शुक्रवार, 8 जनवरी 2010

आदरणीय राकेश खंडेलवाल जी और आदरणीय प्राण साहब की जुगलबंदी कैसी रहेगी आज के अंक के लिये । गीत सम्राट और ग़ज़ल के बादशाह की जोड़ी आज तरही मुशायरे में आ रही है अपनी अपनी विधाओं के रंग लेकर ।

बहरे मुतकारिब, नये सीखने वालों को उस्‍ताद अक्‍सर एक ही बात कहते हैं जाओ मुहब्‍बत की झूठी कहानी पे रोये इस गीत को सुनो और इस की धुन पर कोई ग़ज़ल लिख कर लाओ । दरअसल में ये गीत नये सीखने वालों के लिये कखग सीखने जैसा है । इसमें रुक्‍न बहुत सीधे सीधे टूटे हुए हैं । न सोचा, न समझा, न देखा, न भाला । खबर क्‍या, थी होंठों, को सीना, पड़ेगा । मुहब्‍बत, की झूठी, कहानी, पे रोये । इस बहर का मुझ पर एक एहसान ये है कि इसी बहर पर लिखे गये देश के एक शीर्ष कवि के एक गीत को बचपन में मैंने पढ़ा और कवि बन गया । गीत की जानकारी फिर कभी दूंगा । इस बार का तरही मुशायरा प्रारंभ होते ही रंग में आ गया है । पहले डॉ आज़म साहब की शुरूआत और फिर उसके बाद में पिछले अंक में प्रकाश पाखी जी और पंकज जी की शानदार ग़जलों ने समां बांध दिया । मंच संचालके के सामने कई बार ये परेशानी आती है कि अब जब मंच इतनी ऊंचाई पर पहुंच गया है तो अब किसको उतारा जाये । तो ऐसे में कई बार घबरा कर वो अपने तुरुप के पत्‍ते ही चल देता है । जैसा आज मैं कर रहा हूं ।

न जाने नया साल क्‍या गुल खिलाए

 आदरणीय प्राण शर्मा जी और आदरणीय राकेश खंडेलवाल जी    ये दोनों ही ऐसी शख्‍सियतें हैं जिनका परिचय देने का प्रयास जो भी करेगा उससे बड़ा मूर्ख कोई हो ही नहीं सकता । उसके पीछे भी दो कारण हैं पहला तो ये कि ये दोनों ही नाम किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं । और दूसरा ये कि यदि फिर भी कोई इनका परिचय देने का प्रयास करता है तो परिचय के लिये शब्‍द लायेगा कहां से । एवरेस्‍ट की ऊंचाई का परिचय नहीं होता, सागर की गहराई का कोई परिचय नहीं होता । बस इतना कहना चाहता हूं कि एक ग़ज़ल के बादशाह है तो दूसरे गीतों के सम्राट । अपने अपने क्षेत्र के चक्रवर्ती । सो नये साल में इन दोनों की जुगलबंदी से बेहतर कुछ नहीं हो सकता । सुनिये आपको भी लगेगा कि आप श्री गोपालदास नीरज और श्री निदा फाज़ली की जुगलबंदी सुन रहे हों । मैं बीच से हटता हूं आप आनंद लेते रहें ।

