे दिल की आवाज़ है
    ए मालिक रहम के जो कतरे मिले थे
    ये दुनिया उजड कर संवर फिर से जाये
    बहुत ही सुन्दर । और शब्द तो मेरे पास नहीं है बस उनकी कलम को सलाम कर सकती हूँ।
    आपकी कहानी सुन कर आँखों मे आँसू आ गये । शर्दिला जी के सुनाने का ढंग आवाज़ का जादू पता ही नहीं चला किम कहानी कब खत्म हो गयी सही मे आपने एक औरत का दर्द इस पुरुष प्रधान समाज मे , इतने सश्क्त कथानक मे लिखा है कि दिल को छू गया। बहुत अच्छी कहानी है बस तारीफ के शब्द फिर मन मे नहीं आ रहे यही तो शर्5दुला जी ने अपने शेर मे भी कहे हैं । ये मुशायरा दिल पर गहरी छाप छोद गया और आपकी कहानी ने सोने पर सुहगे का काम किया है शर्दुला जी लावण्या जी को बधाई और आपको भी बधाई और आशीर्वाद ।इसी तरह सहित्य को एक ऊँचे मुकाम पर ले जाते रहें।

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  3. शर्दुला जी को कल ही गौतम जी के ब्लाग पर पढा । अभी तो वो नशा भी नहीं उतरा था कि आज आपने एक और तोहफा दे दिया कैसे संभालेंगे खुद को
    करूंम्काम तो मन बहुत गीत गाये
    लोखूँ बैठने कुछ लिखा ही4 न जाये
    लगता है जैसे उन्हों ने बहुत से लोगों के दिल की बात कह दी है। कम से कम मेरे दिल की और सहमी चिरइया वाले शेर के लिये तो लिख ही दिया। शर्दुला जी को बहुत बहुत मुबारक मगर आपसे सहमत हूँ आपकी आपत्ति पर।
    उमकी आवाज़ मे आपकी कहानी सुन रही हूँ। सुन लूँ पहले पूरी
    लावण्या जी को क्या कहूँ उनकी प्रतिभा की तो पहले ही कायल हूँ उनकी मंगल कामनाओं ने मन प्रसन्न कर दिया उन्हें भी नया साल बहुत बहुत मुबारक
    समय की नदी मे कहीं गुम हो गये
    जो दामन छुदा कर के गुम हो गये हैं
    पुकारो पुकारो उन्हें फिर पुकारो
    कोई बीते लम्हों को कैसे भुलाये
    शायद ये भी मेरे दिल की आवाज़ है
    ए मालिक रहम के जो कतरे मिले थे
    ये दुनिया उजड कर संवर फिर से जाये
    बहुत ही सुन्दर । और शब्द तो मेरे पास नहीं है बस उनकी कलम को सलाम कर सकती हूँ।
    आपकी कहानी सुन कर आँखों मे आँसू आ गये । शर्दिला जी के सुनाने का ढंग आवाज़ का जादू पता ही नहीं चला किम कहानी कब खत्म हो गयी सही मे आपने एक औरत का दर्द इस पुरुष प्रधान समाज मे , इतने सश्क्त कथानक मे लिखा है कि दिल को छू गया। बहुत अच्छी कहानी है बस तारीफ के शब्द फिर मन मे नहीं आ रहे यही तो शर्5दुला जी ने अपने शेर मे भी कहे हैं । ये मुशायरा दिल पर गहरी छाप छोद गया और आपकी कहानी ने सोने पर सुहगे का काम किया है शर्दुला जी लावण्या जी को बधाई और आपको भी बधाई और आशीर्वाद ।इसी तरह सहित्य को एक ऊँचे मुकाम पर ले जाते रहें।

