- या कुन्देन्दु- तुषारहार- धवला या शुभ्र- वस्त्रावृता या वीणावरदण्डमन्डितकरा या श्वेतपद्मासना |
- या ब्रह्माच्युत- शंकर- प्रभृतिभिर्देवैः सदा पूजिता सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ||
आज वसंत पंचमी है । मां शारदा का प्राकट्य दिवस । वसंत का उल्लास और आनंद चारों और बिखर जाता है । मां सरस्वती जो हम सब शब्द साधकों की आराध्य हैं । उनकी ही कृपा से हमें शब्द मिलते हैं, भाव मिलते हैं और हमें कविता लिखने का सलीका आता है । यद्यपि इस बार वसंत पंचमी कुछ पहले आ गई हैं । वातावरण में वसंत न होकर अभी शीत ही है । किन्तु आज का ये तरही मुशायरा पूरी तरह से समर्पित है मां सरस्वती को । उनके श्री चरणों में अपनी ग़ज़लों के पुष्प चढा़ने आ रहे हैं आज पाठशाला के ही तीन विद्यार्थी गौतम, कंचन और अंकित ।
कल रात में देर तक मुशायरे में रहा इसलिये आज की ये पोस्ट कुछ देर से लग रही है । मुशायरा खूब हुआ, श्रोता उठने का नाम ही नहीं ले रहे थे । मप्र उर्दू अकादमी की सचिव नुस्रत मेहदी जी, श्री राम मेश्राम जी, श्री अनवारे इस्लाम, श्री डॉ कैलाश गुरू स्वामी, श्री वीरेंद्र जैन जी, श्री डॉ मोहम्मद आज़म और श्री रियाज़ मोहम्मद रियाज़ इन सबने मिल कर समां बांध दिया । संचालन की डोर आपके ही इस मित्र के हाथ में थी । पूरे कार्यक्रम को अभिनव द्वारा भेजे गये विशेष उपकरण में रिकार्ड किया है जल्द ही आडियो फाइल को कहीं अपलोड कर आपको लिंक देता हूं । कल बहुत दिनों के बाद सचमुच कवित सुनने को मिली । मां सरस्वती इन दिनों बहुत अनुग्रह कर रहीं हैं । पहले कवि मित्रों का आगमन और अब शायर मित्रों का घर आना । एक कविता जिसे मैंने पांच साल पूर्व लिखा था उसे लिख कर कभी पढा़ नहीं था । कल यूं ही उसे पढ़ दिया तो उसे मिली दादा से मैं उसी प्रकार हैरान रह गया जैसे महुआ घटवारिन के समय रह गया था । कविता है दर्द बेचता हूं मैं ।
खैर तरही में आज वसंतोत्सव है और इस वंसतोत्सव में आज पाठशाला की प्रस्तुतियां देने आ रहे हैं तीन होनहार विद्यार्थी । तीनों ने कुछ शेर मां सरस्वती की वंदना में भी निकाले हैं । तरही को इस बार जो ऊंचाइयां मिल रहीं हैं वो सब मां शारदा का ही प्रताप है । हम तो बस ये कह सकते हैं तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा । पहला शेर जो ग़ज़ल से ऊपर लिखा जा रहा है वो इन तीनों की ओर से मां शारदा को अर्पण है ।
मैं आंखें मिला जग से सच ही लिखूं मां
मेरी सोच मेरी क़लम भी बताये
अंकित सफर
जो लोरी सुना माँ ज़रा थपथपाए.
दबे पांव निंदिया उन आँखों में आये.
चलो फिर से जी लें शरारत पुरानी,
बहुत दिन हुए अब तो अमिया चुराए.
खिंची कुछ लकीरों से आगे निकल तू,
नयी एक दुनिया है तुझको बुलाये.
मुझे जानते हैं यहाँ रहने वाले,
तभी तो दो पत्थर मिरी ओर आये.
किया जो भी उसका यूँ एहसां जता के,
तू नज़दीक आकर बहुत दूर जाये.
मैं उनमे कहीं ज़िन्दगी ढूँढता हूँ,
वो लम्हें तिरे साथ थे जो बिताये.
खुली जब मुड़ी पेज यादें लगा यूँ,
के तस्वीर कोई पुरानी दिखाए.
दुआओं में शामिल है ये हर किसी के,
नया साल जीवन में सुख ले के आये.
