मंगलवार, 12 जनवरी 2010

मुहब्बत मुहब्बत मुहब्बत मुहब्बत, ये क्या कर दिया उसने बैठे बिठाये नये साल का तरही मुशायरा । आज सुनिये निर्मल सिद्धु और शाहिद मिर्जा को तरही मुशायरे में ।

पहले सोचा था कि एक बार की पोस्‍ट में केवल दो ही शायरों को लगाया जायेगा किन्‍तु जिस प्रकार से तरही के लिये ग़ज़लें प्राप्‍त हुई हैं उसके कारण लगता है कि यदि जनवरी में समापन करना है तो इस निर्णय को बदलना होगा या फिर एक सप्‍ताह में तीन पोस्‍ट लगानी होंगीं ।  सप्‍ताह  की पहली दो पोस्‍ट होगी तरही की तथा तीसरी पोस्‍ट होगी तरही के लिये विशेष आमंत्रित सम्‍माननीय जनों की रचनाएं जिसमें आपने पिछली बार आदरणीय राकेश जी तथा प्राण जी की रचनाएं पढ़ीं । इन स्‍थापित रचनाकारों के लिये हमने तरही के कोई बंधन नहीं रखे हैं हमें तो बस इनका आशिर्वाद चाहिये वो चाहे जिस स्‍वरूप में मिले । गीत हो ग़ज़ल हो छंदमुक्‍त कविता हो या और कुछ भी हो । उसमें भी तरही के मिसरे की बाध्‍यता भी नहीं है ।

न जाने नया साल क्‍या गुल खिलाए

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आज के तरही में दो शायर आ रहे हैं और दोनों ही तरही में पहली बार आ रहे हैं । दोनों के बारे में जानने पर ज्ञात हुआ कि दोनों ही बहुत अच्‍छे शायर हैं तथा नये तेवरों के साथ ग़ज़लें लिखते हैं ।  निर्मल सिद्धु और शाहिद मिर्जा को सुनिये और आनंद लीजिये ।

nirmal sidhu

निर्मल सिद्धु 

सक्रिय ब्‍लागर हैं हिन्‍दी राइटर्स गिल्‍ड के नाम से अपना ब्‍लाग चलाते हैं जहां पर अपनी काफी अच्‍छी ग़ज़लों तथा गीतों का नियमित प्रकाशन करते हैं ।तरही में पहली बार आ रहे हैं अत: स्‍वागत करें इनका ।

न जाने नया साल क्या गुल खिलाये

बना दे किसे और किसको मिटाये

समय की ये आदत पुरानी जो ठहरी

मुहब्बत में हरदम जुदाई दिखाये

कोई साथ इसके चले ना चले पर

ये सबको लिये जा रहा है भगाये

बड़े शौक़ से हम सजाते हैं सपने

घनी आँधी पल में उड़ा के ले जाये

नये साल आते यूं हरदम रहेंगे

कोई चाहे कितना ही इनको दबाये

असर आज का कल पे पड़ता ज़रूरी

नया भी पुराने के अंदर से आये

नया नाम निर्मल का महफ़िल में आया

ये क्या कर दिया उसने बैठे बिठाये

वाह क्‍या शेर निकाले हैं निर्मल जी ने और बिल्‍कुल आनंद भर दिया मकते के अनुरूप ही न जाने क्‍या कर दिया है बैठे बिठाये । समय की ये आदत पुरानी जो ठहरी जैसे शेर निकाले हैं निर्मल जी ने और तरही में आते ही धमाकेदार इन्‍ट्री ली है ।

shahid mirja

शाहिद मिर्जा

सक्रिय ब्‍लागर हैं तथा जज्‍़बात के नाम से अपना ब्‍लाग चलाते हैं  जहां पर ग़ज़लों को प्रकाशित करते हैं । तरही में पहली बार आ रहे हैं ।

नए साल हर दिन हों रहमत के साए

हर इक लम्हा खुशियों का पैगाम लाए

बुलंदी के आकाश पर जाके छाए

ये 'सोने की चिड़िया' मधुर गीत गाए

न बदले कभी ये बहारों का मौसम

महकता चमन ये महकता ही जाए

दिलों से दिलों तक सदाओं की खातिर

कोई तो हो, जो एक खिड़की बनाए

मुहब्बत मुहब्बत मुहब्बत मुहब्बत

ये आवाज़ हर दिल की धड़कन से आए

ज़रूरत हों पूरी हर इक, हर बशर की

तमन्ना अधूरी कोई रह न पाए

उमीदों के गुलशन की शाखों पे शाहिद

'न जाने नया साल क्या गुल खिलाए'

