तरही मुशायरा वैसे तो कल ही होना था लेकिन लगता है शिवराज सिंह चौहान की और मेरे बीच में कुछ गड़बड़ है क्योंकि हमारे बीच में डाल डाल पात पात की बात चल रही है । परसों तक मैं प्रसन्न था कि अब तो इन्वर्टर लग गया अब कोई दिक्कत नहीं है । मगर शिवराज सिंह चौहान ( प्रदेश के मुख्यमंत्री) काकहना है कि भैये जब मैं बिजली ही नहीं दूंगा तो तू बैटरी कैसे चार्ज करेगा और यदि बैटरी ही चार्ज नहीं होगी तो काहे का इन्वर्टर । तो साहब इन्वर्टर लगने के अगले ही दिन से हमारे शहर में जो कि एक जिला मुख्यालय है तथा मुख्यमंत्री का जिला मुख्यालय है वहां बिजली की कटौती अब इस प्रकार हो गई है । सुबह 6 बजे से दोपहर 12 बजे तक फिर दोपहर 1 बजे से दोपहर 2 बजे तक और फिर दोपहर 3 बजे से शाम 7 बजे तक । आपको लग रहा होगा कि ऐसा भी कहीं होता है । मगर सच यही है कि मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री के अपने ही जिले में बिजली की कटौती ऐसी है तो पूरे प्रदेश का क्या हाल होगा । अब आप पूछेंगें कि मुख्यमंत्री क्या कर रहे हैं तो अभी तो वो दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने की खुमारी में हैं ।
इसी बीच कल एक बहुत ही सुंदर गीत सुना जो कल से अब तक लगभग 50 बार सुन चुका हूं फिर भी बार बार सुन रहा हूं । पता नहीं किस ने गाया है फिलमी है या गैर फिल्मी । पर ये तो पता है कि है अद्भुत गीत । आडियो फाइल को साइट पर लगाने के प्रयास सफल नहीं हुए तो उस गीत को http://www.zshare.net/audio/55145327ac1f3949/ यहां लगा दिया है आप भी सुनिये इसको और बताइये कि कैसा लगा आपको ये गीत । और हां इसके बारे में किसी को कुछ पता हो तो ज़रूर बताये कि ये गीत किसका है ।
चलिये अब अपना तरही मुशायारा प्रारंभ करते हैं पहले तो तरहीं मिसरे की ओरजिनल ग़ज़ल जो कि बशीर बद्र साहब की एक ख़ूबसूरत ग़जल है ।
गुलाबों की तरह दिल अपना शबनम में भिगोते हैं
मुहब्बत करने वाले ख़ूबसूरत लोग होते हैं
किसी ने जिस तरह अपने सितारों को सजाया है
ग़ज़ल में रेशमी धागों में यों मोती पिरोते हैं
यही अंदाज़ है मेरा समन्दर फत्ह करने का
मेरी क़ाग़ज की कश्ती में कई जुगनू भी होते हैं
सुना है बद्र साहब महफिलों की जान होते थे
बहुत दिन से वो पत्थर हैं न हंसते हैं न रोते हैं
ख़ैर बद्र साहब का तो कहना ही क्या है । बद्र साहब, निदा फाजली साहब, मुनव्वर राना साहब ये वो लोग हैं जिन्होने ग़ज़ल को आम आदमी तक पहुचाया है क्योकि इन लोगों ने आम आदमी की भाषा में ग़ज़लें कहीं हैं ।
चलिये अब पहले शायर को बुला रहा हूं । इस बालक का परिचय ये है कि ये एक वर्कशाप में मैंकेनिक का काम करता है और कविता के प्रति इसके मन में एकअजब दीवानगी है । मेरे पास ये कविता को लेकर सलाह के लिये आता रहता है । जियादह पढ़ा लिखा नहीं है परिवार चलाने के लिये मैकेनिक बन गया और गा़व से आता जाता रोज पन्द्रह किलो मीटर सायकिल चलाता है । जब भी कुछ नया लिखता है तो सकुचाते हुए मेरी टेबिल पर रख देता है । नाम है नंदकिशोर विश्वकर्मा । उसको भी मैंने तरही दी थी । जिस पर वो जो कुछ जैसा भी लिख कर लाया वैसा ही मैं यहां दे रहा हूं । जैसा मैंने पहले ही कहा था कि तरही मुशायरे में किसी की भी ग़ज़ल में मैं अपनी तरफ से कुछ नहीं करूंगा ।
