दीपावली का त्योहार सामने आ गया है । अब बस एक ही दिन है दीपावली में । आज रूप चतुर्दशी है । हमारे यहां आज सुबह उबटना लगा कर नहाया जाता है क्योंकि आज रूप को सँवारने का दिन होता है। तो आइये आज हम तरही के सिलसिले को आगे बढ़ाते हैं । रूप का संबंध नारी शक्ति के साथ होता है तो आज नारी शक्ति की ही ग़ज़लें और गीत। दीपावली वैसे तो पांच दिवसीय पर्व है मगर प्रथम तीन दिन अधिक महत्वपूर्ण होते हैं। ये तीन दिन तीन गुणों का प्रतीक होते हैं। तीन गुणों के या फिर तीन प्रतीकों के । तन, मन और धन। आज लावण्या दीपक शाह जी, सुधा ओम ढींगरा जी, इस्मत ज़ैदी जी और डिम्पल सिरोही की ग़ज़लें सुनते हैं और उससे पहले सुलभ जायसवाल का एक मुक्तक।
अँधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं
आज सबसे पहले सुनते हैं सुलभ जायसवाल से एक मुक्तक। सुलभ का ये मुक्तक बताता है कि सुबीर संवाद सेवा से जिनको भी दिली लगाव है वे लोग दौड़ते भागते, जैसे तैसे करके इस मुशायरे में शामिल हुए हैं । क्योंकि ये एक प्रकार से सुबीर संवाद सेवा के उत्सवों को फिर से शुरू करने का प्रयास है जिसमें हर किसी की भागीदारी आवश्यक थी और हुई भी है।
सुलभ जायसवाल
'अँधेरे' हार के चुपचाप बैठ जाते हैं
अँधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं
उन्हीं फरिश्तों से संसार में उजाला है
जो मुश्किलों में भी हंसकर दीये जलाते हैं
बहुत सुंदर मुक्तक है। रौशनी और अँधेरे की लड़ाई बरसों बरस से जारी है और चलती रहेगी। उसी लड़ाई को लेकर ये मुक्तक है। उन लोगों को समर्पित जो अँधेरे से जंग लड़ रहे हैं।
लावण्या दीपक शाह
अंधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं
सितारे घर में औ’ आंगन में बिछ से जाते हैं।
भुला के ग़म को ज़रा देखो जलते दीपक को
है कल की भोर सुनहरी न हौसला हारो
हरेक पल को ही दीपावली समझना है
नई उमंगें हों मन में नवीन आशा हो।
हैं साथ सैकड़ों दीपक, है रात दीवाली
बढ़ा के प्रीत चलो जश्न हम मनाते हैं
सुंदर गीत है । सकारात्मक सोच से भरा हुआ गीत। उत्साह, उमंग, आशाएं इनसे ही तो हमारा जीवन बना है। भुला के ग़म को ज़रा देखो जलते दीपक को, पंक्ति बहुत कुछ कह रही है । हौसले को बनाए रखना आवश्यक होता है और ये गीत उसी हौसले की बात कर रहा है । हरेक पल को ही दीपावली समझना है, पंक्ति जीवन को हर क्षण जीने हर पल में आनंद लेने की पंक्ति है । बहुत ही सुंदर गीत । वाह वाह वाह ।
सुधा ओम ढींगरा
अँधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं
तो पथ से भटके मुसाफिर भी राह पाते हैं॥
घना अँधेरा है, मंजिल भी दूर है, क्या ग़म,
सितारे हौसलों के राह जब दिखाते हैं॥
समेट रक्खा है इन्सां ने खुद को अपने तक
नज़र ज़मीं ये इतने जो देश आते हैं॥
सबक जिन्होंने भी इंसानियत का सिखलाया
वही सलीबों पे आखि़र में पाए जाते हैं॥
है फ़त्ह चाँद को हमने किया है फिर भी हम
जो राह काट दे बिल्ली ठिठक ही जाते हैं॥
ये नफ़रतों का अँधेरा मिटाने हर दिल से
चराग़ प्रेम के मिलकर चलो जलाते हैं॥
सुधा जी वैसे तो कहानीकार हैं और कविताएं छंदमुक्त लिखती हैं लेकिन सुबीर संवाद सेवा पर वे अपनी ग़जल़ें हमें सुनाने आती हैं । उनकी उपस्थिति हमारे लिए प्रेरणादायक होती है। घना अँधेरा है औ' दूर है मंजिल, क्या ग़म में हौसलों के सितारों का प्रयोग बहुत सुंदर है । सबक जिन्होंने ने भी इंसानियत का सिखलाया, शेर एक कड़वी सच्चाई को सामने लाता है, ईसा से लेकर गांधी तक सबके चेहरे सामने आ जाते हैं । चराग़ प्रेम के जलाने का संदेश देकर ग़ज़ल समाप्त होती है । बहुत सुंदर बहुत सुंदर । वाह वाह वाह ।