रहम वीणापाणि का इतना हुआ है
के हम भी अदीबों के संग बैठ पाए
कंचन चौहान
किसे कब हँसाये, किसे कब रुलाये,
ना जाने नया साल क्या गुल खिलाये।
समय चक्र की गति भला कौन जाने,
किसे दे बिछोड़ा, किसे ये मिलाये।
वो आते ही क्यों हैं भला जिंदगी में,
जो जायें तो भूले नही हैं भुलाये
नही काठ की, माँस की पुतलियाँ हम,
वो जब जी हँसाये, वो जब जी रुलाये।
मेरी ज़िद थी माँ से औ माँ की खुदा से,
जो अंबर का चंदा ज़मी पे नहाये।
कि ये साल होगा अलग साल से हर,
यही इक दिलासा हमें है जिलाये।
जो आँखौं के आगे नमूदार हो तुम,
तो खाबों को उनमें कोई क्यों बुलाये।
गली वो ही मंजिल समझ लेंगे हम तो,
जो जानम से हमको हमारे मिलाये।
वो अफसर थे सरकारी पिकनिक पे उस दिन,
गरीबों को मैडम से कंबल दिलाये।
लिहाफों, ज़ुराबों में ठिठुरे इधर हम,
उधर कोई छप्पर की लकड़ी जलाये।
कृपा शारदा की ये विद्या उन्हीं की
हुनर जो भी मेरा वो ही सब लिखाये
गौतम राजरिशी
गिराये, उठाये, रुलाये, हँसाये
न जाने नया साल क्या गुल खिलाये
है तरकीब कैसी समय की कहो ये
जो कल साल आया था, वो आज जाये
कोई बंदगी है कि दीवानगी ये
मैं बुत बन के देखूँ, वो जब मुस्कुराये
समंदर जो मचले किनारे की खातिर
लहर-दर-लहर क्यों उसे आजमाये
कहीं थम न जाये ये बाजार सारा
न गुजरा करो चौक से सर झुकाये
मचे खलबली, एक तूफान उट्ठे
झटक के जरा जुल्फ़ जब तू उड़ाये
हवा जब शरारत करे बादलों से
तो बारिश की बंसी ये मौसम सुनाये
हैं मगरुर वो गर, तो हम हैं मिजाजी
भला ऐसे में कौन किसको मनाये
क्या कहूं क्या लिखूं इन तीनों के बारे में । मो सरस्वती का आशीष तीनों पर यूं ही बना रहे ये ही कामना करता हूं । और ये ज़ुरूर लिखना चाहूंगा कि तीनों ने आज वसंत पंचमी को सार्थक कर दिया । तीनों ने ही कुछ शेर तो बिल्कुल ही उस्तादाना अंदाज़ में निकाले हैं । किस किस शेर को क्या क्या कहूं । बस कंठ रुंध रहा है और उंगलियां कांप रही हैं । सुनें और खूब सुनें इन सबको और आनंद लें दाद दें । हम मिलते हैं अगले अंक में विशेष आमंत्रित खंड में ।
exceelent creation
जवाब देंहटाएंmaa ka aashirvad hai
सुबीर भैया और आप सब,
जवाब देंहटाएंसबको बसंत पंचमी की शुभकामनाएं, माँ शारदा हमेशा हम पे कृपावान रहें, पहले हमारे जीवन और आतंरिक विचार और फ़िर बाहरी कथन और लेखन को शुभ और सुन्दर बनाएं. आमीन !
भैया, आपने कितना सुन्दर किया है ब्लॉग का लेआऊट आज, हम प्रवासियों को कितनी ठंडक मिलती है आपके इस ई-छत के नीचे आ कर! खुश रहिये, सपरिवार!
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आज होनहार बच्चों का दिन है, इसका कब से इंतज़ार था, अलग से एक ख़त भी भेजूंगी समय मिलते ही.
इन सब में अंकित जी ही ऐसे हैं जिनसे कभी बात नहीं हुई थी, पर कल किसी परिचित के ब्लॉग पे अंकित जी की एक टिपपणी पढ़ी तब लगा कि जो ये कहें उस पे ध्यान देना चाहिए. सो आज हाथ कंगन को आरसी क्या :)
उनका अमिया वाला शेर बहुत खट्टा- मीठा सा लगा और खिंची लकीरों वाला बहुत बुलंद लगा -- सुभानअल्लाह! अच्छी ग़ज़ल!
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कंचन के कुछ भाव बहुत प्यारे लगे.. अफसर और कम्बल वाला और मेरी ज़िद थी माँ से और माँ की खुदा से वाले मिसरे के भाव पढ़ के आँखें नम हो गयीं.. लिखते रहिये
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मेजर साहब की ग़ज़ल के बारे में कुछ कहूँ इतनी तो अक्ल खैर खुदा ने अब तक नहीं बख्शी है मुझे :) पर हाँ ये ज़रूर है कि उनकी कलम से इससे बेहतर बहुत कुछ पढ़ा-सुना है सो इस बार कम तारीफ़ करूँगी उनकी...
सो प्यारेलाल इस बार बस आपसे है मगरूर और मिज़ाजी वाला और बारिश की बंसी लिए जा रे हैं :)
शार्दुला दीदी
आपकी वह कविता "... बेचता हूँ" जिसका आपने ज़िक्र किया है भेजिए भैया!
जवाब देंहटाएंpankaj ji namaskar ,
जवाब देंहटाएंhamare desh men sahitya aur kala ke anmol ratanon ki koi kami nahin rahi kabhi aur desh ke ye bhavishya ye sabit kar rahe hain ki kabhi kami hogi bhi nahin.
samandar jo .......
bahut sundar gautam ji
lihafon jurabon...........
wah kanchan ji
jo lori ..........
ankit ji bachpan yad aa gaya.
pankaj ji bahut bahut shukriya
आदरणीय गुरुदेव,
जवाब देंहटाएंआपको एवं सभी को वसंत पंचमी की अनेक शुभकामनाएं. आज तो आपनी कक्षा के सबसे होनहार सितारों की रचनायें प्रस्तुत करी हैं. 'बहुत दिन हुए अब तो अमिया चुराए', भाई वाह अंकित जी नें तो समां ही बाँध दिया है. और एहसान जाता के वाला शेर भी बहुत बढ़िया लगा. कंचन जी नें भी क्या खूब ग़ज़ल कही है, 'मेरी जिद थी माँ से औ माँ की खुदा से' भाई वाह, 'गरीबों को मैडम से कम्बल दिलाये' और 'उधर कोई छप्पर की लकड़ी जलाये' भी गहराई में उतर गए. मेजर साहब के बारे में क्या कहें, मतला ही ऐसा है कि रोक लेता है पढ़ते पढ़ते, 'गिराए उठाये रुलाये हंसाये'. कमाल कि बात है गिराए और रुलाये के बावजूद ये पंक्ति सकारात्मक लगती है. 'हम हैं मिज़ाजी' वह भाई वाह बहुत बढ़िया. कुल मिला कर बहुत बढ़िया शेर पढने को मिले. तीनों काव्य रत्नों को अनेक शुभकामनाएं और बधाइयाँ.