मुहब्‍बत भाई चारे और वतनपरस्‍ती से भरी ऐसी ग़ज़ल के लिये क्‍या कहूं । किसी भी एक शेर की तारीफ करके किसी दूसरे शेर को कम कैसे कह दूं । और मेरे विचार से तरही की एक श्रेष्‍ठ गिरह भी बंध चुकी है । फिर भी मुझे लगता है कि बुलंदी के आकाश पर जाके छाए ये शेर जिस प्रकार वतनपरस्‍ती और देशभक्ति के जज्‍बे से भरा है उस शेर के लिये खड़े होकर तालियां बजाना ज़ुरूरी है आप भी मेरे साथ खड़े होकर तालियां बजाएं । मुहब्बत मुहब्बत मुहब्बत मुहब्बत ये प्रयोग भी इस बहर में खूब किया जाता है तरही में इन्‍होनें पहली बार किया है ।

पिछली बार के पोस्‍ट पर शाहिद मिर्जा जी ने एक प्रश्‍न उठाया है चूंकि गीत का प्रश्‍न है इसलिये मैं चाहूंगा कि रवि इस प्रश्‍न का उत्‍तर दे ।

सूचना : तरही के लिये लिस्टिंग पूर्ण हो चुकी है अत: अब कोई नयी ग़ज़ल नहीं भेजें । जो पूर्व में भेज चुके हैं तथा यदि वे अपनी ग़ज़ल में कुछ संशोधन करना चाहते हैं तो कर सकते हैं । चलिये मुझे आज्ञा दीजिये और आनंद लीजिये इन दोनों शानदार ग़ज़लों का । दाद देते रहिये । ग़ज़ल के सफ़र पर इस सप्‍ताह ग़ज़ल की विधिवत कक्षा प्रारंभ हो जाएगी ।

27 टिप्‍पणियां:

  1. शाहिद मिर्जा साहेब और हमारे टोरंटो के ही भाई निर्मल सिद्धु जी को पढ़कर आनन्द आ गया.

    वाह जी,
    इस तरही मुशायरे ने तो गजब गुल है..
    अब जो भी हो मरजी नया साल खिलाये..

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  2. दोनों ही ग़ज़लें एक से बढ़कर एक रहीं. शुक्रिया कवियों का और आपका भी. सभी को नव वर्ष की मंगल कामनाएं!

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  3. जनाब शाहिद मिर्जा साहब और भाई निर्मल सिद्धु जी ने क्या खूब गज़लें लिखीं हैं --
    देशभक्ति से लबरेज़ , जज्बा
    अद्भुत समा बाँध गया है
    आप दोनों को ,
    बधाई व नव वर्ष २०१० की शुभकामनाएं
    सादर, स - स्नेह,
    - लावण्या

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  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  5. यह तरही तो पहले ही परवान चढ़ चुका था अब शबाब बरस रहा है. निर्मल सिद्धु जी और शाहिद मिर्ज़ा 'शाहिद' जी के ग़ज़ल ने आज नए नए रंग दिखाए हैं.

    मैंने खड़े होके ताली बजाये हैं. वाकई शेर ही कुछ ऐसे हैं.

    और गुरुदेव आपकी प्रस्तुति तो ठण्ड में अलाव का काम कर रही है. बहुत शुक्रिया आप सभी का.

    - सुलभ

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  6. इस तरही मुशायरे तो समझिये लूट ही लिया हमें...एक से बढ़ कर एक कद्दावर शायर अपनी बुलंद शायरी से नवाज़ रहे हैं हमें...वाह वाह करते ज़बान और तालियाँ बजाते हथेलियाँ थकने अलगी हैं, अभी तो आगाज़ है...अंजाम तक क्या होगा...???

    निर्मल सिद्धू और शाहिद मिर्ज़ा साहेब जिन्हें हम अक्सर उनके ब्लॉग पर पढ़ते हैं और उनकी शायरी के मुरीद हैं को ढेरो बधाईयाँ ऐसी दिलकश ग़ज़ल पेश करने पर.

