तरही का समापन आ ही चुका है । आज की पोस्ट के बाद अब केवल एक और पोस्ट शायद लगे । क्योंकि मैं चाह रहा था कि समापन एक शायर और एक शायरा से हो । वैसे तो आज भी यही काम्बिनेशन है लेकिन अंतिम प्रस्तुति में भी यही होगा । ये चारों नाम मैंने आखिरी दो पोस्टों के लिये संभाल के रखे थे । आज देवी नागरानी जी हैं और अगली पोस्ट में जो शायरा आएंगीं, इन दोनों का एक गुण बहुत मिलता है, वो ये कि इन दोनों में ही ज्ञानार्जन की उत्कट ललक है । आज दादा भाई महावीर जी का आशीष भी मिल रहा है । हालांकि उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं है किन्तु फिर भी उन्होंने अपना आशीष तरही के लिये भेजा ये बड़ी बात है । अगले अंक में जो शायर आएंगें वे भी एक स्थापित शायर हैं । ये चारों नाम मैंने पहले से ही समापन के लिये छांट कर अलग रख दिये थे । उसको कारण ये था कि मैं चाहता था कि तरही का भव्य समापन भी हो ।
सूचना तथा आमंत्रण
शिवना प्रकाशन के वार्षिक आयोजन की तारीख 26 फरवरी तय की गई है । उस दिन शिवना प्रकाशन की दो नई पुस्तकों 'एक खुशबू टहलती रही' ( मोनिका हठीला ) तथा 'विरह के रंग' ( सीमा गुप्ता ) का विमोचन होना है । कवि सम्मेलन, सम्मान समारोह तथा अन्य बहुत कुछ करने की योजना है । 26 के बाद लगातार तीन दिन अवकाश है इसलिये आप आराम से आ सकते हैं । सीहोर दिल्ली तथा बंबई से सीधे रेल मार्ग पर है । अपने आने का कार्यक्रम तय करके सूचित करें ।
कुछ लोगों को शिकायत है कि ग़ज़ल का सफर ब्लाग नियमित नहीं हो पा रहा है । आप सब जानते हैं कि यहां पर सप्ताह में तीन पोस्ट लगानी पड़ रही हैं । फिर अपनी वेब साइट http://www.subeer.com को फिर से डिजाइन कर रहा हूं क्योंकि वो बहुत खराब तरीके से बनी थी। फिर ये कि शिवना प्रकाशन की दोनों पुस्तकों पर फाइनल कार्य चल रहा था ।
तो चलिये आज आनंद लेते हैं दादा भाई की बहरे हजज पर लिखी गई एक शानदार ग़ज़ल का और देवी नागरानी जी की ग़ज़ल का ।
दादा भाई श्रद्धेय महावीर शर्मा जी
प्रिय सुबीर
आजकल मैं भी 'महावीर' पर कवि-सम्मलेन के लिए कवियों से उनकी रचनाएं इकट्ठी करने में व्यस्त रहा. अभी भी रचनाएँ आ रही हैं जिसकी वजह से पोस्ट करने में परेशानी सी आजाती है. इसे कल सुबह पोस्ट करके लगानी है.इसीलिए तरही पर तो कुछ न लिख सका, बस कुछ दिन पहले नए साल पर 'हजज़' में एक ग़ज़ल लिखी थी, वह मैं भेज देता हूँ अगर इससे काम चल सके. आज इस कवि-सम्मलेन की वजह से वक्त और मूड दोनों ही साथ नहीं दे रहे. आप जानते ही हैं कि अब मैं बहुत ही कम लिख पाता हूँ.
बह्र हजज़ पर नए साल की ग़ज़ल:
मिले हैं प्यार के आसार नूतन वर्ष में यारो
मिला दुश्मन भी जैसे यार नूतन वर्ष में यारो
मुहब्बत की नज़र से देखिये सारे ज़माने को
न हो फिर आपसी तक़रार नूतन वर्ष में यारो
मिटा कर नफ़रतें दिल से बनाएं स्वर्ग धरती को
न होंगे हाथ में हथियार नूतन वर्ष में यारो
कोई भूका कहीं भी हाथ फैलाए न सड़कों पर
न इन्सां हो कोई लाचार नूतन वर्ष में यारो
अधूरे रह गए हैं जो पुराने साल में सपने
उन्हीं को हम करें साकार नूतन वर्ष में यारो
ज़माना होगया देखे बिना बिछड़े हुए साथी
कहीं हो जायेगा दीदार नूतन वर्ष में यारो.