आपका
अभिनव
सब से पहले तो आपको आपके परिवार को और इस मुशायरे के सभी पाठकों प्रतिभागियों व आयोजकों को बसंत पंचमी की बधाई। ये मुशायरा तो दिन ब दिन जवान होता जा रहा है। आपकी कविता और कवि सम्मेलन की रिपोर्ट पढने की उत्सुकता बढ गयी है। कमेन्ट थोदा थोदा कर के पोस्ट करती हूँ दो बार पहले नेट जाने की वजह से डिलीट हो चुका है।
जवाब देंहटाएंआप सभी को वसंत पंचमी की शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंअंकित ने क्या शे'र कहे हैं...
खिंची कुछ लकीरों से आगे निकल तू...
ऊँचा कद है इस छोटे शायर का.
कंचन जी के ये शे'र...
लिहाफों, जुताबों में ठिठुरे इधर हम...
जैसे शीत में भी शीतल शायरी बह रही है.
और गौतम भैया ने ये क्या कह दिया..
है तरकीब कैसी समय की कहो ये....
कोई बंदगी है या दीवानगी ये....
और
भला ऐसे में कौन किसको मनाये.
आज पाठशाला का सभी साथियों ने नयी पेशकश की है. गुरूजी आपने ले आउट भी खूब संवारा है...
इस मुशायरे मे अंकित सफर की गज़ल देख कर अचंभित हूँ इतनी कम उमर मे उस्तादाना गज़ल सही मे मा शारदे और आपके आशीर्वाद का असर है। उसका फन तो मतले मे ही नज़र आ गयाहै \
जवाब देंहटाएंमैं उनमे कहीं ज़िन्दगी ढूँढता हूँ
वो लम्हें तिरे साथ थे जो बिताये
किया जो भी उसका यूँ एहसां जता के
तू नज़दीक आ कर और दूर जाये
दोनो बहुत अच्छे लगे अंकित को बहुत बहुत बधाई
कंचन के लिये तो मेरे कुछ कहने की बात ही नहीं बहुत संवेदनायें समेट कर लिखती हैं
जवाब देंहटाएंरहम वीना पाणी का इतना हुया है
के हम भी अदीबों के संग बैठ पाये
बिलकुल सही कहा है उसने
वो आते ही क्यों भला ज़िन्दगी मे
जो जायें तो भूले नहीं हैं भुलायें
कमाल की गज़ल के लिये कंचन जी को बधाई
यही बताने आये थे की 'समंदर जो मचले...' वाला भी ले जा रहे हैं प्यारे लाल! क्या image बनी है अचानक दिमाग में!
जवाब देंहटाएंदीदी
पता नहीं नेट को क्या हो गया है जब लिखती हूँ तो लिखा गायब हो जाता है इस लिये टिप्पणी किश्तों मे दे रही हूँ
जवाब देंहटाएंअब गौतम जी तो यूँ भी ब्लागजगत के चहेते ,सब के दिलों पर छा जाने वाले इस कलम के और वतन के सिपाही पर माँ शारदे और समस्त देवताओं का आशीर्वाद है। इनकी गज़लों पर कह नहीं सकती मगर दिल मे गुन गुनाती जरूर हूँ । इन की गज़ल से बहुत कुछ सीखती भी हूँ
संमंदर जो मचले किनारे की खातिर
लहर दर लहर क्यों उसे आजमाये
वाह
मचे खलबली एक तूफां उट्ठे
झटक के जरा जुल्फ जब तू उडाये
है मगरूर वो तो हम हैं मिजाजी
भला ऐसे मे कौन किसको मनाये
वाह बहुत खूब गौतम जी को भी बहुत बहुत बधाई और आशीर्वाद । सुबीर जी आपका भी धन्यवाद और आशीर्वाद आप सदा इसी तरह लोगों को राह दिखाते रहें
basant panchmi ki hardik shubkamnayein aapko aur aaj ke teenon fankaron ko..........teeno hi gazal ek se badhkar ek hain.
जवाब देंहटाएंपंकज जी, आदाब
जवाब देंहटाएंबसंत पंचमी की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं
तीनों ने ये साबित कर दिया है कि आप ही के शागिर्द हैं
अंकित जी,
लोरी....अमिया....से लेकर दुआओं तक
आपकी परिपक्वता साफ झलकती है
कंचन जी,
बहुत अच्छे शेर निकाले हैं
गली वाला शेर.... सबसे खूबसूरत, और हासिले-ग़ज़ल है
गौतम जी,
बुत...समंदर..बाज़ार....ज़ुल्फ......
देश की रक्षा के लिये मज़बूत हाथ, चौकन्नी निगाहें
और इतना 'नाज़ुक' दिल...!!
बहुत खूब कहा है...वाह वाह
पंकज जी,
आज के दिन बस यही कामना है..
साहित्य जगत में आपका योगदान
'बुलंदी के आकाश पर जाके छाए'
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
पिछले तरही को भी आज ही दोबारा पढ पाई हूँ । लाजवाब रहा वो सफर भी । शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंगुरुदेव बसंती पंचमी का ये तोहफा हमेशा याद रहेगा ..मस्ती की पाठशाला के धुरंदर विद्यार्थियों ने समां बाँध दिया आज तरही मुशायरे में. अंकित सफ़र के इस उस्तादाना शेर का सरूर अभी तारी ही था
जवाब देंहटाएंखिंची कुछ लकीरों से बाहर निकल तू
नयी एक दुनिया है तुझको बुलाये
की कंचन के इस शेर ने कहर बरपा दिया...क्या सोच लफ्ज़ और अंदाज़ की बस तबियत खुश हो गयी...