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  4. शार्दूला जी और लावण्या दी को एक साथ प्रस्तुत कर आपने अचंभित कर दिया है...दोनों के काव्य के बारे में कहना मेरे बस में नहीं है...जो काव्य दिल को छुए उसे शब्द नहीं दिए जा सकते...शार्दूला जी से शिकायत है इतनी खूबसूरत ग़ज़ल कहते कहते पता नहीं अचानक रुक क्यूँ गयीं? ग़ज़ल को सहमी चिड़िया का संबोधन विलक्षण है...लावण्या जी की कलम से निकला हर शब्द सीधा दिल में उतरता है...इस अद्भुत भावपूर्ण गीत के लिए उन्हें प्रणाम...आपके हम सभी आभारी हैं जिनकी बदौलत साहित्य का ये अनमोल खज़ाना हमें बिना कुछ किये लूटने को मिल रहा है...

    नीरज

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  5. गुरूजी, शार्दूला दी और लावण्या दी को पढ़कर आनंदित हूं और बार-बार पढ़ रहा हूं। ऐसे खो गया हूं जैसे किसी ने एक साथ ही "स्तंभन, मोहन, मारण, बाजीकरण, विद्वेष और उच्चाटन" इन समस्त तंत्र शक्तियों का प्रयोग कर दिया हो मुझ पर!
    "गज़ल बन गई इक सहमी चिरैया" अद्भुत प्रयोग है इतना अद्भुत कि प्रशंसा करने में अपने शब्दकोष की दरिद्रता का प्रत्यक्ष भान होता है। आपकी आपत्ति को पूरा समर्थन।
    आगे चलूं तो लावण्या दी का "पुकारो पुकारो और रहम के कतरे वाली बात पर एक बार फ़िर से निःशब्द हो गया हूं। बहुत सुंदर!

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  6. lavany ji kee rachana dil chho gai, schmuch jyoti kalash chhalak uthe. shardula ji ke sher bhi sundar n pde hai.

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  7. कल ही गौतम भाई के ब्लॉग पर शार्दूला दी की रचनाओं का रसास्वादन किया था. आज पुनः: उनको सुनकर मन बहुत खुश हुआ. कितने सलीके से संवेदनशील बिम्बों का प्रयोग करती हैं... और हम बच्चे की तरह पढ़ते हैं....

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  8. लावण्या दीदी के सन्देश ने शुभकामनाओ की तिजोरी खोल के रख दी... गीत में दर्द हैं श्रंद्धांजलि है... प्रार्थना है...ऐ मालिक.....

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  9. गुरूजी, आपकी प्रस्तुति लाजवाब है.

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  10. कहानी हृदयविदारक है... आवाज़ में जादू है... दंग रह गया मैं...

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  11. पंकज जी, आदाब
    शार्दुला जी के मतले और दो शेर कम नहीं, बल्कि कई ग़ज़लों पर भारी हैं
    ग़ज़ल बन गई एक सहमी चिरैया
    उड़ाऊं उड़े ना, बुलाऊं न आए
    वाह.! क्या खूबसूरत भाव पेश किये हैं,
    और
    लावण्य जी का गीत, खासकर ये पंक्ति-
    चिता पर शहीदों की आंसू बहे हैं....
    भाव विभोर कर गईं

    आज की रचनाओं ने
    आपके आयोजन की गरिमा को
    शिखर पर पहुंचा दिया है
    शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

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  12. दोनों अग्रजाओं को नमन है। ताज को लेकर रचे गये लावण्या दी के बन ने अजब ढ़ंग से छुआ है...पूरा गीत ही बहुत खूबसूरत बना है।

    और शार्दुला दी..तुस्सी ग्रेट हो दी।

    कहानी अभी हटाइयेगा नहीं गुरुदेव साइड-बार से...

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  13. सुबीर साहब
    कल ही तो गौतम जी के ब्लॉग पर शार्दूला जी को पढ़ा था....क्या ज़बरदस्त पोस्ट थी गौतम जी की कलम से..,......खुमार उतरा भी नहीं था की आपने एक और तोहफा दे दिया......एक ही कमी रही की एक मतला और महज दो शेर यह अलग बात थी ये तीनों शेर पूरी ग़ज़ल से कम नहीं थी.........लावण्या जी ने भी क्या कहर ढाया है..........! सुबीर साब आपको बहुत बहुत साधुवाद......उत्कृष्ट सृजन कार्य के लिए.

