देखते ही देखते नया साल आ भी गया है । 2010, देखने में ही सुंदर अंक लग रहा है । अब देखते है कि ये बीस दस क्या गुल खिलाता है । आज कोहरे का जो आलम देखा वो अनोखा था । इतना कि वास्तव में हाथ को हाथ ही नहीं सूझ रहा था । हर तरफ धुंध और धुंआ । ठंड इतनी कि मोटर साइकल चला कर आफिस पहुंचने पर ज्ञात हुआ कि शायद हाथ हैं ही नहीं । टटोल कर देखा कि कहीं गिर तो नहीं गये । कुछ देर बाद हाथ वापस आये । मौसम की सबसे कड़ाके की ठंड ने सीहोर को आज अपने आग़ोश में ले लिया है । सब कुछ रुक गया है लेकिन हमारा तरही मुशायरा तो चालू है । डॉ आज़म साहब ने बहुत ही जोरदार शुरूआत दी है मुशायरे को । कायदे में सोमवार को तरही का अगला अंक लगना था क्योंकि सोमवार और गुरूवार ये दो दिन ही सोचे थे तरही के लिये । लेकिन शिवना प्रकाशन की नये वर्ष की पहली पुस्तक अनुभूतियां लेखक दीपक चौरसिया मशाल, प्रकाशित होकर आ गई है और आज उरई उप्र में उसका विमोचन होना है । बस पुस्तकों को लेकर कल कुछ व्यस्तता थी । ये शिवना की पहली पुस्तक है जो ISBN के साथ आई है । पुस्तक के बारे में जानकारी अगले अंक में क्योंकि तब तक इसका विमोचन हो चुका होगा । आज तो आप स्वयं करे उसका विमोचन
ग़ज़ल का सफ़र ब्लाग को जिस प्रकार आप सबने हाथों हाथ लिया है वह सुखद लगा । वहां पर जो योजन है उसके अनुसार माह की तीन निश्चित तारीखों को लेख लगा करेंगें । दस दस दिन के अंतर से वहां लेख प्रकाशित हुआ करेंगें और उसकी सूचना ब्लाग के सदस्यों को मेल द्वारा मिल जाया करेगी । वहां पर सब कुछ पुस्तक के स्वरूप में होगा । अर्थात अध्याय होंगे एक के बाद एक और बाकायदा तारतम्य में होंगें ।
न जाने नया साल क्या गुल खिलाए
इस बार की तरही को लेकर कई सारे लोगों की रचनाएं मिल चुकी हैं । और कुछ लोग अभी तक भेज रहे हैं । नये साल की तरही है इसलिये सब ने बहुत अच्छी रचनाएं भेजी हैं । जाहिर सी बात है कि इसके बाद जो तरही आनी है वो होली विशेषांक होगा । पिछली बार का होली विशेषांक बहुत सराहा गया था । इस बार भी कुछ अलग करने की योजना है । खैर वो तो अगले की बात मगर फिलहाल तो अभी की बात की जाये । आज हम दो और शायरों को ले रहे हैं । इनमें से एक पहली बार तरही में आ रहे हैं और दूसरे हमारे जाने पहचाने हैं ।
आइये सबसे पहले सुनते हैं गिरीश पंकज जी की ग़ज़ल। चूंकि ये तरही में पहली बार आ रहे हैं अत: पहले जानते हैं उनके बारे में । श्री गिरीश पंकज जी संपादक, " सद्भावना दर्पण"/ सदस्य, " साहित्य अकादमी"/ नई दिल्ली/ अभी हाल ही में किताबघर, दिल्ली द्वारा प्रकाशित तीसरा ग़ज़ल शतक में ग़ज़ले समाहित / ३ उपन्यास, ८ व्यंग्य संग्रह, २ ग़ज़ल संग्रह सहित २९ पुस्तकें प्रकाशित/. गिरीश पंकज व्यक्तित्व-कृतित्व पर कर्णाटक के शिक्षक नागराज द्वारा पीएचडी एवं उपन्यास पालीवुड की अप्सरा पर पंजाब के दीपिका द्वारा शोध कार्य जारी
इसी बात पर हम नहीं मुस्कराए
''न जाने नया साल क्या गुल खिलाए''
हुआ जो बुरा तुम उसे भूल जाओ
नया दौर शायद नया रंग लाए
अगर टूटते हैं उन्हें टूटने दो
दुबारा सभी ने ही सपने सजाए
कहाँ पल रहा है सदा एक जैसा
कभी ये रुलाए कभी ये हँसाए
उठो तुम तो पंकज करो खैरमकदम
नया पल ये आया है लो खिलखिलाए
हुआ जो बुरा तुम उसे भूल जाओ नया दौर शायद नया रंग लाए । वाह वाह वाह कितनी सकारात्मक सोच से भरा हुआ है ये शेर । पूरी ग़ज़ल सकारात्मक शेरों से भरी हुई । यही तो जीवन है, विगत का भुला कर आगत का स्वागत करना । बहुत उम्दा ग़ज़ल कहने के लिये बधाई ।
आइये अब सुनते हैं प्रकाश पाखी जी की ग़ज़ल इनका परिचय इसलिये नहीं क्योंकि ये हमारे जाने पहचाने हैं पूर्व की तरही में भाग ले चुके हैं तथा अब ग़ज़ल की पाठशाला के नियमित छात्र हैं । इन्होंने ग़ज़ल के साथ ये कमेंट भेजा है आवाज फटे बांस सी है और शायरी पढना नहीं आता इसलिए प्रकाश अर्श भाई से मेरी गजल पढवाना मेरा सपना है...