वो आते ही क्यूँ हैं भला ज़िन्दगी में
जो जाएँ तो भूले नहीं हैं भुलाए
होश में आने की कोशिश करता उस से पहले ही गौतम के इस शेर ने ढेर कर दिया
कोई बंदगी है या दीवानगी ये
मैं बुत बन के देखूं वो जब मुस्कुराए
गौतम की तो पूरी ग़ज़ल की बसंती रंग में रंगी हुई है इस बार...खुशनुमा चुहुल करती हुई प्यारी सी...
रही सही कसर आपके ब्लॉग की साज सज्जा ने पूरी कर दी..बसंत पंचमी में और क्या चाहिए...
इस पोस्ट को पढ़ कर ताहिरा सैयद जो मलिका पुखराज की पुत्री हैं का गाया गीत " लो फिर बसंत आया...." याद आ गाया...और अभी उसे ही सुन रहा हूँ.
नीरज
बसंत पंचमी पर तीनों ने जो तोहफा दिया है ........... इसकी याद बहुत देर तक दिलों - दिमाग़ में गूँजती रहेगी ............. सभी को बसंत पंचमी की बहुत बहुत शुभकामनाएँ ............
जवाब देंहटाएंआँकित जी को पढ़ कर अभिभूत हूँ ..... इतनी छोटी उम्र में इतना सधा हुवा ......... अपनी मिटी से जुड़े शेर ..... चलो फिर से जी लें शरारत पुरानी .......... या फिर मुझे जानते हैं यहाँ रहने वाले ....... लाजवाब........
कंचन जी नेके शेरों में तो इतनी संवेदना है की आँखों के कोर भीग गये ....... उनके शेर ..... नही काठ की, माँस की पुतलियाँ हम....... या फिर ..... वो आते ही क्यों हैं भला जिंदगी में ...... दिल को अंदर तक भिगो जाते हैं .......
अब बात करें गौतम जी की तो बस इतना ही कह सकता हूँ ......... ये गाज़ल इस बात को साबित करती है की माँ सरस्वती का हाथ उनके सर पर हमेशा से ही है ....... और हमेशा ही रहेगा ...... हां मेजर साहब .... भीम और हनुमान का जीवट साहस तो आपमे है ही ....... किसी एक शेर को लिखने की जुर्रत नही कर सकता ...... पूरी ग़ज़ल लाजवाब कमाल है खिलता हुवा ........
वसंत पंचमी के दिन इससे अच्छा आशीर्वाद और क्या हो सकता है गुरुदेव जो आपने इन तीन अद्वितीय रचनाओं के रूप में आपने दिया है!!!
जवाब देंहटाएंमां सरस्वती को समर्पित आज के मुशायरे का क्या कहना. अंकित जितने छोटे हैं उतना ही बडा लिख रहे हैं. निंदिया, शरारत, अमिया, जैसे प्रतिमान, और तू नजदीक आके बहुत दूर जाये जैसा बिम्ब...बहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंकंचन जी की गज़ल भी बहुत सुन्दर है. मसलन- वो आते ही क्यों हैं....वाला शेर.
गौतम जी के लिये क्या कहूं? शब्दातीत....
"समंदर जो मचले किनारे की खातिर
लहर दर लहर क्यों उसे आजमाये"
कितना सुन्दर बिम्ब!!
और-
"हैं मगरूर वो गर, तो हम हैं मिजाज़ी
भला ऐसे में कौन किसको मनाये"
सुभानल्लाह!
शेर तो और भी हैं जो अच्छे हैं लेकिन कुछ खुलकर दहाड़ रहे हैं तो दूर से भी समझ आ रहे हैं कि भाई बिल्कुल नौजवान शेर हैं।
जवाब देंहटाएंचलो फिर से जी लें शरारत पुरानी........
किया जो भी उसका यूँ एहसॉं जता के.....
लिहाफों, ज़ुराबों में ठिठुरे इधर हम ...
कोई बंदगी है कि दीवानगी ये...
और
कहीं थम ना जाये ये बाज़ार सारा ....
वाह, वाह और वाह वाह।
कृपा शारदा की, ये विद्या उन्ही की,
जवाब देंहटाएंहुनर जो भी मेरा वो ही सब लिखाये।
ये शेर पढ़ने के बाद जो आ रहा है लगातार मन मे वो है
गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागूँ पाँय,
बलिहारी गुरू आपकी, गोविंद दियो बताय
सर्वप्रथम नमन वीणापाणि को, सच जिसकी कृपा से आप मिले।
जवाब देंहटाएंकल जब इस विषय में सोच रही थी पॉल कोलो की नावेल एलकेमिस्ट बार बार याद आ रही थी।
ऐसा लगता है कि नीयति सब कुछ पूर्व निर्धारित रखती है। तभी तो जब ७वीं में पढ़ती थी तब किसी ने हाथ देख कर कहा कि अपना एक आराध्य निर्धारित कर लो...कोई भी जो मन को ठीक लगे, तो सारे देवी देवताओं से माँ शारदा को ही चुना था। शायद इसलिये क्योंकि ये विद्या की देवी थीं। और तब क्लास में पास हो जाना ही सबसे बड़ी दुआ होती थी।
फिर संगीत अपने आप आ गया जीवन में विषय और कुछ स्नेही गुरुओं के रूप में। तो शारदा ही आराध्य बनी रहीं और फिर ये शब्दों का खेल भाने लगा। तो फिर माँ शारदा ही आराध्य...! ऐसा लगता है कि मैने नही बल्कि उन्होने उस बचपन में मुझे चुना था। आप सब से मिलाने के लिये....!!