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  14. बहुत खूबसूरत हैं दोनों ग़ज़लें...उनके हर शे'र उमदा हैं कि क्या कहने...बस बार-बार पढ़ने का मन हो रहा है...आभार

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  15. LAVANYA SHAH AUR SHARDULA DONO KEE
    RACHNAAYEN PADH GYAA HOON.KHOOB
    LIKHA HAI DONO NE ! SHARDULAJEE KE
    " CHIRAIYA" WAALE SHER MEIN TAAJGEE
    HAI.LAVANYA JEE KE GEET KEE KAEE PANKTIYON MEIN GAZAL KAA ANOOTHAPAN
    HAI.DONO KO BAHUT-BAHUT BADHAAEE
    AUR SHUBH KAMNA

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  16. इस बार तो हिट पे हिट सिरीज़ चल रही है, हम जैसे लोगो को अंत मे लगा कर क्या इस बार ट्रैजिक एण्ड कराने का विचार है गुरुवर...!!

    शार्दूला दी के तीन तो यूँ भी हम जैसों के तीन सौ पर भारी पड़ते हैं।

    और लावण्या दी की कविता में संवेदनशीलता तो हमेशा ही रहती थी, इसबार हर बार से अधिक लयबद्धता भी थी।

    दोनो ममत्व भरे व्यक्तित्व को एक साथ पढ़ना बहुत अच्छा लगा गुरुवर....!!

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  17. आज का मुशायरा नए अंदाज़ में है. शार्दूला जी, सहमी चिरैया अकेली ही पूरी रचना पर छा गई. पढ़कर आनंद आ गया.
    लावण्या जी के शुभकामना सन्देश ने तो आज की पोस्ट में सोने में सुहागा का काम कर दिया. बहुत सुन्दर!
    लावण्या जी ने गीत में ऐसे सुन्दर भावों और शब्दों को सजाया है कि पढ़ते ही बार बार पढ़ने से भी दिल नहीं भरता. आपकी अनुमति के ही ब्लॉग के नियम की अवहेलना करके पूरे गीत को टाइप करके सहेजने का लोभ संवरण नहीं कर सका. सुबीर जी और लावण्या जी इस धृष्टता के लिए क्षमा करना. गीत के आनंद के साथ साथ बीच बीच में ग़ज़ल का भी आनंद आ रहा है. सुबीर जी की प्रस्तुति के लिएआभार.

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  18. दोनो रचनाकारों को नमन। बहुत अच्छी रचनायें।

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  19. गजल बन गई एक सहमी चिरैया
    उडाऊ उड़े ना, बुलाऊँ न आए

    शार्दुला दीदी जी की इस शेर की जीतनी भी तारीफ की जाए कम है.

    लावण्य दीदी ने तो पूरी नज्म ही लिख दी.

    ..अच्छे पोस्ट के लिए आभार.

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  20. मन भावन शब्दावली में दिल से निकली हुई दुआएं और शुभकामनाएं आने वाले सभी हादसों की रहे रोकने में समक्ष होंगी . लावण्या और शार्दूला जी की पुर असर रचनायें पद कर मन आनंदित हो गया

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  21. शार्दुला जी को तो गौतम जी के ब्लॉग पर पढ़ा था तो लगा था की दुबारा कब और कैसे पढ़ुंगा ........... और आज इतनी जल्दी दुबारा मौका मिल गया ............ वो भी इस मुशायरे में .......... ग़ज़ल बन गयी एक सहमी सी चिड़िया ........ इस कमाल की लेखनी से इतना कम (बस ३ ही शेर) पढ़ने को मिला है की प्यास नही बुझी .......
    और लावण्य दी के बारे में कुछ भी कहने की न मेरी हैसियत है न मेरी ज़ुबान खुलेगी ....... बस ऐसा लग रहा है जैसे आनंद के सागर में गोते लगा रहा हूँ ........ साहित्य की गगरी छलक रही है और में प्यासा बस पिए जा रहा हूँ ... न गगरी में जल ख़त्म हो रहा है न मेरी प्यास ...........