    गुरुदेव, आप तो खैर तारीफ़ के हकदार सब से पहले हैं...गर पेड़ ही न होता तो ये फूल कहाँ खिलते...:))

    नीरज

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  7. इसे पढ़ने के बाद लगा कि मैं एक सदाबहार उत्तेजना महसूस कर रहा हूं।

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  8. दोनो ही नये लोग कहीं से नये नही लगे।

    निर्मल जी का शेर

    नया भी पुराने के अंदर से आये

    और शाहिद जी की शुभकामना

    बुलंदी के आकाश पे जा के छाये,
    ये सोने की चिड़िया मधुर गीत गाये


    आहा ...!!! आमीन...!

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  9. दोनो कमाल के शेयर हैं ......... शाहिद मिर्ज़ा जी और निर्मल जी की शायरी ने इस मुशायरे को और भी बुलंदी पर पहुँचा दिया है ........ अपना अलग अलग अंदाज़ है ....... अपने ही तेवर हैं दोनो के ............ पढ़ पढ़ कर रोमांचित हो रहा हूँ मैं

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  10. Bhai Pankaj Subeer ji,
    Is tarahi mushaire men donon hi shayaron ki behad umda ghazalen aapne prastut ki hain.Shri Nirmal siddhu ka sher 'koi sath iske chale na chale par ye sabko liye jaa raha hai bhagaye' wah wah kya bat kahi hai. Isi tarah Bhai Shahid Mirza ke sher 'dilon se dilon tak sadaaon ki khaatir koi to ho jo ek khidki banaaye'. aur 'muhabbat muhabbat muhabbat muhabbat ye aawaz har dil ki dhadkan se aaye.' bahut hi khubsurat sher hain badhai aapko bhi tatha Nirmal Siddhu aur Bhai Shahid MIrza ko bhi.
    Chandrabhan Bhardwaj

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  11. प्रणाम गुरु जी,
    हर तरही अपने पिछली तरही के कीर्तिमानों को तोड़कर आगे बढ जाती है, ये एक बहुत अच्छा संकेत है.
    इस बार के अंक में दो नए शायर इस तरही में नए है मगर वैसे तो माहिर लोग हैं.
    @ निर्मल सिद्धू जी की ग़ज़ल का मतला बहुत अच्छा बना है, उसके बाद तो समां बध गया है, जो शेर दिल को छु गए हैं वे है...........
    "कोई साथ इसके चले ना चले............"
    "असर आज का कल पे............."
    @ शहीद मिर्ज़ा जी ने हर शेर को इतनी खूबसूरती से तराशा है उसके कहने ही क्या, हर लफ्ज़ चुन चुन के पिरोया हुआ है.
    जो शेर मुझे बेहद पसंद आये वो हैं.
    "दिलों से दिलों तक..................."
    "मुहब्बत मुहब्बत................."
    "ज़रुरत हो पूरी.........."
    और गिरह तो वाकई उम्दा और बेहतरीन है.
    दोनों शायरों को तहे दिल से लाख लाख बधाइयाँ

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  12. subeer ji aisi ghazlen padhwane ke liye dhanyvad
    nirmal siddhu ji ka matla hi bahut khoobsoorat hai
    shahid sahab ka har sher zinda dili ka suboot hai kkhas taur se
    dilon se dilon tak ............
    ye sher to poori ghazal ka hasil laga mujhe ,bahut khoob .

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  13. है सम्वाद सेवा पे गज़लों का मौसम
    कोई छोड़ इसको कहाँ और जाये
    ये वज़्म-ए-एअद्ब जो सजी है यहा पर
    दिये जा रही लुत्फ़ बैठे बिठाये
    कहा दिल ने शाहिद की पढ़ के गज़ल ये
    खुदा इनको हर इक नजर से बचाये
    कहे सिद्धू साहब ने अशआर सुन्दर
    नई ये गज़ल है नई दाद पाये