pran_sharma 

आदरणीय प्राण शर्मा जी की ग़ज़ल

रुलाये, हँसाए या खिल्ली उडाये

जाने ,नया साल क्या गुल खिलाये

सभी को कुछ ऐसा ही जलवा दिखाए

खुशी से लबालब नया साल आये

सदा दोस्ती को ही क्यों कोसता है

ये बेहतर है, वो दोस्ती भूल जाए

कभी खूबियों से ह्रदय अपना भर लो

कि जैसे दियों से महल जगमगाए

कि इतने भी अनजान से हम नहीं हैं

ये कह दो उसे ,वो हमे मत बनाये

अगर जीते हैं हम तो इसके लिए ही

भला ज़िन्दगी रास क्योंकर आये

पतंगे उड़ाना सुहाता है मुझको

जरूरी नहीं के उसे भी सुहाए

भला क्यों झूमे ह्रदय मस्तियों में

खुशी जब भी आती है डंका बजाये

किसी को दुखाऊँ ,नहीं मेरी फितरत

भले ही कोई " प्राण" मुझको दुखाये

rakesh-khandelwal

आदरणीय राकेश खण्‍डेलवाल जी का गीत

चलो ढल रही आज इस सांझ से हम

कहें, आस के गीत अब गुनगुनाये

किरन इक नई चल पड़ी है डगर पर

छँटेंगे घिरे जो कुहासों के साये

चलो आज फिर आँख में स्वप्न आँजें

चलो कल्पना के कबूतर उड़ायें

ये अन्देशा पल भर भी पालें मन में

जाने नया साल क्या गुल खिलाये

वो परछाईयों को निगल हँस रही थी

गये वर्ष में धूप तम से मिली थी

उन्हें मालियों ने स्वयं तोड फ़ैंका

जो उम्मीद की चन्द कलियाँ खिली थीं

गईं सूख प्यासे अधर पर कराहें

जले नैन में चित्र अवशेष के ही

वही ले गया लूट कर पोटली को

था समझा हुआ जिसको अपना सनेही

चलो आज फिर बीज रोपें नय कुछ

नया एक विश्वास जो सींच जाये

करें कामना जो घटित हो चुका है

वो फिर से कोई भी दुहराने पाये

चलो आज फिर आँख में स्वप्न आँजें

चलो कल्पना के कबूतर उड़ायें

ये अन्देशा पल भर भी पालें मन में

जाने नया साल क्या गुल खिलाये

चमकती हुई झालरों में उलझकर

भ्रमित दॄष्टि होकर रही रात-वासर

जो था भाव इक भाईचारे का कोमल

उसे पी के लिप्सा हँसी थी ठठाकर

अंगूठी मिली एक पल को जिसे बह

वही उंगली करती है व्यापार मन का

उसी की लगी बोलियां दिन दहाड़े

जो घुँघरू जरा पायलों मे था खनका

धरा की लहरती हुई ओढ़नी से

कोई बूटे तो कोई धागे चुराये

रुका है महज रात भर के लिये जो

वही इसको जागीर अपनी बताये

चलो आज फिर आँख में स्वप्न आँजें

चलो कल्पना के कबूतर उड़ायें

ये अन्देशा पल भर भी पालें मन में

जाने नया साल क्या गुल खिलाये

उफ़..................! क्‍या करें, ये तो स्‍तंभित कर देने वाला अनुभव है । जुबां पर ताला पड़ गया है । हाथों पर सन्निपात हो गया है । तालियां बजाने और वाह वाह करने के लिये उस टोने से बाहर आना पड़ेगा जो इस गीत और ग़ज़ल की जुगलबंदी ने मारा है । मैं कभी इलाहाबाद नहीं गया किन्‍तु मुझे लगता है कि वहां संगम पर जो दृष्‍य होता होगा आज यहां भी वही हो गया है । दो भिन्‍न प्रकार के काव्‍यों के ऐसा संगम । आप भी इस संगम में गोते लगाइये और यदि जुबां साथ दे और आपके पास शब्‍द हों तो वाह वाह करें ।  मैं भी कोशिश करता हूं आप तब तक आनंद लें ।

32 टिप्‍पणियां:

  1. बस, गोते ही लगा सकते है जब दो ऐसे दिग्गज एक साथ हों...

    शब्दविहिन!!


    गुरु की चौपाल पर गुरुजन!! जय हो आप तीनों की!!

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  2. सच कहा गुरूदेव, टिप्पणी करने बाद में आता हूं, अभी तो ब्र्ह्मानंद में लीन हूं इस अदभुत रसास्वादन के बाद!