    गगरी से जल ज्यों छलकता ही जाए
    न जाए मुशायरा ये क्या गुल खिलाए ....

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  22. इस साल के शुरू से थोड़ी मसरूफ़ियत थी, जो अब जा के कम हुई है. सुबीर भैया का ब्लॉग पढती रही हूँ और ख़त में लिखती रही हूँ उन्हें. इस बार तरही में खुद हिस्सा नहीं लिया तो दर्शक दीर्घा से दिल खोल के सीख रही थी. पर कल १० मिनट को आनलाईन आयी और पाया कि किसी कमेन्ट में लिखीं हुईं impromptu सी पंक्तियाँ सुबीर भैया ने पोस्ट कर दीं हैं तो देख के सिर पकड़ लिया :) :). डिनर था घर पे कल और ऊपर से सिंगापुर और सीहोर बीच "बंगाल की खाड़ी" है सो भैया बच गए :):) खैर छोड़िये . . .
    ==========
    अब तक जो तरही में पढ़ा उसमें से जो कुछ मन में घर कर गया, वह लिख रही हूँ इक्कठा आज. कमेन्ट लंबा होगा...सो माफी... :(
    पहले आज़म साहब की शुरुआत थी ... एक शेर जो कहता था कि फ़रिश्ते जहाँ मुश्किल से चलते हैं वहाँ दौड़ा करते हैं वे... वाह!
    फ़िर पंकज जी ने कहा कि अगर टूटते हैं तो सपनों को टूटने दीजिये, दुबारा नए सजाईये ..., वाह!
    पाखी जी ने दो बहुत ही प्यारी बातें कहीं... मेरे हौसलों में कमी बस न आए और रिआया ही पत्थर कोई अब उठाये ... याद रह गए ये मिसरे!
    इसके बाद वाली पोस्ट पे भैया को एक लंबा सा ख़त भेजा था मैंने. पर ख्यालात अंग्रेज़ी में उमड़े क्योंकि लंच में पढ़ा था आफिस में, सो पोस्ट नही किया उसे कमेन्ट में. दिलो-दिमाग पे छाजाने वाले वे ग़ज़ल और गीत थे आदरणीय प्राण जी और गुरुजी राकेश खंडेलवाल जी के.
    प्राण साहब के लेखन में जो सादगी है वह तभी आ सकती है जब हम इस भावना से ऊपर उठ जायें कि भाई हमें ये दिखाना है कि हमारे विचार कितने ऊँचें और कितने चमकृत करने वाले है. वरना उनके stature और अनुभव वाले लेखक के लिए चौंकाने वाला कुछ भी लिखना बहुत आसान है. ये लिखते लिखते ...परवीन शाकिर याद आ गईं ... "अब इतनी सादगी लायें कहाँ से..."
    प्राण शर्मा जी के "पतंग उड़ाना सुहाता है मुझको , ज़रूरी नहीं कि उसे भी सुहाए" वाला बिम्ब और दीये सी खूबियों से खुद को महल सा सजाने वाला बिम्ब अभी तक मन में है.
    गुरुजी के गीत के लिए मैं कुछ भी नहीं कहूंगी. बस नमन! . . . और नमन! अपने आप से कहूंगी ... सीख कुछ तो मन! एक कतरा भी समझ तो कल्याण हो जायेगा!