कितनी सकारात्मक सोच से भरी हुई ग़ज़ल है पूरी । सब के लिये कोई न कोई शुभकामना लिये हुए है पूरी की पूरी ग़ज़ल । मुहब्बत की नज़र से देखिये सारे ज़माने को, ये शेर उन सबकों सुनाना चाहिये जिन लोगों ने चंद स्वार्थों के चलते इतनी सुंदर दुनिया को नर्क बना दिया है । कहीं हो जाएगा दीदार नूतन वर्ष में यारों कितनी सकारात्मक सोच है । ईश्वर दादा भाई को दीर्घायु करे स्वस्थ रखे । उनकी लेखनी यूं ही आशीष बरसाती रहे ।
आदरणीया देवी नागरानी जी
नया साल
चले जब पुराना नया साल आए
इसे देखकर सब के सब मुस्कराए
बहुत हो चुका अब न झांसे में आना
'न जाने नया साल क्या गुल खिलाए'
कहाँ ये पुरानी, हैं कल की तो बातें
गज़ब "त्ताज" पर कम नहीं इसने ढाए
धमाकों की आवाज़ कानों में गूंजे
ख़ुशी में कोई गर फटाके जलाए
दरारें धमाकों से सीने पे आईं
कहो मामता उसको कैसे भुलाए
जो ममता की चौखट पे कुरबां हुए कल
कई दीप यादों में फिर झिलमिलाए
'मुबारक' ख़ुशी 'अलविदा' ग़म तुझे हो
कभी फिर न जीवन में तू लौट आए
न करती जहाँ दहशतें रक्सां 'देवी'
उसी सर-ज़मीं को कोई घर ले आए
मुबारक ख़ुशी अलविदा ग़म तुझे हो बीते हुए साल के लिये और आने वाले साल के लिये इससे बेहतर और क्या दुआ की जा सकती है । आज के डरे हुए इन्सान के लिये धमाकों की आवाज़ कानों में गूंजे जैसे शेर बिल्कुल सामयिक हैं । जो ममता की चौखट पे कुरबां हुए कल, शेर पढ़कर कर संदीप उन्नीकृष्णन की याद आ गई ।
तो आप लीजिये दोनों ग़ज़लों का आनंद और प्रतीक्षा करें अगले धमाकेदार समापन अंक का जिसमें होगी एक शायर और एक शायरा की जुगलबंदी । दाद देते रहें मुझे आज्ञा दें ।
देवी जी और महावीर जी, दोनों को बस नमन करुँ और उनकी रचनाओं से आशीर्वाद प्राप्त करुँ, इतनी ही औकात है मेरी, उससे आगे एक भी शब्द कहना मेरे लिए संभव नहीं.
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका इस प्रस्तुति के लिए.
दोनों ही उस्तादों को प्रणाम,
जवाब देंहटाएंतारीफ़ के लिये शब्द नहीं हैं। बहुत ही मंजी हुई और असरदार ग़ज़लें हैं।किसी भी शेर को छोड़ा नहीं जा सकता फिर भी ’मुहब्बत की नज़र से देखिये ज़माने को’ और ’दरारें धमाकों से सीने पे आई हैं’ बहुत ध्यान खींचते हैं। बधाई हो।
ऐसी अद्भुत रचनायें प्रस्तुत करने के लिये ध्न्यवाद
आदरणीय महावीर जी का नाम सुनते ही सिर झुक जाता है मुझे उनको देख कर हिम्मत मिलती है कि वो इस उम्र मे भी किस तरह कर्मनिष्ठ और साहित्य सेवा के लिये प्रतिबद्ध हैं। उनकी गज़ल के लिये भी कुछ कहने मे भा समर्थ नही हूँ। उनका हर शेर गज़ल की बारीकियाँ सीखने के लिये कई बार पढ चुकी हूँ। सकारात्मक भाव और नूतन सन्देश लिये
जवाब देंहटाएंमुहब्बत की बज़र से देखिये सारे जमाने को
न हो फिर आपसी तकरार नूतन वर्ष मे यारो
कोई भूक कहीं भी हाथ फैलाये न सडकों पर
न हो इन्सां कोई लाचार नूतन वर्ष मे यारो
सारी दुनिया के लिये सुन्दर सण्देश देती गज़ल के लिये उन्हें साधुवाद
देवी नागरानी जी को भी आदरणीय महावीर जी के ब्लाग से ही जाना है पढा है कहानी भी बहुत अच्छी लिखती हैं गज़ल भी ।
जो ममता की चौखट पे कुरबां हुये कल्
कई दीप यादों मे फिर झिलमिलाये
मुबारक खुशी अल्विदा गम तुझे हो
कभी फिर न जीवन मे तू लौट आये
वाह बहुत सुन्दर शेर हैं । इस गज़ल के लिये देवी जी को बधाई।
अनुज सुबीर को आशीर्वाद दिये बिना दिल नहीं मानता ये रोनकें ये महफिलें उन की बदौलत ही खुशियां बिखेर रही है सभी को बहुत बहुत बधाई। क्या करूँ अपनी खुशी मुझ से छिपाये नहीं छुपती
सलाम है उनकी कलम को और कर्मनिष्ठा को
आदरणीय महावीर जी से एक आध बार फोन पर ही बात हुई है और ये फोन उन्होंने ने ही मुझे मेरी हौसला अफजाही करने को किया था...उनकी विनम्रता की तो मिसाल ही नहीं दी जा सकती...कहते हैं न की फल लगा वृक्ष झुका हुआ ही होता है...उनकी ग़ज़ल पढ़ कर दिली सुकून मिला...उनके अशार हमेशा ही प्रेरक रहे हैं...सकारात्मकत सोच का जीता जागता नमून है उनकी ये ग़ज़ल. इश्वर उन्हें हमेशा स्वस्थ रखे.