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  3. वाह कहना भी छोटी मुँह बड़ी बात होगी। प्राण साहब की ग़ज़ल के क्या कहने। और राकेश जी का गीत तो हमेशा की तरह ही अद्भुत है। वैसे हक़ीक़त ये है कि राकेश जी को ये गीत लिखने में १० सेकंड लगे होंगे। वे तो बात भी गीतों में करते हैं।

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  4. एक प्रसिद्ध फ़िल्मी गीत है वो शायद इसी तरह की स्तिथि को देख लिखा गया है..."कुछ न कहो, कुछ भी न कहो...क्या कहना है, क्या सुनना है...." ये स्तिथि भी ऐसी ही है...कुछ कहने को है ही नहीं...आनंद का जब अतिरेक होता है जबान बंद हो जाती है...आपके शुक्रगुज़ार हैं इस आनंद को हम सब में बाँटने के लिए...
    नीरज

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  5. मैं डूब रहा हूँ या बह रहा हूँ पता नहीं...

    तारीफ़ क्या करूँ, एक बार फिर से सुनता हूँ... बड़ा अद्भूत अहसास हो रहा है आज तो...

    अभी सुबह है या शाम कह नहीं सकता
    गीत दुबारा पढ़े बिना मैं रह नहीं सकता...

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  6. भला क्यों न झूमे ह्रदय मस्तियों में
    खुशी जब भी आती है डंका बजाये

    किसी को दुखाऊँ ,नहीं मेरी फितरत
    भले ही कोई " प्राण" मुझको दुखाये

    ये शे'र हैं या आनंद चरम पर है.

    ये अन्देशा पल भर भी पालें न मन में
    न जाने नया साल क्या गुल खिलाये

    जी सर कोई अंदेशा या डर नहीं है अब तो..

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  7. सुबीर जी आज तो आपने मुझे दुविधा मे डाल दिया । दोनो भाईयों ने मिल कर मेरे खिलाफ ऐसा षडयन्त्र रचा कि जिन्हें गुरू कहना चाहिये था ,नहीं कहने दिया। तब कम से कम ये कह कर मुक्त हो जाती कि गुरू जी पर कहना मेरे वश मे नहीं मगर आदर्णीय प्रान भाई साहिब के लिये अब क्या कहूँ सनझ नहीं पा रही हूँ। उनकी गज़ल का हर एक शेर लाजवाब है। उनके इस शेर मे ही उनकी शख्सीयत के बारे मे सब कुछ है
    किसी को दुखाऊँ नहीं मेरी फितरत
    भले ही कोई प्राण मुझ को दुखाये।
    सही बात है यही झलक उनकी शायरी मे भी मिलती है इन्सानियत और प्रेरणा देते, खुशियाँ बाँटते ,सीख देते उनके शेर दिल को छू जाते हैं।मुझे सभी शेर पसंद आये हैं उन्हें बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें
    श्री राकेश खन्डेलवाल जी का गीत भी बहुत सुन्दर ,अनन्दमय हैं जब सुबीर जी के पास ही शब्द नहीं हैं तो मेरी क्या विसात है कि मैं दो धुरन्धरों पर कुछ टिप्पणी करूँ। सनेह मिलता है अपना स्नेह उन्हें दे रही हूँ बस। धन्यवाद और शुभकामनायें

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  8. प्राण साहब ने तो मत्‍ले में ही सभी संभावनाओं के साथ बेहतरीन गिरह लगा दी। और 'कि इतने भी अनजान ...' में कितनी सादगी से सरलता को बेवकूफी न मानने का संदेश दे दिया है।

    राकेश जी का गीत- क्‍या खूब उपयोग कि या है ऑंजें का और 'ये अन्‍देशा.....' एक नकारात्‍मक मिस्रा-ए-तरही को कितनी सफाई से सकारात्‍मक दिशा में ले गया है।
    बधाई... बधाई और बधाई।

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  9. waah !

    kya kahne........

    dhnya kar diya

    adbhut saamgri !

    badhaai !