इस्मत ज़ैदी "शिफ़ा"
ताआल्लुक़ात चटख़ते हैं, टूट जाते हैं
जब हम ख़ुलूसो मोहब्बत को आज़माते हैं
जो राहे हक़ पे ज़िआले क़दम बढ़ाते हैं
तो पैर ज़ुल्मतो बातिल के थरथराते हैं
(ज़िआले : बहादुर, ज़ुल्मतो बातिल : अधर्म और अँधेरा)
ख़ुशी का एक नया ज़ाविया उभरता है
हम अपने बच्चों से जिस वक़्त हार जाते हैं
(ज़ाविया : दृष्टिकोण)
मैं एक भूल भुलैया में क़ैद हूँ जैसे
तसव्वुरात मेरे मुझको आज़माते हैं
ठहर सा जाता है इक अक्स चाँद के रुख़ पर
लबे चराग़ जो इक बार मुस्कुराते हैं
महो नजूम भी हैरत से देखते हैं ज़मीं
"अँधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं"
उदास शब भी अमावस की मुस्कुराती है
जो कुमकुमे से निगाहों में जगमगाते हैं
शग़फ़ है ख़ूब रवायाते रफ़्तगा से मगर
हम अहदे नो के तराने भी गुनगुनाते हैं
(शग़फ़ : बहुत लगाव, रफ़्तगा : गुज़रा हुआ, अहदे नो : नया युग)
हमारे बीच जो दीवार उठ रही है "शिफ़ा"
चलो के मिल के उसे आज हम गिराते हैं
क्या किया जाए ? बताइये क्या किया जाए ? आप बताइये कि मैं किस शेर को कोट करके उसकी तारीफ में यहां पर कुछ लिखूँ ? मैं पहले एक बात बताना चाहता हूँ इस्मत जी गोवा से सतना शिफ्ट हुईं हैं और इस दौरान ही तरही की घोषणा हुई । इंटरनेट की अनुपलब्धता और परेशानियों के बीच उन्होंने मुझे मोबाइल पर रोमन में मैसेज द्वारा शेर भेजे। यही तो वो जज़्बा है जो सुबीर संवाद सेवा को एक परिवार बना देता है । खुशी का एक नया ज़ाविया उभरने में मिसरा सानी अहा अहा है । पलकों की कोरों पर बूंदें आ जाती हैं बरबस । गिरह के शेर में मिसरा उला खूब बना है । कुमकुमे से निगाहों में जगमगाने की बात ही क्या है वाह । अब मेरे बस की नहीं है कि प्रशंसा के लिए और शब्द लाऊं, वाह वाह वाह ।
डिम्पल सिरोही
चूँकि डिम्पल जी पहली बार हमारे मुशायरे में आ रही हैं इसलिए इनका परिचय पहले। डिम्पल जी जनवाणी मेरठ में सब एडिटर के पद पर कार्यरत हैं।
हजार ख्वाब उमीदों के गीत गाते हैं।
अंधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं।
बड़ा वीरान सा रहता है आजकल मौसम
चलो कि मिलके इसे फिर से सब हंसाते हैं।
तिमिर को सख्त हिदायत है चुप रहे शब भर,
कंवल उजालों के हम मिलके सब खिलाते हैं।
कुछ इस सलीके से मुझसे खफा हुए हमदम
वो बात करते तो हैं, पर जिया जलाते हैं।
खफा नहीं हैं वो मुझसे, तुम्हें नहीं मालूम
वो सबसे छुपके मेरे गीत गुनगुनाते हैं।
चराग जैसा बनाओ वजूद तुम अपना,
अंधेरी रात में ये रास्ता दिखाते हैं।
ये दिन भी होते हैं कुछ खास दोस्तों जैसे
कभी हंसाते हैं डिम्पल कभी रुलाते हैं।
डिम्पली जी पहली बार मुशायरे में आईं हैं लेकिन ग़ज़ल से लगता है कि वे सिद्धहस्त शायरा हैं । एक पंक्ति जो दिमाग में बैठ गई वो है तिमिर को सख़्त हिदायत है चुप रहे शब भर, कुछ अलग सा प्रयोग साहित्य में हमेशा अच्छा लगता है और ये पंक्ति उसी प्रयोग की पंक्ति है । एक और मिसरा ग़ज़ब का बना है बड़ा वीरान सा रहता है आजकल मौसम, बाद में उतना ही सुंदर मिसरा सानी । और सलीके से खफा होने की तो बात ही अलग है । प्रेम के शेर वैसे भी हमेशा ही आनंद देते हैं । मकता भी खूब है । सुंदर ग़ज़ल बहुत सुंदर ग़ज़ल, वाह वाह वाह ।
वाह वाह वाह रूप चतुर्दशी का पर्व आज की रचनाओं ने सार्थक कर दिया है। दीपावली के आगमन की पूरी भूमिका आज की रचनाओं ने बांध दी है । कल दीपावली है तो आज इन ग़ज़लों का आनंद उठाइये और खूब दाद दीजिये । कल हम कुछ और रचनाकारों के साथ मनाएंगे दीपावली का त्योहार । तब तक निर्मल आंनद ।
वाह. कमाल की गज़लें.. सुलभ ने बस मुक्तक कहा है लेकिन खूब कहा है.