नसीबों की सरगम अमर राग गाए
शुभम गान हो जिन्दगी धुन बजाए
मिले गम नया या ख़ुशी दे के जाए
''न जाने नया साल क्या गुल खिलाए''
मुसीबत बड़ी हो तो भी डर नहीं है
मिरे हौसलों में कमी बस न आए
न पीने की खाई क़सम तो है लेकिन
अदा कोई दिलकश कसम तोड़ जाए
सदर बेहयाई करे अब बचा क्या
रिआया ही पत्थर कोई अब उठाए
जमीं की हकीकत तो कडवी थी पाखी
बड़े ख्वाब जन्नत के क्यूँकर सजाए
वाह वाह अच्छे शेर निकाले हैं । बहुत ही हौसले का शेर लिखा है मुसीबत बड़ी हो तो भी डर नहीं है मिरे हौसलों में कमी बस न आए । बहुत ही सुंदर शेर निकाला है । पूरी ग़ज़ल ही बेहतरीन बन पड़ी है । एक एक शेर बोलता हुआ शेर है । बधाई हो ।
आज के दोनों ही शायरो ने समां बांध दिया है दोनों ही ग़ज़लें बहुत ही सुंदर हैं तो आज आनंद लीजिये इन दोनों ग़ज़लों का । और इंतजार कीजिये अगले अंक का । और हां पिछली पोस्ट पर प्रकाश पाखी जी ने कुछ जिज्ञासा प्रकट की हैं । आपमें से कोई भी पिछली पोस्ट पर उनकी टिप्पणी में जाहिर जिज्ञासा का समाधान इस पोस्ट पर टिप्पणी के माध्यम से करें ।
इसी बात पर हम नहीं मुस्कुराये... क्या गिरह लगाई है गिरीश जी वाह ..वाह..
जवाब देंहटाएंमिले ग़म नया या खुशी दे के जाये... क्या गिरह लगाई है पाखी जी वाह ..वाह..
अदा को कोई दिलकश.... अरे भाई अदा तो अदा है अच्छे अच्छों की कसम टूट जाती है...
...रियाया ही पत्थर... क्या बात है भाई बड़ी क्रॉंतिकारी बात कह रहे हैं।
बधाईयॉं
गिरीश भाई और प्रकाश भाई ,
जवाब देंहटाएंदोनों की रचनाएं
बहोत पसंद आयीं !
पिछली बार, आते हुए कमेन्ट देते
देर हो गयी थी
सो आज पहले आनेवालों में हूँ
बहुत शुभकामना सहित
- लावण्या
अब क्या कहूँ... यह नया साल आते ही हर एक नया दिन मुझे रोमांचित कर रहा है...प्रतिदिन कुछ न कुछ नया मिल रहा है.
जवाब देंहटाएंगिरीश पंकज जी ने उस्तादी शायरी दिखाई है... अगर टूटते हैं उन्हें टूटने दो
दुबारा सभी ने ही सपने सजाए
गिरीश जी, आप भी कुछ न कुछ नया सिखा गए.. शुक्रिया!
प्रकाश पाखी जी एक लगनशील विद्यार्थी तो है ही. ग़ज़ल में उनकी संवेदना बहुत गहरी है.
जमीं की हकीकत तो कडवी थी पाखी
बड़े ख्वाब जन्नत के क्यूँकर सजाए
वाह भाई.. इस पर मुझे एक शे'र याद आ गया...
पत्थरों से मुलाक़ात अब रोज़ की बात है
आँखों ने भी बसाए ख्वाब सुहाने बहुत हैं
प्रकाश पाखी जी, बस यूँ ही बने रहिये हमारे बीच... खुद को विस्तार देते रहिये.
गुरुदेव, आपने जादू सा कर दिया है. नया रूप रंग, नया संवाद. जालिम कुहासों और ठण्ड को मात दे रही है.
