बुधवार, 1 अक्तूबर 2014

फिर शुरूआत और फिर कुछ दिन की चुप्‍पी, किसी भी काम को दोबारा शुरू करना बहुत मुश्किल होता है । मगर चलिए दीपावली के मुशायरे से शुरूआत की जाए ।

लो जी साहब दीपावली का त्‍यौहार तो आकर देहरी पर ही खड़ा हो गया। बल्कि ये कहें कि त्‍यौहारों का पूरा मौसम ही सामने आ गया है। दशहरा फिर ईद फिर शरद पूर्णिमा और फिर दीपावली। जीवन में कुछ नई आहटें भर देते हैं ये त्‍यौहार । जीवन में से यदि इन त्‍यौहारों को हटा दिया जाए तो कितना कठिन हो जाएगा जीवन । रूटीन को तोड़ने का काम करते हैं ये त्‍यौहार। और उसमें भी ईद और दीपावली जैसे त्‍यौहार तो पर्वराज हैं। ये तो त्‍यौहारों के त्‍यौहार हैं। सुबीर संवाद सेवा पर हम सबने मिल जुल कर त्‍यौहार मनाने की जो परंपरा कायम की थी वो मेरी ही कुछ व्‍यस्‍तताओं या यूं कहें कि लापरवाही के चलते कुछ स्‍थगित सी हो गई। मगर कोई बात नहीं जब जागो तब ही सवेरा है।

इस ब्‍लॉग जो परिवार बनाया उसमें भारत तथा भारत के बाहर के परिजन भी शामिल हुए । बीते सात सालों के सफर में हुआ ये कि उन सबसे मुलाकात हो गई। कुछेक ही लोग बचे होंगे जिनसे भेंट नहीं हो पाई। मिलते समय कतई नहीं लगा कि इनसे पहली बार मुलाकात हो रही है। ऐसा लगा कि रोज ही तो मिलते रहे हैं इनसे। चूंकि संवाद कायम थे तो मुलाकात में अजनबीपन नहीं रहा। सात साल पहले जब ब्‍लॉग की दुनिया में प्रवेश किया तब कहां पता था कि ये शुरूआत कहां कहां पहुंचेगी। सुबीर संवाद सेवा एक ब्‍लॉग न होकर एक परिवार हो जाएगा। एक चौपाल हो जाएगी जहां आकर बतियाने के लिए दरवाजे हमेशा खुले होंगे।

हमने पिछले सात सालों में ग़ज़ल की उंगली पकड़ कर कई सारी बातें कीं। बहुत से नए रहस्‍यों को खोला और बहुत सी नई बातों की पड़ताल की । मैं हमेशा से अपने बारे में ये कहता रहा हूं कि मैं अरूज़ का कोई विद्वान नहीं हूं। मैं तो उसका विद्यार्थी ही हूं। ज्ञान का अंत नहीं होता इसलिए हम सब सीखते रहते हैं, सीखते रहते हैं। मैं भी उसी सीखने की प्रक्रिया में हूं। और उस प्रक्रिया में जो कुछ भी सीख पाया उसे आप सब से साझा करता रहा। कोशिश यह की, कि सरल भाषा में बात की जाए। ऐसी भाषा में जो सबको समझ में आए। मैं नहीं जानता कि कितना सफल रहा लेकिन बस ये कि जो बन पड़ा वो किया।

बातें वातें हो गईं अब काम की बात की जाए। तो साहब अब तरही की शुरूआत की जाए। हमने गई कई बहरों पर काम किया, उन पर तरही का आयोजन किया। मगर ये भी सच है कि अभी अभी बहुत सारी बहरें हमारे लिए इंतज़ार कर रही हैं ।तो सोचा ये कि किसी ऐसी बहर पर काम किया जाए जिस पर पूर्व में नहीं किया गया हो। हालांकि याद नहीं आ रहा है कि किस किस पर काम किया और किस किस पर नहीं। बहुत सोच कर इस बहर का तय किया कि चलो इस बार गुनगुनाने लायक इस बहर पर ही काम किया जाए ।

ललालला-लललाला-ललालला-लाला

अच्‍छी लगी न गुनगुनाने में, मुझे भी बहुत अच्‍छी लगती है ये गुनगुनाने में । रुक्‍न तो आपने निकाल ही लिए होंगे । मफाएलुन-फएलातुन-मफाएलुन-फालुन। बहर कौन सी है । वो नहीं बताई जाएगी, आप लोग ही इस बहर का नाम निकाल कर बताएं कि ये कौन सी बहर है। बहुत मुश्किल नहीं है । थोड़ा प्रयास करेंगे तो पकड में आ जाएगी ।

तो अब इस धुन पर क्‍या लिखा जाए । कुछ मिसरा बनाया जाए । किस प्रकार का मिसरा हो । जाहिर सी बात है कि वो मिसरा दीपावली पर ही होगा । उसमें कहीं न कहीं प्रकाश की बात होगी । उसमें अंधकार की समापन की बात होगी ।

deepawali (16) 

अंधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं

ठीक लगा न मिसरा । अंधेरी रा ( मुफाएलुन) त में जब दी ( फएलातुन) प झिल मि ला ( मुफाएलुन) ते हैं ( फालुन) । ये अलग से बताने की जरूरत नहीं है कि अंधेरी में 'री' तथा रात के बाद आने वाले  'में' को गिरा कर लघु किया गया है । और हां ये भी कि 'हैं' रदीफ है और 'आते' ध्‍वनि काफिये की ध्‍वनि है ।

तो उठाइये कलम और दीपावली की तरही के लिए ग़ज़ल लिखना शुरू कर दीजिए ।

28 टिप्‍पणियां:

  1. गुरूजी, काफी समय बाद तरही मिसरा देख कर बहुत अच्छा लगा. मेरी पसंदीदा बहरों में से एक है. २०१० के वर्ष ऋतु की तरही में भी यही बहर थी. और मिसरा था 'फलक पे झूम रही सांवरी घटायें हैं.."