जवाब देंहटाएंलावण्या जी की इस छोटे से गीत में एक बड़ा सन्देश है.
सुधा जी की ग़ज़ल भी बहुत खूबसूरत है. गिरह सुंदर है.
इस्मत जी की तो इस एक ही ग़ज़ल ने मेरी उर्दू की vocabulary में भारी इज़ाफा कर दिया है. :) गजब के शेर कहे हैं. बहुत सुंदर मतला और बहुत सलीके से लगाई हुई गिरह. उम्दा ग़ज़ल.. हार्दिक बधाई.
डिंपल जी को पहली बार पढ़ रहा हूँ. बहुत सुंदर शेर कहे हैं. “बड़ा वीरान सा रहता है..” “कुछ इस सलीके से..”, चाराग जैसा बनाओ वजूद.." अच्छे लगे.
मक्ता इस ग़ज़ल का बेहद उम्दा शेर है. डिंपल जी को बधाई.
राजीव जी आपका बेहद शुक्रिया.
हटाएंआदरणीय पंकज जी, आयोजन की सफ़लता के लिए बधाई स्वीकार करें...
जवाब देंहटाएंसुलभ जायसवाल ने एक मुक्तक में कितना बड़ा संदेश दिया है...वाह
मोहतरमा लावण्या दीपक शाह साहिबा का गीत नाउम्मीदी के अंधेरे से निकालता हुआ प्रतीत होता है. इस सुन्दर गीत के लिए उन्हें बधाई.
मोहतरमा सुधा जी की ग़ज़ल के सभी शेर बहुत खूब हैं...सबक वाला शेर इतिहास की याद दिलाता है. इस विधा में सफ़ल लेखन के लिए बधाई.
मोहतरमा इस्मत साहिबा के चिंतन को सलाम...बच्चों से हारने की खुशी को कितनी खूबसूरती से बयां किया है...ठहर सा जाता है....समेत सभी शेर दिल को छू जाते हैं वाह वाह वाह.
मोहतरमा डिम्पल सिरोही जी की ग़ज़ल का हर शेर बेहतरीन है...चराग जैसा बनाओ...और मक़ता बहुत खूबसूरत हैं...बधाई.
मुझे इस मंच का रास्ता आपने ही सुझाया है, इसलिए पहले आप बधाई के पात्र हैं 'श्रीमान'
हटाएंसुलभ जी, लावणया जी, जैदी जी , सुधा जी व डिम्पल जी ने आज मिलकर इस तरही को एक नई ऊंचाई दिया है।इसके लिये आप सभी मुबारक के हकदार हैं।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुलभ जी.