आज दिन की शुरुवात शानदार हो गयी... एक बार पुनः आज के शायरों को बधाई.
- सुलभ
गुरुदेव प्रणाम!
जवाब देंहटाएंहौसला अफजाई का शुक्रिया ...अभी सिर्फ इतना कह रहा हूँ कि इस गजल पर आपका आशीर्वाद न होता तो यह गजल गजल ही न होती...बाकी वापस आकर कहता हूँ!
प्रकाश
डा. आज़म जी की शुरूआत से ही पता चल गया था कि ये मुशायरा जरूर धमाकेदार होगा। पंकज गिरीशजी और पाखी जी ने खूब समय बाँधा है।
जवाब देंहटाएंहुया जो बुरा तुम् उसे भूल जाओ
नया दौर शायद नया रंग लाये
वाह वाह
इसी बात पर हम नहीं मुस्कुराये
न जाने नया साल क्या गुल खिलाये
लाजवाब गज़ल है पंकज जी को बहुत बहुत बधाई
न पीने की खाई कसम तो है लेकिन
अदा कोइ दिलक्श कसम तोड जाये और
मुसीबत बडी हो तो भी डर नहीं
मिरे हौसले मे कमी बस न आये
बहुत खूब । दोनो गज़लें बहुत सुन्दर बन पडी हैं पाखी जी और पंकज जी को बहुत बहुत बधाई और आप्को भी बधाई धन्यवाद और आशीर्वाद। दीपक मशाल को भी बहुत बहुत बधाई उसकी पहली पुस्तक छपने पर और उसे आशीर्वाद है कि हर साल वो एक पुस्तक हमे दे। विमोछन की रोपोर्ट का इन्तज़ार रहेगा।
इस बार की ठंढ़क तो बढ़ती ही जाए
जवाब देंहटाएंन जाने नया साल क्या गुल खिलाए।
इस बार तो कलकत्ते में भी ज़बरदस्त ठंड पढ़ रही है। पर उससे क्या हम तो इन आशाओं और उमंगों से भरी ग़ज़लों की दुनियां में आनंदित हैं। गुरुदेव आपको नमन और बहुत बहुत धन्यवाद।
इसी बात पर हम नहीं मुस्कराए, बहुत ही सुन्दर शब्द रचना, प्रस्तुति के लिये आभार ।
जवाब देंहटाएंदीपक मशाल को उनकी पहली पुस्तक अनुभूतियां पर ढेरो बधाई. शिवना प्रकाशन निरंतर अपने लक्ष्य को प्राप्त करे. यही कामना है.
जवाब देंहटाएंदोनों ही अच्छी गजले है !
जवाब देंहटाएंएक फूहड़ सी गजल मैंने भी लिखी थी आपके दिए मिशरे पर, आपको भेजने लायक नहीं थी अथ यहाँ टिपण्णी में ही दे दूं ;
जवाब देंहटाएंगया साल प्यासा तरसकर ही काटा,
न जाने नया साल क्या गुल खिलाए !
कभी बरसात होगी इसी आश में हम,
छाता उठाके यहाँ भी लचकते चले आए !!
साल गुजरा जो ऐसा मनहूस निकला,
महंगाई ने जमकर हमारे छक्के छुडाए !
जब मंदी बेचारी किसी मंडी से गुजरी,
सब्जी के भावो ने हाथो के तोते उडाए !!
कमबख्त अरहर भी इतनी महंगी हुई है,
कड़ी-चावल में ही दिन-रैन हम रहे रमाए !
यों तो दिवाली पे हरसाल बोनस मिले है,
गतसाल लाला ने तनख्वाह से पैसे घटाए !!
आसार यों अब भी लगते अच्छे नहीं है,
कोरे सरकारी वादों से रहे तिलमिलाए!
साल गुजरा वो तो जैसे-तैसे ही गुजारा,
न जाने नया साल क्या गुल खिलाए !!
शिवना प्रकाशन को ISBN के साथ पहली पुस्तक प्रकाशन के अवसर पर हार्दिक बधाई.पुस्तक का कलेवर इतना आकर्षक है की खुद को उसे खरीद पाने से नहीं रोक पा रहा हूँ...मशाल जी भी को बहुत बहुत बधाई. ये हम सब के लिए बहुत ख़ुशी का अवसर है. इश्वर से प्रार्थना करते हैं की शिवना इसी तरह दिन दूनी रात चौगनी तरक्की करे.
जवाब देंहटाएंअब बात तरही की...आपको याद होगा मैंने कहा था इस बार की तरही बहुत से गुल खिलने वाली है और पिछली तरहियों से अलग होने वाली है...अभी के दो प्रकशित अंक इसकी पुष्टि कर रहे हैं...ग़ज़लों में एक से बढ़कर एक खूबसूरत अशआर पढने में आ रहे हैं...