नंदकिशोर विश्वकर्मा -
मुहब्बत करने वाले ख़ूबसूरत लोग होते हैं
ख़बर क्या तुमको वो दिन रात ही सपनों में खोते हैं
कभी मुस्कान तो पल में अकेलापन भी होता है
ख़यालों को वो अरमानों के सुर में भी पिरोते हैं
करो जीवन को अपने देश में तुम नाम कहता हूं
जो ना अपने वतन की सोचते हर पल वो सोते हैं
ख़ुदा को याद तुम यारों करो दिल में बसा रक्खो
सिमरते हैं न जो उसको हमेशा ही वो रोते हैं
करम अपने सुधारों दुनिया वालों तुम करम अपने
फ़सल वैसी ही पाते हम के जैसा बीज बोते हैं
मास्साब : तालियां तालियां तालियां । हालंकि विचारों का कच्चापन कई जगहों पर साफ दिखाई देरहा है पर फिर भी पहला प्रयास है इसलिये मुआफी । और अब आ रही हैं शार्दूला जी सिंगापुर से अपनी कुछ पंक्तियों को लेकर
शार्दुला नोगजा मैं गज़ल तो नहीं लिखती पर आपकी इस खूबसूरत पंक्ति पे एक छ्न्द लिख के आपको समर्पित कर रही हूँ। इसे मेरा विनम्र धन्यवाद समझें । आपके मुशायरे के लिये बहुत शुभकामनायें :-
"मुहब्बत करने वाले खूबसूरत लोग होते हैं
नहाते चाँदनी में बादलों पे जा सोते हैं
है दरिया प्यार तो वे मछ्लियाँ हैं सात रंगों की
उन्हीं का नाम ले झरने चरण वादी के धोते हैं ।
मुहब्बत करने वाले खूबसूरत लोग होते हैं"
मास्साब : भई वाह शार्दूला जी आपकी पंक्तियां भी ख़ूबसूरत हैं । आपकी कविता तीस्ता नदी वैसे भी सीहोर के श्रोताओं के जहन में अभी तक बसी हैं । तिस पर ये कि आपकी आवाज़ भी कविता के लिये बिल्कुल मुफीद है । तालियां तालियां तालियां । तो आज के लिये अतना ही अभी बाकी हैं गौतम राजरिशी, अंकित सफर, संजय चतुर्वेदी और दिगम्बर नासवा । इनको लेते हैं हम अगले अंक में ।
आज देखिये अल्लामा इकबाल साहब की याद में मध्य प्रदेश साहित्य अकेडमी के मुशायरे का चित्र चित्र में नज1र आ रहे हैं उर्दू की अज़ीम शख्सीयत जनाब इशरत क़ादरी साहब और एकेडमी के अध्यक्ष देवेंद्र दीपक जी
बहुत बडिया मुशायरा है अनन्द आ गया गीत भि अछ्ह है मगर पहचान नहीं सके लेख गीत मुशायरा सभि के लिये ब्धाइ
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब साहब!
जवाब देंहटाएंगुरु देव विश्वकर्मा जी को एक मंच प्रदान करने का शुक्रिया...उनमें संभावनाएं हैं और आप के आशीर्वाद से ये पौधा एक दिन वट वृक्ष बन जाए तो आश्चर्य नहीं होगा.... मुझे बहुत अच्छा लगता है जब समाज के हाशिये पे खड़े लोग ताल ठोक कर मैदान में उतरते हैं...
जवाब देंहटाएंशार्दूला जी की पंक्तियाँ मधुरता से परिपूर्ण लगीं....
और आप का चित्र....सोने पर सुहागा....क्या लग रहे हैं गुरु देव....ऐसे ही ब्लॉग पर अपनी फोटो देते रहे तो बालीवुड के बहुत से चमकदार चेहरे अंधेरे में खो जायेंगे....
आप के कष्ट के निवारण का एक ही तरीका है....खोपोली चले आयें वो भी भूषण कोलोनी में जहाँ बिजली जाना किसे कहते हैं एक पहेली है...याने चौबीस घंटे बिजली उपलब्ध रहती है...
आपको चाहिए था की डीजल से चलने वाला जनरेटर ले लेते...उसे बिजली पर निर्भर नहीं रहना पड़ता...
अगली कड़ी का बेताबी से इंतज़ार है...