हटाएंपंकज भाई आज अपनी बात आपसे ही शुरू करूँ, मैं तो आपकी सादगी का कायल हूँ और मेरे लिये मानना कठिन है कि जो एक बार आपसे मिल लिया वो आपके परिवार से अलग है। मन में कोई लाग-लपेट न हो तो आपसे मिलने के बाद कोई संबंध काट ले यह संभव ही नहीं। अगर इस आयोजन से कोई अछूता रह गया तो कोई ऐसा ही कारण हो सकता है जिसपर स्वयं उसका कोई नियंत्रण न हो।
जवाब देंहटाएंसुलभ को जब मैनें पहली बार समक्ष में सुना था, हतप्रभ था, इस ब्लॉग पर इसकी प्रथम प्रविष्टि और उस प्रस्तुति में जो अंतर देखा वह प्रत्यक्ष प्रमाण था कि प्रयास क्या परिणाम दे सकता है। मात्र चार पंक्तियों में उपस्थिति दर्ज करा के भी यह उपस्थिति औपचारिक नहीं है; पूर्ण गंभीरता इसमें निहित है।
दीपावली मुहब्बतों से भरा अवसर है और लावण्या दीदी ने भी मात्र आठ पंक्तियों में पूर्ण गंभीरता और बेहद खूबसूरती से संदेश दिया है।
सुधा ओम ढींगरा जी ने मूलत: कथाकारा होते हुए भी जिस स्तर के शेर प्रस्तुत किये हैं वो पुख़्ता प्रमाण हैं कि उनमें एक उम्दा शायरा पूरी शिद्दत से जी रही है। बहुत ही खूबसूरत शेर हैं।
ईस्मत आपा की ग़ज़ल में यूँ तो किसी एक शेर पर कुछ कहना अन्य अशआर के साथ अन्याय होगा लेकिन गिरह के शेर पर कुछ कहने से मैं स्वयं को रोक नहीं पा रहा हूँ। मैं नहीं समझता कि इससे खूबसूरत दृश्य गिरह में उपस्थित हो सकता था। महो नज़ूम भी हैरत से देखते हैं ज़मीं; अंधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं। बाकमाल शेर है यह।
डिम्पल सिरोही जी को पहली बार पढ़ रहा हूँ; एक पुख़्ता ग़ज़ल ने अपना प्रभाव छोड़ा है विशेषकर 'चराग़ जैसा बनाओ वज़ूद तुम अपना'; बहुत खूब कहा है। इसी प्रकार 'तिमिर को सख़्त हिदायत है..' क्या चुनौती भरी बात कही है। बेहद खूबसूरत।
तिलकराज जी आपका बेहद आ•ाार, पहली कोशिश में हौंसला आफजाई किसे अच्छी नहीं लगती। बहुत -बहुत शुक्रिया
हटाएंसुन्दर चुनिंदा सामयिक प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंसभी बहुत सुन्दर ...
दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनायें!
तम-तमस नहीं ज्योति.. .
जवाब देंहटाएंयह शाश्वत आह्वान इस भूमि की मूल-वैचारिकता है. परम्परा की तरह इसका निर्वहन हमारा दायित्व है. तभी एक सरस हृदय अदबदाया गा उठता है - कलुष-भेद-तम हर, प्रकाश भर.. जगमग जग कर दे..
आज की प्रविष्टियों का निहितार्थ हमारी परम्पराओं का अनुगामी है. समूची जगती कितनी निष्ठावान है ! परस्पर कितनी संपृक्त है !
भाई सुलभजी के कहे को आपरूप हामी मिलती है - जो मुश्किलों में भी हँसकर दीये जलाते हैं. बहुत खूब !
आदरणीया लावण्या दी के सुर को तनिक और विलम्बित होते देखना चाहता था. जिस सोच का आधार ही हरेक पल को ही दीपावली समझना है, उस सोच की वैचारिकता को शाब्दिक होता हुआ कौन न देखना चाहेगा !
इन सकारात्मक पंक्तियों के लिए हृदय से आभार, आदरणीया.
आदरणीया सुधा ओमजी के कहे को सुनना सदा से एक विशेष अनुभव हुआ करता है. फिर माध्यम कोई हो. आदरणीया शैली-शिल्प कोई अपनाएँ. संप्रेषण सदा से अपनत्व के भाव जोड़ लेता है.
मतले ने दीपकों के होने का अर्थ साझा किया है. क्या बात है !
लेकिन जिस चुटीले अंदाज़ में यह शेर हुआ है और जिस भोलेपन से अपनी बातें कह पा रहा है, वह काबिले तारीफ़ है -
है फ़त्ह चाँद को हमने किया है फिर भी हम
जो राह काट दे बिल्ली ठिठक ही जाते हैं... .. :-))
आदरणीया, चाँद छोड़िये, हम सभी अब मार्स को चूम आये हैं. लेकिन अपने आकाओं की इस सीख को भुला नहीं पाये हैं !!
आपके गद्य के ही नहीं, आपके गीति-काव्य की संप्रेषणीयता के भी हम शैदाई हैं.