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  10. आदरणीय प्राण जी एवं आदरणीय राकेश जी के साथ आदरणीय गुरूदेव पंकज सुबीर जी का संचालन!!! इन तीनों का इस तरह पूरे रंग में एक मंच पर मिलना शायद देवताओं की कोई साजिश है सबका दिल चुराने की। इन त्रिविध-बयारों ने ताप-त्रय का शमन कर निर्मल आनंद की उपलब्धि कराई है। आदरणीय प्राण जी विराट व्यक्तित्व साफ़ झलक रहा है इन शेरों में। हुस्ने मतला की सोच और सादगी क्या खूब है! दियों और महल का प्रयोग बहुत सुंदर लगा। मक्ता में तो समस्त जीवन-दर्शन समाया हुआ है। बाकी शेर भी लाजवाब हैं। आदरणीय राकेश जी तो गंगोत्री हैं जहां से गीतों की गंगा कल-कल ध्वनि के साथ बहती हुई आती है।
    ये अंदेशा पल भर भी पालें न मन में
    न जाने नया साल क्या गुल खिलाये

    किस खूबसूरती से मिसरे को सकारात्मक रुख दे दिया है आपने। विस्मित हूं। गीत के प्रवाह के साथ-साथ बह रहा हूं। बहुत प्यारा है पूरा गीत।

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  11. BEHTREEN GEET KE LIYE SHRI RAKESH
    KHANDEWAL KO HARDIK BADHAAEE AUR
    SHUBHKAMNA. SABHEE KHOOBIYAN HAIN
    UNKE GEET MEIN.LAY TO KAMAAL KEE
    HAI.

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  12. आनंद...आनंद और अधिकाधिक आनंद !!
    सुन्दर कृतियाँ पढने पर जो आनंदानुभूति होती है वह सिर्फ पाठक पढ़ सकता है -
    प्राण भाई साहब के शब्दों के साथ
    पतंग की मानिंद मन ऊपर उड़ चला है
    तो वहीं
    राकेश भाई जी की सुमधुर गीत से उडता हुआ कपोत , पर फैलाए दीख गया !
    पंकज भाई , आप तरही के आयोजन से , कईयों की प्रतिभा परोसकर हमें तृप्त करवातें रहें
    " नया साल वाकई ...यही गुल खिलाये "
    सादर, स - स्नेह,
    - लावण्या

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  13. आज तो डूब गई --सराबोर हो गई..बड़े भाई की ग़ज़ल के लिए शब्द नहीं...
    और राकेश जी तो गीतों के सम्राट हैं. दो दिग्गजों की रचनाएँ, गीत और ग़ज़ल का रसास्वादन कर विभोर हो गई.
    बधाई एवं धन्यवाद.

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  14. कहाँ कहाँ से धाराएं बनकर ये साहित्य सरिता बह रही है , हर दिल की talavati पर अपनी फुहार की थपथपाहट से साथ. आदरणीय प्राण जी और राकेशजी की युगलबंदी ..बहुत रुचिकर नवनीतम अल्फाज़ से गुंथी हुई

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  15. पंकज जी आदाब,
    नये साल पर शुरू किये गये
    इस भव्य आयोजन के लिये बधाई
    काफी कुछ सिखने को मिल रहा है यहां
    ये राकेश जी का एक मिसरा-
    'चलो कल्पना के कबूतर उडायें'
    रदीफ से हट तो नहीं गया है???
    या इस मिसरे में ऐसी छूट है???
    शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

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  16. आगरणीय गुरुदेव
    आज के इस ग़ज़ल-गीत संगम में विचार, अभिव्यक्ति शैली-शिल्प और संप्रेषण के अनेक नूतन क्षितिज उद्घाटित हो रहे हैं।
    बहत-बहुत आभार इस प्रस्तुति के लिए।

