बुधवार, 15 अक्तूबर 2014

अँधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं... कितना कुछ बदल गया है पिछले सात सालों में ।

animcandles1

अँधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं

मित्रों समय की गति इतनी तेज़ हो गई है कि कुछ पता ही नहीं चलता कि दिन, महीने और साल कब गुज़र गए । देखिए ऐसा लगता है कि कल की ही बात है जब ब्‍लॉगिंग की शुरुआत की थी । और इस ब्‍लॉग के बारे में सोचा था । सात साल हो गए। शायद पहली बार शरद पूर्णिमा को कवि सम्‍मेलन का आयोजन किया था 2007 में । जिस प्रकार से कवियों का उत्‍साह सामने आया था उसके चलते बस सफ़र चल पड़ा । और अब हम यहां तक आ पहुँचे हैं । जाने कितनी दीपावलियॉं हमने साथ साथ मनाईं और जाने कितनी होली, ईद, राखियॉं आदि भी । समय सबको व्‍यस्‍त कर देता है । उसी व्‍यस्‍तता का परिणाम यहॉं भी देखने को मिला । लेकिन इस बार तरही को लेकर जिस प्रकार लोगों ने उत्‍साह दिखाया है उसको देखकर कहा जा सकता है कि अब कोशिश यही रहेगी कि सिलसिला चलता रहे... आमीन।

51380ab2

इस बार हमने बहरे मुजतस की एक बहुत ही लोकप्रिय बहर ली है । बहरे मुजतस जैसा कि आप जानते ही हैं कि ये एक मुरक्‍कब बहर है । मतलब ये कि ये दो प्रकार के रुक्‍नों से मिल कर बनी है, मुस्‍तफएलुन और फाएलातुन। इन्‍हीं दोनों रुक्‍नों की मात्राओं में नियमानुसार परिवर्तन करके मुजतस की उप बहरें या मुज़ाहिफ बहरें बनाईं गईं हैं । आपको पता ही है यदि मुफ़रद बहरों की बात की जाए तो मुस्‍तफएलुन रुक्‍न 'बहरे रजज' का सालिम रुक्‍न है और फाएलातुन 'बहरे रमल' का स्‍थाई रुक्‍न है । इसलिए कहा जा सकता है कि दो मुफरद बहरों रजज और रमल के रुक्‍नों के कॉम्बिनेशन से तीसरी मुरक्‍कब बहर मुजतस बनी है । अब फाएलातुन रुक्‍न के जितने मात्रिक परिवर्तन हो सकते हैं वो सब मुजतस में लागू होंगे और उसी प्रकार मुस्‍तफएलुन के भी सभी मात्रिक परिवर्तन मुजतस में लागू होंगे । मुजतस की सालिम बहर है  मुस्‍तफएलुन-फाएलातुन-मुस्‍तफएलुन-फाएलातुन। अब इसमें हमारी बहर को बनाने के लिए जो परिवर्तन किए गए हैं वो ये कि मुस्‍तफएलुन रुक्‍न 2212 को 1212 कर दिया गया है। इसके बाद फाएलातुन 2122 में भी यही किया गया उसको भी 1122 कर दिया गया । और अंत में फाएलातुन 2122 को 22 या 112 में परिवर्तित कर दिया गया । बहर का नाम 'मुजतस' है ये तय है उसमें चार रुक्‍न हैं सो वो 'मुसमन' है ये तय है। सालिम नहीं है मुज‍ाहिफ है ये तय है । तो 'बहरे मुजतस मुसमन' के आगे नाम क्‍या होगा ये ऊपर किए गए मात्रिक परिवर्तनों के नाम के आधार पर होगा । रुक्‍न मुस्‍तफएलुन की मात्रिक संरचना में पहले दो 'सबब-ए-ख़फ़ीफ़' हैं ( 2 जैसे हम, तुम, कब ) और फिर एक वतद है ( 122 जैसे कलम, मगर, इधर) । जिहाफ की परिभाषा के हिसाब से यदि किसी रुक्‍न में प्रारंभ में सबब-ए-ख़फी़फ़ हो और उसके दूसरे हर्फ को गिरा दिया जाए तो इसे 'ख़ब्‍न' कहते हैं और इस प्रकार बने रुक्‍न को 'मखबून' कहा जाता है । अरे मैंने तो नाम का एक अंश बता भी दिया । मतलब ये कि 'बहरे मुजतस मुसमन मखबून....' तो हुआ, चलिए बाकी के अंशों की तलाश कीजिए जो जा‍हिर सी बात है कि फाएलातुन के फएलातुन और फालुन करने में छिपे हैं ।