जवाब देंहटाएंदेवी नागरानी जी से मुंबई में कई बार मिला हूँ वो मेरी बड़ी बहन जैसी ही हैं इसीलिए मैं उन्हें दीदी कहता हूँ. इतना प्यार है लोगों के लिए उनके दिल में की क्या कहूँ. दीदी न सिर्फ अच्छा लिखती हैं बल्कि बहुत अच्छा सुनाती भी हैं.उन्हें तरन्नुम में सुनना एक न भुलाये जाने वाला अनुभव है. इस ग़ज़ल में इन्सान द्वारा इंसानियत के खून होने पर उनकी पीड़ा स्पष्ट दिखाई देती है.
ये दोनों ग़ज़ल के ऐसे स्कूल हैं जिनसे हम जैसे विद्यार्थी बहुत कुछ सीख सकते हैं.
इस अविस्मरनीय प्रस्तुति के लिए आपका आभार.
नीरज
पंकज जी आदाब
जवाब देंहटाएंआज बापू की पुण्यतिथि है..
ऐसे लम्हों में श्रध्देय महावीर जी की यह ग़ज़ल
बापू के सपनों में रंग भरने का आह्वान कर रही है...
हर शेर श्रध्देय महावीर जी के तजरिबे और दुआओं का ख़ज़ाना है
हम जैसे नौसीखिये का सलाम कबूल करें,
अल्लाह से आपके सेहतमंद होने की दुआ करता हूं
आप अपना आशीर्वाद इसी तरह बनाये रखे
देवी जी,
चले जब पुराना.....
दरारें धमाकों से....जो ममता की चौखट.....
कोमल दिल के इन अहसास को सलाम.
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
परम आदरणीय गुरु महाबीर जी और ममतामयी आदरणीय देवी जो को चरण स्पर्श.
जवाब देंहटाएंआज कितना अच्छा लग रहा है. ऐसा लगा बिलकुल मेरे सामने बैठे हैं और ग़ज़ल के बहाने शुभकामनाएं बरस रही है.
श्री महाबीर जी का मुझे अपने ब्लॉग पर आशीर्वाद मिल चूका है. उनके अच्छे स्वास्थ्य और दीर्घायु की इश्वर से प्रार्थना है.
उनके शेर.. कहीं हो जायेगा दीदार नूतन वर्ष में यारों. सचमुच बहुत उम्मीद हैं.
जब देवी जी कहती है... धमाको की आवाज कानों में गूंजे. और दरारें धमाको से सीने पे आई. बहुत दर्द है पंक्तियों में.
मुशायरे में आपका सानिघ्य मिला. बहुत खुश हूँ.
- सुलभ
श्रद्धेय महावीर शर्मा जी और देवी नागरानी जी की रचनायें पढ़ना सदैव एक सुखद् अनुभव रहा है।
जवाब देंहटाएंएक लंबा रदीफ निभाना और हर शेर में सकारात्मक संदेश की पूर्णता लिये हुए ग़ज़ल कहना, एक उस्तादाना ग़ज़ल। बस यही कहूँगा कि:
चमन में वो रहें गुलजार, हर इक वर्ष में यारों,
मिले उनका हमें ये प्यार, हर इक वर्ष में यारों।
साबरमती के संत, अहिंसा के पुजारी बापू को श्रद्धांजलि अर्पित है.
जवाब देंहटाएंगुरुदेव के कला कौशल के लिए आभार व्यक्त करता हूँ.
dhamakon ki aavaj kano me gunje
जवाब देंहटाएंkhushi se koi jo fatake jalaye
...vah!