आदरणीया इस्मत आपा के किसी कहे पर मंतव्य बचकानी हरकत ही मानूँगा. जिन स्रोतों से हम सीखते हैं, उन स्रोतों से मात्र सुना जाता है.. और फिर गुना जाता है. एक-एक शेर कई-कई तथ्यों को समेटता और साझा करता हुआ है.
आदरणीयाडिम्पल सिरोही को पहली बार सुनने का अवसर मिल रहा है. आपके शेर आश्वस्त करते हैं. लेकिन मैं आपके दो शेरों को बिना कोट किये नहीं तह पाऊँगा -
खफा नहीं हैं वो मुझसे, तुम्हें नहीं मालूम
वो सबसे छुपके मेरे गीत गुनगुनाते हैं.
ये दिन भी होते हैं कुछ खास दोस्तों जैसे
कभी हँसाते हैं डिम्पल कभी रुलाते हैं
अगूत ! ग़ज़ब !!
दीपावली की अनेकानेक शुभकामनाएँ .. .
शुक्रिया सौरभ जी
हटाएंये मंच एक परिवार है इस बात में किसी को संदेह तो हो ही नहीं सकता और ये मुशायरा इस बात का जीता जागता उदाहरण है ...
जवाब देंहटाएंसुलभ जी का मुक्तक और लावाय जी का गीत बहुत ही गहरा सन्देश देते हैं ... सच तो है की हर पल ही दिवाली है ... ग़मों से बाहर आने की जरूरत है ...
सुधा जी की ग़ज़ल का मतला ही इतना लाजवाब है की क्या कहने ... है फतह चाँद को हमने किये ... ये शेर बहुत ही ख़ास लगा ... अपनेपन का, अपनी आदतों का एहसास है इस शेर में ...
इस्मत जी का हर शेर फारीफ के काबिल है ... जब आपको भी किसी एक शेर को कोट करना मुश्किल हो रहा है तो हम जैसों की तो ओकात ही क्या ... उर्दू के नए शब्दों का इस्तेमाल और उनका अर्थ हमारे ज्ञान को बढ़ा रहा है ... बहुत बहुत बधाई इस्मत जी इस मुकम्मल ग़ज़ल पर ...
डिम्पल जी ने भी कमाल किया है पूरी ग़ज़ल में ... नए अंदाज़ के शेर ताज़ा हवा के झोंके की तरह माहोल को खुशगवार कर रहे हैं ....
गज़ब की गजलें निकल के आ रही हैं इस दिवाली में ... सभी को प्रकाश पर्व की मंगल कामनाएं ...
नवासा जी, आपको गजल पसंद आई आपका शुक्रिया
हटाएंसमस्त गुरूकुल की दीप पर्व की हार्दिक बधाइयाँ,
जवाब देंहटाएंसच तो ये है कि होनहार भाई तिलक और सौरभ जी की टिप्पणी के बाद किसी और के पास कहने को कुछ बचता ही नहीं। अब जो भी कहा जायेगा उनके कहे की स्वीकृति ही होगी , नयी बात हम से मूढ़ कहाँ से लाएंगे।
जवाब देंहटाएंखैर जब कहने का मानस बना ही लिया है तो कहना पड़ेगा की रूप चतुर्दशी पर इस से बेहतर पोस्ट की कल्पना भी नहीं की सकती। ग़ज़ल को सोलह श्रृंगार से संवारा है आज हमारी बहनों ने और सुलभ ने माथे पर मुक्तक का टीका जड़ दिया है।
लावण्या दी मुझे वात्सल्य की मूर्ती लगती हैं उनकी कलम से निकले शब्द तरह कोमल मधुर और सकारात्मकता लिए होते हैं। हरेक पल को दीवाली समझने की सीख जीवन बदल सकती है। मेरा प्रणाम है उन्हें।
सुधा जी की कहानियां पढ़ कर ही आजतक तालियां बजायी हैं आज उनकी ग़ज़ल पढ़ के बजा रहा हूँ। हौसलों के सितारे, इंसानियत सिखाने वालों का हश्र , अन्धविश्वास पर व्यंग और नफरत मिटाने की तमन्ना लिए उनकी पूरी ग़ज़ल के लिए ढेरों दाद।
अब बात इस्मत की। मेरी इस छोटी बहन की बड़ी शायरी जब पढता हूँ ख़ुशी से दिल बल्लियों उछलने लगता है। ऊपर वाले ने क्या कमाल हुनर इसे बक्शा है। पंकज जी सच लिखा है किस शेर की बात की जाय और किसे छोड़ा जाय ? कोई शेर दूसरे से कम नहीं। सुभान अल्लाह !!! मेरी दुआएं आपके साथ हैं।
डिम्पल जी की शायरी उनके चमकदार भविष्य की और इशारा कर रही है। उन्हें पढ़ कर यकीन होता है कि प्रतिभा उम्र की मोहताज नहीं होती। तिमिर को हिदायत देने वाली डिम्पल को और पढ़ने की चाह है। भविष्य में होने वाले तरही समारोह में उनकी उपस्तिथि इंतज़ार रहेगा।
अगली कड़ी बेसब्री से इंतज़ार है :
अब इंतज़ार है नीरज जी आपका सबको
हटाएंवो चल दिए हैं ग़ज़ल लेके लो वो आते हैं :) :) :)
नीरज जी, बहुत-बहुत शुक्रिया इतनी तारीफ के लिए। हां यदि मुझे दोबारा इस मंच पर आने का मौका दिया गया तो मैं यहां जरूर हाजिर होऊंगी.