नीरज
गुरु जी....हम ढूँढ लिया हूँ...."गेंदा फूल" गीत फ़िल्म "देहली-6" का है जिसे रेखा भारद्वाज ने गया है और ऐ आर रहमान जी ने संगीत बद्ध किया है....हुर्रे
जवाब देंहटाएंनीरज
गुरु जी....हम ढूँढ लिया हूँ...."गेंदा फूल" गीत फ़िल्म देहली-६ का है जिसे रेखा भारद्वाज ने गाया है और ऐ आर रहमान जी ने संगीत बद्ध किया है....हुर्रे
जवाब देंहटाएंनीरज
आलातरीन मुशायरे की बेहतरीन रिपोर्ट। गुरूजी आनन्द आ गया। अगले अंक के इंतज़ार में--
जवाब देंहटाएंएक बात और बताना भूल गाया गुरु देव "ससुराल गेंदा फूल...." गाने के बारे में...इसे लिखा है प्रसून जोशी जी ने...इस फ़िल्म के हीरो हैं अभिषेक बच्चन...इतना जानकारी दिया हूँ तो क्या आप एक ठो शाबाशी नहीं दीजियेगा...???
जवाब देंहटाएंनीरज
विश्वकर्मा जी का ये ईमानदार सा प्रयास मन मोह गया...आपका भी जवाब नहीं गुरूदेव
जवाब देंहटाएंऔर शार्दुला जी के लाजवाब छंद के लिये भी शुक्रिया...
गुरू जी कभी इन बड़े मुशायरों के वाकियात भी तो पोस्ट पर लगायें..
GURU JI PRANAAM,
जवाब देंहटाएंTARAHI MUSHAYARE KE LIYE SABHI KO DHERO BADHAI ... AGALE ANK KE LIYE INTAZAAR MEN HUN...
ARSH
geet bahoot hi achaa hai sunne mein................aur neeraj ji ki khoji drishti bhi khoob hai.
जवाब देंहटाएंनमस्कार गुरु जी,
जवाब देंहटाएंतरही मुशयेरा शुरू होने के लिए बधाई, नंदकिशोर जी अब आपके सानिध्य में आ चुके है अवश्य ही वो बुलंदियों पे होंगे.
शार्दूला जी का छन्द अच्छा है.
"गेंदा फूल" के बारे में नीरज जी ने बता दिया है. मुझे भी ये गाना बहुत पसंद आया.
शार्दुलाजी एक अच्छी कवयित्री हैं, अब ये बहाना ही कहा जाएगा कि वे गज़ल नहीं लिखती क्योंकि उन्होंने जो पेश किया यही इस बात की गवाही दे रहे हैं।
जवाब देंहटाएंमुशायरा भी बहुत बढिया रहा जी और "गेँदा फूल " गीत ग्रामीण अँचल को नये अण्दाज मेँ पेश किया गया है प्रसून जोशी और रहमान का नया गीत भी अच्छा लगा - शुक्रिया !
जवाब देंहटाएं- लावण्या
आदरणीय सुबीर जी,
जवाब देंहटाएं'गेंदा फूल' गीत . . .
"ये सुना गीत माटी से लिपटा हुआ
याद भौजी की आ के यूँ सहला गयी
जैसे गेंदे के फूलों को रंगते हुये
कुछ बसंती बयारें इधर आ गयीं :)"
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आपने मेरा छोटा सा धन्यवाद का छ्न्द इस मुशायरे में शामिल कर के फिर से मुझे चकित कर दिया है ! क्या कहूँ !! मुझे नन्दकिशोर जी का लिखा पसंद आया . नीचे अभी एक पोस्ट में पढा कि आप होली पे एक पंक्ति देंगे । हो सकेगा तो उस पे पूरा गीत लिख के भेजूँगी :)
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आपने जो प्रोत्साहन के शब्द लिखें हैं उसके लिये :
"स्नेही जनों की यह निशानी
त्रुटियों को हैं ढाँप लेते,
हो जो किंचितमात्र भी गुण
कई गुना कर माप देते ।
मेरा यह सौभाग्य अनुपम
यूँ काव्य से आ कर जुड़ी हूँ,
मुस्कुराहट मैं अन्यथा
असंयत,अधूरी,गुड़मुड़ी हूँ ।"
आदरणीय सुबीर जी,
जवाब देंहटाएं'गेंदा फूल' गीत सुना . . .
"ये सुना गीत माटी से लिपटा हुआ
याद भौजी की आ के यूँ सहला गयी
जैसे गेंदे के फूलों को रंगते हुये
कुछ बसंती बयारें इधर आ गयीं "
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आपने मेरा छोटा सा धन्यवाद का छ्न्द इस मुशायरे में शामिल कर के मुझे चकित कर दिया। क्या कहूँ ! मुझे नन्दकिशोर जी का लिखा पसंद आया ।
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आपने जो प्रोत्साहन के शब्द लिखें हैं उसके लिये :
"स्नेही जनों की यह निशानी
त्रुटियों को हैं ढाँप लेते,
हो जो किंचितमात्र भी गुण
कई गुना कर माप देते ।"
आपका बहुत धन्यवाद :). . . सादर . . . शार्दुला
kal hi to ye geet bhanjaa suna raha tha...! :)
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