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  14. दो दिन कम्पयूटर खराब रहा तो मन भी परेशान था आज जैसे ही ठीक हुया तो सब से पहले आपकी मेल खोली बस फिर क्या था दो दिन की परेशानी एक मिनट मे गायब्-क्या गज़लें पेश की हैं शाहिद मिर्ज़ा जी की कलम का जादू ते बहुत बार देखा है । निर्मल सिधू जी को भी पहले पढा है इनके ब्लाग पर । दोनो की गज़ल मे कोई ऐसा शेर नहीं जो पसंद न आया हो तो फिर एक आध शेर कोट के पूरी गज़ल शान कम नहीं करना चाहती। आप इस शानदार मुशायरे के लिये बधाई के हकदार हैं शाहिओओद जी और निर्मल सिधू जी को भी बहुत बहुत बधाई।सिर झुका कर दाद दे रही हूँ इस मुशायरे को । धन्यवाद्

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  15. आदरणीय पंकज जी, प्रणाम
    हालांकि मुशायरे में खुद शरीक होने के कारण
    टिप्पणी करने में संकोच हो रहा है
    लेकिन जिस अन्दाज में आपने भूमिका बनाई है,
    और 'संचालन' किया है, उसके लिये
    आपको जितनी भी दाद दी जाये, कम है
    वो एक शायर ने कहा है न,
    'आज पहली बार उसने गुनगुनाए मेरे शेर
    आज पहली बार अपनी शायरी अच्छी लगी'
    शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

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  16. निर्मल जी और शाहिद साब की तरही ने पहले से ही उफ़ान पर चढ़े मुशायरे को और बुलंदी प्रदान कर दी।

    ...और ये दोनों नाम इस तरही के लिये नये हों ,लेकिन ग़ज़ल-गांव से इनका पुराना वास्ता है{सुन रही हो, कंचन?}

    हफ़्ते में तीन पोस्ट का विचार अत्युत्तम है गुरुदेव। हमारे जैसे जिज्ञासुओं के लिये तो हफ़्ते में पाँच भी कम ही लगेगा....

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  17. रौनके बज्म में शाहिद मिर्ज़ा और जनाब निर्मल सिद्धू जी की ग़ज़लों
    से जो शम्म जली है उससे रौनक और शबाब पर है ...

    पहली मर्तबा ही पढ़ रहा हूँ सिद्धू साहिब को क्या खूब खयालात
    गढ़े हैं इन्होने ...भगाए शब्द का उपयोग बढ़िया है और .... नया भी
    पुराने के अन्दर से आए .. सही कहा है .... बढ़ाई कुबुलें ..
    जनाब मिर्ज़ा साहिब ने भी खूब शे'र निकाले हैं ...मतला ही कमाल
    का बन पडा है और फिर ग़ज़ल के क्या कहने ...मुहब्बत मुहब्बत
    यह प्रयोग भी बढ़िया है ,ऐसा ही प्रयोग पिछली दफा अभिनव भाई ने किया
    था... खूब तालियाँ इस बात पर ... सच में गुरु जी ने सच ही कहा है
    सर्वश्रेष्ठ मक्ता और गिरह ...अभी तक के ग़ज़लों में ...

    बधाई दोनों ही नए शईरों को इस रनके बज्म में तरही के ...

    और गुरु जी आपको सादर प्रणाम..:)

    अर्श

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  18. इस बार का तरही मुशायरा जिस तरह से बढ़ रहा है उससे इतना तो समझ ही चुका हूं कि इस पूरे आयोजन की कमजोर कड़ी मैं ही हूं। निर्मल जी और शाहिद जी का जादू सर चढ़ कर बोल रहा है। निर्मल जी का" नया भी पुराने के अंदर से आये" और मक्ता दोनों खूब पसंद आये, तालियां! शाहिद जी का एक-एक शेर बेहद खूबसूरती से गढ़ा गया है। किसी एक शेर को छांटना सख्त मुश्किल है और गिरह पर तो हम मर-मिटे हैं। बहुत सुंदर गज़ल है।

    @शाहिद जी की शंका: पिछले पोस्ट में आदरणीय राकेश जी के गीत में आपने शंका जाहिर की है कि "चलो कल्पना के कबूतर उड़ायें" का प्रयोग क्या सही है? स्पष्टतः, आपकी उलझन बिंदी को लेकर है।

    समाधान: कविता/गीत और गज़ल में इस लिहाज़ से थोड़ा अंतर है। गज़ल में यदि आपने काफ़िया बिंदी सहित लिया है तो अंत तक आपको उसका निर्वाह करना पड़ेगा।
    उदाहरण के लिये फ़िराक गोरखपुरी की ये गज़ल देखें-