फिर प्रणाम उस माँ को इस कामना के साथ कि बुद्धि और विचार शुद्ध रखे हम सभी के।
पीले रंगा का ये बासंती फॉर्मेट आँखों को ऊर्जा दे रहा है।
अंकित के पास संवेदनाएं बहुत हैं। मिट्टी तैयार है उसकी और आपकी एक एक बात वो जिस तरह अनुसरण करता है, घुट्टी की तरह ...! वो बहुत आगे जायेगा ..और हम सब का तो लाड़ला है ही वो भोला बच्चा।
मैं आँखें मिला जग से सच ही लिखूँ माँ,
मेरी सोच मेरी कलम भी बताये।
वाऽऽह..ये वो भाव है जिसे मैं बहुत देर तक शेर में ढालने की कोशिश करती रही, मगर सफल नही हुई। आशीष तुम्हें अकित इतनी खुबसूरती से ये बात कहने पर..!
तुम्हारा अमिया चुराना लोगो का दिल चुरा रहा है भाई..!
और हाँ बच्चे कुछ ज्यादा आगे निकल जाना,
खिंची लकीरों से...!आजकल थोड़ा बड़ों की तरह सोचने लगी हूँ तो तुम्हारा ये शेर डरा रहा है
हा हा हा..पर असर भी बहुत डाल रहा है।
और ये अहसाँ जता कर काम करने वाली बात बहुत बढ़ियाँ कही तुमने..!
तुम खुशकिस्मत हो कि तरही तब लिखी जब जाने क्या गुल खिलाये का संदेह जीवन में सुख ले के आये की प्रार्थना में बदल चुका था...! :) तुम्हार मिसरे पर... आमीन
और अब वीर जी
हम्म्म्म... इतने रूमानियत भरे शेर तो बेचारे अंकित ने नही निकाले, जिसकी अभी उम्र है ये सब करने की, जितने आप ने निकाल दिये .....! गज़ल बताती है कि भौजाई काश्मीर में हैं। :)
अब अगर मन की बात बोलूँगी तो फिर कहोगे "ओह कमान कंचन शटअप"
तो चुप ही हो जाती हूँ, मगर सच में मुझे कोई शेर कमजोर नही लग रहा। सारे शेर अलग से लग रहे हैं। सभी बातें सिम्पिलिसिटी विथ ब्यूटी सी लग रही हैं। फिर से पढ़ के कमी ढूँढ़ती हूँ तो मतला ही कॉमन लगता है, क्योकि वो ही मैने सोचा और शायद कुछ लोगो का और भी यही मतला बन रहा था, जिन्होने बाद में बदला। समंदर वालाशेर और अंतिम मजाजी वाला इसकी तो बात ही अलग लग रही है। और बुत वाला बाज़ार वाल, बारिश की वंशी वाला .... ये सारे ही शेर मुझे इम्प्रेस कर रहे हैं। वैसे भी छोटी बु्द्धि है, जल्दी संतुष्ट होती है...! क्या करूँ...?
आप सभी को वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ...
जवाब देंहटाएंइस सुअवसर पर तीनो ग़ज़लों के हर एक शे'र बेहद लाजवाब हैं...आप तीनों लोंगों को तो माँ सरस्वती का वरदान प्राप्त है...बहुत खूब
प्रणाम गुरु जी,
जवाब देंहटाएंबसंत पंचमी की आपको बहुत बहुत शुभकामनायें, ब्लॉग बहुत सुन्दर लग रहा है.
जल्द ही दोबारा आता हूँ,
.
जवाब देंहटाएं.
.
खिंची कुछ लकीरों से बाहर निकल तू,
नयी एक दुनिया है तुझको बुलाये ।
जो आंखों के आगे नमूदार हो तुम,
तो खाबों को उनमें कोई क्यों बुलाये।
लिहाफों,जुराबों में ठिठुरे इधर हम,
उधर कोई छप्पर की लकड़ी जलाये।
गज़लें तो तीनों ही अच्छी हैं पर यह तीनों शेर जुबां पर चढ़ जायेंगे।
आभार!
गुरुदेव को और मुशायरे के समस्त शायरों और श्रोता बंधुओं को बंसतागमन की हार्दिक शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंकंचन ने मेरे ख्याल से कठिनतम काफ़ियों का चुनाव कर अपने लिये कार्य को दुरुह कर लिया था, लेकिन उतनी ही सहजता से कहे गये सारे शेर चकित कर रहे हैं। "आये" की आसानी को रद्द करते हुये "लाये" का चुनाव कर उसने अपने विकल्पों को सीमित कर लिया था, लेकिन इतने अच्छे अशआर निकाले हैं उसने कि...वो चांद वाला शेर, अनुजा, यहां पढ़ने के बाद वाकई चमत्कृत कर रहा है। god bless you sis!
और अंकित तो उफ़्फ़्फ़्फ़! उसकी ग़ज़ल आज की अन्य दो प्रस्तुतियों और अभी तक की सारी प्रस्तुतियों पर मेरी समझ से हावी है...बहुत खूब अंकित। सीहोर की नजदीकी और गुरुदेव का सानिध्य...आह! होना ही था ये तो। लेकिन वो "मुड़ी पेज यादें" वाला शेर तनिक स्पष्ट नहीं हो पा रहा कि शेर का कथन "यादें" शब्द को मिस्रा सानी में रहना माँगता है।
@शर्दुला दी,
काश कि आपकी तरह बोलने वाले जो कई सारे होते इस ब्लौग पे तो अपना लिखना सफल हो जाता। ...और ये आप साफ्ट क्यों हो गयी आखिर में? not done Di!
परम आदरणीय गुरुदेव,
जवाब देंहटाएंआप सबको वसंत पंचमी महापर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं..
नत मस्तक हूँ आपकी दी गई शिक्षा और कलम के कुशल कारीगर गौतम भाई और अंकित भाई एवं कंचन जी के आगे..
उनकी ग़ज़ल में ना सिर्फ ग़ज़ल के व्याकरण की दृष्टि से बल्कि भावनात्मक दृष्टि से भी परिपक्वता परिलक्षित होती है..
मेरी यही कामना है की आप सब इसी तरह लेखन के क्षेत्र में नित नए आयाम तय करते रहें...