    अगर मेरा अनुमान सही है तो यह बहर है
    मुज्‍तस मुसम्मन् मख्बून मक्तुअ
    मुफायलुन फयलातुन मुफायलुन फैलुन (1212 1122 1212 22)

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    1. अरे राजीव तुमने तो ढूंढ भी निकाला कि इस पर मुशायरा हो चुका है । खैर एक बार और सही ।

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    2. पहली टिप्पणी राजीव जी की ही बनती थी क्योंकि इस बह्र पर इनकी बहुत खूबसूरत ग़ज़लें हैं, एक से बढ़कर एक। इस बार फिर से इंतज़ार मीठा होने वाला है।

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  2. अँधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं
    लगे, सुबीर के ’संवाद’ बुदबुदाते हैं.. .

    आपने ’इन’ की बुदबुदाहट सुन ली, भाईजी. आप लौट आये. बहुत सही किया. अब सारे दीप अपने तेल के प्रति आश्वस्त हो गये होंगे.

    दीपावली का बेरा तो आप बता दिये, साहेब, एग्जैक्ट दिनंकवा मेन्शन होने से रह गया है. ठीक न ?! .. :-))

    शुभ-शुभ वेला की शुभकामनाएँ

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    1. एग्‍जैक्‍ट दिनंकवा को कोना तय नहीं है । बस ई समझ लिया जाए के दुई तीन दिन पहिले सुरू करा जाए ।

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  3. त्योहारों की दस्तक है ! एक बार फिर दीवाली तरही का मौसम है !
    निश्चित ही आनंदमय होगा हर बार की तरह !

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  4. दिमाग के बुझे दियों को फिर से जलाना भोत ही मुश्किल सो काम दीख रो है , कब से कोशिश कर रे हैंगे लगता है तेल ही रीत गयो है , खां से ला के डालें ? जे बताओ

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    1. सिडी़मान जी पेलम पेल तो जे गलत फैमिली अपने दिमाग से हटा लें कि दिमाग के दिये कभी जल रिये थे । ऊपर वाला आपको नेकी दे घजल तो अापको लिखनीच पड़ेगी चाय कुच भी हो जाए ।

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    2. भै साब जे भी कूब ख़ई बुजे दिये से जे हाल है ,जले होते तो का होता बच गए लोग बरना चार पांच किताबें अब तक आ जातीं। कोसिस करेंगे फेल होबा की गारंटी पक्की समझो।

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  5. Koshish to imkaani rahegi..
    hamhu likhab ghazalwa.. datwa bata da..

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    1. आज़म जी अंतिम तारीख का तो बस ये है कि दीपावली के चार पांच दिन पहले मिल जाए ताकि उस हिसाब से योजना बन जाए । मतलब ये कि 15 तारीख तक यदि मिल सके तो बहुते ही अच्‍छा है । आपहूं लिखब गजलवा ये जान के जोन कहे सो तोन बहुतेई अच्‍छा लगा ।

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  6. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  7. गौतम की फेसबुक पोस्ट ने याद दिलाया "कभी कभी मेरे दिल मेंं ख़याल आता है"।
    बहुत दिनों बाद मस्ती की पाठशाला में मौका मिल रहा है। आनंद आयेगा।

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    1. अरे ये तो बहुत अच्‍छा हुआ कि आपने उदाहरण ही दे दिया । कभी कभी ( मुफाएलुन) मि र दिल में ( फएलातुन) खयाल अा ( मुफाएलुन) ता है ( फालुन) ल ला ल ला - ल ल ला ला -ल ला ल ला - ला ला

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    2. मेरा तो जो भी क़दम है वो तेरी राह में है
      के तू कहीं भी रहे तू मेरी निगाह में है

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    3. एक और उदाहरण हो गया।
      कदम राह में और निगाहे करम बने रहें और क्‍या चाहिये।

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  8. अहा …आखिर इंतज़ार ख़त्म हुआ। काफी वक़्त बाद तरही मुशायरा आया है और यक़ीनन बहुत धूम-धड़ाका होने वाला है।

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  9. फोन में प्रोब्लम थी नमस्कार तो टेस्ट करने के लिए किया था। तो आज रात की फ्लाईट से अमेरिका जा रही हूँ कुछ दिन शायद समय न मिल पाए। कोशिश करूंगी। शुभकामनाएं

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    1. अगर शिकागो क्षेत्र में हों तो बतायें, मुलाकात होती है।

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  10. पंकज जी,
    कहां थे आप जमाने के बाद आए हैं

    चलिए,
    कुफ्र टूटा खुदा खुदा करके
    हाजिरी लगा लीजिएगा।

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  11. शुद्ध पाठक के तौर पर उपस्थित रहूँगा

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  12. आपके दवारा दिये मिसरे से मैं फिर गजल के दायरे में मशक करने लगा हूं। गजल सबमिट करके सुकूं की सासें ले रहा हूं। धन्यवाद।

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  13. कई दिनों की व्यस्तता ... मेल जरूर पढता रहा पर आज ही फुर्सत से ध्यान लगा पाया हूँ ...
    अब तैयारी करूँगा ग़ज़ल की ... उमीद है मेरी देरी से आने की फ़रियाद कबूल होगी ...

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  14. मैंने आज ही तरही से सम्बंधित ये पोस्ट पढ़ी ! अब काफी विलम्ब हो चूका है ,इतने कम दिनों में ग़ज़ल कहाँ हो पायेगी !

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