गिरिशजी को उनके ब्लॉग पर पढने का अवसर मिलता रहता है...वो बहुत संवेदन शील कवि हैं...और उनकी बातों में बहुत गहराई रहती है जो उनकी इस तरही ग़ज़ल में भी साफ़ नज़र आ रही है..."हुआ जो बुरा..." और "अगर टूटते हैं..." बहुत अच्छे शेर कहे हैं...
प्रकाश जी ने जिन्हें पिछली तरही में मैंने अर्श समझने की भूल की थी इस बार कमल की ग़ज़ल कही है..."शुभम गान हो...." या फिर "मुसीबत बड़ी हो..." जैसे शेर कह कर उन्होंने ने अपने हुनर का लोहा मनवा लिया है...
अगली किश्त का इंतज़ार है.
सीहोर और पूरे उत्तर भारत में ठण्ड अपने शबाब पर है लेकिन यहाँ याने खोपोली में मौसम सुहावना है...ठण्ड से बचना जो चाहे यहाँ चला आये...
नीरज
ठंढ़ का आल्म तो पूछिये ही मत गुरुदेव, हमारे यहाँ नलों में पानी जम चुका है। बकायदा पाइपों पे कपड़े और बोरी के टुकड़े लपेटे गये हैं।
जवाब देंहटाएंमशाल भाई की "अनुभूतियां" के लिये बधाई!
"ग़ज़ल के सफर" की दैन्दिनी बन गयी..अहा! सर, इस ब्लौग का विजेट हम सब छात्रों को भी प्रदान किया जाये कि अपने-अपने ब्लौग पर लगा सकें हम भी।
तरही में जुड़ते नये ग़ज़लकार अब इस मुशायरे की बढ़ती लोकप्रियता का परिचय दे रहे हैं। गिरीश जी को यदा-कदा पढ़ता रहता हूँ और इस तरही में उन्होंने तो गज़ब ढ़ा दिया है। बेमिसाल ग़ज़ल और खास कर एक लाजवाब मक्ते के लिये उन्हें दिली बधाई।
पाखी भाई की एकदम कसी हुई खूबसूरत तरही ने सुखद हैरानी दी है। "रिआया ही पत्थर कोई अब उठाये" पे तो जितनी दाद दूं , कम है। आपका एक और छात्र निखर कर खड़ा हो गया है गुरुदेव। ग़ज़ल की ये "हम-पौध" जल्द ही वृक्ष बनकर हम सब को छायान्वित करेगा, इसमें कोई शक नहीं।
पाखी भाई की पिछली पोस्ट पर की शंका कुछ यूं थी:-
"एक बात मुझे सिखाएं 'कोई'और 'जब' में तो 'ला'(दीर्घ) की मात्रा है फिर भी गजल में बहर नहीं टूट रही है.जहाँ तक मैं समझा हूँ 'कोई' का उच्चारण में 'क' ही ध्वनित हो रहा है.और 'जब' में 'ज'ही ध्वनित हो रहा है.मुझे सबसे बड़ी कठिनाई दीर्घ स्वरों को लघु स्वर के रूप में रुक्न में लाने में होती है.क्या इसका कोई फार्मूला है."
पाखी साब अब तो आप सिद्धहस्त हो चुके हैं बहर में। जहां तक ’कोई’ लेकर आपकी शंका है, उसका समाधान आप खुद कर चुके हैं। ग़ज़ल की छंदों में कुछ शब्दों {जैसे कि तेरा, मेरा और कोई..." के साथ छूट दी गयी है शायर को कि इन शब्दों को चाहे तो "ला-ला" पर लें या फिर "ल-ला" या फिर "ला-ल" या चाहे तो "ल-ल"। इन कुछ शब्दों के साथ ये आजादी दी गयी है। आपका दूसरा सवाल जो था "जब" के लिये तो वो डा० आजम के इस मिस्रे "जब उसका ही साया उसी को डराये" से जुडा है। यहां पर ’जब’ का ’ज’ अलग से इसलिये उच्चरित हो रहा है कि ’ब’ आगे वाले शब्द ’उसका’ के ’उस’ से मिल कर ’बुस’ का उच्चराण दे रहा है और मिस्रा बहर में आ जा रहा है।
और पाखी साब आपने भी अपनी एक ग़ज़ल में इस तरह का प्रयोग किया हुआ है अपने ब्लौग पर, जिसकी खूब तारीफ़ भी हुई थी।
लीजिए गुरुदेव, आपके हुक्म की तामील हो गयी...कहीं कोई कमी-बेसी रह गयी हो तो जोड दीजिये। सब आपका ही तो सीखाया हुआ है।
सबसे पहले तो शिवना प्रकशन और दीपक जी को इस उपलब्धि पर कोटिशः बधाई। हाड़ कंपा देने वाली ठंढ तो इधर भी पड़ रही है आजकल। पर काम तो नहीं रोका जा सकता न! आज़म साहब ने जो आतिशी शुरूआत दी थी उसको बखूबी आगे बढ़ाया है इन दोनों शायरों ने। गिरीश जी के शेरों में तो जैसे सकारात्मकता कूट-कूट कर भरी हुई है। अच्छी गज़ल के लिये बधाई उन्हे। प्रकाश भाई की गज़ल भी लाजवाब है। खासकर मुसीबत वाला और मक्ता वाला, ये दोनों शेर गज़ब ढा रहे हैं। बधाई।