    अब तो हम हैं और भरी दुनिया की है तनहाइयां
    याद थीं हमको भी रंगा-रंग बज़्म-आराइयां

    जल्वा-ए-लैला हो ऐ दिल! या जुनूने-कैस हो
    इश्क कुछ सनकी हवायें, हुस्न कुछ परछाइयां

    इश्क को समझा अगर कोई तो चश्मे-दोस्त ने
    शोहरतें भी कम न थीं, कुछ कम न थीं रूसवाइयां

    कविता या गीत में ऐसा जरूरी नहीं है। बिंदी सहित और बिना बिंदी के दोनों प्रयोग यहां इकट्ठे हो सकते हैं। आदरणीय राकेश जी ने गीत लिखा है, गज़ल नहीं, अतः ये दोष नहीं है। कुछ उदाहरण देखें-

    मानस की एक प्रसिद्ध चौपाई है-

    मोरि सुधारिहिं सो सब भांती
    जासु कृपा नहिं कृपा अघाती

    दादा गोपालदास नीरज जी के मृत्यु-गीत में देखें-

    जब लाश चिता पर मेरी रक्खी जायेगी
    अनजानी आंखें भी दो अश्रु गिरायेंगी
    पर दो दिन के ही बाद यहां इस दुनिया में
    रे याद किसी को मेरी कभी न आयेगी

    इन उदाहरणों में "भांती और गिरायेंगी" बिंदी के साथ हैं जबकि "अघाती और आयेगी" में बिंदी नहीं है।

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  19. निर्मल जी का शेर
    समय की ये आदत पुरानी जो ठहरी
    मुहब्बत में हर दम जुदाई दिखाए

    शहीद जी का शेर--
    मुहब्बत मुहब्बत मुहब्बत मुहब्बत
    ये आवाज़ हर दिल की धड़कन सुनाए

    मधुर ताल, लय, साज़- सरगम का संगम !!!

    पता दिल को भी तो पड़े दर्द क्या है
    कोई उसकी दुखती हुई रग दबाए
    देवी नागरानी

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  20. गुरु जी प्रणाम

    तरही मुशायरे का आनन्द बढता ही जा रहा है
    निर्मल जी और शाहिद जी की गजल पढ कर याद आया कि पह्ले तरही मुशायरे मे मेरी गजल कैसी थी और याद करके खुद पर हसा

    मुशयरे मे पह्ली शिरकत और क्या ज़ोरदार आगाज़
    मज़ा आ गया

    पोस्ट की शुरुआत मे जब नये शायरो की बात पढी और फ़िर गजल, तो सोच से १० गुना ज्यादा अच्छी गजल पढने को मिली
    फ़िर जब इनके ब्लोग पर गया तो पता चला कि ऐसा क्यो है, तरही मे शिरकत चाहे पह्ली हो मगर दोनो ही शायर क्या खूब लिखते है

    निर्मल जी का शेर "नया भी पुराने के....

    और
    शाहिद साहब क ये शेर " बुलन्दी के आकाश.....

    बहुत पसन्द आया

    @ रवि भाई गुजारिश है कम्जोर कडी वाली बात कह के मेरा कान ना खीचिये सब जानते है कि आप लिखते है और क्या खूब लिखते है आपने जो शन्का समाधान किया है कविता के लिये नै जानकारी मिली धन्यवाद

    गुरु जी एक प्रश्न है कि पोस्ट मे जो बोतल है वो चिल्ड भी है हिल भी रही है फ़िर अभी तक ढक्कन क्यो नही खुला :)

    आपका वीनस केशरी

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  21. वाह!! आनंद आ रहा है इस मुशायरे में. सिद्धू जी की गज़ल अच्छी है, लेकिन शाहिद साहबआपके हर शे’र पर दाद देती हूं. पूरी गज़ल मुक्कमल है.

    जवाब देंहटाएं
  22. सिद्धु जी और शाहिद मिर्ज़ा जी ने तो वाह, समां ही बांध दिया - -
    सिद्धु जी को 'हिंदी चेतना' में भी बहुत पढ़ा है, हाँ शाहिद जी को पहली बार पढ़ा है .
    बहुत खूब, बहुत -बहुत बधाई.