गुरुदेव का हाथ तो आप सबके सर पर है ही... उनके लिए 'श्याम नारायण पाण्डेय जी' के तुमुल खण्ड काव्य से २ पंक्तियाँ अर्पित हैं-
''जिस पर कृपा हो आपकी
वह जग विजेता हो गया,
उसको ना कुछ दुर्लभ
धरा का धीर नेता हो गया..''
आपके मुशायरे की फाइल के attach होने का बेसब्री से इंतज़ार है..
आपका ही शिष्य-
दीपक(दुनिया के लिए मशाल)
सबसे पहले तो माँ शारदे को नमन और गुरु देव को सादर प्रणाम इस शुभ दिन पर ...
जवाब देंहटाएंये माँ की ही कृपा है के हम सभी इस उम्र में आकर मिले , दुआएं यही होंगी की
ये साथ सभी का बना रहे !
सच में गुरु जी तरही आज अपने शबाब पर है आज अंकित की ग़ज़ल पढ़
लग गया के भोपाल प्रवास के दौरान और सीहोर के पाक जमीं पर उसने जरुर
सिखा है ... आपका आशीर्वाद दिख रहा है साफ़ साफ़ गुरु देव ...
मतला कमाल का है उसका क्या खुबसूरत एहसास दिलाये हैं उसने मगर उसका यह
शे'र मुझे दीवाना बना रहा है , मुझे जानते है यहाँ रहने वाले ... क्या करीने की बात की है
इसने... यह फर्क और असर दिखा है भोपाल आने का प्रभु मुझे भी बुला लो एक बारी ...
बहुत ही खुबसूरत ग़ज़ल वाह दिल से करोडो बधाई... इस लाडले के लिए ..
बातूनी बहना :) :) .) पर तो माँ शारदे की तो असीम कृपा है क्या गाती हैं लिखती हैं...
रश्क वाली बात आगई है गुरु देव यहाँ तो सच में इन्होने नहीं बल्कि माँ ने इनको चुना है ...
माँ शारदे के लिए जो इन्होने शे'र कहे हैं उसमे शब्द अदीबों का इस्तेमाल हाय रे ... क्या खूब कही
है इन्होने इस बात पे शक होता जा रहा है मुझे के मैं जितना जनता हूँ इनको ...
कन्फ्यूजन बढ़ता जा रहा है ...:)
अपने शे'र में जिस तरह से ये देसज शब्द का इस्तेमाल करती हैं वो कमाल का होता है ..
शब्द ..बिछोड़ा ,किस खूबसूरती से इस्तेमाल किया है इन्होने गर्व करता हूँ अपनी इस प्यारी बहन पर ... :) और शे'र गली वो ही मजिल समाझ लेंगे हम तो ... इस पर फिर से हाय रे वाली बात है ... :) और आखिरी शे'र दर्द की जो दास्ताँ कह रहा है ... कमाल की बात की है उन्होंने ... सच कहूँ तो सीना चौड़ा हो जाता है जब भी इनको पढता हूँ ... :)
और इस्बारी गौतम जीने यह प्रयोग किया है जो पिचाली दफा शायद... आजम साहिब ने और \उसके पहले अभिनव जी ने किया था ...ग़ज़ल का पहला शे'र ...
कोई बंदगी /कहीं थम न जाए /मचे खलबली /है मगरूर/सच में भाभी जी हैं कश्मीर में ... :) :) :ल)
इनकी ग़ज़लों के बारे में क्या खून फिर से नायाब...
सच में इन तीनो ने आज बसंत पंचमी को सार्थक किया है मगर गुरु देव
रश्क की बात करूँ तो इस बात पर के आपके कंठ रुंध रहे हैं और उंगलियाँ कांप रही हैं...
:) :) :) ...
माँ शारदे को और गुरु जी आपको चरण स्पर्श ...
सभी को मुबारक आज का यह शुभ दिन ...
अर्श
समस्त गुरूकुल और स्नेहीजनों को वसंत पंचमी की शुभकामनायें। सबके लिये मां वाणी से " दयामयि देवी वरदे शारदे, न विसार दे हमको" की प्रार्थना। आज की प्रस्तुति कई कारणों से अनूठी है। पहले तो दिन विशेष, दूसरे तरही पूरे शबाब पर है और तीसरे गुरूदेव को किसी ने भी निराश नहीं किया है, उनकी शिक्षा फलवती हुई है। तीनों गज़लें अपने आप में मिसाल हैं। अंकित के मामले में तो बड़े भाई गौतम जी ने बिल्कुल ठीक पकड़ा-ये "छू दिया जिसे वह स्वर्ण हुआ" वाले गुरूदेव के सानिध्य का सीधा असर है। अमिया चुराने से लेकर खींची लकीरों से आगे निकलना और मक्ता खास पसंद आये।
जवाब देंहटाएंकंचन जी के बारे में पहले ही लोग कहते हैं कि वो कलमतोड़ लिखती हैं, सो उम्मीद भी वैसी ही थी और मजे कि बात ये है कि लिखा उन्होने उससे भी बढ़्कर है। काठ,मांस की पुतलियों वाला शेर कई बार पढ़ना पड़ा। मेरी जिद थी मां से और....बहुत-बहुत सुंदर(काफ़िये पर शायद लोग आपत्ति करें इसके बावजूद भी भाव की सुंदरता और कुछ सोचने का मौका नहीं देती)मक्ते पर क्या कहूं....गजब का है।
गौतम जी की गज़ल तो पता ही था मुझे कि धमाकेदार है। बंदगी-दीवानगी, समंदर-किनारे,बारिश की बंशी और ऊपर से मक्ता!! मतलब जान लेने में कोई कसर नहीं छोड़ी भाई ने। इन शेरों को बार-बार पढ़ रहा हूं।
तीनों ने ही मक्ते में कमाल किया है, कितना अद्भुत संयोग है।
माँ सरस्वती , बसंत पर्व पर आज आपके जाल घर पर पूर्ण रूपें अवतरित हुईं हैं और कृपा वर्षा बरसा रहीं हैं
जवाब देंहटाएंये बात साफ़ है - आपके तीनों शागिर्द , बढ़िया गज़लें लिखाकर, माँ के चरणों में अपनी प्रतिभा के पुष्प
निछावर करते हुए, अपने गुरुदेव की भी योशोगाथा लिख रहे हैं ऐसा लगा - साज सज्जा नयनों को और ह्रदय को वीणा के तारों से
और सुन्दर वासंत रंगों की आभा से तृप्त कर रहीं हैं सभी को वसंत पर्व पर मंगल कामनाएं
स स्नेह,
- लावण्या
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जवाब देंहटाएं@अंकित जी,
जवाब देंहटाएंकम उम्र में गजल की उस्तादी,ज़रा बताएं ये हुनर कैसे मिला...