जवाब देंहटाएंऔर पकाश जी की जिज्ञासा का समाधान गुरूभाई गौतम ने कर ही दिया है। संयुक्ताक्षरों के प्रयोग से संबंधित एक ऐसी ही जिज्ञासा का समधान गुरू जी की इस पोस्ट के आखिर में देखे-
http://subeerin.blogspot.com/2009/07/blog-post_18.html
दीर्घ को लघु करने के संबंध में विचारणीय है कि छंद की मर्यादा रखने हेतु कई बार मनस्विद व्याकरण की मर्यादा तोड़ने में भी परहेज नहीं करते। इस संबंध में कहा गया है-
अपि माषं मषं कुर्याच्छंदो भंगं न कारयेत
मानस की एक प्रसिद्ध चौपाई है-
राम करौं केहि भांति प्रसंशा
जय महेस मानस मन हंसा
अब देखा जाये तो सही शब्द तो "हंस" है उसे "हंसा" सिर्फ़ छंद की मर्यादा हेतु किया गया है। इसी तरह से गज़लों में कुछ स्थानों पर दीर्घ को लघु कर लेने की परंपरा है जैसा कि गौतम जी स्पष्ट कर ही चुके हैं।
गुरु जी मैसेज बॉक्स में तक़ीतई का स्वरूप बिगड़ जा रहा है.. दो बार कर के डिलीट कर चुकी आप इस कमेंट को तरीके से लगा दें।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सादर कंचन
इसी को कहते हैं नज़रिया.. देखिये ना हमें भी यही लग रहा था कि इस मिसरे पर सकारात्मक कैसे लिखा जाये और खैर अब तो गज़ल भेज ही दी। मगर पंकज जी ने देखिये कितने सकारात्मक शेर लिख के भेजे हैं। सभी शेर उत्तम
अगर टूटते हैं उन्हे टूटने दो,
दुबारा सभी ने ही सपने सजाये
बहुत ही भला लगा...!
और पाखी जी की लगन से सीखने की प्रक्रिया बहुत अच्छी चल रही है। उनके ब्लॉग पर लगी गज़ल भी ये कह रही थी।
पिछली बार की उनकी शंका का ज़वाब पिछली बार ही देने वाली थी, मगर मैं प्रश्न में थोड़ा कंफ्यूज़ हो रही थी..तो आज पहले गुरु जी से पूँछा कि प्रश्न क्या है। तो उस अनुसार उत्तर यह है कि आरंभ की कक्षाओं में तक़ीतई करना बताया गया है, आप एक बार वहाँ जायें और हमें शुरुआत में सिर्फ गज़लों की तकीतई करने का होमवर्क मिलता था, जिससे ये प्रारंभिक स्तर की समस्या कुछ हद तक हल हो जाती है...! तो आप देखें कि जब हम आपके जब वाले शेर की तकीतई करते हैं तो पातें है
जब उसका ही साया उसी को डराये
ज बुस का १२२ ललाला हि सा या 122 ललाला
उ सी को 122ललाला ड रा ये 122ललाला
अब आपकी दूसरी और जेन्यून शंका आ सकती है कि सका में तो का दीर्घ है। जेन्यून इसलिये क्योकि ये शंका प्रारंभिक स्तर पर हर विद्यार्थी को आती ही है। ये शंका अभ्यास से ही दूर होती है (मतलब कि मेरी तो अभ्यास से ही दूर हुई) कि कब दीर्घ को गिरा कर पढ़ना है और कब दीर्घ दीर्घ की तरह प्रयोग किया जाना है।
तो यहाँ सका का का गिरा कर पढ़ना है और अब आपकी दूसरी शंका स्बयमेव हल होती है, क्यों कि कोई जैसे बिछड़े हुए को बुलाये में आपको यही करना है। को को गिरा कर पढ़ना है। देखिये
कोई जैसे बिछड़े हुए को बुलाये
कु ई जै 122 ललाला स बिछ ड़े122 ललाला हु ए को 122 ललाला बु ला ये 122 ललाला
वैसे ये आपको नही समझा रही थी खुद का रिवीज़न हो रहा था। आप जिस तरह आगे बढ़ रहे हैं, हम जैसे बहुत जल्दी बहुत पीछे रह जायेंगे
शुभकामनाएं
करूँ कैसे तारीफ़ इन शायरों की
जवाब देंहटाएंजरा सा भी मेरी समझ में न आये
औ’शिवना की उपलब्धियों पे कहूँ में
सितारा ये बन कर अदब जगमगाये
गुरुदेव!