महावीर जी और देवी जी की रचनाओं में बहुत कुछ है सीखने को हम जैसे लोगों की लिए .......... उनका कहने का अंदाज़ ..... शब्दों का चयन ........ विषय की प्रस्तुति ......... सब कुछ कमाल का है ......... हर शेर मुकम्मल ........ गुरुजनों का आशीष है इतनी लाजवाब ग़ज़लें ...........
जवाब देंहटाएंआदरणीय महावीर जी ने आशा और आशीर्वाद के वरद हस्त से हम सबको नवाज़ते हुए यह जो ग़ज़ल लिखी है यह उनके हृदय की आवाज़ सी है, सो सीधे हृदय तक पहुँच के ही दम लेती है... हमारा प्रणाम स्वीकारें....
जवाब देंहटाएंआदरणीया देवी जी की ग़ज़ल ई-कविता पे भी पढ़ी थी पहले... बहुत ममत्व भरी ग़ज़ल, सारी दुनिया से सारोकार रखती हुई... मुबारक खुशी, अलविदा ग़म तुझे हो... बहुत सुन्दर!
सादर, शार्दुला
MAHAVIR JEE AUR DEVI NAANGRANI
जवाब देंहटाएंKEE GAZALEN BAAGH MEIN KHILE
PHOLON KEE KHUSHBOO KEE TARAH
HAIN.IS KHUSHBOO SE DIL BHAR UTHAA
HAI.DONON KO BADHAAEE AUR SHUBH
KAMNA.
बहुत अच्छी ग़ज़लें!
जवाब देंहटाएंमेरी ग़ज़ल तरही के लिए उपयुक्त न होते हुए भी आज बापू की पुण्यतिथि के दिन मेरी ग़ज़ल लगाने के लिए सुबीर जी को धन्यवाद. क्या कहूँ , यह उनका प्यार और ख़ुलूस है जो तरही के नियम को भी लांघ गए.
जवाब देंहटाएंटिप्पणियां पढ़कर तो आनंदविभोर होगया. इस परिवार से इतना प्यार संभालना कठिन सा होगया. बस, यही इच्छा है कि आप सभी को जीवन के हर क़दम पर, हर फ़न में सफलता मिले.
देवी जी की तरही की इस ग़ज़ल की तो बात ही क्या, इनकी ग़ज़लों के संग्रह तो सागर की तरह हैं जिन में कितने ही मोती भरे सीप मिलते रहें हैं. बधाई.
महावीर
दिग्गजों की लेखनी को सलाम..महावीर जी और देवी नागरानी जी का आशिर्वाद मुझे समय-समय पर मिलता रहता है। मेरा गेस लगभग सही ही था। मुशायरे की इन अंतिम कड़ियों में मैंने इन दोनों दिग्गजों की रचनायें के बारे में ही सोच रहा था।
जवाब देंहटाएंनागरानी जी का ये "जो ममता की चौखट पे कुरबां हुये कल" दिल के बहुत करीब लगा और ऊपर से गुरुदेव आपने उन्नी का नाम लेकर तो....
महावीर जी की लेखनी पे कुछ कहना तो हमेशा से मुश्किल रहता है मेरे लिये। एकदम नये किस्म का रदीफ़ और संदेशे देते सारे अशआर...बहुत खूब!
परम आदरणीय महावीर जी,
जवाब देंहटाएंये दशको का अनुभव ही है की आपने इतने कठिन रदीफ़ के साथ इतनी बेहतरीन गजल का निर्वहन इतनी आसानी से किया कि पढ कर मजा आ गया
हर शेर दिल मे उतर गया और बहुत कुछ सीखने को मिला हर शेर से एक ललक एक कतरा खुशी टपक रही है
नागरानी जी, नेट पर कई जगह मैने आप्की बहुत सी गजल पढी है और मै आपकी लेखनी का कायल हू आपकी भावना प्रधान गजले मुझे विशेष पसन्द आती है और ये गजल भी बहुत पसन्द आयी
कुछ शेर बहुत ही लाजवाब लगे
आपका वीनस केशरी
आदरणीय महावीर जी व देवी बहन का लिखा पढना एक लम्बे अनुभव से परिपक्व हुए मस्तिष्क से निकले भाव, संदेसे तथा आशिष एक साथ पाने के बराबर है -
जवाब देंहटाएंउन्हें पढ़कर ,
मन सदा प्रसन्न हो जाता है ..
मेरी बधाई
तरही मुशायरे का ये सौम्य पड़ाव ,
प्रतिष्ठा में चार चाँद लगा रहा है
हमारे गांधी बापू अमर रहेंगें ...