    ....पर बिना ये लिखे आगे नहीं बढ़ पा रही... कि सीख शार्दुला कैसे एक मिसरे को बदला जाता है ये कह कि "ये अंदेशा पल भी पालें न मन में कि ..."
    निर्मल सिद्दू साहब का "नया भी पुराने के अन्दर से आए... " याद रह गया अब तक!
    शाहिद मिर्ज़ा साहब का दिलों से दिलों तक की खिडकी, उफ्फ ... और ये मुहबब्त x ४ , by God!
    फ़िर दिगंबर नसावा जी की ग़ज़ल ठेठ उस दिन जिस दिन माँ के हाथ की खिचड़ी याद कर के , सुबह-सुबह सुबीर भैया का "सावन " का गीत सुन के और प्यारेलाल का surprise ब्लॉग पोस्ट पढ़ के मन इतना रुआंसा हो रहा था. तुरंत पंकज भैया को लिखा कि आज कुछ न लिख पाउंगी !!
    दिगंबर जी की गज़ल का कोई भी शेर छूटे तो कोई और लिखूँ... हर शेर उम्दा, हर शेर धुआँसा-धुआँसा, याद से लिपटा!! टू मच!
    आपको सलाम दिगंबर जी ! जानलेवा लिखा है आपने!
    ऎसी ग़ज़ल भेजने वालों को सुबीर भैया आप सख्त हिदायत दे दीजिये की वे भारत का टिकट लगा के भेजां करें ग़ज़ल... मैं सिंगापुर मैं हूँ ..उनको यूं.एस. और कनाडा वालों से सस्ता रहेगा मेरा टिकट :)
    रविजी का "क़यामत सी गुज़री वो जब मुस्कुराए... " :). और ये चकला, बेलन वाला .. कैसे सोचा होगा, सोचती रह गयी... और फ़िर नदी तीर कान्हा और कोई तो बुलाये दोनों में कितनी कसक! वाह!
    फ़िर अपना कमेट में हाथों- हाथ लिखी पंक्तियाँ देखीं as a post, ... सिर का पकड़ना तब जा के ख़त्म हुआ जब लावण्या दीदी की कविता पढ़ी! वाह क्या बात है! सच में मन उंडेल के रख दिया है दीदी ने ! समय की नदी में कहीं खो गए हैं... जो दामन छुडा करके गुम हो गायें हैं ..बहुत हृदय विदारक!!
    ए मालिक रहम के जो कतरें मिलें तो... बहुत ही मन से लिखा हुआ... मन को छूता हुआ गीत! बहुत आभार आपका लावण्या दीदी!
    ----
    अब "तमाशा" के बारे में. सुनने वालों को पता ही चल गया होगा की पूरी कहानी रोते-रोते पढ़ी गयी है. सुबीर भैया को धन्यवाद स्त्री मन के गुस्से और hurt को इतनी खूबसूरती से पहचानने और लिखने के लिए.
    ----
    अब आप पूरा कमेन्ट पढ़ के भी मुझे मारने सिंगापुर नहीं पहुंचे हैं तो बंगाल की खाड़ी को फ़िर से धन्यवाद :) :)... सादर शार्दुला