जो लोरी सुना माँ जरा थपथपाए
दबे पाँव निंदिया उन आँखों में आए
भावों के साथ उस्तादाना गिरह ,वाह!
खिंची कुछ लकीरों से आगे निकल तू
नयी एक दुनिया है तुझको बुलाए.
परिवर्तन और प्रगति खिंची लकीरों के पार ही तो है..
क्या बात है!पूरी गजल कमाल है.
@कंचन जी,
वैसे तो गुरुकुल के सीनियर के रूप में हम आपको बहुत मानते है...और मेरी जिज्ञासा का सही समाधान कर आपने और गौतम भाई ने पूरी क्लास से खूब तालियाँ बजवाई थी...पर आज तो आपको गोल्ड मेडल के पास देख रहे है.....
नहीं काठ की मांस की पुतलियाँ हम
वो जब जी हसाए वो जब जी रुलाए
इस शेर के तेवर देखते बनते है.
मेरी जिद ही माँ से और माँ की खुदा से
जो अम्बर का चंदा जमी पे नहाए
भावो से भरे इस शेर में आवाज दिल की गहराई में उतर रही है...
गली वो ही मंजिल समझ लेंगे हम तो
जो जानम से हमको हमारे मिलाए
इसकी खूबसूरती का क्या कहना !
आपके हर शेर पर विस्तार से लिखा जा सकता पर वो कमेन्ट बोक्स में आएगा नहीं और फिर गौतम भाई(उर्फ़ शार्दूला दी के प्यारे लाल )पर बहुत कुछ लिखना है,इसलिए फिलहाल आपकी बेहतरीन गजल को आत्मसात कर रहा हूँ.
@गौतम भाई,
गिराए उठाए रुलाए हँसाए
न जाने नया साल क्या गुल खिलाए
इसमें आप शब्दों से जादूगर की तरह खेल गए है..मजा आ गया.(वैसे इनको 'गिराए उठाए हँसाए रुलाए' लिखते तो भी अच्छा लगता)
समंदर जो मचले किनारे की खातिर
लहर दर लहर क्यों उसे आजमाएं
इस पर आपको कडक सेलूट करने को जी चाहता है.ये शेर तो मैंने लिख लिया है और आने वाली कई पार्टियों में इसको बाकायदा कोट अनकोट सुनाया जाएगा.
कहीं थम न जाए बाजार सारा
न गुजरा करो चौक से सर झुकाए
मचे खलबली एक तूफ़ान उट्ठे
झटक के जरा जुल्फ जब तू उडाए
ये दोनों शेर दुसरे और तीसरे पैग के बाद सुनाए जाएंगे.
मगर झूम उट्ठा इस शेर पर
है मगरूर वो गर तो हम है मिजाजी
भला ऐसे में कौन किसको मनाए
शार्दूला दी आपको प्यारेलाल कह कर छेड़ रही है पर हम तो आपको गजल का प्रोफ़ेसर कहेंगे ....प्रोफ़ेसर प्यारेलाल !
जिन्दगी है इक सफ़र सुहाना ...!
@गुरुदेव,
बसंत पंचमी पर बदला और मनमोहक कलेवर आनंदित कर रहा है...सरस्वती माँ की अनुपम कृपा हो रही है आपके इस मुशायरे पर.आपके वाग्देवी को अर्पित अशआर सब बयाँ कर रहे है...आपके प्रिय शिष्यों के प्रति आपका असीम स्नेह!अद्भुत और भावपूर्ण...आपके शिष्य भाग्यशाली है!
प्रकाश
BHAI PANKAJ JEE,AAPKE SABHEE
जवाब देंहटाएंSHISHYA SHER BAHUT KHOOB KAH RAHE
HAIN.SABKE SHERON KEE BHAVABHIVYAKTI SUNDAR AUR SAHAJ
HAI.SABKO BADHAAEE AUR SHUBH KAMNA.
आप सभी को वसंत पंचमी की शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंअंकित सफ़र, कंचन चौहान और गौतम राजरिशी तीनों की ग़ज़लें स्तरीय हैं.
अंकित का ये शेर बहुत पसंद आया:
मुझे जानते हैं यहाँ रहने वाले
तभी तो दो पत्थर मिरी ओर आये
कंचन जी की रचनाएं बड़ी संवेदनशील होती हैं. यह ग़ज़ल भी उसी तरह दिल को छूती
हुई लगती है.
लिहाफों, जुराबों में ठिठुरे इधर हम
उधर कोई छप्पर की लकड़ी जलाये.
बहुत सुन्दर
गौतम राजरिशी की ग़ज़ल में मज़ा आ गया.
