होली को लेकर इस बार ये तो है कि हमारे यहां पर पानी का संकट होने के चलते होली पर काफी असर होगा । उस पर ये भी कि इस बार लोकसभा चुनावों को लेकर सारी परीक्षाएं पूर्व में हो रही हैं सो बच्चों की टोली इस बार होली पर दूर ही रहेगी । मगर होली तो होली है उसे कौन रोक सकता है । वसंत का सबसे अद्भुत पर्व है होली । मैं तो कल्पना करके ही अभिभूत रह जाता हूं कि होली जब कृष्ण और राधा के बीच होती होगी तो उसका कैसा रंग जमता होगा । होली प्रकृति का त्यौहार है । उसका किसी भी धर्म से कोई लेना देना नहीं होता । मुझे आज भी याद है कि बचपन में हमारे साथ मुस्लिम लड़कों की भी टोली शामिल रहती थी होली के धमाल में, मगर आज न जाने कैसी हवा चली की सब बिखर गया । आज ये कवल हिन्दुओं का ही त्यौहार रह गया है । खैर वो सुब्ह कभी तो आयेगी । फिलहाल तो हमारे शहर में होली का रंग जमने लगा है फाग गायन तो शुरू हो गया है ।
कई दिनों से हमने ग़ज़लों की बात नहीं की है । गौतम ने कुछ प्रश्न उठाये थे तथा कुछ प्रश्न कुछ और विद्यार्थियों के भी हैं । दरअस्ल में कुछ एबों के बारे में आज हम बातें करते हैं । गौतम ने कुछ दिनों पहले एक ग़जल लिखी थी जिसमें काफिया की ध्वनि थी 'अर' अर्थात कर, डर, झर आदि । इस ग़ज़ल में ये हो रहा था कि चौथे और पांचवे शेर में मिसरा उला का समापन भी ऐसी ही ध्वनि से हो रहा था । इसे दोष माना जाता है । आपकी ग़ज़ल में कवल मतला ही ऐसा शेर होना चाहिये जिसमें कि दोनों ही मिसरों में रदीफ काफिया की ध्वनि आ रही हो । यदि आप इसमें का एकाध और शेर कहते हैं तो उसे भी मतला के समकक्ष माना जाता है तथा उसे हुस्ने मतला कहा जाता है । किन्तु बात एकाध तक ही रहनी चाहिये उससे जियादह नहीं । बहुत सीधी सी बात है कि मतले में दोनों मिसरों में काफिया होता है रदीफ होता है ये तो हम सब जानते हैं । किन्तु हमको ये भी जान लेना चाहिये कि मतले के अलाव बाकी के शेरों में दोनों मिसरों में काफिया रदीफ की ध्वनि नहीं आनी चाहिये ।एक की गुंजाइश है जिसे हम हुस्ने मतला कह के पढ़ सकते हैं । ध्यान दें के मैं ध्वनि की बात कर रहा हूं । अर्थात बाकी के शेरों के मिसरा उला में समापन काफिया या रदीफ की ध्वनि से भी न हो ।
एक और एब होता है जो कि हमे लिखते समय तो नहीं दिखता लेकिन जब हम पढ़ते हैं तो साफ हो जाता है । हम अपने शेरों में अक्षरों के सटे हुए दोहराव से बचें जैसे आपने लिखा तुम मकानों अब इसमें क्या हुआ कि दो म अक्षर एक के पास एक आ रहे हैं । ये जो पास पास का दोहराव है ये आपको लिखते समय तो कुछ नही अड़ेगा लेकिन पढ़ते समय समस्या पैदा कर देगा । आप इसको ठीक से उच्चारण नहीं कर पायेंगें । दूसरा यदि आपने तुम मकानों जो बाद का म है वो पहले वाले में मिल रहा है और पूरे वजन को बिगाड़ रहा है । प्रयास ये करें कि दो समान अक्षर पास पास न आयें । तुम मेरे हो भले ही गीत में चल जायेगा क्योंकि आप पढ़ते समय तुम पर स्वर भंग कर के विश्राम के बाद मेरे पढ़ेंगें । किन्तु ग़ज़ल में तो ये होगा नहीं वहां पर तो रुकने का विश्राम का समय ही नहीं होता । ये भी एक प्रकार का एब है इससे भी बचना चाहिये । अगली कक्षा में बातें करेंगें कुछ और एबों की ।