जवाब देंहटाएंसर्व प्रथम आभार तरही में गजल शमिल करने और मार्ग दर्शन देने के लिए !आपके जादू के बिना पंक्तियाँ कभी गजल का रूप ले पाती.नए वर्ष के प्रथम प्रकाशन के लिए शिवना परिवार को बधाई और शुभकामनाएं!ISBN नंबर लेने की भी बधाई.आदरणीय गिरीश पंकज साहब की बेहद खूबसूरत गजल के नीचे मेरी पंक्तियों का मान भी बढ़ा है.
इसी बात पर हम नहीं मुस्कुराए
न जाने नया साल क्या गुल खिलाए.
मुग्ध हतप्रभ सा पंक्तियों में खो सा जाता हूँ.
फिर
हुआ जो बुरा तुम उसे भूल जाओ
नया दौर शायद नया रंग लाए.
इस पर लाखों दाद...!
अगर टूटते है उन्हें टूटने दो
दुबारा सभी ने ही सपने सजाए.
इस शेर पर कुर्बान होने को जी चाहता है..
पूरी की पूरी गजल मोतियों की सुन्दर माला सी बन पड़ी है...आभार ऐसी गजल और ऐसे रचनाकार से परिचित कराने के लिए.
आदरणीय पंकज साहब बधाई स्वीकार करें.
तरही मुशायरा ऊंचे और नए मुकामों को छूता जा रहा है..जहा सीखने को बहुत कुछ है.
आदरणीय डॉ आजम साहब और गिरीश पंकज साहब जैसे नामी शायरों को पढ़ कर सुकून मिलता है.गौतम भाई की संज्ञा'हम पौध 'से सहमत हूँ.हालांकि वे नीरज भाई और रवि भाई के साथ स्नातक पहले ही हो चुके है.
मेरी जिज्ञासा पर गौतम भाई,बहन कंचन और रवि भाई ने जो सटीक समाधान दिए उस पर इतना ही कहना चाहता हूँ कि आपको इन शिष्यों पर गर्व होना चाहिए जो स्वयम किसी गजल आचार्य से कम नहीं है.आप सबका आभार.मुझे बहुत कुछ नया मिला इस चर्चा में.
मैंने एक बार तो सोचा था कि कही जिज्ञासा जाहिर करके कोई मैंने गलती तो नहीं कर दी...पर फिर रहा नहीं गया और सोचा कक्षा है...पूछ ही लूं.गुरु भाई हंसेगे तो भी समाधान तो मिल जाएगा....और दूसरा मुझे कौन यह बताने वाला था.
पर जिज्ञासा समाधान से डॉ आजम साहब की गजल की खूबसूरती और गहराई से महसूस हुई...नामी शायरों की नज्म की खासियतें वर्ना कभी इतनी अच्छी तरह से पता नहीं चलती.
कोटिश आभार!
आदरणीय निर्मला दी,और लावण्या दी,...आपका बहुत शुक्रिया.
आदरणीय तिलक राज साहब का आभार मनोबल बढाने के लिए.
सुलभ जी का शुक्रिया उनके ब्लॉग पर जा कर कर आया हूँ.
मनोज साहब,गोदियाल जी,सदा जी और राकेश खंडेलवाल साहब का आभार!
प्रकाश
दुसरे अंक का इंतज़ार खत्म हुआ और दो नायाब शईरों की गज़लें सामने हैं.. डूब जाऊंगा मैं तो पूरी तरह से हा हा हा ...
जवाब देंहटाएंगुरु जी शिवना प्रकाशन के साथ मशाल को भी उसके प्रथम काब्य संग्रह पर दिल से ढेरो बढ़ाई और शुभकामनाएं ... ये दोनों खूब तरक्की करें ...
पंकज जी हलाकि काफी मजे हुए शाईर हैं ये उनकी ग़ज़ल पढ़ के ही पता चल रहा है .. हर शे'र बोलता हुआ , जो नफीस बातें और अंदाज़ डालें हैं वो कमाल की बात है ... हालाकि मैं उन्हें पहली बार ही पढ़ रहा हूँ जहां तक मेरा ख़याल है मगर सच कहूँ तो मजा आगया ...