ismat zaidi

आदरणीया इस्‍मत ज़ैदी जी

सुकव‍ि रमेश हठीला स्‍मृति शिवना सम्‍मान

एक सूचना ये कि शिवना का वार्षिक आयोजन 19 जनवरी 2015 को आयोजित होगा। कार्यक्रम में आदरणीया इस्‍मत ज़ैदी जी को 'सुकव‍ि रमेश हठीला स्‍मृति शिवना सम्‍मान ' प्रदान किया जाएगा । आप सब इस कार्यक्रम में सादर आमंत्रित हैं । काफी पूर्व से सूचना दी जा रही है जिससे आप अपना शेड्यूल बना सकें ।

Him

तो ठीक है फिर जल्‍दी जल्‍दी अपनी ग़ज़लें भेजिए ताकी काम आगे बढ़े । जिन लोगों ने समय से भेज दी हैं उनके प्रति आभार। जय जय ।

10 टिप्‍पणियां:

  1. कहते हैं बंदर चाहे बूढ़ा हो जाय गुलाटी मारना नहीं भूलता , बन्दर और इंसान में शायद फर्क होता है तभी हम चाह कर भी गुलाटी नहीं मार पा रहे , बहुत कोशिश कर रहे हैं और हर कोशिश में औंधे मुंह गिर रहे हैं , अगर गुलाटी खुदा न खास्ता लग गयी तो ग़ज़ल भेज देंगे वरना अच्छे शायरों को पढ़ कर वाह वाह करेंगे. ये काम भी तो जरूरी होता है न,

    इस्मत बहना को ढेरों बधाई , ऊपर वाले ने चाहा तो सीहोर में मिलना होगा।

    जय जय पढ़ कर भोपाल के राजकुमार केसवानी जी याद आ गए जो अपने हर लेख के अंत में जय जय लिखते हैं.

    तरही की सफलता के लिए ढेरों शुभकामनाएं

    नीरज

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. गुलाटी आप कैसे मारेंगे, आपके बचपन का दोस्‍त है।
      अब उम्र के साथ शरीर कितना भी फिट रखो बहुत हुआ तो करवट ही ली जा सकती है। शायरी के मजे यह हैं कि ख़यालों के करवट लेने से ही कामयाब शेर बनते हैं। तो बस अब जल्‍दी से अच्‍छे वरिष्‍ठ नागरिक की तरह एक अच्‍छी सी ग़ज़ल भेज दें।

      हटाएं
    2. नीरजभाईजी, मांगता है तो आप दुनिया की वाह-वाह करो, अपुन तो आपके लिए वाह-वाह करेगा.. !
      :-)))

      हटाएं
  2. इस्मत जी को ढेरों बधाइयाँ ………हमेशा की तरह बढिया लज़ीज़ स्वादिष्ट गज़लें पढने को मिलेंगी फिर तो हमें :)

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बृहस्पतिवार (16-10-2014) को "जब दीप झिलमिलाते हैं" (चर्चा मंच 1768) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  4. दीपावली के आगमन का संकेत तो आज की पोस्‍ट से मिल ही गया है। बस इस सप्‍ताहांत में कोशिश करता हूँ कि कुछ कह सकूँ।
    जल्‍दी हाजिर होता हूँ।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति
    इस्मत जी की हार्दिक बधाई !

    जवाब देंहटाएं
  6. आदरणीया इस्मत आपा को मेरी हार्दिक बधाइयाँ. शिवना सम्मान के आत्मीय भाव अव्याख्येय हैं.
    शुभ-शुभ

    जवाब देंहटाएं
  7. बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको तथा इस्मत जी को सम्मान प्राप्त के लिए बहुत बहुत बधाई...
    नयी पोस्ट@बड़ी मुश्किल है बोलो क्या बताएं

    जवाब देंहटाएं

परिवार