तरही मुशायरे को लेकर पहली ग़ज़ल योगेंद्र जी की आ चुकी है और ऐसी है कि हठीला जी तथा मैं पढ़ पढ़ कर लोट पोट होते रहे हंस हंस के । सभी लोग जल्द भेजें अपनी ग़ज़लें । मिसरा तो याद है न तुम्हारे शह र के गंदे वो नाले याद आते हैं काफिया है आले और रदीफ है याद आते हैं । याद रखें कि अपनी ग़ज़ल यहां पर टिप्पणी में नहीं लगायें बल्कि मुझे subeerin@gmail.com पर मेल करें । और हां होली के अवसर पर हठीला जी के सौजन्य से सभी कवियों को चार चार पंक्तियों की उपाधियां भी दी जायेंगीं । उसके लिये अपना एक सामान्य सा परिचय और एक मनमोहक फोटो भी भेजें । जल्दी करें क्योंकि फिर बस निकल जायेगी । एक दो लोगों ने मेल किया है कि वे हास्य नहीं लिख पा रहे । मित्रों यदि आप नहीं लिख पा रहे तो गंभीरता से सोचें कि कहां चला गया आपके जीवन से हास्य ।
होली के अवसर पर प्रस्तुत हैं कुछ पुराने चित्र जिसमें मेरे सर पर बाकायदा बाल नज़र आ रहे हैं जो अब हड़प्पा मोहन जोदड़ो की तरह अवशेष के रूप में खुदाई में कहीं कहीं मिलते हैं ।
सुंदर आलेख। ग़ज़ल के बारे में गंभीर जानकारी मिली। आप ने बहुत ही गंभीर तथ्य की ओर ध्यान दिलाया कि पहले सभी धर्म के लोग होली के इस रंग में सम्मिलित होते थे और अब यह केवल हिंदुओं का त्योहार रह गया है। इस बीच धार्मिक राजनीति की खटाई ने दूध को फाड़ दिया है अब पानी ओर पनीर अलग अलग हो गए हैं। इसे सोडे की जरूरत है जो वापस इन्हें मिला दे।
जवाब देंहटाएंपहले होली एक भारतीय त्योहार था जो अब हिंदू त्योहार भर रह गया है। हे राम!
जवाब देंहटाएंगुरु जी
जवाब देंहटाएंहोली हमारा भी प्रिय त्योंहार है लेकिन अब जरा इसके रंग ढंग और हमारे अंग बिगाड़ने से इसे उतने उत्साह से नहीं खेल पाते...आप जरा हमारी उम्र तक पहुंचे तब मेरी बात को ठीक से समझ पाएंगे...
तरही मुशायरे की ग़ज़लें आपके पास पहुंचनी भी शुरू हो गयीं और यहाँ हमने उस पर सोचा भी नहीं...योगेन्द्र भाई की ग़ज़ल तो लाजवाब होगी ही...माँ सरस्वती ने उनकी लेखनी पर अपनी कृपा दृष्टि कुछ अधिक ही रख्खी है...कई बार सच मुझे उन्हें पढ़ कर ईर्षा होती है वो बहुत सहजता से बड़ी गंभीर बात हंसते हंसते कह जाते हैं...
आपके बचपन के चित्र देखे....(जवानी के तो अब देख रहे हैं....) भाई क्या गज़ब ढाये होंगे आपने...समझ सकता हूँ....वैसे जवानी में हम भी अधिक बुरे नहीं थे...कभी मौका लगा तो अपने ब्लॉग पर चिपकाऊंगा एक आध चित्र...ताकि सनद रहे और वक्त पर काम आये...
जाते जाते याद दिला दूं की आपके प्रशंककों ने मेरे ब्लॉग पर आप की पुस्तक के बारे में छपी सूचना पर ढेरों( अब तक 47) बधाईयाँ भेजी हैं...आप उन्हें पढ़ कर धन्यवाद दे सकते हैं....
नीरज
सुबीरजी, पहली बार यहाँ आया एक सबजेक्ट दिखा, गजल की एबीसी हमें आती नही है इसलिये जोड़ तोड़ के जो बन पड़ा टिप्पणी में छोड़ जाते हैं, आप मुशायरे में मनाओ, हम होली यहाँ मनाते हैं।
जवाब देंहटाएंहोली का ये दिन देखो, फिर से है लौट आया
नाला तो है लेकिन इसमें पानी नही है भाया
गुब्बारे पास हमारे, गंद भी हर जगह है
फुला नही हैं सकते, पानी बड़ी वजह है
गालों पे अबीर लगा के, सूखी गुजिया हैं खाते
तुम्हारे शहर के गंदे वो नाले हैं याद आते
कोकाकोला का एक प्लांट, यहाँ कहीं होता
गुब्बारे में तब मैने, थोड़ा कोला भरा होता
अगली होली में, तब तुम, गंदे नाले को भूल जाते
हर वक्त हम से मिलकर कोला की ही रट लगाते
गुरु जी नमस्कार,
जवाब देंहटाएंबहोत ही बारीक दोष से परिचय कराया आपने जो मूलतः लोग ध्यान नहीं देते ... बहोत ही उपयोगी जानकारी....