गिरह जिस मिसरे से लगाई है क्या खूब अंदाज हैं ...और दूसरा शे'र पूरी तरह से सकारात्मकता से भरा हुआ .. मिसरे की नाकारात्मकता किस नायब तरीके से इन्होने शुन्य कर दी है ग़ज़ल पढ़ते ही समझ आरही है ...
गुरु भाई पाखी ये कोई सपने वाली बात नहीं है , मेरी कुछ खास आवाज़ नहीं मेरे से बढ़िया खुद गुरु देव गाते और पढ़ते हैं , मैं हाज़िर हूँ आपकी ग़ज़ल को आवाज़ देने के लिए...
इस खुबसूरत ग़ज़ल को आवाज़ देना कौन नहीं चाहेगा ..
मतले से लेकर मकते तक खालिस लाज़वाब बात कही है आपने ... जय हो दिल से जय हो ..
आपकी शंका का समाधान गौतम भाई ने कर दिया है और रही सही कसार बातूनी बहना ने :) :)
वो कहती हैं मेरे से बातों बातों में के मुझे बहर का इल्म नहीं मैं सिर्फ गा कर ही लिखती हूँ .. तो मोहतरमा जिस तरह से यहाँ पर लघु और दीर्घ की बात की है वो कौन कर रहा है .. क्या मैं ?
सभी को बहुत बहुत बधाई इससे नए लिखने वालों को निश्चय ही सिखने को मिलेगा अगर वो इसे ध्यान से पढ़ें और आत्मसात करें ...
अर्श
गिरीश पंकज जी एवं प्रकाश पाखी जी कि ग़ज़लें पढ़ीं .सरे शे'र बेहद ख़ूबसूरत एवं सकारात्मक भावों से सजे हैं . अभी तो मैंने ग़ज़ल की कक्षा में दाखिला लिया है सो ग़ज़ल के व्याकरण का ज्ञान नहीं है इसलिए उसका आनंद नहीं ले पा रही हूँ .
जवाब देंहटाएंअर्श भाई!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया!अब मैंने तो गुरुदेव को निवेदन किया था और आपने आमन्त्रण स्वीकार कर लिया है(भले मजबूरी में सही क्योंकि गरुदेव ने मेरी रिक्वेस्ट को सार्वजानिक रूप से कह कर आपको आदेश ही दे दिया तो भला आप क्या करते)पर मैं सिरियस हूँ आपकी आवाज में एल्बम निकालने के बारे में.
अब आप की पोस्ट पर आया तो पता चला कि भाई कि एक अच्छी सी रचना को पढने से वंचित हो रहा था.सधे और कम शब्दों में यथार्थ का चित्रण किया है आपने.अंतिम पंक्तियाँ पाठक को मूक कर देने वाली थी.
शुक्रिया !
प्रकाश पाखी
शिवना प्रकाशन को पहली ISBN पुस्तक के लिए हार्दिक बधाई.
जवाब देंहटाएंदीपक चौरासिया मशाल जी को उनकी पुस्तक 'अनुभूतियाँ' के प्रकाशन पर बहुत बहुत बधाईयाँ. हमारी दुआ यही है कि 'अनुभूतियाँ' हर हिन्दी पढ़ने वाले की शेल्फ पर नज़र आये.
डॉ. आज़म साहब की ग़ज़ल के पहले शब्द 'ख़ुदा' से मुशायरे की शुरुआत हुई थी जो आगे पढ़ने से पहले ही तरही की सफलता के लिए दुआ के लिए हाथ उठ जाते हैं. दुआ का असर देखिये कि अब मुशायरे का रंग किस ख़ूबी से निखर कर आ रहा है.
श्री गिरीश पंकज जी की ग़ज़ल का एक एक शे'र दिल को छूने वाला है.
अगर टूटते हैं उन्हें टूटने दो
दुबारा सभी ने ही सपने सजाये
और
उठो तुम तो पंकज करो ख़ैरमक़दम
नया पल ये आया है लो खिलखिलाएं
बहुत ख़ूब!
प्रकाश पाखी के बारे में यही कहूँगा कि उनकी उम्र के लिहाज़ से उनकी ग़ज़ल बहुत आगे बढ़ गई है. ख़ूबसूरत ग़ज़ल है.
मुसीबत बड़ी हो तो भी डर नहीं है
मिरे हौसलों में कमी बस न आए
वाह!
@ अर्श अरे पागल जब गा के लिख लेती हूँ, तब तो समझ में आ ही जाता है कि किसे गिरा कर पढ़ा गया और किसे दीर्घ में।
जवाब देंहटाएंऔर मैं ये बात कई बार कह चुकी हूँ कि लेखन में झूठ मेरा अंतिम विकल्प होता है। अब जैसे इस बार की ही तरही जब आयेगी तब देखना, जाने कितने शेर बहर में होंगे, कितने नही, मगर मैने किसी को बहर पर नही कसा है..बस लय पर चलती गई हूँ....!