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  17. यह ठीक बात है कि ग़ज़ल के बादशाह प्राण शर्मा जी और गीत सम्राट राकेश खंडेलवाल जी के नाम किसी परिचय के मोहताज़ नहीं हैं. यही नहीं उनकी शायरी और काव्य पर भी समीक्षा के लिए उपयुक्त शब्दों का चुनाव आसान नहीं.
    कुछ शब्दों को जुटाने पर ऐसा लगने लगता है कि मेरे शब्द पूरी तरह न्याय नहीं कर पाते.
    किसी को दुखाऊँ, नहीं मेरी फितरत
    भले ही कोई "प्राण" मुझको दुखाये.
    इस शेर की खूबसूरती यह है कि जितनी बार इसे कहते हैं, इसका असर और आनंद हर बार बढ़ता जाता है. पूरी ग़ज़ल ही ऎसी है - चाहे पढ़िए, गुनगुनाइए, गाईये, दिल नहीं भरेगा.
    राकेश खंडेलवाल जी तो गीत का पर्याय बन गये हैं. उनकी साधारण बात भी गीत बन कर निकलती है. कहना चाहिए कि उनकी सांसों में गीतों का रिदम, रस, लय, प्रवाह बसे हुए हैं. उनका मस्तिष्क तो ऎसी प्रयोगशाला लगती है जहाँ से उपमान, प्रतीक, अद्भुत शब्द और गहन भाव मंझ कर निकलते हों. एक एक शब्द नगीने की तरह जड़ा होता है. इसी गीत को ही देख लीजिये, पहली पंक्ति पढ़ते ही दिल पूरा गीत पढ़ने के लिए उतावला हो जाता है.
    गीत के लिए कुछ कहने के लिए उपयुक्त शब्द ढूंडने में असमर्थ हूँ. बार बार पढ़कर आनंद लेता हूँ.

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  18. गुरुदेव,
    मैं तो आपका आभार व्क्व्यक्त करना चाहता हूँ.क्या किसी ब्लॉग पर साहित्य की अविरल गंगा प्रवाहित हो सकती है...अब भी किसी को यक्कीन न हो तो आपकी संवाद सेवा पर आ जाए.इतने बड़े शायर और गीतकार शायद यहाँ इसलिए आये है क्योंकि एक तो सरस्वती की साक्षात् उपस्थति है दूसरा वे ज्ञान के सच्चे साधक है ..हमारा तो अहोभाग्य!
    आदरणीय प्राण साहब की शायरी पर तो आप भी कुछ नहीं कह पायेंगे तो हम तो मन्त्र मुग्ध है.
    किसी को दुखाऊँ, नहीं मेरी फितरत
    भले ही कोई "प्राण" मुझको दुखाये.
    इस पर तो बस वाह वह कर उठता.
    पोर्री की पूरी गजल भाव विभोर कर रही है.
    आदरणीय खंडेलवाल साहब के गीत ने समां बाँध दिया है.क्या लय है..बार बार पढ़े जा रहा हूँ...और शब्दों का जो जादुई प्रयोग किया है वह अद्भुत और चमत्कृत कर देने वाला है...अद्वितीय!
    जो था भाव् इक भाईचारे का कोमल
    उसे पी कर लिप्सा हंसी थी ठठाकर
    क्या कहूं बस मुग्ध हूँ...
    आपका बहु आभार
    दोनों महान रचनाकारों को नमन !

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  19. दो महान फनकारों का संगम तीसरे महान फनकार का संचालन .......... कुछ भी कहना सूरत को दीपक दिखाने जैसा है ....... आनंद का दरिया बह रहा है .......... गीत, ग़ज़लों की फुहार पड़ रही है .......... अमृत की वर्षा हो रही है .......... चाँदनी छिटकी हुई है .......... आपका बहुत बहुत शुक्रिया गुरुदेव ........ बिन माँगे ही ज्ञान दे रहें आप तो ..........