मचे खलबली, एक तूफ़ान उट्ठे
झटक के ज़रा ज़ुल्फ़ जब तू उड़ाए
गौतम, आपने एक अंग्रेज़ी की बहुत पुरानी फिल्म की याद दिला दी जिसमें रीटा हेवर्थ ने एक सीन में ज़ुल्फ़ उड़ाने का बिलकुल यही अंदाज़ दिखाया था.
मुझे फिल्म का नाम याद नहीं आ रहा लेकिन वह सीन अभी भी नहीं भूल पाया.
हैं मग़रूर वो गर, तो हम हैं मिज़ाजी
भला ऐसे में कौन किसको मनाये
समंदर जो मचले किनारे की ख़ातिर
लहर-दर-लहर क्यों उसे आज़माए
बहुत खूब!
सुबीर जी इस आयोजन के लिए कितना काम करते हैं, सोच भी नहीं सकता. धन्य हो तुम.
सचमुच तीनो ही ग़ज़ल और उनके सभी के सभी शेर अपने प्रवाह में ऐसे बहा गए कि बस क्या कहें........ बहुत बहुत बहुत ही नायाब ... लाजवाब !!!
जवाब देंहटाएंमाँ वीणापाणी हम सब पर अपनी कृपादृष्टि बनाये रखें,हमें सद्बुद्धि दें...
पंकज भाई,
जवाब देंहटाएंबसंत पंचमी की सबों को हार्दिक शुभकामनायें।
आज की तीनों ग़ज़लें लाजवाब हैं।बहुत ही उम्दा शेर निकले हैं रचनाकारों की कलम से। मेरी तरफ़ से सबों को बहुत बहुत मुबारक हो।
पंकज भाई, अगर आप अपनी रचना ’दर्द बेचता हूँ’भेज सकें तो पढ़ना चाहूँगा।धन्यवाद
आपके तीन होनहार विद्यार्थियों में से मेजर साहब का तो मैं पहले से मुरीद हूँ.शेष दो को भी आज पढ़ने का सौभाग्य मिला.
जवाब देंहटाएंमाँ सरस्वती की वंदना में निकले सभी शेर लाजवाब हैं.
चलो फिर से जी लें शरारत पुरानी
बहुत दिन हुए अब तो अमिया चुराए.
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वो अफसर थे सरकारी पिकनिक पे उस दिन
गरीबों को मैडम से कम्बल दिलाए.
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हैं मगरूर वो गर, तो हम हैं मिजाजी
भला ऐसे में कौन किसको मनाये.
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..वाह. क्या बात है. सभी को शत-शत नमन.
@ कंचन दीदी,
जवाब देंहटाएंमतले में मज़ा नहीं आया, ये काफिया तो तय था और आपने इसे मतले में लाकर इस ग़ज़ल को थोडा कम प्यार दिया.
ये शेर "वो आते ही क्यों हैं.......", दिल खुश हो गया इस शेर को पढ़ कर आपने इसे बहुत अच्छा निभाया है
अगला शेर "नहीं काठ की मांस ..............." तो बेहतरीन शेर है ग़ज़ल का,
"मेरी जिद थी माँ से.............." शेर का मिसरा-ए-उला बहुत अच्छा है,
"जो आँखों के आगे................" वाह वाह वाह, इस शेर को पढ़ के दिल गार्डेन गार्डेन हो रहा है,
"वो अफसर थे..............." तो निसंदेह उम्दा शेर है और इस ग़ज़ल के बेहतरीन शेरों में से एक है
"लिहाफों जुराबों ......" तो लखनऊ की हालात और खासकर आपकी हालात को बयाँ कर रहा है.
माँ सरस्वती कि वंदना में लिखा शेर तो फ़ोन पे भी सुन चुका था और आप ने ही सबसे पहले शेर निकला था बहुत अच्छा शेर है और मेरी बातों को भी बयाँ कर रहा है कि" हम भी अदीबों के संग बैठपाए"
एक अच्छी ग़ज़ल पढवाने के लिए शुक्रिया
@ गौतम भैय्या,
"कृपा शारदा की.........", माँ की वंदना करता हुआ ये शेर ही कह रहा है की ग़ज़ल उम्दा होगी क्योंकि माँ का आशीर्वाद आपके साथ है और आप जब लिखते हो तो जादू कर देते हो.
"कोई बंदगी .................", "कहीं थम न जाये..........", मचे खलबली.............." और "है मगरू ......." तो प्यार को पिरोये हुए शेर हैं जो एक अलग ही आनंद की अनुभूति दे रहे हैं.
"हवा जब शरारत ........." शेर प्रकृति की खूबसूरत अदाओं को अपने में समेटे है, उम्दा शेर है.
आपकी ग़ज़ल का हमेशा ही इंतज़ार रहता है और वो कभी निराश भी नहीं करती है, हर तारीफ भी कम पड़ जाएगी.
@ गौतम भईया "खुली जब मुड़ी पेज यादें...." में मैं एक छिपे रूप में डायरी की बात कर रहा है, अक्सर हम जो हमारी ज़िन्दगी के करीब या कुछ खास पन्ने होते हैं उन्हें मोड़ के रख देते हैं और यादों में डूबने के लिए उन्हें जब खोलते हैं तो वापिस उसी जगह उसी माहौल में ख़ुद को पाते हैं. यही सोच के मैंने ये शेर लिखा है.
जवाब देंहटाएं@ शार्दूला दीदी, आपने जो बात कही है "इन सब में अंकित जी ही ऐसे हैं जिनसे कभी बात नहीं हुई थी, पर कल किसी परिचित के ब्लॉग पे अंकित जी की एक टिपपणी पढ़ी तब लगा कि जो ये कहें उस पे ध्यान देना चाहिए. सो आज हाथ कंगन को आरसी क्या :)"
मेरे लिए बहुत खास बन गयी है, मैं कोशिश करूंगा मैं सब की उमीदों पे खरा उतरु.