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  23. सोन चिरैया ये शब्द अपनी दादी माँ से सूना करता था कुछ कहानियो में. सोते वख्त वो सुनाया करती थी..
    और आज श्रदुला दी की ग़ज़ल में इतनी खुबसूरत से लगाया है सहमी चिरैया
    के रूप में के अब कहने को कुछ नहीं रह गया .. सिर्फ तिन शे'र में ही
    मैं तो ठिठक गया कुछ और शे'र कहे होते तो फिर क्या होता सारे लोग ऐसे ही अपने शब्दों
    की कमजोरी पर कमोबेश गिरेबान झाँक रहे हैं...
    और लावण्या दी की संवेदनशीलता के बाते में क्या कही जाए जब भी उनकी
    पोस्ट पढता हूँ वो कमाल के होते हैं... और इस बारी भी वही बात हुई है
    दोनों अग्रजाओं को सादर प्रणाम ... तरही तो अपने शबाब पर है
    क्या खूब जमी है इस बारी ...

    श्रदुला दी की आवाज़ में तमाशा ... गौतम जी की उफ्फ्फ्फ़ वाली बात है

    अर्श

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  24. वरिष्ठ जनों की रचनाओं पर क्या कहूं? अतिसुन्दर.

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  25. शार्दूला जी जो को गौतम जी के ब्लॉग पर पढ़ा, उनकी आवाज़ बहुत मधुर है और वो बहुत स्नेहिल है उनके ये तीनों ही शेर बहुत पसंद आये
    काश कि पंकज जी थोडा और धमका पाते तो कुछ और शेर पढने मिल जाते
    लावण्या जी की कलम की तारीफ सूरज को रोशनी दिखाने जैसा है
    उनको पढना हमारी किस्मत है
    पंकज जी का शुक्रिया जिन्होंने इतने अच्छे अग्रजों को पढने का अवसर दिया

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  26. नमस्ते पंकज भाई ,
    अभी अभी आपके ब्लॉग पर सार्दूला जी के संग , मेरी आपके स्नेह से संवारी हुई गीत - ग़ज़ल पढी
    और आदरणीय महावीर जी की सलाह को शिरोधार्य कर रही हूँ ...
    आप भी पढ़ें और आशा है मेरा साथ देंगें ताकि , मेरे अनुज ,
    गुणी भाई के मार्गदर्शन से सीखती रहूँ ........
    सीखने की कोइ उमर नहीं होती ..
    ऐसा मैं , द्रढ़ता से मानती हूँ .....
    मेरा लेखन -- सीधा ह्रदय से निकलता है
    ..जैसा भाव उमड़ता है ...वैसा ही ,
    बिना किसी छद्म या आडम्बर के ,
    सीधे ही , लिख देती हूँ
    और आप के ममत्वपूर्ण संबोधन
    " दादा भाई " और " दीदी साहब "
    और साथ आपका अपना लेखन व आपकी
    रचना धर्मिता से ये जान पायी हूँ कि, आप में ममता व स्नेह की छाँव के साथ साथ ,
    सामाजिक विद्रूपताओं तथा अन्याय के विरुध्ध ललकार फेंकने की हीम्मत और जज्बा भी खूब है .
    दूर से ही सही, यह सब नज़र आ रहा है --
    अब आ. महावीर जी का लिखा भी पढ़ लीजिये
    ------------------------------------" आपको एक मशवरा देना चाहता हूँ. हो सके तो प्राण शर्मा जी या पंकज सुबीर जी से संपर्क करें जिससे ग़ज़ल के नियमों से अवगत हो सकें. आपके लिए यह मुश्किल नहीं होगा, मुझे इस बात का यक़ीन है. कुछ ही दिनों के बाद आपकी ग़ज़लों की डिमांड इतनी हो जायेगी कि आप ख़ुद ही विस्मित हो जायेंगी.
    महावीर शर्मा
    January 13, 2010 11:13 ऍम
    -------------------------
    तरही मुशायरे में , मेरी रचना को संवार कर प्रस्तुत करने के लिए आपका कोटिश: आभार ..................
    घर
    पर सभी को मेरे स स्नेह नमस्कार
    आपकी बड़ी बहन,
    - लावण्या के स्नेहाशीष

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  27. गुरु जी, शार्दूला दीदी को एक और कानूनी नोटिस भेजे और ज़रुरत पड़े तो हम सब गवाहों के हस्ताक्षर भी ले ले.
    @ शार्दूला दीदी, बहुत नाइंसाफी है दीदी जी, "ग़ज़ल बन गयी एक सहमी चिरैय्या......." और "समय एक माली................" दोनों ही शेर आपकी मौजूदगी को मुकम्मल कर रहे हैं, मगर सभी की विनती सुनिए और जल्द ही और शेरों से सभी को रूबरू करवाइए.
    @ लावण्या दीदी जी, आपके गीत के बारे में कुछ कहने और लिखने की गुस्ताखी मैं नहीं कर सकता हूँ. बहुत बहुत अच्छा गीत है, हर बंद एक अलग एहसास के साथहै.

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