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  20. क्या कहूँ ??छोटा मुंह बड़ी बात होगी..बहुत खूब...

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  21. अनोखा संयोजन किया है आपने पंकज सुवीर जी!
    दोनो ही रचनायें प्रशंसनीय हैं।
    सभी को कुछ ऐसा ही जल्वा....
    और
    ये अंदेशा पल भी पालें न मन में
    ..
    दोनो ओर से आशावाद के ये स्वर बहुत अच्छे लगे।
    सादर

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  22. बस पढ़ता हूँ लौट जाता हूँ
    पढ़ता हूँ लौट जाता हूँ
    पढ़ता हूँ लौट जाता हूँ
    कुछ कह नहीं पाता,सीधा सा कारन यह के मेरे पास शब्द नहीं है
    गंगा जमना और सरस्वती का संगम स्थल है मानो यहाँ तो ..
    आज फिर वही हुआ पढ़ रहा हूँ फिर से लौट जाऊंगा ..

    अर्श

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  23. ग़ज़ल और गीत का संगम बहुत ही अदभुत,सराहनीय और अतुलनीय है।
    बहुत सुन्दर... वाह,वाह...

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  24. दोनॊं रचनाएं मन को मुग्ध कर गई.

    पढ़वाने के लिए धन्यवाद.

    चन्देल

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  25. गीत और ग़ज़ल दोनो ही शानदार....
    लेकिन सुबीर जी बधाई और धन्यवाद आपको पहले क्योंकि ये रचनाएं आपके आह्वान पर ही तो हुईं हैं...
    प्राण जी, राकेश जी आपकी कलम को प्रणाम..

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  26. नव वर्ष पर प्राण साहिब की ग़ज़ल ने तो प्रभावित किया ही, खंडेलवाल जी का गीत भी मन को भाया। बधाई !

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  27. अरे, मेरी पिछली टिप्पणी कहाँ गयी?

    दो दिग्गजों की रचना एक साथ तो इस मुशायरे को यकीनन पूरे उफ़ान पर ले गयी है।

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  28. praan ji kee ghazal aur rakesh bhai ke geet....dono man-meet ban gaye.
    achchhi rachanao ke liye rachanakaron ko badhai aur aayojak subeer ji ko bhi sadhuvaad....

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  29. २ ३ दिन बाद ब्लॉग जगत की ओर लौटी हूँ देखा यहाँ तरही का नया अंक लगा हुआ है।

    जहाँ दिग्गज मौन हैं वहाँ मेरी क्या बिसात। प्राण जी और खण्डेवाल जी दोनो का हुनर... हम क्या कहेंगे

    मगर हाँ

    चलो आज फिर आँख में स्वप्न आँजे

    अद्भुत शब्द चयन... मुग्ध हूँ...! क्या कहूँ..!

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  30. प्रणाम गुरु जी,
    इस तरही के शानदार आग़ाज़ के बाद इन ऊँचाइयों को छु लेने के बाद लगा रहा है की अपनी ग़ज़ल कहाँ जाएगी?
    प्राण जी ने इतना सुन्दर मतला कहा है जिस पे मन झूम रहा है, और उस के बाद आया हर शेर आनंद दे रहा है.
    राकेश जी का गीत, इस जुगलबंदी का एक खूबसूरत एहसास है.
    वाकई इस अंक के बाद उत्सुकता बाद गयी है, अगले कौन होंगे??????????
    इंतज़ार है अगले अंक का.वैसे दिन तो आज का ही है .........

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  31. लगीं रौनकें हैंं वहीं पर सुखन की
    जहाँ प्राणजी की गज़ल गुनगुनाये
    वो हैं शख्सियत आसमानों से ऊँची
    नहीं उसकी फ़ितरत किसी को दुखाये
    जगी मेरी किस्मत यही मानता हूँ
    कोई गीत उनकी गज़ल साथ आये
    अभी इब्तिदा है नई सायतों की
    न जाने नया साल क्या गुल खिलाये

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