हटाएंहजार वाट के बल्ब को टिमटिमाती मोमबत्ती से बहुत रोशनी की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए शाहिद भाई।
जवाब देंहटाएंमाना हुजूर, लेकिन तलाश तो सर्च लाईट से ही होगी न।
हटाएंसर्च लाइट से मोमबत्ती की तलाश ? क्या बात करते हैं तिलक साहब ?
हटाएंइसी को तो ग़ज़लियत कहते हैं, नीरज भाई .. !!
हटाएंतिलक लगाये ऐन गज़लों का भाल पर नीरज
जवाब देंहटाएंउन्हें सुलभ हैं ये सौरभ सभी बताते हैं
सुधा बरसती ह लावण्य फ़ूटा करता है
पत्र जब पंकजी तुहिनों में भीग जाते हैं
अदब है गज़लों का इस्मत,है शेर का डिम्पल
हुये हैं लफ़्ज़ भी शाहिद सभी बताते हैं
अमावसें भी बदलती हैं पूर्णमासी में
अंधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं
राकेश जी आप बेजोड़ हैं। दीपावली की शुभ कामनाओं के साथ नमन करता हूँ आपको।
हटाएंदिवाली का मौसम है । सबसे पहले तो सभी को दीपोत्सव की हार्दिक बधाई ।
जवाब देंहटाएंपंकज जी के स्नेह है जिससे सब हुए हैं । सुलभ जी ने कम समय में एक बेजोड़ मुक्तक प्रस्तुत किया । सुन्दर भाव और सुन्दर शब्द चयन के लिए बधाई और धन्यवाद ।
आदरणीय लावण्या जी , इस्मत जी, सुधा जी ,डिम्पल जी सभी की ग़ज़लें बेहद पसंद आई । दिवाली पर आप सभी ने सुन्दर विचारों को ग़ज़ल के रूप में पेश किया , आप सबका बहुत बहुत शुक्रिया । बेहतरीन प्रस्तुति के लिए बधाई ।
पंकज जी सबसे ज्यादा बधाई के पात्र आप हैं । सुन्दर तरही और हम सभी को एक मंच पर काफी दिन बाद फिर से लाने का बहुत बहुत शुक्रिया । बेहद सफल मुशायरा है यह । आप का स्नेह सदा बना रहें, यहीं ईश्वर से प्रार्थना है । आपको दिवाली की ढेर सारी बधाइयाँ ।
वाह
जवाब देंहटाएंअंधेरी रात में दीयों के झिलमिलाने से
धरा के नूर में चाँद चार लग ही जाते हैं।
गज़लों की जो सजी हुई हो महफिल
पतंगे शम्मा पे वारि जाते हैं।
ये बाकमाल पोस्ट अपने मोबाइल पर कल ही पढ़ ली थी पर त्यौहार की व्यस्तता ने यंहा आकर कुछ कहने से रोके रखा . आज के दिन की शुरुआत चाय के साथ फिर से इन खुबसूरत गजलो को पढ़ने से अच्छी क्या होती ? पहले तो नारी शक्ति को समर्पित ये पेज देख कर दिल ख़ुशी से झूम गया . और गजलें पढ़ने के बाद तो नत मस्तक हूँ . हर गज़ल हर शेर प्रभावी ..सुलभ जी ने बहुत सही बात कह दी फरिस्तो का जिक्र कर के.. सच मे इस संसार मे कुछ फरिस्तो से ही उजाला है . बहुत सुन्दर मुक्तक ..... भुला के गम को जरा देखो जलते दीपक को ...वाह वाह लावण्या जी की इस एक पुकार पर ही फिर से जीने का जी कर उठे . बहुत सुन्दर पंक्तियाँ कभी कभी कंही कुछ पढ़ा लिखा आपके आज और जीवन को कितनी सकारात्मक सोच दे जाता है और जिंदगी की तरफ मोड़ देता है लिखने वाला भी ये नहीं जान पाता . बहुत सुन्दर पंक्तिया ..