जैसे जैसे , साल गुजरते जाते हैं उन जैसे निस्वार्थ व साहसी राजनेता की कमी
कितनी विशाल होकर खडी दीखाई दे रही है ...और कस्तूर बा ..
कौन करेगा इतना समर्पण ?
बस -
नमन में मन मूक है ...
सादर, स - स्नेह ,
- लावण्या
आदरणीय गुरु देव,
जवाब देंहटाएंआदरणीय महावीर जी की सकारात्मक भावनाओं से ओत प्रोत बहुत सुन्दर गजल पढ़ कर अभिभूत हो गया...नूतन वर्ष पर इतना लिखा जा चुका है कि नया और अलग लिखा हुआ केवल उस्ताद शायरों की शायरी में ही मिलता ...आदरणीय दादा भाई ने अलग अंदाज और कठिन काफिये में शुभकामनाएं दी है..उनकी लेखनी को प्रणाम...
मुहब्बत की बज़र से देखिये सारे जमाने को
न हो फिर आपसी तकरार नूतन वर्ष मे यारो
कोई भूक कहीं भी हाथ फैलाये न सडकों पर
न हो इन्सां कोई लाचार नूतन वर्ष मे यारो
उनको कोटिश सलाम...
आदरणीय देवी नागरानी जी की रचनाओं का तो वैसे ही प्रशंसक हूँ...आज तो उनकी गजल गजब ढा रही है...सारे के सारे शेर छू लेने वाले है...
मुबारक ख़ुशी अलविदा गम तुझे हो,
कभी फिर जीवन में तू न लौट आये
ने मुझे बहुत प्रभावित किया है..
और मकता तो सुभानल्लाह गजब है.
.
न करती जहाँ दहशतें रक्सां देवी
उसी सर जमीं को कोई घर ले आये
इनकी तारीफ़ में जितना कहा जाए उतना कम ही होगा ..
आप का मुशायरा महीने से चल रहा है और एक जगह भी कमजोर नहीं पड़ा...इसका श्रेय आपकी मेहनत और शानदार प्रस्तुति को देना चाहूंगा...यही रचनाएं अगर किसी पुस्तक और मुशायरे में होती तो कदाचित बिना ध्यान में आये निकल जाती ...आपका आभार और शुक्रिया...और साधुवाद!
dono hi diggaj hain ham kis munh se suraj ko diya dikhayen bhala...! bas prashansha kar rahe hain
जवाब देंहटाएंदोनों ही आदरणीय शक्शियतों का आशीर्वाद ही सौभाग्य की बात है. दोनों ही रचनाएँ टिप्पणियों से परे हैं.
जवाब देंहटाएंपहले पहल मैं सुबीर जी का शुक्रिया अता कर रही हूँ जो मुझे श्री महावीर जी के सामने रूबरू कर दिया जिन्हें मैं तहे दिल से इस ग़ज़ल की विद्या के मनोज्ञान की उतनी हो महत्व पूर्ण कड़ी मानती हूँ जितनी श्रधा से मैं मेरे गुरु श्री आर.पी शर्मा "महरिष' को मानती हूँ. और एक शर्मा जी हैं प्राण जी. कुछ तो है इस उपनाम में जो इस दिशा को और उज्वल कर रहा है. ग़ज़ल लेखन की कोई मंजिल तो नहीं है लेकिन इस तवील सफ़र में कई पड़ाव ऐसे आते हैं जहाँ नयी सोच से , नए तेवरों से परिचित होने का सौभाग्य मिलता है. इसी मंच पर उभरते देखा है हमारे हर दिल अज़ीज़ नीरज गोस्वामी को, कायल हूँ गौतम जी की रचनाओं की. आप सभी का दिल से आबाहर इन टिप्पनिओं के मध्यम से दिल को वशीभूत करने के लिए. निर्मल सिद्धू जी. लावण्या जी, समीर, निर्मला कपिला जी, माननीय शहीद मिर्ज़ा जी, अनुज सुलभ, तिलक राज, देवेन्द्र, नसवा जी, श्रधुला. मनोज जी, वेनुस केसरी, प्रकाश पाखी, कंचन जी, अंकित को मेरा साधुवाद.
जवाब देंहटाएंजब उद्गारों को उचित शब्द न मिल पायें तो मौन रहना ही श्रेयष्कर होता है। लिहाजा दोनों दिग्गजों की उपस्थिति ने तरही की रौनक बढ़ा दी है। अच्छी लगीं दोनों रचनायें।
जवाब देंहटाएं