समझे...???
वैसे एक बार और चलते चलते बता दूँ कहा जाता है कि लड़कियाँ जानती कम हैं समझती ज्यादा
लो एक बात और याद आ गई हालिया प्रदर्शित फिल्म थ्री ईडियट जो कि सुना है शोले का भी रिकॉर्ड तोड़ रही है में भी यही कहा गया है कि समझ को डेवलप करो फॉर्मूलों से कुछ नही होगा....!
जवाब देंहटाएंहा हा हा
@ कंचन
जवाब देंहटाएंथ्री इडियट्स का उदहारण तो बहुत बढ़िया दिया आपने .. वो मैं समझ सकता हूँ , मगर जहां तक लड़कियों की समझदारी की बात है मुझे थोड़ी सी शंका है हाँ आपको छोड़ कर मैं बात कर रहा हूँ... मगर जिस तरह आपने उदहारण पेश किये हैं पाखी के प्रश्न पर वो अचंभित करने वाल करने वाला है इसलिए कहा... वेसे आप मेरे से झूठ नहीं बोलती मैं जानता हूँ ...
अर्श
प्रणाम गुरु जी,
जवाब देंहटाएंशिवना प्रकाशन की नयी प्रस्तुति, दीपक चौरसिया जी की "अनुभूतियाँ" पे आपको बहुत बहुत बधाइयाँ. अगर आपकी आज्ञा हो तो सोनू और सनी को भी थोड़ी बधाई दे दूं.
तरही ने सर्दी को मात देने की पूरी तैय्यारी कर रखी है, एक बेहतरीन आग़ाज़ के बाद ये कारवां उम्दा तरीके से आगे बढ़ रहा है.
गिरीश पंकज जी की ग़ज़ल एक अलग ही सादगी अपने में लिए हुए है, शेर बहुत अच्छे है, इस शेर के तो कहने ही क्या
"अगर टूटते है............."
प्रकाश पाखी जी की ग़ज़ल के जो शेर मुझे बेहद पसंद आये वो हैं,
"मुसीबत बड़ी होतो..........." और "ज़मीं की हकीकत.............", आखिरी शेर ने तो गज़ब ढा दिया है, वाह कितने खूबसूरती से लफ़्ज़ों को पिरोया है, बधाई स्वीकारें.
दीपक मशाल जी को उनकी किताब अनुभूतियाँ के लिए हार्दिक बधाई और नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंपंकज जी आप का भी यह वर्ष मंगलमय हो और शिवना प्रकाशन को के साथ प्रकाशन के लिए मुबारकबाद
दोनों ही ग़ज़ल बहुत अच्छी लगीं
खास कर ये शेर बहुत पसंद आये
जमीं की हकीकत तो कडवी थी पाखी
बड़े ख्वाब जन्नत के क्यूँकर सजाए
हुआ जो बुरा तुम उसे भूल जाओ
नया दौर शायद नया रंग लाए.
अगर टूटते है उन्हें टूटने दो
दुबारा सभी ने ही सपने सजाए.
शिवना प्रकाशन की नई प्रस्तुति की बहुत -बहुत बधाई..
जवाब देंहटाएंशिवना प्रकाशन आकाश की बुलन्दियाँ छूए.
दोनों गज़लें बहुत खूब - पंकज जी और पाखी जी को बहुत -बहुत बधाई...
गिरीश और प्रकाश भाई दोनो को बहुत बहुत बधाई बेहतरीन शेर निकाले हैं ........ तरही का ये कमाल है ........ एक मिसरे पर कितने अलग अलग रंग देखने को मिल जाते हैं ............ जैसे एक ही गुलदस्ते में अलग अलग रंग के गुलाब सजे हों .... अपनी अपनी खुश्बू लिए .......... बहुत आनंद आ रहा है ......... दीपक जी को भी बधाई ........
जवाब देंहटाएंsubirji, aaj hi mumbai se lauta aur blog dekhane laga. aapka blog khola to main dang rah gaya. itani saree pratikriyaen..? maanana padega aapko. aapki pratibha ne aapko ek phachaan di hai. ghazalon ki duniya me aapne anek naye-purane logo ko jod kar sach much setu kaa kaam kiya hai.aur ghazalo, par jo tippaniyaan aai hai, inhe dekh kar prasannata hui. kitane log, aur behad sarthak log parhate hai aapka blog. ek se ek tippaniyaan. saubhagy hai ki aap logo se judana hua. aapke blog ke dvara mere sher door-door tak pahunche. aapko naye saal ki badhai. kabhi bhet bhi hogi.
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