सुधा जी की गज़ल के सभी शेर प्रभावी हैं फिर भी जिक्र करूँ तो सबक जिन्होंने भी इंसानियत का .....घना अँधेरा है .......क्या ही खूब कहा है वाह वाह ....इश्मत जी की गज़ल ..वाह एक गज़ल ही दीवान सा है इस से बेहतर मुशायरे में अब और क्या होगा? ..अगर मुशायरे में भी कोई शो स्टोपर जैसा कांसेप्ट होता है तो ये गज़ल वो ही है बस के शो स्टॉप होने से पहले आ गयी ..एक एक शेर पर बार बार वाह निकल रही है .....ताआल्लुकत चटकते हैं टूट जाते हैं .....आह !क्या शेर है वाह वाह ..ख़ुशी का एक न्य जाविया ........कौन है जो अपने बच्चो से हार नहीं जाना चाहेगा पर क्या करीने से बात कही है इश्मत जी ने खूब ...मैं एक भूल भुलेया मे क़ैद हूँ ......वाह वाह ....क्या शेर है ....मैं हर एक शेर को कोट कर रही हूँ ..कैसे छोड़ा जाये ....सभी शेर लाजवाब हैं ...हमारे बीच जो दिवार उठ रही है शिफ़ा .....क्या बात है .. इश्मत जी किस क़द की शायरा हैं ये उनका हर मिशरा समझा रहा है .....मे उनकी शायरी की कायल हो गयी और उनकी उर्दू की मुरीद .उन्हें ऐसे ही आगे पढ़ने को मिलता रहे सीखने को मिलता रहेगा ऐसी आशा है .. अब बात डिंपल जी की ....श्रंगार ....मेरा प्रिय विषय लेखन के सन्दर्भ में और इस पर जो शेर डिंपल जी ने कह दिए वो मन को मोहने वाले हैं लोगो के बीच पहुँच जाये तो ये भी उन शेरो मे से एक होंगे जो हम लोगो की जुबान पर चढ़े हुए हैं ..बड़ा वीरान सा रहता है ......तिमिर को सख्त हिदायत है .......वाह वाह तालियाँ ...कुछ इस सलीके से ........वाह वाह ...खफा नहीं हैं वो मुझ से ...क्या बात किस सलीके से कह दी डिंपल जी ने वाह वाह ...चराग जैसा बनाओ वजूद तुम अपना .. बहुत उत्साहित करने वाला शेर ..डिंपल जी लावण्या जी सुधा जी ..इश्मत जी को बहुत बहुत शुभकामनाये
जवाब देंहटाएंसभी रचनाये काबिले तारीफ हैं मुझे बायस न समझा जाये.. और फिर ये पेज हमें समर्पित किया है लेखक महोदय ने ..पेज हमारा हैं तो खुल कर लिखना बनता हैं ..
वाह वाह क्या कमाल की टिप्पणी है । इसे कहते हैं तैसे तो तैसा ।
हटाएंॐ
जवाब देंहटाएंअनुज पंकज सुबीर भाई
दीपावली के पावन पर्व के शुभ अवसर पर
स स्नेह ' राम राम ' !
आप मेरे लिखे को सदैव तरही मुशायरे में निखार कर संवार कर
आपके जालघर पर, परिवार के सदस्यों के समान
साहित्य प्रेमी साथियों के समक्ष प्रस्तुत करते रहे हैं।
यह आपका उपकार, आपका उत्सवप्रियता युक्त स्वभाव ,
भारतीय परम्पराओं को जीवित रखनेवाला प्रयास
सराहनीय ही नहीं , सर्वप्रिय एवं स्त्युत्य है।
बधाई , अभिनन्दन और आशीर्वाद भेज रही हूँ।
आप , लन्दन , कैनेडा तक अपनी यशस्वी कीर्ति पताका फहरा आये !
वाह भाई वाह ! बहुत बहुत बधाई !!