अभी भी आपके आशीर्वाद के इंतज़ार में बैठा हूँ ....
आपका
अर्श
भाई जी, प्रमाण देने की आवश्यकता नहीं थी. हमने तो माशाल्लाह खण्डहर देख पहले दिन ही इमारत की बुलंदी का अंदाज़ लगा लिया था.
जवाब देंहटाएंगुरु जी
जवाब देंहटाएंफोटो तो जोरदार हैं..........सही है अतीत कितना अच्छा लगता है.
गुरु जी प्रणाम
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी दी आपने!
यहाँ इलाहाबाद में भी होली का रंग चढ़ने लगा है मगर जिंदगी की जद्दोजहद ने हर त्यौहार की समय सीमा तय कर दी है !
मजाहिया गजल एक टेढी खीर ही साबित हुई है मेरे लिए!
आपसे गुजारिश है की यथा संभव क्लास लेते रहिये!
आपका वीनस केसरी
गुरु जी प्रणाम
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी दी आपने
यहाँ इलाहाबाद में भी होली का रंग चढ़ने लगा है
मजाहिया गजल एक टेढी खीर ही साबित हुई है मेरे लिए
आपसे गुजारिश है की यथा संभव क्लास लेते रहिये
आपका वीनस केसरी
गुरू जी हम तो आपकी तीनों तस्वीरों में ही उलझे रह गयें............
जवाब देंहटाएंऔर नायाब जानकारी के लिये धन्यवाद गुरू जी...
और इस बार योगेन्द्र जी भी आ गये हैं तो अब हमारी क्या बिसात
भाई श्री पंकज सुबीर जी,
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट तो बाद में पढ़ूँगा लेकिन सबसे पहले मैं आपको बधाई देना चाहता हूँ। ज्ञानपीट सम्मान मिलने पर आपको बधाई। और मेरे लिय तो होली उसी समय हो गयी जब नीरज जी के ब्लॉग पर आपको सम्मानित किये जाने की खबर पढ़ी। मैं तो ख़ुशी के रंगों में रंग गया। लेकिन आपको इस सम्मान के मिलने से आश्चर्यचकित बिल्कुल भी नहीं हूँ क्योंकि आपका साहित्य में योगदान इससे से कहाँ ऊँचे दर्जे का है और आप नये लेखकों को भी प्रोत्साहित करते रहते हैं, आपकी यह बात भी मुझे आपका फैन बनाने पर विवश करती है। बधाई।
गुरु जी प्रणाम
जवाब देंहटाएंआज जब अपना ब्लॉग चेक किया तो एक टिप्पडी मिली जिसे पढ़ते ही लगा की यह मेरे लिए नहीं है और शायद कंचन जी ने गलती से या जल्दी में यहाँ पर पोस्ट की है
इसलिए ससम्मान उनकी टिप्पडी आप तक पहुंचा रहा हूँ
कंचन सिंह चौहान ने कहा…
ज्ञानपीय पुरस्कार आपको मिलना हे ये बात तो मुझे पता ही नही थी...! खुद को धन्य महसूस कर रही हूँ कि आपने मुझे अपनी शिष्या के रूप में स्वीकारा...!
कोशिश तो कर रही हूँ तरही मुशायरा में शामिल होने की, लेकिन बिटिया की शादी में मानसिक एवं शारीरिक व्यस्तता के कारण यदि ना आ पाऊँ तो रेगुलर स्टूडेंट के आरक्षण के तहत हठीला जी से आशीर्वाद तो दिलवा ही दीजियेगा :)
अब जाते जाते सम्मान सहित एख बात और कह दूँ कि आप का व्यक्तित्व बालों का मोहताज़ नही है। इसका रौब अब भी वैसा ही है।
होली के रंग-गुलाल मुबारक!!! ..... मौदगिल जी की गजल पर पहुँचते हैं।
जवाब देंहटाएंप्रणाम गुरु जी,
जवाब देंहटाएंतीनो ही तस्वीरे बेजोड़ है..........
जल्दी से जल्दी ग़ज़ल भेजने की कोशिश करूँगा.............
good
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