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  23. वाह!! आनंद आ गया...इतनी सुंदर-सुंदर ग़ज़लें पढ़ने को मिल रही हैं ....

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  24. १२ जनवरी की पोस्ट कारणवश देखनी रह गई लेकिन आज पढ़कर महसूस होता है कि इस मुशायरे के दो दिग्गज जिनके बिना मुशाइरा कुछ अधूरा ही सा लगता. आज १५ जनवरी है, तीन दिनों के बाद भी दोनों ग़ज़लों और सुबीर जी की मसालेदार कमेंट्री में वही ताज़गी है. मैं ग़लत कह गया, ये दोनों ग़ज़लों की ताज़गी इस मुशायरे के बाद भी बनी रहेगी.
    निर्मल जी का मक्ता देखिये:
    नया नाम निर्मल का महफ़िल में आया
    ये क्या कर दिया उसने बैठे बिठाए
    आप बेशक से आज पहली बार इस महफ़िल की में आये हैं लेकिन मेरी ज़ुबान से आपके नाम से 'नया नाम' जुड़ नहीं पा रहा है. ग़ज़ल की दुनिया में ही नहीं, काव्य-साहित्य में आपका नाम बहुत सम्मान से लिया जाता है.
    ग़ज़ल के ये आशा'र बहुत ख़ूबसूरत लगे:
    समय की ये आदत पुरानी जो ठहरी
    मुहब्बत में हरदम जुदाई दिखाए
    कोई साथ इसके चले न चले पर
    ये सबको लिए जा रहा है भगाए
    बधाई स्वीकारें.

    आशावादी के स्वरों में ख़ूबसूरत ख़यालात, लफ़्ज़ों का सही जगह सही चुनाव और बहर के निभाव जैसी खूबियों से शाहिद मिर्ज़ा जी की ग़ज़ल एक आला दर्जे की ग़ज़ल बन गई है. एक अखबार की एडिटिंग करने की व्यस्तता और वक़्त की कमी के बावजूद भी एक ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए भाव संजोकर, ख़ूबसूरत लफ़्ज़ों से सजाकर एक असरदार ग़ज़ल लिख देना, एक तजुर्बेकार ग़ज़लकार की क़लम से ही हो सकता है.

    ये आशा'र बहुत ही पसंद आये.

    नए साल हर दिन हों रहमत के साए
    हर इक लम्हा ख़ुशियों का पैग़ाम लाये
    दिलों से सिलिन तक सदाओं की ख़ातिर
    कोई तो हो, जो एक खिड़की बनाए
    मुहब्बत मुहब्बत मुहब्बत मुहब्बत
    ये आवाज़ हर दिल की धड़कन से आये

    यही दुआ करते हैं कि आपकी क़लम इसी तरह साहित्य की सेवा करते रहें.

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  25. प्रणाम गुरूजनों,
    यहाँ आकर बहुत अच्छा लगा। उम्मीद से बढ़कर मिला है।आभारी हूँ आप सबों का।इतनी इज़्ज़त के लायक तो नहीं मगर फिर भी आप से सीखने का अवसर मिले यही आस ले यहाँ आया हूँ।
    आशा है, भविष्य में और भी अवसर मिलेंगे।
    पंकज भाई,एक बार फिर धन्यवाद।

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  26. mera imaan w majhab insaaniyat hai .yahi to sirf meri haqikat hai .jidhar hai iski manzil udhar hi hai apne raashte ,aapke baigar bulaye bhi hum waise hi aate ,aap chahte yaa na chahte .rachnaye behad shaandaar ,vande maatram .suraj ke aage har roshni fiki hai .meri kalam me utni kahan sakti hai ,aap to kamaal ke likhte hai .hum waah se aage kahne me asamarth hai .

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  27. mera imaan w majhab insaaniyat hai .yahi to sirf meri haqikat hai .jidhar hai iski manzil udhar hi hai apne raashte ,aapke baigar bulaye bhi hum waise hi aate ,aap chahte yaa na chahte .rachnaye behad shaandaar ,vande maatram .suraj ke aage har roshni fiki hai .meri kalam me utni kahan sakti hai ,aap to kamaal ke likhte hai .hum waah se aage kahne me asamarth hai .

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