अब , अगला कदम अमरीका हो ! यह मनोकामना है।
शेष सब कुशल है।
घर पर सौ बहुरानी , चि परी चि पाँखुरी को मेरे स स्नेह आशीष।
आप सभी को दीपावली की ढेरों मंगलकामनारं -
स स्नेह ,
- लावण्यादी
ॐ
जवाब देंहटाएंदीपावली वास्तव में शुभ संदेशा लाई है ~~
आनंद मंगल मनाईये !
आपके उच्च कोटि के साहित्य सृजन के लिए ढेर सारी बधाई
ऐसे ही सभी साथी लिखते रहें यह परम कृपालु परमात्मा से मांगती हूँ
सभी के द्वारा लिखे उच्च कोटि के साहित्य सृजन के लिए ढेर सारी बधाई
ऐसे ही साहित्य कर्म जारी रहे ये सदआशा - और हाँ ,
दीपावली के मंगल ~ पर्व की सभी को अनेकानेक शुभकामनाएं !
सच्चे ह्रदय से सभी विद्वतजन को कर बद्ध प्रणाम और धन्यवाद
- लावण्या
सुबीर जी, सबसे पहले तो इस मुशायरे की निरन्तरता बनाये रखने के लिये बधाई और आभार.
जवाब देंहटाएंअब आज के मुशायरे की ग़ज़लों के बारे में- सुलभ जी का मुक्तक शानदार है. लावण्या दी का गीत स्नेहसिक्त है. सुधा जी की ग़ज़ल भी अच्छी है. डिम्पल सिरोही जी अभी शुरुआत कर रही हैं, सो निश्चित रूप से बधाई की पात्र हैं.
अब इस्मत की ग़ज़ल के बारे में. वैसे तो इस्मत के लिये कुछ लिखते हुए मैं हिचक जाती हूं, और कम तारीफ़ करने की कोशिश करती हूं, कि कहीं मुझ पर दूसरों के साथ पक्षपात करने का आरोप न लग जाये. लेकिन क्या करूं? हां, इस्मत को अभिन्न मित्र होने का लाभ न कभी देती हूं, न दूंगी. आप सब भी पढ रहे हैं न? अगर मैं केवल अपनी बात कहूं, तो आज के मुशायरे में सही मायनों में उम्दा ग़ज़ल केवल इस्मत की ही थी. (बाक़ी लोग मुझसे नाराज़ न हों) सचमुच किसी एक शेर को कोट नहीं किया जा सकता. हर शेर एक से बढ कर एक.उनकी कलम पर तो जैसे सरस्वती का वास है. जब वे लिखती हैं, तो एक अजब सी पवित्रता तारी हो जाती है. उनका लहजा, बताता है कि वे जो कह रहीं, पूरी ईमानदारी से कह रहीं, केवल लिखने के लिये नहीं... एक बार फिर बहुत आभार आपका.
सुलभ जी के शानदार मुक्तक से शुरुआत हुई है। "जो मुश्किलों में भी...." कहकर उन्होंने रंग जमा दिया।
जवाब देंहटाएंलावण्या जी के गीत ने पोस्ट को नई ऊँचाई दी है। "हरेक पल को ही दीपावली...." क्या बात है।
सुधा जी ने शानदार अश’आर से सजी ग़ज़ल कही है। "घना अँधेरा..." और "ये नफ़रतों का अँधेरा....." जैसे कमाल के अश’आर कहे हैं उन्होंने। दाद हाज़िर है।
इस्मत जी की तो पूरी ग़ज़ल ही लाजवाब है। किस शे’र को कोट करूँ किस को छोड़ूँ। इनकी ग़ज़ल ने मुशायरे में चार चाँद लगा रही है। दिली दाद हाज़िर है।
डिम्पल जी पहली बार आई हैं उनका सुबीर संवाद सेवा परिवार में बहुत बहुत स्वागत है। लेकिन उनकी ग़ज़ल देखकर नहीं लग रहा है कि उन्होंने पहली मुशायरे में भाग लिया है। बेहद सधी हुई ग़ज़ल है। बहुत बहुत बधाई डिम्पल जी को।
Ati hoon
जवाब देंहटाएंसुबीर भाई इस्मत जी को पढ़ा तो क्यों हमारे प्रेम पर प्रस्फं चिन्ह। मई समय नहीं निकाल पा रही। इधर आ कर बी पी हाई हो गया। मुश्किल में हूँ। सब को बधाई। पढ़ नही पाई सब को फिर आऊंगी पढ़ने।
जवाब देंहटाएंAti hoon
जवाब देंहटाएं